Saturday, December 21, 2024
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Bcom 2nd year cost accounting fundamental aspects notes

BCom 2nd Year Cost Accounting Fundamental Aspects Study Material Notes in Hindi

लागत लेखांकन के लाभ या महत्व(Advantages or Importance of Cost Accounting)

 लागत लेखांकन प्रणाली अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में पूरी तरह सफल रही है, इसीलिए इसका महत्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इससे न केवल उत्पादकों/निर्माणी संस्थाओं को ही लाभ मिलता है वरन् अन्य वर्गों को भी इससे लाभ होता है। संक्षेप में, लागत लेखों के लाभों (महत्व) को निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत समझा जा सकता है ।

 I. उत्पादकों एवं प्रबन्धकों को लाभ (Advantages to Producers and Managers)—किसी भी संस्था में लागत लेखे रखे जाने से उत्पादकों एवं प्रबन्धकों को मुख्यत: निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते है

(i) सामग्री, अम व संयन्त्र का सर्वोत्तम उपयोग–लागत लेखांकन के अन्तर्गत सामग्री, श्रम तथा संयन्त्र के विस्तृत लेखे तैयार किये जाते हैं परिणामतः सामग्री व श्रम के दुरुपयोग व चोरी को सरलतापूर्वक रोका जा सकता है तथा संयन्त्र का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सकता है।

(ii) लाभप्रद एवं अलाभप्रद कार्यों की जानकारी-लागत लेखांकन में प्रत्येक कार्य, उपकार्य, प्रक्रिया, विभाग, उत्पाद अथवा सेवा का पृथक-पृथक लागत विश्लेषण किया जाता है जिससे प्रत्येक का अलग-अलग लाभ-हानि ज्ञात हो जाता है। इसका यह लाभ होता है कि अलाभप्रद क्रियाओं को बन्द करके लाभप्रद क्रियाओं पर ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है या उनमें सुधार करने के लिए प्रयास किया जा सकता है।

(iii) उत्पादन लागत का विश्लेषणात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययनलागत लेखांकन के अन्तर्गत उत्पादन की कुल लागत को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष, स्थिर एवं परिवर्तनशील, उत्पादन, कार्यालय एवं विक्रय तथा वितरण व्ययों में वर्गीकृत करके प्रति ईकाई लागत ज्ञात की जाती है। लागत का यह विश्लेषणा दो अवधियों के बीच होने वाले परिवर्तन तथा उसके कारण पर प्रकाश डालता है जिससे बढ़ते हुए व्ययों एवं घटते हए लाभों को रोकने के लिए वंचित कदम उठाये जा सकते हैं एवं प्रतिस्पर्द्धा का सामना करने की क्षमता बढंती है ।

(iv) विक्य-मूल्य एवं टेण्डर मूल्य निर्धारण में सहायक लागत लेखांकन के द्दारा यह आसानी से ज्ञात हो जाता है  कि उत्पादन के विभिन्न स्तरों  पर कितनी लागत आयेगी , परिणामस्वरुप  उचित लाभ जोडंकर सरलता से विक्य-मूल्य निर्धारित कर लेते हैं। इसके साथ-साथ यदि संस्था को कहीं टेण्डर देना है तो उसका उचित मूल्य निर्धारित  करने में भी लागत लेखे अत्यन्त सहायक सिद्धा होते हैं । लागत लेखांकन मे गत अवधि की लागत तथा वर्तमान प्रवृत्ति के माध्यम स टेण्डर मूल्य और विक्य- मूल्य निर्धारित कर लिया जाता है । 

 (v) प्रमाप लागत के निर्धारण में सहयोग लागत लेखों की सहायता से प्रत्येक कार्य की प्रमाप लागत निर्धारित में भी सुविधा हो जाती है। किसी वस्त के निर्माण की लागत कितनी आनी चाहिए, यह पहले से ही निश्चित प्रमाप लागत कहलाता है।

