What is Inflation ?

What is Inflation ? मुद्रा स्फीति (Inflation ) जब कोई देश अपने देश की मुद्रा के बदले दूसरे देश की मुद्रा को पहले से कम मूल्य में लेने के लिए तैयार होता है तो उसे मुद्रा का अवमूल्यन कहते हैं। मुद्रा स्फीति की कोई पूर्ण तथा सामान्य परिभाषा देना सरल नहीं है क्योंकि भिन्न-भिन्न अर्थशास्त्रियों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से ‘मुद्रा स्फीति’ की व्याख्या की है। अतः मुद्रा स्फीति की स्थिति का सही परिचय पाने के लिए यहाँ कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाओं का अध्ययन करना उचित होगा।  प्रो० कैमरर के शब्दों में – “मुद्रा स्फीति वह अवस्था है जिसमें मुद्रा का मूल्य गिरता है अर्थात् कीमतें बढ़ती हैं। “ यद्यपि प्रो० कैमरर का विचार अत्यन्त सरल, व्यावहारिक और स्पष्ट है तथापि इस परिभाषा को पूर्णतः सन्तोषजनक नहीं कहा जा सकता क्योंकि कीमत स्तर पर होने वाली प्रत्येक वृद्धि, मुद्रास्फीति नहीं होती है। “मुद्रा प्रसार वह अवस्था है जब वास्तविक व्यापार की मात्रा से चलन तथा निक्षेप की मात्रा अत्यधिक होती है।” इस परिभाषा के विश्लेषण से स्पष्ट है कि मुद्रा स्फीति उस समय उत्पन्न होती है जब विनिमय-साध्य वस्तुओं तथा सेवाओं की तुलना में मुद्रा का परिमाण बढ़ जाता है। प्रो० हा के शब्दों में — “वह स्थिति, जिसमें मुद्रा का अत्यधिक निर्गमन हो, मुद्रा – स्फीति कहलाती है।

Discuss three main weaknesses of industrial development in India.

industrial development in India Discuss the three main weaknesses of industrial development in India भारत में औद्योगिक विकास की तीन मुख्य समस्याओं की व्याख्या कीजिए। उत्तर -1.शक्ति के साधनों का अभाव देश के समक्ष शक्ति के साधनों की आपूर्ति की समस्या है तथा फैक्ट्री को निरन्तर चलाने के लिए लगातार शक्ति के साधनों का होना अति आवश्यक है। शक्ति के साधनों में एल०पी०जी०, पेट्रोल, डीजल, बिजली का होना अति आवश्यक है। इस समस्या का समाधान सौर ऊर्जा और नदी-घाटी योजनाओं या अणु शक्ति द्वारा उत्पादित बिजली की आपूर्ति करके किया जाना चाहिए। 2. आधारभूत ढाँचे का अभाव – औद्योगिक ढाँचे के विकास के लिए आधारभूत ढाँचे का मजबूत होना अनिवार्य हैं, किन्तु देश में परिवहन, संचार, बैंकिंग आदि क्षेत्रों (जो कि आधारभूत ढाँचे के ही अंग हैं) का आज भी भली-भाँति विकास नहीं हो पाया है। का विकास सरकार को निजी क्षेत्र की मदद एवं विदेशी सहायता लेकर पिछड़े क्षेत्रों करना चाहिए। खासकर इन क्षेत्रों में आधारभूत ढाँचे को खड़ा किया जाना चाहिए। जो निजी आगे आते हैं उन्हें प्रोत्साहन तथा करों में छूट मिलनी चाहिए। 3. गुण नियन्त्रण की समस्या- – भारत में उत्पादों की गुणवत्ता विदेशी माल की तुलना में निम्न होती है, जिसकी वजह से विदेशों से अधिक मात्रा में निर्यात आदेश प्राप्त नहीं हो पाते हैं। – इस सन्दर्भ में गुणवत्ता सम्बन्धी प्रमाण-पत्र जारी करते समय कठोर जाँच की जानी चाहिए। कारखाना स्तर पर पूरी गुणवत्ता का ख्याल किया जाना चाहिए। अच्छे कच्चे माल का प्रयोग किया जाना चाहिए। Discuss three main weaknesses of industrial development in India.

Write short note on Trends in World Trade.

