Role of Social-Economic Environment in Entrepreneurship
वातावरण की भूमिका
किसी भी देश की सामाजिक व आर्थिक नीतियाँ उस देश के उद्यमिता विकास को प्रभावित करती हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि उद्यमिता विकास में देश की सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक नीतियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
उद्यमिता विकास में आर्थिक पर्यावरण की भूमिका
(Role of Economic Environment in Entrepreneurial Development)
उद्यमिता विकास में आर्थिक पर्यावरण की प्रत्यक्ष एवं महत्वपूर्ण भूमिका होती है । उद्यमिता के आर्थिक वातावरण का निर्माण उन सभी घटकों एवं शक्तियों से होता है, जिनका उद्यमिता की कार्य प्रणाली एवं सफलता पर प्रत्यक्ष आर्थिक प्रभाव पड़ता है। इनमें से कुछ प्रमुख निम्न
(1) अर्थव्यवस्था की दशा- अर्थव्यवस्था की दशा विकसित, विकासशील या अविकसित हा सकती है। विकसित अर्थव्यवस्था में उद्यमिता का विकास तीव्र गति से होता है, जबकि विकास शील व अविकसित अर्थव्यवस्था में उद्यमियों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
(2) अर्थव्यवस्था संरचना- अर्थव्यवस्था की संरचना आर्थिक वातावरण का प्रमुख घटक है। राष्ट्रीय आय का ढाँचा एवं स्रोत, आय का वितरण, पूँजी निर्माण की दर, विदेशी व्यापार के विकास का स्तर आदि सभी घटक अर्थव्यवस्था की संरचना को प्रभावित करते हैं घटको का सकारात्मक विकास उद्यमिता के विकास के लिए महत्वपूर्ण अवसर उपलब्ध कर सकता है।
(3) आपूर्तिकर्ता-प्रत्येक संस्था को उत्पादन के लिए कच्चा माल,मशीन, उपकरण, शक्ति के साधन आदि की आवश्यकता पड़ती है जिसकी पूर्ति आपूर्तिकर्ता करते हैं। इसलिए आपूर्तिकर्ता भी व्यावसायिक वातावरण के महत्वपूर्ण घटक हैं। इनकी नीतियां माल तथा सेवाओं की किस्म तथा शर्ते आदि सभी उद्यमिता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।
(4) ग्राहक-ग्राहक (उपभोक्ता) व्यावसायिक वातावरण का महत्वपूर्ण घटक है। ग्राहकों की आयु लिंग, आवश्यकता, इच्छा, जीवन स्तर आदि भी उद्यमिता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।
(5) प्रतिस्पर्धी संस्थाएं-प्रतिस्पर्धी संस्थाएं वह होती हैं, जो समान वस्तुओं का निर्माण एवं विक्रय करती हैं। यदि व्यावसायिक जगत में प्रतिस्पर्धी संस्थान अधिक हैं तो उद्यमिता का विकास तीव्रगति से होता है और यदि कम है तो उद्यमिता का विकास धीमी गति से होता है।
(6) देश की आर्थिक प्रणाली – देश की आर्थिक प्रणाली, पूँजीवादी,साम्यवादी,समाजवादी तथा मिश्रित किसी भी प्रकार की हो सकती है। देश की आर्थिक प्रणाली उस देश के उद्यमिता के विकास को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। स्वतन्त्र या मिश्रित प्रणाली में उद्यमिता का तीव्र विकास सम्भव होता है।
(7) अर्थचक्र में दशा या मूल्य स्तर या मुद्रा प्रसार की दर-अर्थव्यवस्था में आर्थिक चक्र (मन्दी-तेजी का काल) चलता रहता है। अतः अर्थचक्र की उद्यमिता के विकास के लिए अवसर एवं चुनौतियां उत्पन्न करते हैं। इसी प्रकार मुद्रा प्रसार या मूल्य स्तर की दर में परिवर्तन की गति भी उद्यमिता के वातावरण को प्रभावित करती है
(8) पूँजीनिर्माण एवं निवेश-पूँजी व्यवसाय का जीवन रक्त’ होती है। अतः देश में पूँजी निर्माण की दर, पूँजी बाजार का विकास, निवेशकों की उपलब्धता आदि देश के उद्यमशील वातावरण को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। इनके सकारात्मक विकास से देश में व्यवसाय के विकास का वातावरण बनता है
(9) श्रम शक्ति एवं श्रम संघ-श्रमशक्ति व्यवसाय के आर्थिक वातावरण का रचनात्मक कारक है । श्रम की उपलब्धि उनका शैक्षिणक एवं मानसिक स्तर, श्रम उत्पादकता, श्रमिकों की प्रबन्ध में भागीदारी आदि श्रमशक्ति सम्बन्धी पहलू उद्यमिता के वातावरण को प्रभावित करते हैं।
(10) आर्थिक नीतियां एवं सन्नियम-देश की आर्थिक नीतियां तथा सन्नियम देश में उद्यमिता के वातावरण का नियमन करते हैं। औद्योगिक नीति, लाइसेन्स नीति, मौद्रिक नीति, आयात-निर्यात नीति तथा कम्पनी सनि नयम, बैंकिंग सन्नियम, विदेशी विनियम सम्बन्धी सन्नियम आदि उद्यमिता के वातावरण का नियमन करते हैं। जिससे उद्यमिता का विकास प्रभावित होता है ।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आर्थिक वातावरण के विभिन्न घटक उद्यमिता के वातावरण का निर्माण करते हैं तथा व्यवसाय को प्रभावित करते हैं। देश की आर्थिक प्रणाली, अर्थव्यवस्था की स्थिति, व्यापार चक्र, अर्थव्यवस्था की संरचना, देश की आर्थिक नीतियां एवं सन्नियम, पूँजी निर्माण की गति,ग्राहकों की प्रकृति,श्रम शक्ति, आपूर्तिकर्ता आदि सभी उद्यमिता के आर्थिक वातावरण के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उद्यमिता विकास में सामाजिक पर्यावरण की भूमिका
(Role of Social Environment in Entrepreneurial Development)
सामाजिक पर्यावरण का निर्माण मूल्य, विश्वास,रीति-रिवाज,संस्कृति, परम्परा, शिक्षा आदि के द्वारा होता है अतः सामाजिक पर्यावरण का उद्यमिता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है । सामाजिक पर्यावरण का निर्माण निम्नलिखित घटकों द्वारा होता है-
(1) विचारधारा-समाज की विचारधारा यदि रूढ़िवादी है तो उद्यमिता के विकास का वातावरण नहीं बन पाता किन्तु यदि समाज की विचारधारा प्रगतिशील, वैज्ञानिक व कुछ नया करने की होती है तो इससे व्यवसाय के विकास के प्रति वातावरण बनता है और उद्यमिता का विकास होता है
(2) जनसंख्या का विस्तार तथा विशेषताएं-देश की जनसंख्या में युवा वर्ग यदि शिक्षित और समृद्ध है तो उद्यमिता का विकास तेजी से होगा। इसी प्रकार लिंग के आधार पर यदि पुरुषों की जनसंख्या अधिक है तो भी उद्यमिता का विकास होता है । इसके विपरीत यदि समाज रूढ़िवादी है या अशिक्षित है तो उद्यमिता के विकास में कठिनाई होती है।
(3) कार्य के प्रति धारणा-नागरिकों में संतोष एवं सम्मान के लिए कार्य की भावना अथवा धन कमाने की इच्छाशक्ति व्यवसाय के विकास को प्रभावित करते हैं।
(4) परिवार संरचना-यदि संयुक्त परिवार प्रणाली है तो उद्यमिता का विकास होगा किन्तु एकल परिवार में उद्यमिता विकास में बाधा रहती है।
