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BCom 2nd year cost Accounting Unit output costing method study materials notes in Hindi

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इकाई अथवा उत्पादन लागत निर्धारण विधि

(Unit or Output Costing Method)

लागत लेखांकन का एक प्रमुख उद्देश्य उत्पादन की कुल लागत एवं प्रति इकाई लागत ज्ञात करना है। विभिन्न प्रकार के उत्पादों एवं सेवाओं की लागत निर्धारण के लिए लागत निर्धारण की विभिन्न विधियाँ प्रयोग की जाती हैं जिनका वर्णन प्रथम अध्याय में किया गया है। इकाई अथवा उत्पादन लागत निर्धारण विधि भी उनमें से एक है। इस विधि को एकल लागत पद्धति (Single Costing Technique) कहते हैं। लागत निर्धारण की इस पद्धति का प्रयोग मुख्यत: उन संस्थाओं में किया जाता हे जहां सामान्यत: एक ही प्रकार की प्रमापित वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है, उत्पादन की इकाई एक-सी होती है तथा उत्पादन भी एक ही पद्धति से किया जाता है। उदाहरणार्थ, चीनी उद्योग, वस्त्र उद्योग, सीमेण्ट उद्योग, कोयला खान तथा ईंटों के भट्टे, आदि उद्योग इस विधि का प्रयोग करते हैं।

इकाई अथवा उत्पादन लागत निर्धारण विधि का अर्थ एवं परिभाषा
(That means and Definitions of Unit or output Costing )

 इकाई अथवा उत्पादन लागत निर्धारण विधि लागत लेखांकन की एक ऐसी विधि है जिसके अन्तर्गत एकरूप या एक समान (An identical) निर्मित वस्तुओं की कुल उत्पादन लागत एवं प्रति इकाई उत्पादन लागत ज्ञात की जाती है। इसीलिए इसे इकाई अथवा उत्पादन लागत निर्धारण विधि कहते हैं। वस्तुत: इस पद्धति के अन्तर्गत प्रति इकाई लागत ज्ञात करने के। साथ-साथ कुल लागत को विभिन्न स्तरों के अन्तर्गत प्रदर्शित किया जाता है। प्रथम स्तर में प्रत्यक्ष सामग्री, प्रत्यक्ष मजदूरी तथा अन्य प्रत्यक्ष व्ययों को दर्शाते हैं। इन तीनों के योग को मूल लागत (Prime Price)कहते हैं। द्वितीय स्तर में कारखाना उपरिव्ययों (Manufacturing unit Overheads) को दिखाते हैं। ये वे व्यय हैं जो उत्पादन कार्य हेतु कारखाने के अन्दर और उत्पादित वस्त के कारखाने के बाहर जाने के पूर्व किये जाते हैं। मूल लागत और कारखाना उपरिव्यय के योग को कारखाना लागत (Works Price) कहते हैं। इसके पश्चात् तृतीय स्तर में कार्यालय उपरिव्यय (Workplace Overheads) आते हैं। कारखाना लागत और कार्यालय उपरिव्यय के योग को उत्पादन लागत (Price of Manufacturing) या कार्यालय लागत (Workplace Price) कहते हैं। इस उत्पादन लागत में विक्रय एवं वितरण के व्यय (Promoting and Distribution bills) जोड़ देने पर कुल लागत (Complete Price) ज्ञात हो जाती है। कुल लागत को उत्पादन का विक्रय मूल्य नहीं कहा जा सकता। विक्रय मूल्य, कुल लागत एवं लाभ का योग होता है। इनका विस्तृत वर्णन पीछे ‘लागत के तत्व’ वाले अध्याय में कर चुके हैं। इकाई अथवा उत्पादन लागत निर्धारण विधि की मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

हेरोल्ड जे० ह्वेलडन के अनुसार “उत्पादन लागत लेखांकन या इकाई लागत लेखांकन, लागत निर्धारण की एक ऐसी रीति है जो उत्पादन की इकाई पर आधारित है, जहाँ निर्माण कार्य निरन्तर होता है तथा यह इकाइयाँ समान प्रकार की होती है या उन्हें अनुपातों द्वारा एकसमान बनाया जा सकता है।”

जे० आर० बाटलीबॉय के अनुसार, “इकाई अथवा उत्पादन लागत प्रणाली का प्रयोग उस व्यवसाय में किया जाता है जो केवल प्रमापित वस्तु का उत्पादन करते हैं और उत्पादन की एक आधारभूत इकाई की लागत ज्ञात करनी हो।”

वाल्टर डब्ल्यू० बिग के अनुसार “जहाँ एक ही प्रकार की वस्तुएँ, जिन्हें किसी परिमाण या इकाई के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, उत्पादित की जाती हैं, इस प्रकार की रीति का प्रयोग किया जाता है।

उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन से स्पष्ट है कि इस विधि का प्रयोग उन्हीं उद्योगों में किया जाता है जहाँ(i) उत्पादन कार्य निरन्तर चलता हो।

(ii) उत्पादन को सुविधाजनक भौतिक इकाई (Bodily unit) में मापना सम्भव हो; जैसे, प्रति टन, प्रति किलोग्राम, प्रति मीटर, प्रति गैलन, आदि।

(iii) एक ही प्रकार की वस्तु का उत्पादन किया जाता हो या एक ही वस्तु की विभिन्न किस्मों का उत्पादन किया जाता हो।

(iv) उत्पादन की इकाइयाँ एकसमान हों या अनुपात के आधार पर उन्हें समान बनाया जा सक

(v) उत्पादित वस्तु की प्रति इकाई लागत ज्ञात करनी हो।

 

