Meaning of Speech Bcom Notes in hindi

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Meaning of Speech Bcom Notes in hindi

भाषण का अर्थ 

भाषण सम्प्रेषण का शक्तिशाली माध्यम है। व्यावसायिक सम्प्रेषण में भाषण औपचारिक श्रृंखला के अन्तर्गत आता है। भाषण के अन्तर्गत वक्ता अपनी वाक् शक्ति द्वारा व्यवस्थित भाषा में समयोचित दैहिक एवं पार्श्व भाषा के साथ वक्तव्य को सम्प्रेषित करता है, जो श्रोताओं को विचारों के साथ बहा ले जाता है। इस वक्तव्य या सम्बोधन को ही भाषण कहा जाता है। समाज में कई ऐसे औपचारिक व अनौपचारिक अवसर आते हैं, जब हमें व्याख्यान या भाषण देने की आवश्यकता महसूस होती है। उदाहरणार्थ – उद्घाटन समारोह, संगोष्ठियाँ कम्पनी की बैठकें – परिचर्चा इत्यादि ऐसे अवसर होते हैं, जब हम प्रमुख अतिथियों के स्वागतार्थ कुछ उद्बोधन देते हैं। अनेक अवसरों पर व्याख्यानमाला का विशिष्ट अवदान होता है। व्याख्यान के आकार को निश्चित किया जाना सम्भव नहीं है। यह समय व अवसर के अनुसार छोटा अथवा विस्तृत हो सकता है। कुछ विद्वानों द्वारा दी गई भाषा सम्बन्धी परिभाषाएँ निम्नलिखित रूप में है”-

Speech is power: Speech is to persuade, to convert, to compel.”, – Emerson

“भाषण मानव के मस्तिष्क पर शासन करने की एक कला है।” – सेनेका

“भाषण मस्तिष्क का दर्पण है।” -प्लेटो 

“The ability to speak in a hortative way to distinction, it puts a man in the limelight, raises him head and shoulder above the crowd.”- Dale Karnage

प्रभावशाली भाषण हेतु आवश्यक तैयारी 

(Necessary Preparations for an Effective Speech)

एक अच्छे भाषण या व्याख्यान के लिए आवश्यक है कि उसके लिए पूर्व में कुछ तैयारी कर ली जाए। इसके लिए शब्दों की जानकारी, विषय का बोध तथा वाक्चातुर्य का होना भी नितान्त आवश्यक है। एक प्रभावशाली भाषण की तैयारी के लिए निम्नलिखित बिन्दु सहायक सिद्ध हो सकते हैं-

(1) Rudyard Kipling के अनुसार, हमें व्याख्यान / भाषण को तैयार करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

(i) कौन (Who) – हम किसके लिए भाषण दे रहे हैं, उनकी संख्या क्या है – एक व्यक्ति के लिए या बहुत-से व्यक्तियों के लिए और साथ-ही-साथ हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि श्रोताओं की रुचि व आशाएँ क्या हैं।

(ii) क्या (What) – हम क्या सम्प्रेषित करना चाहते हैं। –

(iii) क्यों (Why) — हमें व्याख्यान / भाषण का उद्देश्य ज्ञात होना चाहिए अर्थात् श्रोता हमें क्यों सुनें और हमने उनका चयन क्यों किया है।

(iv) कैसे (How ) – हम अपने सन्देश को कितनी अच्छी तरह सम्प्रेषित करें, हम अपने व्याख्यान को या भाषण को प्रभावशाली कैसे बनाएँ।

(v) कहाँ (Where) — हमें अपना व्याख्यान कहाँ देना है, क्या चयनित स्थान, श्रोताओं की दृष्टि से उचित है।

(vi) कब (When) – क्या हमने अपने व्याख्यान में समय का ध्यान रखा है, आपका किस समय व कितने समय तक बोलना उचित है ।

(2) व्याख्यान के समय यदि उपर्युक्त प्रश्नों का सम्यक् ध्यान रखा जाए तो व्याख्यान निश्चय ही प्रभावोत्पादक होगा। यद्यपि स्पष्टता का गुण प्रत्येक भाषण का प्राण होता है तथापि हमें सदैव इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि सम्पूर्ण श्रोता शिक्षित है। मुख्यतः व्यावसायिक विश्व में प्रत्येक प्रभावशाली वक्ता ‘Be dear’ सिद्धान्त का अनुपालन करता है।

(3) व्याख्यान दिए जाने की अवस्था में स्वाभाविक चेष्टाओं का विशेष रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए। सम्भाषण के दौरान कृत्रिमता, व्याख्यान के स्वरूप को कलुषित कर देती है। इस समय भौतिक अवरोधों को अपने अनुगामी बना लेने की भरसक चेष्टा करनी चाहिए।

(4) स्पष्टता के पश्चात् एक भाषण/व्याख्यान में सरलता का गुण अनिवार्य रूप से होना चाहिए। एक प्रभावशाली वक्ता जटिल बातों को बड़े ही सरल शब्दों में स्पष्ट कर देता है।

(5) भाषण को सन्दर्भित विषय के अनुगामी होना चाहिए। तथ्यों का उचित समावेश भी अनिवार्य है। व्याख्यान सुस्पष्ट तथा जीवन को आह्लाद प्रदान करने वाला होना चाहिए।

