Bcom 2nd Year Motivaton Concept & Theories (Moslow, Herzberg, Megregor and Ouchi)

Bcom 2nd Year Motivaton Concept & Theories (Moslow, Herzberg, Megregor and Ouchi)

अभिप्रेरणा 

(Motivation)

एक प्रबन्धक बिना यह जाने कि व्यक्तियों को क्या अभिप्रेरित करता है, अपने दायित्वों का सफलतापूर्वक निष्पादन नहीं कर सकता है। अतः व्यवसाय में अभिप्रेरण होना बहुत जरूरी है! 

अभिप्रेरण शब्द ‘प्रेरण’ (Motive) से निकला है। प्रेरणाएँ मानवीय आवश्यकताओं की अभिव्यक्ति को कहते हैं, जिसका आशय है-“साभिप्रायिक आवश्यकतायें। 

सरल शब्दों में इसका अर्थ है कि जब कोई मनुष्य कोई भी कार्य करता है, तो उसके पीछे उसकी कोई आवश्यकता अवश्य होती है, जो उसे कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है । काम करने वाली इन आवश्यकताओं को प्रेरण कहते हैं । व्यक्तियों को काम करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से इन आवश्यकताओं का अनुभव कराने की प्रक्रिया को अभिप्रेरणा कहा जाता है। अभिप्रेरणा के साथ कई शब्द, जैसे- इच्छा, आवश्यकताएँ, चाह, उद्देश्य, लक्ष्य, माँग का प्रभाव, चालक, अभिप्रेरण, प्रोत्साहन आदि जुड़े हुए हैं। किसी व्यक्तियों को कार्य के प्रति जाग्रत करना अभिप्रेरण कहलाता है। 

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अभिप्रेरणा की परिभाषाएँ इस प्रकार हैं –

स्कॉट के अनुसार, “अभिप्रेरण लोगों को इच्छित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कार्य करने हेतु प्रेरित करने की क्रिया है।

शर्टल के अनुसार, “किसी निश्चित दिशा की ओर जाने या किसी निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निश्चित प्रेरणा या तनाव ही अभिप्ररेणा है।” 

अभिप्रेरण के उद्देश्य 

(Object of Motivation)

प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया भी होती है अर्थात् हर प्रकार के कार्य का कुछ उद्देश्य होता है, बिना उद्देश्य के कोई भी कार्य नहीं किया जाता इसलिए अभिप्रेरण के प्रमुख लक्ष्य इस प्रकार से हो सकते हैं –

(1) कर्मचारियों को स्वेच्छापूर्वक अधिक से अधिक कार्य करने के लिए प्रेरि

(2) कर्मचारियों का मनोबल ऊँचा उठाना ।

(3) स्वस्थ मानवीय सम्बन्धों का विकास करना ।

(4) कर्मचारियों को प्रोत्साहित करके उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि करना। (5) कर्मचारियों को हर सम्भव सहयोग देना व उनसे सहयोग प्राप्त करना 

(6) उपक्रम के कर्मचारियों की आर्थिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकता पूरा करना। 

(7) श्रम एवं पूँजी के सम्बन्धों को मधुर बनाना।

(8) कर्मचारियों की कार्य सन्तुष्टि करना इत्यादि । 

अभिप्रेरण के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त 

(Important Theories of Motivation)

विभिन्न प्रबन्ध विशेषज्ञों तथा वैज्ञानिकों ने अपने-अपने ढंग से अभिप्रेरण के सिद्धान्तों एवं विचारधाराओं का प्रतिपादन किया है। इन सिद्धान्तों में अभिप्रेरण के विभिन्न पहल उद्घाटित हुए हैं। संख्या में ये सिद्धान्त बहुत से हैं। अत: केवल सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धान्तों का ही संक्षेप में निम्नानुसार अध्ययन किया जा सकता है

अभिप्रेरण के मूलभूत सिद्धान्त इस श्रेणी के प्रमुख सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं-

