bcom 2nd year tax planning pdf notes
कर नियोजन का अर्थ
Meaning of Tax Planning
कर नियोजन से आशय किसी भी व्यक्ति द्वारा करारोपण के विद्यान का पूर्व व गहन अध्ययन करके उसके द्वारा प्रदान की गई छूटों,रियायतों,कटौतियों आदि का पूर्ण लाभ उठाकर अपने कर भार को कम से कम करना है। कर नियोजन के द्वारा व्यक्ति विधान के नियमों का उल्लघंन किए बिना अनुकूल रियायतों छूटों तथा कटोतियों के माध्यम से कर-भार में कमी करता है। प्रो० डाल्टन के अनुसार, “कर नियोजन सरकार की नीतियों के अनुरूप ईमानदारी से कार्य करते हुए कर छूटों एवं कर प्रेरणाओं का लाभ उठाते हुए कर-दायित्व को न्यूनतम करने का एक वैज्ञानिक तरीका है।”
संक्षेप में हम कर नियोजन को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं, “कर नियोजन किसी व्यक्ति की आयों, व्ययों एवं विनियोगों की एक ऐसी विधि सम्मत व्यवस्था है जिससे उसका कर दायित्व न्यूनतम हो तथा कर के बाद की उसकी आय अधिकतम हो।
कर नियोजन की विशेषताये या महत्व
Characteristics or Importance of Tax Planning
कर नियोजन की विशेषतायें इस प्रकार हैं
(1) कर-नियोजन विधि सम्मत है (Tax Planning is legally recognised)-
कर नियोजन विधि को ध्यान में रखते हुए किया जाता है इसमें वर्तमान कर-कानूनों का उल्लंघन न हो इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाता है।यदि अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करके आय में वृद्धि की जाती है तो मेरी आय “कालाधन” कहलाती है। यह आय सरकार द्वारा पता चलने पर जबत कर ली जाती
(2) कर-नियोजन का आधार (Basis of tax planning)–
कर-नियोजन का मख्य आधार आय-कर अधिनियम में प्रदत्त छूटें, कटौतियाँ एवं कर राहतें हैं। करता अधिनियम द्वारा निर्दिष्ट विनियोग या व्यय करने पर उसे आय-कर में बचत या कट जाती है । ये छूटें, कटौतियाँ एवं प्रोत्साहन ही कर-नियोजन के लिए प्रेरणा हैं। इनके द्वारा करदाता कर-दायित्व कम कर लेता है।
(3) कर-नियोजन वैज्ञानिक (Tax planning is scientific)–
कर-नियोजन वैज्ञानिक तकनीक है। कर-नियोजन तभी किया जा सकता है जबकि करदाता को अधिनियम में प्रदत्त विभिन्न छूटों,राहतों, कटौतियों एवं कर बचतों की गहन जानकारी हो । विभिन्न छूटों, bcom 2nd year tax planning notes कटौतियों, प्रोत्साहनों एवं कर-राहतों का तुलनात्मक अध्ययन एवं विश्लेषण करके करदाता यह निश्चित करता है कि वह कर-नियोजन किस प्रकार करे जिससे उसे इन छूटो, कटौतियों एवं राहतों का अधिकतम लाभ मिल सके। इसके लिए वह गहन अध्ययन, तुलना एवं विश्लेषण करता है। यह बौद्धिक कार्य है अतः कर-नियोजन की सफलता या विफलता करदाता की बुद्धिमत्ता पर निर्भर करती है। । bcom 2nd year tax planning notes
