Saturday, December 21, 2024
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BA 2ND YEAR ARCHAEOLOGICAL SOURCES NOTES

BA 2ND YEAR ARCHAEOLOGICAL SOURCES NOTES

पुरातात्त्विक स्रोत 

(Archaeological Sources)

मध्यकालीन भारतीय इतिहास के प्रमुख पुरातात्त्विक स्रोतों में मुद्राएँ एवं स्मारकों का उल्लेख किया जा सकता है। 

मुद्राएँ-वी०ए० स्मिथ के अनुसार “छापी गई मुद्राएँ अपनी मौन भाषा में यह बताती हैं कि उनको गढ़ने वाले व्यक्ति अधिकारी नहीं थे। मुद्राएँ शिल्प संघ या सुनारों द्वारा निर्मित होती थीं।” भारत के विभिन्न भागों से अनेक प्रकार की मुद्राएँ एवं सिक्के प्राप्त हुए हैं। मुद्राओं एवं सिक्कों पर पड़ी तिथियों से कालक्रम को निश्चित करने में सहायता प्राप्त होती है। इनसे तत्कालीन आर्थिक दशा, सम्बन्धित राज्य सीमा, वंशावली, धार्मिक दशा, कला तथा अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी प्राप्त होती है। 

स्मारक-स्मारकों के अन्तर्गत सभी प्रकार के भवन, मूर्तियाँ, इमारतें, कलात्मक वस्तुएँ, मन्दिर आदि सम्मिलित किए जा सकते हैं। आगरा का किला, अटाला मस्जिद, फतेहपुर सीकरी की इमारतें, ताजमहल मध्यकालीन भारत के इतिहास को प्रकट करते हैं। 

साहित्यिक एवं ऐतिहासिक स्रोत

(Literary and Historical Sources)

(1) तुजुक-ए-बाबरी (बाबर)

इस कृति को वाक्यात-ए-बाबरी तथा बाबरनामा भी कहा जाता है। इसकी रचना मुगल सम्राट बाबर ने तुर्की भाषा में की थी। इसका फारसी अनुवाद अब्दुर्रहीम खानखाना तथा पायन्दा खाँ ने किया था। बाद में श्रीमती बेवरीज ने अंग्रेजी में इसका अनुवाद किया। अब श्री राधेश्याम ने हिन्दी में ‘बाबरनामा’ का अनुवाद कर दिया है। इस ग्रन्थ में बाबर ने अपने जीवन की उल्लेखनीय घटनाओं का विवरण लिपिबद्ध किया है। इस ग्रन्थ में 1483 से 1494 तक, 1503 से 1504 तक, 1508 से 1519 तक, 1520 से 1525 तक, 1528 से 1529 तक तथा 1529 से 26 दिसम्बर, 1530 ई० तक की घटनाओं का उल्लेख है। बाबरनामा का तीसरा भाग भारत से सम्बन्धित है। अब तक इस ग्रन्थ की 15 हस्तलिखित प्रतियाँ मिल चुकी हैं। इस ग्रन्थ में बाबर ने भारत की राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक दशा का वर्णन किया है। यह ग्रन्थ अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। इस ग्रन्थ से न केवल बाबर के काल की घटनाओं का पता चलता है, वरन् हुमायूँ के आरम्भिक इतिहास के लिए भी यह एक महत्त्वपूर्ण सूचना स्रोत है। श्रीमती बेवरिज ने इस ग्रन्थ की तुलना सन्त ऑगस्टाइन, रूसो और गिब्बन तथा न्यूटन के संस्मरणों से की है। इलियट और लेनपूल ने भी बाबरनामा को एक प्रामाणिक और विश्वसनीय ऐतिहासिक स्रोत माना है। 

(2) तारीख-ए-रशीदी (मिर्जा हैदर दोगलात)

इस ग्रन्थ का लेखक बाबर का मौसेरा भाई मिर्जा हैदर था। मिर्जा हैदर का जन्म 1500 ई० में ताशकन्द में हुआ था। मिर्जा हैदर बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूँ की सेवा में रहा। मिर्जा हैदर ने अपनी रचना कोशगर के अब्दुल राशिद बिन अबुल फतेह सुल्तान को समर्पित की थी। इस ग्रन्थ में 1540 ई० के कन्नौज युद्ध का वर्णन मिलता है। हुमायूँ के प्रारम्भिक शासनकाल की त्रुटियों का भी इस ग्रन्थ में उल्लेख है। 

(3) हुमायूँनामा (गुलबदन बेगम)

इस ग्रन्थ की रचना बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम ने की थी। उसकी माता का नाम दिलदार बेगम था। गुलबदन का जन्म 1523 ई० में हुआ था। हिन्दाल उसका सगा भाई था। 1530 ई० के बाद वह हुमायूँ के संरक्षण में रही। गुलबदन का विवाह अमीर-उल-उमरा खिज्र ख्वाजा चुगताई के साथ हुआ था। गुलबदन ने अकबर के इस काल में हुमायूँनामा की रचना की। 7 मई, 1603 ई० में गुलबदन की मृत्यु हो गई थी। ‘हुमायूँनामा’ दो भागों में विभक्त है, इसका पहला भाग हुमायूँ के शासनकाल पर प्रकाश डालता है। हुमायूँ के काल के लिए यह ग्रन्थ बहुत महत्त्वपूर्ण है। उस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का सचित्र चित्रण इस ग्रन्थ में मिलता है। 

(4) कानून-ए-हुमायूँनी (खोन्दमीर)

इस ग्रन्थ को अबुल फजल ने ‘हुमायूँनामा’ के नाम से अपनी कृति ‘अकबरनामा’ में उद्धृत किया है। खोन्दमीर का मूल नाम ग्यासुद्दीन मुहम्मद था। वह अपने समय के विख्यात इतिहासकार मीर खान्द का नाती और इमामुद्दीन मुहम्मद का पुत्र था। खोन्दमीर 1524 ई० में भारत आया। हुमायूँ ने उसे संरक्षण प्रदान किय और उसे अमीर-उल-अख्तर’ की उपाधि से विभूषित किया। खोन्दमीर ने हुमायूँ के आदेश पर ‘कानून-ए-हुमायूँनी’ की रचना की। बेनीप्रसाद ने इस ग्रन्थ को आइन-ए-अकबरी के तुल्य माना है, क्योंकि इसमें हुमायूँ द्वारा जारी नियमों, कानूनों, अध्यादेशों एवं आदेशों का संक्षिप्त विवरण है और उस समय की वेशभूषा, वस्त्र, उद्योग, नाव, जहाज, बाजार-हाट तथा भवनों का वर्णन किया गया है। ‘दीन-ए-पनाह’ का इस ग्रन्थ में विस्तृत वर्णन है। खोन्दमीर हुमायूँ की प्रशंसा और चापलूसी अधिक करता है। ज्योतिष में हुमायूँ की रुचि का पता इसी ग्रन्थ से चलता है। इस ग्रन्थ की भाषा अत्यन्त क्लिष्ट है।

(5) तजकिरात-उल-वाक्यात (जौहर)

जौहर, हुमायूँ का निजी सेवक (अफताबंची) था। वह हुमायूँ के काल का प्रत्यक्षदर्शी गवाह था। उसने लगभग 25 वर्षों तक हुमायूँ की सेवा की थी। अकबर के आदेश पर 1586-87 ई० में जौहर ने इस ग्रन्थ की रचना की। जौहर ने अपने ग्रन्थ तजकिरातुल वाक्यात को पाँच खण्डों में विभक्त किया है। प्रत्यक खण्ड में कई अध्याय हैं। जौहर ने इसका नाम ‘जवाहरशाही’ रखा। शेख फैजी सरहिन्दा न २१ ‘हुमायूँशाही’ के नाम से अकबर के समक्ष प्रस्तुत किया। यह ग्रन्थ हुमायूँ की मृत्यु क 300 बाद लिखा गया था। इसीलिए इसमें अनेक स्थानों पर तिथिक्रम सही नहीं है। फिर भा यह हुमायूँकालीन इतिहास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। 

(6) वाक्यात-ए-मुश्ताकी (शेख रिजकुल्लाह मुश्ताकी)

