Entrepreneur Meaning in Hindi (Introduction)
उद्यमी का परिचय (An Introduction of Entrepreneur)
प्रश्न 1. उद्यमी से आप क्या समझते हैं, इसे परिभाषित कीजिए। उद्यमी की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तरउद्यमी का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Entrepreneur)
उद्यमी शब्द का उद्गम फ्रेंच शब्द Enterpendre (इण्टरपेन्डर) से हुआ है, जिसका शब्दिक अर्थ है नए व्यवसाय की जोखिम को वहन करना । ‘उद्यमी’ उपक्रम का सर्वोच्च अधिकारी एवं समाज का अभिन्न अंग होता है क्योंकि वह जोखिम एवं विभिन्न अनिश्चितताओं का केवल वाहक ही नहीं होता अपितु वह एक प्रबन्धक, भविष्यवक्ता, नवीन उत्पादन विधियों का जन्मदाता तथा देश की आर्थिक प्रगति का निर्माणकर्ता भी होता है। एक ओर तो वह अपने उपक्रम की आन्तरिक व्यवस्था का प्रहरी (Watchman) होता है तथा दूसरी ओर वह अपने प्रतिस्पर्धियों (Competitors) की गतिविधियों पर पूर्ण रूप से ध्यान केन्द्रित करते हुए सम एवं विषम परिस्थितियों में लाभों एवं नवीन अवसरों का सृजन करता है। वास्तव में उद्यमी उस व्यक्ति को कहा जाता है जो कि ‘कुछ नहीं’ से अपना कार्य आरम्भ करता है तथा जोखिम एवं अनिश्चितताओं का सामना करते हुए व्यवसायिक उपक्रम का सृजन (Creation) करता है। उद्यमी का अर्थ प्रायः जोखिम वहन करने वाला (Riskbearer) प्रवर्तक (Promotor), उपक्रम की स्थापना करने वाला (Under-taker), स्वामी (Owner), प्रबन्धक (Manager), संगठनकर्ता (Organizer), समन्वयकर्ता (Co-Ordinator), संस्थापक (Founder), एवं आधुनिक युग में नव-प्रवर्तनकर्ता (Innovetor) से लगाया जाता रहा है।. .
मार्शल के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति है, जो जोखिम उठाने का साहस करता है, किसी कार्य के लिए आवश्यक पूँजी एवं श्रम की व्यवस्था करता है, जो इसकी सामान्य योजना बनाता है तथा जो इसकी छोटी-छोटी बातों का निरीक्षण करता है। »
आर्थर डेविंग के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति है, जो विचारों को लाभदायक व्यवसाय में रूपान्तरित करता है।”
क्लेरेन्स डॉनहोष के अनुसार, “ उद्यमी का सम्बन्ध प्राथमिक रूप से उत्पादन फार्मूले में किये जाने वाले परिवर्तनों से होता है, जिस पर उसका पूर्ण नियन्त्रण होता है।”
जोसेफ ए० शुम्पीटर के अनसार, “उद्यमी वह व्यक्ति है जो किसी अवसर की पूर्व कल्पना करता है कि किसी नयी वस्तु, नयी उत्पादन विधि, नये कच्चे माल, नये बाजार अथवा उत्पादन के साधनों के नये संयोजन को अपनाते हुए अवसर का लाभ उठाता है।”
विभिन्न परिभाषाओं का अवलोकन करने के पश्चात् बदलते व्यावसायिक व औद्योगिक युग में यह कहा जा सकता है कि उद्यमी वह व्यक्ति है जो व्यवसाय में लाभप्रद अवसरों की खोज करता है, आर्थिक संसाधनों को संयोजित करता है,नवकरणों को जन्म देता है तथा उपक्रम में निहित विभिन्न जोखिमों एवं अनिश्चितताओं का उचित प्रबन्ध करता है
उद्यमी की विशेषताएं Characteristics of Entrepreneur
विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं के सूक्ष्म अवलोकन से स्पष्ट है कि उद्यमी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह-छोटे व्यवसायों में व्यक्ति उद्यमी होता है जबकि विशाल उद्योगों में जिनकी स्थापना एक ही विचारधारा के कई लोग मिलकर करते हैं। अत: ऐसे उपक्रमों में व्यक्तियों का समूह उद्यमी कहलाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह उद्यमी की भूमिका निभाता है।
(2) जोखिम वहनकर्ता-उद्यमी व्यवसाय जोखिम को उठाने वाला व्यक्ति होता है,क्योंकि जब इसके मस्तिष्क में व्यवसाय की स्थापना का भाव जागृत होता है तो उसमें जो जोखिम है, उसे सहन करने की क्षमता भी उसी में होती है इसीलिए लॉरेन्स लेमन्ट ने लिखा है कि, “जोखिम वहन के प्रति झुकाव ही उद्यमीय व्यक्तित्व का वास्तविक लक्षण है।”
(3) नवीन उपक्रम की स्थापना- विकासशील देशों में उत्पादन सीमित होने के कारण उत्पादन एवं वितरण कार्य महत्वपूर्ण होता है, ऐसी दशाओं में उद्यमी न केवल साधनों का एकीकरण करता है बल्कि नये उपक्रमों की स्थापना करके औद्योगिक क्रियाओं का विस्तार करता है ! पारीक एवं नाडकर्णी के शब्दों में, “उद्यमी नई आर्थिक क्रिया या उपक्रम की पहल करता एवं उसे स्थापित करता है।”
(4) साधन प्रदान करने वाला-उद्यमी उपक्रम की स्थापना के लिए सभी आवश्यक साधन जैसे-पूंजी, श्रम, भूमि, यन्त्र आदि की व्यवस्था करता है तथा आवश्यक सूचनाएँ एवं तकनीक व तथ्य उपलब्ध कराता है। कुछ स्थितियों में उद्यमी स्वयं साधनयुक्त होता है, किन्तु बड़े व्यवसायों की स्थापना के लिए उद्यमी सरकार व विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से साधनों की व्यवस्था करता है।
(5) उच्च उपलब्धियां-उद्यमी अपने कठोर परिश्रम व नवीन सोच से हमेशा कुछ ऐसा करने की इच्छा रखता है जो दूसरों से भिन्न हो अर्थात् उसकी उपलब्धियाँ उच्च स्तर की हों। गैलरमैन लिखते हैं कि “उद्यमी अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होते हैं तथा उच्च उपलब्धियों को प्राप्त किये बिना जीवन में सन्तुष्ट नहीं होते हैं।
(6) नव प्रवर्तनकर्ता-उद्यमी वह व्यक्ति होता है जो व्यवसाय को नवीनता, नवीन सोच, नवीन उत्पादन तकनीक, नवीन वस्तुओं का उत्पादन, नवीन यन्त्रों के उपयोग को प्रोत्साहित करता है । वास्तव में उद्यमी व्यवसाय में सदैव नवीन परिवर्तनों एवं सुधारों को जन्म देता है। पीटर ड्रकर लिखते हैं कि, “उद्यमी कुछ न कुछ नये व कुछ न कुछ भिन्न का सृजन करते हैं । वे मूल्यों को परिवर्तित एवं रूपान्तरित करते हैं।”
(7) स्वतन्त्रता प्रेमी-उद्यमी व्यक्ति का स्वभाव स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करना होता है। वे प्रत्येक कार्य को अपने ढंग से करना अधिक पसन्द करते हैं। यही कारण है कि उनका रुझान स्वतन्त्र साहसिक कार्यों की ओर अधिक होता है। उद्यमी व्यक्तियों में पहल शक्ति का नेतृत्व गुण विद्यमान होता है। इसीलिए इन्हें स्वतन्त्रता प्रेमी भी कहा जाता है।
(8) आशावादी दृष्टिकोण-उद्यमी व्यक्ति का दृष्टिकोण सदैव आशावादी होता है। वह व्यवसायिक चुनौती से हार नहीं मानता और न ही व्यवसाय में हानि से विचलित होता है । वह लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहता है और उसका दृष्टिकोण सदैव आशावादी रहता है।