(4) आयों, व्ययों एवं विनियोगों का नियोजन (Planning in connection with income, expenditures and investments)-
कुछ आय पूर्ण कर-मुक्त तथा कुछ आंशिक कर-मुक्त होती हैं जबकि कुछ आयें पूर्णतः कर-योग्य होती हैं। कुछ आयों के सम्बन्ध में छटें मिलती हैं यदि ये किसी विशेष क्षेत्र या समयावधि में लगे उद्योग से प्राप्त हों। इस प्रकार एक करदाता अपना कर-भार कम से कम रखने के लिए अधिकाधिक कर-मुक्त याआंशिक कर-मुक्त आयों को प्राप्त करने की व्यवस्था करेगा। वह अपने धन का विनियोजन ऐसे क्षेत्र या स्त्रोतों में करेगा जिनसे प्राप्त आय या तो पूर्णत: कर-मुक्त हो अथवा आंशिक कर मुक्त।
इसी प्रकार, व्यय करते समय भी वह ध्यान रखेगा कि व्यय करते समय वे सभी औपचारिकतायें या प्रावधान पूरे हों जिससे व्ययों को पूर्ण कटौती मिल सके। च्यय केवल उन्हीं मदों पर किये जायें जिन पर कटौती स्वीकृत है ताकि सभी व्ययों को पूर्ण कटौती मिल सके।विनियोगों का नियोजन इस प्रकार किया जाये कि उनसे प्राप्त आय पर कम से कम आय कर लगे अथवा आय-कर न लगे । करदाता प्रेरणादायक योजनाओं में विनियोग करके आय-कर से छूट प्राप्त कर सकता है। –
(5) कर-नियोजन एक सतत् प्रक्रिया (Tax planning is a continuous process)
कर-नियोजन नियमित रूप से प्रत्येक वर्ष के लिए किया जाता है। किसी एक ही वर्ष कर-नियोजन कर लेने से कर-नियोजन नहीं हो जाता है । हाँ, कुछ विनियोग ऐसे होते हैं जिनमें एक बार विनियोजन करने से दीर्घकाल तक कर की बचत होती रहती है। किन्तु अधिंकाश कर छुटे.राहतें एवं कर बचतें ऐसी हैं, जिन्हें प्रत्येक वर्ष के लिए पृथक-पृथक रूप से नियोजित करना पडता है तभी कर-भार में कमी आती है। कहने का तात्पर्य यह है कि कर-नियोजन प्रत्येक वर्ष के लिए किया जाता है। यह एक सतत् प्रक्रिया है जो निरन्तर चलती हैं तभी इसका लाभ होता है।
(6) कर-नियोजन नैतिक है (Tax planning is moral)–
कर-नियोजन नैतिक एवं अचत होता है, क्योंकि इसमें अधिनियम की सम्मति होती है। कर नियोजन अधिनियम के श्रावधानों का उल्लधंन किये बिना किया जाता है, अतः इसे कानून समाज एवं राष्ट्र की मान्यता जात होती है। कर-नियोजन को अनैतिक या बुरा नहीं माना जाता। इसके विपरीत जो नयोजन द्वारा अधिकाधिक कर की बचत करता है उसे बुद्धिमान कहा जाता है। कर-नियोजन पूर्णतः वैधानिक होता है ।
कर-नियोजन के स्वरूप (Forms of tax planning)–
कर-नियोजन के विभिन्न 1 हात है, जोकि निम्न हैं-
(i) बचत करके कर-नियोजन करना,
(ii) निवास स्थान के नयोग करके कर-नियोजन करना,
(iii) कछ निर्दिष्ट विनियोग करके कर-नियोज के प्रत्येक मद के सम्बध में कर-नियोजन.
