उद्यमीय व्यवहार, मनोवैज्ञानिक विचारधारा तथा सामाजिक उत्तरदायित्व (Entrepreneurial Behaviour, Psycho Theories and Social Responsibility)
प्रत्येक आर्थिक क्रिया में सहकारी हस्तक्षेप ‘जनहित’ अथवा ‘सामाजिक कल्याण’ में वृद्धि करना होता है। यद्यपि व्यवहार में व्यवसाय से समाज की आकांक्षाओं का बदलता स्वरूप, बदलती प्राथमिकताएँ तथा स्वयं समाज में होने वाले निरन्तर परिवर्तनों से ‘जनहित’ का अर्थ बदलता रहता है, व्यवसाय समाज को व्यापक रूप में प्रभावित करता है। व्यवसाय द्वारा ही मजदूरी, वस्तु का मूल्य एवं गुण, उपभोक्ताओं की रुचि, पसन्दगी एवं फैशन, बाजार व्यवहार, रोजगार विनियोग, सरकार को राजस्व आदि को प्रमाप (Standard) के रूप में निर्धारित किया जाता है । इस प्रकार व्यवसाय समाज का एक अभिन्न अंग है अत: यह आवश्यक है कि व्यवसाय समाज की आकांक्षाओं के अनुरूप व्यवहार करे। इस प्रकार व्यवसाय सुगठित एवं सुव्यवस्थित समाज के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। . .
कूण्टज एवं ओडोनल के अनुसार-“सामाजिक उत्तरदायित्व निजी हित में कार्य करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का ऐसा दायित्व है जिससे वह स्वयं आश्वस्त होता हो कि उसके द्वारा अन्य व्यक्तियों के न्यायोचित अधिकारों एवं हितों को हानि न पहुँचती हो।”
बोवेन के अनुसार-“सामाजिक उत्तरदायित्व से आशय ऐसी नीतियों का अनुसरण करना एवं ऐसे निर्णयों का क्रियान्वित करना है जो समाज के उद्देश्यों एवं मूल्यों के सन्दर्भ में वांछनीय हों।”
व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्व का क्षेत्र
(Scope of Social Responsibilities of Business)
आज व्यवसाय जनसेवा का पर्याय बन गया है और व्यवसायियों से यह आशा की जाती है वे ‘जन प्रन्यासियों, (Public Trustee) के रूप में कार्य करें। उन्हें समाज के दो वर्गों से व्यवहार करना होता है प्रथम व्यवसाय का आन्तरिक वर्ग जैसे अंशधारी, व्यवसाय के स्वामी व व्यवसाय में कार्यरत कर्मचारी, द्वितीय व्यवसाय से बाह्य वर्ग जैसे ग्राहक, ऋणदाता, सरकार और समुदाय । व्यवसाय के प्रबन्ध का यह दायित्व है कि वह व्यवसाय से प्राप्त प्रतिफल को समान आधार पर वितरित करे-अंशधारियों को उचित प्रतिफल दे, अपने कर्मचारियों को अच्छी कार्यदशाएँ एवं उचित मजदूरी/वेतन, उपभोक्ताओं के साथ अच्छा व्यवहार करे तथा अपने व्यवसाय को सम्पूर्ण समाज एवं राष्ट्र के लिए एक अच्छी परिसम्पत्ति (Asset) बनाए । विभिन्न वर्गों के प्रति व्यवसाय के दायित्वों का वर्णन निम्न प्रकार किया जा सकता है-
(I) स्वामियों/अंशधारियों के प्रति उत्तरदायित्व
(Responsibility towards Owners/Share-holders)
व्यवसाय के स्वामियों/अंशधारियों के प्रति निम्नलिखित दायित्व होते हैं-
(1) विनियोग पर उचित प्रतिफल (Appropriate Rate of Return on Investment)-व्यवसाय का उत्तरदायित्व होता है कि वह अपने स्वामियों/अंशधारियों द्वारा विनियोजित पूँजी पर उचित लाभांश (Dividend) प्रदान करे तथा पूँजी का मूल्य हास (Depreciation) न होने दे। विनियोजकों को विनियोजित पूँजी पर पर्याप्त प्रतिफल निरन्तर मिलते रहना चाहिए।
(2) स्वामियों की पूँजी की सुरक्षा (Protection of Owner’s Capital)-व्यवसाय का यह उत्तरदायित्व होता हैं कि वह स्वामी द्वारा विनियोजित पूँजी की पूर्ण सुरक्षा कर सके। वास्तव में विनियोजक व्यवसाय में पूँजी को इस आशा में विनियोजित करते हैं कि व्यवसाय एक प्रन्यासी की भाँति उनकी पूँजी को सुरक्षित रखेगा।
(3) लाभांश का समयानुसार भुगतान करना (Timely Payment of Dividends)-व्यवसाय का दायित्व केवल लाभांश घोषित करना नहीं है, अपितु यह भी उसका प्रधान दायित्व है कि उचित व निश्चित समय में लाभांश का भुगतान कर दिया जाए अन्यथा लाभांश का समय पर भुगतान न होने से स्वामियों/अंशधारियों में निराश की भावना छा जाती है ।
(II) कर्मचारियों के प्रति उत्तरदायित्व (Responsibility towards Employees)
व्यवसाय के कर्मचारियों एवं श्रमिकों के प्रति व्यवसाय के निम्नलिखित उत्तरदायित्व होते है-
