काल श्रेणी के महत्व की व्याख्या कीजिए

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काल श्रेणी का महत्व- काल श्रेणी के महत्व की व्याख्या कीजिए

(Importance of Time Series)

काल श्रेणी के विश्लेषण का आर्थिक एवं व्यावसायिक क्षेत्रों में बहुत अधिक महत्व है। काल श्रेणी के विश्लेषण का मुख्य उद्देश्य भावी घटनाओं का सही अनुमान लगाने के लिए आर्थिक तथ्यों में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी रखना तथा मूल्यांकन करना है। जैसे अर्थशास्त्री को आर्थिक नीतियों के अध्ययन हेतु यह जानना आवश्यक होता है कि भूतकालीन आर्थिक समंकों की क्या प्रवृत्ति रही है तथा भविष्य में प्रवृत्ति क्या होगी? यदि किसी आर्थिक समंक श्रेणी का अध्ययन किया जाये तो समंक मूल्यों में निरन्तर उच्चावचन दिखायी देंगे। परन्तु यदि एक बड़ी काल श्रेणी का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया जाये तो उच्चावचनों के क्रम में एक प्रकार की संमितता दिखायी देगी। प्रत्येक व्यववसायी, उद्योगपति, प्रबन्धक, कृषि एवं वितीय विशेषज्ञ, तथा सरकार के लिए समय परिवर्तन के साथ-साथ समंकों के मूल्य में परिवर्तन की जो यह प्रवृत्ति दिखायी पडती है, उसकी जानकारी प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इसी जानकारी के आधार पर वह स्वयं को आकस्मिक एवं अनियमित उच्चावचनों के प्रभाव से बचा सकता है तथा भविष्य के लिए पूर्वानुमान कर सकता है।

काल श्रेणी के विश्लेषण के महत्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(i) भूतकालीन परिवर्तनों के कारण तथा परिस्थितियों का अध्ययन करके भावी नीतियों एवं कार्यक्रमों की योजना का निर्धारण किया जा सकता है।

(ii) भूतकालीन प्रवृत्ति विश्लेषण द्वारा भावी प्रवृत्तियों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।

(iii) व्यापार-चक्रों की प्रवृत्ति तथा कारणों का अध्ययन करके उनके प्रभावों को कम या दूर किया जा

सकता है।

(iv) अन्य काल श्रेणियों से तुल.त्मक सम्बन्ध कायम करना।

इस प्रकार काल श्रेणियों का विश्लेषण उस कम्पास की तरह है जो सामाजिक, आर्थिक, वित्तीय तथा यावसायिक नीतियों के निर्धारण में अर्थशास्त्री व्यवसायी उपभोक्ता.योजना निर्माता तथा सरकार के लिए मार्ग दर्शक का कार्य करता है।

काल श्रेणी के संघटक

(Components of Time Series)

काल श्रेणी के संघटक या अंग से आशय उन परिवर्तनों से है जिनका अध्ययन एवं विश्लेषण काल श्रेणियों के अन्तर्गत किया जाता है। काल श्रेणी के मुख्य संघटक निम्न प्रकार हैं

(1) दीर्घकालीन प्रवृत्ति या उपनति (Long Term or Secular Trend)

(2) अल्पकालीन टच्चावचन (Short-Time Oscillations)

(i) आर्त्तव विचरण या मौसमी उच्चावचन (Seasonal Variations)

(ii) चक्रीय उच्चावचन (Cyclical Fluctuations)।

(3) अनियमित या दैव उच्चावचन (Irregular or Random Fluctuations)।

(1) दीर्घकालीन प्रवृत्ति या उपनति (Long Term or Secular Trend) -किसी भी काल श्रेणी में समय-समय पर उतार-चढ़ाव होते रहते हैं, परन्तु दीर्घकाल में उस श्रेणी में एक दिशा में बढ़ने या घटने की सामान्य अन्तर्निहित प्रवृत्ति (Underlying Tendency) पायी जाती है। जैसे भारत की जनसंख्या में निरन्तर घट-बढ़ होती दिखायी देती है परन्तु यदि इन अल्पकालीन उच्चावचनों को दूर रखा जाये तो देश की जनसंख्या में मूलतः क्रमिक वृद्धि होती हुई दिखायी देगी। यही अल्पकालीन उच्चावचनों को दूर रखा जाये तो देश की जनसंख्या में मूलतः क्रमिक वृद्धि होती हुई दिखायी देगी। यही दीर्घकालीन प्रवृत्ति कही जाती है। यह प्रवृत्ति हमेशा एक ही दिशा में पायी जाती है चाहे वह वृद्धि की ओर हो या ह्रास की ओर। एक काल श्रेणी में ये दोनों प्रवृत्तियाँ एक साथ प्रगट नहीं हो सकतीं। इसके अतिरिक्त दीर्घकालीन प्रवृत्ति में वृद्धि की कमी एकदम आकस्मिक न होकर धीरे-धीरे क्रमिक गति से होती है । जनसंख्या वृद्धि, उत्पादन प्रणाली में सुधार, पूँजी संख्या व्यावसायिक संगठनों में सुधार, माँग में वृद्धि, सरकारी नियंत्रण आदि कारणों से ही काल श्रेणियों में दीर्घकालीन प्रवृत्ति प्रगट होती है।

(2) अल्पकालीन उच्चावचन (Short-Time Oscillations)-काल श्रेणी में अल्पकाल में नियमितता से अनवतित होकर परिवर्तनों को अल्पकालीन उच्चावचन कहते हैं। ये परिवर्तन दोनों दिशाओं (वृद्धि या कमी) में इन परिवर्तनों की प्रकृति नियमित (Regular) होती है तथा सामयिक परिवर्तनों में एक निश्चित समय के बाद पुनरावृत्ति होती है । एक वर्ष में ही इन परिवर्तनों में नियमितता होने के कारण इनका पूर्वानुमान आसानी से किया जा सकता है । अल्पकालीन उच्चावचन निम्न दो प्रकार के होते हैं

(i) आर्तव या मौसमी उच्चावचन (Seasonal Variations)-आर्तव या मौसमी विचरण काल श्रेणी में ऐसे तथ्य व प्रभाव होते हैं जो जलवायु या रीति-रिवाज के कारण होते हैं। ये विचरण परिणाम में नियमित तथा एकरूपता से घटते-बढ़ते हैं तथा प्रति घन्टा, प्रतिदिन या प्रतिमाह हो सकते हैं। वस्तुओं के मूल्य,उनका उत्पादन उपभोग तथा ब्याज दर आदि सभी आर्तव विचरण को प्रगट करते हैं। ऐसे विचरण मौसम विशेष से सम्बन्धित तथा नियमित होने के कारण इनका पूर्वानुमान करना सम्भव होता है। जैसे-सर्दी के मौसम में ऊनी कपड़ों के मूल्य बढ़ जाते हैं तथा गर्मी में इन कपड़ों के मूल्य घटने लगते हैं, इसी प्रकार गर्मी में बिजली के पंखों तथा कूलर के मूल्य बढ़ जाते हैं तथा सर्दी के मौसम में उनके मूल्य कम हो जाते हैं। मौसम के अतिरिक्त भार भी अन्य कारण हैं जिनसे आर्त्तव विचरण प्रभावित होते हैं; जैसे-रीति-रिवाज, त्योहार, शादी-विवाह आदि।

अतः आत्तव विचरण एक वर्ष के विभिन्न महीनों तथा सप्ताहों में दिखायी देते हैं जो प्रतिवर्ष उसी प्रकार नियमित रूप से आते हैं।

(ii) चक्रीय उच्चावचन (Cyclical Fluctuations)-आर्थिक क्रियाओं में होने वाले क्रमिक उतार-चढ़ाव चक्रीय उच्चावचन कहलाते हैं। चक्रीय उच्चावचन भी नियमित होते हैं परन्तु अवधि एक वर्ष से आधक होती है। ऐसे उच्चावचन व्यापार चक्रों (Trade Cycle) से उत्पन्न होते हैं। व्यापार चक्र आर्थिक क्रियाओं में महत्त्वपूर्ण होते हैं तथा वे मूल्य,उत्पादन तथा मजदूरी आदि को प्रभावित करते हैं । चक्रीय उच्चावचन की क्रमशः चार अवस्थाएँ होती हैं-(i) समृद्धि या तेजी काल (Prosperity of Boom), (ii) अवरोध (Recession), (iii) मन्दी या अवसाद (Depression) तथा (iv) पुनरुत्थान (Recovery) | व्यापार चक्रों की समयावधि उतनी नियमित नहीं होती है जितनी मौसमी विचरण की होती है। यही कारण है कि उनसे होने वाले प्रभावों को सामयिक उच्चावचन न कह कर चक्रीय उच्चावचन कहते हैं।

(3) अनियमित या देव उच्चावचन (Irregular or Random Fluctuations)-जब आकास्मक कारणों से कभी-कभी काल श्रेणी में परिवर्तन होते हैं तो उन्हें अनियमित या दैव वश उच्चावचन कहते हैं । ऐसे उच्चावचनों की पहले से कोई जानकारी नहीं होती है इसलिए इनका पूर्वानुमान करना कठिन होता है। अनियमित या दैव उच्चावचन निम्न दो प्रकार के हो सकते हैं

(i) घटनात्मक परिवर्तन (Episodic Movement)-घटनात्मक परिवर्तन किसी आकस्मिक घटना के कारण उत्पन्न होते हैं; जैसे-युद्ध, बाढ़, सूखा, भूकम्प, हड़ताल तथा राजनीतिक अस्थिरता आदि।

(ii) संयोगिक परिवर्तन (Accidental Movement)-संयोगिक परिवर्तन दैव योग (Random) प्रकृति के होते हैं।

काल श्रेणी का विश्लेषण

(Analysis of Time Series)

