बक्सर का युद्ध
प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया था: जो पूर्णतः अंग्रेजी नियन्त्रण के अधीन था। राजकोष खाली था तथा सैनिकों का वेतन अभी देना शेष था। वह कम्पनी को दी जाने वाली छह मासिक किस्तें देने में भी असमर्थ रहा था। क्लाइव मई 1760 ई० में इंग्लैण्ड लौट गया था। उसके जाने के शीघ्र पश्चात् ही मीर जाफर के पुत्र मीरन की मृत्यु हो गई तथा मीर जाफर के पश्चात् उत्तराधिकारी की समस्या ने कम्पनी की चिन्ता में वृद्धि कर दी। 1760 ई० तथा 1761 ई० में शाहआलम द्वारा किए गए आक्रमणों तथा मराठों के आक्रमणों ने नवाब को भयभीत कर दिया। इस प्रकार नवाब की निर्बलता तथा अयोग्यता के कारण उसके प्रान्त में अराजकता तथा अशान्ति व्याप्त हो गई।
मि० हॉलवेल ने नवाब को बदलने के उद्देश्य से मीर जाफर पर कुछ विशेष आरोप लगाए। कम्पनी ने मीर कासिम अली खाँ से एक सन्धि कर ली जिसे किसी राज्य कार्य के लिए नवाब ने कलकत्ता भेजा था। मीर कासिम, जो मीर जाफर का दामाद था, कम्पनी का सब ऋण देने के लिए सहमत हो गया तथा उसने कम्पनी को बर्दवान, मिदनापुर तथा चटगाँव के जिले देना स्वीकार कर लिया। कम्पनी ने भी इसके बदले में उसे बंगाल का नवाब बनाना स्वीकार कर लिया। कैलाड तथा वेन्सीटार्ट इस सन्धि को पूरा करने के उद्देश्य से मुर्शिदाबाद चले गए, परन्तु मीर जाफर ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया। तब कैलाड को महलों पर अधिकार की आज्ञा दे दी गई; अत: नवाब ने लाचार होकर अपने दामाद के लिए गद्दी त्याग दी। वैसे भी वह कम्पनी और उसके अधिकारियों की निरन्तर होने वाली माँगों से तंग हो चुका था और बंगाल को नवाबी उसे एक बोझ-सा लगने लगी थी। वह एक पेंशनर के रूप में कलकत्ता में रहने लगा तथा मीर कासिम बिना किसी रक्तपात के बंगाल का नवाब बन गया। इसे बंगाल की दूसरी क्रान्ति कहा जाता है। परन्तु मीर कासिम की चिरकाल तक अंग्रेजों से दाल न गल सकी तथा दोनों में युद्ध का होना अनिवार्य हो गया।
युद्ध के कारण
बक्सर के युद्ध के कारण युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
1. मीर कासिम का दृढ़ चरित्र-मीर कासिम अत्यधिक योग्य तथा उच्च चरित्र का व्यक्ति था। वह परनियाह तथा रंगपुर का सूबेदार रह चुका था तथा इस प्रकार उसे राज्य प्रबन्ध का पर्याप्त अनुभव हो गया था। ज्यों ही वह गद्दी पर बैठा उसे समृद्ध राजकोष तथा सबल सैनिक शक्ति की आवश्यकता का अनुभव हुआ। वह वास्तव में बंगाल के 1756 ई० के पश्चात् हुए सब नवाबों में अधिक योग्य था। उसने जमींदारों को परास्त कर दिया तथा अपने प्रान्त के उन सब अधिकारियों को धन लौटाने के लिए विवश कर दिया जिन्होंने सरकारी धन का गबन किया था। उसने अपनी सेनाओं को वर्तमान ढंग से प्रशिक्षित करवाया तथा तोपें बनाने के कारखाने मुंगेर नगर में स्थापित किए जहाँ कि उसने अब मुर्शिदाबाद की बजाय अपनी राजधानी स्थापित कर ली थी। यद्यपि एक उत्तम शासक के लिए ये सब कार्य प्रशंसा का कारण थे तथापि कम्पनी ने इन गतिविधियों को कतई पसन्द न किया क्योंकि इनसे उसके बंगाल प्रान्त पर स्थापित हुए नियन्त्रण पर आघात अनिवार्य था।
2. रामनारायण की हत्या-क्लाइव रामनारायण की सहायता करता रहा था जो कि बिहार का डिप्टी गवर्नर था। परन्तु बेन्सीटार्ट उसके विरुद्ध था। इसके विपरीत वह नवाब की नीति का समर्थक था। अत: उसने रामनारायण को मीर कासिम को सौंप दिया जिसने उसका समस्त धन छीनकर उसका वध करवा दिया। इस वध के साथ ही मीर कासिम की समस्त आन्तरिक कठिनाइयाँ समाप्त हो गईं तथा उसे ऐसा अनुभव होने लगा कि अब वह अंग्रेजों को उनकी आपत्तिजनक तथा अत्याचारपूर्ण कार्यवाहियों के लिए दण्डित करने में पर्याप्त सशक्त है।
3. दस्तकों का दुरुपयोग-यह पहले ही बताया जा चुका है कि अंग्रेजों को 1716-17 ई० के शाही फरमान के फलस्वरूप स्वतन्त्र व्यापार का अधिकार प्राप्त था। परन्तु कम्पनी के कर्मचारी सदैव ही इस अधिकार का दुरुपयोग अपने निजी लाभ के लिए करते थे। इसके फलस्वरूप सदैव ही नवाब की आय, भारतीय व्यापारियों तथा उद्योगपतियों को हानि होती रही थी।
इसके फलस्वरूप मीर कासिम का भड़कना स्वाभाविक तथा निश्चित था क्योंकि वह न्यायोचित विधि से राज्य करना चाहता था। इस कठिनाई को मित्रतापूर्ण रीति से दूर करने के लिए नवाब द्वारा किए गए सब प्रयत्नो का प्रत्युत्तर कम्पनी ने विरोधजनक व्यवहार से दिया।
4. नवाब मीर कासिम को स्वतन्त्रता का भय-यह एक ठोस तथ्य है कि नवाब ने कम्पनी का समस्त ऋण दे दिया था तथा अपनी सब आन्तरिक कठिनाइयों को दूर कर लिया था। उसका यह विचार था कि कम्पनी ने उसको बंगाल का नवाब बनाकर उस पर जो अहसान किया है उसको उसने कम्पनी और अधिकारियों को खूब सारा धन देकर उतार दिया है। उसने अब अंग्रेजों की विरोधजनक गतिविधियों पर गम्भीरता से आपत्ति करना आरम्भ कर दिया। उसने स्वतन्त्र शासक होने का दावा किया। परन्तु कलकत्ता के अंग्रेज अधिकारियों की कार्यवाहियाँ उसकी इस स्थिति के सर्वथा प्रतिकूल थीं; अत: दोनों में संघर्ष अनिवार्य हो गया।
5. करों को हटाना–मीर कासिम ने कम्पनी के कर्मचारियों की गतिविधियों पर आपत्ति की। वेन्सीटार्ट ने 1762 में मुंगेर में मीर कासिम से भेंट की तथा उसके साथ एक सन्धि की। परन्तु कलकत्ता की कौन्सिल ने इस सन्धि को अस्वीकार कर दिया। इस पर नवाब ने सभी करों. को निरस्त करके सभी व्यापारियों को, चाहे वह यूरोपियन थे या भारतीय, एक ही स्तर पर ला खड़ा किया।
अंग्रेजों ने अनुचित रूप से अपने लिए अलग व्यवहार की माँग की, जिसे मीर कासिम ने अस्वीकार कर दिया। यद्यपि वेन्सीटार्ट तथा हेस्टिंग्ज की सहानुभूति नवाब के साथ थी, तथापि शेष सब सदस्यों ने पहले की भाँति पुन: कर लगाने की माँग की। अत: युद्ध अनिवार्य हो गया।
युद्ध की घटनाएँ
बक्सर के युद्ध की प्रमुख घटनाओं को निम्नांकित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
1.पटना की घटना ( 1763 ई०)-मि० एलिस, जो पटना के अंग्रेजी कारखाने का अध्यक्ष था, भड़क उठा। उसने अपने विशेषाधिकारों को प्रदर्शित करने के लिए पटना नगर पर अधिकार करने का प्रयत्न किया, परन्तु नवाब समय पर जा पहुँचा तथा उसने अपने विरोधियों को नष्ट कर दिया।
2. बक्सर का युद्ध (अक्टूबर 1764 ई०)-मेजर एडम्ज ने अब नवाब के विरुद्ध 5,100 सैनिकों के साथ प्रस्थान किया जबकि नवाब की सेना 15,000 थी। दुर्भाग्यवश उसे कटवाह, मुर्शिदाबाद, गिरिया, सूती तथा उदयनाला और मुंगेर के स्थानों पर पराजय का मुख देखना पड़ा। तब नवाब पटना को भाग गया तथा उसने वहाँ के अंग्रेज बन्दियों तथा उन भारतीय अधिकारियों का वध करवा दिया जिन पर अंग्रेजों से मिले होने का सन्देह था। फिर वह अवध भाग गया। परन्तु अंग्रेजों ने उसे वहाँ भी चैन से नहीं रहने दिया। इसी बीच उन्होंने बंगाल की गद्दी पर फिर से मीर जाफर को बैठा दिया। मीर कासिम ने अवध के नवाब शुजा-उद्-दौला तथा सम्राट शाहआलम से समझौता कर लिया। परन्तु बंगाल तथा अवध की संयुक्त सेनाओं को मेजर मुनरो ने बक्सर के स्थान पर अक्टूबर 1764 ई० में पराजित कर दिया। मीर कासिम भाग गया तथा दिल्ली के निकट 1777 ई० में अति निर्धनता की अवस्था में उसकी मृत्यु हो गई। से जा मिला तथापि शुजा-उद्-दौला ने संघर्ष जारी रखा जब यद्यपि शाहआलम अंग्रेजों तक कि 1765 ई० में निर्णायक रूप से उसे पराजित न कर दिया गया।
युद्ध के परिणाम
बक्सर के युद्ध के प्रमुख परिणामों को निम्नांकित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) अंग्रेजों ने पुराने पेंशनर नवाब मीर जाफर को 1764 ई० में बंगाल की गद्दी पर पुन: आसीन कर दिया। उसे एक सन्धि के लिए विवश कर दिया गया जिसके अनुसार मीर कासिम द्वारा हटाए गए कर पुनः लगा दिए गए तथा मीर कासिम से हुए युद्ध के कारण हुई कम्पनी की हानि की पूर्ति कर दी गई।
(2) नन्द कुमार को उसका प्रधानमन्त्री नियुक्त कर दिया गया, परन्तु शीघ्र ही उस पर विरोधी गतिविधियों तथा अवध और सम्राट शाहआलम से गठजोड़ करने का सन्देह किया जाने लगा। (3) मीर जाफर की 1765 ई० में मृत्यु हो गई तथा उसके दूसरे पुत्र नजम-उद्-दौला को बंगाल की गद्दी पर बिठा दिया गया। उसे केवल अपनी शान के लिए तथा आन्तरिक शान्ति बनाए रखने के लिए सेनाएँ रखने की अनुमति दे दी गई।
(4) नए नवाब नजम-उद्-दौला से कम्पनी ने फरवरी 1765 ई० में एक सन्धि की जिसके अनुसार नवाब को अपनी सेना का विघटन करना था एवं बंगाल का शासन कम्पनी द्वारा नामजद सूबेदार के माध्यम से होना था जिसे कम्पनी की अनुमति के बिना हटाया नहीं जा सकता था।
(5) मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय से कम्पनी ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा में राजस्व वसूल करने का अधिकार (दीवानी) प्राप्त कर लिया। इस प्रकार भारत के सर्वाधिक समृद्ध प्रान्त का राजस्व कम्पनी के हाथों में आ गया।
(6) कम्पनी ने अवध के नवाब शुजा-उद्-दौला से 50 लाख रुपये की राशि युद्ध के हर्जाने के रूप में वसूल की। इसके अतिरिक्त उससे इलाहाबाद की सन्धि की, नवाब ने स्वयं को कम्पनी के पूर्णतः आश्रित कर दिया। यह उसकी एक भूल थी जो बाद में अवध के लिए बहुत महँगी पड़ी। जिसके द्वारा
युद्ध का महत्त्व
मीर कासिम के साथ हुआ यह संक्षिप्त-सा युद्ध अपने परिणामों में बहुत ही महत्त्वपूर्ण तथा निर्णायक था। इससे न केवल बंगाल में अंग्रेजों का प्रभाव बढ़ा, अपितु वे पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) पर भी अधिकार करने में सफल हो गए, अंग्रेजों की शक्ति में वृद्धि होने लगी तथा 1756 ई० में अवध भी अंग्रेजों के प्रभाव में आ गया। बंगाल के नवाब को तो नाममात्र की ही स्वतन्त्रता प्राप्त रही। प्लासी के युद्ध में विजय ने कम्पनी को बंगाल के शासन का एक दावेदार बनाया था, परन्तु बक्सर के युद्ध ने उसकी इस दावेदारी की पुष्टि कर दी। इस प्रकार प्लासी के अधूरे कार्य को बक्सर के युद्ध ने पूरा किया।