(1) कार्य के अनुसार उचित पारिश्रमिक देना (Reasonable Remuneration According to Work)-व्यवसाय द्वारा अपने कर्मचारियों एवं श्रमिकों को उनके कार्यों के अनुसार वेतन/मजदूरी अवश्य दी जानी चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि उन्हें कम-से-कम न्यूनतम मजदूरी का भुगतान होता रहे। दूसरे शब्दों में, श्रमिकों को इतनी मजदूरी अवश्य मिलनी चाहिए कि वे अपनी उचित जीवन यापन सम्बन्धी आवश्यकताओं को अवश्य पूरा कर सकें ।
(2) उचित लाभांशभागिता (Appropriate Profit Sharing)-व्यवसाय का यह दायित्व है कि वह अपने कर्मचारियों के लिए लाभ में भागीदारी की व्यवस्था करे। कर्मचारी उद्योग की प्रगति में सक्रिय योगदान देते हैं अतः लाभ का कुछ अंश इन्हें भी मिलना चाहिए। लाभांश परस्पर विचार-विमर्श द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए।
(3) दुर्घटनाग्रस्त होने पर क्षतिपूर्ति (Compensation in Case of Accident) यदि कर्मचारी कारखाने में काम करते हुए दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है तो व्यवसाय का यह दायित्व है कि वह उसकी क्षतिपूर्ति करे।
(4) अच्छी कार्य दशाएँ उपलब्ध कराना (To Make Available Good Working Conditions)-व्यवसाय के लिए यह आवश्यक है कि कर्मचारियों को अच्छी कार्य-दशाएँ उपलब्ध कराए, कार्य-स्थल पर शुद्ध वायु, प्रकाश तथा उचित तापमान की व्यवस्था हो । इसके अतिरिक्त उन्हें श्रम कल्याण सुविधाएँ भी उपलब्ध होनी चाहिएँ ।
(5) पदोन्नति के अवसर प्रदान करना (To Ensure Promotional Avenues)-कर्मचारियों को उनकी योग्यता, कार्याविधि एवं अनुभव के आधार पर पदोन्नति के उचित अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिएँ। पदोन्नति की सम्भावना उन्हें अधिक और कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए प्रेरणा प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त उनमें व्यवसाय के प्रति अपनत्व की भावना भी बलवती होती है।
(III) उपभोक्ताओं के प्रति उत्तरदायित्व
(Responsibilities towards Consumers)
व्यवसाय के उपभोक्ताओं के प्रति सामाजिक उत्तरदायित्व निम्नांकित हैं-
(1) उचित मूल्य पर वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्रदान करना (To Supply Goods and Services at Reasonable Price)-व्यवसाय का यह दायित्व है कि वह अपने ग्राहकों को उचित मूल्य पर वस्तुएँ व सेवाएँ उपलब्ध कराए । व्यवसाय की उन्नति ग्राहकों पर ही निर्भर करती है। यदि वस्तु विक्रय में ग्राहकों को धोखा दिया गया तो व्यवसाय की ख्याति (Goodwill) को धक्का लगेगा तथा उसके अस्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
(2) उत्तम किस्म की वस्तुओं का विक्रय (Sale of Good Quality Commodities)-व्यवसाय का यह दायित्व है कि वह अपने ग्राहकों को अच्छी किस्म की वस्तुओं का ही विक्रय करे। उपभोक्ताओं को अच्छी किस्म की वस्तुएँ उपलब्ध कराने से व्यवसाय की ख्याति बढ़ती है।
(3) उपभोक्ता की रुचि व आवश्यकता समझना (To Understand Consumer’s Needs and Tastes)-समय के साथ-साथ उपभोक्ताओं की रुचि, आदत व आवश्यकताएँ बदलती रहती हैं। व्यवसायिक को चाहिए कि वह विपणन शोध (Marketing Research) के माध्यम से उपभोक्ता की आवश्यकता, स्वभाव, रुचि व फैशन आदि को मालूम करे और उसी के अनुरूप उपभोक्ताओं को वस्तुएँ व सेवाएँ उपलब्ध कराए।
(4) भ्रामक विज्ञापन से बचना (To Avoid Misleading Advertisement)विज्ञापन का उद्देश्य उपभोक्ता को वस्तु के बारे में आवश्यक जानकारी देना होता है। विज्ञापनों के आधार पर ही उपभोक्ता किसी वस्तु को क्रय करने के लिए आकर्षित होते हैं। अतः झूठे विज्ञापन उपभोक्ताओं के साथ धोखा है। व्यवसाय का दायित्व है कि वह झूठे विज्ञापनों से उपभोक्ताओं को गुमराह न करे।
(IV) समुदाय के प्रति दायित्व (Responsibilities towards Community)
समुदाय के प्रति व्यवसाय के निम्नलिखित उत्तरदायित्व हैं-
(1) वातावरण को प्रदूषण से बचाना (To Protect Environment from Pollution)-कारखानों से निकलने वाला धुआँ अथवा गैसें वायु को प्रदूषित करती हैं, जिसका जनता के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। नहरों एवं तालाबों में कारखाने से निकलने वाले रासायनिक द्रव्य के मिश्रण का कृषि व पशुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अत: व्यवसाय का यह दायित्व है कि वह ऐसे उपाय अपनाए कि वातावरण दूषित न होने पाए।
(2) समुदाय के हित में कार्यक्रम चलाना (To Initiate Programmes in the Interests of Community)-अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार व्यवसाय को समुदाय के विकास के लिए शिक्षा,खेल-कूद तथा सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रोत्साहन के लिए कार्यक्रमों को आरम्भ करना चाहिए तथा चिकित्सालय, पाठशालाएँ, धर्मशालाएँ तथा वाचनालय आदि की स्थापना करनी चाहिए।
(3) समुदाय को रोजगार प्रदान करना (To Provide Employment Opportunities)-कारखाने की स्थापना के समय उस स्थान विशेष की जनता को यह प्रसन्नता रहती है कि कारखाने में उन्हें रोजगार मिलेगा और उनका जीवन स्तर समुन्नत होगा। अत: व्यवसाय का यह दायित्व है कि समान योग्यता वाले कर्मचारियों व श्रमिकों की स्थिति में स्थानीय व्यक्तियों को प्राथमिकता प्रदान करें।
प्रश्न 2. उद्यमीय व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले मनोवैज्ञानिक लक्षणों की व्याख्या कीजिए। Explain the psychological attributes effect of entrepreneurial personality.
अथवा “ज्ञानी व्यक्ति को किसी सहयोग की आवश्यकता नहीं होती है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर-उद्यमीय व्यक्तित्व में अनेक प्रवृत्तियाँ सम्मिलित हो सकती हैं। ये अनेक मनोवैज्ञानिक अभिवृत्तियों, मानसिक झुकावों, पूर्ण वृत्तियों एवं भावनाओं से संचालित होती हैं। जो उद्यमी नव-प्रवर्तनों, स्वातन्त्रय एवं सम्प्रभुता, श्रेष्ठ कार्यान्वयन एवं श्रम के प्रति आदर की भावनाओं को महत्व देते हैं, उनमें उपलब्ध परिस्थितियों के अनुरूप स्वतः ही सर्वनिष्ठ अभिवृत्तियों का विकास हो जाता है। अतः यह कहा जा सकता है कि उद्यमीय क्रियाओं के विकास में उद्यमी के व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
विभिन्न विद्वानों द्वारा साहसी व्यक्तित्व के विभिन्न मनोवैज्ञानिकों का वर्णन किया गया है. जो उसकी प्रभावोत्पादकता को बढ़ा देते हैं। कुछ प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) अभिप्रेरणा-अभिप्रेरणा से आशय उस मनोवैज्ञानिक उत्तेजना से है जो व्यक्तियों को कार्य के प्रति प्रोत्साहित करती हैं, कार्य पर बनाये रखती है तथा अधिकतम कार्य सन्तुष्टि प्रदान करती हैं। उद्यमिता की वृद्धि तथा विकास हेतु सामान्य अभिप्रेरणा एक महत्वपूर्ण निर्धारक घटक है, विस्तृत बोध के द्वारा सामाजिक प्रोरणाओं को उद्यमिता व्यवहार के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। चूंकि अभिप्रेरणा सभी लक्ष्योन्मुख क्रिया-कलापों का आधार होती है, अत: अभिप्रेरणा को साहसी व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण लक्षण माना जाता है।
(2) उपलब्धि प्रेरणा-उपलब्धि प्रेरणा अभिप्रेरणा का ही एक रूप है। मनुष्य की यह प्रकृति है कि एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति से आगे निकलने की इच्छा ही उसकी प्रबल इच्छाशक्ति एवं दृढ़-प्रतिज्ञता की सूचक होती है। दृढ़ इच्छाशक्ति वाले उद्यमी उच्च उपलब्धियों में पूर्ण विश्वास रखते हैं जिससे वे सदैव गतिशील, परिश्रमी, महत्वाकांक्षी, संघर्षशील एवं दूसरों से अलग दिखने की इच्छा रखने वाले होते हैं। धीरूभाई अम्बानी के शब्दों में, “सबसे तेज सोचो, नया सोचो एवं सबसे पहले सोचो।” उपलब्धि प्रेरणा को उद्यमी का महत्वपूर्ण गुण बतलाते हुए मैक्लीलैण्ड ने कहा है कि “उच्च उपलब्धि प्राप्त करने एवं अपने क्षेत्र में श्रेष्ठता का विशिष्टता स्तर प्राप्त करने की इच्छा उद्यमी का प्रमुख गुण है।”
(3) उद्यमिता सम्बन्धी व्यवहार-उद्यम में उद्यमी का व्यावहारिक होना अति आवश्यक है। उद्यमी नवाचार, स्वतन्त्रता, स्वामित्व आदि का सम्मान करते हैं और कार्य का आदर करते हैं। कोई उद्यमी जो नवाचार का सम्मान करता है वह सुअवसर को पहचानने के लिए कल्पना का प्रयोग करने की प्रवृत्ति विकसित करके तथा एक सीमा तक जोखिम उठाने की प्रवृत्ति प्रदर्शित करता है। ऐसी प्रवृत्तियों का एक समूह उद्यमियों के सम्बन्ध में स्वभाव के रूप में जाना जाता है। यह स्वभाव उद्यमिता व्यवहार को प्रदर्शित करता है।
