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elasticity of demand meaning in hindi

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Elasticity of Demand Meaning in Hindi

प्रश्न 4-माँग की लोच से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व की व्याख्या कीजिए। माँग की कीमत लोच की कितनी श्रेणियाँ हैं? What do you understand by Elasticity of Demand ? Explain its importance. What are the various degrees of price elasticity of demand ?

अथवा माँग के नियम और माँग की लोच में अन्तर स्पष्ट कीजिए। माँग की लोच को मापने की विधियों की व्याख्या कीजिए।Distinguish between Law of Demand and Elasticity of Demand. Discuss the methods of measurement of elasticity of demand.

अथवा माँग की लोच को परिभाषित कीजिए। इसको प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन कीजिए। माँग की लोच के व्यावहारिक महत्त्व को बताइए।Define Elasticity of Demand. Describe the factors upon which it depends. Explain the practical significance of elasticity of demand.

Elasticity of Demand in Hindi

माँग की लोच का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definitions of Elasticity of Demand)

माँग का नियम केवल एक गुणात्मक कथन है। वह वस्तु की कीमत एवं माँग मात्रा के बीच किसी परिमाणात्मक सम्बन्ध को व्यक्त नहीं करता। यह तो केवल इतना बताता है कि कीमत बढ़ने से माँग घटती है और कीमत में कमी होने से माँग बढ़ती है। इस प्रकार यह नियम कीमत में परिवर्तन होने के परिणामस्वरूप माँग के परिवर्तन की केवल दिशा बताता है, लेकिन यह नहीं बताता है कि माँग में कितना परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन की माप माँग की लोच करती है।

प्रो० मार्शल-“बाजार में किसी वस्तु की माँग का अधिक या कम लोचदार होना इस बात पर निर्भर करता है कि एक निश्चित मात्रा में मूल्य के घट जाने पर माँग की मात्रा में अधिक वृद्धि होती है अथवा कम तथा एक निश्चित मात्रा में मूल्य के बढ़ जाने पर माँग की मात्रा में अधिक कमी होती है या कम।”

प्रो० बेन्हम-“माँग की लोच का विचार, मूल्य में थोड़ा-सा परिवर्तन होने से माँग की मात्रा पर जो प्रभाव पड़ता है, उससे सम्बन्धित है।”

प्रो० मेयर्स—“किसी दिए हुए माँग वक्र पर मूल्य में होने वाले सापेक्षिक परिवर्तनों के फलस्वरूप क्रय की हुई मात्रा में परिवर्तन की माप को माँग की लोच कहते हैं।” प्रो० केयरनक्रॉस-“किसी वस्तु की माँग की लोच वह दर है जिसके अनुसार माँग की मात्रा परिवर्तनों के फलस्वरूप बदल जाती है।”

प्रो० बोल्डिंग-“किसी वस्तु की कीमत में एक प्रतिशत परिवर्तन होने से वस्तु की माँग में जो परिवर्तन होता है, उसे माँग की लोच कहते हैं।”

प्रो० सैमुअल्सन–“माँग की लोच का विचार कीमत के परिवर्तन के उत्तर में माँग की मात्रा में परिवर्तन का अंश अर्थात् माँग में प्रतिक्रियात्मक अंशों को बताता है। यह मुख्यत: प्रतिशत परिवर्तनों पर निर्भर करता है और कीमत तथा वस्तु की मात्रा को नापने में प्रयोग की जाने वाली इकाइयों से स्वतन्त्र होता है।”

श्रीमती जोन रोबिन्सन—“माँग की लोच को किसी कीमत अथवा किसी उपज पर कीमत में मामूली परिवर्तन के परिणामस्वरूप खरीदी जाने वाली मात्रा में होने वाले सापेक्षिक परिवर्तन की कीमत के आनुपातिक परिवर्तन से भाग देकर निकाला जा सकता है।” इस परिभाषा को सूत्र के रूप में निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-

माँग की लोच (Ep) = माँग में आनुपातिक परिवर्तन/ कीमत में आनुपातिक परिवर्तन

संक्षेप में, माँग की लोच केवल यह बताती है कि मूल्य में परिवर्तन के कारण माँग में कितना परिवर्तन होता है। मूल्य परिवर्तन का प्रभाव सभी वस्तुओं एवं सेवाओं पर एकसमान नहीं होता वरन् भिन्न-भिन्न होता है। अन्य शब्दों में, माँग की लोच वस्तु के मूल्य और उसके पारस्परिक सम्बन्ध की माप है।

माँग का नियम और माँग की लोच में अन्तर (Distinction between Law of Demand and Elasticity of Demand)

माँग का नियम कीमत तथा माँग के सम्बन्ध का एक गुणात्मक कथन है जो हमें कीमत में होने वाले परिवर्तनों के परिणामस्वरूप माँग में होने वाले परिवर्तनों की दिशा के बारे में बताता है। यह हमें कीमत, परिवर्तनों के परिणामस्वरूप माँग में होने वाले परिवर्तनों की मात्रा या दर के बारे में कुछ नहीं बताता। दूसरे शब्दों में, यह नियम वस्तु की कीमत तथा माँग मात्रा के बीच किसी मात्रात्मक सम्बन्ध की व्याख्या नहीं कर पाता। माँग के नियम की इस कमी को माँग की लोच की धारणा पूरी करती है।

माँग की लोच के रूप

Forms of Elasticity of Demand

आधुनिक अर्थशास्त्री माँग की लोच का व्यापक रूप से प्रयोग करते हैं। इन अर्थशास्त्रियों के अनुसार माँग की मूल्य सापेक्षता (लोच) के तीन प्रमुख रूप हैं-

1. माँग की कीमत लोच (Price Elasticity of Demand)-माँग की कीमत लोच किसी वस्तु की कीमत में दिए हुए प्रतिशत परिवर्तन एवं उसकी माँग मात्रा में हुए प्रतिशत परिवर्तन का अनुपात होती है।

इस प्रकार-

माँग की कीमत लोच (Ep) = माँग में प्रतिशत परिवर्तन / आय में प्रतिशत परिवर्तन

2. माँग की आय लोच (Income blasticity of Demand)-जब उपभोक्ता के आय स्तर में परिवर्तन होने से उसकी माँग में भी परिवर्तन हो जाता है तो वह माँग की आय लोच कहलाती है। माँग की आय लोच की निम्नलिखित सूत्र द्वारा गणना की जा सकती है-

माँग की आय लोच (Ei)=  माँग में प्रतिशत परिवर्तन / आय में प्रतिशत परिवर्तन

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि विश्लेषण की अवधि में वस्तुओं की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।

3. माँग की आड़ी लोच (Cross Elasticity of Demand)-जब दो वस्तुएँ एक-दूसरे की पूरक होती हैं तो उनमें से एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर दूसरी वस्तु की माँगी जाने वाली मात्रा भी परिवर्तित हो जाती है। यही माँग की आड़ी लोच कहलाती है माँग की आड़ी लोच को ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-

माँग की आड़ी लोच (Ec)=  X वस्तु की माँग में प्रतिशत परिवर्तन / Y वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तन

माँग की लोच की श्रेणियाँ

Degrees of Elasticity of Demand

सब वस्तुओं की माँग की लोच एकसमान नहीं होती अर्थात् कुछ वस्तुओं की माँग की लोच कम होती है और कुछ वस्तुओं की अधिक। सैद्धान्तिक दृष्टि से माँग की लोच को निम्नलिखित पाँच श्रेणियों में विभाजित करने की परम्परा है-

1. पूर्णतः लोचदार माँग (Perfectly Elastic Demand),

2. अत्यधिक लोचदार माँग (Highly Elastic Demand),

3. लोचदार माँग (Elastic Demand),

4. बेलोचदार माँग (Inelastic Demand),

5. पूर्णतः बेलोचदार माँग (Perfectly Inelastic Demand)।

1. पूर्णतः लोचदार माँग (Perfectly Elastic Demand)-जब किसी वस्तु के मूल्य में कोई परिवर्तन न होने पर भी (अथवा नाममात्र का परिवर्तन होने पर) माँग में बहुत अधिक परिवर्तन (माँग में बहुत अधिक कमी अथवा बहुत अधिक वृद्धि) हो जाए तो वस्तु की माँग पूर्णत: लोचदार कही जाती हैं। यह स्थिति पूर्णत: काल्पनिक है तथा व्यावहारिक जीवन में नहीं पायी जाती। इस प्रकार की माँग का वक्र सदैव समतल होता है, जैसा कि रेखाचित्र-15 में प्रदर्शित है।

