Friday, December 20, 2024
Homeba 2nd year notesba 2nd year mughal historiography notes

ba 2nd year mughal historiography notes

ba 2nd year mughal historiography notes

मुगल इतिहास लेखन 

(Mughal Historiography)

सल्तनत युग में भारत के मुस्लिम इतिहास लेखन में काफी प्रगति हुई, परन्तु इस लेखन कला को प्रोत्साहन तो मुगल काल में ही मिला। मुस्लिम इतिहास लेखन, जिसे इस्लामी इतिहास लेखन भी कहा जाता है, के दो मुख्य आधार थे-कुरान और हदीस। इसके साथ ही मुस्लिम इतिहासकारों की विशेषता थी, प्रमाणों के साथ घटनाओं का विस्तारपूर्वक उल्लेख करना। 

मुस्लिम इतिहास लेखन कला प्रारम्भिक मुगलकाल में ईरानी संस्कृति से प्रभावित थी। दिल्ली के सुल्तान अपने इतिहासकारों से ईरानी परम्पराओं एवं अवधारणाओं पर इतिहास लेखन की आशा करते थे। सल्तनतकालीन इतिहासकारों में केवल हसन निजामी इसका अपवाद था। वह इतिहास की भाषा अरबी मानता था, जिसमें मूल कुरान की रचना की गई थी, फिर भी हसन निजामी और मिनहाज उस सिराज जैसे इतिहासकार अपने इतिहास लेखन में ईरानी परम्परा का अनुसरण करते रहे। सर्वप्रथम जियाउद्दीन बरनी ने इस परम्परा से कुछ हटकर इतिहास लेखन किया। उसने अपने ग्रन्थ तारीख-ए-फिरोजशाही में सूफी सन्तों, विद्वानों तथा कुछ सामान्य वर्ग के लोगों का भी उल्लेख किया है। इसी प्रकार विहामद खानी ने अपनी रचना में समकालीन कृतियों, साहित्यकारों तथा धार्मिक व्यक्तियों का विवरण दिया है। इस परम्परा की पूर्ण परिणति हमें मुगल काल में दृष्टिगत होती है। सर्वप्रथम मुगलकालीन इतिहासकार अबुल फजल के इतिहास लेखन में यह तार्किक उपागम देखने को मिलता है। यहीं से मुगल इतिहास लेखन कला में अरबी और ईरानी इतिहास लेखन की परम्पराओं और शैलियों का समन्वय होता है। धीरे-धीरे मूल भारतीय लेखन कला की परम्पराएँ भी मुगल इतिहास लेखन में मिश्रित हो जाती हैं। इस प्रकार मुगलकालीन इतिहास लेखन में इस्लामी, ईरानी और हिन्दुस्तानी परम्पराओं का मिश्रण हो गया। इस प्रकार मुगल इतिहास लेखन कला के तीन प्रमुख उपागम हैं-इस्लामी शैली, ईरानी शैली और मूल भारतीय शैली। 

मुगल इतिहास लेखन की विशेषताएँ 

(Features of Mughal’s Historiography)

मुगल इतिहास लेखन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 

(1) मुगल काल में जिस सांस्कृतिक समन्वय की प्रक्रिया लेखन में भी मिलती है। सास्कृतिक समन्वय की प्रक्रिया आरम्भ हुई, वह मुगल इतिहास 

(2) मुगल इतिहास लेखन में राजनीतिक घटनाओं का विस्तृत विवरण दिया जाने लगा।

(3) इस काल के इतिहास लेखन में तिथिक्रम पर विशेष बल दिया जाने लगा। 

(4) इस काल के इतिहास लेखन में समकालीन विवरणों के साथ ही इतिहासकारों ने अपने व्यक्तिगत विचार तथा भावनाएँ भी प्रकट करने का प्रयास किया है। का (5) इस काल के इतिहासकारों पर दरबारी प्रभाव भी देखने को मिलता है। 

(6) बाबर तथा जहाँगीर जैसे मुगल बादशाहों ने इतिहास में गहरी रुचि ली। इससे ऐतिहासिक चेतना का विकास हुआ।

