ba 2nd year baburnama notes

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‘तुजुक-ए-बाबरी’ या ‘बाबरनामा’ 

(Tuzuk-e-Baburi Or Baburnama)

मुगल काल का प्रथम महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थ सम्राट बाबर द्वारा लिखा गया था। इस ग्रन्थ को ‘तुजुक-ए-बाबरी’, ‘वाक्यात-ए-बाबरी’ और ‘बाबरनामा’ नामों से पुकाराः जाता है। यह ग्रन्थ, वास्तव में बाबर की आत्मकथा है, जो उसने तुर्की भाषा में लिखी थी। 

‘बाबरनामा’ बाबर के शासन का मौलिक स्रोत है। इस ग्रन्थ का पहला अनुवाद फास में पायन्दा खाँ ने किया था और दूसरा अनुवाद अब्दुर्रहीम खानखाना ने 1590 ई० अकबर के आदेश पर किया। 

इसका अनुवाद अनेक यूरोपीय भाषाओं में; विशेषकर फ्रेंच और अंग्रेजी में भी हआ है। अंग्रेजी अनुवादों में किंग, लैडेन, अरिस्कन और श्रीमती बेवरीज के अनुवाद अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। श्रीमती बेवरीज ने तुर्की ग्रन्थ का अनुवाद किया है, अतः यह अधिक प्रामाणिक तथा विश्वसनीय है। 

‘बाबरनामा’ को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है-

(1) फरगना और समरकन्द से सम्बन्धित विवरण।

(2) काबुल से सम्बन्धित विवरण।

(3) भारत सम्बन्धी विवरण। 

यह ग्रन्थ भारत का सम्पूर्ण विवरण नहीं देता है। इसमें 1508 से 1519, 1520 से 1525 ई० तथा 1529 से 1530 तक की घटनाओं का वर्णन नहीं मिलता है। यह ग्रन्थ बाबर के चरित्र एवं कार्यों का विश्वसनीय वर्णन प्रस्तुत करता है। 

भाषा एवं शैली—’बाबरनामा’ की भाषा चगताई तुर्की है। चगताई तुर्की भाषा आमू एवं सिर नदियों की वादी में पनपी, जहाँ प्राचीन फारसी का चलन था। अत: इसमें अरबी एवं फारसी के शब्दों का खूब प्रयोग हुआ। ‘बाबरनामा’ की भाषा सरल, प्रवाहयुक्त एवं प्रभावशाली है। अपने संस्मरणों को बाबर ने सरल एवं सुबोध शब्दों में व्यक्त किया है। विषयों की विविधता, रोमांचक तथ्यों के बाहुल्य एवं विस्तार के बावजूद इसमें अतिरंजकता का दोष नहीं है। उपमा, रूपक एवं अन्य अलंकारों के प्रयोग से भाषा को बोझिल एवं जटिल नहीं बनाया गया है। इतिहास का सत्य बाबर के शब्दों एवं भावों से स्वतः प्रमाणित है। ग्रन्थ को पढ़ते समय पाठक उस देश और काल में विचरण करने लगता है। 

‘बाबरनामा’ का द्वितीय भाग दैनन्दिनी की भाँति संकलित है, जिसमें लेखक तिथिक्रम के विषय में विशेष सचेष्ट है। पहले वार्षिक विवरण के उदाहरण मिलते हैं, बाद में प्रत्येक दिन की घटना का पृथक-पृथक वर्णन है। कुछ वर्षों के विवरण संकेत एवं संक्षेप में हैं। सम्भवतः इनका विस्तृत विवरण कहीं खो गया होगा। 

बाबर का इतिहास के प्रति दृष्टिकोण

‘बाबरनामा’ में बाबर ने अपनी इतिहास विषयक अवधारणा स्पष्ट करते हुए लिखा है, “इस इतिहास में, मैं इस बात पर दृढ़ रहा हूँ कि हर बात जो लिखू, वह सच लिखू और जो घटना जिस प्रकार घटी हो, उसका ठीक-ठीक उसी प्रकार उल्लेख करूँ। इस कारण यह आवश्यक हो गया कि जो कुछ अच्छाबुरा ज्ञात हुआ, उसे लिख दूँ।” एक अन्य स्थान पर अपने इसी सिद्धान्त को दुहराते हुए उसने लिखा है, “मेरा विचार किसी व्यक्ति पर आक्षेप करना नहीं है, जो कुछ मैंने कहा है, वह विशुद्ध सत्य है। जैसे घटनाएँ घटीं, मैंने वैसे ही उनका वर्णन किया है। जो कुछ मैंने आज तक लिखा है, उसमें मैंने सच्चाई का पालन किया है। परिणामस्वरूप मैंने अच्छे और बुरे दोनों कार्यों को लिखा है, चाहे, वे जिस रूप में भी घटे हों। मैंने निष्पक्षता से का लिया है। इस कारण मैं अपने पाठकों से क्षमा चाहता हूँ और सुनने वाले इसे अत्यधिक कठोरता से न सुनें।” 

‘बाबरनामा’ के अध्ययन से प्रमाणित है कि बाबर ने अपने इस सिद्धान्त का यथोचित परिपालन किया। इसका दूसरा प्रमाण यह भी है कि दिनभर की थकान के बाद भी वह समय मिलने पर रात में लिखता था। 25 मई, 1529 ई० की रात को वह लिख रहा था। उसी के शब्दा  में, “15 घड़ी रात्रि व्यतीत हो जाने के उपरान्त जब तरावीह समाप्त हो गई तो अचानक बहुत बड़ा तूफान आ गया। इतने जोर की हवा चली कि बहुत-से खेमे उड़ गए। मैं बैठा लिख रहा था। पुस्तक के कगज एवं पन्ने बुरी तरह भीग गए। ड़ी कठिनाई से उन्हें मैंने एकत्रित किया एवं एक ऊनी कालीन में उन्हें लपेटा। तूफान दो घड़ी तक रहा। बड़ी कठिनाई से हम लोगों ने आग जलाई और प्रातःकाल तक सो नहीं सके।सारी रात कागजों को सुखाने में व्यतीत हो गई।” 

उपर्युक्त उद्धरण सिद्ध करते हैं कि बाबर अपने लेखन के प्रति कितना सचेष्ट एवं ईमानदार था। 

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