(9) कार्य ही लक्ष्य एवं सन्तुष्टि-उद्यमी व्यक्तियों के लिए उनका कार्य ही अपने आप में लक्ष्य एवं सन्तुष्टि का एक बड़ा स्रोत होता है । उद्यमी का मूल उद्देश्य आत्म सन्तुष्टि होता है जबकि मौद्रिक लाभ उनके लिए गौण होता है। वे मुद्रा को केवल अपने कार्य की प्रगति के मापक के रूप में ही देखते हैं। गैलरमैन के शब्दों में कार्य का निष्पादन ही उद्यमी के लिए सन्तुष्टिदायक होता है। वे कार्य का एक सृजन की भांति आनन्द उठाते हैं। कार्य ही उनकी ‘रणा होती है और कार्य ही पूजा।”
(10) अवसरों का विदोहन-प्रत्येक उद्यमी में सृजनात्मक असन्तोष छिपा रहता है, जिसके द्वारा वह सदैव व्यवसायिक अवसरों की खोज में रहता है तथा उनका विदोहन करके लाभ अर्जित करता है। उद्यमी प्रत्येक अवसर को एक चुनौती की भांति स्वीकार करता है, किन्तु अवसरों का लाभ उठाने के लिए वह अपनी नैतिकता कभी नहीं खोता। ड्रकर के शब्दों में, “वास्तविक उद्यमी ‘जोखिम केन्द्रित’ नहीं बल्कि ‘अवसर केन्द्रित’ होता है।’
(11) प्रबन्धक साहसी-छोटे व्यवसायों में प्रबन्ध व संच लन का कार्य स्वयं उद्यमी के द्वारा ही किया जाता है। किन्तु बड़े उपक्रमों में उद्यमी एवं प्रबन्धक अलग-अलग होते हैं। कम्पनी में उद्यमी प्रवर्तक के रूप में कार्य करते हैं। कभी-कभी प्रवर्तक उद्यमी संचालक मण्डल के सदस्य बनकर उच्च प्रबन्धक के रूप में भी कार्य करते हैं। इन उपक्रमों में उद्यमी प्रबन्धक उद्यमी’ के रूप में अपनी भूमिका निभाते हैं।
(12) नेतृत्वकर्ता-उद्यमी व्यवसायिक जगत का मूलाधार होता है। वह व्यवसाय एवं उद्योग को नेतृत्व प्रदान करता है तथा समाज को एक नई दिशा देता है। शुम्पीटर के शब्दों में उद्यमी का कार्य किसी आविष्कार के आधार पर उत्पादन के प्रारूप में सुधार या क्रान्ति लाना
(13) पूँजीपति एवं विनियोजक से भिन्न-उद्यमी पूँजीपति नहीं होते हैं, यद्यपि वह व्यवसाय में पूँजी की व्यवस्था करता है इसी प्रकार साहसी विनियोक्ता भी नहीं होते क्योंकि विनियोक्ता का मूल उद्देश्य केवल आय अर्जित करना होता है। ड्रकर के अनुसार “उद्यमी नियोजक भी नहीं होता, यद्यपि हो सकता है, किन्तु वह अक्सर एक कर्मचारी होता है अथवा वह तो अकेला तथा पूर्णतः स्वयं ही कार्य करता है।”
(14) गतिशील प्रतिनिधि-किसी भी देश की आर्थिक प्रगति का मूल्यांकन वहां के उद्यमियों की सफलता के मापन से किया जा सकता है, क्योंकि उद्यमी ही वह व्यक्ति है जो अपने ज्ञान एवं नीतियों के द्वारा व्यवसाय में निरन्तर परिवर्तन करके सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को गतिशील बना देता है । शुम्पीटर के शब्दों में, “उद्यमी का कार्य सृजनात्मक विनाश करना है।” वह नये निर्माण के लिए पुरानी चीजों का विनाश करता है । वह उत्पादन के साधनों को नये-नये सृजन में लगाकर विकास की गति को बढ़ाता है। उद्यमियों के अभाव में उत्पादन के साधन केवल साधन ही बने रहते हैं, उनसे उपयोगिता का सृजन नहीं हो पाता है।
(15) एक संस्था-उद्यमी स्वयं में एक संस्था है क्योंकि इसके द्वारा समाज में विभिन्न संस्थाओं का जन्म होता है। आज विकासशील देशों में अनेक संस्थाएँ ‘उद्यमी’ के रूप में कार्य करती हैं। सरकार स्वयं एक उद्यमी बनकर राष्ट्र के औद्योगिक विकास में योगदान करती है
(16) पेशेवर प्रकृति-वर्तमान में उद्यमी एक पेशेवर वर्ग के रूप में विकसित हो रहे हैं। पहले यह मान्यता थी कि उद्यमी पैदा होते हैं, बनाये नहीं जाते किन्तु अब यह धारणा समाप्त होती जा रही है। व्यवसायिक ज्ञान, प्रशिक्षण सुविधाओं एवं विभिन्न प्रेरणाओं की उपलब्धि के कारण अब उद्यमी भी बनाये जाते हैं, पैदा नहीं होते।
(17) कार्य में पूर्ण समर्पित-उद्यमी अपने कार्य के प्रति सदैव पूर्ण समर्पित रहते हैं । उद्यमी में अपने लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण भाव, वचनबद्धता एवं एकाग्रता होती है । उद्यमी चुपचाप बिना विचलित हुए सदैव अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहते हैं
(18) प्रतिफल लाभ है-उद्यमी को अपनी सेवाओं के प्रतिफल स्वरूप लाभ प्राप्त होता है किन्तु वर्तमान युग में अनेक उद्यमी अमौद्रिक प्रेरणाओं, सामाजिक प्रतिष्ठा, नवप्रवर्तन की भावना, छवि, उपलब्धि, आत्म सन्तुष्टि,भिन्न व्यक्तित्व की लालसा आदि की दृष्टि से भी कार्य है
(19) उद्यमिता सार्वभौमिक क्रिया-उद्यमिता का प्रयोग न केवल आर्थिक जगत के लिए आवश्यक है बल्कि जीवन के सभी क्षेत्रों में उद्यम की आवश्यकता होती है । पीटर एफ० ड्रकर के शब्दों में, “उद्यमी मानव जीवन को अस्तित्व में बनाये रखने सम्बन्धी क्रियाओं के अतिरिक्त सभी क्रियाओं से सम्बन्धित है।”
(20) उच्च उपलब्धियों में विश्वास-उद्यमी हमेशा उच्च उपलब्धि में विश्वास रखता है तथा असम्भव कार्य को सम्भव बनाने का प्रयास करता है। उच्च उपलब्धि में विश्वास के कारण ही वह आर्थिक जगत में अपनी अलग पहचान रखता है।
(21) विश्वासश्रित सम्बन्ध-वर्तमान युग निगम संस्कृति का युग है जिसमे बड़ी-बड़ी कम्पनियों व निगमों की स्थापना की जा रही है। उद्यमी ही प्रवर्तक के रूप में इनकी स्थापना करते हैं। अत: उद्यमी का न केवल उपक्रम बल्कि सम्पूर्ण समाज के साथ भी विश्वासाश्रित सम्बन्ध निर्मित हो जाता है ।
(22) अनुसन्धान पर बल-आधुनिक उद्यमी वैज्ञानिक शोध एवं अनुसन्धान पर बल देते हैं। वे सदैव प्रयोग व परिवर्तनों में विश्वास रखते हैं। उनकी कार्य प्रणाली वैज्ञानिक एवं तर्कयुक्त होती है। वह परम्परागत विधियों के स्थान पर नवीन तकनीक व अनुसन्धान पर आधारित विधियों का उपयोग करता है।
उद्यमी की उपरोक्त विशेषताओं के अध्ययन से स्पष्ट है कि उद्यमी का व्यवसाय जगत में एक अलग स्थान होता है। वह अपनी नवीन सोच, निरन्तर कुछ नवीन करने की धारणा व अनुसन्धान से व्यवसाय को एक अलग पहचान देता है। यही कारण है कि आज के औद्योगिक विकास के युग में उद्यमी का महत्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है।
प्रश्न 2. “उद्यमी प्रबन्धक से बड़ा होता है। वह नवप्रवर्तक तथा प्रवर्तक दोनों ही है।” इस कथन का स्पष्ट करते हुए उद्यमी या साहसी के विभिन्न प्रकार बताइए।
“The entrepreneur is more than a manager. He is both an innovator and promotor as well.” Explain this statement and describe the various types of entrepreneurship.
उत्तर – जनसामान्य उद्यमी और प्रबन्धक को एक ही समझते हैं। वास्तव में ऐसा नहीं है। प्रबन्धक व्यावसायिक उपक्रम का एक कर्मचारी होता है जिसका मूल कार्य व्यवसाय की नीतियों को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के माध्यम से पूरा कराना और संस्था के निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है जबकि उद्यमी एक प्रवर्तक, नीति निर्धारक और व्यवसाय का नायक होता है। सामान्यतः उद्यमी व्यवसाय निवेश और कुशल नीतियों व तकनीकों के द्वारा अधिकतम हुए सामाजिक उद्देश्यों को पूरा करता है अंत: जब उद्यमी औद्योगिक उपक्रम पर नियन्त्रण करता है तब वह एक कारखाना प्रबन्धक से बड़ा होता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मार्शल के अनुसार, “उद्यमी उद्योग का कप्तान होता है, क्योंकि वह जोखिम एवं निश्चितता का वाहक ही नहीं बल्कि वह भविष्य दृष्टा, नवीन उत्पादन विधियों का आविष्कारक तथा देश के आर्थिक ढांचे का निर्माता भी होता है। अपने लाभों को अधिकतम करने के लिए एक ओर वह उद्योग को आन्तरिक व्यवस्था पर पूरी निगाह रखता है तो दूसरी ओर वह अपने प्रतिद्धन्द्वियों की गतिविधियों पर भी पूरा ध्यान रखता है।” इस प्रकार उद्यमी एक व्यवसाय के प्रबन्धक से बड़ा होता है।
उद्यमी के प्रकार
(Type of Entrepreneur)
उद्यमिता के स्वरूप के आधार पर उद्यमी विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जिन्हें अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से पाचँ वर्गों में विभक्त कर सकते हैं-
(I) नवप्रवर्तन योग्यता आधार पर-प्रत्येक अर्थव्यवस्था में उद्यमियों का स्वरूप भिन्न-भिन्न होता है। विकसित अर्थव्यवस्था नवप्रवर्तक एवं उत्साही उद्यमियों को जन्म देती है। क्लेरेन्स डेनहॉफ ने विकास के स्तर के आधार पर उद्यमियों के निम्न चार प्रकार बताये हैं-
(1) नव-प्रवर्तक उद्यमी-जब उद्यमी व्यवसाय में नवीन वस्तु का उत्पादन, उत्पादन की नई तकनीक नवीन यन्त्रों-उपकरणों के उपयोग, नई प्रबन्ध व्यवस्था को अंगीकार करता है, तो वह नवप्रवर्तक उद्यमी कहलाता है । इसका उद्देश्य सदैव क्रान्तिकारी एवं नवीन कदम उठाकर लाभ अर्जित करना होता है। शुम्पीटर के अनुसार, “नवप्रवर्तक उद्यमी किसी भी नये आविष्कार को क्रियान्वित करके उत्पादन के तरीकों में सुधार करने या उसमें क्रान्ति लाने का कार्य करता
(2) नदालचा उद्यमी-जब उद्यमी नव प्रवर्तक उद्यमियों के सफल नवकरणों को अपनाते : तो इस नकलची या अनुकरणशील उद्यमी कहते हैं। ऐसे उद्यमी अपेक्षाकृत कम जोखिम लते हैं । विकासशील देशों में उद्यमियों में प्रायः विकसित देशों के उद्यमियों के सफल नवकरणों की नकल करने की प्रवृत्ति होती है। परन्तु किसी देश के विकास में नकलची उद्यमियों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। होसलिट्ज के अनुसार, “एक अर्द्धविकसित अर्थव्यवस्था में शुम्पीटर के नवप्रवर्तक ही नहीं अनुकरणशील साहसी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।”
(3) जागरूक उद्यमी-जब उद्यमी नव प्रवर्तनों की नकल भी बहुत सावधानी से करता है तो उसे जागरुक उद्यमी कहते हैं । यह उद्यमी बिना जोखिम लिए हुए जब पूर्ण आश्वस्त हो जाता है कि नवीनता का प्रयोग करके लाभ होगा तभी वह अपने यहां नवीनता को अपनाता है। उद्यमिता के विकास की प्रारम्भिक अवस्था में इसी प्रकृति के उद्यमी होते हैं
(4) आलसी उद्यमी- जब उद्यमी नवकरणों के प्रति उदासीन हो जाता है तथा आरामदायक जीवन व्यतीत करना पसन्द करता है, तब वह आलसी उद्यमी कहलाता है। ऐसे उद्यमी परम्परागत विचारधारा वाले होते हैं और इनका मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना नहीं बल्कि व्यवसाय को मात्र चलाना होता है, इसलिए यह न तो व्यवसाय में किसी प्रकार का परिवर्तन करते हैं और न ही लागत में कमी करके व वस्तुओं की श्रेष्ठता में वृद्धि करके लाभ अधिकतम करने का प्रयत्न करते हैं।
(II) कार्य के आधार पर कार्य के आधार पर कार्लवेस्पर ने उद्यमियों को निम्नलिखित नौ प्रकार का बताया है-
(1) नियुक्त उद्यमी-ऐसे उद्यमियों को किसी के द्वारा नियुक्त नहीं किया जाता है बल्कि वे स्व-नियुक्त होते हैं । इन्हें अपना कार्य करने की स्वतन्त्रता रहती है। ऐसे उद्यमी रंगमंच के कलाकार, चिकित्सक आदि होते हैं।
(2) अधिग्रहण उद्यमी-ऐसे उद्यमी किसी वस्तु का निर्माण नहीं करते बल्कि यह छोटी-छोटी फर्मों का अधिग्रहण करके उनका संचालन करते हैं। कभी-कभी वह इन फर्मों का अपने व्यवसाय में पूर्ण विलय करके व्यवसाय संचालन का कार्य करते हैं
(3) कार्यशक्ति निर्माता उद्यमी-ऐसे उद्यमी जो स्वतन्त्र रूप से यन्त्रशालाओं, कम्प्यूटर एयरलाइन्स, अभियन्त्रिकी सेवा फर्मों का निर्माण एवं संचालन करते हैं उन्हें कार्य शक्तिनिर्माता उद्यमी कहते हैं।
(4) प्रारूप प्रवर्तक उद्यमी-ऐसे उद्यमी उत्पादन की विभिन्न तकनीकों के आधार पर वस्तुओं के गुणों, आकार आदि में परिवर्तन करते हैं। कम्पनियों द्वारा इन्हें इन तकनीकों का प्रयोग करने का अधिकार प्राप्त होता है
(5) उत्पादन उद्यमी-ऐसा उद्यमी जो नये-नये उत्पादों का डिजाइन तैयार करते हैं तथा उनका निर्माण करके उन्हें बाजार में प्रस्तुत करते हैं उन्हें उत्पादक उद्यमी कहते हैं। नये उत्पादों से निर्मित करने के कारण इनकी प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति सुदृढ़ होती है।
(6) पूँजी संचय करने वाले उद्यमी-ऐसे उद्यमी पूँजी संचय करने वाले कार्य जैसे-बैकिंग व्यवसाय, बीमा कम्पनी में विशेष दक्षता रखते हैं।
(7) प्राकृतिक संसाधन विदोहक-ऐसे उद्यमी देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन कर उन्हें उत्पादक कार्यों के लिए उपलब्ध कराते हैं ।
(8) मितव्ययी उद्यमी-ऐसे उद्यमी उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को बढ़ाने का प्रयास करते हैं। इनमें छूट भण्डार, डाक व्यवसाय व्यापारी आदि सम्मिलित हैं।
(9) सटोरिये उद्यमी-ऐसे उद्यमी स्वयं किसी व्यवसाय का निर्माण या प्रारम्भ नहीं करते, बल्कि यह विभिन्न प्रकार के स्वामित्व प्रपत्रों में व्यवसाय करके लाभ कमाते हैं।
(III) विकास की गति के आधार पर किसी भी देश में विकास की गति के आधार पर श्री० एल० सी० गुप्ता ने उद्यमियों के निम्न प्रकार बताये हैं-
(1) प्राथमिक प्रवर्तक उद्यमी-ऐसा उद्यमी विकास की प्रक्रियाओं एवं कार्यों को प्रभावी तरीके से गतिमान बनाता है। वह व्यवसाय में नवीन परिवर्तन करके विविधता लाने पर बल देता है। नयी-नयी वस्तुओं, यन्त्रों व उत्पादन तकनीकों को अपनाकर विकास की गति को बढाने में योगदान देता है।
(2) अल्प प्रवर्तक उद्यमी-ऐसे उद्यमी अल्प मात्रा में नव प्रवर्तक का कार्य करके आर्थिक विकास की गति को बल प्रदान करते हैं। ऐसे उद्यमी उपलब्ध संसाधनों का श्रेष्ठतम उपयोग करके लाभों में वृद्धि करते हैं तथा विकास की गति में वृद्धि करते हैं । यद्यपि वैयक्तिक रूप में इन उद्यमियों का योगदान बहुत कम होता है।
(3) पहलकर्ता उद्यमी-ऐसा उद्यमी नव प्रवर्तनों के उद्देश्य से अर्थव्यवस्था में प्रवेश करता है एवं विकास की गति को बल प्रदान करता है, जबकि स्वयं नव प्रवर्तनों की कल्पना भी नहीं करता। वह नवप्रवर्तन की फैलाव प्रक्रिया में भाग लेकर विकास को गति प्रदान करता है।
(4) स्थानीय उद्यमी-ऐसे उद्यमी का कार्य क्षेत्र स्थानीय होता है। वह अपनी आर्थिक क्रिया को किसी क्षेत्र विशेष तक ही सीमित रखते हैं, उसका फैलाव नहीं करते हैं।
(5) प्रबन्धक उद्यमी-प्रबन्धक उद्यमी कुशल प्रबन्धक एवं नियन्त्रण के द्वारा उपक्रम का सफल संचालन करता है। यह उपक्रम का बाहरी लोगों से सम्बन्ध स्थापित करता है तथा उपक्रम का सफल संचालन करता है। एक उद्यमी में प्रबन्धकीय कौशल असीमित होता है।
(6) अनुषंगी उद्यमी-ऐसा उद्यमी सहायक उद्योगों एवं व्यवसाय को संचालित करता है। प्रारम्भ में उसकी भूमिका पूर्तिकर्ता एवं मध्यस्थ की होती है, किन्तु धीरे-धीरे वह उद्योग का स्वतन्त्र संचालन करने लगता है।
(IV) सामाजिक लाभ की दृष्टि से-सामाजिक लाभ की दृष्टि से उद्यमी निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(1) शोषक उद्यमी- यह उद्यमी केवल स्वयं के हित में कार्य करता है, समाज के प्रति पूर्णत: उदासीन होता है और इसका एक मात्र लक्ष्य अपने लाभ को बढ़ाना होता है । इस प्रकार के उद्यमी में श्रम करने की क्षमता अधिक होती है, किन्तु उनमें आत्मसम्मान की भावना नगण्य होती है। ऐसे उद्यमी आर्थिक विषमता वालों क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
(2) आदर्श उद्यमी-ऐसा उद्यमी अपने व्यवसाय को सामाजिक हित एवं लाभ के लिए संचालित करता है । वह अपनी व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्रियाओं के द्वारा सामाजिक लक्ष्यों की पूर्ति करता है। अत: वह नवप्रवर्तन, व्यवसाय विस्तार, उत्पाद विविधीकरण आदि पर विशेष ध्यान देता है। वह समाज में रोजगार, आय, आर्थिक उपयोगिता, नये मूल्यों व उच्च जीवन सृजन के लिए प्रयत्नशील होता है । उसका मुख्य उद्देश्य लाभ के स्थान पर सामाजिक सन्तुष्टि होता है। सामाजिक नव प्रवर्तन उसका मुख्य कार्य होता है। राष्ट्र के विकास में उसका योगदान महत्वपूर्ण होता है।
प्रश्न 3. एक सफल उद्यमी के विभिन्न गुणों का वर्णन कीजिए।
Explain the various qualities of a successful entrepreneur.
