Meaning and Definition of Marketing Mix
विपणन-मिश्रण से आशय एवं परिभाषा
“विपणन मिश्रण’ को ‘विपणन अन्तर्लय’ भी कहते हैं। विपणन मिश्रण शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अमेरिका के हारवार्ड बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर नील बोर्डन (Prof. Neil Borden) ने किया था। प्रो० मैकार्थी ने विपणन मिश्रण के चार प्रमुख घटक बताए हैं-उत्पाद (Product), मूल्य (Price), संवर्द्धन (Promotion) एवं भौतिक वितरण (Physical Distribution)। इन्हीं घटकों के समुचित अनुपात में मिश्रण से ग्राहकों की इच्छाओं को सन्तुष्ट करके संस्था के विपणन उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार विपणन मिश्रण शब्द का प्रयोग सामान्यतः उन विपणन निर्णयों के श्रेष्ठ सम्मिश्रण के लिए किया जाता है जो विक्रय को लाभप्रद रूप में प्रोत्साहित करते हैं और उपभोक्ताओं के लिए अधिकतम सन्तुष्टि का साधन बनते हैं। इन तत्वों पर फर्म का पूर्ण नियन्त्रण रहता है। bcom 3rd year meaning and defination of marketing mix notes
आर० एस० डावर के अनुसार “निर्माताओं द्वारा बाजार में सफलता प्राप्त करने के लिये प्रयोग की जाने वाली नीतियाँ विपणन मिश्रण का निर्माण करती है।
विलियम जे० स्टेण्टन के अनुसार, “विपणन मिश्रण शब्द का उपयोग चार आदानों (Inputs) के संयोग का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो एक कम्पनी के विपणन तन्त्र को बनाता है-वस्तु, मूल्य, सम्वर्द्धन क्रियायें एवं वितरण तत्व।”
फिलिप कोटलर के अनुसार, “एक फर्म का लक्ष्य अपने विपणन क्षेत्रों के लिये सर्वोत्तम विन्यास को ढूँढना है। यह विन्यास विपणन मिश्रण कहलाता है। bcom 3rd year meaning and defination of marketing mix notes
” विपणन मिश्रण को प्रभावित करने वाले तत्व/शक्तियाँ
(Factors/Forces Affecting Marketing Mix)
विपणन मिश्रण को अनेक तत्व या शक्तियाँ प्रभावित करती हैं। विपणन शक्तियों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. अनियन्त्रणीय तत्त्व,
2. नियन्त्रण योग्य तत्त्व।
I. अनियन्त्रणीय तत्त्व (Uncontrollable Factors)
जिन शक्तियों पर संस्था का नियन्त्रण नहीं होता है. उन्हें अनियन्त्रण योग्य तत्वों की श्रेणी में रखा जाता है-
1. उपभोक्ता व्यवहार (Consumer behaviour)-उपभोक्ता का व्यवहार अर्थात् उपभोक्ता की पसन्द-नापसन्द, इच्छा, वरीयता किसी संस्था के उत्पाद की माँग को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। परन्तु, उपभोक्ता का व्यवहार सदैव एकसमान नहीं रहता है। अत: विपणन प्रबन्धक को अपने उपभोक्ता की इच्छाओं, पसन्द-नापसन्द, वरीयताओं का निरन्तर अध्ययन करते रहना चाहिए। तत्पश्चात् उन परिवर्तनों से अपने उत्पाद की माँग पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन करना चाहिए। ऐसा करने से ही विपणन प्रबन्धक अपनी संस्था के लिए सही विपणन मिश्रण निर्धारित कर सकता है।
2. प्रतिस्पर्धा (Competition)—विपणन प्रबन्धक को विपणन मिश्रण को निर्धारित करते समय प्रतिस्पर्धा के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए, क्योंकि प्रतिस्पर्धा पर संस्था का कोई नियन्त्रण नहीं होता। अतः प्रतिस्पर्धा करने वाली संस्थाओं की विपणन नीतियों एवं व्यूह रचनाओं, उनके उत्पादों के गुणों, लक्षणों, किस्म, मूल्य-स्तर आदि का भली प्रकार अध्ययन एवं विश्लेषण कर लेना चाहिए। ऐसा करने के उपरान्त ही विपणन प्रबन्धक को अपने विपणन मिश्रण को निर्धारित करना चाहिए।
3. वितरण व्यवस्था का स्वरूप (The Pattern of Distribution System)विपणन प्रबन्धक को विपणन मिशण निश्चित करने के पहले वितरण व्यवस्था के स्वरूप, वितरकों के स्वभाव तथा उनके व्यवहार का भली-भाँति अध्ययन कर लेना । चाहिए क्योंकि वितरक और उपभोक्ता के मध्य प्रत्यक्ष सम्पर्क होता है। इसलिये वितरण प्रबन्धक को अपनी संस्था के वितरण मिश्रण पर भलीभाँति विचार करना चाहिए।
