Advantages of Liberalizaion

Advantages of Liberalization उदारीकरण के लाभ उदारीकरण से अग्रलिखित लाभ हुए हैं— 1. उदारीकरण के दौर में कर-प्रणाली का सरलीकरण – सरकार द्वारा दीर्घकालिक राजकोषीय नीति की घोषणा के द्वारा कर प्रणाली को सरलीकृत कर युक्तिसंगत बनाया गया है। आयकर की अधिकतम सीमा को 30% कर दिया गया है। उत्पाद कर में कमी कर दी गई है। विदेशी कम्पनियों के लाभ-कर को कम कर दिया गया है। 2. ब्याज दरों का स्वतन्त्र निर्धारण- उदारीकरण के दौर में अब ब्याज दरों का निर्धारण रिजर्व बैंक द्वारा नहीं, अपितु इनका निर्धारण बाजार शक्तियों द्वारा पूर्ण स्वतन्त्रतापूर्वक किया जाएगा। Advantages of Liberalizaion 3. नए उद्यमी वर्ग का प्रादुर्भाव- उदारीकरण के परिणामस्वरूप देश में एक नए उद्यमी वर्ग का प्रादुर्भाव हुआ है, जो औद्योगिक गतिशीलता को बढ़ाते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। 4. प्रतिस्पर्धी उद्यमिता का प्रारम्भ – उदारीकरण के नए दौर में नई तकनीक के आगमन तथा विदेशी कम्पनियों द्वारा भारत में निवेश करने के कारण भारतीय उद्यमियों में नई चेतना का संचार हुआ है तथा स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा के कारण मात्रात्मक ही नहीं, गुणात्मक सुधार भी हुआ जिसका सीधा लाभ उद्योग जगत को प्राप्त हो रहा है । 5. उत्पादन में वृद्धि – नियन्त्रणों की समाप्ति से देश में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हुई है। उदारीकरण से पूर्व देश में अनेक औद्योगिक एवं उपभोक्ता वस्तुओं की कमी थी। लेकिन कुछेक वर्षों में ही स्थिति बदल गई है। Advantages of Liberalizaion 6. विकास दर में वृद्धि — विकास दर किसी भी देश की प्रगति का मापदण्ड है। केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) ने 31 अगस्त को चालू वित्त वर्ष 2015-16 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2015) के आँकड़े जारी कर दिए हैं। इसके अनुसार इस दौरान आर्थिक विकास दर घटकर 7% पर आ गई है। जनवरी-मार्च 2015 में यह 7.5°% थी। टैक्स मामलों में सलाह देने वाली प्रमुख बहुराष्ट्रीय कम्पनी अर्न्स्ट एण्ड यंग (ईवाई) ने अक्टूबर 2015 मे जारी अपनी रिपोर्ट में भारत को निवेश के लिहाज से विश्व के सबसे आकर्षक स्थल के तौर पर चिह्नित किया है। Advantages of Liberalizaion  उसके अनुसार भारत में कम्पनियों के लिए काम करना अब पहले से ज्यादा आसान हो गया है। आने वाले दो-तीन वर्षों तक भारत में होने वाले विदेशी निवेश में खासी वृद्धि होगी। इस निवेश का बड़ा हिस्सा मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में आ सकता है। रिपोर्ट में भारत पहले स्थान पर है, जबकि उसके बाद चीन, दक्षिण-पूर्वी एशिया, ब्राजील और उत्तर अमेरिका का नम्बर है। दुनिया की 500 बड़ी कम्पनियों के बीच किए गए इस प्रतिष्ठित सर्वेक्षण को 15 अक्टूबर 2015 को नई दिल्ली में औद्योगिक नीति व संवर्धन विभाग (डीआइपीपी) के सचिव अमिताभ कांत ने जारी किया। 7. एफ०डी०आई० का अन्तप्रवाह । … Read more