(5) परिवर्तनों एवं जोखिमों के प्रति दृष्टिकोण-परिवर्तनों के प्रति जनता का दृष्टिकोण एवं जोखिम वहन करने की क्षमता तथा भावना उद्यमिता के वातावरण को प्रभावित करते हैं। परिवर्तनों को अपनाने तथा जोखिम उठाने के प्रति भावना जितनी सकारात्मक होती है, उतना ही तीव्र उद्यमिता का विकास हो सकता है।
(6) परम्पराएं एवं प्रथाएं-समाज द्वारा स्थापित प्रथाएँ एवं परम्पराएं उद्यमिता का मार्गदर्शन करती है। इससे भी उद्यमी वर्ग का कार्य संचालन प्रभावित होता है।
(7) सामाजिक मूल्य समाज के नैतिक मूल्य भी उद्यमिता की नैतिकता को प्रभावित करते हैं। अच्छे सामाजिक मूल्यों से अच्छे उद्यमिता वातावरण का निर्माण सम्भव है।
(8) जनता का आपसी सहयोग एवं संगठन का स्तर- यदि जनमानस में सहकारिता की भावना है तथा मिल- न-जुलकर कार्य करने की नियति है तो उद्यमिता का विकास सम्भव है अन्यथा नहीं।
(9) प्रबन्धकीय पहलुओं के प्रति दृष्टिकोण-समाज प्रबन्धकों के प्रति दृष्टिकोण,प्रबन्धकों द्वारा अधिकारों का प्रत्यायोजन, उत्तरदायित्वों का निर्वहन, कर्मचारियों की प्रबन्ध में भागीदारी इत्यादि पहलुओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण भी सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण का निर्माण करता है तथा वह उद्यमिता को प्रभावित करता है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सामाजिक-आर्थिक वातावरण की उद्यमिता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका है। यह वातावरण जितना सरल, स्वतंत्र एवं सन्तुलित होता है; उद्यमिता का विकास उतनी ही तेजी से होता है, जबकि विपरीत दशा में यह उद्यमिता के विकास में बाधाएं उत्पन्न कर सकता है।
प्रश्न 2. STEP विश्लेषण से क्या आशय है? यह किन-किन कारकों से प्रभावित होता है? What is meant by STEP analysis? Discuss the factors effecting it. . .
STEP विश्लेषण (STEP Analysis)
STEP विश्लेषण का सम्बन्ध बाह्य व्यावसायिक वातावरण से है। इसके अन्तर्गत उन चार मुख्य तत्वों को शामिल किया जाता है। जिनके अन्तर्गत व्यावसायिक संस्था को अपना कार्य करना होता है। महत्वपूर्ण है कि ये सभी तत्व अनियन्त्रणीय माने जाते हैं क्योंकि इन पर व्यवसायिक संस्था का कोई नियन्त्रण नहीं होता। कोई भी संस्था इनमें कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकती। प्रत्येक संस्था को इन तत्वों को दी हुई परिस्थितियाँ मानकर स्वीकार करना होता है और इनके अनुरूप ही अपनी नीतियाँ एवम् कार्यक्रम तैयार करने होते हैं। ये तत्व निम्न प्रकार हैं-
S- सामाजिक वातावरण (Social Environment)
T-तकनीकी वातावरण (Technological Environment)
E— आर्थिक वातावरण (Economic Environment)
P-राजनीतिक वातावरण (Political Environment)
इनका वर्णन निम्न प्रकार है-
(1) सामाजिक वातावरण (Social Environment)—सामाजिक वातावरण से आशय उस देश एवम समाज के वातावरण से है जिसमें व्यवसायिक संस्था को कार्य करना होता है। इसके अन्तर्गत ग्राहकों, कर्मचारियों एवम अन्य सामाजिक समूहों से सम्बन्धित तत्वों को शामिल किया जाता है। इसके अन्तर्गत शामिल किए जाने वाले प्रमुख तत्व निम्न प्रकार हैं-
(i) ग्राहकों की पसन्द एवम रुचि
(ii) ग्राहकों की आदत एवम स्वभाव
(iii) बाजार में स्थापित अन्य प्रतियोगियों की स्थिति