यह ग्रन्थ अफगानकालीन लोदी तथा सूर राजवंशों के इतिहास पर प्रकाश डालने वाला पहला ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में अनेक अलौकिक कहानियों का संकलन है। कहानियों के प्रसंग में ही उस समय की राजनीतिक घटनाओं तथा सांस्कृतिक जीवन का वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ से शेरशाह के उत्थान का पता चलता है। 

(7) तारीख-ए-शेरशाही (अब्बास खाँ सरवानी)

इस ग्रन्थ को ‘तौहफा ए-अकबरशाही’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी रचना अकबर के आदेश पर की गई थी। इस ग्रन्थ में अब्बास खाँ ने शेरशाह के कार्य-कलापों का वर्णन किया है। उसने बिलग्राम का युद्ध, मारवाड़ विजय, कालिंजर की घेराबन्दी तथा शेरशाह की मृत्यु सम्बन्धी ऐतिहासिक सूचनाएं दी हैं।

(8) तजकिरा-ए-हुमायूँ व अकबर (बयाजिद)

बयाजिद ईरान का मूल निवासी था। वह मशहद में हुमायूँ से मिला और उसकी सेवा में आ गया। सन् 1545 में वह बैरम खाँ के साथ मिर्जा कामरान से मिलने काबुल गया। इसके बाद बयाजिद हुमायूँ की कृपा से बड़े-बड़े अमीरों की सेवा में रहा। हुमायूँ के बाद बयाजिद अकबर के अधीन सेवा में आ गया। अकबर के आदेश पर बयाजिद ने ‘तजकिरा-ए-हुमायूँ’ व ‘अकबर’ नामक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में चार खण्ड हैं—पहला खण्ड1542-43 ई० से 1546 ई० तक, दूसरा खण्ड 1546 से 1551 ई० तक, तीसरा खण्ड 155 ई० से 1553 तक तथा चौथा खण्ड 1553 ई० से 1590 ई० तक के इतिहास पर प्रकाश डालता है यह ग्रन्थ हुमायूँ और अकबर के इतिहास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। 

(9) अकबरनामा (अबुल फजल)

अबुल फजल, शेख मुबारक नागौरी का पुत्र और अबुल फैजी का भाई था। उसका जन्म 14 जनवरी, 1551 ई० को आगरा में हुआ था। 1573-74 ई० में अबुल फजल अकबर की सेवा में आ गया। अकबर ने अबुल फजल की योग्यता से प्रभावित होकर उसे 5000 का मनसब प्रदान किया। अकबर के आदेश पर अबुल फजल ने असीरगढ़ की विजय की। 22 अगस्त, 1602 ई० को शाहजादा सलीम के संकेत पर वीरसिंह बुन्देला ने दक्षिण में अबुल फजल की हत्या कर दी थी। अबुल फजल एक महान विद्वान् और इतिहासकार था। उसने अनेक ग्रन्थों की रचना की, जिनमें अकबरनामा और आइन-ए-अकबरी विश्वप्रसिद्ध हैं। 

अबुल फजलकृत ‘अकबरनामा’ अकबर के इतिहास का एक प्रामाणिक स्रोत है। यह ग्रन्थ मुख्यतया दो भागों में विभक्त है। पहले भाग में अकबर के जन्म, उसके पूर्वजों तथा अकबर के शासनकाल के 17वें वर्ष अर्थात् 1573-74 ई० तक का इतिहास है। दूसरे भाग में अकबर के 17वें वर्ष के मध्य से लेकर 46वें वर्ष तक की घटनाओं का उल्लेख है। अकबरनामा को अकबर के काल का राजकीय इतिहास कहा जा सकता है। 

(10) आइन-ए-अकबरी (अबुल फजल)

यह ग्रन्थ वास्तव में अकबरनामा का ही एक भाग है। इसमें (अकबरकालीन) भौगोलिक संसाधनों, विकसित संस्थाओं, शाही परिवार. दरबार, टकसाल, खाद्यान्नों का मूल्य, शाही अस्तबल एवं शस्त्रागार आदि का वर्णन है। इस ग्रन्थ में मुगल सेना, राजस्व व्यवस्था तथा न्याय व्यवस्था का भी उल्लेख किया गया है। अबल फजल ने इस ग्रन्थ में 46 आइनों (Regulations) द्वारा अकबर की शासन प्रणाली का विस्तृत विवेचन किया है। 

