Wednesday, November 20, 2024
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Bcom 1st Year marginal cost meaning in hindi

Bcom 1st Year marginal cost meaning in hindi

सीमान्त लागत 

सरल शब्दों में, किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से कुल लागत में जो वृद्धि होती है उसे सीमान्त लागत कहते हैं। अन्य शब्दों में, सीमान्त इकाई की लागत को सीमान्त लागत (Marginal Cost) कहा जाता है। एक उदाहरण से इस बात को और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है-माना कि कोई उत्पादन इकाई किसी वस्तु की 20 इकाइयाँ ₹400 लागत पर उत्पन्न करती है। अब यदि वह उत्पादन इकाई 20 इकाइयों के स्थान पर 21 इकाइयों का उत्पादन करे और कुल उत्पादन व्यय ₹ 425 आए तो 21वीं इकाई को उत्पादन लागत ₹ 25 होगी। इस दशा में इक्कीसवीं इकाई सीमान्त इकाई तथा ₹ 25 सीमान्त लागत होगी। 

सूत्र रूप में, MC = TCN- TCN – 1

  अथवा       MC = 425-400 = 25

सीमान्त लागत को अल्पकाल में कुल परिवर्तनशील लागत (TVC) द्वारा भी ज्ञात किया जा सकता है। अल्पकाल में एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से कुल परिवर्तन लागत में जं वृद्धि होती है, उसे सीमान्त लागत कहते हैं। उदाहरणार्थ-यदि 4 इकाइयों की उत्पादन लागत rs 70 और 5 इकाइयों की उत्पादन लागत (TVC) rs 80 है तो सीमान्त लागत (MC) = rs 80 – rs 70 = rs 10 होगी।

सीमान्त लागत रेखा (MC Curve) U आकार की होती है, जैसा कि रेखाचित्र-24 से स्पष्ट है। यह प्रारम्भ में गिरती है फिर न्यूनतम बिन्दु पर पहुँचती है और अन्त में बढ़ती है। सीमान्त लागत (MC) के सम्बन्ध में निम्नलिखित दो बातें ध्यान में रखनी चाहिए-

(i) MC रेखा AVC तथा ATC की अपेक्षा उत्पादन की कम मात्रा पर ही अपने निम्नतम बिन्दु पर पहुँच जाती है।

(ii) MC रेखा AVC तथा ATC रेखाओं को नीचे से उनके निम्नतम बिन्दुओं पर काटती हुई गुजरती है।

औसत लागत (Average Cost)

कुल लागत को कुल उत्पादन से भाग देने पर जो लागत प्राप्त होती है, वही औसत लागत कहलाती है।

अन्य शब्दों में, औसत लागत = कुल लागत / कुल उत्पादन (इकाइयाँ)

यदि 10 इकाइयों की कुल लागत ₹ 70 है तो एक वस्तु की औसत लागत 70/10 = ₹ 7 होगी।

उत्पत्ति के नियमों का औसत लागत पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। जब उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होता है तो उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ औसत लागत कम होती जाती है। जब उत्पत्ति समता नियम लागू होता है तो औसत उत्पादन लागत उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ बढ़ती चली जाती है।

कुल लागत (Total Cost)

कुल उत्पादन पर जो कुछ धन व्यय होता है उसे कुल लागत कहा जाता है। कुल लागत में उत्पादन पर हुए सभी प्रकार के मौद्रिक व्यय शामिल होते हैं।

कुल लागत, कुल स्थिर लागत तथा कुल परिवर्तनशील लागत के योग के बराबर होती है, अत: कुल औसत लागत, औसत स्थिर लागत व औसत परिवर्तनशील लागत का योग होता है।

कुल लागत की मात्रा उत्पादन वृद्धि के साथ सदैव ही घटती है चाहे उत्पत्ति का कोई भी नियम क्रियाशील क्यों न हो।

