गरमपंथी आन्दोलन ( Extremist Movement in hindi)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारम्भिक चरण में नेतृत्व नरम राष्ट्रवादियों के हाथ में रहा, जो अपने वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु संवैधानिक साधनों के प्रयोग में विश्वास करते थे। लेकिन 1885 ई० से 1905 ई० के बीच के काल में भारत और विदेशों में कुछ ऐसी घटनाएँ घटित हुईं . और कुछ ऐसी शक्तियाँ क्रियाशील हुईं, जिन्होंने भारतीय राष्ट्र के अपेक्षाकृत युवा वर्ग को पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग के लिए प्रेरित किया और संवैधानिक साधनों के प्रति अविश्वास की भावना को जन्म दिया। वस्तुत: कुछ घटनाओं के परिणामस्वरूप नवयुवकों के विचारों, दृष्टिकोण और मनोवृत्ति में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो गया और उनका नरमपंथियों की प्रार्थना, प्रतिवेदन, विनय एवं अनुग्रह की नीति पर से विश्वास उठ गया। इस प्रकार राष्ट्रीय आन्दोलन उन दो धाराओं में प्रवाहित हुआ, जिनमें से प्रथम को गरमपंथी (Extremist) तथा द्वितीय को क्रान्तिकारी (Revolutionary) कहा गया। गरमपंथी राष्ट्रवादी धारा के समर्थकों में आत्मबलिदान और स्वतन्त्रता की भावना के साथ-साथ, प्रबल देश-प्रेम तथा विदेशी शासन के प्रति घृणा थी। इस विचारधारा के समर्थक गरम नीति का अनुसरण करना चाहते थे, जिसके अन्तर्गत विदेशी वस्तुओं तथा शासन का बहिष्कार, स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग एवं राष्ट्रीय शासन की स्थापना आदि को सम्मिलित किया जा सकता था। तिलक का यह विचार था, “भारत की राजनीतिक मुक्ति अनुनय एवं विनय और निवेदनों से न होकर दृढ़ कथन एवं प्रत्यक्ष कार्यवाही से ही सम्भव है। । अत: राजनीतिक अधिकारों के लिए लड़ना पड़ेगा।” पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग और उसकी प्राप्ति हेतु जन-आन्दोलन के मार्ग को अपनाने वाली इस विचारधारा को ही ‘गरमपंथ’ के नाम से पुकारा जाता है।
गरमपंथियों की कार्य प्रणाली-गरमपंथी केवल संवैधानिक तरीकों में ही विश्वास नहीं करते थे वरन् वे वैधानिक साधनों के अतिरिक्त अन्य शान्तिमय साधनों में भी विश्वास करते थे। उनका विश्वास था कि राजनीतिक सत्ता प्रार्थना करने अथवा राजनीतिक सुधारों की भीख माँगने से नहीं मिल सकती। तिलक ने कहा था, “हमारा उद्देश्य आत्मनिर्भरता है, भिक्षावृत्ति नहीं।” गरमपंथियों का विश्वास सक्रिय विरोध अथवा सत्याग्रह में था। उनका विचार था कि व्यापारियों का यह राष्ट्र (ब्रिटेन) केवल दबाव की भाषा समझता है। लाला लाजपत राय ने सक्रिय विरोध के दो कारण बताए थे—प्रथम, भारतीयों के मन में बसी हुई ब्रिटिश शासकों को सर्वशक्तिमान और परोपकारी समझने की भावना को दूर करना; द्वितीय, देशवासियों में स्वतन्त्रता के लिए भावपूर्ण प्रेम और त्याग व कष्ट सहन करने के लिए तत्पर रहने की भावना को जगाना। गरमपंथियों के सक्रिय कार्यक्रम में बहिष्कार, स्वदेशी तथा राष्ट्रीय शिक्षा सम्मिलित थी।
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