बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में वित्तीय लेखांकन की कमियों के कारण ही लागत लेखांकन का जन्म हुआ। वास्तव में लागत लेखांकन बीसवीं शताब्दी की ही देन है। 1929 की विश्वव्यापी मन्दी उद्योगों के अस्तित्व के लिए चुनौती बन गई थी। अतः उद्योगपतियों के लिए यह अनिवार्य हो गया था कि उत्पादन लागत को न्यूनतम करके, गलाकाट प्रतियोगिता के उस युग में, अपने को उद्योगों में जीवित रख सकें। द्वितीय विश्व-यद्ध के पश्चात प्रारम्भ हुए आर्थिक नियोजन के युग में सार्वजनिक क्षेत्र के विकास, मूल्य नियन्त्रण, वैज्ञानीकरण तथा राष्ट्रीयकरण की ओर प्रत्येक देश की सरकार का ध्यान जाने लगा। यह दृष्टिकोण भी लागत लेखांकन पद्धति के तीव्र विकास में सहायक हुआ।
संक्षेप में, लागत लेखांकन का जन्म व विकास निम्नलिखित कारणों से हुआ है|
उपर्युक्त कारणों से यह आवश्यक समझा गया कि सीमित साधनों से न्यूनतम लागत पर अधिकतम एवं श्रेष्ठतम उत्पादन किया जाये और इसके लिए लागत सम्बन्धी लेखे रखे जाये।
भारत में लागत लेखांकन(Cost Accounting in India)
भारत के लागत लेखांकन के उदगम एवं विकास का इतिहास सन् 1944 से प्रारम्भ होता है जब गारण्टी द्वारा सीमित कम्पनी के रूप में इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट एण्ड वक्र्स एकाउण्टेण्ट्स’ की स्थापना की गई। यह कम्पनी परीक्षाएँ लेती थी एवं सफल विद्यार्थियों को प्रमाण-पत्र जारी करती थी। इसका मुख्य लक्ष्य लागत लेखांकन के बारे में प्रशिक्षण प्रदान करना था।
1947 में भारत स्वतन्त्र हुआ। परिणामस्वरूप नयी औद्योगिक नीति तैयार की गयी एवं विभिन्न क्षेत्रों में नयी-नर्य औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित होने लगी। धीरे-धीरे लागत लेखापालों की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी। इसीलिए सः 1959 में भारत में कॉस्ट एण्ड वक्र्स एकाउण्टेण्ट्स अधिनियम (Cost and Works Accountants Act) पारित किया गया एट इस अधिनियम के अन्तर्गत ‘दी इन्स्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट एण्ड वर्क्स एकाउण्टेण्ट्स ऑफ इण्डिया’ (The Institute of Cos and Works Accountants of India) की एक स्वायत्त संस्था के रूप में स्थापना की गई। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य भारयोग्ये लागत लेखापालों को उत्पन्न करना है। इस संस्था का प्रधान कार्यालय कलकत्ता में स्थित है। वर्ष 2013 में इ संस्थान का नाम बदलकर इन्स्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट एकाउण्टेण्ट्स ऑफ इण्डिया (ICAI) कर दिया गया है एवं इस सदस्य अब कॉस्ट मैनेजमेन्ट एकाउण्टेण्ट्स (CMA) कहलाते हैं।
भारत सरकार ने 1965 में लागत लेखांकन के महत्व को ध्यान में रखते हुए कम्पनी अधिनियम में संशोधन करते है किया था कि केन्द्रीय सरकार को यह अधिकार होगा कि वह किसी भी उद्योग के लिए लागत लेखांकन के सम्ब । सकती है एवं उनका अंकेक्षण अनिवार्य कर सकती है।