(iv) ग्राहकों का उन प्रतियोगियों के प्रति झुकाव
(v) ग्राहकों की कुल माँग एवम उस माँग को प्रभावित करने वाले तत्व
(vi) ग्राहकों की आर्थिक स्थिति पृष्ठभूमि
(vii) ग्राहकों की पारिवारिक एवम सामाजिक
(viii) कर्मचारियों की क्षमता एवम योग्यता
(ix) कर्मचारियों का मनोबल
(x) कर्मचारियों की आवश्यकतायें एवम आशायें
(xi) समाज की व्यवसायिक संस्था से आशायें
(xii) समाज पर धार्मिक एवम सामाजिक मान्यताओं का प्रभाव
(2) तकनीकी वातावरण (Technological Environment)-आधुनिक युग विज्ञान एवम तकनीक का युग माना जाता है । गत 10 वर्षों में विज्ञान एवम तकनीक के क्षेत्र में जितनी तीव्र गति से प्रगति हुई है। उसने इन तत्वों को व्यवसायिक वातावरण का सबसे महत्वपूर्ण तत्व बना दिया है । इस क्षेत्र में होने वाले नित्य नए आविष्कारों एवम प्रयोगों ने प्रत्येक व्यवसायी को इस बात के लिए बाध्य किया है कि वह न केवल इन पर विचार करें बल्कि इन्हें अपनाने का भी प्रयास करे। इसके अन्तर्गत निम्न तत्वों को शामिल किया जाता है-
(i) देश में उपलब्ध तकनीकी ज्ञान का स्तर (ii) उपलब्ध मशीनों एवम उपकरणों की क्षमता एवम लागत (iii) व्यवसाय के क्षेत्र में होने वाले तकनीकी परिवर्तन (iv) इन विकास कार्यक्रमों को अपनाने की सम्भावना (v) अन्य प्रतियोगियों द्वारा अपनाई गई तकनीक
(3) आर्थिक वातावरण (Economic Environment)-आर्थिक वातावरण के अन्तर्गत व्यवसाय से सम्बन्धित सभी नीतियों, नियों एवम प्रतिबन्धों को शामिल किया जाता है। जिनका पालन करना प्रत्येक व्यवसायिक संस्था के लिए अनिवार्य होता है। इनके अन्तर्गत औद्योगिक नीति, मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति, विदेशी व्यापार नीति आदि को शामिल किया है । इसके प्रमुख तत्व निम्न प्रकार है-
(i) सरकार द्वारा घोषित
(ii) नवीनतम औद्योगिक नीति
(iii) नवीनतम मौद्रिक नीति एवम राजकोषीय नीति
(iv) नवीनतम विदेश व्यापार नीति
(v) नवीनतम बजट एवम बजटरी प्रावधान
(vi) नवीनतम श्रम नीति
(vii) नवीनतम लाइसन्सिंग नीति
(viii) व्यवसाय एवम उद्योग से सम्बन्धित नवीनतम नियम, आदि ।
(4) राजनीतिक वातावरण (Political Environment) राजनीतिक वातावरण के अन्तर्गत मुख्य रूप से तीन अंगों को शामिल किया जाता है। विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका । देश में कार्य करने वाली कोई भी व्यवसायिक संस्था इन तीन अंगों की अवहेलना नहीं कर सकती। इस भाग के अन्तर्गत मुख्य रूप से निम्न तत्वों को शामिल किया जाता है-
(i) देश में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल एवम उसकी नीतियाँ
(ii) देश में कार्यशील प्रमुख विपक्षीदल एवम उनकी नीतियाँ
(iii) यदि गठबन्धन की सरकार सत्तारूढ़ है तो गठबन्धन के विभिन्न अंगों की नीतियाँ एवम उनमें आपसी तालमेल।
(iv) देश में राजनीतिक स्थायीत्व की सम्भावना।
(v) न्यायपालिका एवम कार्यपालिका में आपसी तालमेल, आदि।
प्रश्न 3. मशीनों की कार्यक्षमता में समन्वय होना क्यों आवश्यक है? संयन्त्र अभिन्यास इन्जीनियरिंग के उपकरण बताइये।Why the coordination between the effeciency of the machines necessary? What are the tools of plant layout engineering?