(4) प्रभावोत्पादकता का बोध-कार्य एवं श्रम किसी भी उद्यमी के लिए आवश्यक हैं। अतः उद्यमी स्वतः क्रियाशील होने की प्रवृत्ति रखते हैं। यही प्रवृत्ति उद्यमिता के क्षेत्र में उनकी सफलता को बढ़ा देती है। वे किसी समस्या को भविष्य में टालने की अपेक्षा उसका निराकरण करने में अधिक विश्वास रखते हैं। इसके साथ-साथ वे अनुपालक न होकर मार्गदर्शक, सृजनशील एवं समस्या निवारक का कार्य निर्वाह करते हैं।
(5) स्वतन्त्रता-अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त है । उद्यमी भी अभिव्यक्ति तथा क्रिया की स्वतन्त्रता को महत्वपूर्ण मानते हैं। उनकी मनोदशा दूसरे के निर्देशन में कार्य करने की नहीं होती है। स्वयं की विचारशीलता के अनुसार कार्य करने से वे स्वामित्व एवं स्वतन्त्रता को अधिक मान्यता देते हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण है कि उद्यमियों में स्वावलम्बन की भावना उनके पारिवारिक वातावरण में निर्मित होती है।
(6) जोखिम सहने की प्रवृत्ति-सन्तुलित व व्यावहारिक जोखिमों को वहन करना ही उद्यमी होने का लक्षण है। उद्यमिता के अन्तर्गत कभी-कभी व्यक्ति को अनिश्चित परिस्थितियों में निर्णय लेने पड़ते हैं। ऐसे परिस्थितियों में एक उद्यमी सम्भावित चुनौतियों का पूर्वानुमान रखते हुए उसमें छिपी सम्भावनाओं को देखता है । वह असफलता की अपेक्षा सफलता के प्रति अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है।
(7) शीघ्र प्रतिपुष्टि प्राप्त करना-जिस प्रकार प्रभावी सम्प्रेषण के लिए प्रतिपुष्टि प्राप्त करना आवश्यक है, उसी प्रकार उद्यमी को अपने द्वारा किये कार्यों का मूल्यांकन करके उनमें व्याप्त कमियों को दूर करके उनमें आवश्यक सुधार एवं परिवर्तन करना चाहिए अर्थात् अपनी क्षमताओं का पुनर्मूल्यांकन करके अपने द्वारा किये गये परिवर्तनों एवं नये परीक्षण आयामों का निश्चित एवं उचित मूल्यांकन करना चाहिए।
(8) सफलता के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण–उद्यमी को हमेशा सफलता प्राप्ति के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए। कार्य को सफल सम्पन्नता ही उनके कार्य के श्रेष्ठ क्रियान्वयन की परिचायक होती है । सफलता की उत्कण्ठा उनमें आत्मविश्वास, ऊर्जा के उच्च स्तर को जगाती है एवं कार्य के प्रति सकारात्मकता एवं सुदृढ़ता को कायम रखती है।
(9) नियन्त्रण का आन्तरिक केन्द्र-जो उद्यमी परिस्थितियों को दैवीय शक्तियों पर छोड़ने के बजाय उन्हें स्वयमेव परिवर्तित एवं प्रभावित करते हैं, मनोवैज्ञानिक भाषा में इन्हें नियन्त्रण का आन्तरिक केन्द्र वाले व्यक्तियों के रूप में माना जाता है। जो व्यक्ति उत्साह एवं शक्ति से परिपूर्ण होते हैं वे अपनी गलतियों को स्वीकार करने के साथ-साथ दायित्व भी वहन करते हैं
(10) नेतृत्व में लचीलापन-उद्यमी की नेतृत्व शैली में लोच का समावेश होना चाहिए। उद्यमी स्वत: कठिन परिश्रम करके आदर्श प्रस्तुत,कार्य की आवश्यकता व कर्मचारियों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करके नेतृत्व की हितैषी शैली को अपनाता है। धीरे-धीरे वह शैली प्रबन्ध को अपनाकर एक उद्यमी अपने व्यवसाय को स्वतः संचालन की स्थिति में ला सकता है।
(11) प्रतिस्पर्धा की भावना-उद्यमी का ढंग एवं दृष्टिकोण प्रतिस्पर्धा होता है। वह व्यवसाय एवं सम्बन्धों में स्पष्ट भेद रखता है। वह केवल एक ही ध्येय रखता है। उसकी प्रतिस्पर्धी उसके द्वारा स्वयं स्थापित मानदण्डों के विरुद्ध होती है न कि दूसरों के द्वारा स्थापित मानदण्डों के और यही उद्यमी के विकास का मूल आधार है।
(12) सामाजिक नव-प्रवर्तन का उद्भव-आधुनिक समय में एक उद्यमी के अन्तर्मन में. सामाजिक नव-प्रवर्तन का प्रादुर्भाव होना परम आवश्यक है । उद्यमी राष्ट्र के सामाजिक विकास की प्रक्रिया का एक आधारभूत घटक है। यह समाज के कल्याण हेतु कार्य करता है। (13) कर्मचारियों से आशाएँ एवं सहयोग-उद्यमी यह आकांक्षा रखता है कि उसकी संस्था एवं संगठन से जुड़े कर्मचारी भी उसी की तरह कार्य के प्रति समर्पित व लगनशील हों। यद्यपि कर्मचारियों के प्रति विश्वास की मात्रा भिन्न-भिन्न हो सकती है, परन्तु फिर भी वह अपने कर्मचारियों से मित्रवत् एवं मधुर व्यवहार बनाये रखता है ।
लघु उत्तरीय प्रश्न
(Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. उद्यमिता व्यवहार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
Write the short notes or Entrepreneurial Behavi vurs.