कम्पनी अधिनियम 2013 के अन्तर्गत लागत सम्बन्धी लेखे (Cost Accounting Records Under the Companies Act 2013)
कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 148 के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार ऐसी कम्पनी या कम्पनियों के सम्बन्ध में (processing), निर्माण (Manufacturing) या खनन (Mining) सम्बन्धी कार्यों में लगी
है, आदेश जारी कर सकती है कि ऐसी कम्पनी कच्चे माल (Raw Material) या श्रम (Labour) या र के सम्बन्ध में अपनी लेखा-पुस्तकों में निर्धारित विवरण सम्मिलित करेगी।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि वैधानिक दृष्टिकोण से लागत सम्बन्धी लेखे रखना कि आवश्यक नहीं है। यदि सरकार चाहती है कि कुछ निर्दिष्ट कम्पनियाँ लागत सम्बन्धी लेखे भी रखधानिक दृष्टिकोण से लागत सम्बन्धी लेखे रखना किसी कम्पनी के लिए स्वत: हीदष्ट कम्पनियाँ लागत सम्बन्धी लेखे भी रखें तो वह ऐसा आदेश निगमित कर सकता है। यह आदेश धारा 148 के अन्तर्गत निर्गमित किया जाएगा। इस प्रकार का आदेश निगमित है। आदेश में निर्दिष्ट कम्पनियों के लिए यह आवश्यक हो जाएगा कि वे लागत सम्बन्धी लेख भी रखेँ ।
इस अधिकार के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार ने बहुत सी कम्पनियों (जैसे—सीमेन्ट, साइकिल, टायर ५) ९ तागत लख रखने सम्बन्धी आदेश निर्गमित कर रखे हैं। ऐसे आदेश सर्वप्रथम सीमेन्ट कम्पनिया क लए निर्गमित किये गये थे।
यदि केन्द्रीय सरकार ने उक्त धारा के अन्तर्गत किसी कम्पनी को लागत लेखे रखने के लिए आदेश जारी कर दिये हैं। तो इसका अर्थ है कि सरकार का उन कम्पनियों के सम्बन्ध में परिव्यय (लागत) अंकेक्षण कराने का विचार है। लेकिन परिव्यय (लागत) अकक्षण कराने के लिए केन्द्रीय सरकार को भारतीय कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 148 के अन्तर्गत इन कम्पनियों के लिए पृथक् आदेश जारी करना पड़ेगा, तभी उन कम्पनियों का परिव्यय (लागत) अंकेक्षण होगा।
लागत लेखांकन का अर्थ एवं परिभाषा(Meaning and Definition of Cost Accounting)
लागत लेखांकन, लेखांकन की एक विशिष्ट शाखा है जिसके अन्तर्गत किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन से सम्बन्धित विभिन्न व्ययों का लेखा इस प्रकार किया जाता है ताकि उत्पादित की जाने वाली वस्तु या सेवा की कुल तथा प्रति इकाई लागत ज्ञात हो सके एवं लागत विश्लेषण तथा लागत नियन्त्रण हेतु आवश्यक सूचनाएँ एवं समंक व्यवस्थित रूप से प्राप्त हो सके। दूसरे शब्दों में, लागत लेखांकन, लेखांकन की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें लागत ज्ञात करने एवं लागत पर नियन्त्रण करने के उद्देश्य से व्ययों का लेखा किया जाता है। वस्तुतः लागत लेखांकन द्वारा प्रदत्त सूचनाओं से लागत का निर्धारण, विश्लेषण एवं नियन्त्रण सम्भव होता है।
लागत लेखांकन की महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
लागत लेखांकन व्ययों का एक ऐसा विश्लेषण और वर्गीकरण है, जिससे उत्पादन की किसी विशेष इकाई की कुल लागत शुद्धतापूर्वक ज्ञात हो सके और साथ ही यह भी ज्ञात हो सके कि कुल लागत किस प्रकार प्राप्त हुई है।