(1) अभिप्रेरण का एकात्मक सिद्धान्त-

यह सिद्धान्त आर्थिक मनुष्य’ की अवधारणा पर आधारित है। इसके अनुसार व्यक्ति अधिकाधिक धन कमाना चाहता है। अतः वह केवल मौद्रिक प्रेरणाओं से ही प्रभावित होता है । इस सिद्धान्त में गैर मौद्रिक प्रेरणाओं को कोई स्थान नहीं दिया गया है। यही कारण है कि इस सिद्धान्त को एकात्मक सिद्धान्त का नाम दिया गया है । इस सिद्धान्त में धन प्राप्ति की लालसा को ही मानवीय क्रिया-कलापों का एक मात्र प्रयोजन बताया गया है और उसे ही स्थान दिया गया है। 

अभिप्रेरण के इस सिद्धान्त के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं-

(i) समूह की तुलना में व्यक्ति को अभिप्रेरित करना अधिक आसान है क्योंकि व्यक्ति अपने कार्य और उससे प्राप्त होने वाले पारिश्रमिक को सरलतापूर्वक माप सकता है। समाह में सभी प्रकार के व्यक्ति होते हैं, जिनकी कुशलता असमान होती है । उन सभी को समान पारिश्रमिक मिलने से विवाद ही उत्पन्न होंगे।

(ii) शीघ्र भुगतान से अभिप्रेरण की प्रभावपूर्णता बढ़ती है क्योंकि कर्मचारियों में अधिक कार्य करने का उत्साह बढ़ता है।

(iii) जितना अधिक परिणाम चाहिए, उतना ही ऊँचा पुरस्कार दिया चाहिए क्योंकि पुरस्कार दर जितनी ऊंची होगी, कर्मचारी का उत्साह उतना ही अधिक जाएगा। 

(iv) कशलता के अन्तर के आधार पर पारिश्रमिक में भी अन्तर किया चाहिए क्योंकि ऐसा करने से अकुशल श्रमिकों को अपनी कुशलता बढ़ाने की प्रेरणा होगी। मनुष्य केवल मौद्रिक पुरस्कारों से ही प्रेरित होता है । यह एकांगी और दोषपूर्ण विचारधारा है। मार्शल के अनुसार लोक हितैषी तथा परोपकारी उत्तेजकों का भी अपना विशिष्ट महत्व का यह सिद्धान्त गैर मौद्रिक प्रेरणाओं की पूर्ण उपेक्षा करता है । अत: वर्तमान युग में इसकी होत आलोचना की जाती है । हाँ, इस सिद्धान्त में सत्य का यह मर्म भाग तो है कि मनुष्य धन के लिए कार्य करता है और मौद्रिक पुरस्कारों के माप-तौल त्रुटिविहीन होते हैं।

एकात्मक सिद्धान्त सिक्के के केवल एक ही पहल को देखता है। ‘आर्थिक मनुष्य’ की विचारधारा को आजकल दफना दिया जाता है। अतः इस सिद्धान्त का केवल सीमित महत्व 

(2) अभिप्रेरणा का बहुलवादी (Pluralistic) सिद्धान्त—

यह एकात्मक सिद्धान्त का कमी को दूर करता है तथा मौद्रिक और गैर मौद्रिक दोनों ही प्रकार के पुरस्कारों पर बल देता है

इस सिद्धान्त की आधारभूत धारणा यह है कि मनुष्य धन की कामना से कार्य नहीं करता, बल्कि उसकी अनेक प्रकार की बुनियादी भौतिक और गैर भौतिक जरूरतों से उत्तेजित होकर कार्य करता है। 

मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों ने मनुष्य के मूल प्रयोजनों को अनेक भागों में वर्गीकृत किया है। जैसे- 

(1) जीवन रक्षा सम्बन्धी जरूरतें,

(2) सुरक्षा एवं स्थायित्व सम्बन्धी जरूरतें

(3) सम्मान और आत्मगौरव सम्बन्धी जरूरतें.

