उद्यमी की भूमिका (Role of Entrepreneur)
प्रश्न 1. ‘उद्यमी की भूमिका’ से आप क्या समझते हैं ? उद्यमी के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
What do you mean by ‘Role of Entrepreneur ? Explain the main functions of entrepreneur.
उद्यमी की भूमिका (Role of Entrepreneur)
किसी समाज और राष्ट्र की भौतिक, सांस्कृतिक व सामाजिक एवं तकनीकी समृद्धि उपलब्ध संसाधनों के योग तथा उन संसाधनों के श्रेष्ठतम उपयोग पर निर्भर करती है। किसी राष्ट्र को वास्तविक शक्ति उसके शक्ति सम्पन्न मानव संसाधनों में ही निहित होती है ।
उद्यमकर्ता साहस वृत्ति प्रधान वे लोग होते हैं, जो हानि-लाभ की परवाह किये बगैर उद्यम स्थापित करने को तैयार रहते हैं और यदि व्यापारिक इकाई में घाटा हो जाये तो घाटे को सहन करने की मानसिक और आर्थिक सामर्थ्य रखते हैं। हम जानते हैं कि छोटे और बडी सभी प्रकार के उद्यमों में निम्न पाँच तत्वों का होना पाया जाता है-
(1) भूमि; (2) श्रम; (3) पूँजी; (4) संगठन; (5) साहस ।
वास्तव में साहस ही व्यापार का जीवन है। साहसी ही उत्पादन को अन्य अंग भूमि, श्रम, पूँजी को संगठित कर उन्हें सक्रिय होने का माध्यम बनता है। अत: उद्योग व्यापार और अन्य आर्थिक क्रियाओं का मूल साहस को ही माना जा सकता है।
उद्यमी वह व्यक्ति है जो उत्पादन के अन्य साधनों को एक निश्चित मूल्य पर खरीद कर उनके सहयोग से किसी वस्तु या सेवा का उत्पादन करता है और फिर उपभोक्ताओं एवं ग्राहकों को बेच कर लाभ कमाता है। यदि इस प्रकार उपक्रम में हानि हो जाती है तो उसे वहन करता है। पीटर एफ० ड्रकर का यह कथन महत्वपूर्ण है . .
“एक उद्यमी वह व्यक्ति है, जो सदैव परिवर्तन की तलाश में रहता है, परिवर्तन का सम्मान करता है तथा एक अवसर की तरह परिवर्तन का उपयोग करता है।”
उद्यमी के प्रमुख कार्य (Main functions of Entrepreneur)
विभिन्न विद्वानों द्वारा उद्यमी के बताये हुए कार्यों का अवलोकन करने के पश्चात् उद्यमी के कार्यों को अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से निम्न तीन वर्गों में बांटा जा सकता है(A) उपक्रम की स्थापना सम्बन्ध कार्य-उद्यमी उपक्रम का प्रवर्तन करता है अत: उसे प्रवर्तन एवं उपक्रम की स्थापना करते समय निम्नलिखित कार्य करने पड़ते हैं-
(1) व्यावसायिक विचार की कल्पना करना उद्यमी ही वह व्यक्ति है जिसके मस्तिष्क में उपक्रम की स्थापना की कल्पना आती है और वह अपने मौलिक एवं व्यावहारिक विचारों से उस कल्पना को मूर्त रूप देता हैं। व्यावसायिक विचार कई प्रकार के हो सकते हैं उद्यमी इन विचारों को अपने चिन्तन एवं अनुभव से, सहयोगियों से या अपने सामाजिक अवलोकन से प्राप्त करता है
(2) परियोजना नियोजन-व्यावसायिक उपक्रम की सफलता के लिए प्रभावी नियोजन आवश्यक है। परियोजना नियोजन में उद्यमी प्रारम्भिक अनुसन्धान करते हैं, आवश्यक सूचनाएं एवं तथ्य एकत्रित करते हैं, सूचनाओं का विश्लेषण करके विभिन्न विकल्प विकसित करते हैं तथा सर्वोत्तम विकल्प का चयन करते हैं। एच० एन० पाठक के अनुसार, “परियोजन नियोजन इकाई की स्थापना से पूर्व किया गया कार्य व्यवस्थित अभ्यास है। यह अवसरों का ज्ञान तथा इकाई की स्थापना के बीच की कड़ी है।”
(3) परियोजना/सम्भाव्यता प्रतिवेदन तैयार करना-परियोजना नियोजन के आधार पर समंकों के रूप में तैयार किया गया विस्तृत विश्लेषणात्मक प्रतिवेदन परियोजना या सम्भाव्यता प्रतिवेदन कहलाता है। इस प्रतिवेदन में उत्पादित की जाने वाली वस्तु, कच्चे माल, उत्पादन तकनीक यन्त्र-मशीनें, श्रम, पूँजी, संयंत्र ढाँचे आदि के सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन होता है । उद्यमी इस प्रतिवेदन को भावी उपक्रम की लागत तथा लाभदायकता को स्पष्ट करने के लिए तैयार करता है। इस प्रतिवेदन से उपक्रम की व्यावहारिकता की जाँच की जा सकती है। Role of Entrepreneur notes in hindi
(4) परियोजना का अनुमोदन करना-उद्यमी उपक्रम का रजिस्ट्रेशन करवाने, आवश्यक अनुमति, स्वीकृति एवं लाइसेंस प्राप्त करने, विभित्र सुविधाएं एवं प्रेरणाएं प्राप्त करने, बैंक एवं वित्तीय संस्थाओं से वित्त प्राप्त करने आदि के लिए सम्बन्धित संस्थाओं व विभागों में परियोजना प्रतिवेदन प्रस्तुत करने तथा उसे अनुमोदित करवाने की प्रक्रिया की परियोजना का विक्रय भी कहा जाता है। प्रभावी एवं विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन का शीघ्र अनुमोदन सम्भव होता है।
(5) विचार की जाँच-पड़ताल एवं मूल्यांकन-उद्यमी अपने विचार से सहमत होने के पश्चात् उसकी व्यावहारिकता का मूल्यांकन करता है अर्थात् विचार पर तर्क-वितर्क करके यह सुनिश्चित किया जाता है कि विचार को कार्यरूप में परिणित किया जा सकता है। विचार की व्यावहारिकता की जाँच लिए उद्यमी सरकारी नीति, साधनों की उपलब्धता, उत्पादन एवं वितरण व्यवस्था, तकनीकी एवं कौशल तथा लाभदायकता पर विचार करता है।
(6) उपक्रम स्थापित करना-उद्यमी पूर्व निर्धारित परियोजना के अनुसार उपक्रम की स्थापना के लिए आवश्यक कदम उठाता है। वर्तमान युग में उपक्रमों की स्थापना सामान्यतः औद्योगिक बस्तियों में की जाती है जहाँ उद्योग के विकास के लिए सभी आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध होती है। किन्तु अन्य स्थानों पर उपक्रम की स्थापना कच्चे माल,श्रम, शक्ति के साधनों की उपलब्धता, बाजार की निकटता व अन्य आवश्यक सुविधाओं को ध्यान में रखकर की जाती है। साहसी निर्धारित स्थान पर संयत्र का निर्माण करवाता है तथा आवश्यक साधनों व सुविधाओं की व्यवस्था करता है।
(B) प्रबन्ध एवं संचालन सम्बन्धी कार्य-यद्यपि उद्यमी और प्रबन्धक अलग-अलग हैं किन्तु फिर भी उद्यमी उन सभी कार्यों के प्रति उत्तरदायी होता है, जो प्रबन्धक द्वारा उपक्रम संचालन के लिए सम्पन्न किये जाते हैं । उद्यमी के प्रबन्ध एवं उपक्रम संचालन सम्बन्धी प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
(1) उपक्रम का प्रबन्ध करना-उपक्रम की स्थापना के पश्चात् उद्यमी को इसका सफल संचालन एवं प्रबन्ध करना होता है। बड़े उद्योगों में तो प्रबन्ध का कार्य पेशेवर प्रबन्धक करते हैं जबकि छोटे उद्योगों में उद्यमी ही प्रबन्ध सम्बन्धी कार्य करता है । उद्यमी उपक्रम के प्रबन्ध हेतु विभिन्न नीतियों एवं लक्ष्यों का निर्धारण करता है। इनके अनुरूप उपक्रम की योजनाओं का निर्माण करता है तथा इसके प्रभावी क्रियान्वयन की व्यवस्था करता है। Role of Entrepreneur notes in hindi
(2) जोखिम उठाना-जोखिम वहन करना उद्यमी का मूल कार्य है क्योंकि जोखिम के बिना व्यवसाय की कल्पना करना असम्भव है । व्यवसाय में जोखिम कई प्रकार की ज्ञात-अज्ञात होती है। वह ज्ञात जोखिम को बीमा कराकर उससे निजात पा सकता है किन्तु अज्ञात जोखिम तो उसे स्वयं ही वहन करनी होती हैं अतः वह बड़ी सतर्कता, अनुभव, योग्यता से कार्य करते हुए इन जोखिमों को न्यूनतम करता है।
(3) वित्त प्राप्त करना उद्यमी उपक्रम के संचालन के लिए वित्तीय योजना के अनुसार विभिन्न स्रोतों से वित्त का प्रबन्ध करता है। उद्यमी उपक्रम की अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन पूँजीगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए स्थायी एवं कार्यशील पूंजी की व्यवस्था करता
(4) पारिश्रमिक प्रदान करना उद्यमी उत्पादन के प्रत्येक साधन को उसकी सेवाओं के प्रतिफल स्वरूप पारिश्रमिक प्रदान करता है। प्रतिफल का वितरण बाजार एवं उद्योग की दशाओं, संसाधनों की सीमान्त उत्पादकता आदि अनेक तत्वों को ध्यान में रखकर किया जाता है।
(5) कुशल विपणन व्यवस्था करना-वर्तमान तीव्र प्रतिस्पर्धा के युग में उत्पादन के प्रभावी विपणन की व्यवस्था करना भी उद्यमी का प्रमुख कार्य है । इसके लिए उद्यमी बाजार अनुसन्धान, विक्रय पूर्वानुमान, विक्रय संवर्द्धन, विज्ञापन आदि का कार्य करता है। वह योग्य मध्यस्थों एवं विक्रय प्रतिनिधियों की नियुक्ति करता है तथा उनको आवश्यक प्रशिक्षण व्यवस्था करता है। Role of Entrepreneur notes in hindi
(C) आधुनिक कार्य-वर्तमान बदलते व्यावसायिक परिवेश में उद्यमी के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
(1) उद्यमिता विकास कार्यक्रमों में भाग लेना-देश में उद्यमिता के विकास के लिए सरकारी विभागों, बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, व्यावसायिक एवं तकनीकी संगठनों, प्रबन्ध संस्थानों आदि द्वारा समय-समय पर विकास कार्यक्रम,प्रशिक्षण कार्यक्रम,एवं विचार गोष्ठियां आयोजित की जाती हैं। उद्यमी इन कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जिससे उन्हें व्यवसाय सम्बन्धी परिवर्तनों एवं नई विचारधाराओं की जानकारी होती है। विभिन्न समस्याओं पर विचार-विमर्श होने के कारण उद्यमी के ज्ञान में वृद्धि होती है। बदलते परिवेश में उद्यमी का यह भी महत्वपूर्ण कार्य है।
(2) नवप्रवर्तन एवं विभेदीकरण-नवप्रवर्तन उद्यमी का आधारभूत कार्य है । उद्यमी समाज में नवीन परिवर्तनों को जन्म देता है । वह शोध अनुसंधान व सृजनात्मक चिन्तन के द्वारा अपनी वस्तु, उत्पादन प्रणाली आदि में नये-नये सुधार करता है। नये उत्पाद विकसित कर, उत्पाद विभेदीकरण करता है, जिससे उपक्रम विस्तार होता है। आर्थिक विकास की उच्च अवस्थाओं में नवप्रवर्तन एवं विभेदीकरण करना ही उद्यमी का मुख्य कार्य है।
(3) व्यवसाय के भविष्य को सुरक्षित बनाना उद्यमी जिस उपक्रम को स्थापित करता है, उसे इतनी सफलता से संचालित करता है कि उसका भविष्य उज्ज्वल हो अर्थात् वह उपक्रम के सुनहरे भविष्य का निर्माण करता है। उद्यमी का वास्तविक कार्य उपक्रम के वर्तमान एवं भविष्य दोनों को सुरक्षित बनाना है। अत: उद्यमी को प्रत्येक योजना का निर्माण दीर्घ-कालीन परिप्रेक्ष्य में करना चाहिए। पीटर एफ० ड्रकर के शब्दों में, “किसी भी व्यावसायिक उपक्रम में उद्यमी का विशिष्ट कार्य आज के व्यवसाय को इस योग्य बनाना है कि वह ‘कल’ का निर्माण कर सके। वह आज के विद्यमान व्यवसाय को जीवित रहने तथा भविष्य में सफल होने की सामर्थ्य प्रदान करता है।” Role of Entrepreneur notes in hindi
(4) राष्ट्रीय विकास में योगदान देना-उद्यमी जिन संसाधनों का उपयोग करके उत्पादन करता है, वह समाज द्वारा प्रदान किये जाते हैं अतः उसे भी समाज की श्रेष्ठ रचना में सहयोग देना चाहिए। समाज के भौतिक एवं मानवीय साधनों का अधिकतम विदोहन करके रोजगार व आय का सृजन करके, नवीन संतुष्टियों का सृजन करके तथा अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करके उद्यमी राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं। पीटर ड्रकर के शब्दों में, “उद्यमी समाज के संसाधनों को घटती हुई अथवा कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों में बढ़ती हुई अथवा अधिक उत्पादकता वाले क्षेत्रों में हस्तान्तरित करके राष्ट्रीय विकास में योगदान दे सकता है।”