–वाल्टर डब्ल्यू० बिग
किसी वस्तु के निर्माण अथवा किसी उपकार्य में प्रयुक्त सामग्री तथा श्रम का लेखा रखने की प्रणाली को लागत लेखांकन कहते हैं।”2
–आर० एन० कार्टर
सी० आई० एम० ए० के अनुसार लागत लेखांकन में निम्नलिखित तीन विषयों को शामिल किया जाता है
(i) परिव्ययांकन/लागत निर्धारण (Costing)–“परिव्ययांकन लागत ज्ञात करने की तकनीक एवं प्रक्रिया है।” ‘परिव्ययांकन के लिए लागत निर्धारण’ शब्द का प्रयोग भी किया जा सकता है। ।
(ii) लागत लेखांकन (Cost Accounting)–“लागत लेखांकन का आशय व्ययों के किये जाने से लेकर उन्हें लागत केन्द्रों एवं लागत इकाइयों से सम्बन्धित करने तक लागत का लेखा करने की प्रक्रिया से है।” |
(iii) लागत लेखाशास्त्र (Cost Accountancy)_“लागत लेखाशास्त्र का अर्थ लागत नियन्त्रण के विज्ञान, कला एवं व्यवहार के लिए तथा लाभार्जन योग्यता के निर्धारण के लिए, लागत निर्धारण तथा लागत लेखांकन के सिद्धान्त, विधियों एवं प्रविधियों को लागू करने से लगाया जाता है। इसमें प्रबन्धकों के निर्णय लेने के उद्देश्य हेतु उक्त क्रिया से प्राप्त सूचना का प्रस्तुतीकरण भी सम्मिलित है।”
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि लागत निर्धारण (Costing), लागत लेखांकन (Cost Accounts तथा लागत लेखाशास्त्र (Cost Accountancy) तीनों शब्द एक-दूसरे से अलग हैं परन्तु व्यवहार में इन सभी शब्दों का प्रः के पर्यायवाची के रूप में होता है।
निष्कर्ष – उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि लागत लेखांकन, लेखांकन की एक विशिष्ट शाखा हैं जिस निमाणी अथवा सेवा प्रदान करने वाली संस्थाओं में उत्पादित वस्तु या प्रदान की जाने वाली सेवा की कल त इकाई लागत ज्ञात करने के लिए किया जाता है। लागत लेखाकर्म लागत के निर्धारण,लागत विश्लेषण एवं लागत नियन्त्रण तीनों से सम्बन्धित होती हैं। लागत लेखांकन की उचित परिभाषा निम्न प्रकार दी जा सकती है –
BCom 2nd Year Cost Accounting Fundamental Aspects Study Material Notes in Hindi
लागत लेखांकन का अभिप्राय उत्पादों अथवा सेवाओं की लागत निश्चत करने के लिए नियन्त्रण व प्रबन्थ के मार्गदर्शन हेतु समुचित रूप से संग्रहीत आँकड़ो को प्रस्तुत करने के लिए व्ययों के वर्गीकरण , अभिलेखन एवं व्यवस्थित विभाजन से है ‘’
लागत निर्धारण, लागत लेखांकन एवं लागत लेखाशास्त्र (Costing Cost Accounting and Cost Accountancy)
सामान्य बोलचाल में लागत निर्धारण, लागत लेखांकन एवं लागत लेखाशास्त्र को एक-दूसरे के पर्यायवाची के प्रयोग किया जाता है, परन्तु तकनीको आधार जाता है, परन्तु तकनीकी आधार पर तीनों में अन्तर है। तीनों शब्दों की संक्षिप्त विवेचना निम्नलिखित है—-