(4) विविध सामाजिक जरूरतें,

(5) आत्मपूर्णता की जरूरतें आदि । 

यह सिद्धान्त मानवीय प्रतिष्ठा, सुरक्षा,श्रेष्ठ कार्य वातावरण, विश्राम,उचित कार्यभार,रुचि, मान्यता, सम्मान, कुशल नेतृत्व आदि विविध बातों पर बल प्रदान करता है । 

यह सिद्धान्त एकात्मक सिद्धान्त की तुलना में अधिक व्यापक तथा विवेकपूर्ण है । वर्तमान युग में इसे ज्यादा मान्यता प्राप्त है । यह स्मरण रखा जाना चाहिए कि इस सिद्धान्त में धन की उपेक्षा नहीं की गई है, परन्तु उसके अतिरिक्त मनुष्य के अन्य बुनियादी उद्देश्यों को भी स्वीकार किया गया है। Bcom 2nd Year Motivaton Concept & Theories (Moslow, Herzberg, Megregor and Ouchi)

अभिप्रेरण की बहुलवादी विचारधारा एकात्मक विचारधारा की पूर्ण विरोधी न होकर उस पर एक महत्वपूर्ण सुधार है। 

उक्त दो सिद्धान्त वास्तव में अभिप्रेरण की दो प्रमुख विचारधाराएँ हैं। वे अभिप्रेरणा के सुनिश्चित सिद्धान्त न होकर सिद्धान्तों की श्रेणियाँ हैं। 

वस्तुतः एकात्मक और बहलवादी विचारधाराएँ अभिप्रेरणा की मूलभूत विचारधाराएँ हैं। जिनके अन्तर्गत अनेक सिद्धान्तों का समावेश हो सकता है। 

अभिप्रेरण के परम्परागत सिद्धान्त

अभिप्रेरण के प्रमुख परम्परागत सिद्धान्त निम्नानुमार हैं-

(1) पुरस्कार एवं दण्ड सिद्धान्त (Carrot and Stick Theory)-

इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति जब भी इच्छा कार्य करे उसे परस्कत किया जाए और जब भी वह कोई को करे, उसे दण्डित किया जाए। यह प्रथम सिद्धान्त से बेहतर है और ‘दण्ड’ को भी प्रेरणाओं में शामिल कर एक सत्यांश पर जोर देता है।

यह सिद्धान्त मनुष्य के गहन मनोवैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित न होकर सतही है। जब तक जीवनरक्षक जरूरतें सन्तष्ट न हों तब तक इस सिद्धान्त की सीमित सार्थकता बनी रहता है। कर्मचारियों के एक निश्चित जीवन स्तर प्राप्त कर लेने के बाद यह सिद्धान अकार्यशील सिद्ध हो जाता है।

(2) भय एवं दण्ड का सिद्धान्त (Fear and Punishment Theory)-

यह काफी पुराना सिद्धान्त है, जिसको आजकल मान्यता प्राप्त नहीं है। इसके अनुसार अधिक कार्य तभी सम्भव है, जब कर्मचारी को सदैव भयभीत रखा जाए और गलत तथा कम कार्य करने पर उसे दाण्डत किया जाए। ‘भय और दण्ड’ के विचार से व्यक्ति आलस्य नहीं करेगा और वह ज्यादा काम करने के लिए विवश होगा। यह सिद्धान्त दकियानूसी, दोषपूर्ण तथा अमानवीय है और मानवाधिकारों के आधुनिक युग में असमर्थ है।

(3) विभेदात्मक पुरस्कार सिद्धान्त (Discriminating Reward Theory)-

एफ० डब्ल्यू० टेलर ने अपनी कृति भुगतान पद्धति इसी सिद्धान्त पर आधारित की थी। उनके अनुसार काम का सम्बन्ध मजदूरी से जोड़ देने पर निश्चित ही कर्मचारी अधिक कार्य करने के लिए प्रेरित होगा। 

टेलर ने भिन्नात्मक मजदूरी दरें तय की। कुशल कर्मचारियों के लिए ऊँची और अकुशल कर्मचारियों के लिए नीची। टेलर ने मौद्रिक पुरस्कारों को ही विशेष अभिप्रेरक माना है, अत: केवल मजदूरी की ज्यादा चर्चा की और गैर मौद्रिक प्रेरणाओं की उपेक्षा की है। Bcom 2nd Year Motivaton Concept & Theories (Moslow, Herzberg, Megregor and Ouchi)