उपयुक्त उद्योगों के नाम व इकाई (Title and Price Unit of Particular Industries)यह तो स्पष्ट ही कि यह पद्धति कुछ विशिष्ट उद्योगों के लिए ही उपयुक्त है। ऐसे प्रमुख उद्योग एवं उनसे सम्बन्धित लागत इकाई निम्न प्रकार हैं ।

उद्योग का नाम                                                     लागत इकाई

(1) वस्त्र उद्योग                                                    प्रति मीटर

(2) ईंट उद्योग                                                       प्रति 1,000 ईट

(3) दुग्ध उद्योग                                                     प्रति लिटर

(4) कागज उद्योग                                                प्रति रिम या प्रति किलोग्राम

(5) चीनी उद्योग                                                  प्रति क्णिवण्टल

(6) सीमेण्ट उद्योग                                               प्रति टन

(7) कोयला उद्योग                                                प्रति टन

(8) शराब उद्योग                                                 प्रति बैरल

(9) खान उद्योग                                                  प्रति टन

(10) स्टील उद्धोग                                                 प्रति टन

इकाई लागत लेखांकन के उद्देश्य (Objects of Unit Costing)

(1) निश्चित अवधि में उत्पादित वस्तुओं की कुल लागत तथा प्रति इकाई लागत ज्ञात करना।

(2) कुल लागत को विभिन्न स्तरों के आधार पर प्रदर्शित करना।

(3) लागत की तलनात्मक जानकारी प्रस्तुत कर परिवर्तन के कारण ज्ञात करना।

(4) लागत के प्रत्येक तत्व का कुल लागत से प्रतिशत ज्ञात करना।

(5) विक्रय मूल्य व टेण्डर मूल्य का निर्धारण।

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लागत संग्रहण

(Price Assortment)

जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है कि इस पद्धति को केवल उन्हीं उद्योगों द्वारा अपनाया जाता है जिनमें एक ही प्रमापित वस्तु का उत्पादन किया जाता है। अत: व्ययों के अनुभाजन व विश्लेषण (Apportionment and Evaluation) की समस्या उत्पन्न । नहीं होती है, क्योकि समस्त व्यय उसी वस्तु से सम्बन्धित होते हैं। कुल लागत को प्रत्यक्ष सामग्री, प्रत्यक्ष श्रम, प्रत्यक्ष व्यय व उपरिव्यय शीर्षकों के अन्तर्गत वर्गीकृत व विश्लेषित कर दिया जाता है। परन्तु जब संस्था द्वारा एक ही वस्तु विभिन्न आकारों या विभिन्न किस्मों में बनाई जाती हो तो प्रत्येक किस्म व प्रत्येक आकार की वस्तु पर होने वाले व्ययों की कुल राशि अलग-अलग ज्ञात करना आवश्यक हो जाता है तथा इसके लिए निश्चित अवधि में हुए खर्चों को उचित आधार पर अनुभाजित किया जाता है तथा उनका विस्तृत विश्लेषण भी करते हैं। व्ययों के विस्तृत विश्लेषण को सरल बनाने के लिए वित्तीय लेखे इस प्रकार रखे जाते हैं कि साप्ताहिक, मासिक, अर्धवार्षिक या वार्षिक अवधि की सूचना सुगमता से प्राप्त हो सके। ___ संक्षेप में, इस पद्धति के अन्तर्गत निश्चित अवधि में उत्पादित इकाइयों की कुल लागत तथा प्रति इकाई लागत ज्ञात करने के लिए लागत के विभिन्न तत्वों का संग्रहण निम्न प्रकार से किया जाता है

(1) सामग्री Materials) यदि संस्था में लागत लेखांकन पद्धति के अनरूप समस्त लेखे रखे जाते हैं तो उत्पादित इकाइयों में प्रयुक्त सामग्री की लागत व मात्रा सामग्री-सार (Materials summary) से ज्ञात कर ली जाती है। परन्तु जिन संस्थाओं में लागत लेखांकन को पूर्ण रूप से नहीं अपनाया जाता व भ

(2) मजदूरी (Wages)-लागत लेखांकन की विधि पूर्ण रूप से अपनाये जाने पर उत्पादित इकाइयों पर व्यय की गई प्रत्यक्ष मजदूरी की राशि मजदूरी सूचियों (Wages sheet) तथा मजदूरी-सार (Wages summary) के आधार पर ज्ञात की जाती है। परन्त जिन संस्थाओं में लागत लेखांकन को पूर्ण रूप से नहीं अपनाते वहाँ इस राशि को वित्तीय लेखों से ज्ञात किया जाता है।

(3) प्रत्यक्ष व्यय (Direct bills)-सामग्री तथा श्रम के अतिरिक्त होने वाले अन्य व्यय जिनका कि प्रत्यक्ष रूप से लागत केन्द्र (Price centre) या लागत इकाई से सम्बन्ध होता है, प्रत्यक्ष व्यय कहलाते हैं। इन व्ययों को भी लागत लेखों की दशा में सारांश सूची बनाकर लागत लेखों से और उनके अभाव में वित्तीय लेखों से ज्ञात करते हैं।

(4) उपरिव्यय (Overheads)-जो संस्थाएँ अपने वित्तीय लेखों से ही उपरिव्यय की राशि ज्ञात करना चाहती हैं, वे अपनी गोकड़ बही से अलग-अलग अप्रत्यक्ष व्ययों पर खर्च की गई राशि ज्ञात कर लेती हैं। इन व्ययों को क्रियाओं के आधार पर वाखाना उपरिव्यय (Manufacturing unit overhead), कार्यालय उपरिव्यय (Workplace overhead) तथा विक्रय एवं वितरण उपरिव्यय (Promoting and Distribution overhead) में वर्गीकृत कर दिया जाता है।