Special Economic Zone : SEZ

Special Economic Zone : SEZ विशेष आर्थिक क्षेत्र – सेज  विशेष आर्थिक क्षेत्र एक ऐसा शुल्क मुक्त आर्थिक क्षेत्र है जहाँ विस्तृत रूप से विदेशी निवेश को आकर्षित करने के साथ-साथ निर्यात व्यापार को बढ़ावा दिया जाता है। सेज बनाने का मुख्य उद्देश्य निर्यात उत्पादन को नियमों व कानूनों की अड़चनों से मुक्त रखना है। भारत में सेज की स्थापना के लिए नीतिगत योजना 1 अप्रैल, 2000 से शुरू की गई ताकि निर्यात उत्पादन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी, एक बाधारहित वातावरण का निर्माण हो ।  (1) भारत में सेज स्थापित करने की योजना मुख्यतः चीन से प्रेरित है। चीन ने 1990 के दशक में सेज की स्थापना कर अपने निर्यात व्यापार में तीन गुना वृद्धि कर ली है।  (2) सेज की स्थापना के बाद भारत के निर्यात व्यापार की वार्षिक वृद्धि लगभग 15-18% के बीच रही है, जो इन क्षेत्रों की स्थापना के पहले की वृद्धि (8-10%) से लगभग दुगुनी है। (3) कांडला और सूरत (गुजरात), सांताक्रूज (महाराष्ट्र), कोच्चि (केरल), चेन्नई (तमिलनाडु), विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश), फाल्टा (प० बंगाल) और नोएडा (उ०प्र०) स्थित सभी आठ निर्यात संवर्द्धन क्षेत्रों को विशेष आर्थिक क्षेत्र में बदल दिया गया है। विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम के अन्तर्गत निजी/ संयुक्त क्षेत्र में अथवा राज्य सरकारों और उसकी एजेंसियों को विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थापित करने के लिए औपचारिक अनुमति प्रदान कर दी गई है । सेज की मुख्य विशेषताएँ (Main Characteristics of SEZ) सेज की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- (1) सेज के तहत कुछ ऐसे एनक्लेव यानी परिक्षेत्र स्थापित किए गए हैं, जिन्हें किसी आयात-निर्यात नियमों का पालन किए बगैर अपने विदेशी व्यापार करने की पूर्ण स्वतन्त्रता है।  (2) सेज की इकाइयाँ उत्पादन व्यवसाय या सेवा से सम्बन्धित कार्य करती हैं।  (3)सेज को व्यवसाय परिचालन तथा शुल्कों एवं करों के लिए एक विदेशी उपनिवेश माना गया है जिसकी इकाइयाँ तीन वर्षों के भीतर एक सकारात्मक शुद्ध विदेशी विनिमय प्राप्तकर्त्ता के रूप में परिवर्तित हो जाएँगी। (4) सेज के उत्पादों और सेवाओं के लिए पूर्ण शुल्क पर घरेलू बिक्री कर लागू होता है जो प्रचलित आयात शुल्क के अधीन होगी। (5) निर्यात एवं आयात कार्गो की कस्टम द्वारा कोई नियमित जाँच नहीं होगी, साथ ही कस्टम एवं एक्जिम नीति के लिए अलग से किसी दस्तावेज की आवश्यकता नहीं है।  (6) विकास आयुक्त के नेतृत्व में एवं कस्टम अधिकारियों से निर्मित समिति द्वारा सेज की इकाइयों की निगरानी की जाएगी। (7) आयकर अधिनियम की धारा 10A के प्रावधानों के तहत सेज की इकाइयाँ सन् 2010 तक कॉर्पोरेट टैक्स हॉलीडे के लिए पात्र होंगी। (8) अस्त्र-शस्त्रों, विस्फोटक पदार्थों, … Read more

What do you understand by Bank Rate ?