इस प्रकार अभिप्रेरणा के मूलभूत तथा परम्परागत सिद्धान्तों पर आज भी अभिप्रेरण के लगभग सभी नियम अवलम्बित हैं एवं इन सिद्धान्तों के पालन पर ही अभिप्रेरण सार्थक हो पाता है। 

मैस्लो का ‘जरूरतों का श्रेणीयन सिद्धान्त’ 

(Maslow’s Hierarchy of Needs Theory)

वर्तमान युग में अभिप्रेरण का सबसे ज्यादा प्रचलित सिद्धान्त अब्राहम एच० मैस्लो नामक महान वैज्ञानिक द्वारा प्रतिपादित किया गया है । मैस्लो के माता-पिता रुसी थे, परन्तु स्वयं मैस्लो का जन्म न्यूयार्क में हुआ था और उनका पूरा जीवन सं० रा. अमेरिका में बीता। ‘मोटीवेशन और पर्सनलिटी’ नामक विस्तृत ग्रन्थ में उन्होंने 1954 में जरूरतों के श्रेणीयन का सिद्धान्त प्रतिपादन किया। ___मैस्लो ने मनुष्य की बुनियादी जरूरतों का क्रम बढ़ते हुए महत्व के अनुसार इस प्रकार निर्धारित किया है।

(1) सामाजिक जरूरतें (Social Needs)-

मानव सामाजिक प्राणी है। अतः वह वार्तालाप, विचारों के आदान-प्रदान, पारस्परिक स्नेह और दूसरों के द्वारा स्वीकृत होना चाहता है।

(2) शारीरिक जरूरतें (Physiological Needs)-

इन जरूरतों का सम्बन्ध पानी, भोजन, निवास, नींद आदि से है। ये मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताएं हैं | जरूरतों के श्रेणीयन में इनको सबसे निचले स्तर पर रखा गया है, परन्तु यदि इनकी सन्तुष्टि नहीं हुई, तो ये ही सर्वाधिक उग्र और महत्वपूर्ण बन जाती हैं। 

(3) अहं एवं सम्मान जरूरतें (Ego and Esteem Needs)-

सामाजिक जरूरतों की सन्तुष्टि के पश्चात् मनुष्य (i) आत्म सम्मान (Self esteem) अर्थात् हीन भावना का अभाव तथा (iii) दूसरों से सम्मानित होने की प्रबल इच्छा रखता है । – इस जरुरत से सत्ता, हैसियत और आत्मविश्वास की आकांक्षाएँ उत्पन्न होती है । • 

(4) सुरक्षा जरूरतें (Security Needs)

ये जरूरतें दूसरे स्तर पर आती हैं।इनका सम्बन्ध शरीर, सम्पत्ति, नौकरी आदि की सुरक्षा से होता है। 

(5) आत्म साक्षात्कार अथवा आत्मपूर्णता की जरूरत (Need of self actualization or self fulfilment)-

मैस्लो के श्रेणीयन में इस जरूरत का स्थान सर्वोपरि है। यह मनुष्य की अपनी सर्वोच्च क्षमता की प्राप्ति की इच्छा है। इसके अन्तर्गत व्यक्ति अपनी उपलब्धियों को अधिकतम कर आत्मपूर्णता की स्थिति को प्राप्त करना चाहता है। Bcom 2nd Year Motivaton Concept & Theories (Moslow, Herzberg, Megregor and Ouchi)

मैस्लो द्वारा जरूरतों का श्रेणीयन 

शारीरिक जरूरतें मैस्लों ने इस प्रकार से जरूरतों का श्रेणीयन कर निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले हैं –

(1) जरूरतों का महत्व बढ़ते हुए क्रम में है। सबसे नीचे शारीरिक जरुरतें और सबसे ऊपर आत्म साक्षात्कार की जरूरत है। इन दोनों अतियों के बीच अन्य जरूरतें आती हैं। 

(2) उच्चतर स्तर की जरूरतें उसी स्थिति में कार्यशील होंगी; जबकि उसके तुरन्त नीचे के स्तर की जरूरतें लगभग सन्तुष्ट हो जाएगी। शारीरिक जरूरतों की सन्तुष्टि सुरक्षा जरूरतों को प्रबल बनाती है। 

जब तक सुरक्षा जरूरतें सन्तुष्ट नहीं होती, तब तक सामाजिक और सम्मान जरूरतें बलवती नहा बनेगी। आत्म साक्षात्कार अर्थात् आत्मपूर्णता की जरूरत सबसे अन्त में उदित होती है। जब रात जातो फिर यह प्रेरणा प्रदान करने में असमर्थ रहा Tu Dil मे लिए जाणापान्तर गरे व्यक्ति के लिए नहीं। 

(1) कारण स्पष्ट मानाने में पता की जल सतार हो पुकी है, अत: कार्यशील नहीं होती हैं तथा पर सरकारने तो दिल ही नही होगी। अगले कम पर वे उन्नत जरूरतें महसूस हा तगा। कार्यशाल जरूर अकार्यशील बन जाएंगी। इस प्रकार एक खास समय ॥ मार को जारी प्रभावपर्ण होती है। उदाहरण के लिए, सुरक्षा जरूरतों से पीडित Pin लिए शारीमा गौर सामाजिक तथा उससे ऊपर की) जरूरतें कार्यशील नहीं रहेंगी। Bcom 2nd Year Motivaton Concept & Theories (Moslow, Herzberg, Megregor and Ouchi)

हर्षवर्ग का द्वि-एटक सिद्धान्त

(Hersberg’s Tivo-actor Theory) 

को गालिबान ने की कामी लोकप्रियता प्राप्त की है। अनेक भासपा के महान सोशामिका को निम्न दो निभई निकाले है (1) a गुमर सा ऐसी होती है, जिनकी उत्पति कर्मचारियों को प्रेरणा नहीं से घटकों को हर्षवर्ग अनुपथक घटकों (Maintenance Factors) के नाम से पुकारता 

अनुचक घटक हा प्रकार बताये गय है—

(1) नाति एवं प्रशासन,

(2) बकनीकी पहल,

(3) पर्यवेक्षकी, महामियों पर्व अधीनस्थ क माय सम्बन्ध,

(4) कार्य दशाएँ

(5) वैवन,

(6) कार्य की गुथा,

(7) मंगटन मिति आदि। 

(2) कार्य की दृसंग पाटगा होती है जिनकी अनुपस्थिति कर्मचारियों को असन्तुष्ट नहीं बनादी,पान्तु चिनी उपस्थिति में उन अभिप्रेरित करने की बड़ी क्षमता होती है।

(1) पलाय,

(2) मान्यदा,

(3) उनादायिल ( प्राति तथा विकास के अवसर,

(4) चुनौतीपूर्ण कार्य। 

अभिमान घटका कर्मचारियों को विशेष प्रोत्साहन मिलता है। मान्यता से टन्न प्रसन्नता दायिन्त एवं चनौतीपूर्ण कार्य मोपने , लगता है कि उनका यायला कार किया गया है। प्रगति एवं विकास के अवसरों के प्रति मनुष्य का आन्तरिक आका या प्रकार हवा का अभिप्रेरणा सिद्धान्त अनरक्षक तथा अभिप्रेक, दन दाना प्रकार भोपा आधारित है। कर्मचारियों को सन्तुष्ट भी रखना है, तथा उन्हें प्रोत्साहित करना है, नादन दोनों प्रकार के तल्लों की विद्यमानता आवश्यक है। Bcom 2nd Year Motivaton Concept & Theories (Moslow, Herzberg, Megregor and Ouchi)

बालोचना-या के सिद्धान्त की प्रमुख कमियाँ इस प्रकार बताई गई है 

(1) अापक और अभिषेक घटकों का वर्गीकरण अचित तथा मनमाना है। जो भी पटक मनुष्य की जादों को पूर्ण करते हैं, वे सभी प्रेरणा प्रदान करने की क्षमता रखते हैं। 

(2) कुछ विद्वानों की यह मान्यता है कि सन्तुष्टि तथा उत्पादकता के मध्य प्रत्यक्ष सम्बन्ध 

उनादायित्न न सौपने पर कार्यदशाओं से सन्तुष्ट कर्मचारी भी उत्पादकता बढ़ाने हेतु मिति नहीं होते। 