Write short note on Trends in World Trade. प्रश्न 6 – विश्व व्यापार की प्रवृत्तियों पर लघु टिप्पणी लिखिए।  उत्तर—विश्व व्यापार जिन दो प्रमुख तत्त्वों से प्रभावित होता है, उनमें से एक तत्त्व है विकास की रणनीति–आयात प्रतिस्थापन या निर्यात प्रोत्साहन । विश्व व्यापार की वृद्धि के लिए आयात-प्रतिस्थापन की रणनीति हानिकारक होती हैं, जबकि निर्यात प्रोत्साहन की रणनीति सहायक होती है। विश्व व्यापार का दूसरा तत्त्व यह है कि विश्व उत्पाद की वृद्धि दर में तेजी आने का प्रभाव, विश्व व्यापार पर सकारात्मक होता है। 2004 में विश्व उत्पत्ति में 5.1% की वृद्धि हुई। इसी वर्ष विश्व व्यापार में 10.3% की प्रभावशाली वृद्धि हुई। 2008 की विश्वव्यापी मन्दी का कुछ प्रभाव विश्व व्यापार पर पड़ा। 2009 में विश्व उत्पत्ति में 2.2% का ह्रास होने के कारण विश्व व्यापार में 14.4% का हास हुआ। विश्व निर्यातों तथा विक्रासशील देशों के निर्यातों में सादृश्यता देखी जा सकती है। जब विश्व निर्यात बढ़ता है तब विकासशील देशों का निर्यात भी बढ़ता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2013 में 30%, 2014 में 3.6% तथा 2015 में 3. 9% की वृद्धि दर्ज की गई। इन्हीं अवधियों में विश्व व्यापार में क्रमश: 30%, 4. 3% तथा 5.3% की वृद्धि हुई। विश्व निर्यातों तथा विकासशील देशों के निर्यातों में सादृश्यता देखी जा सकती है। विश्व निर्यात बढ़ता है, विकासशील देशों का निर्यात भी बढ़ता है । वर्ष 2012 में विश्व व्यापार के परिमाण की वृद्धि दर 2.8% थी। इस वर्ष यह वृद्धि दर उन्नत अर्थ व्यवस्थाओं में 1.4% तथा उदीयमान और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में 5.0% रही। इस दौरान चीन के व्यापार परिमाण की वृद्धि दर 7.7% तथा भारत के व्यापार परिमाण की वृद्धि दर 7.7% रही। इसके बाद के वर्षों में विश्व व्यापार परिमाण में क्रमशः वृद्धि होती गई। वर्ष 2014 में विश्व के व्यापार परिमाण की वृद्धि दर 5.3% हो गई। इस वर्ष यह वृद्धि दर उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में 2.3% रही, जबकि उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थों में यह वृद्धि दर 5. 3% रही। इस वर्ष के दौरान भारत के विदेशी व्यापार के परिमाण की वृद्धि दर 6.4% रही।

Causes of Slow Growth in National Income in India

Causes of Slow Growth in National Income in India राष्ट्रीय आय में धीमी गति से वृद्धि के कारण भारत में योजनाकाल में राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में लगातार वृद्धि होती दिखाई दे रही है,किन्तु स्थिर कीमतों के आधार पर देखें तो यह वृद्धि सन्तोषजनक नहीं कही जा सकती। विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत की राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर बहुत कम है योजनाकाल में भारत की राष्ट्रीय आय में धीमी गति से वृद्धि के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं- 1. कृषि का प्राकृतिक घटकों पर आश्रित होना- भारत की राष्ट्रीय आय की वृद्धि में कृषि क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण योगदान है, किन्तु भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर करती है। मानसून अनुकूलन रहने पर कृषि उत्पादन बढ़ने से राष्ट्रीय आय बढ़ जाती है और मानसून के प्रतिकूल रहने पर कृषि उत्पादन घटने से राष्ट्रीय आय घट जाती है। यद्यपि कृषि की मानसून पर निर्भरता को कम करने के लिए योजनाकाल में सिंचाई के साधनों का विकास किया गया है, किन्तु ऐसा कुल कृषि क्षेत्र के केवल 1/3 भाग पर ही हो सका है। शेष क्षेत्र वर्षा पर ही आश्रित है। इससे राष्ट्रीय आय में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। W 2. जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि – भारत में प्रति व्यक्ति आय की धीमी वृद्धि का एक प्रमुख कारण जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि भी रहा है। भारत में जिस दर से जनसंख्या बढ़ रही है, वह सारे बढ़े हुए उत्पादन के लाभों को हजम कर जाती है और उत्पादन व राष्ट्रीय आय बढ़ने के बावजूद प्रति व्यक्ति आय में पर्याप्त वृद्धि नहीं हो पाती है। 3. अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रसार – भारतीय अर्थव्यवस्था मुद्रा प्रसार एवं आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में भारी वृद्धि से पीड़ित रही है। राष्ट्रीय आय के अनुमानों को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि चालू मूल्यों पर राष्ट्रीय आय में भारी वृद्धि हो रही है, किन्तु स्थिर कीमतों पर यह वृद्धि बहुत कम है जो कि स्पष्ट रूप से मुद्रा स्फीति की स्थिति की सूचक है। मूल्य वृद्धि के कारण राष्ट्रीय आय में वास्तविक वृद्धि बहुत कम है। मुद्रा स्फीति माँग और पूर्ति पक्ष दोनों को विपरीत रूप से प्रभावित करती है। 4. औद्योगिक क्षेत्र में विकास की मन्द गति – यद्यपि योजनाकाल में देश में औद्योगीकरण को गति मिली है, किन्तु औद्योगिक क्षेत्र में विकास की गति मन्द है। कुछ उद्योग तो केवल कृषि से सम्बन्धित कच्चे माल की पूर्ति पर ही आश्रित हैं; जैसे— सूती वस्त्र, चीनी, जूट, वनस्पति तेल उद्योग आदि। इन उद्योगों का विकास कच्चे माल की पूर्ति पर निर्भर है। कच्चे माल की कमी के अतिरिक्त शक्ति के साधनों का अभाव, यातायात सुविधाओं का अभाव, वित्त की कमी, प्रबन्ध श्रम सम्बन्ध आदि भी औद्योगिक विकास में बाधक रहे हैं। औद्योगिक विकास की मन्द गति के इन कारणों द्वारा भी राष्ट्रीय आय में धीमी गति से वृद्धि हो रही है। 5. कृषि उत्पादकता में वृद्धि की गति में कमी- भारत में कृषि क्षेत्र में उत्पादन अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। यद्यपि अब आधुनिक वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग कर कृषि क्षेत्र मे उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं, तथापि कृषि उत्पादकता में वृद्धि की गति अभी भी अत्यन्त धीमी होने के कारण राष्ट्रीय आय में अपेक्षित गति से वृद्धि नहीं हो पा रही है।

