Thursday, November 21, 2024
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आय का मिलाना तथा मानी गयी आयें

Clubbing of Income & Deemed Income

आय का मिलाना’– सामान्यतया एक करदाता अपनी आय पर ही आय- कर देने को दायी होता है, किन्तु कुछ दशाओं में वह दूसरों की आय पर भी आय-कर देने को बाध्य होता है । यद्यपि इससे आय-करअधिनियम के इस सामान्य सिद्धान्त कि ‘प्रत्येक करदाता अपनी आयों पर ही . कर देने को दायी है’, का उल्लंघन होता है। आय-कर करदाता की आयों पर बढ़ती हुई दरों लगाया जाता है, क्योंकि ज्यों-ज्यों करदाता की आय बढ़ती है, उस पर आय-कर बढ़ा हुइ दरों से लागू होने लगता है। इस प्रकार, आय बढ़ने से करदाता को दोहरा नुकसाना होता है प्रथम, तो यह आय बढ़ने से आय-कर अधिक देना पड़ेगा; द्वितीय, आय-कर बढ़ी दर से देना पड़ेगा, अतः प्रत्येक करदाता का यह प्रयास रहता है कि वह अपनी कुल आय को एक निश्चित सीमा में बढ़ने न दे। इसके लिए वह अपनी आयों का हस्तान्तरण अपनी पत्नी तथा बच्चों आदि के पक्ष में करता है ताकि आयों का अधिक व्यक्तियों में विभाजन हो तथा प्रत्येक को आय की न्यूनतम सीमा’ की छूट प्राप्त हो एवं साथ-ही-साथ कम दर से आय-कर दायित्व उत्पन्न हो । करदाता के इस प्रयास को ‘कर-बचाव’ (Tax-avoidance) कहा जाता है । इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए आय-कर अधिनिमय की धाराएँ 60से 64 तक महत्त्वपूर्ण हैं। इन धाराओं के प्रभाव से कुछ अन्य व्यक्तियों की आयें करदाता की आय मानी जायेंगी तथा करदाता की आय में जोड़कर उन पर आय-कर लगाया जायेगा। दूसरे व्यक्तियों की ऐसी आयें, जो करदाता की आय में जोड़ी जाती हैं, ‘मानी गई आयें’ (Deemed income) कही जाती हैं और इस आय को करदाता की आय में जोड़ने की प्रक्रिया को ‘आय का मिलाना’ (Clubbing of income) कहा जाता है। bcom 2nd year clubbing of income notes

एक व्यक्ति की कुल आय में जोड़ी जाने वाली आयें

 अन्य व्यक्तियों की आय जो करदाता की कुल आय में शामिल की जाती है।

(धाराएं 60 से 65 तक) (1) सम्पत्ति का हस्तान्तरण किये बिना आय का हस्तान्तरण-यदि कोई व्यक्ति अपनी किसी सम्पत्ति की आय किसी अन्य व्यक्ति को हस्तान्तरित कर देता है परन्तु उस सम्पत्ति के स्वामित्व का हस्तान्तरण नहीं करता है तो ऐसी आय हस्तान्तरण करने वाले (Transferor) की आय मानी जायेगी।

(धारा 60) उदहारण-मिस्टर A अपनी दो कारें टैक्सी के रूप में चलाते हैं और उन्होंने उनकी आय प्राप्त करने का अधिकार अपने मित्र मिस्टर B को दे दिया है किन्तु टैक्सियों का स्वामित्व मिस्टर A का ही बना रहता है। यहाँ मिस्टर B को टैक्सियों से प्राप्त आय मिस्टर A का आय मानी जाएगी।

(2) सम्पत्तियों का खण्डनीय हस्तान्तरण-खण्डनीय हस्तान्तरण के अन्तर्गत सम्पत्ति से आय हस्तान्तरण करने वाले की आय मानी जायेगी और उसी की कल जोड़ी जायेगी।

उदाहरण-मिस्टर A ने अपना मकान मिस्टर B के नाम 4 वर्ष के लिए कर दिए इसका किराया भी मिस्टर B को प्राप्त हुआ। किराये की यह आय मिस्टर A की आय जाएगी।

अखण्डनीय हस्तान्तरण-सम्पत्तियों के अखण्डनीय हस्तान्तरण की दशा में उससे से आय उस व्यक्ति की मानी जायेगी जिसको हस्तान्तरण हुआ है।

(3) जीवन-साथी की आय (Income ofSpouse)- जीवन-साथी से आ पति-पलि से है। पति के लिए उसकी पत्नी जीवन-साथी है तथा पत्नी के लिए उसका उसका जीवन-साथी है। एक व्यक्ति की कुल आय में उसके जीवन-साथी की निम्नलिमि आयें शामिल की जाती है।

(अ) एक व्यक्ति के जीवन साथी को एक ऐसी व्यापारिक संस्था से मिला हुआ कमीशन, फीस अथवा अन्य किसी प्रकार का पारिश्रमिक जिसमें उस व्यक्ति का सारवान है । सारवान हित वाले व्यक्ति की कुल आय में जीवन साथी का ऐसा पारिश्रमिक शामिल होगा। अपवाद यदि उपर्युक्त प्रकार का पारिश्रमिक का भुगतान जीवन साथी की तकनीक अथवा पेशेवर योग्यता (Professional qualification) के कारण हुआ हो तो जीवन-साथी को दिया गया ऐसा पारिश्रमिक उस व्यक्ति (जीवन-साथी) की आय में शामिल नहीं किया जायेगा जिसका उस व्यापार में सारवान हित हैं। [धारा 64(1)

(ii) सारवान हित-कम्पनी की दशा में किसी व्यक्ति का किसी कम्पनी में सारवान हित तब माना जाएगा जबकि उस व्यक्ति अथवा उसके रिश्तेदारों के पास कुल मिलाकर कम-से-कम 20% मताधिकार वाले अंश गत वर्ष में उस कम्पनी में किसी भी समय रहे हों। bcom 2nd year clubbing of income notes

__ अन्य किसी दशा में (एकल स्वामी, फर्म, आदि)-उस व्यक्ति का सारवान हित तब माना जायेगा जबकि उस संस्था के लाभों का कम-से-कम 20% भाग गत वर्ष में किसी भी समय यह व्यक्ति तथा उसके रिश्तेदार मिलाकर पाने के अधिकारी है।

यदि किसी संस्थान में पति एवं पत्नी दोनों का सारवान हित हो तथा दोनों उस संस्थान से वेतन, कमीशन, फीस आदि प्राप्त करते हैं तो इस संस्थान से प्राप्त वेतन आदि को एक ही जीवन-साथी की कुल आय में शामिल किया जाएगा और वह भी उस जीवन-साथी की कुल आय में शामिल होना जिसकी कुल आय (उसे संस्थान से प्राप्त आय को छोड़कर) दोनों में अधिक हो।

(4) पुत्र-वधू की आय-पुत्र-वधू को बिना पर्याप्त प्रतिफल के बदले में 31-5-1973 के बाद हस्तान्तरण की गई सम्पत्ति से आय करदाता की कुल आय में शामिल की जायेगी।

(5) जीवन-साथी या पुत्र-वधू के लाभार्थ किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के संघ को सम्पत्ति का हस्तान्तरण-31 मई, 1973 के बाद करदाता द्वारा अपनी कोई सम्पत्ति यदि बिना पूरा प्रतिफल लिए किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के संघ को हस्तान्तरित की जाती है तो ऐसा जन से प्राप्त आय हस्तान्तरकर्ता की आय में उस सीमा तक शामिल होगी जहाँ तक ऐसी आय उसके जीवन साथी या पुत्र-वधू के तत्काल या भावी हित के लिए हो।

(6) अवयस्क बच्चे की आय-अवयस्क बच्चे की आय उसके माता-पिता की आय में शामिल होगी तथा प्रत्येक अवयस्क बच्चे के लिए 1,500 रु० प्रति बच्चा तक की शामिल की गई आय कर-मुक्त होगी।

किसी माता-पिता की आय में अवयस्क बच्चे की आय को शामिल करने के नियम निम्न हैं :

(i) यदि माता-पिता के वैवाहिक सम्बन्ध ठीक बने हुए हों तो जिसकी (माता या पिता) – आय अधिक हो;

(ii) यदि माता-पिता के वैवाहिक सम्बन्ध अब न रहे हों तो जो माता या पिता गत वर्ष में आवश्यक बच्चे का भरण-पोषण करता हो। bcom 2nd year clubbing of income notes

अपवाद-अवयस्क बच्चे की निम्न आय माता व पिता की आय में शामिल नहीं होगी, . वरन् उसकी आय की पृथक् से गणना की जायेगी। :

(i) अवयस्क द्वारा शारीरिक श्रम करने से आय;

(ii) अवयस्क द्वारा कोई ऐसा काम करने से आय जिसमें उसकी कला, बुद्धि अथवा विशिष्ट योग्यता, अनुभव अथवा ज्ञान का प्रयोग होता हो;

(iii) यदि अवयस्क बच्चा शारीरिक रूप से विकलांग (अन्धेपन सहित) है अथवा मानसिक अपंगता अथवा मन्द बुद्धि से पीड़ित है तो उसकी आय ।

(7) व्यक्तिगत सम्पत्ति का अपनी सदस्यता वाले अविभाजित हिन्दू परिवार में हस्तान्तरण अथवा सम्पत्ति का परिवर्तन-यदि कोई व्यक्ति 31 दिसम्बर, 1969 के बाद अपनी व्यक्तिगत अथवा स्वयं उपार्जित सम्पत्ति बिना पर्याप्त प्रतिफल के अपनी सदस्यता वाले हिन्दू अविभाजित परिवार को हस्तान्तरण कर देता है तो उस सम्पत्ति से आय इस व्यक्ति की आय मानी जायेगी न कि परिवार की आय।

(8) बेनामी व्यवहार (Benami Transactions)-जब कोई व्यक्ति कर बचाने के उद्देश्य से कोई व्यवहार वास्तविक व्यक्ति के नाम में न करके किसी अवास्तविक व्यक्ति के नाम में करता है तो ऐसे व्यवहार को बेनामी है तो वह उस व्यवहार की आय वास्तविक व्यक्ति की आय मान सकता है और उसी से उस व्यवहार की आय पर कर लिया जायेगा।

आय का संकलन

Aggregation of Income

धारा 2 (45) के अनुसार, कुल आय से तात्पर्य उस आय से है जिस पर एक करदाता आय-कर चुकाने को दायी है तथा जिसकी गणना आय-कर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार की गई है। इस प्रकार एक करदाता की कुल आय में सामान्यतया ऐसी आयें ही जोड़ी जाती हैं जिन पर आय-कर लगता है। किन्तु कभी ऐसी आयें भी करदाता की कुल आयों में जोड़ी जाती हैं जिन पर आय-कर नहीं लगता। करदाता की कुल आय में ऐसी आयों को सम्मिलित करने की प्रक्रिया को ही ‘आय का संकलन’ (Aggregation of income) कहा जाता।

धारा 66 के अनुसार, एक करदाता की कल आय की गणना करते समय ऐसी आर्य भी उसकी आय में जोड़ी जाती हैं जिन पर आय-कर नहीं लगता। धारा 86 के अनुसार, ऐसी आय व्यक्तियों के संघ’ (Association of persons) या ‘व्यक्तियों के जन-मण्डल’ (Body of individuals) की सदस्यता से करदाता को प्राप्त लाभ का भाग या अन्य पारिश्रमिः आदि हैं। इस सम्बन्ध में अग्रलिखित प्रवावधान हैं –

(1) यदि व्यक्तियों के संघ’ या व्यक्तियों के जन-मण्डल’ ने अपनी आय पर आय. चुकाया (या चुकाना) है तो ऐसे संघ या ‘जन-मण्डल’ की सदस्यता से करदाता को प्राप्त होने वाला लाभ एवं अन्य पारिश्रमिक तथा भुगतान (वेतन, ब्याज, बोनस, कमीशन आदि) उसकी कुल आय में जोड़ा जायेगा। किन्तु ऐसी आय के सम्बन्ध में करदाता को आय-कर की औसत दर से आय-कर की छूट प्राप्त होगी।

(2) यदि ‘संघ’ या ‘जनमण्डल’ ने कुल आय पर आय-कर नहीं चुकाया है तो उसके सदस्यों को लाभ के भाग पर अपने व्यक्तिगत कर-निर्धारण में आय-कर देना होगा, अर्थात उनका भाग उनकी कुल आय में जोड़ा जायेगा तथा उस पर भी कर लगेगा।

(3) यदि ‘संघ’ या जन-मण्डल ने अपनी कुल आय पर ‘अधिकतम सीमन्त दा (Maximum marginal rate) या इससे अधिक दर से आय-कर चुकाया है या देने को दायी है तो सदस्य के लाभ का भाग सदस्य की कुल आय में नहीं जोड़ा जायेगा। इस प्रकार सदस्य को प्राप्त भाग आय-कर से मुक्त होगा।

जीवन-साथी को हस्तान्तरित सम्पत्ति की आय

Income from assets transferi ed to the spouse

यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन-साथी को, बिना पयोप्त प्रतिफल अथवा अलग-अलग रहने के प्रसंविदे के कोई सम्पत्ति (मकान-सम्पत्ति के अतिरिक्त) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हस्तान्तरण कर देता है, तो ऐसी सम्पत्ति से प्राप्त आय भी उस व्यक्ति की कुल आय में जोडी जायेगी न कि जीवन-साथी की कुल आय में । स्वाभाविक प्रेम एवं स्नेह पर्याप्त प्रतिफल नहीं है। इसी प्रकार पति-पत्नी का सम्बन्ध सम्पत्ति हस्तान्तरण करते समय तथा उस पर आय प्राप्त करते समय, दोनों ही समय होना आवश्यक है। अतः विवाह से पूर्व सम्पत्ति के हस्तान्तरण की दशा में सम्पत्ति की आय हस्तान्तरणकर्ता की आय में नहीं बल्कि हस्तान्तरिती की आय में जोड़ी जायेगी। यदि जीवन-साथी ने कोई सम्पत्ति अपना जेब-खर्च (pin money) बचाकर क्रय कर ली है तो वह सम्पत्ति जीवन-साथी की मानी जायेगी.पति की नही । अतः उस सम्पत्ति से होने वाली आय पर पत्नी को कर देना होगा, पति की आय में नहीं जुड़ेगी। करदाता के जीवन-साथी को यदि विवाह से पूर्व दिये गये उपहार से कोई आय होती है, तो ऐसी आय का धारा 64 (I)

(ii) के अन्तर्गत करदाता की आय के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। मानी गई आयें

(Deemed Incomes) .

कुछ राशियाँ आयें नहीं होती परन्तु इन्हें करदाता की आय माना जाता है और उसकी कुल आय में शामिल किया जाता है।

वास्तव में ऐसी राशि या विनियोग करदाता की आय होते हैं परन्तु करचोरी के उद्देश्य । से वह उन्हें दूसरों के नाम जमा करता है या कम मूल्य बताता है। अतः ऐसी राशियों को । करदाता की आय मानने का उद्देश्य कर चोरी रोकना है। या निम्न मानी गई आयें मानी जाती हैं :

(I) नकद साख (Cash Credits)-यदि करदाता की गत वर्ष की पुस्तकों में कोई ऐसी रकम जमा हो रही है जिसकी प्रकृति तथा स्रोत के बारे में करदाता कोई उत्तर न दे अथवा इसका उत्तर कर-निर्धारण अधिकारी की सम्पत्ति में सन्तोषजनक न हो तो ऐसी जमा की हुई एका को करदाता की गत वर्ष की कुल आय में शामिल करके उस पर आय कर लगाया जा

कर-निर्धारण वर्ष 2014-15 से निम्न भी धारा 68 के अन्तर्गत आय मानी जाएगी : मा यदि ऐसी कम्पनी जिसमें जनता का सारवान हित नहीं है अपनी पुस्तकों में शेयर आवेदन राशि (application money), अंश पूंजी, शेयर प्रीमियम आदि जमा करती है, तो इसे अरमाटीकृत (unexplained) माना जाएगा जब तक

(i) निवासी व्यक्ति जिसके नाम राशि जमा की गई अपनी राशि का स्रोत तथा प्रकृति नहीं बताता।

(ii) उसका स्पष्टीकरण कर निर्धारण अधिकारी की सम्पत्ति में सन्तोषजनक है।

अपवाद यदि राशि जोखिम पूंजी कम्पनी या जोखिम पूंजी निधि के नाम लिखी गई है, तो उपरोक्त प्रावधान लागू नहीं होगा।

(2) पुस्तकों में बिना लिने तथा बिना स्पष्ट किये गये विनियोग (Unrecorded and Unexplained Investments)-सम्बन्धित गर्त वर्ष में यदि करदाता ने कोई ऐसे विनियोग किये हैं जिन्हें उसने अपने बहीखाते में नहीं लिखा है तथा करदाता उन विनियोगों की प्रकृति तथा सोत का कोई सपाटीकरण नहीं करता है अथवा इसका स्पष्टीकरण कर निर्धारण अधिकारी : की सम्मति में सन्तोषजनक नहीं है तो ऐसे विनियोग का मूल्य करदाता की उस वर्ष की आय .. मान ली जाती है, जिस वर्ष में ये विनियोग किये गये थे और उसे करदाता की कुल आय में । शामिल काके उस पर आय कर लगाया जाता है। bcom 2nd year clubbing of income notes

(धारा 69) (3) पुस्तकों में बिना लिखा तथा बिना स्पष्ट किया गया धन आदि (Unrecorded and Unexplainct Moncy, etc.)-यदि किसी वित्तीय वर्ष में करदाता के पास ऐसा धान, जेवा, मोना, चांदी अथवा अन्य के ई मूल्यवान वस्तु पायी जाती है जिसे उसे अपने बहीखाते

नहीं लिखा है तथा करदाता उसकी प्रकृति तथा स्रोत का कोई स्पष्टीकरण नहीं करता है अथवा मीकरण कर निर्धारण अधिकारी की सम्पत्ति में सन्तोषजनक नहीं है तो ऐसे धन अथवा जेवा का मुल्य करदाता की उस वर्ष की आय मान ली जायगी जिस वर्ष में यह उसके

पार पायी जाती है तथा उसे करदाता की कुल आय में शामिल करके उस पर आय कर लगाया जाता है।

(4) विनियोग, आदि की रकम जो बहीखाते में पूर्णतया नहीं दिखायी गयी (Amount of Investments cực. no fully disclosed in books account) यदि किसी वित्तीय वर्ष में करदाता ने कोई विनियोग किये है अथवा वडा सोना, चांदी,जेवर अथवा अन्य किसी मूल्यवान वस्तु का स्वामी पाया जाता है और कर-नि” अधिकारी वह पाता है कि इन विनियोगों में जो रकम लगी है अथवा इस सोना, चांदी के अथवा मूल्यवान वस्तु को प्राप्त करने में जो व्यय हुआ है वह करदाता द्वारा अपने बहीखाते में इस सम्बन्ध में दिखायी गयी रकम से अधिक है तथा करदाता इस आधिक्य का स्पष्टीकरण नहीं दे सकता है अथवा उसका स्पष्टीकरण सन्तोषजनक नहीं है तो वह अधिक रकम करदाता की उस वित्तीय वर्ष की आय मानी जा सकती है जिस वर्ष में विनियोग किया गया है अथवा जिस वित्तीय वर्ष में वह इन विनियोगों का स्वामी पाया जाता है अथवा जिस वित्तीय वर्ष में वह ऐसे सोना, चांदी, जेवर आदि का स्वामी पाया जाता है और उसे करदाता को कुल आय में शामिल करके उस पर आय कर लगाया जाता है। (धारा 69B)

(5) न स्पष्ट किया गया व्यय (Unexplained Expenditure) यदि किसी वित्तीय वर्ष में करदाता ने कोई व्यय किया है और इस व्यय के साधन (source of expenditure) के सम्बन्ध में या इसके किसी अंश के सम्बन्ध में वह कोई स्पष्टीकरण नहीं करता है अथवा स्पष्टीकरण कर-निर्धारण अधिकारी की सम्पत्ति में सन्तोषजनक नहीं है तो व्यय की राशि या उसका कोई अंश, जैसा उचित हो, उस वित्तीय वर्ष की करदाता की आय मानी जायेगी जिस वित्तीय वर्ष में व्यय किया गया है और यह करदाता की कुल आय में शामिल करके उस पर आय कर लगाया जाता है।

जब किसी न स्पष्ट किए गए व्यय को करदाता की आय मान लिया जाता है तो इस व्यय को आय के किसी भी शीर्षक में नहीं घटाया जायेगा। (धारा 69C)

(6) हुण्डी पर लिये हुए ऋण अथवा उनका भुगतान (Amount Borrowed of Repaid on Hundi) हुण्डी पर लिये हुए ऋण तथा उनका भुगतान Account Payee चैक द्वारा होना चाहिए, अन्यथा यह राशि ऋण लेने वाले की अथवा भुगतान करने वाले की उस गत वर्ष की आय मानी जायेगी जिस गर्त वर्ष में यह ऋण लिया गया है अथवा भुगतान किया गया है। भुगतान की राशि में ऋण का ब्याज भी शामिल होगा।

जब हुण्डी पर ऋण लेते समय ऐसा धन करदाता की आय में शामिल कर लिया जाता है तो उसका भुगतान करते समय यह धन पुनः उसकी आय में शामिल नहीं किया जायेगा।

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