उद्यमिता व्यवहार (Entrepreneurial Behaviours)
उद्यमी नवाचार,स्वामित्व, स्वतन्त्रता तथा असाधारण कार्य का सम्मान करते हैं। जैसे ऐसा व्यक्ति जो मनोवैज्ञानिक रूप से नवाचार का सम्मान करता है वह असरों को पहचानने के लिये कल्पना का प्रयोग करने की प्रवृत्ति विकसित करता है।
जब वह एक स्थिति का सामना करने के लिए लक्ष्य या कार्य साधनों को चुनता है। ऐसी प्रवृत्तियों का एक समूह उद्यमियों के सम्बन्ध में स्वभाव के रूप में जाना जाता है। यह स्वभाव उद्यमिता व्यवहार को प्रदर्शित करते हैं और उद्यमिता गतिविधियों का अनुसरण करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
(1) सामान्य जोखिम उठाने की प्रवृत्ति (Trend of General Risk Taking)उद्यमियों में ऐसे किसी रास्ते, जो दूसरों के अनुसरण किए जाते हैं, का अनुसरण करने की प्रवृत्ति नहीं पाई जाती है। जोखिम लेने की अपनी इस प्रवृत्ति के कारण उद्यमी, विचारों, गतिविधि, स्थिति और समय के अर्थों में कुछ नया करने का प्रयत्न करता है।
(2) कल्पना या अन्तर्ज्ञान की प्रवृत्ति (Trend of Imagination or Intuition)-उद्यमी दी हुई स्थिति या न दिखाई देने वाले की कल्पना करने की प्रवृत्ति रखता है और भविष्य का मार्ग तय करने के लिए अन्तर्ज्ञान या पूर्वाभास का भी प्रयोग करता है।
(3) आर्थिक अवसरों हेतु पहचान (Identification for Economic Opportunities)-चूँकि उद्यमी में स्वतन्त्रता और स्वामित्व की प्रवृत्ति होती है, वे किसी भी दी हुई दशाओं में आर्थिक सम्भावनाओं, अवसरों को पहचानने की तीव्र दृष्टि रखते हैं । उनकी यह प्रवृत्ति उन्हें दूसरों से भिन्न करती है।
(4) अभिव्यक्ति और कार्य की स्वतन्त्रता का अनुभव करना (To feel Independent work and Representation)–उद्यमियों को अनुदेश प्राप्त करने में और उन पर कार्य करने पर प्रसन्नता का अनुभव नहीं होता। उनमें सोचने और कार्य करने की स्वतन्त्रता दोनों का अनुभव करने की प्रवृत्ति होती है।
(5) पहल करना (To Start) उद्यमी कार्य की पूजा करते हैं और वह इस बात में विश्वास रखते हैं कि वह कार्य द्वारा कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए पहल करने की प्रवृत्ति उनमें प्राकृतिक रूप से पाई जाती है।
(6) सफलतापूर्वक कार्य सम्पादन से सन्तुष्टि (Satisfaction form Successful Work)-सफलतापूर्वक कार्य सम्पादन सफलता का एक संकेत होता है। वे अपने कार्य निष्पादन की ऐसी पृष्ठभूमि से सन्तुष्टि प्राप्त करने की प्रवृत्ति रखते हैं।
(7) स्थिति का विश्लेषण एवं कार्य योजना (Anlyse the Situation and Planning) कार्य के प्रति आदर के फलस्वरूप उद्यमी स्थितियों का विश्लेषण बहुत सावधानीपूर्वक करते हैं और तब उस पर अमल करते हैं। उद्यमी प्रत्येक कार्य को पूरी गम्भीरता एवं समुचित उत्तरदायित्व से करने की प्रवृत्ति विकसित करते हैं।
उक्त प्रवृत्ति ‘लक्ष्य’ और ‘दिशा’ प्रदान करती है । चूँकि यह प्रवृत्ति सामान्यत: उद्यमियों के मध्य पाई जाती है अत: यह उद्यमिता का मूल केन्द्र सृजित करती है और उद्यमिता की आत्मा मानी जाती है। एक बार जब उद्यमीय भावना आत्मसात् हो जाती है तो उनके लिए उद्यमिता प्रेरणा की आवश्यकता और इच्छा महसूस करना आसान और तर्कसंगत हो जाता है।
(8) वातावरण बदल सकने में विश्वास (Believe to Change Atmosphere)-उद्यमी अपनी क्षमता के अनुसार वातावरण को प्रभावित कर सकने की अपनी क्षमता में विश्वास करते हैं। वे किसी वस्तु का परिवर्तन करने की प्रवृत्ति रखते हैं न कि प्रत्येक वस्तु को भाग्य या अपने नियन्त्रण से बाहर की शक्तियों पर छोड़ देना पसन्द करते हैं।