What do you mean by Regional imbalance

What do you mean by Regional imbalance क्षेत्रीय असमानताओं से आप क्या समझते हैं? भारत के कुछ बीत विपरीत कुछ राज्य विकास में अत्यधिक पिछड़े हुए हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पाँच दशक क्षेत्र विशेष के राज्यों का त्वरित गति से विकास हुआ है। इसके जाने के बाद भी क्षेत्रीय असन्तुलन बना हुआ है। यदि किसी भी देश में तुलनात्मक रूप से • अधिक विकसित राज्यों/प्रदेशों एवं आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़े हुए राज्यों/प्रदेशों की की जाए तो इस स्थिति को क्षेत्रीय असन्तुलन की संज्ञा दी जाती है। जब सरकार कुछ विकास पर अधिक ध्यान देती है एवं अन्य क्षेत्रों की उपेक्षा करती है तो इससे भी क्षेत्रीय ‘असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।  What is meant by Liberalization? उदारीकरण से आप क्या समझते हैं? उत्तर – आर्थिक उदारीकरण से आशय उन प्रयासों से है जिनके द्वारा किसी राष्ट्र की आर्थिक नीतियों, कानूनों, नियमों, प्रशासकीय नियन्त्रणों तथा प्रक्रियाओं को देश के तीव्र आर्थिक विकास की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जाता है जिससे कि राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को अन्तर्राष्ट्रीय (Trans-national) दिशा प्रदान करके उसे विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा के योग्य बनाया जा सके। प्रो० मधु दण्डवते के शब्दों में,“आर्थिक उदारीकरण से तात्पर्य उन प्रयासों से है जिनके द्वारा व्यवस्था को उसकी लोचहीनताओं तथा नौकरशाही के उन स्वेच्छाचारी नियन्त्रण एवं प्रक्रियाओं से मुक्ति प्रदान की जाती है, जो विलम्ब भ्रष्टाचार एवं अकुशलता को जन्म देती हैं तथा उत्पादन को घटाती है।” उदारीकरण से अभिप्राय उद्योग तथा व्यापार को अनावश्यक प्रतिबन्धों से मुक्त करके अधिक प्रतियोगी बनाना है। आर्थिक उदारीकरण का अर्थ है सभी व्यक्तियों को अपनी आवश्यकतानुसार निजी आर्थिक निर्णय लेने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए।