उत्तरमशीनों की कार्यक्षमता में समन्वय
(Co-ordination Between the Efficiency of Machines)
जब किसी वस्तु अथवा सेवा का उत्पादन करना होता है तो इसके लिए अनेक प्रकार की मशीनों की आवश्यकता होती हैं । उत्पादन कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए यह आवश्यक है कि इन सभी मशीनों में आपस में प्रभावी समन्वय हो। यदि यह समन्वय नहीं होता तो उत्पादन कार्य ठीक प्रकार से नहीं चल पायेगा और इसमें बार-बार बाधायें आती रहेंगी। इससे उत्पादन में समय भी अधिक लगेगा और उत्पादन की लागत भी अधिक आयेगी। मशीनों में प्रभावी समन्वय निम्न कारणों से आवश्यक है।
(1) उत्पादन में लगने वाले समय में कमी-यदि उत्पादन कार्य में लगी हुई मशीनों में प्रभावी समन्वय होगा तो उत्पादन में अनावश्यक समय नहीं लगेगा और उत्पादन कार्य कम से कम समय में पूरा हो जायेगा।
(2) उत्पादन लागत में कमी उत्पादन लागत को निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण तत्व यह है कि हम अपनी स्थापित क्षमता का उपयोग कितनी कुशलता के साथ कर पाते हैं । यदि मशीनों में प्रभावी समन्वय होगा तो श्रम एवम् सामग्री पर आने वाली लागत न्यूनतम हो जायेगी। साथ ही मशीनों के रख-रखाव पर भी कम व्यय होगा। इससे उत्पादन लागत में महत्वपूर्ण कमी आ सकती है।
(3) पर्यवेक्षण एवम् नियन्त्रण में सुविधा–यदि मशीनों में प्रभावी समन्वय है तो उत्पादन का सम्पूर्ण कार्य आसानी से एवम् कुशलता से चलता रहता है। किसी विशेष निरीक्षण एवम् नियन्त्रण की आवश्यकता नहीं होती। इससे पर्यवेक्षण एवम् निरीक्षण पर आने वाली लागत कम हो जाती है।
(4) गुण नियन्त्रण में सहायक-यदि मशीने अपना कार्य ठीक ढंग से कर रही है तो उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की किस्म अच्छी आती है और इसे नियन्त्रित कर पाना भी सरल होता है।
(5) उपलब्ध संसाधनों का कुशल उपयोग–मशीनों के समन्वि तरीके से कार्य करने का एक महत्वपूर्ण प्रभाव यह होता है कि संस्था अपने सभी संसाधनों का कुशल उपयोग कर पाती है। इससे सामग्री की बरबादी रुक जाती है। श्रमिक अपना कार्य ठीक प्रकार से करते हैं। पूँजी का पूर्ण उपयोग कर पाना सम्भव होता है तथा उद्यमी को अपने विनियोग पर अधिकतम लाभ प्राप्त होता है।
(6) श्रमिकों के साथ मधुर सम्बन्ध–यदि मशीनें समन्वित तरीके से कार्य कर रही हैं तो इससे श्रमिकों को भी अपना कार्य करने आसानी रहती हैं। उन्हें न तो मशीनों कोई समस्या होती हे और न प्रबन्धकों से। इससे प्रबन्धकों एवम् श्रमिकों के मध्य मधुर सम्बन्ध स्थापित करने में मदद मिलती है।
संयत्र अभिन्यास के उपकरण
(Tools of Plant Layout)
सयंत्र अभिन्यास से आशय उत्पादन कार्य में काम आने वाली मशीनों को एक निश्चित क्रम में लगाने से है ताकि उत्पादन कार्य सुचारु रूप से चल सके। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। इनमें से प्रमुख उपकरण निम्न प्रकार है-
(1) प्रक्रिया प्रवाह चार्ट (Flow Process Chart)-प्रक्रिया प्रवाह चार्ट से आशय ऐसे चार्ट से है जिसमें उस प्रक्रिया के अन्तर्गत की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं को दर्शाया जाता है । इस चार्ट में प्रायः निम्न को दिखाया जाता है:-
(i) इस प्रक्रिया में कौन-कौन सी क्रियाएँ की जानी हैं
(ii) इन क्रियाओं को किस क्रम में किया जायेगा,
(iii) इन क्रियाओं को करने में कितना समय लगेगा,
(iv) इन क्रियाओं को करने के लिए किन-किन उपकरणों एवम् सामग्री की आवश्यकता होगी, (v) इन क्रियाओं को करने में किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ेगा और उन परेशानियों को कैसे दूर किया जायेगा, आदि ।