प्रश्न 2. सामाजिक उत्तरदायित्व की आवश्यकता एवं महत्व बताइये।
सामाजिक उत्तरदायित्व की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Social Responsibility)
व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्व की आवश्यकता एवं महत्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) व्यवसाय की दक्षता सुनिश्चित करना (To Ensure Viability of Business)-व्यवसाय का अस्तित्व इसलिए है क्योंकि वह समाज को अमूल्य सेवा करता है। यदि वह समाज की आकांक्षाओं को पूरा करने में सफल रहता है अथवा वह समाज की आशाओं के अनुरूप कार्य नहीं कर पाता है तो उसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। यदि व्यवसाय को अपनी सामाजिक शक्ति बनाए रखनी है तो उसे समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य करना होगा। इसे ‘उत्तरदायित्व का लौह नियम’ (iron Law of Responsibility) कहते हैं। इतिहास साक्षी है कि समाज ने उनकी सामाजिक शक्ति को हासित किया है, जिन्होंने इस शक्ति का उपयोग सामाजिक हित में नहीं किया।
(2) दीर्घकालीन स्वः हित को पूरा करना (To Fulfil Long Run Selt Interests) –यह प्रत्येक व्यवसाय के हित में है कि उसे अपनी क्रियाओ के संचालन के लिए एक अच्छा समुदाय मिले । ऐसे समाज के निर्माण के लिए व्यवसाय को सामाजिक कल्याण के कुछ विशेष कार्यक्रम चलाने होंगे। सामाजिक सुधारों के फलस्वरूप अपराध कम होंगे सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए कम धन व्यय होगा, अच्छे और कुशल श्रमिकों की भर्ती होगी. श्रम-परिवर्तन एवं अनुपस्थिति दर घटेगी और इस प्रकार एक अच्छा, दीर्घकालीन लक्ष्य-लाभ अधिकतमीकरण’ (Prolit Maximization) को प्राप्त करने में सफल होगा।
(3) अच्छी लोक-भावना की स्थापना (TO Establish Better Public Image)-अधिक ग्राहकों को आकर्षित करने, अच्छे कर्मचारियों की भर्ती करने तथा अधिक लाभ कमाने के लिये यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यावमायिक मगठन जनता के समक्ष अपनी तस्वीर पेश करे। इसके लिए उसे सामाजिक लक्ष्यों की प्राप्ति मे महयोग करना होगा।
(4) सरकारी नियमन एवं नियन्त्रण से बचना- (1) AVOId Covernment Regulation and Control)-प्रत्येक व्यवसाय के लिए सरकारी नियमन एव नियन्त्रण कष्टकारी होते हैं। इसमें शक्ति एवं धन का अपव्यय होता है और व्यवसाय में निर्णय लेने की लोचकता सीमित हो जाती है। सामाजिक उत्तरदायित्वों को पूरा करने में व्यवसायियों की असफलता सरकारी हस्तक्षेप-नियमन एवं नियन्त्रण को आमन्त्रित करती है । व्यवसायी स्वयं सामाजिक दृष्टि से दायित्वपूर्ण निर्वाह करते हुए सरकारी हस्तक्षेप को हतोत्साहित कर सकते हैं और सामाजिक कार्यक्रमों में सरकार के साथ सहयोग करके सरकार का विश्वास प्राप्त कर सकते हैं।
(5) राष्ट्रीय संसाधन एवं आर्थिक शक्ति के दुरुपयोग से बचना (To Avoid Misuse Of National Resources and Economic Power)-समाज के उत्पादन साधनों पर व्यवसायियों का पर्याप्त अधिकार होता है । उन्का यह दायित्व है कि इन साधनों का उपयोग समाज की भलाई के लिए ही करें और यह न भूलें कि राष्ट्रीय संसाधनों के उपयोग का अधिकार उन्हे समाज ने ही दिया है और वह भी एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए—समाज की भलाई के लिए अधिक धन का मजन : इस अधिकार का प्रयोग करते समय उन्हें सामाजिक दायित्वों का पामना काः राहा
प्रश्न 3. सरकार एवं व्यवसाय का एक दूसरे के प्रति क्या उत्तरदायित्व है ? What are the mutual responsibilities of the government and the enterprise ?