एक सफल उद्यमी के प्रमुख गुण
(Main Qualities of a Successful Entrepreneur)
वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में व्यावसायिक सफलता का आधार साहसी व उद्यमी के गुणों पर भी निर्भर करता है, क्योंकि उद्यमी ही वह व्यक्ति होता है, जो व्यवसाय की सफलता के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहता है । जेम्सवर्न ने उद्यमी के गुणों का वर्णन करते हुए लिखा है कि, “एक साहसी में संगठनात्मक, प्रशासकीय, तकनीकी एवं व्यावसायिक ज्ञान, अवसरों के प्रति सजगता, परिवर्तनों के स्वीकार करने की अभिव्यक्ति एवं जोखिम उठाने जैसे गुणों का होना आवश्यक है।” एक सफल उद्यमी में निम्नलिखित गुण होने चाहिएँ-
(I) शारीरिक गुण-उद्यमी के शारीरिक गुणों में निम्नलिखित को शामिल करते है-
(1) उत्तम स्वास्थ्य-उद्यमी का सबसे बड़ा गुण उसका स्वस्थ्य होना है क्योंकि एक स्वस्थ व्यक्ति ही कार्यों को प्रभावी ढंग से पूरा कर सकता है
(2) प्रभावशाली व्यक्तित्व-उद्यमी ऐसा हो जिसका व्यक्तित्व प्रभावशाली हो अर्थात् देखने व बात करने में ऐसा हो जो दूसरों को प्रभावित कर सके।
(3) सुन्दर आकृति-उद्यमी की आकृति एवं बनावट सुन्दर होनी चाहिए। वह अच्छी डील डौल, सुन्दर मुख आकृति, साफ रंग व शरीर के सभी अंगों से पूर्ण है तो स्वयं ही उसके व्यक्तित्व में निखार आ जाता है।
(4) प्रसन्न मुद्रा-उद्यमी में प्रसन्नचित्त रहने का भी गुण होना चाहिए। यदि वह चिड़चिड़ा या गुस्से वाला होगा तो वह प्रभावी नहीं होगा जबकि हंसमुख स्वभाव का व्यक्ति दूसरे को बातचीत करते समय आसानी से प्रभावित कर लेता है।
(II) मानसिक गुण – उद्यमी के मानसिक गुणों में निम्नलिखित को शामिल करते हैं-
(1) प्रखर बुद्धि-उद्यमी की प्रखर अथवा तेज बुद्धि होनी चाहिए ताकि वह शीघ्रता से निर्णय ले सके, अधीनस्थों को आदेश एवं निर्देश दे सकें।
(2) कल्पना शक्ति-कल्पना ही मूर्त रूप लेती है अतः उद्यमी में कल्पना शक्ति होनी चाहिए तभी वह अपनी योजनाओं को मूर्त रूप देकर क्रियान्वित करेगा।
(3) सतर्कता-वर्तमान परिवर्तनशील युग में वही उद्यमी सफल है, जो नवीन परिवर्तनों को समाहित करते हुए प्रतिस्पर्धात्मक रुख को अपनाता है। इसके लिए आवश्यक है कि उद्यमी सदैव उपक्रम के प्रति सतर्क रहे।
(4) तीव्र स्मरण शक्ति-उद्यमी में तीव्र स्मरण शक्ति का गुण होना भी आवश्यक है। के आधार पर पूर्व कार्यों का सही विश्लेषण कर भावी योजना तैयार कर सकता है तथा दैनिक कार्यों का सुगमता से निष्पादन भी कर सकता है। इसी गुण
(5) परिश्रमी-परिश्रम ही सभी कार्यों की सफलता की कुंजी है। अतः प्रत्येक उद्यमी में मेहनत तथा कठिन परिश्रम करने का गुण अवश्य होना चाहिए।
(6) आत्पविश्वास-आत्मविश्वास सफलता की कुंजी है। अतः उद्यमी में आत्मविश्वास होना चाहिए तभी वह सही व्यावसायिक निर्णय ले सकेगा।
(7) परिपक्वता-उद्यमी में परिपक्वता का गुण भी होना चाहिए तभी वह विवेकपूर्ण निर्णय ले सकेगा और अन्य व्यक्तियों को आसानी से समझ सकेगा।
(8) आशावादिता-उद्यमी को सदैव आशावादी होना चाहिए तभी उसे कार्य में सफलता मिलेगी और उपक्रम प्रगति करेगा।
(9) दूरदर्शिता-उद्यमी में दूरदर्शिता होनी चाहिए। वह जो आज निर्णय लेगा उसका भविष्य में क्या परिणाम होगा उसे ध्यान में रखकर ही निर्णय लेने चाहिए अन्यथा आने वाले समय में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
(10) गतिशील विचार-वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में उत्पादन तकनीक में नित्य परिवर्तन हो रहे हैं अतः एक साहसी या उद्यमी अपने उद्देश्य में तभी सफल हो सकता है जबकि उसके विचार सर्वग्राही एवं पम्परावादिता के स्थान पर गतिशील हों।
(III) सामाजिक गुण-एक उद्यमी में निम्नलिखित सामाजिक गुण होने चाहिएँ-
(1) मिलनसार एवं व्यवहार कुशल-उद्यमी को व्यवहार कुशल एवं मिलनसार होना चाहिए तभी वह स्थायी ग्राहक बनाने में सफल होगा और उसकी व्यक्तिगत ख्याति में वृद्धि होगी।
(2) सुशील व्यवहार-उद्यमी में न केवल सहयोगपूर्ण व्यवहार का गुण होना चाहिए बल्कि इसके द्वारा किया गया व्यवहार सुशील व मर्यादायुक्त होना चाहिएँ ।
(3) सहयोगपूर्ण व्यवहार-उद्यमी में अपने अधीनस्थों, व्यवहार करने वाले ग्राहकों तथा पड़ोसी व्यावसायियों को सहयोग प्रदान करने का गुण होना चाहिएँ।
(4) आदर भाव-उद्यमी में अपने समकक्ष एवं बड़े व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखने की क्षमता होनी चाहिए क्योंकि आदर देने से ही आदर मिलता है अतः उसे दूसरों का आदर करना चाहिए।
(IV) नैतिक गुण-एक उद्यमी में निम्नलिखित नैतिक गुण होने चाहिएँ-
(1) ईमानदारी-ईमानदारी वह आभूषण है, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार लाता है । अतः एक उद्यमी में प्रत्येक स्तर पर ईमानदारी का गुण होना चाहिए ।
(2) नम्रता-उद्यमी में नम्रता का गुण होना चाहिए। तभी वह कठिन से कठिन समस्या का भी सही व जल्दी निराकरण कर सकता है।
(3) निष्ठावान-उद्यमी को निष्ठावान भी होना चाहिए अन्यथा अफवाह, भ्रम एवं बातचीत से विचलित हो जायेगा जो उसके लिए उचित नहीं है।
(4) सच्चरित्रता-उद्यमी को चरित्रवान होना चाहिए। एक श्रेष्ठ चरित्र से युक्त व्यक्ति प्रत्येक क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त करने में सफल होता है ।
(V) व्यावसायिक गुण-एक सफल उद्यमी में निम्नलिखित व्यावसायिक गुण होने चाहिएँ-
(1) व्यावसायिक अभिरुचि-उद्यमी में व्यावसायिक अभिरुचि होनी चाहिए तभी वह उपक्रम का कुशलतापूर्वक संचालन कर सकेगा तथा निरन्तर व्यवसाय के विकास एवं विस्तार के प्रति सजग रहेगा। यह निर्विवाद सत्य है कि विश्व के लगभग सभी औद्योगिक उपक्रमी व्यावसायिक अभिरुचि के कारण ही सफल हुए हैं।
(2) नेतृत्व क्षमता-उद्यमी में नेतृत्व क्षमता का गुण होना चाहिए तभी वह अन्य व्यक्तियों से आसानी से कार्य ले सकता है।
(3) प्रबन्ध क्षमता-उद्यमी स्वयं सभी कार्य नहीं करता अपितु अन्य व्यक्तियों से कार्य भी लेता है। अत: अन्य व्यक्तियों से कार्य लेने, आदेश-निर्देश, कार्य का विभाजन, समूहीकरण, अभिप्रेरित तथा नियन्त्रण करने के लिए उसमें प्रबन्ध क्षमता का होना आवश्यक है ।
(4) साहस क्षमता-उद्यमी में जोखिम, अनिश्चितता इत्यादि को उठाने की क्षमता होनी चाहिए। जिस उद्यमी में जितनी अधिक साहस क्षमता होगी वह व्यवसाय एवं उद्योग उतना ही विकसित हो सकता है। इस गुण के अभाव में कोई भी व्यक्ति सफल उद्यमी नहीं बन सकता है।
(5) निर्णयन क्षमता-उद्यमी में तीव्र निर्णयन क्षमता होनी चाहिए क्योंकि व्यवसाय में पग पग पर निर्णय लेने की आवश्यकता पड़ती है।
(6) बाजार दशाओं का ज्ञान-उद्यमी को बाजार की दशाओं का भी पूर्ण ज्ञान होना चाहिए जैसे-किस वस्तु की कितनी मांग है, उत्पादित वस्तु का बाजार क्षेत्र कहाँ है, वस्तु की कीमत कितनी है आदि।
(7) नवीन तकनीकों का ज्ञान-वर्तमान समय में उत्पादन, विपणन, निर्णयन, समय एवं श्रम बचत के क्षेत्रों में नवीन तकनीकों का विकास हो चुका है। ऐसी स्थिति में उद्यमी को इन नवीन तकनीकों का ज्ञान होना आवश्यक है।
(8) विभिन्न वैधानिक नियमों का ज्ञान-उद्यमी को औद्योगिक नीतियों, लाइसेन्सिंग. नियमों, एकाधिकार तथा प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम, निर्यात-आयात नियम, आवश्यक वस्तु अधिनियम, बिक्री कर, कम्पनी अधिनियम, श्रम अधिनियम, पूँजी निर्गमन नियन्त्रण अधिनियम तथा व्यवसाय और उद्योग से सम्बन्धित अन्य वैधानिक नियमों का ज्ञान होना आवश्यक है।
(9) राष्ट्रीय नीति का ज्ञान-उद्यमी को वर्तमान सरकारी नीतियों का भी ज्ञान होना आवश्यक है, क्योंकि सरकार समय-समय पर व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग से सम्बन्धित नीतियों में परिवर्तन एवं शोधन करती रहती है।
(10) अवसरों के प्रति जागरुकता-उद्यमी में अवसरों के प्रति जागरुक होने का गुण होना चाहिए। क्योंकि अवसर कभी-कभी आते हैं। यदि समय रहते उनसे लाभ नहीं उठाया गया तो वह अवसर हाथ से निकल जाते हैं। अत: उद्यमी को अवसरों के प्रति जागरुक होना आवश्यक है।
(11) सामाजिक उत्तरदायित्व की जागरुकता-उद्यमी को सामाजिक उत्तरदायित्व के निर्वाह के लिए भी जागरुक होना चाहिए। इस प्रकार के दायित्व का निर्वाह करने से वह स्वयं अधिक लाभ कमाने की स्थिति में नहीं होता अपितु उसकी संस्था की प्रतिष्ठा पर अनुकूल प्रभाव पड़ता
एक सफल उद्यमी में उपरोक्त सभी गुण यदि विद्यमान हैं तो निश्चय ही सफलता उसके कदम चूमेगी और वह व्यवसाय को विकास के उच्च शिखर पर ले जाने में सक्षम होगा।
लघु उत्तरीय प्रश्न
(Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. नेतृत्व क्षमता से आप क्या समझते हैं ? नेतृत्व सम्बन्धी गुण क्या हैं? What do you mean by leadership ability ? What is the leadership qualities ?
नेतृत्व क्षमता का आशय एवं परिभाषा
(Meaning and Defination of Leadership Ability)
उद्यमी में नेतृत्व क्षमता होने से कर्मचारियों को प्रेरणा एवं निर्देशन मिलता रहता है। उद्यमी एक नेतृत्वकर्ता भी होता है। प्रवर्तन से लेकर व्यवसाय संचालन तक उद्यमी को एक सफल तृत्वकर्ता के रूप में अपनी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है
कूण्ट्ज एवं ओ’ डोनेल के अनुसार, “नेतृत्व व्यक्तियों को प्रभावित करने की कला अथवा प्रक्रिया है, जिससे कि वे समूह के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु स्वेच्छापूर्वक कार्य करने लगे।”
अल्फर्ड तथा बीटी के अनुसार, “ नेतृत्व वह गुण है, जिसके द्वारा अनुयायियों के एक समूह से वांछित कार्य स्वेच्छापूर्वक एवं बिना किसी दबाव के कराए जाते हैं।”
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि “नेतृत्व किसी व्यक्ति विशेष का वह गुण या योग्यता है जिसके द्वारा वह अपने अनुयायियों का निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु मार्गदर्शन करता है तथा उन्हें एक निश्चित ढंग से कार्य करने के लिए उचित नीति एवं रीति द्वारा प्रेरित करता )
नेतृत्व सम्बन्धी गुण
(Leadership Qualities)
चार्ल्स एम० शवाब (Charles M. Schwab) के नेतृत्व सम्बन्धी गुणों का वर्णन निम्न शब्दों में किया है, “उस व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावशाली होना चाहिए। यह गुण महत्वपूर्ण है। उसमें विवेक, अध्यवसाय एवं चातुर्य होना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति में ये गुण नहीं हैं, तो वह अधिक सफलता नहीं पा सकता। वह निष्पक्ष, सत्यवादी, अच्छा सहयोगी हो, एक अच्छा व्यक्ति होने की ख्याति रखे, तभी अन्य लोग उसे पसन्द करेंगे और उस विश्वास रखेंगे आशावादिता. प्रसन्नता तथा लोगों को प्रोत्साहित करने एवं सहायता देने की तत्परता भी उसमें होनी चाहिए।” बर्नाडे ने नेता के निम्न गुणों का वर्णन किया है
(1) निर्णयकर्ता-यह गुण नेता की निर्णय करने की क्षमता से सम्बन्ध रखता है। इसके कारण सही समय पर सही कार्य होना सम्भव होता है।
(2) स्फूर्ति एवं सहिष्णुता-बर्नाडे ने ‘स्फूर्ति’ को शक्ति, चैतन्य, सजगता का मिश्रण अथवा सहिष्णुता बताया है। यह गुण नेता में होना बहुत जरूरी है क्योंकि इसके द्वारा वह समस्याओं पर लगातार विचार कर सकता है, यह असाधारण अनुभव व ज्ञान प्राप्त करने की सामर्थ्य देता है एवं उसके व्यक्तिगत प्रभाव में वृद्धि कर देता है।
(3) उत्तरदायित्व-बर्नाडे के मतानुसार, “उत्तरदायित्व का तात्पर्य उस भावनात्मक परिस्थिति से है जो एक व्यक्ति को, जबकि वह अपने किसी नैतिक कर्त्तव्य को पूरा नहीं करे, तीव्र असन्तोष देती है।”
(4) सामाजिक चेतना-एक सफल नेता के लिए यह अत्यन्त विशिष्ट रूप से आवश्यक गुण है। आर्डवे टीड (Ordway Tead) के शब्दों में, “दृष्टिकोण एवं मस्तिष्क की वह चेतना है, जो अन्य व्यक्तियों की प्रतिक्रियाओं के प्रति अनुभव होती है।”
(5) अनुभूति- इस गुण के अभाव में अन्य सब गुण प्रभावहीन हो जाते हैं। बर्नाडे का कहना है कि “अनुभूति के अन्तर्गत अन्य लोगों के दृष्टिकोण, हितों तथा परिस्थितियों को समझना होता है।”
(6) बौद्धिक क्षमता-यह भी नेतृत्व का एक आवश्यक गुण है। बौद्धिक क्षमता के बिना कोई भी नेता सफल नहीं हो सकता है।
(7) अन्य गुण-नेतृत्व के अन्य महत्वपूर्ण गुण इस प्रकार हैं-(i) सम्मान; (ii) साहस ; (iii) सन्तुलित व्यक्तित्व; (iv) सामाजिक चेतना ; (v) उदार, उचित एवं सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण; (vi) हास्य; (vii) अन्य व्यक्तियों के प्रति सहिष्णुता; (viii) प्रयत्नशीलता; (ix) आकांक्षाशील; (x) अध्यवसायी; (xi) उद्योगी, (xii) अन्य लोगों के लिए स्नेह; (xiii) रुचि ; (xiv) प्रभावशीलता ; (xv) पहलपन ; (xvi) उन्मुक्त हृदय; (xvii) संगठन दक्षता ; (xviii) विश्लेषण एवं मूल्यांकन की योग्यता; (xix) लोगों को समझाने की शक्ति; (xx) स्वामिभक्त ; (xxi) वैयक्तिक चाल-चलन; (xxii) सिखाने की योग्यता; (xxiii) अन्य लोगों में वांछित गुणों के विकास की क्षमता; (xxiv) शुभचिन्ता; (xxv) दृढ़ता ; (xxvi) औचित्य तथा (xxvii) चातुर्य।
प्रश्न 2. जोखिम वहन क्षमता से क्या आशय है? यह कितने प्रकार का होता है? What is the meaning by ability of Risk Taking ? How many kinds of its.?
