Immortal Pride of Indian Revolutionaries: Cellular Jail and Kalapani Punishment
भारतीय क्रान्तिवीरों की अमर गौरवगाथा : सेल्यूलर जेल और कालेपानी की सजा
भारत के क्रान्तिकारियों द्वारा आजादी के लिए लड़ी गई लड़ाई वास्तव में रोंगटे खड़े कर देने वाली अविस्मरणीय गौरवगाथा है। देश के असंख्य किशोर-किशोरियों, युवक और नवयौवनाओं ने अपना सर्वस्व देश की खातिर होम कर दिया था। ऐसे क्रान्तिकारियों से ब्रिटिश शासन सदैव भयग्रस्त रहता था। इनमें से अनेक राष्ट्रभक्तों को आजीवन कारावास की सजा दी जाती थी और भारत की मुख्यभूमि से सुदूर समुद्रपार अण्डमान के टापू पर निर्वासित कर दिया जाता था, इसी को काले पानी की सजा कहा जाता था। वहाँ पर विस्तृत क्षेत्र में कोठरीनुमा जेल थी, उसे कोठरीनुमा होने के कारण अंग्रेजी में Cellular Jail (सेल्यूलर जेल) कहा गया। इसमें तीन प्रकार के कैदी रखे जाते थे—राज्य के विद्रोही, जघन्य अपराधी तथा राजनीतिक बन्दी।
इस जेल का निर्माण 1906 ई० में हुआ था, यहाँ पर क्रान्तिकारियों को भयंकर यातनाएँ दी जाती थीं। यहाँ पर उनके क्रियाकलापों में शामिल था-लकड़ी काटना, पत्थर तोड़ना, एक हफ्ते तक हथकड़ियों को पहनकर खड़े रहना, तन्हाई के दिन बिताना, चार दिनों तक भूखा रहना, दस दिनों तक क्रासबार की स्थिति में रहना आदि। क्रान्तिकारियों की जबान सूख जाती थी, दिमाग सुन्न हो जाता था तथा कई कैदी तो जान गँवा बैठते थे। लेकिन इनका अपराध था कि ये अपनी मातृभूमि से बेहद प्यार करते थे और दुःख सहते हुए भी हँसते-हँसते मातृभूमि के लिए शहीद हो जाते थे। कालेपानी की सजा काटने वाले कुछ देशभक्तों के नाम हैं-डॉ० दीवानसिंह कालेपानी (इनका उपनाम ही ‘कालेपानी’ हो गया), मौलाना हक, बटुकेश्वर दत्त, बाबाराव सावरकर, विनायक दामोदर सावरकर (वीर सावरकर : इन्हें दो आजीवन कारावास की सजा हुई थी), भाई परमानन्द, चिदम्बरम पिल्लै, सुब्रह्मण्यम शिव, सोहनसिंह, वामनराव जोशी, नन्दगोपाल। बाघा जतिन के जीवित साथी सतीशचन्द्र पाल को यहाँ भयंकर मानसिक व शारीरिक यातनाएँ दी गई थीं। वीरेन्द्र कुमार घोष, उपेन्द्रनाथ बनर्जी, वीरेन्द्रचन्द्र सेन को यहाँ कैदी जीवन में भयानक यातनाएँ सहनी पड़ी। लेकिन ब्रिटिश सरकार इन्हें इनके स्वदेश प्रेम से अलग नहीं कर सकी। महात्मा गांधी व रवीन्द्रनाथ टैगोर को अनेक मौकों पर इन वीर देशभक्तों के पक्ष में सरकार से बहस करनी पड़ी थी। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अप्रतिम जननायक नेताजी सुभाष ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अण्डमान टापू को अंग्रेजों से जीत लिया था और इसका नामकरण किया गया ‘शहीद’। अब कैदियों के लिए सुभाष मुक्तिदाता थे तथा टापू कालापानी नहीं अपितु उनका अपना घर’ हो गया था। जेल के अनेक खण्डों को ध्वस्त कर दिया गया, शेष बचे भाग को 1969 ई० से राष्ट्रीय स्मारक में बदल दिया गया। 10 मार्च, 2006 ई० को जेल की शताब्दी मनाई गई और उस काल के अनेक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों का भावभीना स्मरण किया गया जो इस जेल में रहे थे।
Homepage – click here.