Land Revenue system

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भु राजसव प्रणाली/स्थायी बन्दोबस्त

Land Revenue system – ब्रिटिश सरकार ने जमींदारी प्रथा के अन्तर्गत मालगुजारी प्राप्त करने के लिए दो पद्धतियाँ अपनायीं-स्थायी बन्दोबस्त तथा अस्थायी बन्दोबस्त। स्थायी बन्दोबस्त पद्धति के अन्तर्गत भूमि पर एक बार जो मालगुजारी निर्धारित कर दी जाती थी, उसे भविष्य में नहीं बढ़ाया जाता था। इसके विपरीत, अस्थायी बन्दोबस्त पद्धति के अन्तर्गत एक निश्चित समय (सामान्यतया 30-40 वर्ष) के लिए मालगुजारी निश्चित कर दी जाती थी। उस निश्चित समय के पश्चात् सरकार को अधिकार था कि वह नई दर से मालगुजारी निश्चित कर सके।

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भारत में स्थायी बन्दोबस्त


भारत में भूमि के स्थायी बन्दोबस्त की पद्धति सर्वप्रथम 1793 ई० में लॉर्ड कार्नवालिस ने देश के कुछ प्रान्तों बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश तथा मद्रास के कुछ भागों में लागू की। स्वतन्त्रता से पूर्व यह प्रथा देश की कुल 24 प्रतिशत कृषि-भूमि पर लागू कर दी गई थी। स्वतन्त्रता से पूर्व स्थायी बन्दोबस्त के अन्तर्गत मालगुजारी की वसूली का एकाधिकार जमींदारों को दिया गया था। एक बार लगान निर्धारित करने के पश्चात् राज्य को लम्बे समय तक भू-राजस्व के रूप में निश्चित आय प्राप्त होती थी। Land Revenue system

मालगुजारी न देने पर सरकार ने जमींदारों को जबरन वसूल करने का अधिकार दे रखा था। सरकार का यह विचार था कि यदि यह पद्धति लागू कर दी जाती है, तो सरकार को जमींदारों से निश्चित राजस्व प्राप्त होता रहेगा तथा कृषक जब तक लगान देता रहेगा, भूमि का स्वामित्व उसी के पास बना रहेगा और वह खेती का विस्तार करेगा। स्थायी बन्दोबस्त की विशेषताएँ Land Revenue system

इस प्रथा में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं-

(1) सरकार को सदैव एक निश्चित आय प्राप्त होती है।
(2) सरकार भूमि पर मालगुजारी एक ही बार में निश्चित मात्रा में तय कर देती है, जिसे भविष्य में नहीं बढ़ाया जा सकता, किन्तु जमींदार काश्तकार पर मालगुजारी में वृद्धि कर सकता है।

(3) जब तक कृषक भूमि पर लगान देता है, उसका स्वामित्व उस पर बना रहता है। स्थायी बन्दोबस्त के गुण

स्थायी बन्दोबस्त पद्धति में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं-

1. निश्चित राजस्व-इस पद्धति में सरकार को निश्चिन्तता रहती है कि उसे अमुक समय में भू-राजस्व से अमुक मात्रा में राजस्व प्राप्त होगा। इसी प्रकार कृषक को भी निश्चिन्तता रहती है कि उसे सरकार को अमुक समय में एक निश्चित रकम चुकानी है। राजस्व निश्चित होने पर सरकार अपनी भावी योजना बना सकती है।

2. भू-स्वामित्व-जब तक कृषक जमींदार को मालगुजारी का भुगतान करता है, उसका मालिकाना अधिकार उसी के पास बना रहता है। इस प्रकार से वह खेती में मन लगाकर कार्य करता है और उसके कारण कृषि उत्पादन बढ़ता है। Land Revenue system

3. कृषकों के हितों की रक्षा—यह प्रथा लोकहित की दृष्टि से अच्छी प्रणाली थी, क्योंकि भूमि पर भविष्य में कोई लगान नहीं बढ़ाया जा सकता था। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री आर० सी० दत्त (R. C. Dutt) के अनुसार, “भारत में अंग्रेजों के डेढ़ सौ वर्ष के शासनकाल में यही एकमात्र ऐसा कार्य है, जिसने अत्यन्त प्रभावपूर्ण ढंग से लोगों के हितों की रक्षा की है।’

स्थायी बन्दोबस्त के दोष

इस प्रथा में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-

1. राजस्व में लोचशीलता का अभाव-इस प्रथा में मालगुजारी एक बार निश्चित कर दी जाती है, अत: उसे पुन: नहीं बढ़ाया जा सकता। इस प्रकार सरकार को भूमि से केवल एक निश्चित राजस्व ही प्राप्त होगा।Land Revenue system सरकार उसे अपनी आवश्यकतानुसार बढ़ा नहीं सकती। इस प्रकार इस प्रथा में लोचशीलता का अभाव पाया जाता है। Land Revenue system

2. आर्थिक शोषण-इस प्रथा के अन्तर्गत मालगुजारी वसूल करने का अधिकार जमींदारों को दे दिया गया था। ऐसी दशा में जमींदार कृषकों का अनेक प्रकार से शोषण करता था। जमींदार के सामने काश्तकार की दशा एक बँधुवा मजदूर की तरह हो जाती थी। Land Revenue system कभी-कभी तो जमींदार किसानों के हरे-भरे खेतों में अपने पशु छोड़ देता था और किसान कुछ भी नहीं कर पाता था।

3. भू-स्वामित्व की अनिश्चितता- -इस प्रथा में कृषक का भू-स्वामित्व नाममात्र का था, क्योंकि भूमि के स्थायी बन्दोबस्त ने जमींदारों को भूमि का पूर्ण स्वामित्व दे दिया था, जिसके कारण कृषक जमींदारों की कृपा पर निर्भर रहने लगा। इसके अतिरिक्त, यदि कृषक जमींदार को भू-राजस्व देने में असमर्थ रहता था, तो वह उसको भूमि में बेदखल कर देता था।

4. कृषक के अधिकारों की अवहेलना-चूँकि यह प्रणाली कृषकों के अधिकारों का विस्तृत अध्ययन किए बिना अवैज्ञानिक तरीके से लागू कर दी गई, अत: काश्तकार लोगों के अधिकार खतरे में पड़ गए।. .      

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