(iv) आय प्राप्ति की तिथियों में परिवर्तन करके क स्वरूप (कम्पनी, फर्म या अन्य) में परिवर्तन करके कर-नियोजन ।
(v) आय प्राप्ति का .ता कर-नियोजन, किसीस्थापित करके कर-नियोजन, एवं
(vi) विशेष क्षेत्रों या अवधि में उद्योग स्थापित करके
(vii) न पर अनेक छूटें एवं कटौतियाँ प्राप्त होती हैं।
(7) कर-नियोजन सरकारी नीतियों के अनुरूप होता है (Tax Pras accordance with Government policy)-
सरकार की नीतिया
Government policyy
सरकार की नीतियाँ कर-नियोजन को प्रात्साहित करती है। सरकार अधिनियम में तथा विभिन्न परिपत्रों अधिसचनाओं एव घाषणाओं द्वारा समय-समय पर ऐसे व्ययों या विनियोग के बारे में घोषणा करती है जिसस करदाता अपने कर-भार को न्यूनतम कर सके । जैसे-आय कर अधिनियम, 1961 की धारा 88 के अनुसार विनियोग या व्यय करने की दशा में कल व्ययों एवं विनियोगों के 30% या 20% जसी भी स्थिति हो के बराबर आव-कर की कटौती मिलेगी।
इसी प्रकार अधिनियम की धाराय 80 HHB, 80 HHC एवं 80-HHD आदि के अन्तर्गत निश्चित क्षेत्र या उद्योग के विकास के लिए प्रदान की जाती है। अतः कर-नियोजन सरकारी नीतियों के अनुरूप ही। होता है।
(9) कर-नियोजन से कर-दायित्व मैं कमी तथा कर के बाद की आय में वृद्धि होती है। (Tax planning reduces’ tax-liablity and increases after tax income)
कर-नियोजन का प्रमुख उद्देश्य कर-दायित्व को न्यूनतम रखना होता है। जब करदाता का कर-दायित्व न्यूनतम होगा तो निश्चित रूप से उसकी वास्तविक आय (सकल आय-कर दायित्व) अधिकतम होगी। कर-नियोजन कर की बचत के लिए ही किया जाता है । कर की। बचत का आशय आय की वृद्धि भी है । अतः कहा जाता है कि कर की बचत आय का अर्जन | है (Tax saved is money earned) । __
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कर-नियोजन के उद्देश्य
Objectives of Tax-Planning
कर-नियोजन एक बौद्धिक कार्य है जिसका प्रमुख उद्देश्य एक करदाता के लिए उसके कर-दायित्व को न्यूनतम करना है। संक्षेप में, कर-नियोजन के निम्न प्रमुख उद्देश्य हैं
(1) कर-दायित्व में कमी (Reduction in tax-liability)-
कर-नियोजन का एक प्रमुख उद्देश्य करदाता के कर-दायित्व में कमी करना है। प्रत्येक व्यक्ति अपने परिश्रम से अर्जित आय का अधिक से अधिक भाग स्वयं अपने पास रखना चाहता है, किन्तु भारत में कर कानून उसकी आय के अधिकांश भाग को उससे छीन लेते हैं। भारी करारोपण से बना के लिए करदाता या तो कर चोरी करता है अथवा कर नियोजन ।
कर-चोरी आपराधिक कार है, अतः प्रत्येक करदाता कर-नियोजन द्वारा ही भारी करारोपण से बचना चाहता है । इस कर-नियोजन करदाता को भारी करारोपण से बचने का एक वैधानिक एवं नैतिक उपाय यही कर-नियोजन का प्रमुख उद्देश्य भी हैं।
(2) मकदमेबाजी में न्यूनता लाना (Minimisation of litigation)
एक करदाता अपनी राय पर कम-से-कम कर देना चाहता हैं जबकि आय-कर प्राधिकारी उससे अधिक से शिक कर वसूलना चाहते हैं। कभी-कभी अति उत्साही कर-निर्धारण अधिकारी अत्यधिक लगा भी देते हैं । इसके परिणामस्वरूप करदाता को न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है। मी स्थिति में न्यायालय में मुकदमों की भरमार हो जाती है जो करदाता एवं राष्ट्र दोनों के लिए हानिप्रद है।
इस फिजूल को मुकदमेंबाजी से बचने के लिए करदाता कर कानूनों के अनरूप इस प्रकार से कर-नियोजन करता है जिससे कि फिजूल की मुकदमेबाजी के लिए कोई मार्ग ही नहीं रहे । आय-कर अधिनियम की धारा 158-A का सृजन भी इसी उद्देश्य को लेकर किया गया है। इस धारा के अन्तर्गत पुनः अपील के अधिकार को सीमित कर दिया गया है ।
(3) उत्पाद विनियोग (Productive investment)
कर-नियोजन एक ऐसा उपाय है जिससे करदाताओं में कर-कानूनों को पेचीदगी समझने के लिए जागरूकता उत्पन्न होती है तथा आय कमाने वाले में ऐसा आर्थिक ज्ञान (economic consciousness) उत्पन्न होता है जिससे वह अपनी आय ऐसे उत्पादक सरकार कर बचत के लिए अनेक ऐसे विनियोगों की घोषणा करती है जिसमें रुपया विनियोजित करने पर एक ओर तो विनियोजक को कर में कटौती मिलती है तथा दूसरी ओर सरकार को राष्ट्रीय विकास हेतु उपयुक्त धन की प्राप्ति भी हो जाती है।
जनता की आय छोटी-छोटी बचतों के रूप में एकत्रित होकर राष्ट्रीय विकास में . योगदान देती है और पूँजी निर्माण में सहयोग करती है। इस प्रकार कर-नियोजन का राष्ट्रीय उद्देश्य उत्पादक विनियोगों में जनता का धन एकत्रित करना तथा जनता को ऐसे विनियोगों में धन लगाने हेतु प्रोरित करना हैं __
(4) अर्थव्यवस्था का स्वस्थ विकास (Healthy growth of economy)
-किसी भी राष्ट्र का स्वस्थ आर्थिक विकास तभी सम्भव है जबकि उसके निवासी अपनी अर्जित आय की बचत को राष्ट्र के विकास में लगायें । निवासियों की बचत राष्ट्र के विकास में तभी.लगती है जबकि उन्होंने वैधानिक रूप से ही आय-कर चुकाकर बचत की है । कर-दायित्वों का निर्वाह किये बगैर की गई बचत काला धन मानी जाती है और उसे राष्ट्र के विकास में नहीं लगाया जाता बल्कि ऐसे कार्यो में लगाया जाता है जिससे राष्ट्र का स्वस्थ आर्थिक विकास नहीं होता अपितु देश में कुछ आर्थिक अपराध एवं विकृतियाँ जैसे-जमाखोरी, रिश्वत, महँगाई, लाभखोरी, तस्करी आदि बढ़ती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि करदाता अपनी आय का अधिक से अधिक भाग अपने अपने पास रखना चाहता है।
यदि कर नियोजन द्वारा कर दायित्व को न्यूनतम कर लिया जाय तो भी करदाता अपनी आय का अधिकतम भाग अपने पास रख सकेगा। किन्तु उस दशा में वह उस आय की बचत को राष्ट्र की उपयोगी योजनाओं में विनियोजित करके स्वस्थ आर्थिक विकास में अपना योगदान देगा। ऐसी दशा में काली अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि उजली अर्थव्यवस्था होगी जो राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि करके राष्ट्र , का समुचित विकास करेगी । कर-नियोजन इस उद्देश्य की पूर्ति करने का एक सरल एवं एकमात्र उपाय है।
(5) आर्थिक स्थिरता (Economic stability)
समुचित कर नियोजन द्वारा वैधानिक रूप से देय कर का नियमित रूप से भुगतान किया जाता है। सरकार द्वारा घोषित प्रेरणाओं का लाभ उठाया जाता है तथा उन विनियोग एवं क्षेत्रों में धन लगाया जाता है । जिससे करदाता होने से देश की विभिन्न पीय अर्थव्यवस्था मेंएक ओर करदाता का त उसकी माँग बढ़ती है जो पर लगने वाला कर-दायित्व न्यूनतम हो । इस प्रकार कर-नियोजन होने से देश की योजनाओं में नियमित रूप से जनता का धन लगता है। जिससे राष्ट्रीय अर्थव्य” स्थिरता, सम्पन्नता एवं विकास की निरन्तरता बनी रहती है।