दूसरी ओर यदि सम्बन्धित संस्था में पूर्ण रूप से लागत लेखे रखे जाते हैं तो उपरिव्ययों की राशि वित्ति लेखों से ज्ञात करने के स्थान पर एक निश्चित आधार पर उपरिव्ययों का अवशोषण किया जाता है ।  उपरिव्ययों के अवशोंषण कि विभिन्न विधियों का उल्लेख पूर्ण अध्यायों में किया जा चुका है ।

इकाई लागत लेखांकन के अन्तर्गत लागत प्रस्तुतीकरण की विधियाँ

(Strategies of value presentation underneath unit costing)

एक निश्चित अवधि में उत्पादित इकाइयों की कुल लागत तथा प्रति ईकाइ लागत ज्ञात करने के लिए लागत प्रस्तुतिकरण की निम्नलिखित पद्धतियाँ प्रयोग में लायी जा सकती हैं

(1) लागत-पत्रक (Price-sheet),

(2) लागत एवं लाभ विवरण (Statementof Price and Revenue),

(3) उत्पादन खाता (Manufacturing Account)

उपर्युक्त सभी को तैयार करने के मूलभूत सिद्धान्त एक ही हैं यद्यपि इनक प्रारूपमा

(1) लागत-पत्रक

(Price-Sheet)

लागत पत्रक एक ऐसा विवरण है जिसमें किसी निश्चित अवधि में उत्पादित श्का के आधार पर प्रदर्शित करने के साथ-साथ प्रति इकाई लागत भी दर्शाया जाता हा पूर सम्बन्धी समस्त लागत सूचनाओं को मूल लागत (Prime Price), कारखाना लागत ra of Manufacturing) तथा कुल लागत (Complete Price) के रूप में विश्लेषित करके एक विवरण का जाता है ताकि उत्पादन मात्रा, कुल लागत व प्रति इकाई लागत का स्पष्ट ज्ञान हो सका।

लागत-पत्रक साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक. आदि सविधाजनक अवधियों के उत्पादन के लिए बनाया जा

जा सकता है। यह पत्रक मुख्यतः उन्हीं संस्थाओं में तैयार किया जाता है जहाँ लागत लेखों को दोहरा लेखा प्रणाली के आधार पर नहीं रखा जाता है ।

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लागत-पत्रक की मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

सी० आई० एम० ए० लन्दन के अनुसार, “लागत-पत्रक एक ऐसा प्रलेख है जो किसी लागत कन्द्रया लागत सम्बन्ध में अनुमानित विस्तृत लागत का संग्रहण प्रस्तुत करता है।”

व्हेल्डन के अनुसार, “लागत-पत्रक प्रबन्धकों के लिए तैयार किये जाते हैं और उनमें उन सभी आवश्यक विवरणों का सम्मिलित किया जाना चाहिए जो प्रबन्धकों को उत्पादन की कार्य-क्षमता जाँचने में सहायक हो सकें।”

जे० आर० बाटलीबॉय के अनुसार, “लागत-पत्रक एक तालिकाबद्ध विवरण है जो किसी निश्चित समय में किसी वस्तु। की एक निश्चित मात्रा के उत्पादन लागत का विवरण प्रस्तुत करता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से स्पष्ट है कि लागत-पत्रक किसी वस्तु के उत्पादन से सम्बन्धित सम्पूर्ण व्ययों का ऐसा विश्लेषणात्मक विवरण है जो निम्नलिखित तथ्यों को प्रकट करता है

(1) उत्पादन मात्रा, कुल लागत व प्रति इकाई लागत।

(2) लागत के विभिन्न अंगों जैसे, मूल लागत, कारखाना लागत, उत्पादन की लागत, बेचे गये माल की लागत तथा कुल लागत को प्रकट करना।

(3) प्रत्येक व्यय का कुल लागत के साथ प्रतिशत स्पष्ट करना।

(4) दो अवधियों अथवा दो उत्पादों की लागत की तुलना करने हेतु तुलनात्मक लागत को दर्शाना। लागत पत्रक के प्रकार (Kinds of Price Sheet)-लागत पत्रक निम्नलिखित दो प्रकार का हो सकता है

1.ऐतिहासिक लागत पत्रक (Historic Price Sheet)-ऐसे लागत पत्र जो उत्पादन कार्य पूरा होने पर उत्पादन पर किये गये वास्तविक व्ययों के आधार पर तैयार किये जाते हैं, वे ऐतिहासिक लागत पत्रक कहलाते हैं। इन लागत पत्रों में केवल वास्तविक लागतों को ही आधार बनाया जाता है।

2.अनुमानित लागत-पत्रक (Estimated Price Sheet)-इन लागत पत्रों में उपरिव्ययों का अवशोषण वास्तविक कर एक निश्चित आधार पर होता है। व्ययों के अवशोषण की दर पिछले लागत आंकड़ों के आधार पर करा जाता हा जसे कारखाना उपरिव्ययों को मजदरी के एक निश्चित प्रतिशत के आधार पर वसूल करना।कार्यालय या ब्रिकी उपरिव्ययों को कारखाना लागत के एक निश्चित प्रतिशत के आधार पर वसूल करना। समय-समय पर अनुमानित लागतो का वास्तविक लागतों से मिलान किया जाता है ताकि लागतों पर प्रभावपूर्ण नियन्त्रण स्थपित किया जा सके ।

लागत-पत्रक के प्रारूप

(Format of Price Sheet)

