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Bcom 1st Year Main Principles of Effective Communication

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Bcom 1st Year Main Principles of Effective Communication

प्रभावी सम्प्रेषण के मुख्य सिद्धान्त (Main Principles of Effective Communication)

व्यावसायिक सूचनाओं एवं सन्देशों के आदान-प्रदान में जिन महत्व .. सिद्धान्तों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है, वे निम्नवत हैं 

1. स्पष्टता (Clarity)

प्रभावशाली सम्प्रेषण के लिए यह आवश्यक है कि एव उच्चारण स्पष्ट हाना चाहिए, जिससे सम्बन्धित व्यक्ति सन्देश को चली समो जिस रूप व अर्थ में सन्देश को प्रसारित किया गया है। स्पष्टता के अन्तर्गत समेत व्यवस्था में निम्नलिखित बातें आवश्यक होती हैं 

(i) अभिव्यक्ति की स्पष्टता-

सन्देशग्राही को यह स्पष्ट होना चाहिए कि सन्देश-प्रेषक से किस प्रकार सन्देश लिया जाए। सेना में ‘कोड’ शब्द प्रचलित हैं, अत: दोनों पक्षों के मध्य कोट स्पष्ट होने चाहिए। शब्दों के चयन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए 

(a) निश्चित एवं स्पष्ट अभिव्यक्ति का प्रयोग होना चाहिए।

(b) सरल शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।

(c) निवारक रूपों को प्राथमिकता देनी चाहिए। 

(ii) विचारों की स्पष्टता-

सन्देश देने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क में जैसे ही विचार आता है तभी सन्देशकर्ता को स्वयं सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि

(a) सम्प्रेषण की सामग्री क्या है,

(b) सम्प्रेषण का उद्देश्य क्या है,

(c) सम्प्रेषण के उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए संचार का कौन-सा माध्यम उपयुक्त होगा। 

(iii) अपरिमित रूप का प्रयोग न करना-

अपरिमित रूप का प्रयोग सन्देश को औपचारिक बना देता है; जैसे कैशियर का कर्तव्य है कि वेतन का भुगतान करे। 

अपरिमिता कैशियर वेतन का भुगतान करता है। 

(iv) सन्देहात्मक शब्दों का प्रयोग न करना–

यदि किसी सन्देश का अर्थ स्पष्ट नहीं है तो सन्देश का प्रयोग करना उचित न होगा; जैसे 

“गाड़ी रोको मत जाने दो” इसके दो अर्थ निकलतेहैं

(a) गाड़ी रोको, मत जाने दो। अथवा (b) गाड़ी रोको मत, जाने दो। 

(v) निरर्थक शब्दों का प्रयोग न करना—निरर्थक शब्दों का अर्थ स्पष्ट न होने के कारण इनका प्रयोग उचित नहीं है; जैसे 

We beg to, this is to acknowledge, at all time, at the presentantes 

2. पूर्णता ( स्यावसायिक सम्प्रेषण Completeness)-

यह सम्प्रेषण का दूसरा महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। या सदैव अपने आप में पूर्ण होना चाहिए। पूर्णता में निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है– (i) सन्देश भेजने का कारण क्या है, (ii) सन्देश क्या है, (iii) सन्देश किसको भेजा जा रहा है, (iv) सन्देश किस स्थान पर भेजा जा रहा है, सन्देश कब तक पहुँचना है और कब भेजा गया।

3. संक्षिप्तता (Conciseness)-

सन्देश में निरर्थक एवं अनावश्यक शब्दों का प्रयोग दससे सन्देश-प्रेषक व सन्देशग्राही दोनों का समय बचता है। प्रेषक का यह प्रयास कि सन्देश छोटा हो और उसमें सभी बातों का समावेश हो, अर्थात् सन्देश में कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक बातों का समावेश हो:

4. प्रतिफल (Consideration)-

सन्देशग्राही को यह पता होना चाहिए कि सन्देश के प्रत्युत्तर में वह क्या भेजना चाहता है। प्रतिपुष्टि में निम्नलिखित बातों का होना अति आवश्यक है 

(i) सन्देश में विश्वसनीयता का होना अनिवार्य है क्योंकि इससे व्यक्ति के विश्वास व उसके चरित्र का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। इससे सन्देश की प्रामाणिकता बढ़ जाती है। 

(ii) सन्देश प्रभावपूर्ण होना चाहिए। सन्देशग्राही तभी प्रत्युत्तर देगा जब उसे उसके पक्ष की स्पष्ट नीति की जानकारी हो। ‘आप’ पर विशेष ध्यान देना चाहिए। ‘मैं’ और ‘हम’ शब्दों का कम-से-कम प्रयोग होना चाहिए। 

5. नम्रता (Courtesy)-

नम्र व्यवहार से ही, व्यवहार में नम्रता प्राप्त होती है। व्यावसायिक सन्देश की भाषा जितनी विनम्र होगी, सन्देशग्राही पर उतना ही अनुकूल प्रभाव पड़ता है। नम्रता के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए 

(i) सन्देश में किसी भी प्रकार की उत्तेजनात्मक अभिव्यक्ति नहीं होनी चाहिए।

(iii) किसी भी त्रुटि के लिए शीघ्र क्षमा माँग लेना या खेद प्रकट करना लाभप्रद होता है।

(iii) उदारता व धन्यवाद सन्देश का प्रमुख हिस्सा होते हैं, इसे सदैव ध्यान में रखना चाहिए। 

6.शुद्धता (Correctness)-

शुद्धता के सन्दर्भ में सन्देश में अग्रलिखित बातों को 

(i) सही समय पर सन्देश भेजना-कार्य पूर्ण होने के उपरान्त सन्देश निरर्थक हो जाता है, अत: उचित समय पर सही सन्देश भेजना उत्तम होता है। 

(ii) सही तथ्य देना-सन्देश प्रेषक को सन्देश में सही तथ्य देने चाहिए और उसकी भाषा सही व सुगम हो। 

7. समग्रता (Integrity)

यदि संगठन के उद्देश्यों में समग्रता की निश्चितता विद्यमान हो तो संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करना सरल हो जाता है। संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए तथा प्रबन्धकों व कर्मचारियों के मध्य सहकारिता, सहयोग व सुरक्षा की भावना बढ़ाने का सम्प्रेषण एक महत्त्वपूर्ण यन्त्र है। एक संगठन में प्रबन्ध के विभिन्न स्तर होते हैं; जैसे –

(i) महाप्रबन्धक,

(ii) उपमहाप्रबन्धक,

(iii) विभागीय प्रबन्धक,

(iv) प्रवर अधिकारी,

(v) पर्यवेक्षक। 

यदि सर्वप्रथम महाप्रबन्धक किसी सन्देश को प्राप्त करता है और फिर उसका आदेश उपमहाप्रबन्धक के जरिए पर्यवेक्षक के पास पहुँचता है, तो यह प्रक्रिया गलत है। चूंकि महाप्रबन्धक का कोई भी आदेश उपमहाप्रबन्धक से होते हुए विभागीय प्रबन्धक और प्रवर अधिकारी से होते हुए पर्यवेक्षक के पास पहुँचना चाहिए। 

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