(vi) लागत नियन्त्रण में सुविधालागत लेखे प्रबन्ध को नियोजन, बजटन तथा लागत नियन्त्रण के उपयोगी है। प्रदान करते हैं। सामान्यतया लागत के तीन तत्व माने जाते हैं—सामग्री, श्रम तथा अन्य व्यय। इन सभी व्ययों के नियन्त्रण सम्बन्धित पहलुओं का लागत लेखांकन में अध्ययन होता है। अतः लागत लेखांकन के कारण लागत नियन्त्रण में भी सरि

जाती है।

 (vii) अपव्यय का ज्ञान होना-लागत लेखे न केवल यही बताते हैं कि किसी वस्तु की उत्पादन लागत कितनी है यह भी बताते हैं कि कहाँ अपव्यय हो रहा है और उसको कैसे रोका जा सकता है तथा भविष्य में उत्पादन लागत क्या होनी

चाहिए।

(viii) भावी नीति निर्धारण में सहायकलागत लेखों द्वारा प्रदत्त सूचनाएँ प्रबन्ध को अनेक महत्वपर्ण निर्णय ३३ सहायता पहुँचाती हैं; जैसे-नये उत्पाद का प्रारम्भ, अधिक लाभदायक उत्पादन मिश्रण, बेकार पड़ी क्षमता का सदुपयोग, स्वयं बनाये या खरीदें का निर्णय, आदि।

(ix) लाभ-हानि विवरण किसी भी समय तैयार करना लागत लेखों की सहायता से किसी भी समय साप्ताहिक मासिक अथवा त्रैमासिक लाभ-हानि ज्ञात किया जा सकता है। इससे यह लाभ होता है कि यदि किसी उत्पादन या कार्य से हानि हो रही हो तो उसे तुरन्त बन्द किया जा सकता है।

(x) मन्दीकाल में उपयोगिता- मन्दीकाल उत्पादकों के दृष्टिकोण से सबसे खराब समय होता है। ऐसे समय में यदि उत्पादक की परिवर्तनशील लागतें भी पूर्ण रूप से वसूल हो जाये तो उत्पादन को चालू रखना ही लाभप्रद रहता है। परिवर्तनशील लागतों की जानकारी लागत लेखों द्वारा सरलता से हो जाती है।

             II, कर्मचारियों को लाभ (Advantages to Employees) लागत लेखा अपनाने पर श्रमिकों एवं कर्मचारियों के मध्य कार्य का विभाजन वैज्ञानिक आधार पर किया जाता है। उनके कार्य के प्रमाप निर्धारित कर दिये जाते हैं, कार्यहीन समय नियन्त्रित किया जाता है, किये गये कार्य का विस्तृत विवरण रखा जाता है तथा पारिश्रमिक देने की प्रेरणात्मक पद्धतियों का उपयोग किया जाता है। वस्तुतः लागत लेखांकन से जहाँ एक ओर व्यवसाय समृद्ध होता है वहीं श्रमिकों को सेवा की सुरक्षा तथा पर्याप्त पारिश्रमिक एवं सुविधाओं का आश्वासन भी मिलता है अर्थात् लागत लेखांकन को अपनाये जाने से उत्पादक के साथ-साथ स्वयं श्रमिक भी लाभान्वित होते हैं। |

III. विनियोक्ताओं एवं ऋणदाताओं को लाभ (Advantages to Investors and Creditors)-किसी भी व्यवसाय की लाभ अर्जन करने की क्षमता सम्बन्धी जानकारी लागत लेखों से भली प्रकार प्रकट हो जाती है एवं लाभोपार्जन क्षमता का ज्ञान विनियोक्ताओं एवं ऋणदाताओं के लिए बहुत अधिक लाभप्रद होता है। लागत लेखे संस्था की लाभार्जन क्षमता तथा भावा। विकास की सम्भावनाओं के बारे में विश्वसनीय सूचनाएँ प्रदान करते हैं जिससे विनियोक्ताओं को विनियोग करने तथा ऋणदाताओं को ऋण देने सम्बन्धी निर्णय लेने में सुविधा रहती है। एक संस्था जिसमें लागत लेखांकन की सुचारु व्यवस्था उस संस्था की अपेक्षा कहीं अधिक विनियोजकों तथा ऋणदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर सकती है जहाँ लागत लेख की कोई उपयुक्त प्रणाली नहीं अपनायी जाती अर्थात् लागत लेखे रखने वाली संस्थाएँ ऋणदाताओं तथा विनियोक्ता का विश्वास आसानी से प्राप्त कर लेती हैं।

