Thursday, December 26, 2024
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निविदा मूल्य क्या है इसकी गणना कैसे की जाती है

निविदा मूल्य क्या है इसकी गणना कैसे की जाती है (what is tender price how it is calculated)

टेण्डर मूल्य/ निविदा मूल्य का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning & Definition of Tender Price)

… प्रायः एक ठेकेदार ठेका कार्य शुरु करने से पूर्व ही उसकी अनुमानित लागत पर विचार करता | उत्पादकों को प्रायः ग्राहकों से आदेश प्राप्त करने के लिये उन्हें अनुमानित मूल्य बताना पड़ता है जो कि अनुमानित लागत में कुछ लाभ जोड़कर बताया जाता है । इसी को निविदा करना अथवा टेण्डर मूल्य कहते हैं। बड़े-बड़े व्यापारिक संस्थानों में कार्यों के लिये वास्तविक क्रय से पूर्व उत्पादकों से टेण्डर मूल्य की माँग की जाती है और जिस उत्पादक के द्वारा बनाये गये माल की किस्म सर्वश्रेष्ठ तथा टेण्डर मूल्य न्यूनतम होता है उसे ही माल की पूर्ति हेतु आदेश दिया जाता है ।

निविदा मूल्य क्या है इसकी गणना कैसे की जाती है

इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट एण्ड वर्क्स एकाउण्टस इंगलैण्ड के अनुसार-“लागत अनुमान-पत्र एक प्रलेख है जो सम्पूर्ण उत्पादन अथवा इकाई की अनुमानित लागत बताता है ।” टेण्डर मूल्य का निर्धारण अत्यन्त सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए क्योंकि टेण्डर मूल्य तुलनात्मक रूप से

अधिक होने पर उत्पादक को आदेश नहीं प्राप्त होगा तथा लागत से कम होने पर उसे हानि उठानी पड़ेगी। चूँकि निविदा मूल्य का निर्धारण उत्पादन से पूर्व ही करना पड़ता है अतः इसके लिए मुख्यतः पूर्व अनुभव एवं गत लागतों को आधार के रूप में प्रयोग किया जाता है । गत वर्ष या गत

अवधि में उसी प्रकार की वस्तुओं के निर्माण पर हुई लागत में सम्भावित परिवर्तनों को दृष्टि में रखकर टेण्डर तैयार किया जाता है।

निविदा तैयार करते समय ध्यान रखने योग्य बातें 

(Elements should be kept in mind in the preparation of tender)

(1) मूल्य परिवर्तन (Change in price)-

सामान्यतः बाजार में प्रतिदिन श्रम, सामग्री तथा उत्पादन के अन्य साधनों की कीमतों में परिवर्तन होता रहता है। अतः ठेकेदार को वर्तमान में निविदा मूल्य निर्धारित करते समय इन परिवर्तनों की जानकारी होना अति आवश्यक है ताकि उचित मूल्य निर्धारित किया जा सके।

(2) प्रति-इकाई लागत (Cost per unit)

ठेकेदार को प्रति इकाई लागत ज्ञात कर निविदा मूल्य/ 74 समय पर्याप्त सावधानी रखनी चाहिए क्योंकि एक पैसे के अन्तर का भी आदेश पर बहुत प्रभा पड़ता है

(3) उत्पादन की मात्रा (Production Quantity)-

कुछ लागतों का उत्पादन की मात्र कम होने या अधिक होने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ये लागतें स्थाई प्रकृति की होती हैं जबकि कुछ लागतें उत्पादन की मात्रा घटने पर घट जाती हैं व बढ़ने पर बढ़ जाती हैं। ये लागते परिवर्तनशील लागतें होती हैं । उत्पादन की मात्रा अधिक होने पर स्थिर लागतो का भार प्रति इकाई कम हो जाता है।

(4) परिवर्तन की लागत (Cost of Alteration)-

यदि आदेशित माल की किस्म । रूप, पैकिंग मूल्य, फैशन, वजन आदि में परिवर्तन की माँग की गई है तो उस परितर्वन पर आने वाली लागत को भी ध्यान रखना चाहिए। ..

(5) लाभ (Profit)

टेण्डर की लागत निकाल कर उसमें एक निश्चित प्रतिशत लाभ सम्मिलित किया जाता है । लाभ लागत का एक निश्चित प्रतिशत हो सकता है  लाभ दो आधारे पर लगाया जा सकता है

(i) लागत पर लाभ का प्रतिशत,तथा

(ii) बिक्रा पर लाभ का प्रातशत

लाभ की गणना विधि

(i) लागत पर लाभ का प्रतिशत दिया होने परलाभ- कुल लागत X प्रतिशत100%

(ii) बिक्री पर लाभ का प्रतिशत दिया होने पर-कुल लागत X प्रतिशत100 %

टेण्डर मूल्य की गणना

(Calculation of Tender Price)

 कभी-कभी कुछ वस्तुओं के उत्पादन की गत अवधि की लागत अथवा बिक्री आदि के पूर्ण विवरण दिये होते हैं और इन्हीं विवरणों के आधार पर समान प्रकार की वस्तुओं के टेण्डर मूल्य की गणना की जाती है । यदि गत अवधि के उत्पादन लागत के विभिन्न व्ययपूर्ण राशि में आते हैं तो टेण्डर मूल्य की गणना प्रति इकाई लागत के आधार पर करनी चाहिए। टेण्डर व अनुमान के प्रश्नों में अनेक स्वरूप देखने को मिलते हैं । प्रमुख स्वरूप निम्नलिखित हैं

(I) जब सामग्री या श्रम या दोनों की लागतों में परिवर्तन हो (When there is a change in the price of materials)-

टेण्डर की वस्तुओं में प्रयुक्त होने वाली सामग्री,श्रम एवं अन्य व्यय,गत अवधि की लागत के अनुपात में निकालने चाहिएँ। फिर जिस व्यय में वृद्धि हो उसमें उतना प्रतिशत जोड़ देना चाहिए, जिस व्यय में कमी होने की सम्भावना हो उसमें उतना प्रतिशत कम कर देना चाहिए तथा जिस व्यय के बारे में कुछ न दिया हो उसका वही अनुपात रखना चाहिए जो गत अवधि में था। लाभ का प्रतिशत वही रहेगा जो गत अवधि में या लागत या बिक्री मूल्य पर जो भी सुविधाजनक हो,लाभ का प्रतिशत निकाल लेना चाहिए।

(II)जब टेण्डर गत अवधि के आधार पर तैयार किया जाये (When tender is prepared on the basis of last period profit)

इस प्रकार के निविदा स्वरूप को तभी प्रयोग किया जाता है जब टेण्डर या निर्ख मूल्य के निर्धारण हेतु गत अवधि की लागत सम्बन्धी सूचनाओं के साथ-साथ गत अवधि में उत्पादित संख्या भी बतायी गयी हो और निविदा हेतु वस्तु की वांछित संख्या भी दे रखी हो । सामान्यतः ऐसी दशा में गत अवधि में उत्पादित तथा निविदा वाली वस्तु की किस्म,आकार,स्वरूप तथा गुण समान होते हैं। इस ढंग में गत अवधि की लागत सूचनाओं के आधार पर लागत-पत्रक तैयार करके लागत के विभिन्न अंगों की प्रति इकाई लागत ज्ञात कर ली जाती है । तत्पश्चात् निविदा से सम्बन्धित वस्तु की संख्या का लागत के प्रत्येक अंग की प्रति इकाई से गुणा करके सम्भावित कुल लागत प्राप्त हो जाती है।

(III) स्थिर, परिवर्तनशील व अर्द्धपरिवर्तनशील लागतें (Fixed, variable and semi variable costs)

