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Bcom 2nd year Concept, Process and Techniques of Managerial control

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Bcom 2nd year Concept, Process and Techniques of Managerial control

नियन्त्रण का अर्थ एवं परिभाषाएँ 

(Meaning and Definitions of Control)

किसी उपक्रम अथवा उसके विभागों के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अपनायी गयी योजनाएं यथाविधि कार्यान्वित की जा रही हैं अथवा नहीं, यह जानने के लिए अधीनस्थों के कार्यों की जांच पड़ताल करके उनमें आवश्यकतानुसार सुधार करना प्रबन्धकीय नियन्त्रण’ कहलाता है । नियन्त्रण पथ-प्रदर्शन एवं नियमन का कार्य करता है। पूर्वानुमान एवं नियोजन तो भविष्य के लिए निर्णय लेने से सम्बन्धित है, परन्तु नियन्त्रण वह प्रबन्धकीय कार्य होता है, जो निर्धारित नीतियों व योजनाओं के उचित क्रियान्वयन के सतत् अनुगमन से सम्बन्ध रखता है। ‘प्रबन्धकीय नियन्त्रण’ के अर्थ को भली प्रकार समझने के लिए निम्नलिखित परिभाषाओं का उल्लेख आवश्यक है-

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हेनरी फेयोल के मतानुसार, “नियन्त्रण का आशय इस बात का मूल्यांकन करने से है कि उपक्रम के समस्त कार्य, अपनायी गयी योजनाओं, दिये गये निर्देशों तथा निर्धारित नियमों के अनुसार हो रहे हैं अथवा नहीं। नियन्त्रण का उद्देश्य कार्य की दुर्बलताओं व त्रुटियों को प्रकाश में लाना है, जिससे उन्हें सुधारा जा सके तथा भविष्य में उनकी पुनरावृत्ति रोकी जा सके।” 

कूष्टज तथा ओ ‘डोनेल (Koontz and O’Donnell) के शब्दों में,“ नियन्त्रण का प्रबन्धकीय प्रकार्य अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा किये गये कार्यों का माप एवं उनमें आवश्यक सुधार करना होता है जिससे कि इस बात का निश्चय हो सके कि उपक्रम के उद्दश्यों तथा उनको प्राप्त करने के लिए निर्धारित योजनाओं को कार्यान्वित किया जा रहा है अथवा नहीं।”

निष्कर्ष-अतः हम नियन्त्रण की परिभाषा उस निरन्तर प्रक्रिया के रूप में कर सकते हैं, जो एक प्रबन्धक को निर्धारित प्रमापों के अनुसार अपने अधीनस्थों से कार्य-निष्पादन करने में सहायता करती है, यदि कोई परिवर्तन हो तो तुरन्त ध्यान में लाती है तथा भविष्य में उसके न होने के लिए उचित उपाय करती है। 

नियन्त्रण की विशेषताएँ 

(Characteristics of Controlling)

एक प्रभावशाली नियन्त्रण व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) उपयुक्तता- नियन्त्रण की प्रणाली व्यावसायिक संस्था के कारोबार की प्रगति व आवश्यकता के अनुरूप होनी चाहिए। निष्पादन की नियोजित चाहिए

(2) शीघ्र रिपोर्ट की व्यवस्था- एक श्रेष्ठ नियन्त्रण प्रणाली के अन्तर्गत होनी चाहिए कि वास्तविक निष्पादन का नियोजित कार्यमान से अन्तर तत्काल मा जा सके। 

(3) भविष्यदर्शी- एक प्रभावशाली नियन्त्रण प्रणाली में वास्तविक निष्पादन की कार्यमान से, अन्तरों का भविष्य में अनुमान लगाने की भी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे आने वाले समय के लिए उपयुक्त कार्यवाही कर सके।

(4) महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर अधिक ध्यान- एक प्रभावशाली नियन्त्रण का 

अन्तर्गत उन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया जाता है, जिनकी प्रगति संस्था की सम्पूर्ण प्रक लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 

(5) लोचपूर्ण- नियन्त्रण व्यवस्था में लोच होनी चाहिए, जिससे किसी आवश्यकतानुसार संशोधन किया जा सके।

(6) निष्पक्ष- नियन्त्रण व्यवस्था में पक्षपात के लिए कोई स्थान न होना चाहिए। 

(7) संगठन व्यवस्था के अनुकूल- एक प्रभावपूर्ण नियन्त्रण व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो संस्था के संगठनात्मक कलेवर से मेल खाये। अलग-अलग विभाग की जिम्मेदारी अलग-अलग देखनी चाहिए अन्यथा कोई भी विभाग अपने उत्तरदायित्व को नहीं समझेगा। 

(8) मितव्ययी- नियन्त्रण व्यवस्था को स्थापित व लागू करने की लागत उझे प्राप्त होने वाले लाभों की तुलना में कम होनी चाहिए। 

(9) सरल एवं सुबोध– उसी नियन्त्रण व्यवस्था को श्रेष्ठतम कहा जा सकता है, जिसे लोग आसानी से समझ सकें, अन्यथा उसके कार्यान्वयन में कठिनाइयाँ उपस्थित होंगी।

(10) सुधारात्मक उपाय सुझाने की व्यवस्था- एक श्रेष्ठ नियन्त्रण व्यवस्था की यह विशेषता है कि उसके माध्यम से यह पता लग जाना चाहिए कि प्रगति में क्या कमी है.कमी के लिए कौन-सा व्यक्ति या समूह उत्तरदायी है और वही कमी किस प्रकार दूर की जा सकती 

नियन्त्रण की सीमाएँ 

(Limitations of Control)

व्यावसायिक प्रशासन के लिए इतना अधिक महत्वपूर्ण होते हुए भी नियन्त्रण की कुछ सीमाएँ हैं, जो निम्नलिखित हैं 

(1) सन्तोषजनक कार्यमानों का अभाव अनेक कार्य इस प्रकार के होते हैं, जिनके लिए सन्तोषजनक कार्यमान की स्थापना करना सम्भव नहीं होता; जैसे- प्रबन्धकीय विकास के परिणाम मानवीय व्यवहार, जन सम्पर्क, शोध इत्यादि । वास्तव में, जहाँ मानवीय व्यवहार एक महत्वपूर्ण घटक है, वहाँ नियन्त्रण की कार्यवाही प्रायः कठिन होती है। 

(2) सुधारात्मक कार्यवाही की सीमाएँ- यह भी निश्चित नहीं है कि सभी विचलनों अथवा त्रुटियों को इस प्रकार सुधारा जा सकता है कि परिणाम पूर्व-नियोजन लक्ष्य के अनुसार ही हों । प्रायः देखा जाता है कि बाह्य परिवर्तनों के कारण नियन्त्रण पद्धति सफलतापूर्वक लागू नहीं की जा सकती, जैसे-सरकार की नीति में परिवर्तन, माँग में घट-बढ़, सामाजिक कलेवर में परिवर्तन इत्यादि। 

(3) व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के निर्धारण में कठिनाई यद्यपि नियन्त्रण पद्धति के अन्तर्गत अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों का प्रत्यायोजन कर दिया जाता है तथापि अनेक त्रुटियाँ ऐसी भी होनी हैं जिनके लिए किसी एक को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। 

(4) अधीनस्थों द्वारा विरोध- अधीनस्थ नियन्त्रण पद्धति का सबसे अधिक विरोध करते हैं क्योंकि इसके अन्तर्गत मानवीय कार्यों और विचारों में हस्तक्षप किया जाता है, जिसे कर्मचारी सहन नहीं कर पाते । कर्मचारियों पर जब नियन्त्रण के कारण कार्य-भार अधिक हो जाता है तो उनका मनोबल गिर जाता है, जिससे उनकी कार्यकुशलता एवं उत्पादकता भी कुप्रभावित होती है उपर्युक्त सीमाएँ केवल सैद्धान्तिक हैं। व्यवहार में ‘नियन्त्रण’ एक महत्वपूर्ण प्रबन्धकीय प्रकार्य है. जो योजनाओं के अनुसार कार्य के निष्पादन को सम्भव बनाता है। 

नियन्त्रण की विशेषताएँ 

(Characteristics of Control)

नियन्त्रण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं- 

(1) नियन्त्रण प्रबन्ध-प्रकार्य की अन्तिम क्रिया है नियन्त्रण का आधार नियोजन होता है। प्रत्येक उपक्रम के निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति के लिए नियन्त्रण प्रक्रिया का कार्यान्वयन अनिवार्य है। 

(2) नियन्त्रण का कार्य भविष्य में होने वाली घटनाओं के लिए किया जाता है। इन आगामी घटनाओं पर पूर्व-चिन्तन जरूरी है। जो बीत चुका है उस पर नियन्त्रण का प्रश्न ही नहीं उठता। परन्तु जो भविष्य में घटने वाला है उसको नियन्त्रित किया जा सकता है । भावी घटनाओं को पूर्व-निश्चित योजना के अनुसार घटित होते देखना ही नियन्त्रण का प्रमुख उद्देश्य होता है । नियन्त्रण के परिणामस्वरूप नवीन पद्धतियों के विकास को प्रेरणा मिलती है। 

(3) जिस प्रकार नियोजन एक सतत प्रक्रिया है उसी प्रकार नियन्त्रण भी सम्बन्ध का निरन्तर जारी रहने वाला प्रकार्य है। 

(4) नियन्त्रण एक गत्यात्मक प्रक्रिया है, अर्थात् परिस्थितियों में परिवर्तन के परिणामस्वरूप नियन्त्रण पद्धति में भी परिवर्तन करना आवश्यक होता है। 

(5) नियन्त्रण वास्तव में व्यक्तियों के कार्यों से सम्बन्धित प्रक्रिया है। नियन्त्रण-कार्य वैसे तो प्रत्यक्षतः सामग्री उत्पादन पद्धति तथा वित्त से सम्बन्धित होता है परन्तु वास्तविकता यह है कि इन चीजों में त्रुटि के लिए कोई न कोई व्यक्ति उत्तरदायी होता है। 

(6) प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर नियन्त्रण की प्रक्रिया व्याप्त रहती है। प्रत्येक स्तर पर नियन्त्रण की मात्रा में अन्तर हो सकता है। 

(7) नियन्त्रण का तात्पर्य अधिकारों का हनन नहीं होता। इससे न तो अधीनस्थों के अधिकारों का हनन किया जा सकता है और न वैयक्तिक स्वतन्त्रता में बाधक होता है । नियन्त्रण कार्य तो सांख्यिकीय तथ्यों पर आधारित होता है तथा मार्गदर्शक का कार्य करसा है। Bcom 2nd year Concept, Process and Techniques of Managerial control

नियन्त्रण की तकनीकें

(Techniques of Control)  

नियन्त्रण की तकनीकें, विधियाँ, प्रणालियाँ, या साधन प्रबन्ध के उपकरण हैं, जिनके द्वारा नियन्त्रण किया जाता है। आधुनिक प्रबन्ध अपने उपक्रम की क्रियाओं पर प्रभावी नियन्त्रण स्थापित करने के लिए नियन्त्रण की विभिन्न विधियों का उपयोग करने के की दृष्टि से नियन्त्रण की विभिन्न विधियों को तीन वर्गों में विभक्त किर _ नियन्त्रण की सामान्य तकनीकी (General Techniuut नियन्त्रण की सामान्य तकनीकी से आशय ऐसी विधियों से है, जिसका + प्रबन्धको द्वारा उपक्रम की क्रियाओं पर नियन्त्रण स्थापित करने का इन विधियों में प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं 

(1) सांख्यिकीय आँकड़े- उपक्रम की विभिन्न क्रियाओं से सम्बन्धित विश्लेषण करके उन्हें उत्पादन, किस्म, स्टॉक, लांगत आदि के नियन्त्रण में लाकड़ों के सकता है। 

