Home ba 3rd year notes Ba 3rd Year Plasee ka Yudha

Ba 3rd Year Plasee ka Yudha

0

Ba 3rd Year Plasee ka yudha

प्लासी का युद्ध

प्लासी के युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

1. सिराज-उद्-दौला का विवादग्रस्त उत्तराधिकार—अलीवर्दी खाँ के कोई पुत्र नहीं था जो उसका शक्तिशाली उत्तराधिकारी बनता। उसकी तीन पुत्रियाँ थीं। यद्यपि अलीवर्दी खाँ स्वयं एक योग्य एवं शक्तिशाली शासक था, तथापि उसके उत्तराधिकार की अनिश्चितता गहन चिन्ता का विषय थी। वह बीमार पड़ा तो उसने अपनी सबसे छोटी पुत्री के पुत्र सिराज-उद्-दौला को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। अत: 1756 ई० में अपने नाना की के पश्चात् सिराज-उद्-दौला बंगाल की गद्दी पर आसीन हुआ। परन्तु उसकी चाची ढाका मृत्यु की घसीटी बेगम तथा उसका चचेरा भाई परनियाह का शौकत जंग राजगद्दी के लिए विरोधी दावेदारों के रूप में उठ खड़े हुए। बंगाल दरबार के दरबारियों ने इन विरोधी दावेदारों का पक्ष लेकर नवाब की स्थिति को अधिक निर्बल कर दिया। अंग्रेजों ने बंगाल के क्षेत्र पर पहले ही अपनी कुदृष्टि लगा रखी थी; अत: उत्साहित होकर उन्होंने नवाब की सत्ता को चुनौती देना आरम्भ कर दिया।

2. अंग्रेजों द्वारा घसीटी बेगम का पक्ष लेना-अलीवर्दी खाँ के जीवनकाल में ही यह अफवाह फैल गई थी कि अंग्रेज घसीटी बेगम का पक्ष ले रहे हैं। यद्यपि कासिम बाजार के अंग्रेज रेजीडेण्ट डॉ० फोर्थ ने इस अफवाह को सत्य मानने से इनकार कर दिया था, तथापि इस अफवाह में पर्याप्त सत्यता थी और सिराज-उद्-दौला को इसका पूर्ण विश्वास था, फलत: नवाब के मन में अंग्रेजों के लिए कटु भावना थी।

3. कृष्णबल्लभ का मामला-राजबल्लभ घसीटी बेगम की सम्पत्ति तथा जागीरों का दीवान था। बंगाल के नवाब ने दीवान पर बेगम की सम्पत्ति के लेखे में गबन का आरोप लगाया। दीवान ने अपने बेटे कृष्णबल्लभ को अपने परिवार तथा समस्त सम्पत्ति सहित कलकत्ता मेज दिया जिससे वह अंग्रेजों की सुरक्षा प्राप्त कर सके। नवाब ने अंग्रेजों से माँग की कि वे दीवान के पुत्र को उसे सौंप दे, परन्तु वे ऐसा करने के लिए उद्यत न हुए। वास्तव में, वे दोनों दावेदारों के पारस्परिक तनाव का लाभ उठाना चाहते थे।

4. अंग्रेजों द्वारा किलेबन्दी-अलीवर्दी खाँ ने अपने जीवनकाल में यूरोपियन जातियों को अपनी बस्तियों की किलेबन्दी करने की आज्ञा नहीं दी थी, परन्तु उसकी मृत्यु के पश्चात् गद्दी के लिए होने वाले विवादों ने यूरोपीय लोगों को अपनी बस्तियों की किलेबन्दी करने के लिए प्रोत्साहन दिया। सिराज-उद्-दौला इस बात के प्रति सचेत था तथा कर्नाटक में हुई घटनाओं को बंगाल में नहीं दोहराना चाहता था। वह उनकी महत्त्वाकांक्षाओं और चालों से पूर्णत: परिचित था। इसीलिए उसने तत्काल उन्हें सब किलेबन्दी समाप्त कर देने के लिए लिखा। उसने उन्हें यह भी लिखा कि वह उन्हें मात्र व्यापारियों से अधिक कुछ नहीं समझता। फ्रांसीसियों ने तो उसकी आज्ञा का पालन किया, परन्तु अंग्रेजों ने किलेबन्दी का कार्य जारी रखा; निश्चित था कि सिराज-उद्-दौला के मन में उनके प्रति कटुता बढ़ती।

