Consumer Behaviour Notes hindi
उपभोक्ता व्यवहार
उपभोक्ता व्यवहार का अर्थ एवं परिभाषाएँ
(Meaning and Definitions of Consumer Behaviour)
क्रेता/उपभोक्ता अपनी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए क्या, कब, कितनी, कैसी, कहाँ तथा किससे वस्तुएँ एवं सेवाएँ खरीदते हैं और ऐसी खरीद जिस व्यवहार का परिणाम होती है, उसे क्रेता व्यवहार/उपभोक्ता व्यवहार कहा जाता है।
वाल्टर एवं पाल के अनुसार, “उपभोक्ता व्यवहार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति यह निर्णय लेता है कि वस्तुओं और सेवाओं को खरीदना है तो क्या, कब, कहाँ और किससे खरीदना है।’
‘उपभोक्ता व्यवहार का क्षेत्र
(Scope of Consumer Behaviour)
जैसा कि स्पष्ट ही है कि उपभोक्ता व्यवहार से आशय उपभोक्ताओं के क्रय निर्णय सम्बन्धी व्यवहार के अध्ययन से है। उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन एवं विश्लेषण करके सामान्यत: निम्नांकित समस्याओं/प्रश्नों का उत्तर प्राप्त किया जा सकता है-
1. वह किन (Which) उत्पादों/सेवाओं का क्रय करना चाहता है?
2. वह उन उत्पादों/सेवाओं को क्यों (Why) क्रय करना चाहता है ?
3. वह उनका क्रय किस प्रकार (How) करना चाहता है ?
4. वह उनका क्रय कहाँ से (Where) करना चाहता है ?
5. वह उनका क्रय कब (When) करना चाहता है अर्थात् उत्पाद (वस्तु) की खरीद का वास्तविक समय क्या है ?
6. वह उनका क्रय किन से (From whom) करना चाहता है ? Consumer Behaviour Notes in hindi
उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्त्व अथवा घटक
(Factors Affecting Consumer Behaviour)
उपभोक्ता के क्रय सम्बन्धी व्यवहार को अनेक घटक प्रभावित करते हैं। उपभोक्ता के व्यवहार में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। उपभोक्ता व्यवहार में परिवर्तन के कारण इसे प्रभावित करने वाले घटकों में परिवर्तन होता रहता है। उपभोक्ता व्यवहार को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
I. मनोवैज्ञानिक घटक (Psychological Factors),
II. आर्थिक घटक (Economic Factors)
I. मनोवैज्ञानिक घटक (Psychological factors)-
इसमें निम्नलिखित तत्वों को सम्मिलित किया जाता है-
1. आधारभूत आवश्यकतायें (Basic Needs)—क्रेता की कुछ आधारभूत आवश्यकतायें होती हैं जिनकी पूर्ति वह सर्वप्रथम करना चाहता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ए० एच० मैस्लो (A. H. Maslow) ने आवश्यकताओं में निम्नलिखित प्राथमिकतायें निश्चित की हैं
(i) शारीरिक आवश्यकताएँ (Physiological Needs)-मैस्लो के अनुसार व्यक्ति सबसे पहले अपनी दैहिक आवश्यकताओं को पूरा करता है जो मानव जीवन को बनाये रखने के लिये जरूरी हैं, जैसे-भोजन, वस्त्र, मकान आदि।
(ii) सुरक्षा आवश्यकताएँ (Safety Needs)—इसमें शारीरिक, आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक सुरक्षाओं को सम्मिलित किया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति सुरक्षा, स्थायित्व एवं निश्चितता चाहता है।
(iii) सामाजिक आवश्यकताएँ (Social Needs)—प्रत्येक व्यक्ति समाज में सम्मान चाहता है। वह समाज के सदस्यों से प्रेम, स्नेह और मित्रतापूर्ण व्यवहार चाहता है।
(iv) सम्मान और स्वाभिमान (Esteem and Self Respect)—इन आवश्यकताओं में मान्यता प्राप्त करने की इच्छा, प्रतिष्ठा पाने की इच्छा, प्राप्त करने की इच्छा, प्रमुख बनने की इच्छा आदि को सम्मिलित किया जाता है।
(v) स्वः यथार्थवादिता (Self- actualisation)—प्रत्येक व्यक्ति में अपने को पूर्ण रूप से विकसित करने तथा अपनी योग्यता एवं कार्यक्षमता द्वारा महानतम उपलब्धियाँ प्राप्त करने की इच्छा विद्यमान होती है।
उपर्युक्त सभी आवश्यकताएँ उपभोक्ता के व्यवहार को प्रभावित करती हैं। ऐसी वस्तुओं और सेवाओं का विपणन आसान होता है जो उपर्युक्त आवश्यकताओं की सन्तुष्टि में सहायक होती हैं।
(2) छवि (Image)—किसी वस्तु या विषय के सम्बन्ध में ज्ञान या अज्ञानतावश किसी वस्तु की मस्तिष्क में जो छाप होती है उसे छवि कहा जाता है। उपभोक्ता व्यवहार पर इसका भी बहुत प्रभाव पड़ता है। छवि कई प्रकार की हो सकती है, जैसे-आत्म छवि, वस्तु छवि, ब्राण्ड छवि इत्यादि।
(i) आत्म छवि (Self Image)—प्रत्येक व्यक्ति की आत्म छवि भिन्न होती है। आत्मछवि से आशय उस तस्वीर से है जो कि एक व्यक्ति अपने सम्बन्ध में रखता है। Consumer Behaviour Notes in hindi
(ii) वस्तु छवि (Product Image)-वस्तु के सम्बन्ध में क्रेताओं की धारणा वस्तु छवि कहलाती है।
(iii) ब्राण्ड छवि (Brand Image) ब्राण्ड छवि का निर्माण वस्तु के प्रयोग से, निर्माता की ख्याति से तथा विज्ञापन से होता है। ब्राण्ड छवि ही व्यक्ति को विशिष्ट ब्राण्ड की वस्तु क्रय करने या न करने के लिये प्रेरित करती है।
(3) ज्ञान सिद्धान्त (Learning Theory)—ज्ञान सिद्धान्त के अनुसार उपभोक्ता व्यवहार को निम्न तत्व प्रभावित करते हैं
(i) अभिप्रेरणा (Motivation)—क्रय प्रेरणाओं से उपभोक्ता व्यवहार बहुत अधिक प्रभावित होता है। इन प्रेरणाओं के अन्तर्गत भावात्मक, विवेकपूर्ण, स्वाभाविक एवं सीखे हुए प्रयोजन आदि शामिल होते हैं।
(ii) नित्यता (Repetition)—किसी वस्तु को उपभोक्ता के निरन्तर सम्पर्क में लाने से उसके वस्तु ज्ञान में वृद्धि हो जाती है, उदाहरण के लिये किसी वस्तु के निरन्तर विज्ञापन से उपभोक्ता को उस वस्तु के बारे में अधिक ज्ञान प्राप्त हो जाता है और वह वस्तु का क्रय करने के लिये प्रोत्साहित होता है।
(iii) वस्तु स्थिति (Conditioning)-वस्तु स्थिति के ज्ञान से भी उपभोक्ता व्यवहार बहुत अधिक प्रभावित होते हैं, जैसे—यदि किसी वस्तु की पैकिंग को सुन्दर और आकर्षक बना दिया जाये तो बहुत से क्रेता उसके पैकिंग से प्रभावित होकर वस्तु का क्रय कर लेते हैं।
(iv) समूह प्रभाव (Group Influence)—समूह प्रभाव भी उपभोक्ता व्यवहार पर प्रभाव डालता है। यदि समाज में कोई धनी या प्रतिष्ठित व्यक्ति किसी वस्तु का उपभोग आरम्भ कर देता है तो समाज के अन्य व्यक्ति भी उसका अनुसरण करने लगते हैं।
(4) आधारभूत आवश्यकतायें एवं उपभोक्ता व्यवहार (Basic Needs and Consumer Behaviour)-उपभोक्ता व्यवहार आधारभूत आवश्यकताओं से भी प्रेरित होता है सबसे पहले वह ऐसी आवश्यकताओं को पूरा करता है। Consumer Behaviour Notes in hindi
II. आर्थिक तत्त्व (Economic Factors)
उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले प्रमुख आर्थिक घटक निम्न प्रकार है।
(1) व्यक्तिगत आय (Personal Income)-उपभोक्ता की निजी आय उनकी क्रय शक्ति को बहुत प्रभावित करती है। उपभोक्ता की निजी आय में वृद्धि प्रायः उपभोग में वृद्धि करती है और निजी आय में कमी उपभोग में कमी करती है।
(2) पारिवारिक आय (Family Income)-ग्राहकों की पारिवारिक आय भी उनकी क्रय शक्ति को प्रभावित करती है। यदि परिवार की आय कम होती है तो उनका क्रय व्यवहार उन व्यक्तियों के क्रय व्यवहार से भिन्न होता है जिनकी आय निर्धारित पंक्ति से ऊपर है। कम आय वाले व्यक्ति निम्न किस्म की वस्तुओं का क्रय करते हैं, जबकि अधिक आय वाले व्यक्ति उच्च किस्म की वस्तुओं और सेवाओं को क्रय करते हैं।
(3) भावी आय की आशायें (Expectation of Income)—यदि किसी व्यक्ति को निकट भविष्य में कुछ आय प्राप्त होने की आशा हो तो उसके द्वारा प्रायः अधिक मात्रा में क्रय किया जाता है। इसके विपरीत, भविष्य में आय प्राप्ति की आशा न होने पर कम क्रय किया जाता है।
(4) उपभोक्ता की साख (Consumer’s Credit)—यदि उपभोक्ता को वस्तुएँ एवं सेवाएँ उधार मिल जाती हैं तो वह अधिक मात्रा में क्रय करने के लिये प्रेरित होते हैं। विपणन के क्षेत्र में उपभोक्ता की साख का बहुत अधिक महत्व है, जिसकी सहायता से बाजार को विस्तृत या संकुचित किया जा सकता है।
(5) स्वाधीन आय (Discretionary Income)—स्वाधीन आय से आशय है, जो आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद बच जाती है। इस प्रकार की आय को उपभोक्ता अपनी स्व-इच्छा से खर्च करता है। स्वाधीन आय उपभोक्ता को विशिष्ट वस्तुओं या सेवाओं को क्रय करने के लिये प्रेरित करती है, जैसे-फर्नीचर, स्कूटर, पंखें एवं अन्य विलासिता की वस्तुएँ।
(6) सरकारी नीति (Government Policy)—सरकार द्वारा लगाये जाने वाले अधिक कर क्रय शक्ति को कम कर देते हैं। इसी प्रकार मुद्रा प्रसार की अवस्था में बढ़ती हुई कीमते भी क्रय-शक्ति को कम कर देती हैं। अत: उपभोक्ता को सरकारी नीतियों के अनुसार क्रय व्यवहार में परिवर्तन करना पड़ता है। Consumer Behaviour Notes in hindi
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