(2) व्यक्तिगत अवलोकन- व्यक्तिगत अवलोकन नियन्त्रण की सबसे प्रकार विश्वसनीय विधि है । व्यक्तिगत सम्पर्क द्वारा कर्मचारियों के अभिप्रेरणा एवं मनो एवं होती है और प्रबन्धक उनके सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकता है। इसके से कर्मचारियों की कठिनाइयों एवं सम्सयाओं का निराकरण किया जा सकता है।

(3) आन्तरिक अंकेक्षण- अंकेक्षण नियन्त्रण का एक उपयोगी रूप है। और अंकेक्षण में अंकेक्षक लेखों की निरन्तर जाँच पड़ताल करते हैं इससे योजनाओं और कार्य का मूल्यांकन होता है. और तुलनात्मक अध्ययन द्वारा कार्यकुशलता की जाँच की जाती है। कन्टज एवं ओ० डोनेल के शब्दों में “क्रियात्मक अंकेक्षण विस्तृत अर्थ में व्यवसाय की लेखा वित्तीय तथा अन्य क्रियाओं का आन्तरिक अंकेक्षणों द्वारा एक नियमित एवं निष्पक्ष मल्यांकन की सबसे प्रभावशाली

(4) नीतियाँ-नीतियाँ वे सामान्य विवरण हैं,जो एक संस्था के दैनिक कार्यों के निष्पादन के मार्गदर्शक तत्व के रूप में काम में लायी जाती हैं। इनके आधार पर भविष्य में क्या करना है इसको पहले से ही निर्धारित करना सम्भव हो जाता है। इसीलिये इन्हें नियन्त्रण का एक साधन माना जाता है।  Bcom 2nd year Concept, Process and Techniques of Managerial control

(5) विशेष प्रतिवेदन एवं विश्लेषण प्रबन्धकीय नियन्त्रण के लिये साधारण अभिलेख एवं प्रतिवेदन प्रायः अनुपयुक्त होते हैं। विशेष समस्याओं को समझने एवं उनका निराकरण करने के लिये आँकड़ों का विशिष्ट विश्लेषण एवं प्रतिवेदन तैयार करने पड़ते हैं। इसके लिये प्रायः विशेषज्ञों की सहायता लेनी पड़ती है।

(6) लेखांकन-लेखांकन प्रणाली नियन्त्रण की एक प्राचीन विधि है। पहले वित्तीय लेखांकन और उनसे प्राप्त लाभ हानि विवरण द्वारा संस्था के विभिन्न विभागों का तुलनात्मक मूल्यांकन, उत्तरदायित्व लेखांकन, प्रबन्धकीय लेखांकन नियन्त्रण की महत्वपूर्ण तकनीक हैं। 

(7) सम विच्छेद विश्लेषण- नियन्त्रण की इस तकनीक का प्रचलन निरन्तर बढ़ रहा है। इसके अन्तर्गत विक्रय, आय, लागत तथा लाभ-हानि के पारस्परिक सम्बन्ध का विश्लेषण किया जाता है। इससे उस बिन्दु का ज्ञान होता है, जिस पर आय लागत के बराबर होती है और संस्था पहले से ही निर्धारित करना सम्भव हो जाता है । इसीलिये इन्हें नियन्त्रण का एक साधन माना जाता है। 

(8) आचरण- एक अधिकारी यदि अपने अधीनस्थों के व्यवहारों को नियन्त्रित करना चाहता है तो उसको स्वयं अपने श्रेष्ठ व्यवहार एवं अधिक कार्य का उदाहरण कर्मचारियों के प्रस्तुत करना चाहिये। अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत किया गया उदाहरण अधीनस्थों के लिये एक आदर्श बन जाता है और अधीनस्थ उसी आदर्श को अपने प्रयासों द्वारा प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। 

(9) बजट- आधुनिक व्यावसायिक जगत में नियन्त्रण के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में बजट का प्रयोग किया जाता है। बजट योजना का एक वित्तीय विवरण है जिसे पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये एक निश्चित समयाविधि के मध्य लागू किया जाता है। यह नियन्त्रण के साधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है । वास्तविक कार्यों और योजनाओं के मध्य निरन्तर तुलना करने में यह आधार प्रदान करता है। थियो हेमैन के शब्दों में, नियन्त्रण प्रबन्ध का सर्वाधिक प्रभावशाली यन्त्र बजट है।”

