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Meaning and Definition of Buying Motive

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Meaning and Definition of Buying Motive

क्रय प्रेरणा का अर्थ एवं परिभाषा

क्रय प्रेरणा वह शक्ति है जो क्रेता को अपनी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु किसी वस्तु अथवा सेवा को खरीदने की प्रेरणा देती है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति को भूख लगी है एवं भूख को मिटाने के लिए उसके द्वारा कुछ वस्तुओं को क्रय किया जाता है। अतः उसके द्वारा खरीदी गई वस्तुओं की क्रय-प्रेरणा, भूख मिटाना है।

विलियम जे० स्टेन्टन के अनुसार, “एक प्रेरणा उस समय क्रय प्रेरणा बन जाती है जबकि एक व्यक्ति किसी वस्तु के द्वारा सन्तुष्टि प्राप्त करना चाहता है।” डी० जे० ड्यूरियन के अनुसार, “क्रय प्रेरणाएँ वे प्रभाव या विचार हैं जो क्रय करने, कार्य करने अथवा वस्तुओं या सेवाओं के क्रय में पसन्दगी को निर्धारित करने हेतु प्रेरणा प्रदान करते हैं।

क्रय प्रेरणाओं का वर्गीकरण

(Classification of Buying Motives)

प्रत्येक सामान्य व्यक्ति, स्व-हित में रूचि रखने वाला होता है और स्वयं की इच्छाओं, भावनाओं, लालसाओं, साधनों और बुद्धि के अनुरूप व्यवहार करता है। यही कारण है कि विपणन क्षेत्र में, विभिन्न प्रकार की क्रय-प्रेरणाएँ और क्रय व्यवहार दिखाई देते हैं। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से क्रय प्रेरणाओं को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-

(I) स्वाभाविक या अन्तर्निहित बनाम सीखी हुई क्रय प्रेरणायें

(Inherent Vs. Learned Buying Motives)

स्वाभाविक क्रय प्रेरणाओं से आशय उपभोक्ता के ऐसे व्यवहार से है जो कि उसकी अन्तर्निहित आवश्यकताओं से प्रेरित होता है। मनुष्य की स्वाभाविक प्रेरणायें भूख, प्यास, सैक्स, विश्राम तथा अपनी सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं के रूप में प्रकट होती हैं। इसके विपरीत सीखी हुई प्रेरणाओं या वातावरण सम्बन्धी प्रयोजन से आशय ऐसी प्रेरणाओं से है जिनको मनुष्य अपने अनुभव और सामाजिक वातावरण में सीखता है, जैसे- नवजात शिशु भूख लगने पर रोने लगता है। यह इसकी सीखी हुई क्रिया का रूप है क्योंकि शिशु यह सीख जाता है कि रोना उसका भोजन प्राप्ति का साधन है। इसी प्रकार समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करना सीखा हुआ प्रयोजन है। स्पष्ट है कि स्वाभाविक या अन्तर्निहित क्रय-प्रेरणायें सहज एवं मूल मानवीय प्रवृत्तियों (Basic Human Needs) से सम्बन्ध रखती हैं, जबकि सीखी हुई क्रय-प्रेरणाओं को मनुष्य अपने अनुभव एवं सामाजिक वातावरण में सीखता है। अन्तर्निहित क्रय-प्रेरणायें प्राथमिक प्रेरणायें हैं और अत्याधिक स्पष्ट हैं, सुनिश्चित हैं, जबकि सीखी हुई (अर्जित) क्रय-प्रेरणायें गौण-प्रेरणायें हैं और अपेक्षाकृत कम स्पष्ट हैं।

वास्तव में, क्रेता सम्बन्धी व्यवहार मूल प्रवृत्ति पर आधारित न होकर सीखने (Learning) पर अधिक निर्भर करते हैं। मानव किस प्रकार अपनी भूख की सन्तुष्टि करता है यह उसके सामाजिक स्तर और सीखने आदि से अधिक प्रभावित होता है, जैसे कुछ व्यक्ति भूख की सन्तुष्टि करने के लिये रोटी खाते हैं तो कुछ फलों का उपयोग करते हैं। स्पष्ट है कि विपणनकर्ता को स्वाभाविक प्रेरणाओं के स्थान पर सीखी हुई प्रेरणाओं पर अधिक ध्यान देना चाहिए और उन्हीं के अनुरूप विपणन कार्यक्रम बनाना चाहिए।

(II) भावात्मक बनाम विवेकपूर्ण क्रय प्रेरणायें

(Emotional Vs. Rational Buying Motives)

