Thursday, November 21, 2024
Homeba 2nd year notesba 2nd year akbar history in hindi notes

ba 2nd year akbar history in hindi notes

ba 2nd year akbar history in hindi notes

अकबर का परिचय 

(Introduction of Akbar)

अकबर का जन्म 1542 ई० में अमरकोट नामक स्थान पर हुआ था। उसकी माता का – इमोदा बान बेगम तथा पिता का नाम हुमायूँ था। अकबर के जन्म के विषय में जामीन अहमद ने लिखा है-“हुमायूँ के पुत्र का जन्म 5 रज्जब, 949 (15 अक्टूबर, 152) को हुआ। अकबर के जन्म को सूचना तार्दीबेग खाँ ने अमरकोट के निकट हुमायूँ को दो सपाट ने लोगों को सलाह से बालक का नाम जलालुद्दीन अकबर रखा।” जिस समय अकबर का जन्म हुआ, उस समय हुमायूँ विपत्तियों से ग्रस्त था। वह शरणार्थी के रूप में इधर-उधर सहायता के लिए भटक रहा था, अतः वह अपनी विषम परिस्थितियों के कारण अकबर के जन्म की खुशी में पुरस्कार आदि भी न बाँट पाया। फिर भी उसने अपने साथियों में कस्तुरी के टुकड़े करके वितरित किए और कहा, “अपने पुत्र-जन्म के इस अवसर पर केवल यही मेंट मैं इस समय आप लोगों को दे सकता हूँ। मैं आशा और कामना करता हूँ कि जिस तरह इस खेमे में इस कस्तूरी की सुगंध फेल रही है, उसी तरह मेरे पुत्र का यश-सौरभ किसी दिन संसार भर में फैलेगा।”

ba 2nd year akbar history in hindi notes

अकबर का उत्कर्ष-हुमायूँ ने पंजाब पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् अकबर को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया तथा बैरम खाँ की अध्यक्षता में उसे पंजाब और गजनी का सूबेदार बना दिया गया। 1556 ई० में हुमायूँ की मृत्यु के बाद 14 वर्ष की अल्पआयु में अकबर सिंहासन पर बैठा। बैरम खाँ ने पंजाब के गुरदासपुर जिले के निकट कलानौर नामक स्थान पर अकबर का राज्याभिषेक करवाकर उसे भारत का बादशाह घोषित कर दिया। स्मिथ न लिखा है-“इस संस्कार से केवल हुमायूँ के पुत्र को हिन्दुस्तान के राजसिंहासन का उत्तराधिकार प्राप्त करने की घोषणा-मात्र हुई।” . 

अकबर की समस्याएँ 

(Problems of Akbar)

जिस समय अकबर सिंहासन पर बैठा उसके सम्मुख अनेक समस्याएँ थीं। इनका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है 

अकबर की तत्कालीन राजनीतिक समस्याओं का विवरण निम्न प्रकार है 

(1) अनुभवहीनता-जिस समय अकबर गद्दी पर बैठा, उस समय उसकी आयु के 14 वर्ष थी, राजनीतिक दाँव-पेचों एवं कार्य-प्रणाली से वह पूर्णतया अनभिज्ञ था और राजनीतिक कार्यों में अपने गुरु एवं संरक्षक बैरम खाँ पर आश्रित था। 

(2) उत्तर भारत में विरोध-इस समय भारत के उत्तरी भाग पर अनेक स्वतन्त्र राज्यो का आधिपत्य था; जैसे-पंजाब में सिकन्दर सूर, दिल्ली व आगरा पर हेमू, वर्तमान उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग पर मुहम्मद आदिलशाह सूर; अतः जिस समय अकबर गद्दी पर बैठा उस समय पंजाब के कुछ इलाकों को छोड़कर उसके अधीन कोई भी शक्तिशाली प्रान्त नहीं था। अपने साम्राज्य को विस्तृत करने के लिए उसका सूरवंशीय सरदारों से युद्ध करना अनिवार्य था। इसके साथ-साथ राजपूताने में राजपूत शासक भी अपनी शक्ति का विस्तार कर रहे थे और मालवा तथा गुजरात के शासक स्वतन्त्र हो गए थे। ba 2nd year akbar history in hindi notes