 Explain the relationship between business and environment

 Explain the relationship between business and environment. व्यवसाय और वातावरण के मध्य सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए। द्रुत गति से आगे बढ़ते हुए औद्योगिक युग में सफलता प्राप्ति हेतु व्यवसाय के क्षेत्र में व्यावसायिक पर्यावरण का अध्ययन एक आवश्यकता बन चुका है। इसके व्यवस्थित अध्ययन द्वारा आन्तरिक वातावरण को तो अपने अनुरूप ढाला ही जा सकता है, साथ ही बाह्य वात वरण की चुनौतियों का भी काफी सीमा तक सफल मुकाबला किया जा सकता है निम्नलिखित कारणों से व्यवसाय और वातावरण के मध्य सम्बन्ध अत्यन्त आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण होता है- 1. परिवर्तनशीलता की जानकारी – आज का औद्योगिक युग एक क्रान्तिकारी युग है। वर्तमान सहज रूप में ही अतीत का वरण कर लेता है। नई वस्तु शीघ्र ही पुरानी हो जाती है। नित नए-नए फैशन बदलते रहते हैं। तकनीक में सुधार आता रहता है। नए उत्पादों की उपलब्धता बढ़ जाती है। इन सब के साथ तारतम्यता स्थापित करने हेतु व्यावसायिक पर्यावरण का अध्ययन आवश्यक हो जाता है। इसका अध्ययन परिवर्तनशीलता की सही जानकारी करा कर उद्योग में लाभकारी स्थिति प्रदान करता है। इन सभी परिवर्तनों की जानकारी हासिल करने के लिए पर्यावरण का अध्ययन करना अत्यन्त आवश्यक है। 2. व्यावसायिक उतार-चढ़ाव का ज्ञान – व्यावसायिक परिवेश में अनेक उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। दूसरे, इन उतार-चढ़ावों की गति / दर भी समान नहीं होती है। कुछ संस्थाओं में यह दर काफी अधिक रहती है; जैसे – कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर। अतः इन सभी उच्चावचनों को जानने के लिए व्यावसायिक पर्यावरण का अध्ययन आवश्यक है। 3. व्यावसायिक विविधताओं एवं जटिलताओं का ज्ञान – व्यवसाय जगत में अत्यधिक प्रतियोगिता का वातावरण है। इस प्रतियोगितात्मक स्वरूप में अनेक जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। अनेक जोखिम भरे परिवर्तन व उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं। इन सब को समझने तथा इनका सम्यक् निदान प्राप्त करने के लिए व्यावसायिक पर्यावरण का अध्ययन आवश्यक हो जाता है। इसके अध्ययन के द्वारा इन समस्त जटिलताओं का निराकरण किया जा सकता है। 4. विभिन्न घटकों के आपसी प्रभावों का अध्ययन-व्यवसाय के प्रत्येक वर्ग उच्चावच की दर भिन्न होती है, अतः विभिन्न व्यवसायों के उच्चावचनों में अन्तर का होन स्वाभाविक है। सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में यह दर तीव्रतम है और इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा भी तीव्र है इसके विपरीत चीनी उद्योग, सीमेण्ट उद्योग आदि में यह दर न्यून है। इसके स्वाभाविक तथ अस्वाभाविक परिवर्तनों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए व्यावसायिक पर्यावरण का अध्ययन काफी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है।

MCom I Sem Corporate Final Accounts Company Notes Hindi

MCom I Sem Corporate Final Accounts Company Notes Hindi एमकॉम I सेमेस्टर कॉर्पोरेट फाइनल अकाउंट्स कंपनी स्टडी मटेरियल नोट्स (पार्ट 2): फाइनल अकाउंट्स की तैयारी के कुछ बिंदु कंपनी प्रोविजन टैक्स भारत इंजीनियरिंग लिमिटेड प्रॉफिट लॉस अकाउंट एंडिंग बैलेंस शीट नव भारत कंपनी लिमिटेड चर्चा प्रश्न लंबे उत्तर प्रश्न लघु उत्तर प्रश्न: सीटीईटी पेपर स्तर … Read more

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Points of Current Marketing scenario of global marketing

The current marketing scenario of global marketing is as follows: 1.Liberalisation of Cross-border Movements: From last ten years or so, countries have eased their cross-border barriers which they earlier imposed very strictly. 2.Transfer of Technology: Under international business, both commercial and non commercial technology gets transferred and distributed. 3. Growth in Emerging Markets: Countries like India, China, … Read more

Constituents of Global Marketing Environment

Following are the different Constituents of Global Marketing Environment 1. Physical Environment: The constituents of physical environment are rivers, forests, lakes, clir conditions, natural resources, geographical location and territorial size of a country. The political economic decisions, religion, language, culture, transport, business activities, determination of usage, etc. are influenced by the physical environment. Country’s natural … Read more