(10) अनुशासनात्मक कार्यवाही- नियन्त्रण की यह विधि ऋणात्मक है । इसके अन्तर्गत यदि कोई अधीनस्थ गलत कार्य करता है तो उसे दण्ड दिया जाता है ताकि भविष्य में उन गल्तियों की पुनरावृत्ति न करें। 

(11) अनुपात विश्लेषण- अनुपात विश्लेषण के माध्यम से व्यवसाय में लाभदायकता, तरलता, शोधन क्षमता, विनियोग आदि को सरलता से नियन्त्रित किया जा सकता है । इसके लिए विभिन्न अनुपातों का प्रयोग किया जाता है।

(12) चार्ट्स तथा पुस्तिकायें- किसी भी उपक्रम का संगठन चार्ट उसके अधिकारियों और प्रबन्धकों के सम्बन्ध को बनाता है । इस प्रकार चार्ट संस्था की योजना में परिवर्तित करने तथा नीतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं। संस्था की प्रगति को बतलाने वाले चार्ट्स, ग्राफ्स आदि का प्रयोग प्रबन्धक नियन्त्रण के एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कर सकते हैं । इसी तरह पुस्तिकाएँ भी प्रबन्धकीय नियन्त्रण के उद्देश्यों को पूरा करते हैं।  Bcom 2nd year Concept, Process and Techniques of Managerial control

(13) लिखित निर्देश- नियन्त्रण की इस विधि के अन्तर्गत कर्मचारियों को कार्य करने के सम्बन्ध में आदेश एवं निर्देश लिखित रूप में दिये जाते हैं, जिनका वे पालन करते हैं। ये आदेश एवं निर्देश जितने अधिक व्यापक एवं स्पष्ट होंगे कर्मचारी उनका उतने ही अधिक प्रभावी ढंग से पालन करेंगे। 

(14) अभिप्रेरणा- कर्मचारियों को अभिप्रेरित करके भी इनकी क्रियाओं पर नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है । यह एक प्रकार से स्व नियन्त्रण है । जब कर्मचारीगण अभिप्रेरित होते हैं तो वे आपस में स्वतः सहयोग करते हैं, जिससे स्वत: नियन्त्रण स्थापित हो जाता है।

(15) कार्य पद्धतियाँ- कार्य पद्धतियां किये जाने वाले कार्यों के क्रम एवं आवश्यक औपचारिकताओं को स्पष्ट करती हैं। ये क्रियाओं को निर्देश प्रदान करती है। इससे निष्पादन में स्वेच्छाचारिता व विचलन उत्पन्न होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है। 

(16) सूचना सेवाएँ– अनेक उद्योगों में नियन्त्रण कार्य को प्रभावशाली बनाने के लिए सूचना सेवाओं की स्थापना की जाती है । ये सेवाएँ विभिन्न प्रकार की सूचनाओं का एकत्रीकरण व विश्लेषण करके सम्बन्धित उच्चाधिकारियों को प्रेषित करती है। इन सूचनाओं के आधार पर प्रबन्धक महत्वपूर्ण नियन्त्रण निर्णय ले सकते हैं। 

(II) नियन्त्रण की विशिष्ट तकनीकी (Specific Techniques of Control)

नियन्त्रण की विशिष्ट विधियों के अन्तर्गत निम्न को शामिल किया जा सकता है- 

(1) बजट नियन्त्रण- आधुनिक व्यावसायिक जगत में नियन्त्रण के एक महत्वपूर्ण साधन का एक वित्तीय विवरण है जिसे के मध्य लागू किया जाता में यह आधार प्रदान करता पावशाली यन्त्र बजट है। बजट योजना का एक दिन निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये एक निश्चित समयाविधि के म है जिस है। वास्तविक कार्यों और योजनाओं के मध्य निरन्तर तुलना करने में यह है। प्रो० थियो हेमैन के शब्दों में, “नियन्त्रण प्रबन्ध का सर्वाधिक प्रभावशाली क्योंकि नियोजन योजना को निश्चितता प्रदान करता है, पूर्व विचार को प्रोत्सा साधनों के विवेकपूर्ण तथा कुशल उपयोग का सम्भव बनाता है, व्यों को सीमा रखता है, सन्तुलन स्थापित करता है और व्यापक नियन्त्रण को सम्भव बनाता अनेक प्रकार के बजट बनाये जाते है जिनके माध्यम से नियन्त्रण स्थापित किर 