 IV. उपभोक्ताओं को लाभ (Advantages to Consumers)-लागत लेखों के माध्यम से उत्पादन लागत नि होती है तथा किस्म में भी सुधार होता है क्योंकि उत्पादन हेतु प्रमापित कच्ची सामग्री तथा कार्यकशल श्रमिकों का ही उपचा किया जाता है। इस प्रकार से उत्पादन लागत घटने का लाभ कुछ सीमा तक उपभोक्ता तक पहुंचता है। इस प्रकार लागत लेखों के कारण उपभोक्ताओं को अच्छी किस्म की वस्तुएँ सस्ते मल्य पर मिल जाती है। इसके 

अतिरिक्त लागत लेखांकन अपनाने से उपभोक्ताओं को यह विश्वास भी हो जाता है कि उनसे जो मूल्य लिया जा रहा है वह उचित है ।

            V. सरकार को लाभ (Advantages to Government)–लागत लेखों से प्राप्त विस्तृत एवं विश्लेषणात्मक सूचनाएँ। उधागा के सम्बन्ध में वास्तविक स्थिति का ज्ञान कराती हैं जिससे सरकार को उन उद्योगों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण बनाने में सहायता मिलती है। मूल्य निर्धारण, मूल्य नियन्त्रण, सरकारी संरक्षण, मजदूरी निर्धारण, लाभांश भुगतान, उत्पादन कर तथा आय कर के निर्धारण, आयात-निर्यात, आदि से सम्बन्धित नीतियों के निर्धारण में लागत लेखे महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं।

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि लागत लेखों के रखे जाने से केवल उत्पादक को ही लाभ नहीं होता वरन् समाज के प्रत्येक क्षेत्र में इसका लाभ पहुँचता है। ये लेखे श्रमिकों, विनियोक्ताओं, ऋणदाताओं, उपभोक्ताओं तथा सरकार, आदि सभी को अत्याधिक लाभ पहुंचाते हैं।

                  लागत लेखांकन की सीमाएँ(Limitations of Cost Accounting)

 लागत लेखांकन से अनेक लाभ होने के बावजूद भी लागत लेखांकन की निम्नलिखित प्रमुख सीमाएँ हैं–

1. व्यापारिक उपक्रमों (Trading Concerns) में लागत लेखे नहीं रखे जाते-लागत लेखे केवल उन्हीं व्यवसायों/उपक्रमों में रखे जाते हैं जिनमें किसी वस्तु का उत्पादन किया जाता है अथवा जो सेवा प्रदान करने का कार्य करते हैं। जैसे परिवहन, होटल, सिनेमा आदि व्यवसाय में लगे हुए उपक्रम। अतः जो उपक्रम केवल व्यापार का कार्य (Trading) करते हैं, उनमें लागत लेखे नहीं रखे जाते हैं।

2. अप्रत्यक्ष व्ययों का लेखा अनुमानित रकमों के आधार पर किया जाता है—लागत लेखांकन में अप्रत्यक्ष व्ययों का लेखा वास्तविक रकमों के स्थान पर अनुमानित रकमों के आधार पर किया जाता है।

 3. शुद्ध वित्तीय प्रकृति की मदों का लेखा नहीं किया जाता–शुद्ध वित्तीय प्रकृति के अनेक व्यय जिनका सम्बन्ध उत्पादन, विक्रय एवं वितरण से नहीं होता, उन्हें लागत लेखों में सम्मिलित नहीं किया जाता है यद्यपि उनका लेखा वित्तीय लेखांकन में किया जाता है। इसी प्रकार शुद्ध वित्तीय प्रकृति की आय/लाभों की मदों को भी लागत लेखों में नहीं लिखा जाता है ।