(7) अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ आदि बादशाहों ने अपना इतिहास लिखवाने के लिए इतिहासकारों को नियुक्त किया और उन्हें विशेष सुविधाएँ प्रदान की। इस प्रकार के इतिहासकारों में अबुल फजल, मुतामिद खाँ, अब्दुल हमीद लाहौरी आदि का नाम उल्लेखनीय है।

(8) मुगल काल में कुछ ऐसे भी इतिहासकार हुए, जिन्होंने सम्राट की आलोचना की और घटनाओं का निष्पक्ष वर्णन करने का प्रयास किया। लेकिन इनके इतिहास पर पक्षपात का आरोप भी लगाया जाता है। अब्दुल कादिर बदायूँनी तथा खफी खाँ ऐसे ही इतिहासकार माने जाते हैं। 

(9) मुगल काल में निजामुद्दीन अहमद (तबकात-ए-अकबरी) जैसे तटस्थ इतिहासकार भी हुए, जिन्होंने गैर-सरकारी इतिहासकार होते हुए भी प्रामाणिक इतिहास लिखा है। 

(10) इस काल में तुजुके बाबरी और तुजुके जहाँगीरी जैसी आत्मकथाएँ भी लिखी गईं। 

(11) मुगल काल में साधु-सन्तों तथा कवियों की जीवनियों के अतिरिक्त अमीरों की जीवनियाँ भी लिखी गईं। शाहनवाज खाँ कृत ‘मासिर-उल-उमरा’ ऐसी ही रचना है। 

(12) मुगल इतिहास लेखन में अरबी और ईरानी शैलियों का सम्मिश्रण हुआ है। यही कारण है कि इस युग के इतिहास लेखन में जहाँ शाही शान-शौकत है, वहीं जनसाधारण की बातें भी हैं। 

(13) मुगलकालीन ऐतिहासिक रचनाएँ अपने दरबारी स्वरूप के कारण जीवनगाथाओं जैसी प्रतीत होती हैं, जिनमें राजनीतिक तथा सैनिक नेताओं-अभिजात वर्ग के लोगों शहजादों, मन्त्रियों तथा विशिष्ट व्यक्तियों के कार्य-कलापों तथा उपलब्धियों का उल्लेख मिलता है। 

(14) मुगल काल में इतिहास की महत्ता में आशातीत वृद्धि हुई। इसी कारण अनेक गैर-दरबारी इतिहासकारों ने दरबारी इतिहासकारों की अनावश्यक चापलूसी की कलई भी खोली है। 

(15) मुगल काल में दरबारी और गैर-दरबारी इतिहास लेखन के अतिरिक्त आत्मकथा, संस्मरण, अध्यादेश, अधिपत्र, निजी पत्र एवं समकालीन साहित्य के साथ प्रचुर मात्रा में क्षेत्रीय एवं स्थानीय लेखन में भी समसामयिक इतिहास की रचना हुई। इन रचनाओं से ही हमें मुगलकाल के इतिहास का वस्तुपरक ज्ञान प्राप्त होता है। 

‘तुजुक-ए-बाबरी’ या ‘बाबरनामा’ 

(Tuzuk-e-Baburi Or Baburnama)

मुगल काल का प्रथम महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थ सम्राट बाबर द्वारा लिखा गया था। इस ग्रन्थ को ‘तुजुक-ए-बाबरी’, ‘वाक्यात-ए-बाबरी’ और ‘बाबरनामा’ नामों से पुकाराः जाता है। यह ग्रन्थ, वास्तव में बाबर की आत्मकथा है, जो उसने तुर्की भाषा में लिखी थी। 

Admin
Adminhttps://dreamlife24.com
Karan Saini Content Writer & SEO AnalystI am a skilled content writer and SEO analyst with a passion for crafting engaging, high-quality content that drives organic traffic. With expertise in SEO strategies and data-driven analysis, I ensure content performs optimally in search rankings, helping businesses grow their online presence.
RELATED ARTICLES

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments