Friday, November 22, 2024
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Bcom 1st Year monopoly meaning in hindi

Bcom 1st Year monopoly meaning in hindi

एकाधिकार का अर्थ एवं परिभाषा 

‘Monopoly’ शब्द Mono तथा poly दो शब्दों के योग से बना है। More ‘एकाधिकार’ है। अन्य शब्दों में, एकाधिकार बाजार की वह स्थिति है, जिसमें कि केवल एक ही उत्पादक अथवा विक्रेता होता है। एक ही उत्पादक अथवा विक्रेता होने के उस उत्पादक अथवा विक्रेता का पूर्ति पर नियन्त्रण होता है। पूर्ण प्रतियोगिता की भाँति विशुद्ध एकाधिकार (Pure Monopoly) भी एक काला स्थिति है। यद्यपि व्यावहारिक जीवन में विशुद्ध एकाधिकार की स्थिति नहीं पायी जाती 

आर्थिक विश्लेषण की दृष्टि से यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण धारणा है। प्रो० रॉबर्ट टिपिना अनुसार, “एकाधिकार बाजार की वह दशा है, जिसमें कोई फर्म दूसरी फर्म के कीमत परिवार से प्रभावित नहीं होती।” 

Bcom 1st Year monopoly meaning in hindi

प्रो० चैम्बरलिन के शब्दों में—“पूर्ति पर विक्रेता का नियन्त्रण होना ही एकाधिकार बाजार की स्थिति के निर्माण के लिए काफी है।” 

प्रो० बोल्डिंग के शब्दों में—“विशुद्ध एकाधिकार एक फर्म/उद्योग है एवं इस फर्म की वस्तु तथा अर्थव्यवस्था की किसी अन्य वस्तु के बीच माँग की आड़ी लोच होती है।” .. प्रो० लर्नर के शब्दों में— “एकाधिकारी वह विक्रेता है, जिसको वस्तु के लिए गिरते हए माँग वक्र की समस्या होती है।” साधारण शब्दों में यह कहा जा सकता है कि विशुद्ध एकाधिकार की स्थिति में-

(1) वस्तु का उत्पादन एवं विक्रय केवल एक फर्म के द्वारा होता है। 

(2) एकाधिकारी फर्म की वस्तु की कोई निकट या अच्छी स्थानापन्न वस्तु नहीं होती है अर्थात् वस्तु की आड़ी माँग शून्य होती है। 

(3) उत्पादन के क्षेत्र में अन्य फर्मों के प्रवेश पर महत्त्वपूर्ण प्रतिबन्ध लगे होते हैं। अन्य शब्दों में, उत्पादन के क्षेत्र में नई फर्मों का प्रवेश पूर्णत: बन्द होता है। 

(4) एकाधिकारी अपनी स्वतन्त्र मूल्य नीति (Independent Price Policy) अपना सकता है। Bcom 1st Year monopoly meaning in hindi

अल्पाधिकार का अर्थ 

(Meaning of Oligopoly)

“अल्पाधिकार बाजार की उस अवस्था को कहते हैं, जहाँ विक्रेताओं की संख्या इतना कम होती है कि प्रत्येक विक्रेता की पूर्ति का बाजार की कीमत पर प्रभाव पड़ता है तथा प्रत्यक विक्रेता इस बात को जानता है।” 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र एकाधिकार के अन्तर्गत मूल्य-निर्धारण (Price Determination Under Monopoly) मता के अन्तर्गत मूल्य उत्पादन लागत के बराबर होने की प्रवृत्ति रखता है. क अन्तगत एसा नहा हाता।

” परन्तु एकाधिकार के अन्तर्गत ऐसा नहीं होता। अधिक ही होता है क्योंकि सामान्यत: एकाधिकारी अधिकतम ऊँचा मूल्य-निर्धारित करने का प्रयास करता है। अन्य शब्दों में से वास्तविक एकाधिकारी आय को अधिकतम करना होता है। 