(3) दक्षिण-भारत में विरोध-दक्षिण में गोलकुण्डा, अहमदनगर, बीदर, बरार तथा बीजापुर आदि रियासतें स्वतन्त्र होकर अपना-अपना प्रभुत्व बढ़ा रही थीं। ये सभी रियासतें मुगलों की विरोधी थीं। 

(4) उत्तर-पश्चिमी प्रदेशों की समस्याएँ-इस समय सिन्ध व मुल्तान स्वतन्त्र हो गए थे तथा काबुल पर मिर्जा मोहम्मद हाकिम का अधिकार हो गया था। हुमायूं ने अपने कार्यकाल में बदख्शा पर अधिकार कर लिया था तथा वहाँ मिर्जा सुलेमान को काबुल का गवर्नर नियुक्त कर दिया था। किन्तु हुमायूँ की मृत्यु के बाद उसने अपने को स्वतन्त्र घोषित कर दिया था और काबुल पुनः फारस की अधीनता में चला गया था। 

(5) विदेशियों की समस्याएँ-भारत के पश्चिमी समुद्री तट पर पुर्तगालियों का अधिकार हो गया था तथा उनका इरादा गोवा तथा ड्यू पर अधिकार करके अरब तथा फारस की खाड़ी पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना था। इस प्रकार विदेशियों की समस्या भी अकबर के सामने एक जटिल समस्या थी। 

(6) आर्थिक समस्याएँ-अभी तक भारतीय जनता मुगलों को लुटेरा-मात्र समझती थी। अनेक युद्धों एवं सम्राटों की अपव्ययता के कारण देश की आर्थिक व्यवस्था बिगड़ चुकी थी और हिन्दुओं को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता था। उपजाऊ भूमि बरबाद हो गई थी और चारों ओर विनाशकारी अकाल फैला हुआ था। कई बार अकाल पड़ने के कारण आर्थिक संकट ने लोगों को भूखा मरने के लिए विवश कर दिया था। कई शहरों में फैले प्लेग ने स्थिति को और भी गम्भीर कर दिया। 

इन समस्याओं के होते हुए भी अकबर ने धैर्य से कार्य लिया। इन समस्याओं को हल करने के लिए उसके संरक्षक बैरम खाँ ने सदैव अपनी स्वामिभक्ति का परिचय दिया। ba 2nd year akbar history in hindi notes

अकबर की प्रारम्भिक उपलब्धियाँ 

(Early Achievements of Akbar)

(1) पानीपत का द्वितीय युद्ध (1556 ई०)-दिल्ली और आगरा पर अधिकार करने के लिए अकबर ने बैरम खाँ की सहायता से दिल्ली की ओर कूच कर दिया। 1556 ई० में पानीपत के मैदान में अकबर की सेना का सामना मुहम्मद आदिलशाह के वीर हिन्दू सेनापति हेमू से हुआ। इस संग्राम में पहले मुगलों की सेना के पैर उखड गए थे किन्तु बाद में एक तीर टेन की आँख में लग जाने से वह घायल हो गया। उसकी सेना उसे मरा हुआ जानकर भयभीत हो गई और भाग खड़ो हुई। इस घटना से मुगलों की पराजय विजय में बदल गई। हेमू को अकबर के सम्मुख लाया गया जहां उसका सिर बैरम खाँ ने काट दिया। इस प्रकार दिल्ली और आगरा पर अकबर का अधिकार हो गया। डॉ० आर० पी० त्रिपाठी ने लिखा है-“उसकी टेप को) पराजय एक दुर्घटना थी और अकबर की विजय दैवी संयोग से हुई थी।” 

(2)अफगानों पर विजय-1557 ई० में अकबर ने सिकन्दर सूर को परास्त कर दिया। दूसरी ओर मुहम्मदशाह आदिल भी बंगाल के विरुद्ध युद्ध करते हुए मारा गया। इस प्रकार अकबर को अपने अफगान शत्रुओं से मुक्ति मिल गई। ba 2nd year akbar history in hindi notes