लागत-पत्रक को निम्नलिखित प्रारूपों में तैयार किया जा सकता है

1.साधारण लागत-पत्रक का प्रारूप (Format of Easy Price Sheet)–साधारण लागत पत्र में लागत के सभा। अगों को सम्मिलित रूप से लिखा जाता है एवं विस्तृत सुचनायें अलग से ज्ञात की जाती हैं। साधारण लागत पत्र का प्रारूप। निम्नलिखित प्रकार से है ।

2. लाभ सहित लागत पत्रक  का विस्तृत प्रारुप (Detailed format of value sheet with revenue)इस लागत पत्रक का प्ररुप निम्नलिखित है

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3.तुलनात्मक लागत पत्र (Comparative Price Sheet)-तुलनात्मक लागत-पत्र दो प्रकार से तैयार किया जा सकता है। किसी उत्पादन के लिए दो अवधि की तलनात्मक लागत का अध्ययन करना हो तो तुलनात्मक लागत-पत्र तयार किया जा सकता हा इस प्रकार क तुलनात्मक लागत-पत्र के द्वारा दो अवधियों के अन्तर्गत विभिन्न मदों पर किए गए व्ययों को प्रति मद। का तुलना करक यह ज्ञात किया जा सकता है कि किन मदों पर प्रति डकार्ड व्यय बढा है, बराबर रहा है या कम हआ है। इस प्रकार व्ययों के उक्त परिवर्तनों के कारणों का विश्लेषण कर लागत पर नियन्त्रण रखने का प्रयास किया जा सकता है दूसरा, जब कोई निर्माता एक ही प्रकार की दो वस्तुएं निर्मित करता है एवं यह जानना चाहता है कि दोनों प्रकार की। वस्तुओं के विभिन्न व्ययों में प्रति मद कितना अन्तर है और यह निर्णय लेना चाहता है कि कौन-सा उत्पाद अधिक लाभप्रद रहेगा तो ऐसी दशा में इन विभिन्न सूचनाओं का ज्ञान तुलनात्मक लागत-पत्र बनाकर ज्ञात किया जा सकता है। तुलनात्मक लागत-पत्रं सामान्यतया निम्नलिखित प्रारूप में तैयार किया जाता है

लागत पत्रक में प्रदर्शित कुल लागत के विभिन्न अंग

लागत पत्रक के नमूने से स्पष्ट है कि लागत की प्रत्येक मद का विश्लेषण मुख्यत: निम्नलिखित वर्गों में किया जाता है

(1) मूल लागत (Prime Price)-समस्त प्रत्यक्ष व्ययों के योग को मूल लागत कहते हैं अर्थात् प्रत्यक्ष सामग्री, प्रता श्रम तथा अन्य प्रत्यक्ष व्ययों को जोड़कर जो लागत आती है उसे मूल लागत कहते हैं। अन्य प्रत्यक्ष व्ययों के अन्तर्गत मुख्यत:

उत्पादन शुल्क, अधिकार-शुल्क, किसी विशेष कार्य के सम्बन्ध में आर्किटेक्ट या सर्वेयर को दी गई फीस , प्रत्यक्ष प्रभारित व्यय ,किसी विशेष कार्य के लिए नक्शे या डिजाइनों का व्यय, आदि को शामिल किया जाता है। मूल लागत को ज्ञात करने का उद्देश्य उत्पादित वस्तु की कुल लागत को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लागतों में बाँटना है ।

(2) कारखाना लागत (Works Price or Manufacturing unit Price -मूल लागत में कारखाना उपरिव्यय जोड़ देने से कारखाना। लागत ज्ञात हो जाती है ।

ऐसे व्यय जो मुख्यतया  कारखाने अथवा उत्पादन गहमें यात कार्य के संचालन तथा उसके नियन्त्रण, आदि क लए। किये जाते हैं, कारखाना उपरिव्यय कहलाते हैं। कारखाना उपरिव्ययों में मुख्यत: निम्नलिखित व्यय सम्मिलित किये जाते ह

(i) कारखाने का किराया बीमा व कर, (ii) कारखाने के कर्मचारियों (फोरमैन, निरीक्षक, प्रबन्धक,आदि) का वेतन, (iii) अप्रत्यक्ष सामग्री जो उत्पादन में सहायक होती है. जैसे-पेंच, कीलें, लही, फावकाल कोयला, ईंधन, स्टीम, आदि, (iv) प्रकाश, शक्ति, आदि (v) कारखाने के भवन, मशीनों तथा प्लाण्टा सहायक होती है, जैसे-पेंच, कीलें, लही, फेविकोल, आदि, (vi) कारखाने के भवन, मशीन तथा प्लाण्ट का मरम्मत तथा अनुरक्षण व्यय, (vii) कारखान का मशीन व्यय, (vii) कारखाने की मशीन तथा प्लाण्ट का बीमा. (viii) नक्शा कार्यालय के व्यय(Drawing workplace  Bills), (ix) श्रम कल्याण व्यय तथा भविष्य निधि में नियोक्ता का अंशदान, (x) कार्यहीन समय का वतन, (xi) कर्मचारी राज्य बीमा योजना में अंशदान. si) तकनीकी पत्रिकाओं का अंशदान, (XIII) दूषित का का व्यय, (xiv) बेकार अवशेष को हटाने का व्यय, (xv) प्रयोगात्मक तथा अनुसन्धानात्मक व्यय टाने का व्यय, (xv) प्रयोगात्मक तथा अनुसन्धानात्मक व्यय जो कि प्रत्यक्ष व्यय नहीं हैं. (xvi) कारखाने के अन्दर किये गये अन्य कोई भी व्यय।

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कारखाना लागत ज्ञात करने का उद्देश्य कारखाना लागत पर नियन्त्रण करना व कारखाने की कार्य-कुशलता ज्ञात करना है।