स्थिर व्ययों पर उत्पादन की मात्रा घटाने या बढ़ाने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता जैसे, फैक्ट्री का किराया,मैनेजर का वेतन आदि । परिवर्तनशील व्ययों का उत्पादन की मात्रा के अनुसार आनुपातिक रूप से कम या अधिक होते है। यदि इन व्ययों के अनुपात से कम या अधिक होने का स्पष्ट निर्देश हो तो उसके अनुसार ही समायोजन कर लेना चाहिए । इस प्रकार के व्यय परिवर्तनशीलता तो रखते हैं किन्तु उत्पादन के साथ उनका प्रत्यक्ष आनुपातिक सम्बन्ध न होकर अनुपात से कम परिवर्तनशीलता होती है। इनके सम्बन्ध में स्पष्ट निर्देश दिये हुए होते हैं । जब प्रश्न में लागत सम्बन्धी सूचनाएँ उपयुक्त आधार पर दी गयी हो तो प्रश्न में दिये हुए निर्देशों को ध्यान में रखते हुए ही टेण्डर मूल्य की गणना की जाती है।

(IV) जब गत कुछ सप्ताहों, महीनों या वर्षों के व्ययों तथा उत्पादन के विवरण दिये हुए हों और उनके आधार पर अनुमान लगाना होकभी-कभी गत अवधियों की लागत व उत्पादन की मात्रा के वितरण दिये होते हैं। और उनके आधार पर चालू अवधि में कुछ निश्चित मात्रा का अनुमान तैयार करना होता है। लाभ का प्रतिशत भी प्रश्न में दिया होता है।

यदि गत अवधि में सामग्री व श्रम की लागत 2,00,000 रु० थी तथा निर्माण व्यय 40,000 रु० था तो निर्माण व्यय सामग्री तथा श्रम की मिश्रित लागत का 20% होगा। यदि चालू अवधि में सामग्री व श्रम की मिश्रित लागत 30,000 रु. हो तो निर्माण व्यय इस लागत का 20% अर्थात् 6,000 रु. होगा अतः जिस अनुपात में सामग्री तथा श्रम की मिश्रित लागत में परिवर्तन होता है, उसी अनुपात में निर्माणी व्यय में भी परिवर्तन होगा।

(ii) प्रति इकाई बिक्री व्यय पूर्ववत् रहेंगे प्रति इकाई बिक्री व्यय निश्चित रहते हैं, यदि गत . .. अवधि में कुल बिक्री व्यय 24,000 रु० तथा उत्पादित इकाइयाँ 12,000 थी तो प्रति इकाई बिक्री

व्यय 2 रु. हुआ। यदि चालू अवधि में अनुमानित उत्पादन 16,000 इकाइयाँ है तो कुल बिक्री

(ii) अन्य व्ययों में स्थिरता- अन्य व्यय कार्यालय व प्रशासन से सम्बकि अधिकांश तथा स्थिर प्रकति के होते हैं। अर्थात् उत्पादन में परिवर्तन होने पर भी कि

(I) जब टेण्डर में काम आने वाली सामग्री व श्रम का मूल्य तथा लाभ हो, अप्रत्यक्ष व्यय न दिये हों (When the amount of materials , required for tender is given percentage of promit is given. O me not given) इस प्रकार के प्रश्न का हल भी पूर्व स्वरूप का भाति का जो विवरण तैयार होगा उसमें तैयार माल का आरम्भिक व आतम रहातया नहीं होगा

अतः गत अवधि का लाभ मालूम नहीं होगा। लागत व लाभ लागत कार्यालय, लागत तथा कल लागत दिखायेगा। टेण्डर के अप्रत्यक्ष व्यय मा कारखाना परिव्यय श्रम पर प्रतिशत तथा प्रशासन पारव्यय का का होगा और न ही लाभ का विवरण मल व्यय उन्हीं आधारों कारखाना लागत पर क्यों बनाया जाता है ?