लागत लेखांकन के विरुद्ध लगाये गये आक्षेपों का आलोचनात्मक विश्लेषण(Critical Analysis of Objections against Cost Accounting)  

यद्धपि वर्तमान समय में लागत लेखांकन के महत्व को सभी स्वीकार करते हैं परन्तु फिर भी कुछ लोग इसके विरुद्ध अनेक प्रकार के आक्षेप लगाते हैं जिनमें से प्रमुख आक्षेप निम्नलिखित हैं

(1) लागत लेखे अनावश्यक हैंकुछ लोगों का विचार है कि लागत लेखांकन अनावश्यक है। उनका कहना है कि वित्तीय लेखांकन के अन्तर्गत समस्त व्यवहारों का लेखा कर लेने के बाद लागत लेखांकन को अपनाना तथा उन्हीं व्यवहारों का दोबारा लेखा करना अनावश्यक प्रतीत होता है। परन्तु यह आक्षेप तर्कसंगत नहीं है। आज के इस प्रतिस्पर्धापूर्ण युग में प्रत्येक । उत्पादक के लिए यह जानना आवश्यक है कि किसी वस्तु की कुल लागत के तत्व कौन-कौन से हैं तथा प्रत्येक तत्व पर कितनी-कितनी धनराशि व्यय हुई है, तभी उत्पादित की जाने वाली वस्तु की कुल लागत को कम करने की सम्भावनाओं का । पता लग सकता है और ये सूचनाएँ लागत लेखों द्वारा ही उपलब्ध हो सकती हैं। इस प्रकार आज के प्रतिस्पर्धा के युग में । प्रत्येक उत्पादक/निर्माणी संस्था के लिए लागत लेखांकन का अपनाया जाना जरूरी है।

(2) लागत लेखांकन एक खर्चीली विधि हैकुछ आलोचकों का यह मत है कि लागत लेखांकन व्यवस्था की स्थापना एवं परिचालन में होने वाला व्यय उससे उपलब्ध बचतों से कहीं अधिक है अर्थात् लागत लेखांकन पद्धति स्वयं इतनी व्ययपूर्ण (खर्चीली) है कि इसे अपनाने से लागतों में कमी होने के स्थान पर वृद्धि हो जाती है। | इस पद्धति की आवश्यकता और स्थापना के सम्बन्ध में विचार और विश्लेषण करने के उपरान्त यही कहा जा सकता है। कि यह आक्षेप युक्तिसंगत नहीं है। यह तो ठीक है कि प्रारम्भ में लागत लेखांकन लागू करने में काफी व्यय करना पड़ता है। परन्तु इसके बदले लागत लेखांकन के माध्यम से सामग्री, श्रम व उपरिव्यय की लागत में काफी कमी की जा सकती है। यह कमी लागत लेखांकन की स्थापना पर हुए व्यय से अधिक होती है, अतः कुल लागत बढ़ने के स्थान पर घटती है। यदि किसी संस्था में लाभ की अपेक्षा खर्च अधिक होता है तो यह लागत लेखांकन प्रणाली का दोष नहीं है। ऐसा तभी होगा जब लागत लेखांकन प्रणाली व्यवसाय के आकार-प्रकार के अनुरूप न अपनायी गयी हो। यदि व्यवसाय के अनुरूप ही लागत लेखांकन प्रणाली अपनायी जाये तो वह अधिक खर्चीली भी नहीं होगी और खर्चे की तुलना में अधिक मितव्ययिता लाने में भी सहायक सिद्ध होगी। अत: यह आक्षेप कि यह प्रणाली खर्चीली है, उपयुक्त नहीं कहा जा सकता है।