रेखाचित्र-15 में Ox रेखा पर वस्तु की माँगी जाने वाली मात्रा तथा OY रेखा पर कीमत को प्रदर्शित किया गया है। PD माँग रेखा है जो Ox के पूर्णत: समान्तर है, यह प्रदर्शित कर रही है कि वस्तु के मूल्य में कोई परिवर्तन न होने पर भी वस्तु की माँग परिवर्तित हुई है।

अन्य शब्दों में, वस्तु का मूल्य अपरिवर्तित होने पर भी माँग OX1 से 0X2 अथवा OXg गई है। इस प्रकार DD माँग रेखा पूर्णत: लोचदार माँग की स्थिति को प्रदर्शित कर रही है

2. अत्यधिक लोचदार माँग (Highly Elastic Demand)-जब किसी वस्तु की माँग में परिवर्तन वस्तु के मूल्य में होने वाले परिवर्तन की तुलना में अनुपात से अधिक होता है तो उसे अत्यधिक लोचदार माँग कहा जाता है। रेखाचित्र-16 में OP कीमत पर OM वस्तु मूल माँग है। अब यदि मूल्य बढ़कर OP1 हो जाता है और माँगी जाने वाली मात्रा कम होकर केवल OM, रह जाती है तो यह अत्यधिक लोचदार माँग की स्थिति होगी क्योंकि मूल्य में परिवर्तन की तुलना में माँग में कहीं अधिक परिवर्तन हुआ है। इसी प्रकार, यदि मूल्य कम होकर OP2 रह जाता है और वस्तु की माँग बढ़कर OM2 हो जाती है तो यह भी अत्यधिक लोचदार माँग की दशा होगी। इस प्रकार DD माँग रेखा का निर्माण हुआ है। यह रेखा अधलेटी (Semihorizontal) सी होती है, जैसा कि रेखाचित्र-16 से स्पष्ट है।

3. लोचदार माँग (Elastic Demand)-जब किसी वस्तु की माँग में ठीक उसी अनुपात में परिवर्तन होता है जिस अनुपात में वस्तु की कीमत में परिवर्तन हुआ है तो उसे लोचदार माँग कहा जाता है। यदि किसी वस्तु की कीमत में 25% की वृद्धि (अथवा कमी) हो जाए और उसकी माँग में भी 25% की कमी (अथवा वृद्धि) हो जाए तो उसे लोचदार माँग कहा जाएगा। रेखाचित्र-17 में लोचदार माँग की स्थिति को प्रदर्शित किया गया है। रेखाचित्र-17 में OP मौलिक मूल्य तथा OM माँगी जाने वाली मूल मात्रा है। अब यदि मूल्य बढ़कर OP1 हो जाता है तो माँग में कमी आ जाती है और माँगी जाने वाली मात्रा घटकर OM रह जाती है। अब यदि इसके विपरीत मूल्य कम होकर OP2 रह जाता है तो माँगी जाने वाली मात्रा बढ़कर OM2 हो जाती है। इस स्थिति में मूल्य में जितना परिवर्तन होता है उतनी ही माँगी जाने वाली मात्रा भी परिवर्तित होती है, अत: यह स्थिति लोचदार माँग की स्थिति अथवा माँग की लोच इकाई के बराबर कहलाती है। इस स्थिति में माँग रेखा 45° का कोण बनाती है।

4. बेलोचदार माँग (Inelastic Demand)-जब किसी वस्तु की माँग में परिवर्तन उस वस्तु के मूल्य में होने वाले परिवर्तन से बहुत कम अनुपात में होता है तो उस वस्तु की माँग को बेलोचदार कहा जाता है। बेलोचदार माँग की दशा को रेखाचित्र-18 द्वारा प्रदर्शित किया गया है। रेखाचित्र-18 में OP मूल मूल्य तथा OM मूल रूप से वस्तु की माँगी जाने वाली मात्रा है। अब यदि मूल्य बढ़कर OP1 हो जाता है और माँगी जाने वाली मात्रा OM1 रह जाती है अथवा मूल्य कम होकर OP2 रह जाता है और माँगी जाने वाली मात्रा बढ़कर OM2 हो जाती है तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि माँग में होने वाला परिवर्तन मूल्य परिवर्तन की तुलना में बहुत कम है। यही बेलोचदार माँग की स्थिति है।

5. पूर्णतः बेलोचदार माँग (Perfectly Inelastic Demand)-जब किसी वस्तु के मूल्य में व्यापक या उल्लेखनीय परिवर्तन होने के