(2) प्रवाह चित्र (Flow Diagram)-प्रवाह चित्र के अन्तर्गत यह दर्शाया जाता है कि विभिन्न प्रक्रियाओं में लगने वाली मशीनों एवम् सामग्री का प्रभाव किस प्रकार रहेगा। इसके अन्तर्गत प्रायः निम्न को दर्शाया जाता है—(i) उत्पादन कार्य में लगने वाली सामग्री का प्रवाह किस प्रकार होगा, (ii) उत्पादन कार्य में काम आने वाली मशीनों को किस स्थान पर और किस दिशा में स्थापित किया जायेगा, (iii) अर्ध-निर्मित सामग्री का प्रवाह किस प्रकार रहेगा, (iv) निर्मित माल को किस स्थान पर रखा जायेगा ताकि उसकी जाँच की जा सके, (v) जाँच के पश्चात निर्मित माल किस प्रकार बाहर जायेगा।
(3) साँचे (Templates)—साँचों से आशय किसी मशीन, औजार, सामग्री, कार्य,उत्पाद आदि के डिजाइन से है जिनका प्रयोग उत्पादन कार्य में किया जाता है। साँचे किसी धातु या लकड़ी की बहुत पतली पर्त बनाये जाते है ताकि इनके आधार पर वास्तविक उत्पादन कार्य किया जा सके। जिन कार्यों के लिए साँचों का प्रयोग किया जा सकता है, उनमें साँचों की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण होती है कि उनके बिना उत्पादन कार्य प्रारम्भ ही नहीं हो सकता।
(4) मशीन सूचना कार्ड (Machine Data Card) यह एक ऐसा कार्ड होता है जिसमें मशीन से सम्बन्धित सूचनायें दी होती हैं जैसे मशीन की क्षमता, इसमें प्रयोग की जाने वाली ऊर्जा शक्ति, इसे चलाने की विधि,इसके प्रयोग में रखी जाने वाली सावधानियाँ आदि । मशीनों की देखभाल ठीक प्रकार से करने एवम् मशीनों से होने वाली परेशानियों को दूर करने में इस कार्ड की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
(5) अभिन्यास मॉडल (Layout Models) यह 3 दिशाओं वाला मॉडल (3-D मॉडल) होता है। जिसका प्रयोग जटिल प्रक्रिति के संयन्त्र अभिन्यासों में किया जाता हैं। इस मॉडल में मशीनों, उपकरणों, कार्यविधियों एवम् सामग्री के सम्बन्ध में विस्तरित तकनीकी जानकारी दी जाती है। जिन कार्यों के सम्बन्ध में यह मॉडल बनाया जाता है। उन्हें करते समय इसे हमेशा साथ रखा जाता है ।
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. उद्यमिता के विकास हेतु अपने सुझाव दीजिये। Give your suggestions for Development of Entrepreneurship. उत्तर
उद्यमिता के विकास हेतु सुझाव(Suggestions for Development of Entrepreneurship)
(1) उद्यमियों के विकास हेतु प्रशिक्षण एवं अभिप्रेरणा सुविधाओं का विस्तार करना चाहिए।
(2) तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा केन्द्रों का विस्तार करना चाहिए ।
(3) स्वरोजगार योजना का प्रचार करना चाहिये तथा अधिक से अधिक व्यक्तियों को योजना में सम्मिलित करना चाहिए।
(4) सभी क्षेत्रों में विशेष रूप से पिछड़े हुए क्षेत्रों में उद्यमियों की पहचान पद्धति (Identifying Mechanism) को विकसित करना चाहिए।
(5) शिक्षा पद्धति, रोजगार एवं उद्यमिता अभिमुखी बनायी जानी चाहिए। विद्यार्थियों को उपक्रमों के सम्बन्ध में व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना चाहिए।
(6) उद्यमी के विकास हेतु शोध परियोजनाओं को प्रोत्साहित करना चाहिये तथा सफल उद्यमियों की सफलताओं का प्रचार करना चाहिए।
(7) सामाजीकरण प्रक्रिया (Socialization process) में कार्यरत संस्थाओं जैसे परिवार, अनौपचारिक समूह, स्कूल आदि में नवयुवकों में उद्यमी प्रवृत्तियाँ विकसित करनी चाहिएँ।
(8) उद्यमशील साहित्य में वृद्धि करनी चाहिये । उद्यमियों के लिए पत्र-पत्रिका प्रकाशित की जानी चाहिए।
(9) तकनीकी एवं व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त करने वालों को उद्यमिता छात्रवृत्ति प्रदान की जानी चाहिए।
