Vacation of Directors
संचालकों का पदत्याग या स्थान रिक्त होना
धारा 168 के अनुसार एक संचालक का पद उसकी नियुक्ति के बाद निम्नलिखित दशाओं में रिक्त हो जाता है-
(1) योग्यता अंश न लेना-यदि एक संचालक नियुक्ति के बाद निर्धारित 2 माह की अवधि के भीतर योग्यता अंश नहीं ले या अन्य किसी भी समय योग्यता अंशों पर स्वामित्व को छोड़ दे या निर्धारित सीमा से कम योग्यता अंशों का वह स्वामी रह जाये
(2) अस्वस्थ मस्तिष्क का हो जाना-यदि उसे किसी सक्षम न्यायालय द्वारा अस्वस्थ मस्तिष्क का पाया जाये या पागल घोषित कर दिया जाये।
(3) दिवालियेपन के लिए आवेदन-पत्र-यदि उसने दिवालिया होने के लिए न्यायालय में आवेदन-पत्र प्रस्तुत कर दिया हो।
(4) दिवालिया घोषित किया जाना-यदि उसे न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित कर दिया गया हो।
(5) नैतिक अपराध का दोषी-यदि वह किसी भारतीय या विदेशी न्यायालय द्वारा नैतिक अपराध का दोषी पाया गया हो और उसे कम से कम 6 माह की सजा मिली हो ।
(6) याचना राशि का भुगतान न करना –यदि वह भुगतान की अन्तिम तिथि के 6 माह में भी याचना राशि का भुगतान न कर पाये। यह नियम उस समय लागू नहीं होगा, यदि केन्द्रीय सरकार गजट द्वारा सूचना देकर इस त्रुटि से उत्पन्न अयोग्यता को हटा देती है।
(7) लगातार तीन सभाओं में अनुपस्थित रहना-वह संचालक मण्डल की लगातार तीन सभाओं से या तीन माह में होने वाली सभाओं से,जो भी अवधि अधिक है,संचालक मण्डल से अनुमति लिये बिनाअनुपस्थित रहता है।
(8) कम्पनी से ऋण लेना-यदि वह स्वयं उसके लाभ के लिए कोई अन्य व्यक्ति या कोई फर्म जिसमें वह साझेदार है या कोई निजी कम्पनी जिसमें वह संचालक है, केन्द्रीय सरकार की आज्ञा प्राप्त किये बिना कम्पनी से कोई ऋण या ऋण के लिए प्रतिभति स्वीकार करता है।
(9) अनुबन्ध में हित प्रकट न करना यदि वह कम्पनी द्वारा किये गये अथवा किये जाने . वाले किसी अनुबन्ध में अपना हित प्रकट नहीं करता।
(10) न्यायालय द्वारा अयोग्य घोषित किया जाना—कपटपूर्ण कार्यों के लिए यदि न्यायालय उसे संचालक पद के लिए अयोग्य घोषित कर दे।
(11) पद समाप्त हो जाने पर-यदि संचालक के रूप में उसकी नियुक्ति कम्पनी में किसी पद या अन्य रोजगार के कारण हुई, तो बाद में उस पद या रोजगार की समाप्ति पर उसका संचालक पद भी रिक्त हो जाता है। ऊपर वर्णित संख्या 4, 5 व 10 की दशा में संचालक का पद तुरन्त रिक्त न होकर दिवालिया घोषित होने, सजा होने या न्यायालय के आदेश के 30 दिनों बाद में रिक्त माना जायेगा । अन्य शब्दों में इन तीन परिस्थितियों में संचालक के स्थान रिक्त होने की व्यवस्था 30 दिनों बाद प्रभावी होती है।
(12) अन्य दशाएँ-कुछ अन्य दशाओं में भी संचालक का स्थान रिक्त माना जाता है। जैसे-
(i) मल संचालक के लौट आने पर-एक वैकल्पिक संचालक का स्थान उस समय रिक्त हो जाता है,जब मूल संचालक उस राज्य में लौट आता है,जहाँ संचालक मण्डल की सभाएँ होती
(ii) लाभ का पद ग्रहण करने पर एक संचालक का स्थान उस समय भी रिक्त माना जाता है,जब विशेष प्रस्ताव पारित कराके सहमति प्राप्त किये बिना वह उस कम्पनी या उसकी सहायक कम्पनी में कोई लाभ का पद ग्रहण कर लेता है।
(ii) अतिरिक्त संचालक का पद रिक्त होना अतिरक्ति संचालकों की नियुक्ति आगामी व्यापक सभा तक के लिए ही होती है । इसके बाद उनका स्थान स्वतः ही रिक्त हो जाता है।
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