(6) एक वक्ता को समस्त सूचनाओं की जानकारी होनी चाहिए, चाहे वह साहित्य, दर्शन – आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक, तकनीकी व विज्ञान से सम्बन्धित ही क्यों न हो।

(7) हमें अपने व्याख्यान या भाषण में अशाब्दिक सम्प्रेषण विधि का प्रयोग प्रभावपूर्ण ढंग से करना चाहिए क्योंकि शारीरिक भाषा, भाषा प्रतिरूप इत्यादि का प्रभावशाली प्रयोग व्याख्यान को सम्मोहक या रुचिकर बनाता है ।

(8) भाषण में तकनीकी शब्दावली का यथासम्भव कम प्रयोग किया जाना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण विषय छूटना नहीं चाहिए। भाषण पर वक्ता का पूर्ण अधिकार होना परम आवश्यक है। वक्ता जो भी कहे, उसे साधिकार कहे, यही प्रभावशाली व्याख्यान का गुण है। 

प्रभावशाली भाषण के गुण / लाभ

(Advantages of an Effective Speech)

भाषण कला से वक्ता किसी समूह को प्रेरित करता है। भाषण के द्वारा श्रोताओं को प्रभावित किया जाता है। वक्ता अपने भाषण द्वारा पुरानी नीतियों का समर्थन या निषेध करता है। नवीन का प्रतिपादन या खण्डन करता है। प्रचलित नीतियों पर बल देता है या उन पर प्रहार करता है। किसी नीति या विचार के प्रति श्रोताओं को समर्थन के लिए तैयार करता है या वर्तमान विचारों का खण्डन कर दूसरा मार्ग सुझाता है।

1. श्रोतागण पर स्पष्ट प्रभाव (Good Impression on Audience) – प्रभावशाली भाषण की यह विशिष्टता होती है कि वह श्रोतागण को अपने में आत्मसात कर लेता है। श्रोता पूर्ण रूप से सम्भाषणकर्त्ता के साथ एकाकार हो जाते हैं। श्रोता मन्त्रमुग्ध हो भाषण की विचार – शृंखला के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं। सर्वोत्तम भाषण श्रोता को कायल करता है, उसका मत बदल देता है तथा उसे किसी विशेष कार्य करने को बाध्य करता है। शब्दों का मूल्य जानने वाला वक्ता सर्वप्रथम श्रोताओं की मानसिक स्थिति को समझ लेता है, तत्पश्चात् जनसमूह की अवस्था एवं आवश्यकता के अनुरूप व्याख्यान देता है। एक अच्छे भाषण की विशेषता है कि वह जनसामान्य को अपने निहित विचारों में डुबो लेता है। अच्छे भाषण का प्रभाव स्थायी होता है।

2. क्रमबद्धता (Sequence) – क्रमबद्ध विचार – शैली किसी भी भाषण का प्राण है। विचार, भावना, कल्पना तथा सूचना देने की प्रक्रिया तभी सफल होती है, जब वक्ता क्रमश: सुव्यवस्थित रूप में विषय का प्रतिपादन करता है। भाषण के दौरान सन्दर्भित वार्ता को ही स्थान देना चाहिए। प्रसंगरहित बिन्दुओं का समावेश किया जाना अच्छे भाषण का लक्षण नहीं है। विषयगत क्रमबद्धता का भी पूरा पूरा ध्यान रखना चाहिए।

3. अभिनेयता (Actions) — भाषण की सफलता के लिए अभिनेयता अनिवार्य है। हाथ, आँख, भौंह, होंठ, गर्दन, कन्धे सबकी अपनी विशिष्ट भूमिका होती है। विषय प्रतिपादन की सहजता के साथ अंग संचालन प्रभावकारी होता है। आत्महीनता के भाव को मिटाकर, आत्मविश्वास जगाकर ही झिझक को दूर भगाया जा सकता है तथा भाषण कला में विशिष्टता प्राप्त की जा सकती है।

4. सारगर्भिता (Conclusive) — एक सुव्यवस्थित भाषण का यह विशेष गुण होता है कि उसमें सारगर्भिता का लक्षण स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है । कम-से-कम वाक्यों में अपनी बात को सुस्पष्ट कर देना सम्भाषण कला की दक्षता का स्पष्ट सूचक माना गया है। प्रायः विस्तृत भाषणों को श्रोतागण सुनना पसन्द नहीं करते हैं। ऐसे भाषणों पर बोझिल होने का आरोप प्राय: ही लगता रहा है। छोटे तथा सारगर्भित भाषण की उपादेयता को प्रत्येक क्षेत्र में स्वीकार किया जा चुका है।

5. स्पष्टवादिता (Clarity) – किसी भी भाषण में तथ्यों की स्पष्टता होनी चाहिए। अपने विचारों को निर्भीक ढंग से प्रस्फुटित करना वक्ता का परम धर्म है। कल्पना तथा झूठे तथ्यों का सहारा लेना अच्छे भाषण के गुण नहीं माने जाते हैं | विषय विशेष पर निर्भीक व स्पष्ट व्याख्यान देना, कुशल व्याख्याता का एक महत्त्वपूर्ण गुण होता है। विचारों का उन्मुक्त प्रस्फुटन ही विचार-शैली की उत्तुंगता का परिचायक है।

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