प्रश्न 9- बैंक दर से आपका क्या अभिप्राय है? What do you understand by Bank Rate ? उत्तर – बैंकों को अपने दैनिक कामकाज के लिए प्राय: ऐसी बड़ी रकम की जरूरत है जिनकी मियाद एक दिन से ज्यादा नहीं होती। इसके लिए बैंक जो विकल्प अपनाते हैं, उनमें सबसे सामान्य है केन्द्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) से रात भर के लिए (ओवरनाइट) कर्ज लेना। इस कर्ज पर रिजर्व बैंकों को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रीपो दर कहते हैं। रीपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्जा लेना सस्ता हो जाता है और इसलिए बैंक ब्याज दरों में कमी करते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके। रीपो दर में बढ़ोतरी का सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों के लिए रिजर्व बैंक दूसरों को कर्ज देने के लिए जो ब्याज दर तय करते हैं, वह भी उन्हें बढ़ाना होगा।

What is Inflation ?

What is Inflation ? मुद्रा स्फीति (Inflation ) जब कोई देश अपने देश की मुद्रा के बदले दूसरे देश की मुद्रा को पहले से कम मूल्य में लेने के लिए तैयार होता है तो उसे मुद्रा का अवमूल्यन कहते हैं। मुद्रा स्फीति की कोई पूर्ण तथा सामान्य परिभाषा देना सरल नहीं है क्योंकि भिन्न-भिन्न अर्थशास्त्रियों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से ‘मुद्रा स्फीति’ की व्याख्या की है। अतः मुद्रा स्फीति की स्थिति का सही परिचय पाने के लिए यहाँ कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाओं का अध्ययन करना उचित होगा।  प्रो० कैमरर के शब्दों में – “मुद्रा स्फीति वह अवस्था है जिसमें मुद्रा का मूल्य गिरता है अर्थात् कीमतें बढ़ती हैं। “ यद्यपि प्रो० कैमरर का विचार अत्यन्त सरल, व्यावहारिक और स्पष्ट है तथापि इस परिभाषा को पूर्णतः सन्तोषजनक नहीं कहा जा सकता क्योंकि कीमत स्तर पर होने वाली प्रत्येक वृद्धि, मुद्रास्फीति नहीं होती है। “मुद्रा प्रसार वह अवस्था है जब वास्तविक व्यापार की मात्रा से चलन तथा निक्षेप की मात्रा अत्यधिक होती है।” इस परिभाषा के विश्लेषण से स्पष्ट है कि मुद्रा स्फीति उस समय उत्पन्न होती है जब विनिमय-साध्य वस्तुओं तथा सेवाओं की तुलना में मुद्रा का परिमाण बढ़ जाता है। प्रो० हा के शब्दों में — “वह स्थिति, जिसमें मुद्रा का अत्यधिक निर्गमन हो, मुद्रा – स्फीति कहलाती है।

Discuss three main weaknesses of industrial development in India.

industrial development in India Discuss the three main weaknesses of industrial development in India भारत में औद्योगिक विकास की तीन मुख्य समस्याओं की व्याख्या कीजिए। उत्तर -1.शक्ति के साधनों का अभाव देश के समक्ष शक्ति के साधनों की आपूर्ति की समस्या है तथा फैक्ट्री को निरन्तर चलाने के लिए लगातार शक्ति के साधनों का होना अति आवश्यक है। शक्ति के साधनों में एल०पी०जी०, पेट्रोल, डीजल, बिजली का होना अति आवश्यक है। इस समस्या का समाधान सौर ऊर्जा और नदी-घाटी योजनाओं या अणु शक्ति द्वारा उत्पादित बिजली की आपूर्ति करके किया जाना चाहिए। 2. आधारभूत ढाँचे का अभाव – औद्योगिक ढाँचे के विकास के लिए आधारभूत ढाँचे का मजबूत होना अनिवार्य हैं, किन्तु देश में परिवहन, संचार, बैंकिंग आदि क्षेत्रों (जो कि आधारभूत ढाँचे के ही अंग हैं) का आज भी भली-भाँति विकास नहीं हो पाया है। का विकास सरकार को निजी क्षेत्र की मदद एवं विदेशी सहायता लेकर पिछड़े क्षेत्रों करना चाहिए। खासकर इन क्षेत्रों में आधारभूत ढाँचे को खड़ा किया जाना चाहिए। जो निजी आगे आते हैं उन्हें प्रोत्साहन तथा करों में छूट मिलनी चाहिए। 3. गुण नियन्त्रण की समस्या- – भारत में उत्पादों की गुणवत्ता विदेशी माल की तुलना में निम्न होती है, जिसकी वजह से विदेशों से अधिक मात्रा में निर्यात आदेश प्राप्त नहीं हो पाते हैं। – इस सन्दर्भ में गुणवत्ता सम्बन्धी प्रमाण-पत्र जारी करते समय कठोर जाँच की जानी चाहिए। कारखाना स्तर पर पूरी गुणवत्ता का ख्याल किया जाना चाहिए। अच्छे कच्चे माल का प्रयोग किया जाना चाहिए। Discuss three main weaknesses of industrial development in India.

