Corn is not high because rent is paid, but high rent is paid because corn is high

Corn is not high because rent is paid, but high rent is paid because corn is high

लगान तथा कीमत के सन्दर्भ में स्पष्टतः दो मत हैं। पहला मत परम्परावादी अर्थशास्त्री प्रो० रिकार्डो का है तथा दूसरा मत आधुनिक अर्थशास्त्रियों का है जिनमें श्रीमती जोन रोबिन्सन, प्रो० बोल्डिंग आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

रिकार्डो की विचारधारा (Prof. Ricardo’s View)-प्रो० रिकार्डो के अनुसार लगान मूल्य को निश्चित नहीं करता वरन् स्वयं लगान मूल्य के द्वारा निर्धारित होता है। उन्होंने अपनी धारणा को इन शब्दों में व्यक्त किया है-“अनाज का मूल्य इसलिए ऊँचा नहीं होता कि लगान देना पड़ता है बल्कि लगान इसलिए दिया जाता है कि अनाज का मूल्य ऊँचा होता है।”

उपर्युक्त कथन का विश्लेषण करने से स्पष्ट है कि लगान मूल्य को प्रभावित नहीं करता, परन्तु मूल्य लगान को प्रभावित करता है

Corn is not high because rent is paid
Corn is not high because rent is paid

1. लगान मूल्य को प्रभावित नहीं करता (Rent does not Effect Price)-इस कथन की पुष्टि में रिकार्डो ने बताया था कि उपज का मूल्य सीमान्त भूमि की औसत लागत के बराबर होता है। अत: सीमान्त भूमि किसी प्रकार की कोई बचत अथवा लगान नहीं प्राप्त करती। इसीलिए सीमान्त भूमि को No Rent Land कहकर पुकारा जाता है। इस प्रकार लगान लागत का निर्धारक नहीं होता। अत: वह उपज के मूल्य को भी प्रभावित करने की क्षमता नहीं रखता

2. मूल्य लगान को प्रभावित करता है (Price Effect Rent)—स्पष्ट है कि लगान पूर्व सीमान्त भूमियों तथा सीमान्त भूमि की लागतों का अन्तर है और मूल्य सीमान्त भूमि की लागत के बराबर होता है। अत: अन्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि लगान पूर्व सीमान्त भूमियों की लागत एवं उपज के मूल्य में अन्तर के बराबर हुआ। अब यदि कृषि उत्पादनों की माँग में वृद्धि होती है तो अपेक्षाकृत कम उर्वर भूमियों पर कृषि-कार्य किया जाएगा और पहले जो भूमि सीमान्त भूमि थी, अब वह पूर्व सीमान्त भूमि कहलाएगी। परिणामत: उस भूमि पर भी लगान का उदय हो जाएगा। अब चूँकि नई सीमान्त भूमि अपेक्षाकृत कम उपजाऊ है।

अत: उस भूमि पर भी लगान का उदय हो जाएगा। अब चूँकि नई सीमान्त भूमि अपेक्षाकृत कम उपजाऊ है। अत: इस भूमि पर उत्पादन की लागत अपेक्षाकृत अधिक होगी। परिणामतः कृषि पदार्थों के मूल्यों में वृद्धि होगी। इस वृद्धि के कारण अन्तत: लगान में भी वृद्धि होगी। अत: निष्कर्ष यह निकलता है कि उत्पादन का मूल्य लगान को अवश्य ही प्रभावित करता है।

इस प्रकार रिकार्डो की धारणा है कि लगान मूल्य को प्रभावित नहीं करता वरन् मूल्य ही स्वयं लगान से प्रभावित होता है।

आधुनिक अर्थशास्त्रियों की विचारधारा (View of Modern Economists)आधुनिक अर्थशास्त्री प्रो० रिकार्डो के विचारों से शत-प्रतिशत सहमत नहीं हैं। उनका विचार है कि रिकार्डो का मत हर परिस्थिति में सत्य नहीं है। वस्तुत: लगान मूल्य को प्रभावित करता है अथवा नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हम लगान को किस दृष्टि से देखते हैं। मुख्य रूप से तीन स्थितियाँ सम्भव हैं-