इससे एक ओर कर-दायित्व न्यूनतम होने से उसकी सम्पन्नता बढ़ती है, परिणामतः उसकी माँग ब विकाशील अर्थव्यवस्था की स्थिरता के लिए अति आवश्यक तत्त्व है। दूसरी ओर योजनाओं एवं उद्योगों को धन की उपलब्धता को निरन्तरता बनी रहती है जिससे क्रम में कोई अवरोध या गतिरोध उत्पन्न नहीं होता और अन्ततः देश में आर्थिक मि उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार कर-नियोजन आर्थिक स्थिरता उत्पन्न करता है।
कर-नियोजन की सीमाएँ (Limitations of Tax Planning)
(1) कर नियोजन का क्षेत्र सीमित है क्योंकि इस पर प्रत्यक्ष कर अधिनियम अन्य विधान (कम्पनी अधिनियम, साझेदारी अधिनियम आदि) एवं आर्थिक कारक भी अपना प्रभाव डालते
(2) एक करदाता जब कर निर्धारण से पूर्व किसी कटौती, कर छूट अथवा रियायत भी नहीं रहता है तो उसे यह अधिकार नहीं है कि वह इस लाभ में भाग पुनः या भूल सुधार या अपील के अन्तर्गत कर सकें
(3) प्रत्यक्ष करों में जल्दी-जल्दी संशोधन होते रहते हैं अतः लम्बी अवधि के लिए कर नियोजन करना सम्भव नहीं होता है । करदाता कोई भी लम्बी अवधि की योजना बनाने से डरता है कि वर्तमान छूट कल भी जारी रहेगी।
(4) लाभ बढ़ने के साथ-साथ कर दायित्व बढ़ता जाता है। इससे कर नियोजन करने में और अधिक समय लगता है।
(5) कर नियोजन करने से कभी-कभी परिवार के कुछ सदस्यों में आपसी लाभ कम ज्यादा हो जाता है जिससे उनमें आपसी मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं। अतः कर नियोजन एक सीमा तक ही दिया जाना सही है ताकि पारिवारिक मतभेदों से बचा जा सके। _ (6) कर से छूट का लाभ कुछ शर्तों को पूरी करने पर ही होता है। कभी कभी इन शर्तों को पूरा करना इतना कठिन है कि करदाता इनका लाभ ही नहीं उठा पाता है !
कर नियोजन के प्रकार
Types of Tax-Planning
कर-नियोजन का प्रमुख उद्देश्य कर-दायित्व में कमी करना है, साथ ही साथ बचत करना भी है। इस प्रमख उद्देश्य की पूर्ति हेतु विभिन्न प्रकार से कर-नियोजन किया जाता है जिसका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार किया जा रहा है bcom 2nd year tax planning
(1) अल्पकालिक कर-नियोजन (Short-term tax planning)-जब कर-नियोजन केवल चाल वर्ष को ही ध्यान देते हुए किया जाता है। उसे अल्पकालिक कर नियोजन कहा ‘जाता है। ऐसे कर नियोजन के लिए करदाता गत वर्ष में ऐसी योजनाओं में विनियोग करता है, जिससे कर निर्धारण वर्ष का उसका कर दायित्व न्यूनतम हो सके। वेतन भोग करदाता, अल्प आय वर्ग के करदाता, अनियमित आय वाले करदाता आदि इस प्रकार का कर-नियोजन करते हैं।
(2) दीर्घकालीन कर-नियाजन (Long term link planning)-जब कर नियोजन कर-नियोजन, कर प्रबन्ध, हानियों की पूर्ति एवं आगे ले जाया जाना/8/ भविष्य को ध्यान देते हुए किया जाये तो इसे दीर्घकालिक कर-नियोजन कहा जाता है। इस प्रकार के कर-नियोजन के लिए करदाता ऐसी योजनाओं में धन विनियोजित करता है जिससे उसका भावा कर दायित्व भी कम हो सके।
