Friday, November 29, 2024
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Bcom 1st year meaning of e-commerce

Bcom 1st year meaning of e-commerce

ई-कॉमर्स से आशय 

(Meaning of e-commerce) –

आज समाज के प्रत्येक क्षेत्र में सूचना क्रान्ति की तीव्रता स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। प्रशासनिक तन्त्र तथा व्यापारी जगत पर इसका प्रभाव विशेष रूप से परिलक्षित होता है। इस प्रौद्योगिकी ने व्यावसायिक, व्यापारिक, वाणिज्यिक गतिविधियों में दखल देकर अर्थव्यवस्था को . एक नया आयाम ‘ई-कॉमर्स’ के रूप में दिया है। 

ई-कॉमर्स’ में ‘ई’ से अभिप्राय ‘इलेक्ट्रॉनिक’ और ‘कॉमर्स’ से अभिप्राय ‘व्यापारिक लेन-देन’ से है। 

‘ई-कॉमर्स’ के प्रयोग ने सूचना प्रौद्योगिकी व उन्नत कम्प्यूटर नेटवर्क की सहायता से व्यापारिक एवं व्यावसायिक गतिविधियों को अत्यन्त कार्यकुशल बनाया है। ‘ई-कॉमर्स’ ने कागजों पर आधारित पारस्परिक वाणिज्यिक पद्धतियों को अत्यन्त समर्थ व विश्वसनीय संचार माध्यमों से युक्त कम्प्यूटर नेटवर्क द्वारा विस्थापित करने का महत्त्वाकांक्षी प्रयास किया है। 

ई-कॉमर्स की कार्य-पद्धति  

(Mechanism of e-commerce)

ई-कॉमर्स प्रणाली का मुख्य आधार ‘इलेक्ट्रॉनिक डाटा-इण्टरचेंज’ है, जिसके अन्तर्गत आँकड़ों को परिवर्तित तथा स्थानान्तरित करने की सुविधा होती है। इस प्रणाली के अन्तर्गत ग्राहक जब वेबसाइट पर उपलब्ध सामान को पसन्द करके क्रय करता है तो उसे भूगतान के लिए कम्प्यूटर पर उपलब्ध एक फार्म भरना होता है। इस फार्म पर वह अपना क्रेडिट कार्ड नं०, देय राशि व पाने वाले व्यक्ति का नाम आदि सूचनाओं को अंकित करता है। इस फार्म के भरते ही व्यक्ति/ग्राहक के खाते में से उचित धनराशि विक्रेता के खाते में स्थानान्तरित हो जाती है। E.D.C. के अन्तर्गत ही वर्तमान समय में एक नई प्रणाली विकसित की गई है, जिसमें क्रेता कम्प्यूटर पर अपने डिजिटल हस्ताक्षर कर चैक काट सकने में भी सक्षम होता है। इसे ‘नेट चैक’ कहते हैं। 

ई-कॉमर्स के प्रकार 

(Types of e-commerce)

ई-कॉमर्स के तीव्र प्रसार के कारण इसके प्रकारों को अनेक वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है, लेकिन प्रचार की तीव्रता के अनुसार इसके निम्नलिखित तीन प्रकारों को अधिक मान्यता प्राप्त हुई है 

  1. बी-टू-बी (Business to Business),
  2. सी-टू-बी (Consumer to Business) तथा
  3. आन्तरिक खरीद (Internal Procurement)। 

1. बी-टू-बी (Business to Business)-

‘बिजनेस-टू-बिजनेस’ ई-कॉमर्स व्यापार की विभिन्न गतिविधियों को सुचारु रूप से एवं तीव्रता से निष्पादित करने हेतु उचित वाटावरण तैयार करने में मददं करने के साथ-साथ खर्चों में भी कटौती हेतु काफी कारगर है। “रनेट के आविष्कार से पूर्व भी इस प्रकार की गतिविधियाँ व्यापारिक जगत में प्रचलित थीं “पि उनमें आज के जैसे विस्तृत आयामों का अभाव था। इण्टरनेट के आविष्कार के द्वारा व्यापारिक संस्थाओं ने तकनीक के क्षेत्र में उच्चता की अभिप्राप्ति की है तथा कार्य-व्यापार का निष्पादन भी निर्बाध रूप से सुधरा है।

सी-टू-बी (Consumer to Business)-

ई-कॉमर्स का यह प्रकार वेबसाइट व उन पर उपलब्ध सॉफ्टवेयर ‘क्रेता’ के नजरिए में विभिन्न प्रकार की भुगतान विधियाँ उपलब्ध करा देने में सक्षम होता है। ई-कॉमर्स का यह प्रकार मुख्यत: टेली शॉपिंग, मेल जाडर, टेलीफोन ऑर्डर इत्यादि का विस्तार–मात्र है। इस माध्यम से उपभोक्ता अपनी “वश्यकता को इण्टरनेट के द्वारा विक्रेता तक पहुँचाता है तथा तदनुरूप विक्रेता कार्यवाही कर क्रेता के अनगामी पग उठाता है। इस समस्त प्रक्रिया में इण्टरनेट तथा उससे सम्बनिभाः कम्प्यूटरों की विशेष भूमिका होती है। इस प्रकार अब यह क्रय-विक्रय का सर्वाधिक उपय साधन होता जा रहा है। 

आन्तरिक खरीद (Internal Procurement)-

अधिकांश कम्पनियाँ अपने ‘एण्टरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग’ को वेबसाइट से जोड़कर वाणिज्यिक गतिविधियाँ कर रही इन सभी कम्पनियों का प्रमुख उद्देश्य ई-कॉमर्स द्वारा व्यापारिक प्रतिष्ठानों की सीमाओं से पी आन्तरिक व्यापारिक गतिविधियों को स्वचालित बनाने का है। ये इण्टरनेट पर बिक्री ऑर्जी की प्रोसेसिंग/बिल्डिंग/धन का लेन-देन व अन्य सम्बन्धित कारोबार अपने खर्चों में कटौती करने के लिए करती हैं। इण्टरनेट की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि सूचना के इस अकूत और अनमोल खजाने की चाबी किसी एक आदमी या कम्पनी की मुट्ठी में कैद नहीं है। इस तक वह हर व्यक्ति पहुँच सकता है, जिसके पास एक कम्प्यूटर, एक मॉडम और एक टेलीफोन है। 

ई-कॉमर्स के लाभ

(Advantages of e-commerce)

ई-कॉमर्स से अनेक लाभ हैं। इन लाभों की एक विस्तृत श्रृंखला है। व्यवसाय के क्षेत्र से सम्बन्धित इसके लाभ दो प्रकार के हो सकते हैं—प्रथम, उपभोक्ताओं को होने वाला लाभ तथा द्वितीय, विक्रय संस्थाओं को होने वाला लाभ। बिन्दुवार इन लाभों को निम्नलिखित क्रम में रखा जा सकता है

(क) उपभोक्ताओं को लाभ (Advantages to consumers) 

(1) वांछित वस्तुओं व सेवाओं के चयन में सुविधा।

(2) बिल का भुगतान स्वत: ही विक्रेता के पक्ष में हो जाना।

(3) उत्पादों की विशेषताओं व मूल्यों का तुलनात्मक अध्ययन

(4) बिचौलियों की क्रियाविधि की पूर्णतः परिसमाप्ति।

(5) किसी भी समय वस्तुओं को क्रय करने की सुविधा।

(6) क्रय-विक्रय हेतु बाजार में बारम्बार आवागमन से मुक्ति। 

(7) किसी भी वस्तु की खरीद में प्राप्त छूटों की जानकारी का लाभ।

(ख) विक्रेताओं/कम्पनियों को लाभ (Advantages to Vender/Companies) 

(1) उत्पादकों, वितरकों तथा व्यापारिक सहयोगियों में व्यापारिक सूचनाओं का आदान-प्रदान व व्यापारिक खर्चों में कटौती। ..

(2) नए बाजारों व ग्राहकों तक पहुँचने में आसानी। 

(3) दस्तावेजों में समंकों की शुद्धता। 

(4) व्यापार चक्र की गतिविधियों में तीव्रता।

(5) कागज की खपत में कमी।

(4) विक्रेताओं के लिए नए उत्पादों की जानकारी तथा आवाजाही की सुविधा।

(5) नए उत्पादों, वस्तुओं और सेवाओं को सम्मिलित करने में सुधार।समग्र गुणवत्ता के कारण गणितीय त्रुटि का लगभग पूर्ण अभाव।

(6) व्यापारिक आदान-प्रदान के निमित्त विक्रेता को अधिक समय मिलना। 

भारत में ‘ई-कॉमर्स का भविष्य 

(Future of e-commerce in India)

‘ई-कॉमर्स’ ने वाणिज्य एवं व्यापार को एक नए ढंग से करने के लिए वातावरण बनाया है, जिसमें बढ़ोतरी होने की शत-प्रतिशत सम्भावना है। व्यापारिक लेन-देन व व्यापारिक गतिविधियों को कुशलता से सम्पादित करने हेतु उचित वातावरण व तालमेल व्यावसायिक सफलता के लिए आवश्यक होगा। 

आज भारत ई-कॉमर्स की अधिकांश सुविधाओं से सम्पन्न हो चुका है। इसकी सुचारुता बनी रहे, इसके लिए केन्द्रीय सरकार ने 2000 ई० में एक ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम’ पारित कर दिया है। इस प्रकार के शासकीय अधिनियम अभी कुछ विकसित राष्ट्रों में ही पारित किए जा सके हैं। ई-कॉमर्स पर व्यापार सम्बन्धी अभिलेखों को न्यायालय में भी साक्ष्य अधिनियम के अन्तर्गत मान्यता प्राप्त हो गई है। इन अभिलेखों को न्यायालय में प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। इन समस्त बिन्दुओं पर विचार करने पर सहज रूप से ही यह कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में ई-कॉमर्स का कार्य-क्षेत्र अधिक विस्तार ग्रहण करेगा तथा निश्चित रूप से भारत में इसका भविष्य सुरक्षित तथा उज्ज्वल है 


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