Bcom 1st year Group Discussion notes
समूह चर्चा (Group Discussion)
प्रबन्धन संस्थान, नौकरियों की तलाश कर रहे विद्यार्थियों की सम्प्रेषणशीलता या कम्युनिकेटिव जाँच करने के लिए सामूहिक परिचर्चा के सशक्त माध्यम हैं। आज के प्रतियोगितात्मक एवं प्रतिस्पर्धात्मक युग में विभिन्न सहयोगियों के बीच सम्प्रेषण के महत्त्व को समझते हुए विभिन्न प्रबन्धन संस्थान तथा प्रयत्नकर्ता लिखित परीक्षा और व्यक्तिगत साक्षात्कार के अलावा सामूहिक परिचर्चा परीक्षण का सहारा लेकर योग्य आवेदनकर्ताओं का चयन करते हैं। अतः स्पष्ट है कि समूह चर्चा में एक समस्या या नीतियों पर मौखिक चर्चा करके निष्कर्ष प्राप्त किया जाता है।
समूह चर्चा के मूल उद्देश्य
(Fundamental Objectives of the Group Discussion)
नियो के मध्य जो वार्तालाप का संचार होता है, उसमें विशिष्ट कौशल के तत्त्वों ‘ का समावेश कर वात्तो का तकसगत रूप प्रदान किया जा सकता है। इसी को
कहा गया है। आदिकाल से ही मानव का दूसरे मानव के साथ यह वार्ता-कौशल जारी है।
वा के दौर में इस कौशल ने नए आयामों का स्पर्श किया है। मित्र-मित्र, गुरु-शिष्य, पति-पत्नी. मालिक-नौकर के बीच विचार-विमर्श ही वार्तालाप है। यह साझे का सौदा है, वस्ता-श्रोता के बीच सहमति है। वक्ता सदैव श्रोता की मनःस्थिति, अभिरुचि और इच्छा के अनरूप ही अपनी बातें रखता है। श्रोता उठने लगे, कतराने लगे, अनायास चुटकी लेने लगे तो वक्ता असफल है। श्रोता से तालमेल बैठाकर ही विचार-विनिमय के मूल उद्देश्य की प्राप्ति हो सकती है। अध्ययन की दृष्टि से समूह चर्चा के निम्नलिखित उद्देश्य हैं
(1) समूह चर्चा का लक्ष्य विचारों/आदर्शों की प्रस्तुति व इस सम्बन्ध में प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करना होता है जिससे आगे की जिज्ञासा प्रकट होती है, जो पुनः प्रश्न और प्रतिप्रश्न पूछने का निमित्त बनती है।
(2) समूह चर्चा में विभिन्न रचनात्मक विचारों के द्वारा समस्या का सम्यक् निदान ढूँढ़ा जाता है।
(3) निर्णय प्रक्रिया में विशिष्ट प्रकार के व्यक्ति सम्मिलित होते हैं, अतः समूह चर्चा में इन विशिष्ट व्यक्तियों के द्वारा निर्णय दिए जाते हैं। इस प्रकार की समूह चर्चा के लिए स्पष्ट व रचनात्मक भाषा होती है।
समूह चर्चा के समय अपनाया जाने वाला आचारशास्त्र
(Behaviour to be Adopted at the Time of Group Discussion)
समूह चर्चा श्रम की विशिष्टता को जन्म देती है क्योंकि इसमें एक अच्छे उद्देश्य की पूर्ति के लिए विभिन्न विषयों में पारंगत व्यक्ति अपने अनुभवों, विचारों, आदर्शों के माध्यम से सहयोग देते हैं। समूह चर्चा में भाग लेने वाले व्यक्तियों का विशेष महत्त्व होता है, अत: इसके सहभागी सदस्यगणों की उपादेयता असंदिग्ध है। इनकी निश्चित सोच का अनुगामी होने से विश्वसनीयता को बढ़ाने में सफलता प्राप्त होती है। समूह चर्चा में प्राय: निम्नलिखित कार्य-व्यापार को व्यावहारिक रूप प्रदान किया जाता है
- कृत्यक आचरण (Task Behaviour)
- अनुरक्षण आचरण (Maintenance Behaviour) ,
- आत्मनिर्देशित आचरण (Self-directed Behaviour)।
1. कृत्यक आचरण (Task Behaviour)-
इसमें उपलब्ध सूचनाओं का विश्लेषण, ज्ञान-स्रोतों का विश्लेषण, समस्याओं को परिभाषित करना, प्रस्तावों का निर्माण, सफलता की कसौटियों की स्थापना, हल को परिभाषित करना, अच्छे हल के लिए स्वीकति मूल्यांकन व संक्षिप्तीकरण सम्मिलित होता है।
2. अनुरक्षण आचरण (Maintenance Behaviour)-
अनुरक्षण आचरण में भागी इस चर्चा में कैसा महसूस कर रहे हैं इस बात को जाना जाता है। इसमें बैठक को कर प्रबन्धित करना है, कौन किसको प्रभावित करता है, कौन किससे बात करता है, कौन हिस्सा है रहा है, कौन और क्यों, एक-दूसरे के प्रस्ताव का समर्थन, सुरक्षा, प्रोत्साहन, तनाव को कम करना व प्रतिपुष्टि (Feedback) देना समाहित होते हैं।
3. आत्मनिर्देशित आचरण (Self-directed Behaviour)-
चर्चा के दौरान उद्देश्यों की प्राप्ति के ढंग का इसके अन्तर्गत विवेचन किया जाता है जैसे वार/प्रतिवार, सुरक्षात्मक व्यवहार, एक-दूसरे के प्रस्तावों पर असहमति, प्रतियोगिता की पहचान या स्वीकृति सहभागिता की अस्वीकृति इत्यादि इसमें समाहित होते हैं।
एक सफल समूह चर्चा की अनिवार्य शर्ते
(Essential Conditions for a Success Group-discussion)
(1) समूह चर्चा में सम्मिलित व्यक्तियों को चर्चा के उद्देश्य/लक्ष्य के प्रति जागरूक रहकर उसके अनुकूल क्रियाशील रहना चाहिए।
(2) समूह चर्चा में इस प्रकार का वातावरण निर्मित होना चाहिए कि प्रत्येक विचार/ आदर्श को अनुकूल व रचनात्मक आलोचनाओं के साथ सुना जाए व प्रोत्साहित किया जाए।
(3) एक समूह चर्चा विभिन्न रुचि व कुशलता वाले व्यक्तियों के विचारों/आदर्शों के संयोजन द्वारा होनी चाहिए।
यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि सामूहिक चर्चा का व्यावसायिक सम्प्रेषण के क्षेत्र में अति विशिष्ट स्थान निर्धारित हो चुका है। किसी भी व्यावसायिक संगठन की वृद्धि के परिप्रेक्ष्य में इसकी उपादेयता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
संगोष्ठी (Seminar)
संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का वितरण एवं समान ज्ञानी सदस्यों के मध्य अपने-अपने विचारों के प्रस्तुतीकरण से है। सामान्यतः वक्ता एक विशिष्ट विषय पर अपने ज्ञान को विस्तारित कर अपने विचार प्रस्तुत करता है। अन्य सहभागी सदस्य वक्ता के वक्तव्य पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति के अतिरिक्त वाद-विवाद भी करते हैं।
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