business communication notes for bcom 1st year
सन्देश के माध्यम से सम्प्रेषण मनुष्यों को एक-दूसरे से जोड़ता है। सम्प्रेषण को किसी सीमा में बाँधना प्रायः असम्भव ही है, बल्कि इसे कुछ मापदण्डों के आधार पर पूरा किया जाता है। सर्वहित में सम्प्रेषण को जिन मान्यताओं, सीमाओं व परिवेश में सम्पन्न किया जाता है, उन्हें सम्प्रेषण सिद्धान्त कहते हैं, अर्थात् सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश में आदर्श मूल्यों की रक्षा व स्थापना हेतु सार्वभौमिक समुदाय के लिए निर्धारित सीमा में किया गया सम्प्रेषण ही सम्प्रेषण सिद्धान्त है।
सम्प्रेषण के सिद्धान्त
(Theories of Communication)
विश्व में सम्प्रेषण के निम्नलिखित सात सिद्धान्त हैं
- वैदिक सम्प्रेषण सिद्धान्त (Vedic Theory of Communication)
- रूढ़िवादी सम्प्रेषण सिद्धान्त (Conservative Theory of Communication)
- इस्लामिक सम्प्रेषण सिद्धान्त (Islamic Theory of Communication)
- साम्यवादी सम्प्रेषण सिद्धान्त (Communist Theory of Communication)
- चीनी सम्प्रेषण सिद्धान्त (Chinese Theory of Communication)
- उदारवादी सम्प्रेषण सिद्धान्त (Liberal Theory of Communication)
- मसीही सम्प्रेषण सिद्धान्त (Christian Theory of Communication)
व्यावसायिक सम्प्रेषण का आशय एवं परिभाषा
(Meaning and Definitions of Business Communication)
जन्म के साथ ही मनुष्य की सम्प्रेषण या संचार क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। सामान्य बालचाल की भाषा में ‘सम्प्रेषण’ से आशय उस वार्तालाप से है, जो किन्हीं दो प्राणियों के मध्य किसी विशिष्ट बिन्दु, सूचना या जानकारी के लिए होता है। किसी भी भाप सम्प्रेषण ही होता है। ‘सम्प्रेषण’ का अंग्रेजी समानार्थी शब्द ‘Comm..- लैटिन शब्द ‘communication’ से बना है जिसका अर्थ होता है- ‘आपस वस्तु के सम्पूर्ण नियोजन में हिस्सा बाँटना’।
विश्व में निरन्तर प्रगतिशील आधुनिक व्यावसायिक परिवेश में सम्प्रेष द्वारा निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया गया है
कीथ डेविस के अनुसार, “सम्प्रेषण एक से दूसरे व्यक्ति के बीच सर समझने की प्रक्रिया है।”
किसी भी भाषा का अन्तिम लक्ष्य a Communication’ है। यह *_’आपस में बाँटना’ या ‘किसी परिवेश में सम्प्रेषण को कुछ विद्वानों दसरे व्यक्ति के बीच सूचना प्रदान करने व
जॉर्ज आर० टेरी के अनुसार, “सम्प्रेषण के अन्तर्गत एक या उससे अधिक मध्य तथ्यों, विचारों तथा भावनाओं का आदान-प्रदान होता है।” उपर्यस्त परिभाषाओं के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि सम्प्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया दै जिसमें सम्प्रेषक और संग्राहक के बीच सामंजस्य स्थापित हो, उनमें जागरूकता सम्प्रेषण एक ऐसी कार्यवाही है जिसके द्वारा जनता के ज्ञान, विचार और अभिनव निर्माण किया जाता है या उन्हें परिवर्तित किया जाता है।
सम्प्रेषण की प्रकृति
(Nature of Communication)
