Meaning of Report pdf – Bcom Notes
प्रतिवेदन से आशय
संचार माध्यमों में आए चहुँमुखी विकास के कारण आज देश-विदेश में कार्यक्रम आदि की तथ्यात्मक जानकारी पाने और भेजने के लिए ‘प्रतिवेदन’ का सहारा लिया जाता है। ‘प्रतिवेदन’ को अंग्रेजी में ‘रिपोर्ट’ या ‘रिपोर्टिंग’ कहते हैं। यह एक प्रकार का लिखित विवरण होता है, जिसमें किसी संस्था, सभा, दल, विभाग, सरकारी, गैर-सरकारी, सामान्य अथवा विशेष आयोजन की तथ्यात्मक जानकारी प्रस्तुत की जाती है। इसका उद्देश्य सम्बन्धित व्यक्तियों को संस्था के कार्य, परिणाम, जाँच या प्रगति की सही-सही तथा पूरी जानकारी देना होता है।
प्रतिवेदन के प्रकार
(Kinds of Reports)
प्रतिवेदन कई प्रकार के होते हैं। उदाहरण के लिए हम इन्हें निम्नलिखित श्रेणियों में रख सकते हैं-
(1) सभा, गोष्ठी या सम्मेलन का प्रतिवेदन |
(2) संस्था (सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक) आदि का मासिक अथवा वार्षिक प्रतिवेदन।
(3) व्यावसायिक प्रगति या स्थिति का प्रतिवेदन |
(4) जाँच समिति द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन |
एक श्रेष्ठ प्रतिवेदन के गुण
(Characteristics of a Perfect Report)
एक श्रेष्ठ प्रतिवेदन में निम्नलिखित गुण होते हैं—
(1) प्रतिवेदन पूरी तरह से स्पष्ट और पूर्ण होना चाहिए।
(2) प्रतिवेदन की भाषा-शैली तथ्यात्मक होनी चाहिए। इसकी भाषा आलंकारिक और मुहावरेदार नहीं होनी चाहिए और न ही वाक्य अनेकार्थक शब्दों से युक्त होने चाहिए।
(3) इसकी भाषा निर्वैयक्तिक होनी चाहिए। प्रथम पुरुष ( मैं या हम) का प्रयोग नहीं होना चाहिए। उदाहरण-
“बैठक में मैंने यह निर्णय लिया कि ……..” के स्थान पर यह लिखना उपयुक्त होगा”बैठक में यह निर्णय लिया गया कि ………..”
(4) प्रतिवेदन के तथ्य सत्य, प्रामाणिक एवं विश्वसनीय होने चाहिए।
(5) प्रतिवेदन में केवल महत्त्वपूर्ण तथ्यों का समावेश होना चाहिए । प्रतिवेदन में संक्षिप्तता का ध्यान बराबर रखना चाहिए।
(6) तथ्यों की प्रस्तुति क्रमवार एवं तर्कसंगत रूप में ही की जानी चाहिए, जिससे कि पूरी जानकारी स्पष्ट होती चले।
(7) कभी-कभी प्रतिवेदन में शीर्षक देना अनुकूल रहता है । शीर्षक मुख्य विषय को रेखांकित करने वाला होना चाहिए ।
(8) प्रतिवेदन में प्रत्येक नए तथ्य को अलग अनुच्छेद में देना चाहिए। यदि कोई विषय विस्तृत हो तो उसे अनेक अनुच्छेदों में विभक्त करके लिखना चाहिए।
(9) प्रतिवेदन के अन्त में प्रतिवेदन लिखने वाले को अपने हस्ताक्षर करने चाहिए या इसके स्थान पर सम्बन्धित सभा, दल या संस्था के अध्यक्ष के हस्ताक्षर होने चाहिए।
प्रतिवेदन लिखने की विधि
(Way of Writing a Report)
प्रतिवेदन लिखने से पहले सारे तथ्यों को एकत्र कर लेना चाहिए । निम्नलिखित तथ्य प्रतिवेदन में अवश्य दिए जाने चाहिए –
(1) संस्था का नाम।
(2) बैठक/सम्मेलन / सभा का नाम और उद्देश्य ।
(3) आयोजन स्थल का नाम ।
(4) आयोजन के दिनांक और समय की सूचना ।
(5) कार्यक्रम में उपस्थित लोगों की जानकारी – अध्यक्षता, मंच संचालन, वक्ता, सुझाव देने वाले, आमन्त्रित अतिथि तथा प्रतिभागी सदस्य।
(6) गतिविधियों की जानकारी अर्थात् भाषण आदि के मुख्य बिन्दु, और चर्चा के विषय पर यदि सुझाव दिए गए हैं तो उनकी जानकारी।
(7) बैठक में लिए गए निर्णयों की जानकारी।
(8) यदि कोई प्रतियोगिता या कलात्मक प्रस्तुति का आयोजन किया गया हो तो प्रतिवेदन में उसका भी उल्लेख किया जाना उचित रहता है ।
परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी प्रतिवेदन प्रथम प्रकार के हैं, जिनमें सभा, गोष्ठी, बैठक, कार्यक्रम आदि की जानकारी दी जाती है। ये अधिकतर आकार में छोटे होते हैं, जबकि व्यावसायिक प्रगति सम्बन्धी प्रतिवेदन और जाँच समिति के प्रतिवेदन तकनीकी प्रकार के होते हैं और स्वरूप में विस्तृत होते हैं। प्रत्येक कम्पनी प्रतिवर्ष वित्तीय वर्ष के समापन पर अपना प्रतिवेदन पुस्तिका के रूप में छपवाती है। यह प्रतिवेदन प्रत्येक सदस्य को उसकी जानकारी के लिए भेजा जाता है। इसी प्रकार जाँच समितियों के प्रतिवेदन भी आकार में बहुत बड़े होते हैं। कई बार तो उनकी पृष्ठ संख्या हजारों में पहुँच जाती है। उनमें किसी जाँच से सम्बन्धित एक-एक गवाह के बयान, उनके प्रमाण-पत्र, हस्ताक्षर आदि का उल्लेख होता है। ऐसे विस्तृत प्रतिवेदन के साथ एक संक्षिप्त प्रतिवेदन भी भेजा जाता है जिसमें, मोटी-मोटी जानकारी बिन्दुवार दी गई होती है और साथ में जाँच के निष्कर्षों का समावेश भी होता है। सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षणिक संस्थाओं के वार्षिक प्रतिवेदन में वार्षिक कार्यक्रम के अवसर पर वर्ष भर की प्रगति का विवरण प्रस्तुत किया जाता है। यह प्रतिवेदन भी आकार में प्राय: अधिक विस्तृत नहीं होता है।
व्यावसायिक प्रतिवेदन के स्वरूप
(Forms or Feature of a Business Report)
एक व्यावसायिक प्रतिवेदन के विभिन्न स्वरूप निम्न प्रकार हैं-
1. निजी प्रतिवेदन (Personal Report) — निजी प्रतिवेदनों का स्वरूप प्राय: गोपनीय होता है, अत: इनके सार्वजनिक प्रचार से सदैव बचना चाहिए।
2. तथ्यात्मक प्रतिवेदन (Factual Report) — इस प्रकार के प्रतिवेदन को तथ्यपरक होना चाहिए। इसमें समाविष्ट तथ्य स्पष्ट जानकारियों पर आधारित होते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के निष्कर्षों का समावेश होता है।
3. लिखित अथवा मौखिक प्रतिवेदन (Written or Oral Report)—लिखित प्रतिवेदन प्रामाणिक होता है। इस प्रकार के प्रतिवेदन का वैधानिक आधार होता है। इसके विपरीत मौखिक प्रतिवेदनों का कोई वैधानिक आधार नहीं होता है, लेकिन इनके द्वारा त्वरित जानकारी की उपलब्धता हो जाती है और तदनुसार कार्यवाही सुनिश्चित की जा सकती है।
4. नियमित तथा विशिष्ट प्रतिवेदन (Regular and Specific Report) – नियमित प्रतिवेदन एक निर्धारित या निश्चित समयावधि के पश्चात् प्रेषित किया जाता है। इसमें किसी प्रकार की सलाह / सिफारिशों को सम्मिलित नहीं किया जाता है, बल्कि इनका स्वरूप तथ्यात्मक होता है। मासिक व्यय पत्रक नियमित प्रतिवेदन का उदाहरण है, जबकि विशिष्ट प्रतिवेदन किसी घटना के प्रेरित होने के परिप्रेक्ष्य में किया जाता है।
5. औपचारिक अथवा अनौपचारिक प्रतिवेदन (Formal or Informal Report) — इस प्रकार के प्रतिवेदनों की प्रस्तुति एक निर्धारित प्रारूप होता है। इसमें औपचारिकताओं का अनुपालन होता है और उच्च अधिकारियों के निर्देशों के अनुरूप प्रतिवेदन बनाए जाते हैं, जबकि अनौपचारिक प्रतिवेदन एक व्यक्ति से अन्य व्यक्ति के सम्प्रेषण के माध्यम के रूप में प्रस्तुत होता है। इसमें बहुधा औपचारिक भाषा का प्रयोग किया जाता है। इन प्रतिवेदनों का स्वरूप छोटा या बड़ा हो सकता है। इनका स्वरूप एक पत्र की भाँति भी हो सकता है।
6. व्यक्तिगत या अव्यक्तिगत प्रतिवेदन (Individual or General Report) — इस प्रकार का प्रतिवेदन व्यक्ति अथवा अधिकारियों के पद के अनुसार होता है। व्यक्तिगत प्रतिवेदन कोई भी व्यक्ति किसी भी कारणवश प्रस्तुत करता है; जैसे—अंकेक्षक, संचालन, अध्ययन का प्रतिवेदन |