प्रश्न 2. “उद्यमिता नये रोजगारों के सृजन एवं सन्तुलित आर्थिक विकास के लिये आवश्यक है।” विवेचना कीजिये।
“Entrepreneurship is essential for the creation of employment and balanced economic development.” Explain. new
आर्थिक प्रगति को प्रोत्साहित करने में उद्यमी की भूमिका (Role of Entrepreneurs in complimenting and supplementing economic growth)
आर्थिक प्रगति एवं आर्थिक विकास का एक बहआयामी विचार है। आर्थिक विकास में नवीन उद्यमवृत्तियों का प्रादुर्भाव तथा पूर्ण स्थापित व्यावसायिक इकाइयों का विस्तार एवं संवर्द्धन किया जाता है । आर्थिक विकास में उद्यमी की भूमिका एवं महत्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
(1) आर्थिक विकास का चक्र-वर्तमान युग में उद्यमी को आर्थिक विकास का कर्णधार माना जाता है । उद्यमियों की क्रियाओं के द्वारा ही राष्ट्र के आर्थिक विकास का चक्र गतिमान होता है। डॉ० शर्मा के अनुसार “उद्यमी प्रत्येक अर्थव्यवस्था का मुख्य कार्यकर्ता होता है, क्योंकि अर्थव्यवस्था की गाड़ी उसके बिना नहीं चल सकती है।” वास्तव में वह आर्थिक प्रगति का सन्तुलन चक्र है।
(2) उद्योग का कप्तान-उद्यमी किसी भी उद्योग का प्रमुख स्तम्भ होता है । वह न केवल जोखिम वहन करता है बल्कि वह उद्योग का प्रबन्धक, भविष्यदृष्टा व आर्थिक नियोजक भी है । उद्योग की इस दायित्वपूर्ण भूमिका के कारण ही प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो० मार्शल ने कहा है कि, “उद्यमी उद्योग का कप्तान होता है।” वास्तव में उद्यमी ही सम्पूर्ण उद्योग को नेतृत्व प्रदान करता है Role of Entrepreneur notes in hindi
(3) समाज के उत्पादक साधनों का संगठनकर्ता-उद्यमी उत्पादन के पाँच साधनों—पूँजी, श्रम, भूमि, साहस, तकनीक को एकत्रित करता है तथा उनमें एक उचित सन्तुलन स्थापित करते हुए उत्पादन को सम्भव बनाता है । जेम्सबर्न का कथन है कि, “उद्यमी समाज के उत्पादक साधनों का संगठनकर्ता होता है।”
(4) आधुनिक उत्पादन व्यवस्था का अंग-किसी भी वस्तु का उत्पादन भावी माँग पर आधारित होता है क्योंकि बाजार की दशाओं, ग्राहक की रुचि तथा फैशन में निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं। इसी के साथ-साथ बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा के कारण नवप्रवर्तन की जोखिम व खतरे भी बढ़ गये हैं। इन सब कारणों से आधुनिक व्यवसाय में बहुत अधिक अनिश्चितता उत्पन्न हो गयी है। ऐसी स्थिति में उद्यमी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती जा रही है । डा० शर्मा के अनुसार, “आधुनिक व्यवसाय का आधार परिवर्तन एवं नवप्रवर्तन है, जो कि उद्यमी व्यक्ति के द्वारा ही सम्भव है।” Role of Entrepreneur notes in hindi
(5) नवीन व्यावसायिक इकाइयों की स्थापना-उद्यमी उत्पत्ति के साधनों को उत्पादक कार्यों में लगाकर समाज में नये-नये व्यवसायों की स्थापना करते हैं। प्रो० कारवर के अनुसार, “उद्यमी की सेवाएं ऐसी हैं, जिससे एक वेतनभोगी प्रबन्धक कभी भी पूरा नहीं कर सकता है।’ भारत में टाटा,बिरला,सिंघानिया,बजाज,रिलायन्स गुप आदि ऐसे उद्यमी हुए, जिन्होंने औद्योगिक क्रियाओं का विस्तार करके विकास की गति को बढ़ाया है। उद्यमी के नेतृत्व के बिना उत्पत्ति के सभी साधन निष्क्रिय बने रहते हैं, उनसे उत सम्भव नहीं हो पाता। 91
(6) नवप्रवर्तन को प्रोत्साहन-उद्यमी शोध एवं अनुसंधान पर अत्यधिक बल देकर समाज में नवप्रवर्तन को प्रोत्साहित करता है। डब्ल्यू० टी० इस्टरबुक ने उद्यमी को ‘नवप्रवर्तन का देवता’ कहा है । उद्यमी ही उद्योग में नई-नई वस्तुओं के उत्पादन, नवीन तकनीक, नवीन उत्पादक विधि, नये संयन्त्र, नये उपयोगों आदि को प्रोत्साहित करता है। वास्तव में उद्यमी ही वह व्यक्ति होता है, जो जोखिम उठाकर भी समाज में नये-नये परिवर्तनों व नवाचारों को प्रोत्साहित करता है
(7) गतिशील प्रतिनिधि–उद्यमी व्यावसायिक परिवर्तनों द्वारा सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को गतिशील कर देता है। वह उत्पादन के विभिन्न साधनों को गतिमान करके विकास की गति को बढ़ा देता है। शुम्पीटर ने उद्यमी को ‘गतिशील प्रतिनिधि’ कहा है। विकासशील देश आर्थिक क्रान्ति के दौर में होते हैं। ऐसे समय में उद्यमी देश में विकास का वातावरण निर्मित कर सकते हैं। वास्तव में उद्यमी “क्रान्ति का अग्रदूत” होता है
(8) व्यवसाय पैगम्बर-उद्यमी व्यावसायिक जोखिमों का पूर्वानुमान करता है, समाज के भावी विकास की कल्पना करता है तथा नये-नये अन्वेषणों का वाणिज्य मूल्यांकन करके उन्हें साकार रूप प्रदान करता है। वह समाज की प्रगति के उद्देश्य के लिए ही व्यवसाय में प्रवेश करता है । गेस्टनवर्ग के शब्दों में, “एक सफल उद्यम की स्थापना करके उद्यमी एक सार्वजनिक सेवा करता है। वह अपनी कुशाग्र बुद्धि से व्यावसायिक योजनाओं को साकार करता है।” इसलिए इसे व्यवसाय का पैगम्बर कहा जाता है।
(9) औद्योगिक सभ्यता का जनक उद्यमियों के प्रयास से सामाजिक ढांचे में जो परिवर्तन होता है, उससे समाज उद्योगप्रधान बन जाता है। फलस्वरूप अन्धविश्वास कम होने लगते हैं। समाज कई सीढ़ियों व घिसीपिटी परम्पराओं से मुक्त होने लगता है। लिविंग स्टोन ने कहा है कि, “उद्यमी कोई अलौकिक शक्ति नहीं, बल्कि जटिल सामाजिक प्रक्रिया का एक अंग है, जो सामाजिक ढांचे में कई परिवर्तनों को जन्म देता है।”