लागत निर्धारण ( परिव्ययांकन) (Costing)—प्रत्येक व्यवसायी अपने द्वारा निर्मित वस्तु अथवा प्रदान की जाने 7 ज्ञात करना चाहता है। इसके लिए वह जिस प्रविधि एवं प्रक्रिया को अपनाता है, उसको लागत निधारण/परिव्ययांकन कहते हैं। बडे व्यवसायी लागत ज्ञात करने के लिए लिखित व्यवसायी मानसिक गणना द्वारा ही यह कार्य सम्पन्न कर लेते हैं। इस प्रकार लागत लिखित एवं मौखिक दोनों प्रक्रियाओ द्रारा ज्ञात की जा सकती है इसलिए डावसन ने कहा है कि ‘’’ परिव्यकांकन मानसिक अंकगणित (Mental Arithmetic) की ज्ञात की जा सकती है। माल प्रक्रिया (Process) द्वारा भी सम्भव है।’
लागत निर्धारण (परिव्ययांकन) का अर्थ व्ययों का वर्गीकरण, लेखा-जोखा एवं उपयक्त बंटवारा करना हैपाशा का उत्पादन लागत ज्ञात हो सके। समुचित एवं व्यवस्थित आँकड़े इस प्रकार प्रस्तुत किये के प्रशासकों का मार्ग-दर्शन हो एवं उनके प्रबन्ध-कार्य में संविधा हो। लागत निर्धारण प्रत्येक कार्य, ठेका, विधि, सेवा या इकाई की लागत निर्धारित करता है तथा उत्पादन, बिक्री एवं वितरण की लागते बताता है
हैराल्ड जे0 ह्रैल्डन
सरल शब्दों में, लागत निर्धारण का अर्थ वस्तुओं एवं सेवाओं की लागत ज्ञात करना है। इसमें लागत ज्ञात करने की तकनीकें एवं प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं ।
लागत लेखांकन (Cost Accounting)–लागत लेखांकन लागतों को पुस्तकों में लेखाबद्ध करने की एक औपचारिक पाच है जिससे वस्तुओं और सेवाओं की लागत ज्ञात व नियन्त्रित की जा सके। यह प्रक्रिया उस बिन्दु से प्रारम्भ किया जाता है तथा वहाँ आकर समाप्त होती है जहाँ वह अन्तिम रूप से किसी लागत केन्द्र या लागत इकाई से सम्बन्धित कर दी जाती है। संक्षेप में, वैज्ञानिक आधार पर लागत ज्ञात करने के लिए विधिवत् स्थापित की गई लिखित प्रक्रिया की लागत लेखांकन कहते हैं। परिव्ययांकन (लागत निर्धारण) का स्वरूप लिखित अथवा मौखिक हो सकता है, परन्तु लागत लेखांकन से आशय केवल लिखित, वैज्ञानिक और विधिवत् प्रक्रिया से ही है।
लागत लेखाशास्त्र (Cost Accountancy)–लागत लेखाशास्त्र एक व्यापक शब्द है जिसमें लागतों को निर्धारित करने, उनका लेखा करने एवं लागतों पर नियन्त्रण करने की समस्त प्रक्रियाएँ, विधियाँ तथा तकनीकें सम्मिलित हैं।
लागत लेखांकन की विशेषताएँ (Characteristics of Cost Accounting)
लागत लेखांकन के अर्थ एवं परिभाषाओं के अवलोकन के आधार पर लागत लेखांकन की निम्नांकित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं
(1) लागत लेखांकन लेखांकन की ही एक विशिष्ट शाखा है।
(2) लागत लेखांकन कला एवं विज्ञान दोनों ही है।
(3) इसमें व्ययों का वर्गीकरण, अभिलेखन तथा व्यवस्थित विभाजन होता है।
(4) इसमें उत्पादित वस्तु या सेवा की कुल लागत तथा प्रति इकाई लागत ज्ञात की जाती है।
(5) इसके द्वारा चालु कार्य (Work-in-progress) की लागत भी ज्ञात की जा सकती है।
(6) इसके द्वारा प्रदत्त सूचनाओं का अनेक प्रबन्धकीय निर्णयों हेतु प्रयोग किया जा सकता है।
(7) लागत लेखे, लागत विश्लेषण एवं लागतों पर समुचित नियन्त्रण रखने में भी सहयोग करते हैं।
(8) लागत लेखांकन को एक पृथक् पेशे के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।