भावात्मक क्रय प्रेरणाओं से आशय ऐसी क्रय प्रेरणाओं से है जिनमें मस्तिष्क अथवा विवेक के स्थान पर हृदय या भावना की प्रधानता रहती है। व्यवहार में अनेक भावात्मक प्रेरणायें क्रेता को वस्तु क्रय करने के लिये अभिप्रेरित करती हैं, जैसे- भूख, प्यास, साथी की इच्छा, प्रतिष्ठा, अहंकार, गौरव-भाव, ईर्ष्या, प्रेम, सैक्स, सुरक्षा, शत्रुता, सुन्दरता आदि। विपणनकर्ता भावनात्मक क्रय प्रेरणाओं का पता लगाकर उनके प्रचार द्वारा उपभोक्ता की भावना को प्रेरित करता है, जैसे-जीवन बीमा निगम द्वारा परिवार की सुरक्षा और अच्छे भविष्य की अपील द्वारा ग्राहकों को आकर्षित किया जाता है। वास्तव में भावात्मक क्रय प्रेरणाओं से प्रेरित होकर व्यक्ति तुरन्त वस्तु को खरीद लेता है वह उसके गुण-दोषों पर विचार नहीं करता है।

विवेकपूर्ण क्रय प्रेरणाओं के अन्तर्गत क्रय की जाने वाली वस्तु की कीमत, मितव्ययिता, प्रयोग, टिकाऊपन, उपयोगिता, सेवा, सेवा, . विश्वसनीयता, सुविधा, कार्यकुशलता आदि अनेक तत्वों पर विचार करके वस्तु को क्रय करने के निर्णय लिये जाते हैं। विवेकपूर्ण प्रेरणाओं से प्रेरित क्रेता वस्तु के क्रय करने में अधिक समय लगाता है। वस्तु के गुण-दोष पर पर्याप्त विचार करता है। विपणनकर्ता विवेकपूर्ण प्रेरणाओं का पता लगाकर अपने विज्ञापन में इन प्रेरक तत्वों का प्रचार करते हैं, जैसे-कुकर के निर्माता अपने विज्ञापन में समय तथा ईंधन की बचत की बात कहते हैं। पंखों के निर्माता अपने विज्ञापन में अपने पंखों की हवा और टिकाऊपन पर अधिक महत्व देते हैं।

अधिकांश क्रय, विवेकशील एवं भावानात्मक प्रेरणाओं से प्रेरित होते हैं और इनमें भी भावात्मक प्रेरणायें अग्रणी होती हैं। एक ही वस्तु के क्रय के भिन्न-भिन्न क्रेताओं के प्रयोजनों में भी भिन्नता हो सकती है। यही नहीं, दो व्यक्ति समान प्रयोजन रखते हुए भी भिन्न आचरण रखते हैं। अत: विपणनकर्ता को अपनी नीतियों के सही नियोजन के लिये क्रेताओं की भावनात्मक प्रेरणाओं को जानने का प्रयास करना चाहिये।

(III) प्राथमिक एवं चयनात्मक क्रय-प्रेरणायें

(Primary and Selective Buying Motives)

वे प्रेरणाएँ जो वस्तुओं के सामान्य क्रय हेतु प्रेरणा देती हैं, प्राथमिक क्रय-प्रेरणायें कहलाती हैं। उदाहरण के लिए टेलीविजन, कार, मोटर साइकिल अथवा स्कूटर आदि के क्रय को प्रोत्साहित करने वाली प्रेरणायें प्राथमिक क्रय-प्रेरणायें कहलायेंगी। ये प्रेरणायें वस्तुओं की सामान्य माँग को बढ़ाने वाली मानी गईं हैं और किसी ब्राण्ड विशेष की खरीद हेतु प्रेरणा नहीं देती हैं, लेकिन जब कोई क्रय-प्रेरणा किसी विशेष ब्राण्ड की वस्तु क्रय करने के लिए प्रेरणा देती है तो यह प्रेरणा चयनात्मक प्रेरणा कहलाती है। उदाहरण के लिए, बजाज स्कूटर या फिलिप्स टेलीविजन क्रय करने की प्रेरणा। कुछ विद्वानों का कहना है कि केवल ब्राण्ड का चयन ही इसमें शामिल नहीं होता है बल्कि दुकानदार का चयन भी इसमें शामिल होता है।

(IV) जागरूक एवं सुप्त क्रय-प्रेरणायें

(Conscious and Dormant Buying Motives)

‘जागरूक क्रय-प्रेरणायें’ वे प्रेरणायें हैं जिन्हें क्रेता विपणन क्रियाओं की सहायता के बिना ही स्पष्टतापूर्वक पहचान लेते हैं और अभिव्यक्ति करते हैं। अन्य शब्दों में, सचेतन धरातल पर विद्यमान आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु क्रेताओं की खरीद को प्रोत्साहित करने वाली क्रय-प्ररणायें ‘जागरूक प्रेरणायें’ कहीं जाती हैं। ये प्रेरणायें स्वतः ही क्रेताओं के मस्तिष्क में उत्पन्न होती रहती हैं। बाहरी वातावरण की आवश्यकता इन प्रेरणाओं की उत्पत्ति के लिये अपेक्षाकृत कम होती है। किन्तु बाहरी वातावरण एवं विपणन कार्यक्रम इन क्रय-प्रेरणाओं में तीव्रता पैदा कर सकते हैं।

‘सुप्त क्रय-प्रेरणायें’ वे प्रेरणायें हैं जिन्हें क्रेता उस समय तक नहीं पहचान पाते हैं जब तक कि विपणन क्रियाओं द्वारा उनका ध्यान क्रय-प्रेरणाओं की ओर आकृष्ट न किया जाये। ये प्रेरणायें उन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु क्रेताओं का ध्यान आकृष्ट करती हैं जिनके बारे में क्रेताओं को स्वयं ही ध्यान नहीं होता है और जो अचेतन धरातल पर विद्यमान होती हैं।

(V) भौतिक, मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक क्रय-प्रेरणायें

(Physical,Psychological and Sociological Buying Motives),

भौतिक क्रय-प्रेरणायें वे हैं जो मनुष्य में विद्यमान होती हैं, जैसे-भूख, प्यास, नींद, आराम आदि। मनोवैज्ञानिक क्रय-प्रेरणायें वे हैं जो मानव के मनोविज्ञान पर आधारित हैं, जैसे-गर्व व भय आदि। सामाजिक क्रय-प्रेरणायें वर्तमान एवं अपेक्षित सामाजिक स्थिति से सम्बद्ध प्रेरणाओं का समूह होती हैं।

(VI) उत्पाद एवं संरक्षण क्रय-प्रेरणायें

(Product and Patronage Buying Motives)

संरक्षण क्रय-प्रेरणायें, वे प्रेरणायें हैं जो क्रेताओं को किसी विशिष्ट विक्रेता से ही वस्तुयें क्रय करने को प्रोत्साहित करती हैं। विक्रेताओं में निर्माता, थोक व्यापारी और फुटकर व्यापारी सभी सम्मिलित होते हैं। कोगलैण्ड के विचारानुसार विक्रेता की विश्वसनीयता, सुपुर्दगी में समय की पाबन्दी, सुपुर्दगी में शीघ्रता, वस्तुओं से पूर्ण सन्तुष्टि, विभिन्न किस्में और विश्वसनीय मरम्मत सेवाओं की इन्जीनियरिंग एवं डिजायनिंग वे घटक हैं जो संरक्षण क्रय-प्रेरणाओं के आधार हैं।

उपभोक्ता व्यवहार मॉडल

सामाजिक एवं मनोवौनिक विचारकों ने उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले घटकों एवं अभिप्रेरणाओं के आधार पर विभिन्न मॉउल विकसित किये हैं। कुछ प्रमुख मॉडल निम्न प्रकार हैं-

(1) आर्थिक मॉडल-इसका प्रतिपादन अल्फ्रेड मार्शल ने किया था। इसके अनुसार मनुष्य उचित मूल्यों पर ऐसी वस्तु चाहता है जो गुणों और उपयोगिता से परिपूर्ण है एवं अधिकतम सन्तुष्टि प्रदान करे।

(2) सीखने वाला मॉडल-इसका प्रतिपादन रूसी मनोवैज्ञानिक पावलोवियन ने किया था। इसके अनुसार मनुष्य का अधिकांश व्यवहार सीखने से प्रभावित होता है।

(3) मनोविश्लेषणात्मक मॉडल-इसका प्रतिपादन सिगमण्ड फ्रायड ने किया था। इसके अनुसार प्रत्येक उपभोक्ता में कुछ छिपी हुई प्रेरणाएँ होती हैं जो उसे क्रय निर्णय के लिये प्रेरित करती हैं।

(4) सामाजिक-सांस्कृतिक मॉडल-इसका प्रतिपादन बेबलेन ने किया था। इसके अनुसार मनुष्य का क्रय व्यवहार समाज से प्रभावित होता है।

(5) संगठनात्मक मॉडल-इसका प्रतिपादन थॉमस हाब्स ने किया था। यह मॉडल संस्थागत एवं विभागीय क्रेताओं के व्यवहार को स्पष्ट करता है।

(6) निकोसिया मॉडल-इसका प्रतिपादन श्री फ्रांसिस्को निकोसिया ने सन् 1966 में किया था।

(7) हावर्ड सेठ मॉडल-इसे जॉन हावर्ड तथा जगदीश सेठ ने सन् 1969 में प्रस्तुत किया


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