(3) बैरम खाँ का पतन-बैरम खाँ बदख्शाँ का रहने वाला था। बैरम खाँ सदैव ही हमा व अकबर के प्रति स्वामिभक्त रहा। 1540 ई० में हुमायूँ एवं शेरशाह के मध्य हुए कन्नौज के युद्ध मे बैरम खाँ को बन्दी बना लिया गया था, किन्तु वह वहाँ से भाग निकला था। कठिनाइयों में वह सदैव हुमायूँ का साथी रहा तथा उसी के प्रयासों से ईरान के शाह ने हुमायूँ को सहायता प्रदान को, जिससे पुन: भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना हो सकी। बैरम खाँ ने ही अकबर को दिल्लो व आगरा की विजय में सहयोग दिया तथा पंजाब, अजमेर, ग्वालियर, जौनपुर आदि प्रदेशों को मुगल साम्राज्य के अधीन किया था। यद्यपि बैरम खाँ महान स्वामिभक्त था. किन्तु कुछ ऐसे कारण थे जिनके फलस्वरूप अकबर को इस महान स्वामिभक्त, अपने गुरु और संरक्षक को राज्याधिकारों से वंचित करने का निर्णय लेना पड़ा। ये कारण निम्नलिखित 

(1) बैरम खाँ के पतन का मुख्य कारण अन्तःपुर (शाही रनिवास या हरम) का षड्यन्त्र था, क्योंकि हमीदा बानू बेगम, अकबर की धाय माता माहमअनगा व माहमअनगा के पुत्र आधम खाँ, माहमअनगा को लड़की व दामाद ने बैरम खाँ के विरुद्ध अकबर के कान भरे थे, क्योंकि ये सभी बैरम खाँ से घृणा करते थे। 

(2) बैरम खाँ शिया मत का अनुयायी था, किन्तु अकबर एवं उसके दरबार के अन्य सरदार कट्टर सुन्नी मुसलमान थे। ये सरदार बैरम खाँ के बढ़ते हुए प्रभुत्व से ईर्ष्या करने लगे थे।

(3) बैरम खाँ अकबर पर भी अपना अनुचित प्रभाव जमाना चाहता था; अत: वह सम्राट के नौकरों को भी कठोर दण्ड देने से नहीं हिचकता था, जिसके कारण अकबर भी उससे तंग आ गया था। अबुल फजल ने लिखा था-“उसका व्यवहार बर्दाश्त से बाहर हो गया था और उसका दिमाग उसके चाटुकारों ने खराब कर दिया था।” 

(4) बैरम खाँ राज्य के शिया सम्प्रदाय के मानने वाले व्यक्तियों एवं अपने चाटुकारों को उच्च पद प्रदान करता था। उसके द्वारा शेख गदायी नाम के एक शिया को सदरे-सदर के महत्त्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया जाना, दरबार के सुन्नी सरदारों को अपनी धार्मिक भावनाओं पर प्रहार लगा।

(5) हुमायूँ की मृत्यु के बाद तार्दीबेग ने दिल्ली पर मुगलों के आधिपत्य को बनाए रखा, किन्तु हेमू की शक्ति से भयभीत होकर उसे दिल्ली छोड़कर भागना पड़ा। दिल्ली छोड़ने के अपराध में बैरम खाँ ने उसका वध करवा दिया था। उसके इस कार्य से बैरम खाँ का विरोध बढ़ गया था। 

(6) वह यद्यपि साम्राज्य के प्रति तो निष्ठावान था, परन्तु उसका स्वभाव अत्यधिक क्रोधी आर ईर्ष्यालु था। प्रायः क्रोध में वह ऐसे निर्णय ले लिया करता था जो अकबर को भी मान्य नहीं होते थे

more read

ba 2nd year akbar history in hindi notes

Admin
Adminhttps://dreamlife24.com
Karan Saini Content Writer & SEO AnalystI am a skilled content writer and SEO analyst with a passion for crafting engaging, high-quality content that drives organic traffic. With expertise in SEO strategies and data-driven analysis, I ensure content performs optimally in search rankings, helping businesses grow their online presence.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments