Contract of Indemnity

Contract of Indemnity भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 124 के अनुसार, “हानि रक्षा (क्षतिपूर्ति) संविदा ऐसा समझौता है जिसके द्वारा एक पक्ष दूसरे पक्ष को उन सब हानियों से बचाने का वचन देता है, जो स्वयं वचनदाता अथवा अन्य किसी व्यक्ति द्वारा वचन पाने वाले को पहँचे। जो व्यक्ति हानि से बचाने का वचन देता है उसे क्षतिपूर्तिकर्त्ता (Indemnifier)कहते हैं और जिसको वचन दिया जाता है उसको क्षतिपूर्तिधारी (Indemnified) कहते हैं।” उदाहरणार्थ— ‘अ’, ‘ब’ को ₹5000 के एक ऋण के सम्बन्ध में ‘स’ के व्यवहार से होने वाली हानि को पूरा करने का करार करता है। भारतीय संविदा अधिनियम के अनुसार, यह क्षतिपूर्ति की संविदा है। भारतीय न्यायालय ने इस परिभाषा को संकुचित माना है। इस सम्बन्ध में Gajanan Vs. Moreshar (1942) का निर्णय महत्त्वपूर्ण है जिसमें न्यायालय ने क्षतिपूर्ति (हानि रक्षा) की इस परिभाषा को ठीक नहीं माना है। अंग्रेजी राजनियम के अनुसार, “क्षतिपूर्ति (हानि रक्षा) संविदा एक ऐसी संविदा है जिसके अनुसार किसी दूसरे व्यक्ति को होने वाली किसी ऐसी हानि से रक्षा का वचन दिया जाता है जो वचनदाता के कहने पर किए गए व्यवहार की परिणति हो।” क्षतिपूर्ति संविदाएँ दो प्रकार की हो सकती हैं— स्पष्ट तथा गर्भित । गर्भित अनुबन्ध मामले की परिस्थितियों से ज्ञात हो जाता है; जैसे – (i) ‘अ’ की इच्छा पर ‘ब’ द्वारा किए कार्यों अथवा (ii) पक्षकारों के सम्बन्धों से उत्पन्न हुए दायित्वों पर आधारित हो सकता है, जैसे अपने एजेन्ट द्वारा किए गए सभी अधिकृत कार्यों के लिए नियोक्ता द्वारा क्षतिपूर्ति (हानि रक्षा) का गर्भित अनुबन्ध होता है। सामान्य नियमों का उल्लंघन मान्य नहीं – क्षतिपूर्ति (हानि रक्षा) का अनुबन्ध भी अनुबन्ध का ही एक रूप है और इसलिए इसमें भी अनुबन्ध के सामान्य नियमों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए, अर्थात् पक्षकारों में अनुबन्ध करने की क्षमता, उनकी स्वतन्त्र सहमति व वैध उद्देश्य आदि। इनके बिना क्षतिपूर्ति (हानि रक्षा) अनुबन्ध वैधानिक दृष्टि से अमान्य हो जाएगा। इसलिए कपट द्वारा प्राप्त किया गया हानि-रक्षा का कोई भी वचन विधि में कभी भी मान्य नहीं होगा। इसी प्रकार यदि ‘अ’, ‘ब’ से ‘स’ को पीटने के लिए कहता है, और यह वचन देता है कि वह उसके परिणामों से होने वाली हानि से रक्षा करेगा। ‘ब’, ‘स’ को पीटता है और उस पर ₹500 जुर्माना होता है। ‘ब’ इस धन को ‘अ’ से प्रतिपूर्ति नहीं करा सकता । क्षतिपूर्ति (हानि रक्षा) संविदा वास्तव में संविदा का ही एक भाग है और इसमें संविदा के सभी लक्षण विद्यमान होने के कारण यह आवश्यक है कि संविदा के सामान्य नियमों का उल्लंघन न किया जाए। कपट, मिथ्यावर्णन, अनुचित प्रभाव के द्वारा, संविदा के अयोग्य पक्षकारों द्वारा की गयी संविदाएँ वैधानिक रूप से दोनों पक्षकारों द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हो सकतीं। … Read more