5. नवाब सिराज-उद्-दौला का भय-दक्षिण भारत में हो रहे आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष ने भी नवाब के मन में आशंका उत्पन्न कर दी। उसे यह भय उत्पन्न हो गया था कि अंग्रेजों की कुदृष्टि उसके प्रान्त पर लगी है। इसके अतिरिक्त वह अपने प्रान्त को अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य युद्ध-स्थल नहीं बनाना चाहता था। वास्तव में, अंग्रेजों की आपत्तिजनक कार्यवाहियों के कारण उसके मन में उनके प्रति प्रबल घृणा उत्पन्न हो गई थी।

6. अंग्रेजों द्वारा व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग–अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 1716-17 ई० में दिल्ली के सम्राट से प्राप्त व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग आरम्भ कर दिया था। व्यापारी लोग अपने निजी व्यापार को कर-मुक्त विधि से चलाने के लिए दस्तकों (व्यापारिक अधिकार-पत्र) का प्रयोग करने लगे। इससे नवाब को बहुत अधिक आर्थिक नुकसान होता था तथा भारतीय व्यापारियों के मन में ईर्ष्या उत्पन्न होती थी।

7. ड्रेक का पत्र-यद्यपि सिराज-उद्-दौला अंग्रेजों के व्यवहार से अत्यधिक अप्रसन्न था, तथापि उसने पहले गद्दी के विरोधी दावेदारों से निपटने का निर्णय लिया क्योंकि उसकी सुरक्षा के लिए यह परमावश्यक था। चालाकी से उसने घसीटी बेगम को अपने महल में बुलाकर उसे समझा-बुझाकर शान्त कर लिया। इसके पश्चात् वह परनियाह के शासक शौकत जंग के विरुद्ध सेना लेकर चल पड़ा। परन्तु कठिनता से वह अभी राजमहल ही पहुंच पाया था कि कलकत्ता के गर्वनर मि० ड्रेक का एक पत्र उसे मिला। ड्रेक ने अपने पत्र में सब आरोपोंऔर दोषों का खण्डन करते हुए नवाब की माँगों को अस्वीकार कर दिया, यद्यपि उसने बहुत ही विनयपूर्ण शब्दों का प्रयोग अपने पत्र में किया था। पत्र पढ़ते ही नवाब का धैर्य जाता रहा तथा अंग्रेजों के विरुद्ध अभियान आराम करने के लिए वह मुर्शिदाबाद की ओर लौट पड़ा।

युद्ध की घटनाएँ

प्लासी के युद्ध की प्रमुख घटनाओं का विवरण निम्नवर्णित है –

1. कासिम बाजार पर अधिकार ( 1756 ई०)-4 जून, 1756 ई० को सिराज-उद्-दौला ने कासिम बाजार की अंग्रेज बस्ती पर अधिकार कर लिया। यह बस्ती उसकी राजधानी मुर्शिदाबाद से कुछ ही दूरी पर थी।

2. कलकत्ता पर अधिकार ( 1756 ई०)-कासिम बाजार की बस्ती पर अधिकार करने के पश्चात् नवाब ने 50,000 सैनिकों की विशाल सेना के साथ कलकत्ता पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेजों ने तीन दिन तक सामना किया, परन्तु अन्त में उन्हें अपना दुर्ग; हॉलवेल तथा उसकी थोड़ी-सी सेना के अधीन छोड़कर भाग जाना पड़ा। अंग्रेज बच्चों तथा स्त्रियों को नदी के 20 मील नीचे की ओर फुलटा नामक स्थान पर पहुंचा दिया गया। साधारण-सा विरोध करने के पश्चात् हॉलवेल को भी अधीनता स्वीकार करने पर बाध्य होना पड़ा।

3. ब्लैकहोल की घटना-यह कहा जाता है कि इस युद्ध में नवाब ने 146 अंग्रेजों को बन्दी बनाया तथा उन्हें 18′ x 14 5′ के एक छोटे-से कमरे में रात भर के लिए बन्द कर दिया।

इन 146 व्यक्तियों में से 123 व्यक्ति दम घुट जाने के कारण मर गए तथा केवल 23 शेष बचे जिन्होंने यह लोमहर्षक घटना बाद में सुनाई। यह घटना इतिहास में ‘ब्लैकहोल’ के नाम से जानी जाती है।

इस घटना की सत्यता पर कई आधारों पर सन्देह भी किया जाता है। इस घटना का उल्लेख केवल हॉलवेल के वर्णन में मिलता है, उस समय के कलकत्ता के अभिलेखों में भी इसका वर्णन नहीं है। दूसरे इतने छोटे कमरे में 146 व्यक्तियों का समाना भी असम्भव प्रतीत होता है।

यह घटना सत्य हो या असत्य, परन्तु इसने परिस्थिति को और भी गम्भीर बना दिया तथा मद्रास स्थित अंग्रेज अधिकारी इस दुःखद घटना की सूचना पाते ही क्रोध से भड़क उठे।

4. कलकत्ता पर पुन: अधिकार (1757 ई०)-मद्रास के अधिकारियों ने एडमिरल वाटसन के अधीन एक नौसैनिक टुकड़ी तथा रॉबर्ट क्लाइव के अधीन एक स्थल सेना कलकत्ता की ओर भेज दी। बड़ी कठिनाई से समुद्री यात्रा के पश्चात् यह सेना कलकत्ता पहुँची तथा इसने जनवरी 1757 ई० में नगर पर पुन: अधिकार कर लिया और जनरल मानिकचन्द को पराजित कर दिया, जिसे कि नवाब वहाँ अपने गवर्नर के रूप में छोड़ गया था। कहा जाता है कि क्लाइव ने मानिकचन्द को रिश्वत देकर अपनी ओर कर लिया था, जो लड़ाई करने का दिखावा करके पीछे हटता हुआ मुर्शिदाबाद भाग गया और क्लाइव को कलकत्ता पर अधिकार करने में कोई कठिनाई नहीं हुई। अंग्रेजों ने हुगली तथा आस-पास के क्षेत्र में लूटमार भी की। इतने में नवाब ने शौकत जंग पर चढ़ाई करके उसका वध कर दिया क्योंकि शौकत जंग दिल्ली दरबार में बंगाल की सूबेदारी का फरमान प्राप्त करने में सफल हो गया था।

अब सिराज-उद्-दौला ने अपना ध्यान पुनः कलकत्ता की ओर मोड़ा। उसने अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया, परन्तु एक अनिर्णीत युद्ध के पश्चात् दोनों पक्ष सन्धि के लिए सहमत हो गए।

5. अलीनगर की सन्धि–यह युद्ध तथा शान्ति में एक-दूसरे का साथ देने के लिए हुई सन्धि थी जो कि नवाब सिराज-उद्-दौला तथा अंग्रेजों के मध्य 9 फरवरी, 1757 ई० को हुई। इस सन्धि की शर्ते निम्नलिखित थीं—

(1) दिल्ली दरबार द्वारा अंग्रेजों को दी गई सब सुविधाओं को स्वीकार कर लिया गया।

(2) अंग्रेजी दस्तकों के अधीन बंगाल के समस्त सूबे में माल का यातायात कर-रहित विधि से होना स्वीकार कर लिया गया।

(3) नवाब ने अंग्रेजों की सब बस्तियाँ तथा कारखाने लौटा दिए तथा उनकी क्षतिपूर्ति का वचन दिया।

(4) कलकत्ता की अपनी इच्छानुसार किलेबन्दी करने की अंग्रेजों को अनुमति मिल गई।

(5) अंग्रेजों को सिक्के चलाने का अधिकार प्राप्त हो गया।

यह वास्तव में ऐसी सन्धि थी जिसे स्वीकार करने के लिए परिस्थितियों ने दोनों पक्षों को, बाध्य कर दिया। किसी पक्ष ने भी सच्चे दिल से इसके पालन का प्रयत्न न किया; अतः कुछ हीसमय पश्चात् युद्ध पुनः आरम्भ हो गया।

6. चन्द्रनगर पर अधिकार-क्लाइव ने अपनी दूरदर्शिता से चन्द्रनगर की महत्ता का अनुमान लगा लिया। यह सुगमता से अंग्रेज-विरोधी षड्यन्त्र का केन्द्र बन सकता था। अंग्रेजों में नवाब तथा फ्रांसीसियों की संयुक्त सेनाओं का सामना करने की शक्ति न थी; अत: क्लाइव ने चन्द्रनगर पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया। सिराज-उद्-दौला क्लाइव की इस चाल का अनुमान न लगा सका और निर्णय-शक्ति के अभाव में उसके विरुद्ध कोई कदम न उठा सका। उसने चन्द्रनगर को बचाने के लिए कुछ भी न किया। सिराज-उद्-दौला का फ्रांसीसियों की ओर झुकाव देखकर क्लाइव ने उसे बंगाल की गद्दी से हटाने का निश्चय किया। वह सिराज-उद्-दौला को पदच्युत करके किसी ऐसे व्यक्ति को बंगाल का नवाब बनाना चाहता था जिसको क्लाइव अपने हाथ की कठपुतली बना सके।

7. सिराज-उद्-दौला के विरुद्ध षड्यन्त्र-शीघ्र ही क्लाइव को पता चल गया कि बंगाल के दरबारी युवा नवाब के हठी स्वभाव, विलासी जीवन तथा अनियमित चरित्र और कठोर व्यवहार के कारण उससे असन्तुष्ट हैं। उसने अमीरचन्द तथा बंगाल की सेनाओं के सेनापति मीर जाफर से मिलकर एक षड्यन्त्र किया।

मीर जाफर के साथ एक गुप्त सन्धि में तय हुआ कि-

(i) मीर जाफर और अंग्रेजों में एक मित्रतापूर्ण समझौता बना रहेगा।

(ii) मीर जाफर कलकत्ता में हुए विनाश के लिए एक लाख रुपया कम्पनी को, 50 लाख रुपया यूरोपियन नागरिकों को तथा 20 लाख रुपया कलकत्ता के हिन्दुओं को देगा।

(iii) कलकत्ता खाई तथा नमक की झील का मध्यवर्ती प्रदेश अंग्रेजों के अधीन रहेगा।

(iv) अंग्रेजी सेनाओं का वेतन मीर जाफर देगा।

(v) वह हुगली के नीचे की ओर के प्रदेश में किलेबन्दी नहीं करेगा।

(vi) अंग्रेज सब शत्रुओं के विरुद्ध उसकी सहायता करेंगे।

इस प्रकार भारत के देशद्रोही मीर जाफर ने अपनी स्वतन्त्रता को अंग्रेजों के हाथों बेच दिया। अमीरचन्द ने इस सौदे में दलाल का कार्य किया था। उसने इस भेद को छुपाए रखने का मोल 30 लाख रुपये माँगा। क्लाइव ने एक जाली प्रपत्र तैयार किया जिसमें अमीरचन्द की माँगें स्वीकार करने की बात कही गई थी। जब एडमिरल वाट्सन ने इस जाली प्रतिलिपि पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया तो क्लाइव ने स्वयं उसके जाली हस्ताक्षर कर लिए। यह क्लाइव के चरित्र पर निश्चित रूप से एक धब्बा था।

युद्ध के परिणाम

युद्ध के प्रमुख परिणाम निम्नलिखित रहे-

(1) मीर जाफर को नवाब बना दिया गया।

(2) कम्पनी को निश्चित धन का कुछ भाग तो दे दिया गया तथा शेष धन 6-6 मास पश्चात् दी जाने वाली समान किस्तों में दिया जाना निश्चित हुआ।

(3) अमीरचन्द की झूठी सन्धि के विषय में सूचित कर दिया गया तथा उसे कुछ भी न दिया गया।

(4) ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कलकत्ता में एक टकसाल खोली। (5) कम्पनी को 24 परगनों की जमींदारी कृषकों की इच्छा के विरुद्ध दे दी गई।

(6) नवाब ने सूबे भर में कम्पनी को कर-मुक्त व्यापार की स्वतन्त्रता दे दी।

युद्ध का महत्त्व

यद्यपि सैनिक दृष्टि से प्लासी का युद्ध एक साधारण भिड़न्त थी तथापि इसकी गणना भारतीय इतिहास के अति निर्णायक युद्धों में की जाती है। इस युद्ध के परिणाम दूरगामी थे जिनका विवेचन निम्न प्रकार से किया जा सकता है

1. बंगाल में अंग्रेजी सत्ता की स्थापना-प्लासी का युद्ध एक क्रान्ति थी जिसने बंगाल को एक नया नवाब दिया। वह नाममात्र का नवाब था जबकि समस्त शक्ति क्लाइव के हाथों में चली गई थी। नवाब कम्पनी के हाथों में कठपुतली था तथा किसी प्रकार भी स्वतन्त्र नहीं था। जब कभी उसने कम्पनी के पंजे से छूटने की चेष्टा की तो उसे पदच्युत कर दिया गया।

अत: एक प्रकार से बंगाल पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। इस अधिकार से उन्हें भारतीय राजाओं की कीमत पर अपनी शक्ति बढ़ाने तथा प्रदेश का विस्तार करने का अधिकाधिक अवसर प्राप्त हो गया। . .          

