Meaning of Famine Notes

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अकाल का अर्थ (Meaning of Famine)

अकाल आयोग’ (1867 ई०) के अनुसार, “अकाल का तात्पर्य संख्या के बहुत बड़े वर्ग का भूख द्वारा पीड़ित होना है।”

‘एन्साइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइंसेज’ ने अकाल को इस प्रकार से परिभाषित किया है, “अकाल भूख की वह अन्तिम स्थिति है, जिससे किसी क्षेत्र की जनसंख्या खाद्य-पूर्ति को प्राप्त करने में असमर्थ हो जाती है।”

भारत में अकाल का इतिहास

1. ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासनकाल में अकाल-ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासनकाल (1765-1858 ई०) में भारत को अनेक बार अकाल का सामना करना पड़ा। इस 90 वर्ष की अवधि में भारत में 6 बार अकाल पड़ा।

2. ब्रिटिश शासनकाल में अकाल—ब्रिटिश शासन के प्रथम 50 वर्षों में अकाल की आवृत्तियों में तेजी से वृद्धि हुई। सन् 1851 ई० से 1900 ई० तक भारत को करीब 25 बार अकाल का सामना करना पड़ा। इनमें से 18 बार अकाल तो 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में पड़ा। इस अकाल में औसतन 2,880 व्यक्ति प्रतिदिन मरे। Meaning of Famine Notes

3. 20वीं शताब्दी में अकाल-20वीं शताब्दी में यद्यपि देश के कई प्रान्तों में कभी-कभी वर्षा के अभाव में फसल नष्ट हो गई थी, तथापि वे पिछले अकालों की तरह इतने भयानक नहीं थे, क्योंकि सरकार ने देश के अन्दर खाद्यान्नों के आयात में वृद्धि तथा निर्यात को नियन्त्रित करके खाद्यान्नों की पूर्ति नियमित रखी। इसके अलावा यातायात की सुविधा बढ़ने पर खाद्यान्न की पूर्ति अतिरिक्त उत्पादन वाले क्षेत्रों से कमी वाले क्षेत्रों में आसानी से सम्भव हो सकी। 1907-08 ई० तथा 1918-19 ई० में वर्षा के अभाव में फसल नष्ट होने से अकाल पड़े किन्तु खाद्यान्न की पूर्ति पर्याप्त होने से इनकी कीमतें लगभग स्थिर रहीं तथा निर्धन वर्ग को भी आसानी से खाद्यान्न प्राप्त होता रहा किन्तु सन् 1943 ई० में बंगाल में जो भयंकर अकाल पड़ा उसने सरकार तथा जनता की आँखें खोल दीं। Meaning of Famine Notes

सरकार की अकाल राहत नीति

ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन के दौरान अकाल राहत के सम्बन्ध में कोई ठोस प्रशासनिक नीति नहीं अपनायी गई। जब कभी अकाल की स्थिति उत्पन्न हुई, कम्पनी ने अकाल राहत के लिए कुछ अस्थायी उपाय किए। कम्पनी ने पहली बार सन् 1792 ई० में राहत कार्य शुरू किए। Meaning of Famine Notes तत्पश्चात् 1838 ई० में आगरा क्षेत्र में पड़े अकाल का सामना करने के लिए एक निश्चित राहत नीति अपनायी गई

ब्रिटिश शासनकाल में 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अकाल की पुनरावृत्ति में तेजी आई। इन अकालों के निवारण के सम्बन्ध में सरकार ने समय-समय पर अकाल आयोगों की स्थापना की और उनकी सिफारिशों को ध्यान में रखकर एक निश्चित अकाल राहत नीति अपनायी। सन् 1865 ई० में जब उड़ीसा में भयंकर अकाल पड़ा, तब उसका सामना करने के लिए सरकार ने प्रथम बार बड़ी मात्रा में अकाल निवारण हेतु व्यवस्थित सरकारी कदम उठाए

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