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Bcom 1st Year Meaning of Monopolistic Competition

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Bcom 1st Year Meaning of Monopolistic Competition

एकाधिकारी प्रतियोगिता का अर्थ 

“एकाधिकारी प्रतियोगिता’ अपूर्ण प्रतियोगिता की एक मध्य किस्म है। इस विचार के प्रणेता प्रो० चैम्बरलिन थे। एकाधिकारी प्रतियोगिता से अभिप्राय उस अवस्था से है, जिसमें विक्रेताओं की संख्या तो अधिक होती है, परन्तु उनकी वस्तुएँ एकरूप नहीं होती, वस्तुओं में थोड़ी भिन्नता या भेद होता है। ‘वस्तु विभेद’ के कारण प्रत्येक विक्रेता का अपनी वस्तु पर पूर्ण एकाधिकार होता है और वह वस्तु की कीमत को प्रभावित कर सकता है। परन्तु चूँकि ये फर्मे मिलती-जुलती वस्तुएँ बेचती हैं, इसलिए इन एकाधिकारी विक्रेताओं में बड़ी तीव्र प्रतियोगिता भी होती है, अत: ऐसी स्थिति को प्रो० चैम्बरलिन ने “एकाधिकारी प्रतियोगिता’ कहा है। स्टोनियर तथा हेग (Stonier and Hague) के शब्दों में, “अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में अधिकांश उत्पादकों की वस्तुएँ उनके प्रतिद्वन्द्वियों की वस्तुओं से बहुत मिलती-जुलती होती हैं, परिणामस्वरूप इन उत्पादकों को हमेशा इस बात पर ध्यान देना पड़ता है कि प्रतिद्वन्द्वियों का क्रियाएँ उनके लाभ को कैसे प्रभावित करेंगी। आर्थिक सिद्धान्त में इस तरह की स्थिति का विश्लेषण एकाधिकारी प्रतियोगिता अथवा समूह सन्तुलन (Group Equilibrium) अन्तर्गत किया जाता है। इसमें एक-सी वस्तएँ बनाने वाली अनेक फर्मों में प्रतियोगिता पूर्ण होकर तीव्र होती है।” 

संक्षेप में, “जहाँ बाजार में बहुत-सी फर्मे हों परन्तु उत्पाद में विभेदीकरण हो, एकाधिकारी प्रतियोगिता की बाजार दशा होती है।” 

एकाधिकारी प्रतियोगिता की विशेषताएँ

(Characteristic Features of Monopolistic Competition)

एकाधिकारी प्रतियोगिता की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं 

1.स्वतन्त्र रूप से कार्य करने वाली फर्मों की अधिक संख्या

(Large Number of Independent Firms)-

(i) एकाधिकारी प्रतियोगिता में विक्रेताओं की संख्या अधिक (पूर्ण प्रतियोगिता से कम) होती है, परन्तु प्रत्येक विक्रेता छोटा होता है और वह कुल उत्पादन के बहुत थोड़े भाग का उत्पादन करता है।

(ii) इन विभिन्न विक्रेताओं के मध्य प्रतियोगिता होती है। वे स्वतन्त्र रूप से कार्य करते हैं, उनमें समझौता या गुप्त सन्धि नहीं होती। 

2. वस्तु विभेद (Product Differentiation)-

वस्तु विभेद एकाधिकारी प्रतियोगिता का मूल आधार है। वस्तु विभेद का अर्थ है कि वस्तु-विशेष की सभी इकाइयाँ एक जैसी नहीं होती। सभी फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ अधिकांश रूप से एक-दूसरे की स्थानापन्न होती हैं, परन्तु वे एक-जैसी नहीं होतीं। वस्तु विभेद दो प्रकार का हो सकता है

(i) वास्तविक वस्तु विभेद-इसके अन्तर्गत वस्तु की विभिन्न इकाइयों में किस्म सम्बन्धी वास्तविक सम्बन्ध होते हैं। 

(ii) कृत्रिम अथवा कल्पित वस्तु विभेद-इसमें वस्तु की विभिन्न इकाइयों के बीच किसी भी प्रकार का अन्तर नहीं होता, परन्तु विज्ञापन द्वारा ग्राहकों की मनोवृत्ति इस प्रकार प्रभावित कर दी जाती है कि वे अन्तर समझने लग जाएँ। 

वस्तु विभेद की दो विधियाँ हैं –

(a) वस्तु विभिन्नता-

(अ) यह विभेद वस्तु की विभिन्नता पर आधारित हो सकता है; जैसे-ट्रेडमार्क में विभिन्नता, पैकिंग में विभिन्नता, रंग-रूप में विभिन्नता। 

(ब) वस्तु विभिन्नता में खरीद के बाद की सेवाएँ; जैसे-वस्तु की मरम्मत की सुविधा, लाख सुविधा, खराब होने की दशा में वस्तु की वापसी, वस्तु को क्रेता के घर पहुँचाने की सुविधा आदि शामिल हैं। 

3. फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश विक्रय विस्तार-

वस्तु की विक्रय गतिविधियाँ-विज्ञापन और विक्रय विशेषता *ता में इस बात का विश्वास उत्पन्न कर सकता है कि उसकी वस्तु अन्य विक्रेताओं उद्योग में नई फमै स्वतन्त्र रूप इनका प्रवेश कठिन होता है। 

” स्वतन्त्र प्रवेश (Free Entry of Firms)-एकाधिकारी प्रतियोगिता में सत्र रूप में प्रवेश कर सकती हैं, परन्तु पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में काठन होता है। इसका कारण है–वस्तु विभेद। चूंकि एकाधिकारी प्रतियोगिता में फर्मों का प्रवेश स्वतन्त्र होता है एकाधिकारी प्रतियोगिता में भी पूर्ण प्रतियोगिता की भाँति, फर्मों को साधारणतया लाभ ही प्राप्त होता है। 

4. गैर-कीमत प्रतियोगिता (Non-price Competition)-

चूँकि एकाधिक प्रतियोगिता में वस्तु विभेद पाया जाता है इसलिए फर्मों में तीव्र गैर-कीमत प्रतियोगिताको इससे आशय यह है कि एकाधिकारी प्रतियोगिता में प्रतियोगिता केवल कीमत पर ही आप नहीं होती बल्कि वस्तु के गुण, वस्तु के विक्रय से सम्बन्धित दशाओं या सेवाओं व विज्ञान आदि पर आधारित होती है।

एकाधिकारी प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म या विक्रेता को एक प्रकार का आंशिक एकाधिकार उपलब्ध होता है और ऐसी स्थिति में उसे अपने ही जैसे एकाधिकारियों के पूरे समूह के साथ प्रतियोगिता करनी आवश्यक होती है। चूँकि एकाधिकारी प्रतियोगिता में कोई भी दो फर्मे एकरूप वस्तु का निर्माण नहीं करतीं, इसलिए अर्थशास्त्री एकाधिकारी प्रतियोगिता के अन्तर्गत उद्योग के स्थान पर समूह शब्द का प्रयोग करते हैं। 

संक्षेप में एकाधिकारी प्रतियोगिता की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं –

(1) फर्मों की संख्या सामान्यतया अधिक रहती है।

(2) उद्योग में किसी भी फर्म को प्रवेश करने की स्वतन्त्रता रहती है।

(3) सभी फर्मे सदृश, किन्तु अस्थानापन्न वस्तुएँ बेचती हैं।

(4) वस्तु विभेद पाया जाता है।

(5) प्रत्येक फर्म का अपनी वस्तु के उत्पादन पर एकाधिकार होता है। 

(6) क्रेता विभिन्न विक्रेताओं द्वारा उत्पादित वस्तुओं में एक वस्तु को अधिक पसन्द कर सकता है। 

(7) विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित सदृश वस्तुओं में प्रतिस्पर्धा पायी जाती है। 

(8) विक्रेता क्रेताओं की पसन्दगी के आधार पर अपनी प्रतिस्पर्धा की वस्तुओं की तुलना में अधिक कीमत ले सकता है। 

(9) गैर-कीमत प्रतियोगिता होती है। 

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