3) लागत लेखांकन के परिणाम शुद्ध एवं विश्वसनीय नहीं होते-इस प्रणाली पर यह भी आक्षेप कि लागत लेखों द्वारा प्रकट परिणाम विश्वसनीय नहीं होते क्योंकि इसमें लागत का निर्धारण अनुमानित आक किया जाता है। यह तो सही है कि लागत लेखांकन में अनुमानित अंकों का काफी प्रयोग होता है, लेकिन है कि इस कारण लागत लेखों के परिणाम अविश्वसनी  होते हैं क्योंकि प्रयुक्त अनुमानित अंक काल्पनिक न होकर वैज्ञानिक विधि पर आधारित होते हैं। दूसरे लागत लेखों से प्राप्त समस्त निष्कर्ष अनुमानित आँकड़ों से ही नहीं निकाले जाते ।

(4) लागत लेखांकन कुछ उद्योगों के लिए अनुपयुक्त है—लागत लेखांकन के विरुद्ध ए जाता है कि लागत लेखांकन अनेक प्रकार के उद्योगों के लिए उपयुक्त नहीं हैं। लेकिन गहनता से है कि यह आक्षेप भी सारहीन है। वस्तुतः लागत लेखों की प्रणालियों को संस्था की आवश्यकत | अर्थात लागत लेखांकन की ऐसी कोई प्रणाली नहीं है जिसको सभी प्रकार के उद्योगों पर लागू कियाकन का 7 लागत लेखांकन की कमी नहीं वरन् उन व्यक्तियों की कमी है जिन्हें अपने उद्योग में ला’ समुचित उपयोग करने का ज्ञान नहीं है।

निष्कर्ष–उपरोक्त आक्षेपों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि समस्त आक्षेप निराधार है। का विशिष्ट ज्ञान न होने के कारण लगाये जाते हैं। वस्तुतः लागत लेखांकन एक सावधानीपूर्वक उपयोग किसी भी संस्था की सफलता को सुनिश्चित कर देता है।

        लागत लेखांकन के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण कथन तथा स्पष्टीकरण(Important Statements Regarding cost Accounting  and  their  Explanation)  

(1) दूरदर्शिता की पद्धति बनाम उत्तरवर्ती परीक्षण (System of Foresight  Vs Post mortern )प्राय; जाता है किलागत लेखांकन दूरदर्शिता की पद्धति है न कि उत्तरवर्ती परीक्षा है, कार्यकलापों को गतिशील बनाता है तथा क्षयों को दूर करता है।

उपरोक्त कथन के प्रथम भाग में इस बात पर जोर दिया गया है । उत्तरवर्ती परीक्षण। उत्तरवर्ती परीक्षण (Post-mortem) का अर्थ मृत्यु के, वाले शव-परीक्षण से है। यह तो स्पष्ट है कि वित्तीय लेखे व्यवसाय के पार लेखों से जो सूचनाएँ मिलती हैं वे इतने विलम्ब से प्राप्त होती है कि अपव्ययों की तत्काल जानकारी न मिल पाने के कारण उन्हें उत्पन्न हो उत्तरवर्ती परीक्षण पर आधारित है एवं इसी कमी के कारण लागत लख केवल लागत ज्ञात करने एवं वस्तुओं के विक्रय-मूल्य निर्धारित करने भी प्रदान करता है जिससे लागतों पर नियन्त्रण किया जा सके। लागत हैं जिनमें मुख्य रूप से प्रमापित लागत लेखांकन (Standard co शामिल करते हैं। प्रमापित लागत लेखांकन के अन्तर्गत हम वैज्ञा चाहिए तथा बजटरी नियन्त्रण के अन्तर्गत संस्था की समस्त मह किया जाता है। स्पष्ट है कि लागत लेखांकन के अन्तर्गत वर्तमान पूर्वानुमान तैयार किये जाते हैं जिससे लागत नियन्त्रण में सहा त है जिससे लागत नियन्त्रण में सहायता मिलती है। लागत लेखांकन की इसी प्रकृति के कारण यह है तथा कहा जाता है कि ‘ ‘लागत लेखांकन दूरदर्शिता की पद्धति है, न कि उत्तरवर्ती परीक्षण। | उपर्युक्त कथन का दूसरा भाग “यह हानिया दूसरा भाग “यह हानियों को लाभों में परिवर्तित करता है, कार्यकलापों को गतिशील बनाता है तथा क्षयों को दूर करता है’ लागत लेखांकन के लाभों या महत्व से सम्बन्ध रखता है  जिसका वर्णन पीछे किया जा चुका है

