Powers of Directors
संचालकों के अधिकार
संचालकों के अधिकारों को दो भागों में बाँटा जा सकता है—
(1) सामान्य अधिकार, (2) विशेष अधिकार । इनका विस्तृत विवेचन इस प्रकार है –
(1) सामान्य अधिकार (General Powers)-कम्पनी अधिनियम की धारा 291 के अनुसार, कम्पनी के संचालक उन सब अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं तथा वे सब काम कर सकते हैं जो एक कम्पनी कर सकती है। संचालकों को अपने अधिकारों का प्रयोग करते समय इस सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम,पार्षद सीमानियम एवं अन्तर्नियमों द्वारा लगाए गए प्रतिवन्धों को ध्यान में रखना चाहिए।
(2) विशेष अधिकार (Special Powers)-निम्नलिखित अधिकारों का प्रयोग संचालकों द्वारा संचालकों की सभाओं में प्रस्ताव पारित करने के बाद ही किया जा सकता है –
(i) अचानक रिक्त स्थानों की पूर्ति;
(ii) अंशधारियों से याचनाएँ माँगने का अधिकार;
(iii) ऋणपत्र निर्गमन करने का अधिकार;
(iv) अन्य किसी रूप में ऋण लेने का अधिकार;
(v) कम्पनी की राशियों को विनियोग करने का अधिकार:
(vi) कुछ प्रसंविदे करने का अधिकार;
(vii) प्रबन्ध संचालक नियुक्त करने का अधिकार तथा
(viii) मैनेजर नियुक्त करने का अधिकार ।
(ix) कुछ व्यवस्थाओं के अधीन कम्पनी व्यवसाय करना।
केन्द्रीय सरकार द्वारा संचालकों की नियुक्ति
(Appointment of Directors by Central Government)
केन्द्रीय सरकार कम्पनी विधान मण्डल के आदेश से किसी कम्पनी में संचालकों की नियुक्ति कर सकती है । इस सम्बन्ध में संशोधित प्रावधान निम्नलिखित हैं –
(1) कम्पनी अथवा अंशधारियों अथवा जनता के हितों की सुरक्षा के लिए – केन्द्रीय सरकार कम्पनी अथवा अंशधारियों अथवा जनता के हितों की सुरक्षा के लिए कम्पनी विधान मण्डल के आदेश पर किसी भी कम्पनी में संचालक अथवा संचालकों की नियुक्ति कर सकती
(2) कम्पनी विधानमण्डल के आदेश की दशाएँ–कम्पनी विधानमण्डल केन्द्रीय सरकार को किसी कम्पनी में संचालक अथवा संचालकों की नियुक्ति का आदेश तभी देगा, जबकि
(i) केन्द्रीय सरकार ने इसे कोई अन्याय का मामला संदर्भित किया हो, अथवा
(ii) कम्पनी के कम से कम 100 सदस्यों द्वारा प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत किया गया हो;
(iii) कुल मताधिकार के 1/10 या इससे अधिक भाग पर अधिकार रखने वाले सदस्यों द्वारा प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत किया जाता है। bcom 2nd year memorandum of association in hindi
(3) सन्तुष्टि पर आदेश– कम्पनी विधानमण्डल ऐसा आदेश देने से पूर्व प्रार्थना-पत्र में दी गई बातों की जाँच-पड़ताल करेगा और जब सन्तुष्ट हो जायेगा कि कम्पनी में सदस्य या सदस्यों के साथ हो रहे अन्याय या जनहित के विरुद्ध हो रहे कार्यों को रोकने के लिए संचालकों की नियुक्ति आवश्यक है, तो वह नियुक्ति का आदेश निर्गमित कर देगा।
(4) संचालकों की संख्या – केन्द्रीय सरकार कम्पनी विधान मण्डल के आदेश द्वारा निर्धारित संख्या में संचालकों की नियुक्ति कर सकती है, अधिक नहीं। (5) अतिरिक्त संचालकों की नियुक्ति का आदेश जब तक कम्पनी विधानमण्डल के आदेश के अनुसार कम्पनी में निर्धारित संख्या में नवीन संचालकों की नियुक्ति नहीं की जाती है, तब तक के लिए कम्पनी अथवा उसके अंशधारियों अथवा जन-हित के प्रभावी ढंग से सरक्षा करने के लिए पनी विधान मण्डल के आदेश के अनुसार केन्द्रीय सरकार अतिरिक्त संचालकों की नियुक्ति कर सकती है।
(6) योग्यता अंश लेने अथवा पारी से अवकाश ग्रहण नहीं करना-केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त संचालकों पर योग्यता अंश लेने अथवा पारी से अवकाश ग्रहण करने वाले नियम लागू नहीं होंगे।
(7) अधिकतम कार्यकाल 3 वर्ष – कम्पनी विधान मण्डलों के आदेश के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त संचालकों का कार्यकाल तीन वर्ष से अधिक नहीं होगा।
(8) संचालक मण्डल के गठन में परिवर्तन पर प्रतिबन्ध-इस धारा के अन्तर्गत संचालकों का अतिरिक्त संचालकों की नियुक्ति के पश्चात उनके कार्यकाल तक कम्पनी के संचालकल में कोई भी परिवर्तन तब तक प्रभावी नहीं होगा, जब तक कि उसका कम्पनी विधान मण्डल द्वारा अनुमोदन न कर दिया जाय।
(9) केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्देश जारी करना – जब तक कि प्रस्तुत अधिनियम अथवा किसी अन्य अधिनियम में इसके विरुद्ध कोई अन्य बात न हो,जब केन्द्रीय सरकार किसी कम्पनी में संचालकों अथवा अतिरिक्त संचालकों की नियुक्ति करती है, तो वह उन्हें कम्पनी के मामलों में कोई ऐसा निर्देश दे सकती है, जो कि उसकी दृष्टि से आवश्यक अथवा उपयुक्त हो ।
(10) केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त संचालकों की गणना- केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त संचालकों की गणना कम्पनी द्वारा नियुक्त 2/3 संचालकों अथवा अन्य अनुपात द्वारा नियुक्त संचालकों की संख्या में नहीं की जायेगी।
(11) संचालकों को हटाने एवं नियुक्त करने का अधिकार-केन्द्रीय सरकार को अधिकार है कि वह अपने द्वारा नियुक्त संचालकों अथवा अतिरिक्त संचालकों को हटाकर उनके स्थान पर नवीन संचालकों की नियुक्त कर दे । किन्तु इनका कार्यकाल वही होगा जो कि पहले के संचालकों का था।
(12) सामयिक प्रतिवेदन- केन्द्रीय सरकार अपने द्वारा नियुक्त संचालकों में कम्पनी के कार्यकलापों के सम्बन्ध में समय- समय पर प्रतिवेदन की माँग कर सकती है।
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