(11) तबकात-ए-अकबरी (निजामुद्दीन अहमद)

निजामुद्दीन अहम ख्वाजा मुहम्मद मुकीम, बाबर का ‘दीवान-ए-बतूत’ था। बाबर के बाद वह हमायँ की आ गया। निजामुद्दीन अहमद, अकबर द्वारा 1584 ई० में गुजरात का ‘बख्शी’ नियक्त किया निजामुद्दीन अहमद अकबर के समक्ष उपस्थित हुआ। अकबर ने उसे किया और उसे बख्शी के पद पर नियुक्त किया। निजामुद्दीन अहमद अब्दुल कादिर बना पक्का मित्र था। 1594 ई० में निजामुद्दीन की मृत्यु हो गई। निजामुद्दीन अहमद ने अपने ग्रन्थ ‘तबकात-ए-अकबरी’ की भूमिका में गजन इतिहास लिखा है। इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में मुहम्मद गोरी से लेकर अकबर के २७ का इतिहास लिखा गया है। द्वितीय भाग में दक्षिण के सुल्तानों और बहमनी वंश कार” वर्णित है। तीसरे भाग में गुजरात के सुल्तानों का इतिहास है। चौथे भाग में मालवा का भाग में बंगाल का, छठे भाग में जौनपुर के शर्को वंश का, सातवें भाग में कश्मीर के पर सुल्तानों का तथा आठवें भाग में सिन्ध का इतिहास लिखा गया है। नवे भाग में मल्तान इतिहास वर्णित है। मालिकमा मागको

(12) मुन्तखाब-उत-तवारीख (अब्दुल कादिर बदायूँनी)

अकबरकालीन इतिहासकारों में अब्दुल कादिर बदायूँनी का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि उसका इतिहास लेखन अबुल फजल और निजामुद्दीन अहमद से सर्वथा भिन्न है। बदायूँनी पहला इतिहासकार है, जिसने अकबर की नीतियों की कटु निन्दा की है। बदायूँनी का जन्म टाण्डा में 21 अगस्त, 1540 ई० को हुआ था, उसके पिता का नाम मलूकशाह था। बदायूँनी ने 1558-59 ई० में आगरा आकर शेख मुबारक से शिक्षा ग्रहण की और अबुल फजल तथा फैजी के सम्पर्क में आया। 1565-66 ई० में बदायूँनी ने पटियाली के जागीरदार हुसैन खाँ के यहाँ नौकरी आरम्भ की। सन् 1574 ई० में बदायूँनी पुन: आगरा आ गया। बदायूँनी जलाल खाँ कुची तथा हकीम मनाउल मुल्क के द्वारा अकबर की सेवा में उपस्थित हुआ और शाही विद्वानों की मण्डली में शामिल हो गया। अकबर के आदेश पर बदायूँनी ने अनेक अरबी तथा संस्कृत ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद किया। 1579 ई० में अकबर ने बदायूँनी को ‘मदद-ए-माश’ का पद प्रदान किया और बदायूँ में उसे एक हजार बीघा जमीन का स्वामी बना दिया। बदायूँनी 1615 ई० में मृत्यु को प्राप्त हुआ। बदायूँनी ने अनेक ग्रन्थों की रचना की, जिनमें ‘मुन्तखाब-उत-तवारीख’ सबसे अधिक प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण है। बदायूँनी का ग्रन्थ तीन भागों में विभक्त है। पहले भाग में सुबुक्तगीन से लेकर हुमायूँ की मृत्यु तक का इतिहास है। दूसरे भाग में अकबर के शासनकाल के प्रथम 40 वर्षों का इतिहास वर्णित है। तीसरे भाग में सन्तों, कवियों एवं विद्वानों की जीवनियाँ दी गई हैं। इसमें 38 धार्मिक शेखों, 69 विद्वानों, 15 दार्शनिकों एवं चिकित्सकों के अतिरिक्त 167 कवियों का भी उल्लख है। इस ग्रन्थ की ऐतिहासिक महत्ता बहुत अधिक है। इसके अभाव में अकबर का ही नहा, उसका काल का इतिहास भी अधूरा रहेगा। 