काल श्रेणी के संघटक या अंगों का अध्ययन ही काल श्रेणी का विश्लेषण कहलाता है। यह स्पष्ट हो चुका है कि काल श्रेणी के मूल समंक (Original Data or 0), प्रवृत्ति मूल्य (Trend Value or T), अल्पकालीन परिवर्तन अर्थात् मौसमी विचरण (Seasonal Variations or C) तथा चक्रीय उच्चावचन (Cyclical Fluctuations or C) और अनियमित उच्चावचन (Irregular Fluctutions or I) द्वारा सामूहिक रूप से प्रमाणित होते हैं अतः काल श्रेणी इन चार संघटकों का मिश्रण है। काल श्रेणी के इन चार संघटकों को अलग-अलग करके उनका अध्ययन करना ही काल श्रेणी का विश्लेषण कहलाता है। काल श्रेणी के इन चार संघटकों की विश्लेषणात्मक गणना निम्न दो निदर्शो (Models) के आधार पर की जा सकती है।

1 योगात्मक निदर्श (Additive Model)-इस निदर्श की आधारभूत मान्यता यह है कि मूल समंक (O) चार संघटकों का योग होता है, अर्थात्

0 = T+S+C+1

इस मान्यता के आधार पर काल श्रेणी के मूल समंक में से दीर्घकालीन प्रवृत्ति (T) को घटाकर (0-T) अल्पकालीन उच्चावचनों (S + C + 1) का पृथक्कीकरण किया जा सकता है।

0-T=S+C+I

इन अल्पकालीन उच्चावचनों में से मौसमी विचरण (S) को घटा कर चक्रीय उच्चावचन तथा अनियमित उच्चावचनों (C+n का अनमान लगाया जा सकता है।

0-T-S = C+I

इसी प्रकार अल्पकालीन उच्चावचनों में से मौसमी (S) तथा चक्रीय (C) उच्चावचनों को घटाकर अनियमित परिवर्तन (1) ज्ञात किया जा सकता है।

(0-T)-(S+C) =1

2. गुणात्मक निदर्श (Multiplicative Model)-इसकी मान्यता यह है कि काल श्रेणी में मूल समंक | (O) चार संघटकों का गुणनफल होता है, अर्थात् ।

0 = TxsxcxI

इस मान्यता के अनुसार अल्पकालीन उच्चावचन की गणना निम्न प्रकार होगीअल्पकालीन उच्चावचन =O/T = SxcxI चक्रीय एवं अनियमित उच्चावचन = =CxI अनियमित उच्चावचन =सास०

Txsxc इस प्रकार उपरोक्त निदर्शो (Models) में से किसी एक के द्वारा काल श्रेणी के संघटकों को अलग-अलग किया जा सकता है। काल श्रेणी में परिवर्तन अनेक शक्तियों के कारण होते हैं जिन पर विश्लेषणकर्ता का नियन्त्रण नहीं होता है तथा यही कारण है कि वह भौतिक विज्ञान की प्रयोग विधि को अपना कर विश्लेषण नहीं कर सकता हैउसे सभी शक्तियों में से एक को छोड़ कर अन्य को स्थिर मानना पड़ता है। अन्य को स्थिर की मान्यता के कारण ही काल श्रेणी के विश्लेषण की विधि शुद्ध नहीं मानी जाती है, फिर भी आर्थिक एवं व्यावसायिक क्षेत्रों में इसका विशेष महत्व है

दीर्घकालीन प्रवृत्ति की माप

(Measurement of Secular Trend)

दीर्घकालीन प्रवृत्ति का अध्ययन तभी किया जा सकता है जब काल श्रेणी में उसको प्रभावित करने वाले अल्पकालीन उच्चावचनों को दूर कर दिया जाये। दीर्घकालीन प्रवृत्ति की माप करने की निम्न विधियाँ हैं

(1) स्वतन्त्र हस्त वक्र विधि (Freehand Curve Method)

(2) अर्धमध्यक विधि (Semi-Average Method)

(3) चल माध्य विधि (Moving Average Method)

(4) न्यूनतम वर्ग विधि (Least Square Method)

1 स्वतन्त्र हस्त वक्र विधि (Freehand Curve Method)-दीर्घकालीन प्रवृत्ति ज्ञात करने की यह सबसे आसान विधि है। इसके अनुसार सर्वप्रथ्म काल श्रेणी को ग्राफ पर प्रांकित कर लिया जाता है, फिर रेखाचित्र के उच्चावचनों को ध्यान में रखते हुए उनके विभिन्न बिन्दुओं के मध्य से होकर जाती हुई एक सरल रेखा (Straight Line) या एक सरलित वक्र (Smoothed Curve) बना दिया जाता है। यही रेखा या वक्र दीर्घकालीन प्रवृत्ति को प्रदर्शित करते हैं। इस विधि में बिन्दुओं के सरलीकरण का कोई स्पष्ट आधार न होने के कारण वक्र का कोई निश्चित स्वरूप नहीं आंका जा सकता है

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