(10) पिछड़े हुए क्षेत्रों में औद्योगिक बस्तियों का निर्माण करके आधारभूत सुविधाओं का विकास करना चाहिए।
(11) उद्यम के विकास हेतु स्थापित केन्द्रीय समन्वय संस्था (Central Co-ordinating Agency-DICs) को प्रभावी बनानी चाहिए।
(12) प्रत्येक क्षेत्र में जिले एवं तहसील की विकास सम्भावनाओं की खोज करनी चाहिए तथा प्राप्त समंकों व सूचनाओं के आधार पर “सम्भावित औद्योगिक नक्शा” (prospective industrial map)तैयार करना चाहिए ।
(13) सरकारी संस्थाओं, विभागों, बैकों एवं वित्तीय संस्थाओं में व्याप्त नौकरशाही प्रवृत्तियों में सुधार करने चाहिएँ ।
(14) नये उद्यमियों के ज्ञान में वृद्धि करनी चाहिए। उद्यमियों को उपलब्ध होने वाली सुविधाओं एवं प्रेरणाओं की जानकारी दी जानी चाहिए ।
प्रश्न 2. व्यावसायिक वातावरण बनाम उद्यमिता वातावरण Business Environment vs. Entrepreneurial Environment
व्यावसायिक वातावरण बनाम उद्यमिता वातावरण (Business Environment vs. Entrepreneurial Environment)
उद्यमिता वातावरण समग्र आर्थिक तथा गैर-आर्थिक व्यावसायिक वातावरण का एक अंग है जिसके भीतर उद्यमिता का विकास होता है। व्यावसायिक वातावरण के अनुकूल होने की दशा में उद्यमिता का विकास तीव्र होता है, अथवा प्रभावी उद्यमिता वातावरण से अनुकूल व्यावसायिक वातावरण का निर्माण होता है । इस प्रकार, व्यावसायिक वातावरण तथा उद्यमिता वातावरण एक-दूसरे के पूरक तथा एक-दूसरे पर निर्भर हैं । व्यावसायिक वातावरण के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है: –
(1) मानवीय संसाधनों का विदोहन-मानव आर्थिक गतिविधियों का साधन तथा साध्य दोनों है। अनुकूल व्यावसायिक वातावरण मानवीय संसाधनों के विदोहन को प्रेरित करता है तथा रोजगार, उत्पादकता एवं उत्पादन को बढ़ाता है ।
(2) प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन-प्राकृतिक संसाधनों का पर्याप्त विदोहन व्यावसायिक वातावरण पर निर्भर करता है। अनेक विकासशील राष्ट्रों में उपयुक्त व्यावसायिक वातावरण न होने के कारण प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन नहीं हो पाया है।
(3) औद्योगिक विकास-एक क्षेत्र विशेष या स्थान में औद्योगिक विकास उपलब्ध व्यावसायिक वातावरण पर निर्भर करता है। अनुकूल व्यावसायिक वातावरण जहाँ औद्योगिक विकास को गति प्रदान करता है, वहीं इसका प्रभाव औद्योगिक विकास को अवरूद्ध भी करता है
(4) आर्थिक विकास-आर्थिक विकास औद्योगिक विकास पर निर्भर करता है तथा औद्योगिक विकास हेतु अनुकूल व्यावसायिक वातावरण होना आवश्यक है।
(5) संचार साधनों का विकास-व्यावसायिक संगठनों के विकास से संचार के माध्यमों का भी तेजी से विकास होता है। संचार साधनों के विकास से व्यावसायिक विकास को गति मिलती है।
(6) कृषि विकास-अनुकूल व्यावसायिक वातावरण न केवल औद्योगिक विकास में सहायक होता है अपितु कृषि के विकास में भी सहायक होता है । औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि होने से कृषिगत उत्पादनों को भी प्रोत्साहन मिलता है।
(7) रोजगार में वृद्धि अनुकूल व्यावसायिक वातावरण व्यावसायिक संगठनों का विकास करता है, जिससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है।
(8) परिवहन का विकास-परिवहन के विभिन्न साधन जहाँ व्यावसायिक विकास में सहायक होते हैं वहीं इन साधनों का विकास स्वयं व्यावसायिक वातावरण पर निर्भर करता है
(9) प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि व्यावसायिक वातावरण उद्योगों का विकास करता है तथा रोजगार अवसरों में वृद्धि करता है जिससे प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।