Corporate Accounting Book Pdf in Hindi

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Corporate Accounting Book Pdf in Hindi

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bcom 3rd year Corporate Accounting

विषय सूची

  1. अशों का निर्गमन हरण एवं पुनर्निगमन (Issue, Forfeiture and Re-issue of Shares)

2. पूर्वाधिकार अंशों का शोधन (Redemption of Preference Shares)

3. ऋणपत्रों का निर्गमन एवं शोधन (Issue and Redemption of Debentures)

4. संयुक्त पूँजी कम्पनियों के अन्तिम खाते (Final Accounts of Joint Stock Companies)

5. ख्याति का मूल्यांकन (Valuation of Goodwill)

6. अंशों का मूल्यांकन (Valuation of Shares)

7. एकीकरण और पुनर्निमाण (Amalgamation and Reconstruction)

8. सूत्रधारी कम्पनी का समेकित (एकीकृत) चिट्ठा (Consolidated Balance Sheet of Holding Companies)

9. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

10. परीक्षा प्रश्न-पत्र (Examination Paper)


B.Com- III : Corporate Accounting syllabus

Unit I : Issue, Forfeiture, and Re-issue of Shares : Redemption of preference shares; Issue and redemption of debentures.

Unit-II : Final accounts : Excluding computation of managerial remuneration, and disposal of profit.

Unit-III : Valuation of Goodwill and Shares.

Unit-IV : Accounting For Amalgamation of Companies as per Indian Accounting Standard 14; Accounting for internal reconstruction-excluding inter-company holdings and reconstruction schemes.

Unit-V : Consolidated Balance Sheet of holding companies with one subsidiary only.


अंशों का निर्गमन, हरण एवं पुनर्निर्गमन 

(Issue, Forfeiture and Re-issue of Shares)

कम्पनी का आशय (Meaning of Company)

कम्पनी विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है। वह एक पृथक् वैधानिक अस्तित्व रखती है। इसे अविच्छिन्न उत्तराधिकार प्राप्त है और इसकी एक सार्वमुद्रा होती है। कम्पनी के सदस्यों का दायित्व सीमित होता है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(20) के अनुसार, “कम्पनी उसे कहते हैं जिसका समामेलन इस अधिनियम के अधीन अथवा इसके पूर्व के किसी कम्पनी अधिनियम के अधीन हुआ है।” 

Bcom 3rd Year Corporate Accounting notes

निजी/प्राइवेट कम्पनी (Private Company)-

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(68) के अनुसार “प्राइवेट कम्पनी का आशय एक ऐसी कम्पनी से है जो अपने अन्तर्नियमों द्वारा (अ) अपने अंशों के (यदि कोई हों) हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध लगाती है। (ब) अपने सदस्यों की संख्या को 200 (इससे पूर्व यह संख्या 50 थी) तक सीमित रखती है और (स) कम्पनी के अंशों और ऋणपत्रों के लिए जनता को निमन्त्रण नहीं देती है।’ निजी कम्पनी की स्थापना केवल दो सदस्यों से हो सकती है। कम्पनी अधिनियम, 2013 के । अनुसार निजी कम्पनी ‘एक व्यक्ति कम्पनी’ (One Person Company) के रूप में भी … समामेलित करायी जा सकती है। 

सार्वजनिक कम्पनी (Public Company)-

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(71) के अनुसार, पब्लिक कम्पनी से आशय एक ऐसी कम्पनी से है, जो एक प्राइवेट कम्पनी नहीं है तथा जिसकी न्यूनतम चुकता पूँजी 5 लाख ₹ या ऐसी अधिक राशि है, जो निर्धारित की जाये। सार्वजनिक कम्पनी में कम-से-कम 7 सदस्यों का होना अनिवार्य है। 

अंश पूंजी (Share Capital)

पूँजी का विवरण–प्रत्येक कम्पनी के पार्षद सीमानियम में उसकी पूँजी लिखी जाती है। उसमें यह भी दिखाया जाता है कि पूँजी कितने अंशों में बँटी हुई है और अंश का कितना मूल्य है। 

कम्पनी की अंश पूँजी के प्रकार-कम्पनी की अंश पूँजी विभिन्न प्रकार की होती है । जिसे नीचे समझाया गया है 

(1) अधिकृत, अंकित (नाममात्र) या पँजीकृत पूँजी (Authorized, Nominal or Registered Capital)—

जिस पूँजी से किसी कम्पनी की रजिस्ट्री की जाती है उसे ‘अधिकृत पूँजी’ कहते हैं। इसका उल्लेख पार्षद सीमानियम में किया जाता है। दूसरे शब्दों में, यह वह पूँजी होती है जो एक कम्पनी अपने पूरे जीवनकाल में अधिक से अधिक एकत्रित कर सकती 

(2) निर्गमित पूँजी (Issued Capital)—

यह अधिकृत पूँजी का वह भाग है, जो जनता के लेने के लिए निर्गमित किया जाता है। 

(3) प्रार्थित या अभिदत्त पूँजी (Subscribed Capital)—

यह निर्गमित पूँजी का वह भाग है जिसे लेने के लिए जनता से आवेदन-पत्र/प्रार्थना-पत्र प्राप्त हुए हों। 

(4) मांगी हुई या याचित पूँजी (Called-up Capital)

कम्पनी द्वारा आवंटित और के सम्बन्ध में जितनी राशि मांग ली जाती है, उसे ‘माँगी हुई पूँजी’ कहा जाता है। 

(5) म मांगी गई या अयाधित पंजी (Uncalled Cupital)

प्रार्थित पंजी के किन भाग के लिए कम्पनी द्वारा माँग नही की जाती है, उसे ‘न मांगी हुई पूँजी’ कहा जाता है। 

(6) चुकता पूंजी (Paid-up Capital)

‘मांगी हुई जी’ का वह भाग जो अंशधारित द्वारा भुगतान कर दिया जाता है, ‘चुकता पूंजी’ कालाता है। 

(7) संचित पूंजी (Reserve Capital)

कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा अनुसार एक सीमित दायित्व वाली कम्पनी एक विशेष प्रस्ताव द्वारा यह निश्चित कर सकती कि इसको ‘न माँगी हुई पूँजी’ (Uncalled Capital) का कुछ भाग तब तक अंशधारियों में नहीं माँगा जायेगा जब तक कि कम्पनी में विघटन का समय न आ जाये। इस भाग को संचित पूँजी कहा जाता है। इस पूँजी को आर्थिक चिट्टे में प्रदर्शित नहीं किया जाता है। 

अंश  (Shares)

एक अंश पूँजी वाली कम्पनी की पूँजी को एक निश्चित राशि के जिन हिस्सों में विभाजित किया जाता है, उन्हें ‘अंश’ कहते हैं; जैसे यदि एक कम्पनी की पूँजी 10,000 रुपये है और इसे दस-दस रुपये के 1,000 हिस्सों में बाँटा गया है, तो दस रुपये के इस प्रत्येक हिस्से को ‘अंश’ कहा जायेगा।। 

अंशों के भेद (Kinds of Shares)

(1) पूर्वाधिकार अंश (Preference Shares)

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 43 के अनुसार, “अंशों द्वारा सीमित किसी कम्पनी की दशा में पूर्वाधिकारी अंश पूँजी कम्पनी द्वारा निर्गमित अंश पूँजी का वह भाग है जिस पर (अ) लाभांश के भुगतान में या/तथा (ब) कम्पनी के समापन पर पूँजी के भुगतान में पूर्वाधिकार होता है।” लाभांश सम्बन्धी पूर्वाधिकार का आशय यह है कि जब किसी कम्पनी का लाभ अंशधारियों में बाँटा जाता है तो इस श्रेणी के अंशधारियों को सर्वप्रथम एक निश्चित दर से लाभांश पाने का अधिकार होता है। 

जो के पुनर्भुगतान के सम्बन्ध में पूर्वाधिकार का आशय यह है कि जब कम्पनी का विघटन होता है उस समय कम्पनी द्वारा विभिन्न लेनदारों को तथा अन्य बाहरी व्यक्तियों को (जिन्हें कि कम्पनी का भुगतान करना था) भुगतान करने के बाद यदि कोई गशि शेष बचती है, तो अन्य अंशधारियों की तुलना में सर्वप्रथम इन अंशधारियों की पूँजी को लौट या जायेगा। इनके भुगतान के बाद बची हुई रकम में से ही अन्य प्रकार के अंशधारियों का भुगतान किया जायेगा। पूर्वाधिकार अंशाधारियों को कम्पनी के प्रबन्ध संचालन में भाग लेने का अधिकार नहीं होता है एवं केवल विशेष स्थिति में मत देने का अधिकार है। 

पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन 

(ISSUE OF PREFERENCE SHARES)

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 55 के अनुसार,

(1) इस अधिनियम के लाग होने के पश्चात् अंशों द्वारा सीमित कोई कम्पनी ऐसे पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन नहीं कर सकती जो अशोध्य हो अर्थात् अब केवल शोध्य पूर्वाधिकार अंश ही निमित किए जा सकते हैं। 

(2) अंशों द्वारा सीमित कम्पनी, यदि इसका पार्षद अन्तर्नियम अधिकृत करता है. ऐसे पूर्वाधिकार अंश निर्गत कर सकती है जो निर्गमन की तिथि से आधिकतम 20 वर्ष की अवधि के अन्तर्गत शोध्य हो। 

आधारभूत अवसंरचना परियोजनाओं की दशा में कम्पनी 20 वर्ष से अधिक अवधि में शोध्य पूर्वाधिकार अंश निर्गमित कर सकती है, परन्तु यह अवधि 30 वर्ष से अधिक नहीं हो सकती। इसमें भी 20 वर्ष के पश्चात् अर्थात् 21 वें वर्ष से प्रतिवर्ष ऐसे अंशों के कम-से-कम 10% का पूर्वाधिकार अंशधारियों के विकल्प पर आनुपातिक आधार पर शोधन किया जायेगा। Taffetat simt as a

corporate accounting for b.com 2nd year pdf

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