(i) सम्पूर्ण समाज की दृष्टि से (From view point of society as a whole)सम्पूर्ण समाज की दृष्टि से भूमि प्रकृति का नि:शुल्क उपहार है। उसकी कुल पूर्ति सुनिश्चित एवं स्थिर है और उसकी अवसर लागत शून्य है क्योंकि भूमि को अस्तित्व में लाने के लिए समाज को कोई मूल्य नहीं देना पड़ा। इस प्रकार भूमि की समस्त आय समाज के लिए बचत (या लगान) हुई जो लागत में शामिल नहीं होती। अन्य शब्दों में, लगान मूल्य को प्रभावित नहीं करता।

इस प्रकार यदि हम सम्पूर्ण समाज की दृष्टि से विचार करें, तो लगान मूल्य को प्रभावित नहीं करता। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि प्रो० रिकार्डो का मत इस व्यवस्था में (अर्थात् सम्पूर्ण समाज की दृष्टि से विचार करने पर) सर्वथा सत्य सिद्ध होता है।

(ii) व्यक्तिगत उत्पादक की दृष्टि से (From view point of individual producer)-जब हम व्यक्तिगत उत्पादक की दृष्टि से विचार करते हैं तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि लगान मूल्य को प्रभावित करता है क्योंकि व्यक्तिगत उत्पादक या फर्म को उत्पादन सम्पन्न करने के लिए उत्पादन के विभिन्न साधनों को जुटाना पड़ता है और उन्हें उचित प्रतिफल भी देना पड़ता है (क्योंकि यदि साधनों को उचित प्रतिफल नहीं दिया गया तो वे अन्य व्यवसायों को स्थानान्तरित हो जाएँगे)। साधनों में भूमि भी शामिल है। अत: भूमि का लगान देना आवश्यक है, जिसमें लगान भी लागत का एक अंश हो जाता है।

इस प्रकार व्यक्तिगत उत्पादक की दृष्टि से विचार करने पर प्रो० रिकार्डो की धारणा सत्य सिद्ध नहीं होती वरन् लगान मूल्य को प्रभावित करने वाला घटक सिद्ध होता है। (iii) एक उद्योग की दृष्टि से (From view point of an industry)-एक उद्योग की दृष्टि से भूमि के उपयोग के बदले में दी गई राशि को दो भागों में बाँटा जा सकता है(i) अवसर लागत (Opportunity Cost) तथा (ii) अवसर लागत के ऊपर अतिरेक (Surplus over Opportunity Cost)। उद्योगपति को भूमि का प्रयोग करने के लिए यह आवश्यक होगा कि वह भूमि न्यूनतम कीमत (अवसर लागत) का भुगतान करे अन्यथा भूमि किसी अन्य उद्योग के प्रयोग में हस्तान्तरित हो जाएगी।

इस प्रकार भूमि की अवसर लागत उत्पादन लागत का एक अंश होगी, जबकि अवसर लागत के ऊपर प्राप्त होने वाली बचत (Surplus over Opportunity Cost) या आधुनिक आर्थिक शब्दावली में ‘लगान’ उत्पादन लागत का एक अंश होगी। उदाहरणार्थ-यदि किसी भूमिपति को ₹ 250 भूमि के उपयोग के प्रतिफल के रूप में मिलते हैं और भूमि की अवसर लागत ₹ 200 है तो यह ₹ 200 की राशि उत्पादन लागत का एक अंश होगी, परन्तु शेष ₹ 50 उत्पादन लागत में शामिल नहीं होंगे।

इस प्रकार एक उद्योग की दृष्टि से भूमि का प्रतिफल केवल आंशिक रूप से ही मूल्य को प्रभावित करेगा।

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