(3) कार्यालय लागत या उत्पादन लागत (Workplace Price or Price of Manufacturing)-कारखानाला एवं प्रशासन उपरिव्ययों की रकम जोड़ देने से कार्यालय लागत ज्ञात हो जाती है। इसे उत्पादन लागत भी कहा जाता है।

कार्यालय एवं प्रशासन उपरिव्ययों में कार्यालय प्रबन्ध, प्रशासन, वित्त एवं अन्य व्यवस्था के लिए किये गये व्ययों को शामिल किया जाता है। इनके कुछ प्रमुख उदाहरण निम्न प्रकार हैं

(i) कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों, प्रबन्धक तथा अन्य अधिकारियों का वेतन. (i) कार्यालय भवन का किराया. मरम्मत, ह्रास तथा बीमा, (ii) कार्यालय के फर्नीचर की मरम्मत, हास एवं बीमा, आदि (iv) छपाई, लेखन-सामग्री (स्टेशनरी), डाक तथा टेलीफोन व्यय, (v) कार्यालय में प्रकाश, आदि से सम्बन्धित व्यय, (vi) व्यापारिक पत्रिकाओं का चन्दा, (vii) गणना कार्यालय व्यय (Counting Workplace Bills), (viii) संचालकों की फीस, (ix) वैधानिक या कानूनी व्यय, (x) बैंक सम्बन्धी व्यय, (xi) अंकेक्षण शुल्क, (xii) कार्यालय के अन्य सामान्य व्यय।

कार्यालय लागत की पिछले वर्षों से तुलना करने पर कार्यालय की क्षमता का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है और भविष्य में कार्यालय को उन्नत करने के लिए योजना बनाई जा सकती है।

(4) कुल लागत (Complete Price)-कार्यालय लागत में विक्रय एवं वितरण उपरिव्यय जोड़ देने से कुल लागत ज्ञात हो जाती है।

विक्रय तथा वितरण उपरिव्ययों के अन्तर्गत ऐसे व्ययों को शामिल किया जाता है जो निर्मित माल को बेचने तथा बेचे हुए माल को ग्राहकों तक पहुँचाने के लिए किये जाते हैं। ऐसे व्ययों के प्रमुख उदाहरण निम्न प्रकार हैं

(i) विक्रय प्रबन्धक तथा विक्रय प्रतिनिधियों का वेतन, कमीशन तथा यात्रा व्यय, आदि, (ii) प्रदर्शन व शोरूम के व्यय, (iii) विज्ञापन व्यय, (iv) मूल्य-सूची तथा सूची-पत्र एवं नमूने भेजने का व्यय, (v) शाखाओं के संचालन सम्बन्धी व्यय, (vi) ग्राहकों को दी गई छूट या बट्टा, (vii) अप्राप्य ऋण तथा अप्राप्य ऋणों की वसूली के सम्बन्ध में किये गये कानूनी व्यय, (viii) टेण्डर भरने तथा अनुमान लगाने के व्यय, (ix) विक्रय माल की ढुलाई, (x) गोदाम व्यय, (xi) पैकिंग सामग्री तथा पैकिंग कर्मचारियों का वेतन, आदि, (xii) सुपुर्दगी गाड़ियों के रख-रखाव, आदि के समस्त व्यय।

(5) बेचे गये माल की लागत (Price of Items Offered)-यदि उत्पादन लागत (Price of Manufacturing) में निर्मित माल | का प्रारम्भिक रहतिया जोड़ दिया जाये एवं निर्मित माल का अन्तिम रहतिया घटा दिया जाये तो बिके हुए माल की लागत । (Price of Items Offered) ज्ञात हो जाती है।

(6) विक्रय लागत (Price of Gross sales)-बेचे गये माल की लागत में विक्रय एवं वितरण सम्बन्धी व्यय जोड़ देने पर विक्रय लागत ज्ञात हो जाती है।

(7) विक्रय मूल्य (Promoting Value or Gross sales)-विक्रय लागत में लाभ की रकम जोड़कर विक्रय मूल्य ज्ञात कर लेते हैं। यदि हानि हो तो उसे विक्रय लागत में से घटा दिया जाता है।”

लागत पत्र में सम्मिलित न की जाने वाली मदें

(Objects Not Included in Price Sheet)

कुछ मदें ऐसी होती हैं जो लागत से सम्बन्धित न होकर वित्तीय प्रकृति की होती हैं, इसलिए उन्हें लागत-पत्र में शामिल नहीं किया जाता है । सामान्यतता निम्नलिखित मदों को लागत- पत्रक में शामिल   किया जाता है ।

(i) सामग्री या श्रम की असामान्य क्षति  (ii) पूँजी पर दिया गया या प्राप्त ब्याज, (ii) बैंक में जमा राशि पर मिलने वाला अंश हस्तान्तरण की फीस (vi) विनियोगों पर प्राप्त ब्याज, (vii) अनुबन्द भंग करने पर दी गई क्षतिपूर्ति (vii) दिया गया लाभांश. (ix) आय कर एवं सम्पत्ति कर, (x) ख्याति या प्रारम्भिक गई रकम, (xi) पूँजीगत लाभ एवं हानियाँ, (xii) अंशों एवं ऋणपत्रों के निर्गमन पर दी गई छट, 2 (Money low cost), (xiv) संचयों में किये गये हस्तान्तरण, (xv) यन्त्रों के अप्रचलन, आदि की हानि (xvi) ऋणपत्रों पर ब्याज

लागत पत्रर के लाभ (Benefits of Price-sheet) लागत-पत्र के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं

(i) इससे उत्पादन की कुल लागत तथा प्रति इकाई लागत का जानकारा

(ii) इससे प्रति इकाई लागत में विभिन्न व्ययों के भाग की जानकारी होती है।

(iii) इससे विक्रय मूल्य के निर्धारण में सहायता मिलती है।

(iv) इसके आधार पर निविदा मल्य (Ouotation Value) की गणना की जा सकती ह।

(V)लनात्मक लागत-पत्र की सहायता से व्ययों पर आवश्यक नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है ।

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(2) लागत विवरण

(Assertion of Price)

लागत पत्रक तथा लागत विवरण दोनों ही समान सिद्धान्तों एवं समान प्रारूप में तैयार किये जाते हैं. दोनों में बहत ही साधारण-सा अन्तर है। लागत-पत्रक में तो उत्पादन की कल लागत के साथ-साथ उत्पादन लागत के प्रत्येक अंग का प्रति इकाइ लागत भा ज्ञात का जाती है, जबकि लागत विवरण में केवल कल लागत सम्बन्धी सूचना ही होती है। इस प्रकार लागत विवरण में उत्पादन लागत के प्रत्येक अंग की प्रति इकाई लागत नहीं ज्ञात की जाती। प्रायः लागत-पत्रक लेखापालों द्वारा नियमित रूप से कुल लागत व प्रति इकाई लागत ज्ञात करने के लिए बनाया जाता है जबकि लागत विवरण अनमानित लागत व टेण्डर मूल्य के निर्धारण हेतु बनाया जाता है।

                          लागत-पत्रक व लागत विवरण में अन्तर

                 (Distinction between Price-sheet and Assertion of Price)

(1) लागत-पत्रक में उत्पादन की कुल मात्रा, कुल लागत व उत्पादन लागत के प्रत्येक अंग की प्रति इकाई लागत दर्शायी जाती है जबकि लागत विवरण में केवल कुल लागत को ही दिखाया जाता है।

(2) लागत-पत्रक प्राय: तभी बनाया जाता है जबकि प्रश्न में उत्पादन की मात्रा दी हुई होती है। इसके विपरीत प्रश्न में उत्पादन की मात्रा का उल्लेख न होने पर लागत विवरण बनाना उपयुक्त रहता है।

(3) लागत-पत्रक के द्वारा दो अवधियों व दो उत्पादों की लागत का तुलनात्मक अध्ययन सम्भव है जबकि लागत विवरण के द्वारा तुलनात्मक अध्ययन सम्भव नहीं है।

(4) लागत-पत्रक में लागत के विभिन्न अंगों के पारस्परिक प्रतिशत एवं अनुपात दर्शाये जाते हैं जबकि लागत विवरण में ये प्रतिशत एवं अनुपात विस्तार से नहीं दिये जाते हैं।

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लागत-पत्रक एवं लागत विवरण के तैयार करने में कुछ महत्वपूर्ण मदें

(1) सामग्री की सामान्य हानि (Regular Lack of Materials)-सामग्री की ऐसी हानि जो प्राकृतिक हो अर्थात् जिस हानि को होने से रोका नहीं जा सकता, सामग्री की सामान्य हानि कहलाती है। जैसे-वाष्पीकरण से सामग्री का वजन कम हो जाना आदि। ऐसी हानि का भार सम्बन्धित उत्पादन पर ही डाला जाता है, अत: ऐसी हानि की रकम को सामग्री की लागत में से कम नहीं किया जाता है।

(2) सामग्री की असामान्य हानि (Irregular Lack of Materials)-सामग्री की ऐसी हानि जो प्राकृतिक न हो अर्थात जो हानि अनिवार्य रूप से न होती हो। वस्तुतः ऐसी हानि को प्रयास करके रोका जा सकता है। अत: ऐसी हानि को लागत का भाग नहीं माना जाता है और परिणामस्वरूप इसे सामग्री की लागत में से कम करके दिखाया जाता है।

(3) सामान्य कार्यहीन समय की मजदूरी (Wages of Regular Idle Time)-समय की वह बर्बादी जो स्वाभाविक होत तथा जिसे कार्य की प्रकृति के अनुसार समाप्त करना असम्भव है, सामान्य कार्यहीन समय कहलाता है। ऐसे मजदूरी का भार उत्पादन पर ही डाला जाता है . अत: सामान्य कार्यहीन समय की मजदूरी को क्षम की लागत में से कम नहीं किया जाता है .

(4) असामान्य कार्यहीन समय की मजदरी (Wave Irregular Idle Time) करके रोका जा सकता है, असामान्य कार्यहीन समय कहलाता है। असामान्य का नहीं माना जाता है और परिणामस्वरूप इसे श्रम की लागत में से घटा दिया जाता है।

(5) प्रयुक्त प्रत्यक्ष सामग्री (Direct Supplies Consumed)-यदि प्रयुक्त हुआ है तो सामग्री से सम्बन्धित अन्य प्रदत्त सुचनाओं पर कोई ध्यान नहीं देंगे, केवल प्रयु मूल लागत में शामिल कर लिया जायेगा। इसके विपरीत यदि उत्पादन में प्रयोग का गइ सा सामग्री के सम्बन्ध में उपलब्ध विभिन्न सचनाओं के आधार पर प्रयोग की गई सामग्री का मूल्य कर सकते हैं

प्रयोग की गई सामग्री की लागत की गणना करना

(Calculation of Materials Consumed)

निम्नलिखित सूचनाओं से प्रयुक्त सामग्री के मूल्य की गणना करें

From the next data discover out the quantity of supplies consumed:

सामग्री का प्रारम्भिक रहतिया (Opening Inventory of Uncooked Materials)                                                                                    8,000

सामग्री का क्रय (Buy of Uncooked Supplies):                                                                                                                    20,000