(10) उत्प्रेरक तत्व–उद्यमी प्रगति का उत्प्रेरक तत्व है। उद्यमियों के कारण ही समाज में धन सम्पत्ति बढ़ती है, गरीबी का उन्मूलन होता है, साधनों का सर्वोत्तम उपयोग होता है तथा आत्मनिर्भर समाज की रचना सम्भव होती है। रेल्फ हारविज के शब्दों में, “उद्यमी घटनाओं को घटित करता है, कार्यवाही चाहता है तथा वह एक प्रगतिशील व्यक्ति है। उसके बिना न कोई घटना है न कोई क्रिया और न कोई प्रगति है।” Role of Entrepreneur notes in hindi
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि उद्यमी आर्थिक प्रगति को प्रोत्साहित करने में अग्रणी भूमिका का निर्वाह करते हैं। वह न केवल आर्थिक विकास के जन्मदाता है बल्कि उसके कर्णधार होते हैं।
रोजगार के अवसरों के सृजन में उद्यमी की भूमिका
(Role of Entrepreneur in Generation of Employment opportunities)
यदि बिन्दुवार विवेचन किया जाये तो स्वरोजगार द्वारा दूसरों को भरपूर रोजगार के अवसर सुलभ कराने वाले इस महायज्ञ से राष्ट्रीय आय में वृद्धि और समृद्धि का एक आकर्षक चित्र उभर कर आता है।
(1) संदेशवाहन और संचार सुविधाओं द्वारा रोजगार सृजन (Creation of employment opportunities through Communication Services) – सार्वजनिक क्षेत्र के संदेशवाहन और संचार की सुविधाएं जनसामान्य और व्यापार की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाती। ऐसे में निजी क्षेत्र में पी. सी. ओ० , कोरियर सर्विस आदि के द्वारा देशभर में लाखों नव-नवयुवकों व नवयुवतियों को काम मिला हुआ है। हर शहर कस्बे और गाँव में पी० सी० ओ० नौजवानों के रोजगार के साधन बन गये हैं। कोरियर सेवा क्षेत्र में भी लाखों शिक्षित और अशिक्षित लोग रोजगार पा गये हैं। लगभग समानान्तर डाक सेवा निजी क्षेत्र में चल रही है जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की अनेक कम्पनियों के अतिरिक्त स्थानीय सेवा केन्द्र भी सक्रिय हैं।
(2) बीमा सुविधाओं के माध्यम से रोजगार सृजन (Generating Employment Opportunities through Insurance Services)-व्यवसाय के क्षेत्र में जोखिम निहित रहती है। जोखिम को सहन करने की मानसिक सामर्थ्य उद्यमी का मूल लक्षण है । तथापि व्यापारी और उद्यमी को जोखिम-मुक्त रहने का आश्वासन देकर बीमा व्यवसाय व्यापार जगत की भारी सेवा करता है। स्वरोजगार के इच्छुक उद्यमी वृत्ति के लोग बीमा अभिकर्ता के रूप में अपने साथ सहायक जोड़कर उन्हें भी रोजगार सुलभ कराते हैं। एक अच्छा प्रतिष्ठित अभिकर्ता पूरी तरह कार्यालय बनाता है और उसकी पूरी देख-रेख करता है, जिसमें उसे स्टॉफ की आवश्यकता रहती है । क्लर्क, कम्यूटर ऑपरेटर, चपरासी आदि को इस माध्यम से रोजगार मिलता है। Role of Entrepreneur notes in hindi
(3) परिवहन और यातायात के क्षेत्र में रोजगार सृजन (Creation of employment opportunities through transport services)-उद्यमी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इस क्षेत्र में रोजगार पाने और बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। प्रत्यक्ष रूप से ट्रैक्टर, टैक्सी, ट्रक और बसें चलाकर वे अपने लिए रोजगार का साधन सुलभ कराते हैं तथा अन्य अनेक को सहायक के रूप में रोजगार प्रदान करते हैं। यात्राी और माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचा कर ये उद्यमी उत्पादन में प्रत्यक्ष योगदान करते हैं।
(4) वित्त एवं बैंकिंग क्षेत्र में रोजगार का सृजन (Generating Employment in Finance and Banking Sector)–वित्त प्रत्येक व्यापार को पूर्व आवश्यकता है। देशभर में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में पूर्ण संगठित बैंकिंग उद्योग है, जो देशी-विदेशी बैंकों के माध्यम से व्यापार व उद्योग क्षेत्र के लिये वित्त सुलभ कराते हैं। फाइनेन्स कम्पनियाँ देशभर में नियमित रूप से धन उपलब्ध कराती हैं। फाइनेन्स कम्पनी के स्वामियों के लिए तो यह स्वरोजगार का माध्यम है ही पर एक फाइनेन्स कम्पनी में आकार के हिसाब से अनेक लोग कार्य करते हैं, जिनके लिए इन कम्पनियों से रोजगार के साधन सुलभ हो जाते हैं। Role of Entrepreneur notes in hindi
(5) लेखांकन एवं आख्यालेखन के माध्यम से रोजगार सृजन (Generating Employment through Accounting and Reporting Activities)-लेखांकन प्रत्येक व्यवसाय की अनिवार्यता है । लेखांकन विषय के विशेषज्ञ बनकर उद्यमी स्वयं स्वतन्त्र रूप से लेखाकार का कार्य कर सकते हैं। भारत में ‘इन्स्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट्स’ के सदस्य लेखांकन और अंकेक्षण कार्य के विशेषज्ञ होते हैं। ये विशेषज्ञ स्वतन्त्र रूप से स्वरोजगार के रूप में अंकेक्षक का कार्य सम्पन्न करते हैं। एक अंकेक्षण के व्यवसाय के आकार की स्थिति पर यह आधारित होता है कि उसके नियन्त्रण में और उसके साथ कितने लोग कार्यरत होंगे। आजकल विभिन्न उद्देश्यों के लिए व्यक्ति को रिपोर्ट की आवश्यकता होती है। आख्या देने वाले व्यक्ति में आख्याकार होने के गुण और लक्षण हों तो आख्यालेखन भी स्वरोजगार के साथ ही अपने सहकर्मियों और अधीनस्थों को रोजगार का माध्यम बन सकता है।