जोखिम वहन की क्षमता (Ability of Risk Taking)
उद्यमिता पर आधारित व्यवसाय में जोखिम का स्थान महत्वपूर्ण है। उद्यमी को अनेक ऐसी अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ता है, जो उद्यम के प्रतिफल को प्रभावित करती हैं; जैसे-उत्पादों की बिक्री, मांग उपकरणों तथा मशीनों की कार्यदक्षता, कच्चे माल की आपूर्ति तथा क्रय मूल्य एवं अन्य लागतों के बारे में उद्यमी कभी पूरी तरह निश्चिन्त नहीं हो सकता है । ऐसी परिस्थिति में उसे कुछ अनिश्चितता के अन्तर्गत ही निर्णय लेना पड़ता है। अत: इसे जोखिम उठाने का कौशल एवं क्षमता का विकास करना आवश्यक है। उद्यमी की स्थिति इन दो सीमान्तों के बीच में होती है जिसे ‘सामान्य अथवा अनुमानित जोखिम’ कहा जाता है और जिसमें कुछ अपना प्रयास तथा कुछ संयोगिकता अथवा सम्भावना (Chance) निहित होती है । जोखिम उठाने के कौशल अथवा क्षमता का अर्जन करना उद्यमी के लिए आवश्यक होता है।
जोखिमों के प्रकार (Kinds of Risks)
उद्यमी व्यवसाय में निहित जोखिमों को वहन करता है, उन्हें विभिन्न भागों में विभाजित किया जा सकता है, क्योंकि जोखिम केवल आर्थिक ही नहीं होते हैं, वरन् अन्य जोखिम भी व्यवसाय को प्रभावित करते हैं। ऐसे विभिन्न जोखिमों को निम्न ढंग से स्पष्ट किया जा सकता है।
(1) आर्थिक जोखिम (Economic Risk)-आर्थिक जोखिम के अन्तर्गत मुख्यत: उद्यमी द्वारा किए गए पूंजी निवेश को सम्मिलित किया जाता है। व्यवसाय को प्रारम्भ करने के लिए तथा प्रारम्भिक दौर के संचालन के लिए उद्यमी को बड़ी मात्रा में धन निवेश करना होता है। यदि व्यवसाय सफलतापूर्वक चल जाता है तो उद्यमी को लाभ प्राप्त होता है और यदि व्यवसाय सफल नहीं हो पाता तो लगभग अधिकांश भाग (पूंजी का) समाप्त हो जाता है इसे ही आर्थिक जोखिम कहा जाता है। ।
(2) तकनीकी जोखिम (Technical Risk)- सामान्यतः जब किसी उद्यमी द्वारा नवीन व्यवसाय प्रारम्भ किया जाता है तो अधिकांशतः परम्परागत तकनीकी की अपेक्षा नवीन तकनीक का ही प्रयोग किया जाता है। यदि नवीन तकनीक द्वारा निर्मित उत्पाद को ग्राहक पसन्द करते हैं तो इससे लाभ होता है और यदि उत्पाद व उत्पाद की कीमत नहीं पसन्द करते हैं तो उद्यमी को इस नवीन तकनीक से हानि उठानी पड़ती है इसलिए इसे तकनीक जोखिम कहा जाता है।
(3) वातावरणीय जोखिम (Atmospheric Risk)-कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं जो उद्यमी द्वारा अपनाए गए नव प्रवर्तन का कड़ा विरोध करती हैं। जैसे यदि किसी उद्यमी द्वारा कोई ऐसा व्यवसाय आरम्भ किया जाए जो सदैव परम्परागत श्रमिकों द्वारा ही किया जाता है और उद्यमी द्वारा इसके लिए विभिन्न मशीनों का प्रयोग किया जाए तो सम्भव है विभिन्न प्रकार के सामाजिक संगठन मिलकर ऐसा वातावरण तैयार कर लें कि या उद्यमी व्यवसाय बन्द करे अथवा मशीनों के स्थान पर पुनः श्रमिकों को ही नियुक्त करे। ऐसी परिस्थितियों को ही वातावरणीय जोखिम कहा जाता है। यह ऐसे जोखिम होते हैं जिनकी पूर्व में कभी कल्पना नहीं की जा सकती है।
उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उद्यमी को व्यवसाय में विभिन्न प्रकार के जोखिमों को सहन करना पड़ता है। इसलिए कहा जाता है कि जोखिम उद्यमी का एक ऐसा गुण है जो उसे अन्य व्यक्तियों से अलग बनाता है।
प्रश्न 3. नियोजन को परिभाषित कीजिए। इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
Define the planning. Describe main characteristics of its.
देश के विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों के न्यायपूर्ण वितरण की आवश्यकता क्यों है ? What is the need for equitable distribtuion of industries in various regions of the country?
नियोजन की परिभाषा
(Definition of Planning)
‘नियोजन’ की प्रमुख परिभाषाएं निम्नानुसार हैं :-
कूण्ट्ज और ओ’ डोनेल (Koontz and O’ Donnell) के अनुसार, “व्यावसायिक नियोजन एक बौद्धिक क्रिया है, किसी क्रिया के कारण का सचेत निर्धारण है, निर्णयों को लक्ष्यों, तथ्यों तथा पूर्व-विचारित अनुमानों पर आधारित करता है।’
विलियम एच० न्यूमैन (William H. Newman) के अनुसार, “सामान्यतः भविष्य में क्या करना है इसे पहले से तय करना ही नियोजन कहलाता है । इस दृष्टि से नियोजन,मानवीय आचरण के अत्यन्त व्यापक व विस्तृत रूप को अपने में निहित करता है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर “नियोजन को प्रबन्ध का स्पष्ट तौर पर एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है। इस नियोजन के द्वारा ही ‘प्रबन्ध’ अपने लक्ष्यों को निर्धारित साधनों के माध्यम से प्राप्त करने का प्रयास करता है और इस कार्य को कब, किस तरह और कैसे करना है, इसका निर्धारण करता है, जिससे निश्चित परिणामों की प्राप्ति सम्भव हो पाती है।
नियोजन की विशेषताएँ अथवा लक्षण
(Characteristics of Planning)
(1) नियोजन पूर्वानुमान पर आधारित है (Planning is based upon Forecasting)-नियोजन की अन्य महत्वपूर्ण विशेषता इसका पूर्वानुमान से सम्बद्ध होना है। बिना कोई पूर्वानुमानों के नियोजन सम्भव नहीं है । फेयोल के शब्दों में,” नियोजन अल्पकालीन, दीर्घकालीन तथा विशिष्ट और सामान्य पूर्वानुमानों का संश्लेषण है।”
(2) पूर्वनिर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रयास (Efforts to achieve Predetermind Goals)-नियोजन वास्तव में प्रारम्भ में ही निश्चित किए गए उपक्रम के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु एक प्रयास है, क्योंकि प्रत्येक इकाई के स्वामी की अथवा उसके प्रबन्ध की यह कोशिश होती है कि किसी न किसी तरह हमें अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना है। विली ई० गोज के शब्दों में, “प्रबन्धकीय नियोजन निर्धारित लक्ष्यों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए एक निरन्तर समन्वित प्रक्रियाओं के ढांचे की प्राप्ति करना चाहता है।”