Write short note on Trends in World Trade.

Write short note on Trends in World Trade. प्रश्न 6 – विश्व व्यापार की प्रवृत्तियों पर लघु टिप्पणी लिखिए।  उत्तर—विश्व व्यापार जिन दो प्रमुख तत्त्वों से प्रभावित होता है, उनमें से एक तत्त्व है विकास की रणनीति–आयात प्रतिस्थापन या निर्यात प्रोत्साहन । विश्व व्यापार की वृद्धि के लिए आयात-प्रतिस्थापन की रणनीति हानिकारक होती हैं, जबकि निर्यात प्रोत्साहन की रणनीति सहायक होती है। विश्व व्यापार का दूसरा तत्त्व यह है कि विश्व उत्पाद की वृद्धि दर में तेजी आने का प्रभाव, विश्व व्यापार पर सकारात्मक होता है। 2004 में विश्व उत्पत्ति में 5.1% की वृद्धि हुई। इसी वर्ष विश्व व्यापार में 10.3% की प्रभावशाली वृद्धि हुई। 2008 की विश्वव्यापी मन्दी का कुछ प्रभाव विश्व व्यापार पर पड़ा। 2009 में विश्व उत्पत्ति में 2.2% का ह्रास होने के कारण विश्व व्यापार में 14.4% का हास हुआ। विश्व निर्यातों तथा विक्रासशील देशों के निर्यातों में सादृश्यता देखी जा सकती है। जब विश्व निर्यात बढ़ता है तब विकासशील देशों का निर्यात भी बढ़ता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2013 में 30%, 2014 में 3.6% तथा 2015 में 3. 9% की वृद्धि दर्ज की गई। इन्हीं अवधियों में विश्व व्यापार में क्रमश: 30%, 4. 3% तथा 5.3% की वृद्धि हुई। विश्व निर्यातों तथा विकासशील देशों के निर्यातों में सादृश्यता देखी जा सकती है। विश्व निर्यात बढ़ता है, विकासशील देशों का निर्यात भी बढ़ता है । वर्ष 2012 में विश्व व्यापार के परिमाण की वृद्धि दर 2.8% थी। इस वर्ष यह वृद्धि दर उन्नत अर्थ व्यवस्थाओं में 1.4% तथा उदीयमान और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में 5.0% रही। इस दौरान चीन के व्यापार परिमाण की वृद्धि दर 7.7% तथा भारत के व्यापार परिमाण की वृद्धि दर 7.7% रही। इसके बाद के वर्षों में विश्व व्यापार परिमाण में क्रमशः वृद्धि होती गई। वर्ष 2014 में विश्व के व्यापार परिमाण की वृद्धि दर 5.3% हो गई। इस वर्ष यह वृद्धि दर उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में 2.3% रही, जबकि उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थों में यह वृद्धि दर 5. 3% रही। इस वर्ष के दौरान भारत के विदेशी व्यापार के परिमाण की वृद्धि दर 6.4% रही।