कारी का वस्त की पूर्ति पर तो पूर्ण नियन्त्रण होता है, परन्त मा … नियन्त्रण नहीं होता। वस्तु की मांग के निर्धारक उपभोक्ता होते हैं। इस प्रकार की मात्रा को नियन्त्रित करके ही वस्तु का ऊंचा मूल्य निर्धारित कर सकता की  Bcom 1st Year monopoly meaning in hindi

एकाधिकारी एक ही समय में मूल्य तथा पूर्ति दोनों को नियन्त्रित नहीं कर सकता, अत: उसके सामने निम्नलिखित दो विकल्प होते हैं –

(1) वह वस्तु के मूल्य को निर्धारित कर सकता है अथवा

(2) वह पूर्ति को नियन्त्रित कर सकता है। पहली दशा में वस्तु की निर्धारित कीमत पर माँग के अनुसार पूर्ति निश्चित होगी, जबकि दूसरी अवस्था में माँग व पूर्ति की शक्तियों के द्वारा मूल्य स्वतः निर्धारित होगा। एकाधिकारी मूल्य तथा पूर्ति दोनों को एक साथ निर्धारित अथवा प्रभावित नहीं कर सकता, अत: वह प्रायः पहले वस्तु की कीमत को निर्धारित करता है और फिर पूर्ति को उसी के अनुसार समायोजित करता है। एकाधिकारी प्राय: वस्तु की मात्रा को दो कारणों से निश्चित करना उचित नहीं समझता 

(1) माँग में परिवर्तन न होने पर पूर्ति का उसके अनुरूप बने रहना आवश्यक नहीं है।

(2) माँग की लोच में परिवर्तन होने से कीमत उत्पादन व्यय से नीचे गिर सकती है। अत: एकाधिकार के अन्तर्गत मूल्य-निर्धारण की दो मान्य विधियाँ हैं I. प्रो० मार्शल की भूल तथा जाँच विधि अथवा नव परम्परागत विधि। 

II. श्रीमती जोन रोबिन्सन द्वारा प्रतिपादित सीमान्त आय तथा सीमान्त लागत की विधि अथवा आधुनिक विधि।

I. भूल तथा जाँच विधि (Trial and Error Method) 

प्रो० मार्शल के अनुसार एकाधिकारी को अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए भूल तथा जाँच विधि को अपनाना चाहिए। इस विधि के अनुसार एकाधिकारी को अपनी वस्तु के मूल्य तथा उसकी मात्रा में अनेक बार परिवर्तन करके आय की मात्राओं की तुलना करनी चाहिए एवं जिस मूल्य अथवा जिस मात्रा पर उसे अधिकतम लाभ की प्राप्ति हो, वह मूल्य अथवा मात्रा निर्धारित करनी चाहिए। जब तक अधिकतम लाभ की प्राप्ति न हो, उस समय तक उसे निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिए

प्रो० मार्शल के अनुसार मूल्य-निर्धारण के समय प्रायः एकाधिकारी दो बार ध्यान केन्द्रित करता है 

1. माँग की दशाएँ तथा  

2. पूर्ति की दशाएँ। 

1. माँग की दशाएँ (Conditions of Demand)

-इस सम्बन्ध में , स्थितियाँ हो सकती हैं 

(i) वस्तु की माँग अत्यधिक लोचदार-इसका अभिप्राय यह है थोड़ी-सी वृद्धि होने पर माँग में अत्यधिक कमी आ जाए अथवा कीमत में थोडी पर माँग में अत्यधिक वृद्धि हो जाए। ऐसी दशा में एकाधिकारी का हित इसमें होगा कि की नीची कीमत निर्धारित करे और अधिकतम कुल लाभ प्राप्त करे क्योंकि यदि ऐसी एकाधिकारी अपनी वस्तु की ऊँची कीमत निर्धारित करता है तो वस्तु की मांग सकती है, जिसमें एकाधिकारी को वांछनीय लाभ प्राप्त नहीं हो सकेगा।

(ii) वस्तु की माँग बेलोचदार हो—इसका अभिप्राय यह है कि कीमत में परिजन माँग पर कोई उल्लेखनीय प्रभाव न पड़े। ऐसी दशा में एकाधिकारी को अधिकतम लाप करने के लिए ऊँचा मूल्य निर्धारित करना चाहिए। Bcom 1st Year monopoly meaning in hindi

2. पूर्ति की दशाएँ (Conditions of Supply)

पूर्ति की दशाओं में ध्यान र पड़ता है कि उत्पादन उत्पत्ति के किस नियम के अन्तर्गत हो रहा है। 

इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ सम्भव हैं 

(i) क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम की दशा-इस दशा में उत्पादन में वृद्धि होने पर लागत में वृद्धि होगी, अत: एकाधिकारी को वस्तु की पूर्ति कम करके प्रति इकाई अधिक कीमत निर्धारित करनी चाहिए, तभी उसे अधिकतम लाभ की प्राप्ति होगी। 

(ii) क्रमागत उत्पत्ति समता नियम की दशा-इस दशा के अन्तर्गत उत्पादन की मात्रा का लागत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, अतः इस दशा में वस्तु का मूल्य माँग की लोच के आधार पर निश्चित होगा। 

(iii) क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि नियम की दशा-इस नियम के लागू होने पर उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ लागत में कमी आती है, अत: अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए एकाधिकारी को बड़ी मात्रा में उत्पादन करके कम मूल्य पर वस्तु को बेचना चाहिए।

II. सीमान्त आय तथा सीमान्त लागत विधि (Marginal Revenue and Marginal Cost Method)

यह विधि अधिक उत्तम है। श्रीमती जोन रोबिन्सन तथा प्रो० नाईट आदि आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने इस विधि का प्रतिपादन किया है। श्रीमती जोन रोबिन्सन के शब्दों में—“एकाधिकारी उस बिन्दु पर अपनी वस्तु की कीमत निर्धारित करेगा, जहाँ उसकी सीमान्त आय (Marginal Revenue) सीमान्त लागत (Marginal Cost) के बराबर होगी, तभा उसे एकाधिकारी लाभ प्राप्त हो सकेगा।” अन्य शब्दों में, अधिकतम लाभ प्राप्ति के लिए सीमान्त आगम (MR) का सीमान्त लागत (MC) के बराबर होना आवश्यक है। 

एकाधिकार के अन्तर्गत माँग व पूर्ति की रेखाओं के सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि मांग रेखा अपूर्ण प्रतियोगिता की भाँति बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरती हुई होती है तथा सीमान्त आगम (Marginal Revenue) सदैव ही औसत आगम (Average Revenue) अर्थात् कीमत से कम होता है। जहाँ तक पूर्ति रेखाओं का प्रश्न है, पूर्ति रेखाएँ पूर्ण तथा अपूर्ण प्रतियोगिता जैसी ही होती हैं। समय की दृष्टि से एकाधिकार के अन्तर्गत मूल्य-निर्धारण की व्याख्या को दो भागों में बाँटा जा सकता है 

1. अल्पकाल (Short Period) तथा 2. दीर्घकाल (Long Period)। ..

1. अल्पकाल में मूल्य-निर्धारण (Determination of Value during Short period)-

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मूल्य-निर्धारण उसी बिन्दु के द्वारा निर्देशित होगा जहाँ सीमान्त आगम (MR) सीमान्त लागत (MC) के बराबर होगा। 

अल्पकाल में एकाधिकार के सम्बन्ध में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि एकाधिकारी इस अवधि में लाभ, हानि अथवा सामान्य लाभ, कुछ भी अर्जित कर सकता है। अन्य शब्दों में, अल्पकालीन मूल्य-निर्धारण में एकाधिकारी को लाभ भी प्राप्त हो सकता है, हानि भी हो सकती है तथा सामान्य लाभ (शून्य लाभ) भी। Bcom 1st Year monopoly meaning in hindi

टेक्नीकल शब्दों में, यदि औसत आगम अधिक है और औसत लागत कम है तो एकाधिकारी लाभ अर्जित करेगा। यदि औसत आगम कम तथा औसत लागत परस्पर बराबर हैं तो सामान्य लाभ की प्राप्ति होगी। यदि औसत आगम कम तथा औसत लागत अधिक है तो एकाधिकारी को हानि होगी। 


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