(3) एक समन्वित क्रिया (An Integrated Process)-नियोजन एक एकीकृत एवं परस्पर आश्रित क्रिया है। इसके लिए यह आवश्यक है कि संगठन के सभी तत्व मिलकर तथा एक दूसरे के सन्दर्भ में भावी क्रियाकलापों का निर्धारण करें। संगठन के लक्ष्यों, नीतियों, कार्यविधियों , साधनों तथा क्रियाओं में सामंजस्य के द्वारा ही भविष्य के कार्यों का नियोजन किया जाना चाहिए।
(4) एक प्राथमिक कार्य (A Primary Function)-नियोजन प्रबन्ध का सबसे पहला एवं महत्वपूर्ण कार्य है। बिना नियोजन के प्रबन्ध का और कोई भी कार्य; जैसे संगठन, संवहन तथा नियन्त्रण आदि सम्भव नहीं है। इसके बिना प्रबन्ध अधूरा है। इसी के साथ के यह प्रबन्ध प्रक्रिया आगे बढ़ती है।
(5) एक बौद्धिक प्रक्रिया (An Intellectual Process)-नियोजन एक ऐसी प्रक्रिया है, जो व्यक्ति की बुद्धिमता, दूरदर्शिता और विवेक से जुड़ी है, यह एक मानसिक क्रिया भी है; चूँकि नियोजन उपलब्ध विकल्पों में से सर्वोत्तम का चयन है, अतः यह कार्य वही व्यक्ति कर सकता है जिसका बौद्धिक एवं मानसिक स्तर सामान्य से ऊपर है। इस सन्दर्भ में ई० डिमोक का कथन उल्लेखनीय है, “यह नियोजन ही है जो कि इस बात को सम्भव बनाता है कि वह अपने उद्देश्यों को पाने के लिए ज्ञान एवं शक्ति का प्रभावकारी ढंग से संयोजन कर सके।”
(6) एक लोचपूर्ण क्रिया (An Elastic Process)-नियोजन की एक और विशेषता इसका लोचपूर्ण पाया जाना है। हम संस्था तथा इकाई के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए इसको संकुचित एवं विस्तृत बना सकते हैं। चूंकि भविष्य अनिश्चित है, अतः नियोजन भी अनिश्चित हो जाता है। इस दृष्टिकोण से इसमें लोचपूर्णता या समायोजनशीलता होनी चाहिए।
(7) योजनाओं में एकरूपता (Uniformity in Plans)- फेयोल के अनुसार एकरूपता भी नियोजन का आवश्यक लक्षण है। वृहत् आकारीय उपक्रमों में एक मुख्य योजना के साथ-साथ कई छोटी-छोटी योजनाएं भी चलती हैं, लेकिन ऐसी मुख्य योजना और छोटी योजनाओं में एकरूपता एवं सामंजस्य होना आवश्यक है, अन्यथा कई प्रकार की अव्यवस्थाएं फैलती हैं।
(8) सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन (Selection of the best Alternative)-नियोजन का एक अन्य महत्वपूर्ण लक्षण सबसे अच्छे विकल्प का चयन करना है,एक प्रबन्धक के सामने नियोजन करते समय बहुत सारे लक्ष्य, नीतियाँ, विधियाँ और कार्यक्रम होते हैं, जिसमें से अपने उपक्रम के अनुकूल सर्वश्रेष्ठ का चयन करना होता है।
। इस प्रकार नियोजन के माध्यम से उद्यमी उपक्रम के भविष्य पर विचार करता है एवं वातावरण की प्रवृत्तियों का पूर्वानुमान करता है तथा इन्हीं के आधार पर कर्मचारियों की क्रियाओं एवं प्राप्त उद्देश्यों के परिणामों को निश्चित करता है। अतएव उद्यमी में नियोजन शक्ति का है होना आवश्यक है। इसी के द्वारा यह संगठन में उचित व्यवस्था का निर्माण कर सकता
प्रश्न 4. निर्णयन क्षमता से आप क्या समझते हैं?
What do you mean by Decision Making Ability?
उत्तर निर्णयन क्षमता
(Decision Making Ability)
उद्यमी अपने सभी कार्यों को निर्णयन द्वारा करते हैं। उद्यमी चाहे लक्ष्यों का निर्धारण करें, योजना बनाएं, कार्यमार्गों का विकास करें, व्यूहरचना निर्मित करें, नीतियों व कार्य विधियों की रचना करें, कर्मचारियों की भर्तो चयन, पदस्थापन, स्थानान्तरण, मार्गदर्शन और मूल्यांकन करें-इन सभी क्रियाओं को करने में वे निरन्तर निर्णयन कार्य में लगे रहते हैं। इसलिए निर्णय लेने को सभी उद्यमीय कार्यों का आधार कहा गया है। निर्णय दैनिक नैत्यक कार्यों से सम्बन्धित हो सकते हैं अथवा वे उपक्रम के भावी अस्तित्व को प्रभावित करने वाले हो सकते हैं और इस हेतु उनका वर्षों तक व्यवस्थित रूप से विश्लेषण किया जा सकता है। लेकिन प्रबन्ध सदैव निर्णयन की प्रक्रिया है । यहाँ तक कि किसी समस्या का सामना कोई निर्णय न करने का निर्णय करके भी किया जा सकता है।
निर्णयन का अर्थ, निर्णयन वैकल्पिक कार्यमागों में से सचेतन रूप से चुनाव करने की प्रक्रिया है। निर्णयन की प्रक्रिया का अन्तिम परिणाम निर्णय’ है। इस तरह से निर्णयन के बारे में तीन बातें महत्वपूर्ण हैं:
प्रथम, निर्णय में चुनाव निहित है, यदि एक ही कार्यमार्ग है,तो निर्णय सम्भव नहीं। द्वितीय निर्णय में सचेतन रूप से मानसिक प्रक्रिया निहित है। इसमें तार्किक पहलू (logical aspects) महत्वपूर्ण होते हैं । यद्यपि भावनात्मक विवेकरहित और अवचेतन घटकों से भी निर्णयन प्रक्रिया प्रभावित होती है। तृतीय, निर्णय सप्रयोजन होता है अर्थात् कुछ उद्देश्यों को प्राप्त करने में निर्णय सहायक होता है।
प्रश्न 5. उद्यमी तथा प्रबन्धक में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
Define the Difference between Entrepreneurs and Manager.
उद्यमी तथा प्रबन्धक में अन्तर
(Difference between Entrepreneur and Manager)
उद्यमी और प्रबन्धक में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं-
1. उद्यमी जोखिम वहनकर्ता होता है जबकि प्रबन्धक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए नीति निर्धारित करता है।
2. उद्यमी अन्तर वैयक्तिक संचार में संलग्न रहता है जबकि प्रबन्धक औपचारिक संचार में संलग्न रहता है।
3. उद्यमी वार्ताकार होता है जबकि प्रबन्धक संगठनकर्ता होता है
4. उद्यमी किसी भी समस्या को हल करने वाला होता है जबकि प्रबन्ध समस्या के हल के लिए अभिप्रेरित करता है 1
5. उद्यमी उपक्रम को निरन्तर प्रगति की ओर ले जाने का प्रयास करता है जबकि प्रबन्धक उपक्रम का नियन्त्रक होता है।
6. उद्यमी नवप्रवर्तक होता है जबकि प्रबन्धक प्रशासक होता है।
7. उद्यमी उत्प्रेरक होता है जबकि प्रबन्धक चातुर्य एवं ज्ञान से ओतप्रोत होता है ।
8. उद्यमी प्रतिबद्ध होता है जबकि प्रबन्धक श्रद्धावान होता है।
9. उद्यमी भविष्य को ध्यान में रखता है जबकि प्रबन्धक वर्तमान को ध्यान में रखता है।
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