Sale by Auction

नीलामी द्वारा विक्रय (Sale by Auction) नीलाम द्वारा विक्रय वह विक्रय है जिसके अन्तर्गत आवाज लगाकर क्रेताओं को वस्तु के मूल्य का अधिकार दिया जाता है, अर्थात् आवाज लगाकर लोगों को क्रय करने के लिए आमन्त्रित किया जाता है और जो भी व्यक्ति उस वस्तु के लिए सर्वाधिक मूल्य लगाता है उसे वह वस्तु दे दी जाती है। नीलाम विक्रय के सम्बन्ध में धारा 64 (1-6) तक के प्रावधानों में उल्लेख किया गया है जो अग्र प्रकार है- 1. भिन्न-भिन्न ढेरियाँ भिन्न-भिन्न संविदे की वस्तुएँ मानी जाएँगी–धारा 64 (1) के अनुसार, यदि माल अनेक ढेरियों में रखा जाता है तो प्रत्येक ढेर का विषय एक पृथक् संविदा मानी जाएगी। 2. विक्रय संविदे की समाप्ति – धारा 64-(2) के अनुसार, इस विक्रय की समाप्ति तब मानी जाएगी जब विक्रेता डंके की चोट पर अथवा अन्य प्रचलित रीति से ‘एक दो तीन’ कहकर नीलामी बन्द कर दे। जब तक बोली समाप्त न कर दी जाए तब तक बोलने वाला अपनी बोली वापस ले सकता है। 3. विक्रय का अधिकार – धारा 64 (3) के अनुसार, विक्रय का अधिकार स्पष्टतः विक्रेता के द्वारा अथवा उसके द्वारा अधिकृत अन्य किसी व्यक्ति के द्वारा हो सकता है अर्थात् स्वयं या उसका अधिकृत व्यक्ति निम्न व्यवस्थाओं के अनुसार बोली बोल सकता है- (i) नीलामी की पूर्व सूचना–धारा 64 (4) के अनुसार, कार्य न किए जाने पर विक्रय कपटपूर्ण माना जाएगा। (ii) न्यूनतम मूल्य का निर्धारण – धारा 64 (5) के अनुसार, बिक्री के लिए कोई सुरक्षित मूल्य नियत किया जा सकता है, जिससे विक्रेता के हितों की रक्षा हो सके।  (iii) बनावटी बोली –– धारा 64 (6) के अनुसार, यदि विक्रेता मूल्य बढ़ाने के उद्देश्य से कुछ बनावटी बोली (Pretending Bidding) बोलता है तो विक्रय क्रेता की इच्छा पर व्यर्थनीय माना जाएगा।

