BCom 1st Year Business Communication Oral Presentation Study Material Notes in Hindi : Purposes of Oral Presentation Principles of Oral Presentation Process of Oral Presentation Sales Presentation Steps of Training Presentation Survey Object of Survey Process of Planing for Survey Steps of survey Methods of Survey Meaning of Speech Guidelines For Prepairing a Speech Speech For Motivation Examination Important Questions Long Answer Questions Short Answer Questions :
मौखिक प्रस्तुतीकरण
(Oral Presentation)
समस्त सम्प्रेषण या तो शाब्दिक होते हैं या मौखिक। प्रत्येक व्यक्ति अपनी दिनचर्या का अधिकांश। भाग मौखिक सम्प्रेषण में ही व्यतीत करता है। मौखिक सम्प्रेषण एक कौशल है जो चिन्तन, मनन, अनुभव एवं लगन के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। मौखिक सम्प्रेषण अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। कोई भी व्यक्ति मौखिक सम्प्रेषण के द्वारा अपना एवं अपनी संस्था दोनों का विकास कर सकता है।
प्रत्येक व्यक्ति तथा संस्था के लिये मौखिक प्रस्तुतीकरण अपरिहार्य है। किसी भी संस्था में बिना मौखिक संचार के कार्य नहीं चल सकता है। मौखिक संचार की क्रिया को ही मौखिक प्रस्तुतीकरण कहा। जाता है। व्यावसायिक अधिशासियों (Business Executives) को बहुत सी मौखिक प्रस्तुतियाँ अलग-अलग अवसरों पर देनी होती हैं। प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण के लिये कार्य नीति तैयार करनी होती है तथा अच्छी विषय वस्तु के साथ सामग्री का संग्रह कर संगठित करना होता है। एक व्यवसायी का मौखिक सम्प्रेषण कुशलता में दक्ष होना अत्यन्त आवश्यक होता है। किसी व्यवसाय की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसका स्वामी तथा प्रबन्धक अपने ज्ञान, विचार एवं अनुभव को अन्य लोगो में सम्प्रेषित करने में कितना सफल रहता है।
Business Communication Oral Presentation
श्रोताओं के लिये पहले से ही तैयार किये गए भाषण को प्रस्तुत करना भी मौखिक प्रस्तुतीकरण कहलाता है। इसमें एक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के सम्मुख पूर्व निश्चित विषय को अपने शब्दों में व्यक्त करता है। व्यावसायिक उपक्रमों में दिन-प्रतिदिन जो संचार होता है उसमें एक बड़ा भाग मौखिक प्रस्तुतीकरण का ही होता है। एक श्रेष्ठ मौखिक प्रस्तुतीकरण एक भाषण से कहीं अधिक होता है। श्रेष्ठ प्रस्तुतीकरण के द्वारा श्रोता तथा प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य दोनों ही पूर्णत: सन्तुष्ट होने चाहिये। एक श्रेष्ठ प्रस्तुतीकरण में उपयुक्त विषय सामग्री होनी चाहिए तथा यह प्रभावी तरीके से संगठित होनी चाहिए।
प्राय: लोग यह देख कर दूसरों का मूल्यांकन करते हैं कि वे कैसे बोलते हैं। व्यक्ति की आवाज तथा उसका बोलने का ढंग दूसरों को प्रभावित करता है। एक व्यक्ति क्या अनुभव कर रहा है, यह उसके बोलने के ढंग से स्पष्ट हो जाता है। बोलने के ढंग से व्यक्ति की पारिवारिक, सामाजिक, निवासीय, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक पृष्ठभूमि का भी परिचय मिलता है।
“नई तकनीकों की खोजों के बावजद, निजी मेल मिलाप, जो आमने सामने की सभा में होता है, सम्पूर्ण मानवीय क्रिया का आवश्यक अंग है। सभाएँ भी महान समय शिक्षक हैं जिनमें लोग ये अनुभव करके सीखते हैं कि उन्होंने अभी कुछ भी प्राप्त नहीं किया।“
Business Communication Oral Presentation
–ईलीन शोल्ज मौखिक प्रस्तुतीकरण के उद्देश्य
(Purposes of Oral Presentation)
मौखिक प्रस्तुतीकरण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1 जानकारी देना (To Inform)-प्रस्तुतीकरण का मूल उद्देश्य श्रोताओं को नई योजनाओं, सुझावों, नए उत्पादों आदि के बारे में जानकारी देना व शिक्षित करना होता है। प्रशिक्षण प्रस्तुतियों का मूल उद्देश्य नए कर्मचारियों को संगठन की नीतियों तथा विधियों के बारे में जानकारी देना होता है। विक्रय प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य श्रोतागण को उत्पाद के गुणों जो उनके लिये लाभप्रद हैं के बारे में जानकारी देने से होता है।
2. प्रेरित करना (To Persuade)-प्रस्तुतीकरण का एक विशेष उद्देश्य श्रोताओं से किसी खास ढंग से कार्य कराना व विश्वास दिलाना है, जैसे विक्रय प्रस्तुतियाँ क्रेता को उत्पाद खरीदने के लिए। सहमत करती हैं।
प्रस्तुतीकरण का एक अन्य उद्देश्य श्रोताओं का मनोरंजन करना भी होता है, इसलिए प्रस्तुति के अन्त या मध्य में, चुटकले सुना कर अथवा अन्य प्रकार। से श्रोताओं का मनोरंजन किया जाता है।
मौखिक प्रस्तुतीकरण के सिद्धान्त
(Principles Of Oral Presentation)
मौखिक प्रस्तुतीकरण के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं
(1) निश्चित उद्देश्य का सिद्धान्त प्रस्तुतीकरण का एक निश्चित उद्देश्य होना चाहिए। एक निश्चित उद्देश्य के अभाव में प्रस्तुतीकरण अप्रभावी रहता है। अत: सबसे पहले यह निश्चित करना होता है कि प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य श्रोताओं को सूचना देना है, प्रोत्साहित करना है या मनोरंजन करना है। प्रस्तुतकर्ता के मन में प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य अत्यन्त स्पष्ट एवं निश्चित होना चाहिए।
(2) विश्वास का सिद्धान्त-एक प्रस्तुतीकरण प्रक्रिया में प्रस्तुतकर्ता व श्रोताओं में विश्वास का होना नितान्त आवश्यक है। यदि प्रस्तुतकर्ता को स्वयं पर विश्वास होगा, तभी श्रोता उस पर विश्वास करेंगे। जैसे-जैसे प्रस्तुतीकरण का समय गुजरता है, वैसे-वैसे प्रस्तुतकर्ता अपने श्रोताओं का विश्वास अर्जित करता जाता है। विश्वास को जाग्रत करने के लिए प्रस्तुतीकरण का पूर्वाभ्यास कर लेना चाहिए। यदि श्रोताओं का विश्लेषण कर लिया जाये तो प्रस्तुतकर्ता में विश्वास जाग्रत होता है। ।
(3) स्पष्टता का सिद्धान्त-मौखिक प्रस्तुतीकरण में वक्तव्य का अर्थ तथा भाषा स्पष्ट होनी चाहिए तभी श्रोतागण उसका वही अर्थ लगायेगे जो प्रस्तुतकर्ता ने सोचा है। तकनीकी, कठिन व दो अर्थी शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(4) यथार्थता का सिद्धान्त-एक प्रस्तुतकर्ता को यथार्थपरक होना चाहिए क्योंकि श्रोता इस बात का आकलन पहले करता है। यथार्थता दृढ़ विश्वास के लिए महत्त्वपूर्ण होती है। यदि प्रस्तुतकर्ता अपने वक्तव्य को यथार्थता से नहीं लेगा तो श्रोता भी यथार्थपरक नही होंगे।
(5) सूचनाओं में स्त्रोत का सिद्धान्त-प्रस्तुतीकरण में प्रयोग की जाने वाली सूचनाओं का स्त्रोत विश्वसनीय होना चाहिए तथा स्त्रोत के विषय में श्रोताओं को बताया जाना चाहिए ताकि उनका विश्वास बढ़ सके।
(6) ध्यानाकर्षण का सिद्धान्त–प्रभावी प्रस्तुतीकरण के लिये श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करके रखना अत्यन्त आवश्यक होता है। प्रत्येक व्यक्ति उन्हीं बातों में रुचि लेता है जो उसे व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करती हैं। अत: श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करने के लिये यह आवश्यक है कि विषय को श्रोताओं की आवश्यकताओं के अनुसार ढाला जाए। साथ ही स्पष्ट रूचिकर भाषा व सटीक उदाहरणों के द्वारा भी श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है।
(7) पूर्वाभ्यास का सिद्धान्त-प्रस्तुतीकरण के मुख्य विचार का चयन पहले से ही कर लेना चाहिए और उसे श्रोताओं को बताने से पहले उसका पूर्ण अभ्यास कर लेना चाहिए। इससे श्रोताओं का विश्वास भी बढ़ेगा और प्रस्तुतीकरण में सुविधा भी रहेगी।
(8) साख बनाने का सिद्धान्त-प्रस्तुतकर्ता को श्रोताओं के समक्ष अपनी साख बनाने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि तभी श्रोताओं का संदेश पर विश्वास उत्पन्न होगा। इसके लिये आवश्यक है कि प्रस्ततकर्ता श्रोताओं को अपनी पृष्ठभूमि, योग्यताओं व योगदान से अवगत कराए।
(9) शोध का सिद्धान्त-शोध के सिद्धान्त के अनुसार अपने केन्द्रीय विचार के समर्थन के लिये आपके पास पर्ण तथ्य, सूचना तथा अन्य सामग्री होनी आवश्यक है। प्रस्तुतीकरण के विषय से सम्बन्धित सचनाओं आँकड़ों एवं अन्य तथ्यों को एकत्रित करना चाहिए जिससे कुछ नये विचारों को भी मुल विचारों से जोड़ा जा सके।