पूर्णत: बेलोचदार माँग बावजूद माँगी जाने वाली मात्रा में कोई परिवर्तन न हो तो वह दशा पूर्णतः बेलोचदार माँग की स्थिति कहलाती है। रेखाचित्र-19 में पूर्णत: बेलोचदार माँग की स्थिति को प्रदर्शित किया गया है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि वस्तु के मूल्य में व्यापक परिवर्तन होने के बावजूद (अर्थात् मूल्य के OP से बढ़कर OP2 या कम होकर OP1 होने के बावजूद) वस्तु की माँगी जाने वाली मात्रा अपरिवर्तित (OM) ही रहती है, अत: DD माँग रेखा पूर्णतः वस्तु की मात्रा बेलोचदार माँग की स्थिति को प्रदर्शित कर रही है।

माँग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्त्व (Factors affecting Elasticity of Demand)

माँग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्त्व अग्र प्रकार हैं-

1. वस्तु की प्रकृति (Nature of Commodity)—सामान्यतः अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली वस्तुओं

की माँग बेलोचदार होती है क्योंकि इन आवश्यकताओं को अधिक समय तक सन्तुष्ट नहीं रखा जा सकता। इसके विपरीत, आरामदायक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली वस्तुओं की माँग औसत लोचदार तथा विलासिता की वस्तुओं की माँग अधिक या अत्यधिक लोचदार होती है।

2. वस्तु की कीमत (Price of a Commodity)—प्राय: जिन वस्तुओं की कीमत ऊँची होती है उनकी माँग अधिक लोचदार होती है। जिन वस्तुओं की कीमत मध्यम श्रेणी की होती है उनकी माँग की लोच सामान्य होती है, जबकि बहुत सस्ती या बहुत कम मूल्य वाली वस्तुओं की माँग बहुत कम लोचदार या बेलोचदार होती है।

3. स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धि (Availability of Substitutes)-यदि किसी वस्तु की अनेक स्थानापन्न वस्तुएँ उपलब्ध हों तो उसकी माँग अधिक लोचदार होगी क्योंकि वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर अन्य स्थानापन्न वस्तुओं का प्रयोग किया जाने लगेगा। इस प्रकार स्थानापन्न वस्तुओं की कीमतें भी माँग की लोच को प्रभावित करती हैं।

4. वस्तु के वैकल्पिक प्रयोग (Alternative Uses of a Commodity)-प्रायः जिन वस्तुओं के वैकल्पिक उपयोग सम्भव होते हैं, उनकी माँग अधिक लोचदार होती है, जैसे विद्युत की माँग अधिक लोचदार होती है।

5. प्रयोग का स्थान (Place of Use)–यदि वस्तु ऐसी है जिसके प्रयोग को सरलता से भविष्य के लिए स्थगित किया जा सकता है तो उसकी माँग अधिक लोचदार होगी। लेकिन यदि वस्तु के प्रयोग को स्थगित नहीं किया जा सकता (अर्थात् यदि वस्तु का क्रय करना अत्यन्त आवश्यक है) तो वस्तु की माँग बेलोचदार होगी।

6. मूल्य स्तर (Price Level)-मूल्य स्तर भी माँग की लोच को एक बड़ी सीमा तक प्रभावित करता है। प्रो० मार्शल के शब्दों में, “माँग की लोच ऊँची कीमतों के लिए पर्याप्त होती है और जैसे-जैसे कीमतें घटती जाती हैं वैसे-वैसे लोच भी घटती जाती है और यदि कीमतें इतनी गिर जाती हैं कि तृप्ति की सीमा आ जाती है तो लोच धीरे-धीरे विलीन हो जाती है।”

7. आय समूह (Income Group)-माँग की लोच इस बात पर निर्भर करती है कि क्रेता आय के किस समूह अथवा वर्ग में आता है। प्रायः समृद्ध वर्ग (धनी लोगों) के लिए वस्तु की माँग बेलोचदार होती है, जबकि निर्धन वर्ग के लिए वस्तुओं की माँग अधिक लोचदार होती है क्योंकि मूल्य में होने वाला थोड़ा-सा परिवर्तन भी निर्धन वर्ग के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है।

8. धन के वितरण का प्रभाव (Effect of Distribution of Wealth)प्रो० टॉजिग का कथन है कि “सामान्यतः समाज में धन का असमान वितरण होने पर माँग की लोच बेलोचदार होती है और धन के समान वितरण के साथ लोचदार हो जाती है।” इसका कारण यह है कि जब समाज में धन का विषम वितरण होता है तो मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या कम होती है। अधिकांश लोग या तो बहुत धनी होते हैं या निर्धन। निर्धन वर्ग के लोग केवल जीवन की अनिवार्यताओं को ही सन्तुष्ट कर पाते हैं, जबकि धनी लोग विलासिता की वस्तुओं का खुलकर उपयोग करते हैं। अन्य शब्दों में, धनी वर्ग के लोगों की माँग की लोच बेलोचदार हुआ करती है। इसके विपरीत, धन के सम वितरण की दशा में, जब मध्य वर्ग के लोगों की बड़ी संख्या होती है, माँग का लोचदार होना स्वाभाविक ही है।

9. आय का व्यय किया जाने वाला अंश (Proportion of Expenditure to Income)-उपभोक्ता जिन वस्तुओं पर अपनी आय का एक छोटा-सा अंश व्यय करता है उन वस्तुओं की माँग बेलोचदार हुआ करती है। इसके विपरीत, जिन वस्तुओं/सेवाओं पर उपभोक्ता अपनी आय का एक बड़ा अंश व्यय करता है उनकी माँग अधिक बेलोचदार होती है।

10. संयुक्त माँग (Joint Demand)-जिन वस्तुओं की संयुक्त माँग होती है जैसे पैन तथा स्याही की मांग, उनकी माँग प्राय: एक ही दिशा में परिवर्तित होती हैं अन्य शब्दों में, यदि पैन की माँग स्थिर (बेलोचदार) है तो स्याही की मांग भी बेलोचदार ही होगी।

11. समय का प्रभाव (Effect of Time)—साधारणत: समय जितना कम होता है वस्तुओं की माँग उतनी ही कम लोचदार होती है और समय जितना अधिक होता है माँग की लोच उतनी ही अधिक लोचदार होती है। प्रो० मार्शल के शब्दों में—“माँग की लोच कुछ समय बीतने पर ही जानी जा सकती है। अल्पकाल के मूल्यों के परिवर्तन का वस्तु की माँग पर लगभग कोई प्रभाव नहीं पड़ता, परन्तु दीर्घकाल में उसकी प्रतिस्थापन प्रभाव की सम्भावना बढ़ जाती है और ऐसी दशा में माँग में तेजी से परिवर्तन हो सकते हैं।”

12. स्वभाव तथा आदत (Nature and Habit)-उपभोक्ता के स्वभाव एवं आदत का भी माँग की लोच पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। जिन वस्तुओं के प्रयोग की आदत पड़ जाती है उनकी माँग प्राय: बेलोचदार होती है।

13. राजकीय नियन्त्रण (State Control)-कभी-कभी सरकार मूल्य नियन्त्रण आदि के द्वारा आर्थिक गतिविधियों में हस्तक्षेप करती है। ऐसी दशा में बहुधा माँग बेलोचदार हो जाती है।

14. मूल्यों के भावी अनुमान (Estimates of Future Prices)—सामान्यत: जिन वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि की सम्भावना होती है उनकी माँग अधिक लोचदार होती है, जबकि मूल्यों में गिरावट की सम्भावना होने पर माँग बेलोचदार होती है।

माँग की लोच का महत्त्व (Importance of the Elasticity of Demand)

अर्थशास्त्र में माँग की लोच का सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों ही दृष्टिकोणों से अत्यधिक महत्त्व है। इसके महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. सैद्धान्तिक महत्त्व (Theoretical Importance)-माँग की कीमत लोच का विचार मूल्य निर्धारण, कर निर्धारण व विरोधाभासी स्थिति-सम्पन्नता के मध्य निर्धनता के विचारों को समझने में अत्यन्त सहायक है। इसकी सहायता से यह जाना जा सकता है कि मूल्य वृद्धि पर उपभोग का क्या प्रभाव पड़ता है।

2. व्यावहारिक महत्त्व (Practical Importance)-माँग की लोच के व्यावहारिव महत्त्व को स्पष्ट करते हुए लॉर्ड कीन्स ने लिखा है- “मार्शल की सबसे बड़ी देन माँग क लोच का सिद्धान्त है जिसके बिना मूल्य तथा वितरण के सिद्धान्तों की विवेचना करना कभी भी सम्भव नहीं हो पाता।” माँग की लोच के व्यावहारिक महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया ज’ सकता है-

(i) मूल्य निर्धारण में महत्त्व (Importance in Price Determination)-मूल्य निर्धारण के क्षेत्र में माँग की लोच का अत्यन्त व्यापक महत्त्व है; जैसे

(a) फर्म के साम्य के निर्धारण में—फर्म केवल उस समय साम्य की दशा में होती है जब सीमान्त आगम सीमान्त लागत के बराबर होता है (अर्थात् MC = MR), परन्तु सीमान्त आगम मुख्यत: माँग की लोच पर निर्भर करता है।

(b) एकाधिकार के अन्तर्गत-(अ) एकाधिकारी उत्पादक/विक्रेता अपने लाभ को अधिकतम करने के उद्देश्य से अपनी वस्तु का जो मूल्य निर्धारित करता है वह मूल्य माँग की लोच से प्रभावित होता है। सामान्यतः यदि एकाधिकारी की वस्तु की माँग लोचदार है तो एकाधिकारी वस्तु का कम मूल्य रखेगा जिससे वह वस्तु की अधिकतम मात्रा का विक्रय करके अपने लाभ को अधिकतम कर सके। लेकिन यदि वस्तु की माँग बेलोचदार है तो वह (एकाधिकारी) वस्तु का ऊँचा मूल्य निर्धारित करके लाभान्वित होगा।(ब) एकाधिकारी उत्पादक अपने लाभ को अधिकतम मूल्य की नीति को अपनाते हैं। इस दशा में उत्पादक ‘माँग की लोच’ से ही निर्देशित होता है। (स) राशिपातन (Dumping) को अपनाते समय भी एकाधिकारी विभिन्न बाजारों के माँग की लोच से प्रभावित होता है।

(c) संयुक्त पूर्ति (Joint Supply)-संयुक्त पूर्ति की वस्तुओं के मूल्य निर्धारण मे भी माँग की लोच का विचार एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। सामान्यत: लोचदार वस्तु का कम और बेलोचदार वस्तु का मूल्य अधिक निर्धारित होता है।

(ii) वितरण के क्षेत्र में महत्त्व (Importance in Distribution)-उत्पादन उत्पत्ति के साधनों का सामूहिक परिणाम होता है, अत: उत्पत्ति के विभिन्न साधनों को उनकी सेवाओं का पुरस्कार देना एक अनिवार्यता है और यह पुरस्कार माँग की लोच से प्रभावित होता है। प्रायः उत्पादक बेलोचदार माँग वाले साधनों को अधिक और लोचदार माँग वाले साधनों को कम पुरस्कार देता है।

(iii) सरकार के लिए महत्त्व (Importance for the Government)-वर्तमान समय में सरकार विभिन्न आर्थिक क्रिया-कलापों को सम्पन्न किया करती है, अत: माँग की लोच का सरकार के लिए भी विशेष महत्त्व है।

(a) कर लगाते समय वित्तमंत्री माँग की लोच को ध्यान में रखता है क्योंकि बेलोचदार माँग वाली वस्तुओं पर कर लगाकर आय में वृद्धि करना सरल होता है।

(b) प्रत्येक सरकार समाज के विभिन्न वर्गों पर इस प्रकार कर लगाना चाहती है कि सभी पर समान रूप से न्यायोचित करभार पड़े, अत: करभार के लिए सरकार माँग की लोच के विचार की सहायता लेती है।

(c) प्राय: सरकार उन उद्योगों को, जिनकी वस्तुओं की माँग बेलोचदार होती है, पार्वजनिक सेवाएँ (Public Utility Services) घोषित करके स्वामित्व और प्रबन्ध स्वयं ग्रहण कर लेती है। इस प्रकार व्यावहारिक आर्थिक नीति के निर्धारण में माँग की लोच का विचार अत्यन्त उपयोगी है।

(d) माँग की लोच उचित विनिमय दर (Exchange Rate) निर्धारण में भी उपयोगी सिद्ध होती है।

(iv) भाड़ा निश्चित करने में सहायक (Helpful for determing Freight)माँग की लोच यातायात की भाड़े की दर निश्चित करने में भी सहायक होती है।

(v) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में (Helpful for Foreign Business)-माँग की लोच का विचार अत्यन्त उपयोगी है क्योंकि दो देशों के मध्य व्यापार की शर्ते आयात एवं निर्यात (Import and Export) पदार्थों की माँग की लोच से प्रभावित होती हैं


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