4. सरकारी नीतियाँ एवं नियम (Government Policies and Rules)–विपणन मिश्रण पर देश की सरकारी नीतियों एवं नियमों का गम्भीर प्रभाव होता है। सरकारी औद्योगिक नीति, मूल्य नीति, कर नीति, व्यापार एवं विपणन नीति, पैकिंग नीति, उदारीकरण एवं भूमण्डलीकरण की नीति, आर्थिक एवं व्यापारिक सन्नियम आदि सभी विपणन मिश्रण को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। bcom 3rd year meaning and defination of marketing mix notes
अत: प्रत्येक विपणन प्रबन्धक को अपनी संस्था के विपणन मिश्रण को निर्धारित करते समय इन सभी को ध्यान में रखना चाहिए।
ii. नियन्त्रणीय तत्त्व (Controllable Factors)
कुछ तत्व ऐसे हैं जो न्यूनाधिक रूप से प्रत्येक संस्था एवं विपणन प्रबन्धक के नियन्त्रण के अधीन होते हैं, नियन्त्रणीय तत्व कहलाते हैं। ऐसे प्रमुख तत्व निम्न प्रकार हैं-
1. वस्तु नियोजन एवं विकास (Prod Planning and Development)विपणन-मिश्रण के तत्त्वों में वस्तु नियोजन एवं विकास बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व है। एक अच्छी संस्था वस्तु नियोजन की व्यवस्था करती है। इसमें वस्तु का डिजाइन, वस्तु का नाम, वस्तु का रंग, वस्तु का ब्राण्ड, पैंकिंग, लेबिल, वस्तु का प्रयोग, वस्तु की गारन्टी व सेवा आदि का ध्यान रखा जाता है यह सभी विपणन मिश्रण के तत्व हैं।
2. संवेष्ठन नीति (Packaging Policy)-उत्पाद की बिक्री पर उसके संवेष्ठन का प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी ग्राहक उत्पाद के पैंकिंग से प्रभावित होकर उत्पाद को खरीद लेते हैं। अत: विपणन प्रबन्धक को उत्पाद के संवेष्ठन या पैकेजिंग के लिए सोच विचार करके निर्णय लेना चाहिए।
3. बाण्ड नीति (Brand Policy) आधुनिक युग में प्रतिष्ठित संस्थायें अपने उत्पादों के लिए एक विशेष ब्राण्ड या चिह्न निर्धारित करती है। उत्पाद विक्रय पर ब्राण्ड का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विपणन प्रबन्धक ब्राण्ड के सम्बन्ध में वैकल्पिक नीति अपना सकते हैं या अनेक उत्पादों के लिए एक ही ब्राण्ड का विपणन के सिद्धान्त निर्धारण कर सकते हैं या एक ही उत्पाद की विभिन्न किस्मों के लिए अलग-अलग ब्राण्ड निश्चित कर सकते हैं।
4. विपणि अनुसंधान (Market Research) विपणि अनुसंधान विपणन का प्राण है। विपणन प्रबन्धक को विपणि अनुसंधान के अध्ययन से विपणन मिश्रण के निर्धारण में सहायता मिलती है।
5. विज्ञापन एवं विक्रय संवर्द्धन (Advertising and Sales Promotion)आज के युग में विज्ञापन व विक्रय सम्वर्द्धन का बहुत ही अधिक महत्त्व है। एक अच्छा विपणनकर्ता अपना विज्ञापन कार्यक्रम बनाता है और प्रदर्शन के महत्व को अपने विक्रेताओं को बताता है तथा ग्राहकों को क्रय करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से विक्रय सम्वर्द्धन का सहारा लेता है।
6. भौतिक वितरण (Physical Distribution)—संस्था द्वारा किये जाने वाले विभिन्न प्रयासों के फलस्वरूप वस्तु की माँग बढ़ जाती है, किन्तु इस बढ़ी हुई माँग की पूर्ति कैसे की जाये, इस बात का निर्धारण भौतिक वितरण नीति में किया जाता है। इस नीति के अन्तर्गत परिवहन, भण्डारण, वित्त प्रबन्ध आदि कार्य किये जाते हैं।
7. मूल्य निर्धारण (Pricing)—मूल्य निर्धारण विपणन मिश्रण का दूसरा तत्व है। मूल्यों का निर्धारण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि मूल्य उपभोक्ता को अधिक प्रतीत न हो, संस्था प्रतियोगिता में टिककर उचित लाभ प्राप्त कर सके तथा सरकारी नियन्त्रण से भी अपने आपको बचा सके।
8. व्यक्तिगत विक्रय (Personal Selling)—विपणन प्रबन्धक, संस्था के लिए व्यक्तिगत विक्रय पद्धति को भी लागू कर सकता है। इसके अन्तर्गत सर्वप्रथम कुशल एवं योग्य विक्रेताओं की भर्ती करके उनके लिए आवश्यक प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है फिर इन विक्रेताओं की सहायता से ग्राहकों से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित किये जाते हैं ताकि सम्भावित ग्राहकों की संख्या में वृद्धि की जा सके।
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