(2) लागत नियन्त्रण-लागत नियन्त्रण भी नियन्त्रण की प्रमुख विधि है। स आशय व्यवसायों को चलाने तथा वस्तुओं के उत्पादन व वितरण प्रार व्ययों को उपयुक्त विश्लेषण तथा विभाजन के द्वारा नियन्त्रित करने से है। इसका व्यावसायिक व्ययों और उत्पादन लागत को न्यूनतम करके उसकी कार्यक्षमता को करना होता है। लागत नियन्त्रण की विधि को काम में लेने हेतु लागत का विश्लेषा प्रभावित लागत मानक निर्धारित किये जाते हैं, तत्पश्चात् वास्तविक व्ययों के लेखक जाते हैं, फिर अनुमानित एवं वास्तविक व्ययों का अन्तर मालूम किया जाता है। लागी की विधि को उत्पादन, क्रय, विक्रय, प्रबन्ध आदि सभी क्षेत्रों में समान रूप से प्रयास कर व बनाता है | व्यवहार में स्थापित किया जाता है। विधि है । लागत नियन्त्रण HT आने वाले विभिन्न है। इसका प्रमुख उद्देश्य है । Bcom 2nd year Concept, Process and Techniques of Managerial control

(3) उत्पादन नियन्त्रण- उत्पादन नियन्त्रण से आशय निर्माण क्रियाओं का संचालन प्रबन्ध करने से है । इसके अन्तर्गत न केवल गुण नियन्त्रण बल्कि लागत विधि नियन्त्रण सम्मिलित होता है । इस प्रकार उत्पादन नियन्त्रण में कारखाने में उत्पादन के कार्य को इस प्रकार से नियोजित तथा नियन्त्रित करना है कि समस्त कार्य एक व्यवस्था के अनुसार बिना किसी विलम्ब तथा हस्तक्षेप से चलता रहे तथा संयन्त्र सुविधाओं का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सके। 

(4) किस्म नियन्त्रण- किस्म नियन्त्रण से आशय उत्पादित माल की किस्म के नियन्त्रण से लगाया जाता है । इस नियन्त्रण का उद्देश्य निर्धारित किस्म, रूप,रंग, आकार, डिजाइन, परिधि आदि के अनुसार उत्पादनों का निर्माण करना होता है। किस्म नियन्त्रण वस्तुतः नियन्त्रण की वह तकनीक होती है जो इस बात को सम्भव बनाती है कि वांछित माल ही ग्राहक तक पहुँच रहा है। 

(5) सामग्री नियन्त्रण- सामग्री नियन्त्रण वह तकनीक है जिसके माध्यम से कच्चे माल आदि की पूर्ति को आवश्यकतानुसार बनाये रखा जाता है। सामग्री नियन्त्रण हेतु बिनकार्ड, क्रय आदेश बिन्दुओं का निर्धारण, स्टाक लेवल का निर्धारण तथा ARC नियत विधियों को अपनाया जाता है। 

(6) वित्तीय नियन्त्रण- वित्तीय नियन्त्रण प्रशासन एवं प्रबन्ध की वह महत्वपर्ण शाखा है जिसके अन्तर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है कि वित्त व्यवस्था से सम्बन्धित योजनाओं को इस प्रकार क्रियान्वित किया जाय जिससे कि पर्व निर्धारित जा सक। इसक अन्तगत न कवल सिद्धान्ता व नीतियों का ही अध साय प्रतापूर्वक कार्य रूप में करने की रीतियों का भी अध्ययन कार्य रूप में करने की रातिया का भा अध्ययन करते हैं।

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