सामग्री के क्रय पर ढुलाई (Carriage on Buy of Uncooked Materials)                                                                                  4,000

दोषपर्ण सामग्री की वापसी (Return of Faulty Supplies)                                                                                                 2,000

सामग्री की बिक्री (लागत मूल्य 1,600 ₹) [Gross sales of Supplies (Price Value 1.600                                                           2,000

सामग्री का अन्तिम रहतिया (Closing Inventory of Uncooked Materials) Answer:                                                                          4,400

(6) अर्ध-निर्मित माल का समायोजन (Adjustment of Work-in-progress) इसे क्रियमाण कार्य अथवा चाल से मान से है जिस पर निमाण काय प्रारम्भता कायमा कहा जाता है। अर्ध निर्मित परन्तु जा अभा पूर्णतः निर्मित नहीं हारा से कार्य में सामग्री श्रम तथा उत्पादन व्यया का कुछ और लग चुका होता है तथा निर्मित माल बनने हेत कुछ व्यय और करने शष हा मत माल बनने हेतु कुछ व्यय और करने शेष होते हैं। चूंकि लागत-पत्रक या लागत विवरण तयार करते समय केवल निर्मित माल के है। उत्पादन लागत ज्ञात करने से पूर्व अर्ध-निर्मित माल के प्राराम्भिक साल का लागत ज्ञात करनी होती है, अत: अर्ध-निर्मित माल का समायोजन करना आवश्यक होता घटा दिया जाता है। परन्तु प्रश्न यह है कि उक्त समायोजन कहाँ (लरन स पूर्व अध-निर्मित माल के प्रारम्भिक रहतिये को जोड़ दिया जाता है तथा अन्तिम रहतिये को अरन यह है कि उक्त समायोजन कहाँ लागत के किस स्तर पर किया जाए। इसके सम्बन्ध म यह देखा जाता है कि अर्ध-निर्मित उत्पादन पर किस सीमा तक व्यय हुए अप-नामत उत्पादन पर किस सीमा तक व्यय हए हैं। यदि अर्ध-निर्मित कार्य के सम्बन्ध में केवल व्यय हुए हैं तो अर्ध-निर्मित माल का समायोजन मूल लागत ज्ञात करने से पूर्व किया जाएगा किन्तु यदि अपूर्ण कार्य के सम्बन्ध में कारखाना उपरिव्यय भी किये जा चुके हैं, तो समायोजन मूल लागत (Prime COS) शात करन क बाद परन्तु कारखाना लागत ज्ञात करने से पर्व किया जायेगा। इस प्रकार अर्ध-निमित माल का मल्याकन मूल लागत (Prime Price) अथवा कारखाना लागत (Manufacturing unit Price) के आधार पर किया जा सकता है, किन्तु मूल लागत का आधार अधिक उचित माना जाता है क्योंकि अपर्ण कार्यों पर प्रायः प्रत्यक्ष व्यय ही हो पाते हैं। फिर भी प्रश्न में स्पष्ट निर्देश होने पर उन्हीं का पालन किया जाना चाहिए।

टिप्पणी-(i) प्रश्न में स्पष्ट सूचना के अभाव में अर्ध-निर्मित माल का मूल्यांकन कारखाना लागत पर ही करना चाहिए।

(ii) यदि अर्ध-निर्मित कार्य का प्रारम्भिक व अत्तिम स्टॉक लागत की विभिन्न मदों के अनुसार अलग-अलग ज्ञात किया गया हो तो लागत की प्रत्येक मद पर ही अर्ध-निर्मित कार्य का समायोजन करना चाहिए।

निर्मित या तैयार माल के स्टॉक का समायोजन- उत्पादन की लागत कुल निर्मित माल के लिए ही ज्ञात की जाती है चाहे वह सारा माल बिक जाए या उसका कुछ ही भाग बिके, लेकिन लाभ ज्ञात करने के लिए केवल उसी माल की । उत्पादन लागत पर विचार करना होता है, जो माल बिक चुका है। अत: चालू अवधि में किये गये उत्पादन के साथ-साथ निर्मित माल के प्रारम्भिक एवं अन्तिम स्टॉक पर विचार करना भी आवश्यक हो जाता है। निर्मित माल के स्टॉक का समायोजन निम्न प्रकार करेंगे

निर्मित स्टॉक के सम्बन्ध में कभी-कभी समस्या यह आ जाती है । कि स्कन्ध की केवल मात्रा दी हुई होती है । लेकिन उनका मूल्य ज्ञात नहीं होता । प्राय: निर्मित माल के स्कन्ध में निम्न मे से कोई एक स्थिति हो सकती है

(ii) प्रारम्भिक स्टॉक का मूल्य दिया हुआ हो लाकिन अन्तिम स्टाँक का मूल्य न दिया गया हो तो अन्तिम स्कन्ध का मूल्याकनं वर्तमान अवधि की प्रति इकाई उत्पादन लागत के आधार पर कर लेगेँ.