2. कम्पनी को आर्थिक लाभ-यह युद्ध आर्थिक दृष्टि से अंग्रेजों के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ। बंगाल की गद्दी के लिए जो मूल्य मीर जाफर को देना पड़ा वह लगभग 1,73,96,761 रुपये का था। बंगाल का कोष कलकत्ता की ओर चल पड़ा। इसके अतिरिक्त सारे प्रान्त में कम्पनी को करमुक्त व्यापार की स्वतन्त्रता मिल गई, जिसका लाभ ब्रिटिश सौदागरों और अधिकारियों ने अपने व्यक्तिगत व्यापार के लिए भी उठाया। कम्पनी को 24 परगनों की जमींदारी मिल गई तथा उसे कलकत्ता में एक टकसाल स्थापित करने की आज्ञा प्राप्त हो गई। इन लाभों से न केवल कम्पनी की आय बढ़ी, अपितु भविष्य में आने वाले खतरों के विरुद्ध एक निश्चित शक्ति प्राप्त हुई। डॉ० विपिन चन्द्र ने लिखा है-“प्लासी की लड़ाई ने कम्पनी और उसके कर्मचारियों को बंगाल के निरीह लोगों के मत्थे अकथनीय सम्पदा जमा करने में समर्थ बनाया। प्लासी के युद्ध के बाद प्राप्त धन ने अंग्रेजों के लालच को और बढ़ाया और जब तक बंगाल को पूरी तरह नहीं चूस लिया गया तब तक वहाँ शान्ति नहीं आयी।”

3. नैतिक प्रभाव-अंग्रेजों की इस विजय का नैतिक प्रभाव निःसन्देह बहुत महत्त्वपूर्ण था। नए नवाब का समस्त आदर और गौरव जाता रहा। नवाब के प्रति जनता की निष्ठा और सहानुभूति जाती रही तथा गद्दी के लिए प्रतिस्पर्धा प्रारम्भ हो गई। अंग्रेजों के लिए नवाब बनाने तथा पदच्युत करने का यह खेल बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ और उनके लिए शक्ति तथा धन प्राप्ति का सुगम मार्ग बन गया। इस विजय ने अंग्रेजों को एक ऐसे युग में धकेल दिया जिसमें उनका चरित्र बहुत ही हीन हो गया। उनकी गतिविधियाँ लोभ, भ्रष्टाचार तथा अनैतिकता से चालित होने लगी।

4. कम्पनी के सम्मान में वृद्धि कम्पनी ने मीर जाफर का मान मिट्टी में मिला दिया, जिससे उसका अपना गौरव बढ़ना स्वाभाविक था। कम्पनी को बंगाल की अस्त-व्यस्त राजनीतिक स्थिति का बोध हो गया तथा लोगों की सरकार के प्रति विमुखता का पता चल सका। कम्पनी ने इससे पूरा लाभ उठाया तथा उसने प्रादेशिक विस्तार और व्यापारिक समृद्धि की नीति का अनुसरण आरम्भ कर दिया।

5. फ्रांसीसियों का पतन-प्लासी के युद्ध का आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष पर भी बहुत महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। फ्रांसीसियों को बंगाल से निकाल दिया गया जिससे उनकी शक्ति निर्बल पड़ गई। इसके विपरीत अंग्रेज एक प्रकार से बंगाल प्रान्त तथा इसके समृद्ध साधनों के स्वामी बन बैठे। इन साधनों का प्रयोग उन्होंने कर्नाटक के तीसरे युद्ध में किया तथा यह युद्ध 1763 ई० में फ्रांसीसियों की पराजय के साथ समाप्त हुआ। अंग्रेजों की बंगाल विजय उनकी फ्रांसीसियों के विरुद्ध अन्तिम विजय का एक सबल कारण सिद्ध हुई।

6. उत्तर भारत की विजय का मार्ग प्रशस्त होना-अंग्रेजों की प्लासी के युद्ध में सफलता ने उनके लिए उत्तर भारत की विजय का मार्ग स्पष्ट कर दिया। भारतीय शासकों की मूलभूत निर्बलताएँ स्पष्ट हो गईं तथा अंग्रेजों ने देश में अपने लिए स्थान बनाना आरम्भ कर दिया। कुछ ही वर्षों के पश्चात् अंग्रेजों ने अवध के नवाब शुजा-उद्-दौला तथा दिल्ली के सम्राट शाहआलम को बक्सर नामक स्थान पर परास्त कर दिया। इसी समय से भारत में अंग्रेजी राज्य का आरम्भ हो गया


NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version