उत्तरसरकार के प्रति दायित्व (Responsibilities towards Government)
सरकार के प्रति निम्नलिखित उत्तरदायित्व हैं-
(1) करों का समय पर भुगतान करना (Timely Payment of Taxes) व्यवसाय का यह दायित्व है कि केन्द्र सरकार, राज्य सरकार तथा स्थानीय सरकार द्वारा समय-समय पर लगाए जाने वाले करों का समय पर भुगतान करे। इसका प्रमुख कारण यह है कि कर सरकार की आय का महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं और सरकार को राजस्व का बहुत बड़ा हिस्सा करों द्वारा हो प्राप्त होता है। सरकार इस राजस्व से सामाजिक सेवाओं की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।
(2) वैधानिक प्रावधानों का पालन करना (To Follow Legal Provisions)व्यवसाय को समय-समय पर लागू वैधानिक व्यवस्थाओं का पालन करना चाहिए । व्यावसायिक क्रियाओं से सम्बन्धित सभी नियमों का उचित रूप से गम्भीरता से पालन करना चाहिए क्योंकि ये नियम समाज के सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखते हुए बनाये जाते हैं। इनका पालन करके व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाया जा सकता है ।
(3) राजनीतिक सम्बन्धों का दुरुपयोग न करना (To Avoid Misuse of Political Relations)-व्यवसाय द्वारा राजनीतिक सम्बन्धों का उपयोग व्यवसाय के हित में ही किया जाना चाहिए। इन सम्बन्धों के माध्यम से व्यवसाय के अधिकारों एवं हितों की रक्षा की जानी चाहिए। इसका उपयोग किसी भी दशा में अनुचित एवं अवैधानिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
प्रश्न 4. भारतीय सन्दर्भ में उद्यमी के सामाजिक उत्तरदायित्व की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। Explain the essentials of Social responsibilities in the context of Indian Entreprencur.
भारतीय सन्दर्भ में उद्यमी के सामाजिक उत्तरदायित्व की विशेषताएँ
(Essentials of Social Responsibilities in the context of Indian Entrepreneur)
(1) निजी एवं सार्वजनिक उपक्रमों से सम्बन्ध (Relation to Public as well as Private Enterprises)-उद्यमी के सामाजिक उत्तरदायित्व की विचारधारा निजी एवं सार्वजनिक दोनों ही प्रकार के उपक्रमों से सम्बन्धित है।
(2) व्यक्तिगत एवं सामाजिक हितों में समन्वय (Co-ordination between Individual and Social Interests) यह विचारधारा उद्यम के दोनों पहलुओं पर ध्यान देती है। यह उद्यमिता के व्यक्तिगत पहलू (लाभ) तथा सामाजिक पहलू (सेवा) दोनों को परस्पर सम्बन्धित करती है
(3) प्रन्यास के सिद्धान्त को मान्यता (Recognition to Trusteeship concept) सामाजिक उत्तरदायित्व की विचारधारा महात्मा गाँधी के न्यास के सिद्धान्त की पुष्टि करती है वह इस बात पर बल देती है कि उद्यमी समाज के साधनों का समुचित ढंग से प्रयोग करे तथा स्वयं को उद्यम की सम्पत्तियों का न्यासी (Trustee) समझे, न कि स्वामी।
(4) द्विमार्गीय क्रिया (Two ways traffic)-उद्यमी के सामाजिक उत्तरदायित्व की विचारधारा द्विमार्गीय है। उद्यमी समाज के विभिन्न वर्गों के प्रति अपने दायित्वों को निभाता है। इसी प्रकार उद्यमी के प्रति समाज के विभिन्न वर्ग भी अपने दायित्वों की पूर्ति करते हैं। यह आपसी सद्विश्वास व नैतिकता पर आधारित है।
(5) अनवरत प्रक्रिया (Continuous Process) उद्यमी के सामाजिक उत्तरदायित्व की प्रक्रिया निरन्तर जारी रहती है। उद्यमी द्वारा अपने दायित्वों को एक बार निर्वाह कर दिया जाना पर्याप्त नहीं होता, वरन् उसके द्वारा दायित्वों का निर्वाह व्यावसायिक क्रियाओं की समाप्ति तक निरन्तर किया जाना चाहिए।
(6) दायित्वों का व्यापक क्षेत्र (Wide scope of responsibility)-इन दायित्वों का व्यापक क्षेत्र है। समाज स्वयं एक विशाल रूप लिये हुए है। अतः उसे विशाल समाज के विभिन्न वर्गों के प्रति दायित्व इसके क्षेत्र को व्यापक बना देते हैं।
(7) सामूहिक एवं सामाजिक संस्था (Social Institution)-उद्यम के सामाजिक उत्तरदायित्व को एक सामूहिक एवं सामाजिक संस्था मानते हैं, जिसका संगठन एवं संचालन समाज के लाभ के लिए किया जाता है।
(8) नैतिकता एवं सद्विश्वास (Morality and Goodfaith)-उद्यमी के सामाजिक उत्तरदायित्व पूर्णतया नैतिकता पर आधारित हैं। उद्यमी की स्वयं की नैतिकता व विभिन्न वर्गों के प्रति सद्विश्वास ही इसे पूरा करता है।
(9) कानून की सीमाओं से बाहर (Beyond the Limits of Law)-ये उत्तरदायित्व विधिकरण (Legalisation) परिधि से परे होते हैं। इनको कानूनी रूप से पूरा नहीं कराया जा सकता।
(10) परिवर्तनशीलता (Dynamicity)-ये उत्तरदायित्व अपने अर्थ, क्षेत्र एवं परिमाण में परिवर्तनशील हैं। इनमें देश, काल एवं परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन होते रहते हैं। सामाजिक उत्तरदायित्व भी हर युग की संस्कृति, सत्यता, जीवन-शैली एवं आवश्यकताओं के अनुसार बदलते रहते हैं। ये उत्तरदायित्व जड़ (Rigid) नहीं रह सकते हैं।
(11) नवीन सामाजिक व आर्थिक मूल्यों की स्थापना (Establishment of New Social and Economic Values)-सामाजिक उत्तरदायित्व की विचारधारा नवीन सामाजिक व आर्थिक मूल्यों की स्थापना करने में सहायक होती है, (जैसे व्यावसायिक विकेन्द्रीकरण)।
(12) विभिन्न पक्षकारों का सर्वांगीण विकास (Overall development of various parties)-उद्यमिता के सामाजिक उत्तरदायित्व की विचारधारा समाज के हर वर्ग के विकास पर बल देती है। जितना सम्भव हो सके, उसके दायित्वों को पूरा करने का प्रयास करती है !
