Saturday, November 30, 2024

POSDCORB

POSDCORB- लोक प्रशासन के क्षेत्र से सम्बन्धित पोस्डको दृष्टिकोण

पोस्डकोर्ब दृष्टिकोण-लूथर गुलिक से पूर्व भी उर्विक तथा फेयोल आदि ने पोस्डकोर्ब के सम्बन्ध में संक्षिप्त रूप से विचार किया था। परन्तु प्रशासन के क्षेत्र का व्यापक वर्णन लूथर गुलिक ने किया है और उसने इसके अन्तर्गत जिन महत्त्वपूर्ण तथ्यों का विवेचन किया है वे पोस्डकोर्ब (POSDCORB) के नाम से प्रसिद्ध हैं। पोस्डकोर्ब के अंग्रेजी के प्रत्येक अक्षर का भाव निम्न प्रकार है-

Posdcorb full form

P-Planning (नियोजन)-योजनाएँ बनाना अर्थात् इसके अन्तर्गत उन समस्त तथ्यों की रूपरेखा के सम्बन्ध में व्यापक रूप से विचार किया जाता है जिन्हें हमको करना चाहिए। लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए साधनों पर भी विचार किया जाता है।

0-Organization (संगठन)-इसमें हम संगठन के आधार, विभाजन तथा उपविभाजन के सम्बन्ध में अध्ययन करते हैं।

S_Staffing (कार्मिक संगठन)-इसका सम्बन्ध लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कुशल कर्मचारियों की खोज तथा उनकी नियुक्ति से है।

D_Direction (निर्देशन)-
इसका अभिप्राय शासन सम्बन्धी निर्णय करना तथा उन्हीं के अनुरूप कर्मचारियों को विशिष्ट एवं सामान्य आदेश एवं सूचनाएँ देना है। Co-Co-ordination (समन्वय)-इसका अर्थ कार्य के विविध अंगों को परस्पर सम्बद्ध करना और उनमें समन्वय स्थापित करना है अर्थात् परस्पर व्याप्ति तथा संघर्ष को उत्पन्न होने से रोकना है।

R-Reporting (प्रतिवेदन)-प्रशासकीय कार्यों की प्रगति के विषय में उन लोगों को सूचनाएँ देना है, जिनके प्रति कार्यपालिका उत्तरदायी हैं तथा निरीक्षण, अनुसन्धान, अभिलेखन आदि द्वारा इस प्रकार की सूचनाओं का संग्रह करना भी है।

B-Budgeting (बजट तैयार करना)—इसके अन्तर्गत हम वित्त-व्यवस्था का संक्षिप्त अध्ययन करते हैं। विशेष रूप से इसका सम्बन्ध बजट तैयार करने से है।


उपर्युक्त ‘पोस्डकोई’ क्रियाएँ सभी संगठनों में सम्पन्न की जाती हैं। प्रशासन का चाहे कोई भी क्षेत्र हो अथवा कोई भी उद्देश्य हो ये प्रबन्ध सम्बन्धी सामान्य समस्याएँ ममी मंगटना में एक जैसी होती हैं।

विषय के रूप में भारत में लोक प्रशासन का विकास

भारत में लोक प्रशासन विषय का प्रारम्भ 1937 ई० से माना जाता है, जब मद्राम विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग में लोक प्रशासन में डिप्लोमा कोर्स प्रारम्भ किया गया। कुछ विद्वानों का यह मत है कि 1930 ई० में लखनऊ विश्वविद्यालय के एम० ए० राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम में लोक प्रशासन का एक अनिवार्य प्रश्न-पत्र जुड़ना इस विषय की भारत में शुरुआत थी। 1950 ई० में नागपुर विश्वविद्यालय में लोक प्रशासन तथा स्थानीय स्वशासन विभाग की स्थापना की गई। यह विभाग इस विषय पर स्नातकोत्तर डिग्री प्रदान करता है। लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर डिग्री देने तथा स्वतन्त्र विभाग की स्थापना करने का श्रेय नागपुर विश्वविद्यालय को जाता है तथा प्रो० एम० पी० शर्मा को लोक प्रशासन का पहला प्रोफेसर बनने का श्रेय प्राप्त है। उसके पश्चात् भारत के अनेक विश्वविद्यालयों ने डिग्री अथवा डिप्लोमा कोर्स को प्रारम्भ किया। सम्पूर्ण भारत के 30-35 विश्वविद्यालयों में लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा प्रदान की जाती है तथा कुछ विश्वविद्यालयों ने एम० फिल० पाठ्यक्रम भी प्रारम्भ किए हैं।

डॉ० पॉल एपलबी ने भारतीय प्रशासन सम्बन्धी अपनी रिपोर्ट में लोक प्रशासन के लिए एक संस्थान की स्थापना की सिफारिश की थी जिसके आधार पर 1954 ई० में ‘इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (IIPA)’ की स्थापना की गई। यह एक स्वायत्तशासी संस्था है। संस्थान का जर्नल ‘इण्डियन जर्नल ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन’ देश में लोक प्रशासन में रुचि रखने वाले व्यक्तियों के बीच विचार-विमर्श के आदान-प्रदान का एक सशक्त माध्यम बन गया है। भारत सरकार ने उच्च प्रशासनिक अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए मसूरी में 1949 ई० में नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन की स्थापना की। राज्य सरकारों ने भी इसी आधार पर अपने-अपने राज्यों में ऐसी ही अकादमियों का स्थापना की। स्नातक स्तर पर लोक प्रशासन जोधपुर, उदयपुर, उस्मानिया, पंजाब तथा सागर विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जा रहा था। राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर, मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय उदयपुर तथा । जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर स्नातकोत्तर तथा पी-एच०डी० की उपाधि प्रदान करते हैं।

भारतीय विश्वविद्यालयों में लोक प्रशासन तुलनात्मक रूप से एक नया शैक्षिक विषय है, परन्तु इसके भावी विकास के लक्षण तथा सम्भावनाएँ अन्य सामाजिक विषयों की तुलना में अधिक हैं। 1987 ई० में लोक प्रशासन विषय को संघ सेवा आयोग द्वारा सिविल सेवा प्रतियोगिता परीक्षा में वैकल्पिक विषयों की सूची में सम्मिलित किए जाने से इसकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई है। वस्तुतः भारत में लोक प्रशासन के शिक्षण का पाठ्यक्रम अमेरिकी प्रभाव वाला ही बना हुआ है। इससे यह अध्ययन भारतीय सन्दर्भ में सर्वथा अनुपयुक्त है।

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