(6) सुरक्षा एवं संरक्षा (Safety and Security)-सुरक्षा एवं संरक्षा प्रत्येक व्यक्ति, संगठन, समाज और राष्ट्र की आवश्यकता है। सुरक्षा का भाव मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में है। विश्वविख्यात मनोवैज्ञानिक मसलों द्वारा किये गये आवश्यता अनुक्रम (Heirarchy of Needs) में सुरक्षा का स्थान दूसरा है। शारीरिक आवश्यकताओं के बाद सुरक्षा की आवश्यकता अनुभव होती है ।अपने माध्यम से अन्य अनेक जैसे गार्ड, पहरेदार, चौकीदार, चपरासी, क्लर्क, मैनेजर आदि-आदि पदों पर नियुक्त कर उन्हें रोजगार सुलभ कराते हैं। सभी शहरों में इस प्रकार के संगठन बन गये है, जहाँ पूर्व सैनिक तथा सैनिक वृत्ति के लोगों को भर्ती कर ऐसी सेवायें प्रदान की जाती हैं Role of Entrepreneur notes in hindi
(7) आयोजन प्रबन्धन द्वारा रोजगार सृजन (Generation of Employment through Event-Management)—आधुनिक युग विशेषज्ञों का युग है। प्रत्येक क्षेत्र में विशिष्ट योग्यता सम्पन्न व्यक्ति विभिन्न कार्य करने के लिए उपलब्ध रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति समय-समय पर कुछ आयोजन करता रहता है। विभिन्न संगठनों में भी नाना प्रकार के आयोजन किये जाते हैं जैसे स्थापना दिवस, गणतंत्र दिवस, स्वाधीनता दिवस, ग्राहक सेवा सप्ताह, कवि सम्मेलन, मुशायरा, भाषण या वाद-विवाद प्रतियोगिता, हिन्दी दिवस व महिला दिवस आदि । आजकल क्रिकेट, फुटबॉल, कैरम जैसे लोकप्रिय खेल आयोजित किये जाने की भी परम्परा है। कुछ लोग इस प्रकार के आयोजनों में बड़े दक्ष होते हैं। प्रत्येक आयोजन से जुड़े सभी क्रिया-कलापों की उन्हें विस्तृत जानकारी होती है। प्रारम्भ से अन्त तक अर्थात् अथ से इति तक क्या-क्या और कब-कब तथा किस प्रकार होता है, वे लोग इस कला के मर्मज्ञ को भार सौंपकर निश्चिन्त हो जाते हैं। थोड़े से कमीशन/शुल्क या पारिश्रमिक के बदले आयोजन सकुशल एवं बढ़िया ढंग से सम्पन्न हो जाता है। रोजगार
(8) संदर्भ केन्द्रों द्वारा रोजगार सृजन (Generation of Employment Opportunities through Placement agencies) विभिन्न शिक्षण, प्रशिक्षण एवं तकनीकी संस्थानों में हजारों-लाखों छात्र अध्ययन एवं प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। इसके पश्चात् उन्हें रोजगार की तलाश करना पड़ती है। बड़े-बड़े नगरों में निजी क्षेत्र में ऐसे संदर्भ केन्द्र खुले हुए हैं जो एक निश्चित शुल्क लेकर लोगों का बायोडेटा अपने पास इकट्ठा करते हैं और उन्हें उनकी योग्यतानुसार रोजगार दिलाने में सहायता करते हैं। ये एक प्रकार के छोटे पैमाने के रोजगार केन्द्र (Employment Exchange) होते हैं।
प्लेसमेण्ट एजेन्सी चलाने वाले लोग पंजीकृत नवयुवक से नौकरी मिल जाने पर एक माह का या आधे माह का वेतन और पारिश्रमिक लेते हैं तथा इतना ही धन वे उन संगठनों से वसूल करते हैं, जिन्होंने इन व्यक्तियों को अपने यहाँ रोजगार सुलभ कराया है । रोजगार देने वाले तथा रोजगार चाहने वालों के बीच मध्यस्थ का काम करने वाली ये एजेन्सी स्वरोजगार का साधन भी हैं तथा रोजगार सृजन का भी कार्य करती हैं, क्योंकि एक-एक एजेन्सी में आकार के आधारपर बहुत अच्छी संख्या में लोग कार्य करते हैं।
(9) मनोरंजन उद्यम द्वारा रोजगार सृजन (Generation of Employment Opportunities Through Entertainment Entrepreneurs)-आधुनिक युग के नये कैरियरों में मनोरंजन भी एक लोकप्रिय कैरियर है। मनोरंजन की विभिन्न विधाएँ संगीत, नृत्य, गायन, वादन, अभिनय, निर्देशन, कहानी-लेखन, कविता एवं गीत-लेखन, संवाद-लेखन, फोटोग्राफी आदि सब स्वतन्त्र पेशे के रूप में स्थापित हैं। कोई उद्यमी इनमें से किसी भी विधा को पेशे के रूप में अपनाकर अपना जीवन-यापन तो कर ही सकता है; अपने से जुड़े अन्यान्य लोगों को रोजगार के साधन सुलभ करा सकता है। ये सभी क्रियायें एक दूसरे की पूरक हैं और एक-दूसरे को रोजगार सुलभ कराती हैं। Role of Entrepreneur notes in hindi
(10) परामर्श सुविधाओं द्वारा रोजगार सृजन (Generation of Employment ihrough Consultancy Services)—37efce to factare À 37ef Feraria o ce site दिशा में व्यापक परिवर्तन समाहित हुए हैं। अब यहाँ मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलता है। हाँ राय भी अब पैसे से मिलती है। वह जमाना खत्म हो गया जब बिना माँगे और मुफ्त मिल जाती थी। अब तो स्थान-स्थान पर परामर्श केन्द्र खुले हुए हैं। आवश्यकता पड़ने पर निश्चित शुल्क देकर आवश्यक राय प्राप्त की जा सकती है।
(11) प्रत्यक्षालाप केन्द्रों द्वारा रोजगार सृजन (Generation of Employment Opportunities through Call Centres)-प्रत्याक्षालाप केन्द्र अर्थात् कॉल-सेन्टर विकसित अर्थव्यवस्था की देन है। अति विकसित अर्थव्यवस्था वस्तुत: सेवाक्षेत्र के प्राचुर्य का पर्याय है। नाना प्रकार की सेवाएँ तथा सेवा उद्योग विकसित अर्थव्यवस्था में पाये जाते हैं।
कॉल-सेन्टर भी वस्तुतः ग्राहक सेवा का एक नवीन अध्याय और आयाम है,जो सूचनाक्रान्ति के विस्फोट का परिणाम हैं । क्रेता, विक्रेता अथवा पूछने वाले और बताने वाले के बीच मध्यस्थ का कार्य कर रहे ये काल सेन्टर 21 वीं शताब्दी में रोजगार उपलब्ध कराने वाले महत्वपूर्ण । इन कॉल सेन्टरों के संचालक वे उद्यमी हैं, जो स्वरोजगार के रूप में इन केन्द्रों को चलाते हैं। भारत में अभी काल-सेन्टर बहुत बड़े-बड़े शहरों तक ही सीमित हैं, पर जब इनका रुख छोटे शहरों और कस्बों की ओर होगा तो ये केन्द्र रोजगार सृजन के भरोसेमन्द माध्यम सिद्ध होंगे। कन्द्र Role of Entrepreneur notes in hindi
प्रश्न 3. भारत की नई आयात-निर्यात नीति 2002-07 की क्या मुख्य विशेषतायें हैं ? What are the main features of new EXJM pelicy 2002-07 of India?