प्रश्न 5. सामाजिक उत्तरदायित्व को निभाने में आन वाली बाधाएँ कौन-सी हैं ? What are the hurdles in the way of social responsibilities of entrepreneuer ?
उत्तरसामाजिक उत्तरदायित्व के मार्ग में बाधायें
(Hurdles in the way of social responsibilites)
उद्यमशील वर्ग के द्वारा सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रभावी निर्वाह में आने वाली प्रमुख बाधाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) व्यवसाय के प्राथमिक उद्देश्य पर कम महत्व देना (Dilution of Business Primary Purpose)-सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति में व्यवसाय के संलग्न होने का अर्थ है व्यवसाय द्वारा आर्थिक उत्पादकता पर कम बल देना, अपने नेताओं के हितों को विभाजित करना, बाजार में अपने व्यवसाय को कमजोर करना। इसके परिणामस्वरूप व्यवसाय न तो अपने आर्थिक उद्देश्यों को पूरा कर पाएगा और न सामाजिक उद्देश्यों को। किसी भी दिशा में व्यवसाय को असफलता व्यवसाय की ख्याति पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।
(2) सामाजिक सलग्नता की लागत (Cost of Social Involvement)-सामाजिक लक्ष्यों की आपूर्ति से व्यवसाय को सामान्यत: कोई आर्थिक लाभ प्राप्त नहीं होता। सामाजिक कार्यों पर किया गया व्यय उसकी आय को कम करता है। यदि यह व्यय अधिक है तो हो सकता है कि उद्योग की सीमान्त फर्मे बाजार से हट जाएँ और उत्पादन कार्य बन्द कर दें।
(3) सामाजिक कौशल का अभाव (Lack on Social Skills)-अनेक व्यवसायियों में सामाजिक उत्तरदायित्वों का अनुपालन करने की क्षमता ही नहीं होती, उनका दृष्टिकोण मूल रूप से आर्थिक होता है। ऐसे कार्यों के लिए वे मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक रूप से अयोग्य होते हैं।
(4) हिसाब देयता का अभाव (1.ack Of Accountability)-सामाजिक उत्तरदायित्वों को पूरा करने में व्यवसायी जनता के प्रति हिसाब देय नहीं होते। प्रबन्ध का एक आधारभूत सिद्धान्त यह है कि ‘हिसाब देयता’ (Accountability) और ‘उत्तरदायित्व ( Responsibility) दोनों साथ-साथ चलते हैं ! अत. एक तर्क यह दिया जाता है कि जब तक सामाजिक उत्तरदायित्व को स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत न की जाये, व्यवसाय सामाजिक क्रियाओं के स्थान पर आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने पर ही समुचित ध्यान दे ।
(5) शक्ति का अत्यधिक केन्द्रीकरण (Excessive Concentration of PONT. व्यवसाय में अत्यधिक सामाजिक शक्ति होती है और सम्पूर्ण समाज पर इसके २ भाव को दख जा सकता हे । व्यवसाय की सामाजिक क्रियाओं के साथ व्यवसाय को पूर्व गपत क्रियाओं को सम्बद्ध करने की प्रक्रिया म व्यवसाय में अत्यधिक शांत करके हो जाएगा। आलोचकों का विचार है कि शायद समाज व्यवसाय में इतनी अधिक शक्ति का संकेन्द्रण न चाहे।
(6) अन्तर्राष्ट्रीय भुगतान सन्तुलन की स्थिति को कमजोर करना (To weaken International Balance of Payments)-सामाजिक कार्यक्रमों पर व्यय करने से व्यवसाय की लागतें बढ़ती हैं । लागतों में यह वृद्धि उत्पादकों की कीमत को बढ़ाती है। यदि इन फर्मों को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में ऐसी फर्मों के साथ प्रतियोगिता करने के लिए खुला छोड़ दिया जाए, जिनकी सामाजिक लागतें शून्य हैं, तो ये फर्मे उनकी प्रतियोगिता के सामने नहीं ठहर पाएंगी। इसका परिणाम देश में ‘भुगतान सन्तुलन की प्रतिकूलता’ हो सकता है।