लागतपत्र का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Cost Sheet)

लागत-पत्र या परिव्यय-पत्र उत्पादन के व्ययों को विश्लेषाणत्मक ढंग से करता है, जिससे उत्पादित इकाइयों की कुल उत्पादन लागत एवं प्रत्येक इकाई की ज्ञात हो सके । लागत-पत्र की कुछ परिभाषाएँ अग्रलिखित हैं

हैरॉल्ड जे० व्हेल्डन(Harold J. Wheldon) के शब्दों में, “लागत-पत्र प्रबन्धको के लिए तैयार किए जाते हैं। इसलिए इनमें उन सभी आवश्यक विवरणों को समि जाना चाहिए जो कि उत्पादन की कार्यक्षमता जाँचने मे प्रबन्धक की सहायता करेंगे।”

जे० आर बाटलीबॉय (J.R. Batilboi) के अनुसार, “लागत-पत्र तालिका के कर दिखाया गया एक विवरण-पत्र है, जो कि एक निश्चित समय की कुल उत्पादन लागत से इस प्रकार प्रस्तुत कार्ड की उत्पादन लागत पत्र प्रबन्धकों के प्रयोग को सम्मिलित किया

प्रकार प्रकट करता है। यह लागत लेखों की दोहरी लेखा प्रणाली का अंग नहीं होता । साधारणतः अधिक खाने भी बना दिए जाते हैं, जिससे चालू अवधि की लागत की तलना अवधि और गत वर्ष की उसी अवधि से की जा सके।”

वाल्टर डब्ल्यू० बिग (Walter W. Bigg) के शब्दों में, उत्पादन पर एक निश्चित समय अन्तर्गत किए जाने वाले व्ययों के विवरण वित्तीय पुस्तकों एवं भण्डार गृह के अभिलेखों से प्राप्त किए जा सकते हैं । इनको एक स्मरण-विवरण-पत्र रूप में दर्शाया जाता है। यदि यह विवरण-पत्र केवल एक निश्चित अवधि से उत्पन्न की हुई इकाइयों की लागत को ही दर्शाए तो इसे लागत-पत्र कहते हैं।”

‘आई० सी० एम० ए० इंग्लैण्ड’ (I.C.M.A. England) के अनुसार, “लागत-पत्र ऐसाप्रलेख है, जो किसी लागत केन्द्र अथवा इकाई के सम्बन्ध में अनुमानित विस्तृत लागत का संग्रहण प्रस्तुत करता है।” कार कहा जा सकता है कि लागत-पत्र तालिका के रूप में तैयार किया गया एक

जो एक निश्चित समय के कुल उत्पादन की लागत को विस्तार से प्रकट करता है । यह वा प्रणाली का अंग नहीं होता। इसमें सामान्यतः अधिक खाने बना दिये जाते हैं ताकि

या पिछले समयों की लागत में वर्तमान लागत की तुलना की जा सके।”

लागत-पत्र की विशेषताएँ (Characteristics of Cost Sheet)-

(1) यह कुल लागत एवं प्रति इकाई लागत दर्शाता है।

2 यह लागत के विभिन्न अंगों को भी स्पष्ट करता है।

(3) यह सामयिक होता है अर्थात् यह साप्ताहिक, अर्द्धमासिक,मासिक, त्रैमासिक आदि हो सकता है।

(4) यह विभिन्न लागतों का कुल लागत से सम्बन्ध प्रदर्शित करता है।

लागतपत्र के लाभ एवं उद्देश्य

(Advantages and Objects of Cost Sheet) –

एक लागत-पत्र उत्पादन संस्थाओं को अनेक प्रकार से लाभ पहुँचाता है इसलिए इसको तैयार किया जाता है । इसके कुछ लाभ निम्नलिखित हैं

(1) लागत नियन्त्रण लागत-पत्र का प्रमुख उद्देश्य उत्पादित वस्तु की गत निर्धारित करना है । लागत-पत्र की मदद से उत्पादित वस्तु की सही लागत निर्धारण सम्भव होती है।