(2) मितव्ययिता की कंजी बनाम लागत वृद्धि (Key to Economy Vs. Increase in Costs)–लागत लेखांकन के” परस्पर विरोधी विचारधाराएँ देखने को मिलती हैं। कुछ लोग तो यह कहते हैं कि “लागत लेखे निमणि  मितव्ययिता की कुञ्जी है। (Cost accounting is key to economy in manufacturing)। दूसरी ओर कुछ व्यक्तियों का यह भी मत है कि लागत लेखांकन से लागत में वृद्धि होती है।” (Increase in costs due to cost accounts)।।

प्रथम कथन लागत लेखों की उपयोगिता पर प्रकाश डालता है। लागत लेखों में न केवल लागत का निर्धारण किया जाता है वरन् लागत के प्रत्येक तत्व का समुचित विश्लेषण कर उस पर प्रभावकारी नियन्त्रण रखा जाता है। कहाँ अपव्यय हो रहा है। और इसको कैसे रोका जा सकता है ? लागत लेखे इस कार्य में सहयोग करते हैं। इस कथन के विस्तृत विवेचन हेतु, पीछे। वर्णित लागत लेखों के लाभों की चर्चा करनी होगी। 

 दूसरा कथन लागत लेखों के खर्चीला’ होने के प्रति आक्षेप से सम्बन्धित है। इस सम्बन्ध में भी पीछे विस्तार से चर्चा । की जा चुकी है।

निष्कर्ष रूप में प्रथम कथन तो सत्य है लेकिन द्वितीय विचार सत्य नहीं है।

(3) व्यय बनाम विनियोग (Expenditure Vs. Investment)—किसी भी संस्था में लागत लेखांकन पद्धति को लाग । करने पर होने वाले व्यय के सम्बन्ध में प्राय: यह कहा जाता है कि “लागत लेखों पर किया गया व्यय, व्यय नहीं वरन् । एक विनियोग है।” यह कथन भी हमारा ध्यान लागत लेखों से प्राप्त होने वाले लाभों की ओर ही आकर्षित करता है। यह तो सही है कि लागत लेखों को रखने के लिए अनेक हिसाब की बहियों, विवरण प्रपत्र, आदि रखने पड़ते हैं तथा लागत लेखांकन विभाग अलग से संगठित करना पड़ता है। इन सबके परिणामस्वरूप संस्था के व्ययों में वृद्धि होती है। परन्तु लागत लेखांकन पद्धति की स्थापना पर किया गया व्यय एक ऐसा लाभप्रद विनियोग है जिसके लाभ अनेक वर्षों तक मिलते रहते हैं। वस्तुत: इस पद्धति को अपनाने पर किये गये व्यय अनुत्पादक नहीं हैं, वरन् लाभप्रद विनियोग हैं। इसका कारण यह है कि लागत लेखांकन विधि, उत्पादन, प्रशासन, विक्रय एवं वितरण के समस्त घटकों की कार्यक्षमता में वृद्धि करती है और उत्पादन लागत को कम करने का प्रयास करती है। वस्तुत: इस पद्धति को अपनाने से क्षय एवं बर्बादी पर रोक लगती है तथा लागत के विभिन्न तत्त्वों पर प्रभावकारी नियन्त्रण स्थापित होता है। इसी कारण यह कहा जाता है कि “लागत लेखों पर किया गया व्यय, व्यय नहीं वरन् एक विनियोग है। लेकिन इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि लागत लेखांकन पद्धति पर किया जाने वाला व्यय संस्था की आवश्यकता के अनुरूप ही किया जाये अन्यथा लागत लेखांकन से लागत वृद्धि की सम्भावनाएँ बढ़ जायेंगी।

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