सम्प्रेषण की प्रकृति के नाना रूप दृष्टिगत होते हैं। इनको प्रमुख बिन्दुओं के रूप में निम्नवत् उद्घाटित किया जा सकता है
उचित माध्यम का चयन
(Selection of Proper Media)-
सम्प्रेषण के लिए किसी माध्यम का होना अत्यन्त आवश्यक है। सम्बन्धित सन्देश हेतु प्रयुक्त उचित माध्यम, सन्देश की विषय-वस्त से भी मेल खा जाता है। सन्देश के प्रसारण के लिए उचित माध्यम हो, जिससे सन्देश को स्पष्ट रूप से सम्प्रेषित किया जा सके।
तथ्यों व अनुभवों से सम्बद्ध
(Related to Facts and Experience)
सम्प्रेषण की प्रकृति तथ्यपरक तथा अनुभवों के हस्तान्तरण के रूप में होती है। निश्चित का सम्प्रेषण किया जाता है।
सतत प्रक्रिया (Regular Process)-
सम्प्रेषण की क्रिया प्रारम्भ हा सतत रूप से तब तक चलती रहती है जब तक कि सम्बन्धित विषय पूण 7 बारम्बारता में विघ्न उत्पन्न नहीं होता है. अन्यथा सम्प्रेषण का उद्दश्य जा
कला का वितति सर्वोत्तम ढंग से प्रस्तत किया जाता है जो कला का मूल तत्त्व हा का मिश्रण से ही सम्प्रेषण को प्रभावशाली बनाया जाता है।
जन्मजात प्रकृति
सम्प्रेषण के कारण ही मानव अन्य प्राणियों से भिन्न ISS)-सम्प्रेषण की क्रिया प्रारम्भ होने के पश्चात्न्धित विषय पूर्ण न हो जाए। उसकी सम्प्रषण का उद्देश्य खण्डित हो जाएगा।
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सम्प्रेषण द्वारा कार्य का मूल तत्त्व है। कला व विज्ञान दोनों के सही तथा प्राकृतिक गुण है।
‘ (Nature by Birth) सम्प्रेषण एक जन्मजात प्रकात अन्य प्राणियों से भिन्न लेकिन श्रेष्ठ है।
सम्प्रेषण के प्रमुख तत्त्व
(Main Elements of Communication)
सम्प्रेषण के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं
(1) सम्प्रेषण मानवीय विचारों एवं तथ्यों के कारण विस्तृत क्षेत्र वाला होता है।
(2) सम्प्रेषण का अस्तित्व उसके प्रवाह, क्रम एवं अनुक्रम की शृंखला पर निर्भर करता है। सम्प्रेषण प्रक्रिया के अन्तर्गत विचारों को जन्म से लेकर उन्हें उचित माध्यम द्वारा उचित व्यक्ति तक पहुँचाने की प्रक्रिया सम्पन्न की जाती है ताकि सूचनाग्राही इस प्राप्त सूचना का अनुकूल एवं प्रभावी प्रयोग कर सके।
(3) सम्प्रेषण के अन्तर्गत सूचनाओं का संचरण एवं बोधगम्यता होती है। इसका अभिप्राय है कि प्रभावी सम्प्रेषण एक द्विमार्गी प्रक्रिया है।
(4) सम्प्रेषण में तीन आन्तरिक परिपथ-आरोही, अवरोही व पालवीय होते हैं, जिनमें आपस में अन्तर्सम्बद्धता व क्रॉस होते हैं।
(5) सम्प्रेषण का एक माध्यम होता है जिसके द्वारा विचारों एवं सूचनाओं को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाना होता है, चाहे वह मौखिक रूप से है या लिखित रूप से, चित्र द्वारा अथवा शारीरिक यात्रा द्वारा पहुँचाया जाए।
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सम्प्रेषण के उद्देश्य
(Objectives of Communication)
सही व्यक्ति को सही तरीके से, सही जगह पर, सही सूचना पहुँचाना ही सम्प्रेषण का प्रमुख उद्देश्य होता है। संक्षेप में सम्प्रेषण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
कार्यों में समन्वय (Coordination in Works)-
सम्प्रेषण का प्रमुख उद्देश्य संवेगों को निश्चित व्यक्ति तक सही रूप में पहँचाना होता है। इसमें सूचना, आदेश, तथ्य, सलाह आदि को प्रेषित किया जाता है। इसके लिए समस्त कार्य-कलापों में समन्वय होना आवश्यक होता है।
नीतियों का क्रियान्वयन (Application of Policies)-
क्रियान्वयन का को इस प्रकार से गठित किया जाता है कि सम्प्रेषण के उद्देश्य का क्षय न हो पाए। शीघ्र निर्णय लेने के लिए समंकों का संकलन आवश्यक क्रिया है। अतः सम्बन्धित सूचनाओं का उचित संकलन किया जाता है।
प्रबन्धन कौशल में वृद्धि (Increase in Management Skill)-
स 4 उद्दश्य मानव-व्यवहार को सही समय पर सही रूप में समझना भी है। सम्प्रेषण के द्वारा सीखने की क्रिया पर्णत्व को प्राप्त करती है।
सही सूचनाओं का प्रेषण (Communication of Correct. mation)-
सही सचना का प्रेपण करना ही सम्प्रेषण का प्रमुख उद्देश्य माना गया। व्यक्ति तक समुचित सन्देश पहुचाना इस
कि समुचित सन्देश पहुँचाना इसका परम लक्ष्य है। यदि सम्प्रेषण की सामग्री प्राप्तकत्ता ही खण्डित हो जाएगा। द्वारा निश्चयात्मकता तक उचित रूप में नहीं पहुँच पाती है तो सम्प्रेषण का मूल उद्देश्य ही खटिन अधिकारियों व कर्मचारियों के मध्य सुझावों का आदान-प्रदान सम्प्रेषण के द्वारा निक को प्राप्त करता है और लक्ष्य की ओर तीव्रता से बढ़ता जाता है।
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सम्प्रेषण का महत्त्व
(Importance of Communication)
वर्तमान समय में व्यावसायिक क्षेत्र में सम्प्रेषण का उपयोग बढ़ता ही जा रहा उपयोगिता के साथ-साथ इसके महत्त्व में भी आशातीत वृद्धि हो रही है। वर्तमान समय में सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाना एक अनिवार्यता बन चुकी है। इस क्रिया के द्वारा व्यक्ति अपनी हर प्रकार की भावनाओं तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है। संगठनों के लगातार बढ़ते आकार के कारण वर्तमान समय में सम्प्रेषण का महत्त्व नित्यप्रति बढ़ता जा रहा है। सम्प्रेषण की कला में जो व्यक्ति दक्षता प्राप्त कर लेता है, वह विभिन्न क्षेत्रों में लाभदायक स्थिति को प्राप्त होता है।
मानव की विकास-यात्रा के साथ-साथ सम्प्रेषण का स्वरूप व आकार भी बदलता गया है और आज इसका अत्यन्त परिष्कृत रूप हमारे उपयोग के लिए उपलब्ध है। वास्तव में, व्यक्ति की आवश्यकताओं ने ही सम्प्रेषण की माँग को जन्म दिया है। प्राचीन सूचना-सम्प्रेषण के माध्यमों-लकड़ी व पत्तों के प्रयोग से लेकर भाषा, लिपि, प्रिण्टिग प्रेस, रेडियो, फिल्म, दूरभाष, टेलीविजन, सेटेलाइट या उपग्रह एवं मोबाइल की यात्रा आदि मनुष्य की सम्प्रेषण से सम्बन्धित असीमित आवश्यकताओं का ही परिणाम है, जिसमें जिजीविषा के उत्कर्ष का भी प्रकटन होता है।
सम्प्रेषण के तौर-तरीकों के अच्छे या बुरे होने का व्यक्ति की व्यावसायिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ता है। सम्प्रेषण की क्रिया ही किसी व्यक्ति को उच्च आयामों का स्पर्श करा सकती है तथा यही व्यक्ति की प्रतिष्ठा को अवनति की ओर भी धकेल सकती है। . .
निम्नलिखित तथ्यों से सम्प्रेषण के महत्त्व का यथेष्ट ज्ञान हो जाता है –
क्रियाशीलता एवं समन्वय-क्षमता का विकास (Development of Effectiveness and Coordination Skill)-
सम्प्रेषण के बिना एकता व क्रियाशीलता का आना असम्भव है। सम्प्रेषण व्यक्तियों में सहयोग व समन्वय-क्षमता का विकास करता है। आपस में सूचनाओं व विचारों का आदान-प्रदान व्यक्तियों की एकता व क्रियाशीलता को बढ़ाता है।
नेतृत्व गुण के विकास हेतु आवश्यक (Necessary for Leadership Qualities)-
सम्प्रेषण-कुशलता नेतृत्व शक्ति की पूर्व अनिवार्य शर्त है। यह प्रभाव उत्पन्न करने वाली प्रक्रिया है। सम्प्रेषण में दक्ष एक प्रबन्धक अपने कर्मचारियों का वास्तविक नेता होता है। एक अच्छे सम्प्रेषण निकाय में व्यक्ति एक-दूसरे के निकट आते हैं और उनके आपसी विरोधाभास दूर हो जाते हैं।
योजना-निर्माण में सहायक (Helpful in Planning)-
एक प्रभावशाली सम्प्रेषण सदैव संगठन की योजना के निर्माण व क्रियाशीलता में सहायक होता है। किसी योजना को क्रियाशील करने तथा योजना के निर्धारित लक्ष्यों व उद्देश्यों को प्राप्त करने में सम्प्रेषण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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सम्प्रेषण का प्रबन्धकों के लिए महत्त्व
(Importance of Communication for Managers)
आज व्यावसायिक पर्यावरण बदल चुका है। प्रबन्धन की अवधारणा भी बदलती जा रही है, इसमें नित नए आयाम जुड़ते जा रहे हैं। चूँकि सम्प्रेषण में किसी व्यक्ति या समूह के विचारों एवं भावनाओं को अन्य व्यक्तियों या समूहों में पहुँचाने की क्षमता होती है, अत: प्रबन्धक के लिए यह अनिवार्य है कि वह समय पर उचित सूचनाओं (जैसे-नए उत्पाद के बाजार में आने से पूर्व वर्तमान बाजार व आवश्यक पूँजी की जानकारी) को संगृहीत करे तथा अपन उद्देश्यों में सफल हो। एक प्रबन्धक के लिए यह भी आवश्यक है कि वह नियन्त्रण के द्वारा अपने व्यवसाय को भली-भाँति संचालित करे। उत्पादन लक्ष्यों को प्राथमिकता के आधार पर निचले व्यावसायिक खण्डों में सम्प्रेषित किया जाए और उनके परिणामों को प्रबन्धक तक पहुचाया जाए। एक अच्छे प्रबन्धक का गुण होता है कि वह सम्प्रेषण के माध्यम से उचित और काधिक जनसम्पर्क बनाए क्योंकि उचित जनसम्पर्क एक उपक्रम के लिए अत्यन्त है। वास्तव में, एक प्रबन्धक द्वारा समस्त प्रबन्धकीय कार्य सम्प्रेषण के माध्यम से ही अधिकाधिक जनसम्पर्क बनाए र आवश्यक है। वास्तव में, एक प्रबन्धक सम्पन्न किए जाते हैं। धन के क्षेत्र में कार्यरत प्रबन्धक की निम्नलिखित पाँच मुख्य क्रियाएँ हो सकती है
1.प्रोत्साहन व सम्प्रेषण करना
2.संगठित करना।
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