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कुल लागत, औसत लागत तथा सीमान्त लागत की अवधारणाओं को विभिन्न उत्पत्ति के नियमों के अन्तर्गत एक सरल उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

निम्नांकित तालिकाओं पर दृष्टि डालने से यह स्पष्ट होता है कि उत्पत्ति वृद्धि नियम अथवा लागत ह्रास नियम के लागू होने पर सीमान्त लागत निरन्तर गिरती (कम होती) चली जाती है, औसत लागत भी घटती है, परन्तु सीमान्त लागत की तुलना में कम तीव्र गति से। लेकिन कुल लागत में निरन्तर वृद्धि होती चली जाती है। उत्पत्ति समता नियम के अन्तर्गत सीमान्त लागत तथा औसत लागत में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं आता। केवल कुल लागत में आनुपातिक वृद्धि होती है

Bcom 1st Year marginal cost meaning in hindi

उत्पत्ति ह्रास नियम लागत वृद्धि नियम के अन्तर्गत उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ तीनों लागतों में वृद्धि होती है। सीमान्त व्यय तथा औसत व्यय में निरन्तर वृद्धि होती है। उल्लेखनीय बात यह है कि सीमान्त लागत में औसत लागत की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से वृद्धि होती है।

marginal cost meaning in hindi

सीमान्त लागत तथा औसत लागत में सम्बन्ध (Relation between Marginal Cost and Average Cost)

उपर्युक्त विवेचन तथा तालिकाओं से स्पष्ट है कि सीमान्त लागत (Marginal Cost) और औसत लागत (Average Cost) में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध को रेखाचित्र-20 (A) द्वारा भी प्रदर्शित किया जा सकता है।

रेखाचित्र-20(A) से स्पष्ट है कि जब औसत लागत (AC) कम होती है तो सीमान्त लागत और भी तेजी से कम होती है। रेखाचित्र में औसत लागत A बिन्दु से B बिन्दु तक निरन्तर गिर रही है। जब औसत लागत में वृद्धि होती है तो सीमान्त लागत में भी वृद्धि होने लगती है, परिणामत: दोनों वक्र रेखाएँ U आकार की हो जाती हैं। इन वक्र रेखाओं का U आकार होने का मूल कारण यह है कि जब उत्पादन प्रारम्भ किया जाता है तो उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ उपादानों का अनुकूलतम संयोग निकट आने लगता है जिससे औसत तथा सीमान्त दोनों ही लागतें गिरने लगती हैं। कुछ समय उपरान्त यह अनुकूलतम संयोग भंग हो जाता है क्योंकि उत्पादन के स्थिर उपादानों में तो कोई परिवर्तन नहीं होता, परन्तु परिवर्तनशील उपादानों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है, परिणामतः कुल उत्पादन तो बढ़ता है, परन्तु सीमान्त उत्पादन की मात्रा निरन्तर कम होती चली जाती है जिससे सीमान्त तथा औसत लागत में वृद्धि होती है। B से C तक औसत लागत में भी वृद्धि होती है। औसत उत्पादन लागत में वृद्धि के साथ-साथ सीमान्त लागत में भी वृद्धि होती है। यही कारण है कि सीमान्त लागत (MC) औसत लागत (AC) से ऊपर पहुँच जाती है।

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इस सम्बन्ध को रेखाचित्र-20 (B) द्वारा भी दिखाया जा सकता है-

संक्षेप में-

(1) जब AC गिरती है तो MC. AC से कम होगी। जब तक MC, AC में कम है तब तक उत्पादन में वृद्धि के साथ AC गिरती जाएगी।

(ii) जब AC बढ़ती है तो MC भी बढ़ती है और वह AC से अधिक होती है, अतः जब तक MC, AC से अधिक होगी तब तक AC में वृद्धि होगी।

(iii) यदि AC स्थिर है तो MC. AC के बराबर होगी तथा MC रेखा AC रेखा की नीचे से उसके निम्नतम बिन्दु C पर काटेगी

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