(3) वर्ग की अनुसंधान प्रणाली की भी कटु आलोचना की गई है, और उसके वर्गीकरण को गलत सिद्ध करने के प्रयास किये गये हैं। पालो तथा हर्जबर्ग के सिद्धान्तों की तुलना मेली और हवा दोनों ही महान वैज्ञानिक है।

दोनों ने मनुष्य की आधारभूत जरूरतों के माध्यम से अभिप्रेरणा की युक्तियों को प्रतिपादित किया है। दोनों ने लगभग समान जरूरतें 

दोनों के सिद्धान्तों का तात्विक अन्तर उनके अलग-अलग वर्गीकरण में निहित है । मैस्लो का वर्गीकरण व्यापक विश्व के सन्दर्भ में है, जबकि हर्जवर्ग का सरल वर्गीकरण संयुक्त राज्य अमेरिका से विकसित राष्ट्रों के सन्दर्भ में अधिक प्रासंगिक है। 

यदि ध्यान देकर देखें तो यह भी जात होगा कि हर्जवर्ग की अभिप्रेरक जरूरतें वे ही हैं जा साली के अनमार उच्च श्रेणी की जरूरतें हैं । मैस्लो को सम्मान जरूरतों में प्रतिष्ठा, प्रशंसा, दायित्न, चुनौती आदि ही तो सम्मिलित हैं। मैस्लो द्वारा बताई गई शारीरिक तथा सरक्षा जरूरतें ही हर्जबर्ग के अनुरक्षक घटक है। 

साना सिद्धान्तों में एक आधारभत अन्तर यह है कि मैस्लो को मान्यता है कि स्तर की जरूरतों के सन्तष्ट होने पर ही ऊपर के स्तर की जरूरतें कार्यशील होती हैं, जबकि जपान एसी कोई बात नहीं कही । हर्जबर्ग तो बड़े सरल शब्दों में यह कहता है कि अगर पटका का अनुपस्थिति असन्तोष उत्पन्न करती है और अभिप्ररेक घटकों की विद्यमानता प्रदान करती है। मैस्लो श्रेणीयन के आधार पर सभी जरूरतों को प्रेरक मानता है। Bcom 2nd Year Motivaton Concept & Theories (Moslow, Herzberg, Megregor and Ouchi)

x’ सिद्धान्त से आशय 

(Meaning of ‘X’ Theory)

X सिद्धान्त परम्परावादी दृष्टिकोण के आधार पर निर्मित हुआ है । इसके अन्तर्गत यह धारणाएँ मानी जाती हैं कि श्रमिक सुस्त कमजोर तथा अनुत्तरदायी होते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार सत्ताहीन व्यक्ति ही पूर्णरूप से नियन्त्रण करने में सफल हो सकता है। प्रबन्धक इस मत को मानते हैं कि श्रमिक डर, कड़े अनुशासन, दण्ड तथा प्रताड़ना द्वारा ही ठीक तरह से कार्य कर सकते हैं। इसके अन्तर्गत प्रबन्धक जब चाहे, तब उसे कार्य से पृथक् कर सकता है। 

सिद्धान्त की मान्यताएँ 

(Assumptions of ‘X’ theory)

x सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है-

(1) अधिकांश व्यक्ति कार्य को रुचिकर मानते हैं।

(2) व्यक्ति पर प्रत्यक्ष रूप से डर, धमकी, प्रताड़ना द्वारा बनाये रखना आवश्यक है।

(3) व्यक्ति अनुत्तरदायी होने से कार्य टालमे की प्रकृति रखता है।

(4) अधिकांश व्यक्तियों में महत्वाकांक्षा की कमी होती है। 

(5) अनेक व्यक्तियों में प्रबन्धकीय समस्याओं को सुलझाने हेतु सृजनात्मक क्षमता का अभाव होता है। 

(6) कुछ व्यक्ति शारीरिक एवं सुरक्षात्मक स्तर द्वारा ही अभिरेरण पा लेते हैं।

(7) अधिकांश व्यक्ति कड़े नियन्त्रण की उपस्थिति में कार्य करते हैं।

(8) कर्मचारी वित्तीय प्रलोभन के आधार पर ही कार्य करते हैं। 

(9) प्रबन्धक के सामने श्रमिक मशीन का एक पुर्जा होता है तथा उसे महत्व नहीं दिया जाता है। 