(2) लागत-नियन्त्रण लागत-पत्र वर्तमान व्ययों को पिछले व्ययों से तुलना करता है, जिसमें उनके परिवर्तन के कारण ज्ञात किये जा सकते हैं। यदि व्ययों में वृद्धि का कारण कर्मचारियों की अकुशलता है तो उनको दूर करके व्ययों पर नियन्त्रण किया जा सकता है।

(3) लागत समंकों का तुलनात्मक अध्ययन करना लागत-पत्र की सहायता से चालू अवधि के लागत समंकों की गत अवधि के लागत समंकों से तुलना करके यह सरलता से ज्ञात किया जा सकता है कि किन मदों पर अधिक व्यय हो रहा है और किन मदों पर कम व्यय हो रहा

(4) बिक्री मूल्य का निर्धारण करना उत्पादक वस्तु का बिक्री मूल्य सरलता से निर्धारित कर सकता है क्योंकि लागत-पत्र से उसको वस्तु की कुल लागत के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी रहती

(5) टेण्डर मूल्य निष्चित करना संस्था द्वारा टेण्डर तभी भरे जा सकते हैं जबकि संस्था की लागत का अधिकतम सही अनुमान हो। पिछले लागत-पत्रों का तुलनात्मक एवं विश्लेषाणत्मक अध्ययन करके ही टेण्डर लागत तथा मूल्य आधारित किया जा सकता है।

(6) उत्पादन कार्यक्षमता की जाँच लागत-पत्र प्रबन्धकों के प्रयोग के लिए ही तैयार किये जाते हैं। इनमें प्रदत्त सूचनाओं के आधार पर ही प्रबन्धक श्रमिकों की कार्यक्षमता का ज्ञान प्राप्त करते हैं । यदि उत्पादन क्षमता गिरती है तो इस पर नियन्त्रण रखा जा सकता है ।

लागत-पत्र के लाभ

(Advantages of Cost sheet)

(1) टेण्डर मूल्य के निर्धारण में सहायक

इसकी सहायता से टेण्डर मूल्य का निर्धारण सरलता से किया जा सकता है।

 (2) निर्माता एवं प्रबन्धकों का पथ-प्रदर्शन (Guidance to Manufacturer and Managers)-

इसकी सहायता से निर्माता एवं प्रबन्धकों को वस्तु की लागतों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है कि कौन-कौन सी लागतें बढ़ रही हैं जिनको नियन्त्रण करने की आवश्यकता है।

(3) कुल लागत एवं प्रति इकाई लागत का ज्ञान करना (Computation of Total Cost and Cost per Unit)-

इसके द्वारा एक निश्चित अवधि में किए गए कुल उत्पादन की लागत ज्ञात हो जाती है।

(4) उत्पादन की प्रत्येक इकाई पर विभिन्न व्ययों का भाग ज्ञात करना (Computation of Part of Different Expenses on Production of Every Unit)

इसके द्वारा यह सुविधा से ज्ञात किया जा सकता है कि उत्पादन की प्रत्येक इकाई पर भिन्न-भिन्न व्ययों का कौन-सा भाग व्यय हुआ है।

(5) लागत समंकों के तुलनात्मक अध्ययन में सहायक (Helpful in Comparative Study of Costing Data)-

इसके द्वारा गत अवधि या अवधियों के लागत समंकों से तुलना करके यह सरलता से ज्ञात किया जा सकता है कि कौन-कौन से लागत व्यय बढ़ रहे हैं और कौन-कौन से लागत व्यय घट रहे हैं।

(6) बिक्री मूल्य के निर्धारण में सहायक (Helpful in Determination of selling Price)

उत्पादक लागत-पत्र की सहायता से वस्तु के बिक्री मूल्य का निर्धारण सरलता से कर

सकता है,क्योंकि लागत-पत्र से उसे वस्तु की प्रति इकाई की लागत के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी होती है

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