(ii) यदि प्रारम्भिक और अन्तिम स्टॉक, दोनों की केवल मात्राएं दी गई हैं परन्तु उसका मूल्य नहीं दिया गया है तो यह मान लिया जाता है कि गत अवधि की प्रति इकाई उत्पादन लागत और चालू अवधि की प्रति ईकाइ उत्पादन लागत में कोई अन्तर नहीं है अत: दोनों स्टॉक मात्राओं का मूल्यांकन वर्तमान अवधि की प्रति ईकाइ उत्पादन लागत के आधार पर ही कर लेगें ।

यह ध्यान रखने योग है ।  कि बिक्रित माल की उत्पादन लागत ज्ञात करने के उपरान्त ही बिक्रि तथा विवरण उपरिव्यय जोडें जाते हैं ।

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(8) उपरिव्ययों का अवशोषण (Absorption of Overheads)- उपरिव्यय वाले अध्याय में स्पष्ट किया जा चका कि उपारव्यय मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं कारखाना उपरिव्यय, कार्यालय उपारख्या इन तीनों की अनुमानित रकम कुल लागत में सम्मिलित कान गुमानित रकम कुल लागत में सम्मिलित की जाती है। अनुमानित रकम ज्ञात करने हेतु प्रश्न में दी गई सूचनाओं एवं अवशोषण आधारों का प्रयोग किया जाता है। ।

(9) वृथा या दूषित या छीजन या अवशेष की बिक्री (Sale of Scarp. Faulty, Salvage or Residue)-स्पष्ट सूचना का दशा में सम्बन्धित लागत में ही समायोजन करेंगे परन्तु यदि यह स्पष्ट न हा कि वृथा या छान चीज का है तो उसे कारखाना लागत ज्ञात करने से पूर्व घटा देना चाहिए।

(10) दूषित या रद्द किया गया कार्य (Faulty or Rejected Work)-कभी-कभा उत्पादन प्रक्रिया म खराब या प्रमाप स्तर का न होने के कारण दूषित हो जाता है। ऐसा माल यदि इस तरह का है कि उसे अतिरिक्त व्यय करके। भी प्रमाप स्तर तक सुधारा नहीं जा सकता तो उसे अस्वीकृत कर दिया जाता है एवं ऐसे माल को बाजार में रियायती दरों पर बेच दिया जाता है और बिक्री की रकम को कारखाना लागत में से और रद्द की गई इकाइयों (मात्रा) को कुल उत्पादन की इकाइयों में से घटा दिया जाता है। यदि दोषपूर्ण माल ऐसा है जिसे अतिरिक्त व्यय द्वारा सुधारा जा सकता है अथवा विक्रय योग्य बनाया जा सकता है तो इस अतिरिक्त व्यय को कारखाना उपरिव्ययों में अतिरिक्त कारखाना उपरिव्यय के नाम से जोड़ दिया जाता है। इसके बाद विक्रय योग्य इकाइयाँ व उनकी कुल लागत ज्ञात हो जाती है।

(11) लाभ की गणना (Computation of Revenue)-कुल लागत में लाभ जोड़कर विक्रय मूल्य ज्ञात किया जाता है। प्रायः प्रश्नों में लाभ की राशि न देकर लाभ की प्रतिशत दी हुई होती है जिनके आधार पर लाभ की रकम ज्ञात की जाती है। लाभ की गणना हेतु निम्न दो दशाएँ हो सकती हैं

revenue = Complete value *%of revenue

100

(अ) जब लाभ का प्रतिशत लागत मूल्य पर दिया गया हो-ऐसी दशा में लाभ की गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

 (ब) जब लाभ का प्रतिशत विक्रय मूल्य पर आधारित हो-ऐसी दशा में लाभ की गणना हेतु अग्रलिखित सूत्र प्रयोग किया जाता है

revenue = Complete value *% of Revenue

100 – % of revenue

(12) शुद्ध लाभ (Internet Revenue) तथा सकल लाभ (Gross Revenue) ज्ञात करना-सकल लाभ की गणना हेतु लागत (Complete Price) या बेचे गये माल की लागत (Price of Items Offered) में विक्रय व वितरण व्ययों को सम्मिलित न कह। हए लाभ की गणना की जाती है। जबकि सकल लाभ की रकम में से विक्रय व वितरण व्ययों को घटाकर शुद्ध लाभ (21 Revenue) ज्ञात हो जाता है। संक्षेप में, सकल लाभ (Gross Revenue) तथा शुद्ध लाभ (Internet Revenue) की गणना को अगलहि लाभ विवरण की सहायता से सरलतापूर्वक समझा जा सकता है

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13) उत्पादन के विभिन्न व्ययों की प्रतिशत दरों की गणना (Calculation of Numerous) लागत  लेखों में भावी अनुमानों के उद्देश्य से उत्पादन के विभिन्न व्यया में पारस्परिक सम्बन्ध ज्ञात करने तथा इनके कुल लागत से पाए जाने वाले सम्बन्ध को जानने के लिए विभिन्न प्रतिशत दरों की गणना की जाती  है प्रचलित दरें तथा उनकी गणना विधि निम्न प्रकार है

(ब) लागत के प्रत्येक व्यय का बिक्री पर प्रतिशत निकालना-उपरोक्त सभी व्ययों का बिक्री से प्रतिशत भी ज्ञात किया जा सकता है। ऐसी दशा में केवल उपरोक्त सूत्रों में Complete Price के स्थान पर Gross sales लिख दिया जाता है।

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लघु उत्तरीय क्रियात्मक प्रश्न

(Brief Reply Numerical Illustrations)

Illustration 2.

निम्नलिखित से मूल लागत ज्ञात कीजिए

Decide the Prime Price from the next:

सामग्री का प्रारम्भिक रहतिया (Opening inventory of supplies)                                   20,000

क्रय की गयी सामग्री (Supplies bought)                                                                 1,30,000

प्रत्यक्ष मजदूरी (Direct wages).                                                                                         80,000

प्रभारित व्यय (Chargeable bills)                                                                           10,000

आन्तरिक ढुलाई (Carriage inwards)                                                                             3,000

बाह्य ढुलाई (Carriage outwards)                                                                                  5,000

सामग्री का अन्तिम रहतिया (Closing inventory of supplies)                                      30,000

आणिकर्ता को वापसी सामग्री (Supplies returned to suppliers)                           4,000

 

 

 

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