(10) इस सिद्धान्त में सत्ता को सर्वोपरि माना गया है।

(11) व्यक्ति के कार्य करने के ढंग को परम्परागत माना गया है। 

सिद्धान्त की उपयुक्तता 

(Suitability of ‘X’ Theory)

X सिद्धान्त की मान्यताओं का अध्ययन करने पर हमें इस सिद्धान्त प्रकृति का पता चलता है। हम इन मान्यताओं का अध्ययन करने पर कह सकते हैं कि X सिद्धान्त अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है। यह सिद्धान्त उत्पादन के मुख्य साधन श्रमिक को मशीन के एक पूर्जे की भाँति महत्व देता है । यह श्रमिकों को निर्देशों पर चलने वाला बना देता है, उन्हें अपनी बुद्धि का प्रयोग करने का तनिक भी अवसर प्रदान नहीं करता है । यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि यह सिद्धान्त केवल निराशावादी सिद्धान्त ही है। इस सिद्धान्त में मानवीय मूल्यों का कोई स्थान नहीं दिया गया है । अतः निष्कर्ष रूप में हम यह कह सकते हैं कि वर्तमान में जबकि उद्योगों में श्रमिकों की योगदान क्षमता के कारण उनकी माँग बढ़ती जा रही है और उद्योगों में मानवीय मूल्यों को विकसित करने के लिए अभिप्रेरणा को नवीनतम योजनाएं लागू की जा रही हैं,x सिद्धान्त महत्वहीन एवं परिस्थितियों के प्रतिकूल है। 

इस विचारधारा की प्रमुख कमियाँ निम्नानुसार हैं-

(1) यह मानवीय आवश्यकताओं व भावनाओं को नकारती है।

(2) यह साधनों को उपयोग में लाने का उत्तरदायित्व प्रबन्धकों पर डालती है।

(3) यह मनुष्य को केवल आर्थिक मनुष्य ही मानती है।

(4) यह भय एवं दंण्ड के आधार पर कर्मचारी से काम लेती है।

(5) यह प्रबन्धकों को निरंकुश बनाने की प्रेरणा देती है। 

Y सिद्धान्त से आशय 

(Meaning of ‘Y theory)

प्रबन्ध दर्शन के विचारकों को श्री मैक ग्रिगौर ने X तथा Y सिद्धान्तों में विभाजित किया। Y सिद्धान्तों को आधुनिक सिद्धान्त भी कहा जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार श्रमिकों में सहयोग से कार्य करना ही सर्वोपरि है। इसके अन्तर्गत श्रमिकों को प्रबन्ध में भागीदार माना जाता है। यह सिद्धान्त यह बतलाता है कि श्रमिकों से कार्य कराने के लिये भय और डन्डे के स्थान पर सहयोग और विश्वास के तत्वों की आवश्यकता होती है। इस सिद्धान्त में सृजनात्मक पद्धति पर अधिक महत्व दिया गया है । Y सिद्धान्त को प्रजातान्त्रिक सिद्धान्त माना जाता है। इसके अन्तर्गत प्रबन्ध कर्मचारियों को समान स्तर पर विचार-विमर्श करने योग्य समझता है। इसमें श्रमिक को सन्तोष मिलता है और उसे उन्नति के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं। 

सिद्धान्त की मान्यताएँ 

(Assumptions of ‘Y’ theory)

Y सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है 

(1) कार्य पूरा करने के लिये उसे पुरस्कार देने के साथ-साथ उसकी कार्य उपलब्धियों को मान्यता भी देनी चाहिये । कार्य को मान्यता देना भी श्रमिक के लिये एक पुरस्कार है।

(2) प्रत्येक कार्य रुचि वाला नहीं होता। खेल या आराम की तरह बार-बार कार्य करने पर भी सन्तोष मिलता है। दूसरे शब्दों में, शारीरिक एवं मानसिक शक्ति का व्यय उतना ही आवश्यक है, जितना आराम करना या खेलना । 

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