Meaning of Free Consent

स्वतन्त्र सहमति का अर्थ  (Meaning of Free Consent) भारतीय संविदा अधिनियम के अनुसार, वैध संविदा होने के लिए यह आवश्यक है कि पक्षों की स्वतन्त्र सहमति हो। धारा 10 के अनुसार, “वे सभी समझौते जो संविदा के योग्य पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति से किए गए हों .”।  अतः अधिनियम में पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति’ होनी आवश्यक है। पक्षों की स्वतन्त्र सहमति तब कहलाती है जब दो व्यक्ति एक बात पर एक ही अर्थ में राजी हो जाते हैं, तब कहा जाता है कि उन्होंने सहमति दी है। सहमति तब स्वतन्त्र मानी जाती है जब वह उत्पीड़न (Coercion), अनुचित प्रभाव (Undue Influence), कपट (Fraud), मिथ्यावर्णन (Misrepresentation) अथवा गलती (Mistake) के कारण न दी गई हो । ……. प्रश्न 5 – प्रस्ताव एवं स्वीकृति पर टिप्पणी लिखिए। Write a note on Proposal and Acceptance. किसी समझौते के लिए प्रस्ताव (Proposal) तथा उसकी स्वीकृति (Acceptance) होनी आवश्यक है। धारा 2 (a) के अनुसार, जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से किसी कार्य को करने अथवा न करने के विषय में अपनी इच्छा को इस आशय से प्रकट करे कि दूसरा व्यक्ति उसके कार्य को करने अथवा न करने के लिए अपनी सहमति प्रदान करे तो इस इच्छा को प्रस्ताव कहते हैं। प्रस्ताव रखने वाले को वचनदाता या प्रस्तावक कहा जाता है, जबकि जिसके समक्ष प्रस्ताव रखा जाता है उसे वचनगृहीता कहते हैं। किसी भी समझौते को वैधानिक रूप (संविदा) देने के लिए आवश्यक है कि एक पक्ष द्वारा प्रस्ताव किया जाए जिसकी स्वीकृति दूसरा पक्ष (वचनगृहीता) दे। स्वीकृति से तात्पर्य प्रस्ताव की शर्तरहित स्वीकृति से है। जब वह व्यक्ति जिससे प्रस्ताव किया गया है प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे देता है तब प्रस्ताव स्वीकृत किया हुआ माना जाता है। स्वीकार किया हुआ प्रस्ताव वचन या समझौता कहलाता है। धारा 2 (b) के अनुसार, “जब वह व्यक्ति जिसके समक्ष प्रस्ताव रखा गया हो, अपनी सहमति दे देता है तो कहेंगे कि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया।” Become an Agent एजेन्ट कोई भी व्यक्ति हो सकता है। एजेन्ट बनने के लिए अनुबन्ध करने की क्षमता होना आवश्यक नहीं है क्योंकि तृतीय पक्षकारों के प्रति एजेन्ट के द्वारा किए गए कार्यों के लिए प्रधान (नियोक्ता) स्वयं उत्तरदायी होता है। इसलिए एक अवयस्क अथवा अस्वस्थ मस्तिष्क वाला व्यक्ति भी एजेन्ट बन सकता है, परन्तु ऐसा व्यक्ति नियोक्ता के प्रति अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। दूसरे शब्दों में, एजेन्ट को नियोक्ता के प्रति उत्तरदायी ठहराने के लिए आवश्यक है कि वह वयस्क हो तथा स्वस्थ मस्तिष्क वाला हो। 

Business Communication Notes pdf

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Business communication Question paper 2020 pdf

Business communication Question paper 2020 pdf व्यावसायिक सम्प्रेषण (Business Communication) B.Com. (Part 1) इस प्रश्न-पत्र को पाँच खण्डों-अ, ब, स, द एवं इ में विभाजित किया गया है। खण्ड-अ (लघु उत्तरीय प्रश्न) में एक लघु उत्तरीय प्रश्न है, जिसके दस भाग हैं। ये सभी दस भाग अनिवार्य हैं। खण्डों-ब, स, द एवं इ (विस्तृत उत्तरीय … Read more

Audience Analysis

Audience Analysis श्रोता विश्लेषण श्रोताओं का समूह सम्प्रेषण का दूसरा किनारा एवं महत्त्वपूर्ण पक्ष होता है। श्रोताओं की प्रतिक्रिया, प्रतिपुष्टि अथवा प्रत्युत्तर सम्प्रेषण प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण घटक है। सम्प्रेषण प्रक्रिया में श्रोताओं की भूमिका निम्नांकित चित्र द्वारा प्रदर्शित की जा सकती है – व्यावसायिक सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देश एवं प्रत्युत्तर क्रमश: Input तथा Output होते हैं | सन्देश एवं उनके प्रत्युत्तर द्वारा आन्तरिक एवं बाह्य दोनों पक्षों को प्रभावित / प्रेरित (Influence) कर संगठनात्मक छवि (Organisational Image) का निर्माण किया जाता है। सम्प्रेषण द्वारा सहयोगियों, वैयक्तिक, प्रबन्धकीय, संगठनात्मक एवं व्यावहारिक क्षमताओं को विकसित करने के लिए प्रेरित करना तथा साथ-साथ बाह्य पक्षों के मध्य संगठन, उत्पाद, कार्यप्रणाली की स्वच्छ छवि को निर्मित करना प्रमुख ध्येय होता है। इस लक्ष्य पूर्ति के लिए सम्प्रेषण के प्रभावों का परीक्षण एवं उनका अध्ययन ही श्रोता विश्लेषण कहा जाता है। Audience Analysis Audience group is the other side and important aspect of communication. Audience feedback is an important component of the communication process. The role of the audience in the communication process can be represented … Read more