आयात-निर्यात नीति
वाणिज्य एवं उद्योग मन्त्री, भारत सरकार, मुरासोली मारन ने 31 मार्च, 2002 को आगामी पाँच वर्षों के लिए आयात-निर्यात नीति की सदन में घोषणा की। देश में निर्यात को बढ़ावा देने तथा विश्व बाजार में 1% निर्यात का उद्देश्य प्राप्त करने के लिए इस नीति में कुछ संवेदनशील वस्तुओं को छोड़कर अन्य सभी वस्तुओं के निर्यात पर लगे मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटा दिये। साथ ही विशेष आर्थिक क्षेत्रों जैसे कृषि निर्यात क्षेत्रों, लघु एवं कुटीर उद्योग, रन व आभूषण उद्योग को बढ़ावा देकर अमेरिका सहित कुछ नये बाजारों में निर्यात बढ़ाने पर जोर दिया गया है। विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाइयों को प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय ब्याज दर पर ऋण देने की घोषणा की गई। निर्यातकों की कारोबारी लागत कम करने के लिए कार्यविधि को सरल बनाने के लिए नया वर्गीकरण लागू किया गया है। इससे वर्गीकरण सम्बन्धी विवादों में कमी होगी और निर्यातकों की कारोबारी लागत घट जाएगी और विलम्ब की मात्रा में भी कमी होगी।
विशेष आर्थिक क्षेत्रों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा में बनाये रखने के लिए पहली बार इन क्षेत्रों में भारतीय बैंकों को विदेशी शाखाएँ खोलने की अनुमति प्राप्त हुई। भारतीय रिजर्व बैंक की अनुमति से इन बैंक शाखाओं को नकदी आरक्षण अनुपात और सांविधिक तरलता अनुपात (S.L.R.) के नियमों से छूट दी गई है। इन शाखाओं से विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाइयों को अन्तर्राष्ट्रीय दरों पर वित्तीय सुविधा मिल सकेगी।
आयात-निर्यात नीति (2002-07) में दसवीं योजना के सकल देशी उत्पाद के 8 प्रतिशत के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2007 तक विश्व व्यापार में 1 प्रतिशत भागोदार प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। विश्व व्यापार में वर्तपान में भारत की भागीदारी 67 प्रतिशत है। दसवीं योजना के अन्त तक निर्यात को बढ़ाकर लगभग दो गुना किया जायेगा अर्थात् निर्यात 80 अरब यू. एस. डालर तक बढ़ाया जाना प्रस्तावित है। सन् 2001-2002 में निर्यात 46 अरब डालर थे, इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निर्यात की 11.9 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त करनी होगी।
कृषि को रोजगारोन्मुखी बनाने के लिए नई आयात-निर्यात नीति में कृषि निर्यात पर विशेष बल देते हुए निर्यात पर परिवहन सहायता देने के अलावा उस पर लगे सभी प्रतिबन्ध हटा दिये। इनमें रूस को निर्यात किये जाने वाले मक्खन, गेहूँ और मूंगफली, तेल तथा काजू पर पंजीकरण एवं पैकिंग की शर्ते खत्म कर दी गई है। फलों, सब्जियों, फूलों, पोल्ट्री उत्पाद एवं दुग्ध उत्पाद के निर्यात पर परिवहन सहायता उपलब्ध कराई जायेगी।
इस नीति में आगे लाइसेंस के तहत शुल्क छूट अहर्ता प्रमाण पत्र को समाप्त करने के अलावा वार्षिक अग्रिम लाइसेंस योजना वापस ले ली गई है। साथ ही निर्यातक किसी भी मूल्य के लिए अग्रिम लाइसेंस सुविधा प्राप्त कर सकते हैं। शुल्क अहर्ता पास-बुक योजना मे मूल्य सीमा को छूट को रखा गया है। इसके अन्तर्गत कुछ अपवादों को छोड़कर दरो को मध्यक अवाध में संशोधित नहीं किया गया है। एक अरब या उससे अधिक के निर्यात सवर्द्धन पूजी वस्तु योजना के लिए लाइसेंस पर 12 वर्ष की निर्यात दायित्व अवधि अनिवार्य होगी।
नये बाजार में प्रवेश के नक्शे को ध्यान में रखते हुए उपसहारा अफ्रीकी क्षेत्रों पर विशेष जोर दिया जायेगा इसके लिए बनाये गये कार्यक्रम के प्रथम चरण में नायजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, मारीशियस, कौनिया, इथोपिया, तन्जानिया और घाना सहित सात देशों में निर्यात बढ़ाने के प्रयास किये जायेगे। इन देशों में 5 करोड़ तक निर्यात करने वाले निर्यातक को (export house) का दरजा दिया जायेगा। नवराष्ट्र कुल देशों के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए आगामी वर्षों में एक विशेष कार्यक्रम शुरू किया जायेगा। अमेरिकी देशों को निर्यात बढ़ाने की योजना 2003 तक जारी की जायेगी।
निर्यात में राज्यों की भूमिका बढ़ाने के लिए 2002-2003 राज्यों के बीच आधार संरचना के विकारण के दृश्य से 330 करोड़ रुपये तवः आबंटित किये जायेगे । रसायन और भौतिक क्षेत्र में सभी कीटनाशक नुस्खो पर शुल्क अहर्ता पास बुक की दर 65 प्रतिशत निर्धारित की गई है। साथ ही बिना किसी सीमा के नुस्खों के निःशुल्क निर्यात की छूट दी गई है। कपड़ा क्षेत्र में तीन प्रतिशत की सीमा में कपड़ों के नमूनों को शुल्क मुक्त कर दिया गया है। साथ ही सभी ब्लेण्डेड कपड़ों पर शुल्क अहर्ता पास बुक की दर की मंजूरी दी गई है।
नई नीति में रत्न एवं आभूपण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए गैर-तराशे हीरो पर सीमा शुल्क को कम करके शून्य कर दिया गया है और इसके लिए लाइसेंस प्रणाली समाप्त कर दी गई है। इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए इस नीति में प्रौद्योगिकी पार्क योजना को संशोधित किया गया है। इससे यह क्षेत्र विश्व व्यापार संगठन के सूचना तकनीकी समझौते के अन्तर्गत शुल्क रहित प्रणाली का सामना कर सकेगा। इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत इकाइयाँ एक वर्ष की जगह पर 5 वर्ष की अवधि में निर्यात की सकारात्मक दर के आधार पर निबल विदेशी मुद्रा को प्राप्त कर सकेगी।
आयात-निर्यात नोति में सभी निर्यात उत्पादों पर ईधन लागत में रियायत दी गई है ताकि ईंधन के बढ़े खर्च के प्रभाव को कम किया जा सके । निर्यात उत्पादों में सबसे अधिक 7% टिकाऊ वस्तुओं, लौह इंजीनियरिंग उत्पादों एवं फैब्रिक परिधानों पर दी गई है।
निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि इस नीति का सकारात्मक दृष्टिकोण अमरीकी एवं अफ्रीका के देशों पर ध्यान केन्द्रित करना है जिससे इन देशों के लिये भारतीय निर्यात को बढ़ावा मिल सके । इस पहल से भारतीय निर्यातक इस उभरते हुए बाजार में प्रवेश कर सकेगे। जिसको अभी तक उपेक्षा की जा रही थी और भारतीय बैंकों को विदेशों में शाखायें खोलने की अनुमति देना, जिसका उद्देश्य भारतीय निर्यातकों को अन्तर्राष्ट्रीय दरों पर वित्त उपलब्ध कराना है। इससे निर्यातकों के लिए उधार की लागत कम हो जायेगी और इस प्रकार वे अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकेंगे।
5 वर्षों की इस आयात निर्यात नीति की प्रमुख विशेषताएँ हैं-
2002-07 की अवधि में देश के वार्षिक निर्यात स्तर को 46 अरब डालर से बढ़ाकर 80 अरब डालर करने का लक्ष्य, इसके लिए निर्यातों में 11.9% प्रतिवर्ष की औसत वृद्धि का लक्ष्य है।
विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 0.67% के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 1.0% (2007) तक करने का लक्ष्य है।
औद्योगिक क्लस्टर्स से निर्यात संवर्द्धन हेतु अतिरिक्त सुविधाएं ।
इलैक्ट्रानिक हार्डवेयर तथा रत्नों एवं आभूषणों के निर्यात संवर्द्धन हेतु विशेष पैकेज। निर्यात बाजार के विस्तार हेतु अफ्रीका पर फोकस ।
संवेदनशील उत्पादों के अतिरिक्त शेष सभी उत्पादों के निर्यातों पर से मात्रात्मक प्रतिबन्धों की समाप्ति।
प्रसंस्कृत फलों व सब्जियों, पोल्ट्री व डेयरी उत्पादों तथा गेहूँ व चावल उत्पादों को ट्रांसपोर्ट सब्सिडी।
विशेष आर्थिक क्षेत्रों में रियायतों में वृद्धि, ऐसे क्षेत्रों में समुद्र पारीय बैंकिंग के तुल्य सुविधाएँ।
एक्सपोर्ट प्रमोशन कैपिटल गुडस (EPCG) व ड्यूटी एंटाइटेलमेन्ट पासबुक योजनाएं अधिक आकर्षण बनाई गई हैं।
काटेज सेक्टर व हैण्डीक्राफ्टस पर विशेष फोकस । इस नीति के क्रियान्वय होने पर जिन विशेषताओं की अपेक्षा सरकार ने की है वह निम्न हैं-
(1) प्रतिबन्धित सूची को बहुत कम कर दिया गया है। सरकार ने 542 पदों के आयात को प्रतिबन्धों से मुक्त कर दिया जिसमें 150 ऐसी मदे शामिल हैं जिनका आयात अब विशेष आयात लाइसेन्सों के माध्यम से करने की अनुमति दी गई। 60 मदों को विशेष आयात लाइसेन्सों की श्रेणी से हटाकर खुले सामान्य लाइसेंस के वर्ग में रखा गया। 5 पदों पर पर्यावरण सुरक्षा, देश की सुरक्षा व्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रतिबन्ध लगाये गये।
(2) पूँजीगत वस्तुओं की निर्यात प्रोत्साहन योजना में संशोधन किये गये। पूँजीगत वस्तुओं पर आयात शुल्क 15% कम करके 10% कर दिया गया। इस योजना के अन्तर्गत 20 करोड़ रुपये या उससे अधिक के आयातों को बिना शुल्क दिये मंगवाने की अनुमति दी गई, परन्तु कुछ निर्यात बाध्यता की शर्ते रखी गई । कृषि व सम्बद्ध क्षेत्रों के निर्यातो के लिए पूँजीगत वस्तुओं की 5 करोड़ रुपये तक बिना आयात शुल्क मंगवाने की सुविधा दी गयी। इससे आशा है कि कृषि क्षेत्र निर्यातों को प्रोत्साहन मिलेगा। इस योजना के द्वारा सेवा उद्योग जैसे अस्पताल, वायुयान द्वारा. माल ढुलाई होटल व अन्य पर्यटन सम्बन्धित सेवाओं को भी शून्य शुल्क का लाभ दिया।
(3) वैलयू बेस्ड एडवांस लाइसेंस तथा पुरानी बुक योजनाओं की जगह पर एक नवीन ड्यूटी एबटाइटलमैंट पासबुक योजना शुरू की गई जिसमें इन दोनों योजनाओं के अच्छे तत्वों का समावेश था और जिसे लागू करना बहुत आसान था।
(4) कृषि समृद्ध क्षेत्रों में कर रही निर्यात उन्मुख इकाइयों तथा निर्यात प्रोसेसिंग क्षेत्रो के लिए घरेलू बिक्री की अनिवार्य शतों में ढील दी गई। इन इकाइयों को यह छूट दी गई कि घरेलू प्रशुल्क क्षेत्र में अपने उत्पादन का 50% तक बिक्री कर सकते है।
(5) सोने के आभूषण और जवाहरात के निर्यातों को प्रोत्साहित करने के दृष्टिकोण से नई नीति में उन एजेंसियो में वृद्धि की गई जो सोने के भण्डार रख सकती हैं। एजेंसियों की संख्या अधिक होने से निर्यातकों को सोने की आपूर्ति ज्यादा आसानी से और अधिक मात्रा में हो सकेगी जिससे आभूषण निर्माण में कोई व्यवधान नहीं होगा।
(6) नई नीति में सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर निर्यातों को प्रोत्साहन देने के लिए कदम उठाए गए है । इलैक्ट्रॉनिक हार्डवेयर उत्पादक अब केवल 50 प्रतिशत उत्पादन का निर्यात कर सकते है और 50 प्रतिशत उत्पादन को घरेलू क्षेत्र में बेच सकते हैं।
(7) इस बात को ध्यान में रखते हुए कि नियमों और कार्यप्रणाली को सरल बनाने की आवश्यकता है. नई नीति में कार्यप्रणाली को पारदर्शी और कम विवेकाधीन बनाने के प्रयास किये गये । उदाहरण के लिए, एडवांस लाइसेंस के द्वारा निर्यात बाध्यता और लाइसेंस को वैधता की अवधि 12 महीने से बढ़ाकर 18 महीने कर दी गई है।
आयात-निर्यात नीति में परिवर्तन व संशोधन-31 मार्च, 2003 को वर्ष 2003-04 के लिए घोषित संशोधित निर्यात-आयात नीति में 12 प्रतिशत विकास दर के द्वारा 50 अरब छूट देते हुए बासमती डालर के निर्यात का लक्ष्य रखा गया । इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नीति में जहाँ निर्यात संवर्द्धन क्षेत्रों विशेष आर्थिक क्षेत्र योजना और शत-प्रतिशत निर्यातोन्मुखी इकाइयों को बड़े पैमाने पर रियायते दी हैं । वही वर्तमान निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं डी. ई० पी० बी० और ई. पी. सी. जी. के प्रावधानों को आसान बना दिया है । सेवा और कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता दते हुए इनको कई तरह की सुविधाओं की घोषणा नीति में की गयी है। इसके साथ ही मात्रात्मक प्रतिबन्ध समाप्त करने की विश्व व्यापार संगठन की शर्ते लागू करने के उद्देश्य से 69 उत्पादों को प्रतिबन्धात्मक सूची से बाहर कर दिया गया है। इनमें पशु उत्पाद, सब्जियाँ एवं मसाले, एण्टीबायोटिक और फिल्म शामिल हैं। वहीं निर्यात पर लगे प्रतिबन्धों में छोड़कर अन्य धान, काटन लिंट, रेयर अर्थ, सिल्क कूकन और कंडोम के अलावा दूसरे फैमिली प्लानिंग उत्पादों के निर्यात पर लगी रोक को भी बन्द कर दिया गया है। खाड़ी देशों पर निर्यात की निर्भरता को कम करने के लक्ष्य से स्वतन्त्र देशों के राष्ट्रकुल देशों को निर्यात बढ़ाने के लिए फोकस सी. आई. एस. कार्यक्रम की शुरूआत की जा रही है। साथ ही रत्न, आभूषण, कपड़ा और कैमिकल जैसे परम्परागत उत्पादों के निर्यात पर जोर जारी रहेगा।
निर्यात-आयात नीति की मुख्य बाते—सेवा क्षेत्र निर्यात पर अधिक जोर स्वास्थ्य चिकित्सा, मनोरजन, पेशेवर सेवाओं एवं पर्यटन को प्रोत्साहन, कृषि निर्यात को प्रोत्साहन के लिए निगमित निवेश पर बल । कृषि निर्यात क्षेत्रों को और सक्षम बनाया जायेगा। आटो कलपुर्जे, रत्न एवं सोने के आभूषणो, औषधि एवं भेषज तथा इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर क्षेत्र पर अधिक ध्यान दिया जायेगा। पाँच वस्तुओं का निर्यात नियन्त्रण मुक्त तेजी से विकास का दर्जा हासिल करने वालों को प्रोत्साहन । ई० पी० सी० जी० योजना और लचीली एवं आकर्षक होगी। सी० बी० ई० सी० तथ डी० सी० एफ. टी. द्वारा पहली बार एक साथ सूचना कारोबारी लागत में कमी के लिए प्रक्रिया का सरलीकरण दर्जाधारकों के लिए वार्षिक अग्रिम लाइसेंस की शुरूआत, निर्यात बाजार’ का विविधीकरण करते हुए । अप्रैल, 2003 से नवराष्ट्रकुल देशो पर अधिक ध्यान 24 दशा तक पहच के लिए अफ्रीका में निर्यात को विस्तार।
प्रश्न 4. आयात प्रतिस्थापन से क्या आशय है? वर्तमान समय में भारत में आयात प्रतिस्थापन मे क्या-क्या समस्यायें हैं एवं दूर करने के लिये सुझाव दीजिये। What do you mean by import substitution? Now-a-days what are The problems of import substitution in India. Suggest measures to Overcome them?
आयात प्रतिस्थापन का अर्थ Meaning of Import Substitution)
आयात एवम् निर्यात विदेशी व्यापार के दो अंग हैं। जब हम विदेशों में बनी हुई वस्तु य सेवा क्रय करते है और उसका उपयोग अपने देश में करते हैं तो इसे आयात कहा जाता जब हम अपने देश में बनी हुई वस्तुयें एवम् सेवायें विश्व के अन्य देशो को भेजते हैं तो से निर्यात कहा जाता है ! हम जो भी आयात करते हैं, उसका भुगतान हमें रुपयों में विदेशी ‘द्रा के रूप में करना होता है और हम जो भी निर्यात करते हैं, उनका भुगतान हमें प्राप्त होता ।। कल नियो त एवम् कुल आयात का अन्तर व्यापार शेष कहलाता है। प्रत्येक देश की यह इच्छा रहती है कि उसके निर्यात अधिक हों और आयात कम हों ताकि उसका व्यापार शेष अनुकूल रह सक परन्तु यह सभी देशों एवम स्थितियों में सम्भव नहीं है। विशेषररूप से विकासशील देशों के आयात अधिक होते हैं और निर्यात कम। यह बात भारत पर भी लागू होती है । स्वतन्त्रता प्राप्ति से लेकर अभी तक के 60 वर्षों में दो तीन वर्षों को छोड़कर यही कहानी दोहराई जाती रही है। भारत जैसे सभी देशों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे अपने आयातों में यथासम्भव कमो करें और निर्यातों में यथा सम्भव वृद्धि को ताकि उनको यह समस्या समाप्त हो सके। इन देशों का यह प्रयास रहता है कि वे जिन वस्तुओं एवम् सेवाओं का आयात करते हैं, उनका उत्पादन देश में ही प्रारम्भ किया जाये ताकि उनका व्यापार सन्तुलन अनुकूल हो सके और उन्हें विदेशों पर अधिक निर्भर न रहना पड़े। इन प्रयासों को हो आयात प्रतिस्थापन के प्रयास कहा जाता है।
आयात प्रतिस्थापन के मार्ग में समस्याएँ
(Problems in the way of Import Substitution in India)
भारत एक विकासशील देश है और तीव्र आर्थिक विकास के मार्ग पर अग्रसर है। इस कारण भारत को विदेशों से भारी मात्रा में वस्तुओं एवम् सेवाओं का आयात करना पड़ता है। यद्यपि भारत सरकार प्रारम्भ से ही आयतों को न्यूनतम करने की दिशा में प्रयत्नशील है, तथापि इस मार्ग में अनेक ऐसी बाधायें है कि वे प्रयास अभी तक सफल नहीं हो पाये हैं। इस मार्ग को कुछ प्रमुख बाधायें निम्न प्रकार हैं-
(1) कुछ क्षेत्रों में प्राकृतिक साधनों का अभाव-प्रत्येक देश एवम् समाज को ऐसी अनेक वस्तुओं को आवश्यकता होती है जो प्रकृति द्वारा प्रदान की जाती है । यद्यपि प्राकृतिक साधनों के दृष्टिकोण से भारत एक धनी देश है और प्रकृति ने भारत को प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक साधन दिए हैं तथापि कुछ साधनों का हमारे देश में अभाव है और इसे पूरा करने के लिए हमें भारी मात्रा में आयात करना पड़ता है। उदाहरण: पैट्रोलियम उत्पाद के आयात पर होने वाला भारी व्यय इसी समस्या का उदाहरण है।
(2) तकनीक का अभाव कुछ क्षेत्रों में प्रर्याप्त तकनीक उपलब्ध न होने के कारण भी हम आयात पर भारी विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है। उदाहरण : यूरेनियम उत्पाद ।
(3) सुरक्षा उपकरणों का आयात-भौगोलिक दृष्टिकोण से हमारा देश इस प्रकार से घिरा है कि हमें अपनी सुरक्षा के बहुत अधिक प्रबन्ध करने होते हैं। सुरक्षा के लिए आवश्यक अनेक उपकरणों एवम् गोला-बारूद का आयात करना आवश्यक हो जाता है। हुआ
(4) चिकित्सा उपकरणों का आयात-स्वस्थ शरीर, आर्थिक विकास की पहली आवश्यकता मानी जाती है। चिकित्सा के क्षेत्र में नित नये प्रयोगों एवम् अनुसंधानों के द्वारा विश्व के विभिन्न देशों में जो प्रगति हो रही है । उसका लाभ उठाने के लिए हमें अनेक उपकरण, तकनीक एवम दवाइयों का आयात करना पड़ता है ।
(5) बढ़ती हुई जनसंख्या-आयात प्रतिस्थापन के मार्ग में आने वाली सबसे महत्वपूर्ण वाधा हमारे देश की निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या है । जनसंख्या में इतनी तेजी से वृद्धि हो रही है कि उसकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हमें भारी मात्रा में आयात करना पड़ता है। कई बार तो हमें खाने-पीने की चीजों का भी आयात करना पड़ता है।
(6) अनुसंधान का निम्न स्तर-हमारे देश में अनुसंधान एवम् विकास की उतनी सुविधायें नहीं है जितनी की इतने बड़े देश में आवश्यकता होती है। . .