विनियोग करते समय करदाता केवल वर्तमान कर निधारण वर्ष के कर दायित्व को कम करने का विचार नहीं रखता बल्कि भविष्य में भी ऐसे विानयाग स उत्पन्न आय के सम्बन्ध में उत्पन्न कर दायित्व को कम करने का विचार भी रखता है। सामान्यत व्यापार या पेशे से आय वाले करदाता तथा ऐसा करदाता जिनकी आय भविष्य में बढ़ने की सम्भावना है, दीर्घकालीन कर नियोजन अपनाते हैं। अतः आय एवं विनियोग की ऐसी व्यवस्था जिससे करदाता का भावी कर-भार न्यूनतम रहे, दीर्घकालीन कर-नियोजन है।
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(3) विनियोग कर नियोजन (Investment tax-planning)-विनियोग कर नियोजन से तात्पर्य ऐसी विनियोग व्यवस्था से है जिसके द्वारा विनियोग से प्राप्त आय (ब्याज, लाभांश आदि) के सम्बन्ध में न्यूनतम कर-दायित्व उत्पनन हो। अतः ऐसी प्रतिभूतियों या कोषों में विनियोग करना, जिनसे प्राप्त आय या तो पूर्णतया कर-मुक्त है अथवा उसको कुछ कटौती । मिलती है, विनियोग कर-नियोजन कहलाता है। करदाता द्वारा विभिन्न विनियोगों में से ऐसे विकल्प चुनना जिससे विनियोग से प्राप्त आय के सम्बन्ध में उसका कर दायित्व न्यूनतम रहे, विनियोग कर नियोजन के अन्तर्गत आता है।
विनियोग कर नियोजन उन करदाताओं द्वारा अपनाया जाता है जिनके पास अतिरिक्त धनराशि है जिसे वे विनियोजित करना चाहते हैं एवं जिनकी नियमित आय बढ़ने वाली प्रकृति की है तथा जिनका कोई ऐसा व्यापार या पेशा नहीं है जिसमें वे अपनी इस अतिरिक्त धनराशि या आय का लाभदायक विनियोग कर सकते हैं।
(4) संगठनात्मक कर नियोजन (Organisational tax planning)-करदाता द्वारा * अपने व्यापार अथवा पेशे के लिए ऐसे स्वरूप का निर्धारण करना जिसके अन्तर्गत प्राप्त होने . वाले अनुमानित लाभों पर लगने वाला कर न्यूनतम हो । व्यापार के कई स्वरूप हो सकते हैं। जैसे-एकांकी व्यापार साझेदारी फर्म, हिन्दू अविभाजित परिवार, कम्पनी सहकारी समिति, व्यक्तियों का समुदाय आदि । करदाता इन स्वरूपों में ऐसा स्वरूप चयन करेगा जिससे उसका प्रत्येक दायित्व कर-से-कम हो और अर्जित लाभों के अधिक से अधिक भाग का वह उपभोग कर सके । कर दायित्व को न्यूनतम रखने के उद्देश्य से संगठन के उचित प्रारूप का चुनाव करना ही संगठनात्मक कर-नियोजन कहलाता है।
(5) सम्पत्ति कर-नियोजन (Estate tax-planning)-धन-कर एवं आय कर दायित्व न्यूनतम रखने के लिए सम्पत्ति कर-नियोजन अपनाया जाता है। करदाता अपनी समस्याओं को व्यवस्था इस प्रकार से करता है कि जिससे उसका धन कर दायित्व एवं उन सम्पत्तियों से प्राप्त आय पर लगने वाला आय कर दायित्व न्यूनतम हो सके । इस हेतु वह अपनी सम्पत्तियों का हस्तान्तरण उक्त उद्देश्यों को ध्यान देते हुए ही करेंगा। वह अधिक आय वाली सम्पत्ति का हस्तान्तरण ऐसे व्यक्ति के हित में करेगा जिसकी आय या तो शून्य है अथवा न्यूनतम है। २सा प्रकार वह कम आय वाली सम्पत्ति को अपने पास रखेगा या ऐसे व्यक्तियों के पक्ष में शान्तारत करेगा जिसकी आय अधिक है।
धन कर दायित्व से बचने के लिए वह अधिक का सम्पत्तियों का हस्तान्तरण ऐसे व्यक्ति के पक्ष में करेगा जिसके पास पूर्व सम्पत्ति एवं त सम्पत्ति मिलाकर कर-दायित्व न्यूनतम रहे । सम्पत्ति कर-नियोजन अपनाने के लिए पानयम धन-कर अधिनियम एवं उपहार-कर अधिनियम के प्रावधानों की विस्तृत आय-कर अधिनियम धन-कर आ
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