(13) तुजुक-ए-जहाँगीरी (जहाँगीर)

यह जहाँगीर की आत्मकथा है। इस ग्रन्थ अपने शासन काल के 12वें वर्ष तक के संस्मरण स्वयं लिखे हैं। इसके बाद 9वे वष तक इतिहास मुतामिद खाँ ने लिखा है। इस ग्रन्थ से समकालीन राजनीतिक घटनाओं का जाना मिलती है। इस ग्रन्थ के अनेक नाम हैं, जिनमें इकबालनामा-ए-जहाँगीरी, वाक्यात-ए-जहा कारनामा-ए-जहाँगीरी, जहाँगीरनामा, तारीख-ए-सलीमशाही, बयाजे-जहाँगीरी प्रमुख है। 

(14) तारीख-ए-फरिश्ता ( मोहम्मद कासिम हिन्दूशाह फरिश्ता)

मोहम्मद कासिम हिन्दूशाह का उपनाम फरिश्ता था। उसका जन्म अश्तराबाद (कैस्पियन सागर के तट पर) में 1570 ई० में हुआ था। उसका पिता गुलाम अली हिन्दूशाह एक प्रकाण्ड विद्वान था। फरिश्ता बचपन में ही अपना देश छोड़कर भारत आ गया था। वह दक्षिण में अहमदनगर के निजामशाही सुल्तान की सेवा में लग गया। कुछ समय बाद फरिश्ता अहमदनगर छोड़कर बीजापुर चला गया और वहाँ के वजीर दिलावर खाँ का कृपापात्र बन गया। इनायत खाँ शिराजी ने उसकी भेंट सुल्तान इबाहीम आदिलशाह से करवाई। अपना शेष जीवन फरिश्ता ने इसी सुल्तान के दरबार में व्यतीत किया। फरिश्ता एक विद्वान् लेखक था। उसने 35 इतिहासकारों की कृतियों का अध्ययन करके अपने ऐतिहासिक ग्रन्थ की रचना की और उसका नाम ‘गुलशन-ए-इब्राहीमी’ रखा। यह ग्रन्थ 12 अध्यायों में विभक्त है। पहले अध्याय में गजनी और लाहौर के सुल्तान, दूसरे अध्याय में दिल्ली के सुल्तान, तीसरे अध्याय में दक्षिण राज्यों के सुल्तान, चौथे अध्याय में गुजरात के सुल्तान, पाँचवें में मालवा, छठे में खानदेश, सातवें में बंगाल, आठवें में बिहार, नवें में सिन्ध, दसवें में कश्मीर के सुल्तानों का वर्णन है। अध्याय 11 में मालाबार का विवरण है। अध्याय 12 में उस समय के दरवेशों के कार्यकलापों का उल्लेख है। निष्कर्ष में हिन्दुस्तान के भूगोल तथा जलवायु का वृत्तान्त दिया गया है। बेनीप्रसाद ने फरिश्ता की कृति को एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत माना है।

(15) पादशाहनामा (अब्दुल हमीद लाहौरी)

अब्दुल हमीद लाहौरी के विषय में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। मुहम्मद सालेह के अनुसार शाहजहाँ के आदेश पर लाहौरी इतिहास लेखन हेतु पटना से दिल्ली आया था। लाहौरी के ग्रन्थ को बादशाहनामा भी कहा जाता है। इस ग्रन्थ में 1662 पृष्ठ हैं और शाहजहाँकालीन इतिहास के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। जर (16) मुन्तखाब-उल-लुबाब (खफी खाँ)-खफी खाँ का मूल नाम मुहम्मद हाशिम था। उसका पिता ख्वाजा मीर भी इतिहास लेखक था। खफी खाँ ने औरंगजेब की मृत्यु के बाद विधिवत इतिहास लेखन आरम्भ किया। इस ग्रन्थ में 1519 ई० से 1733 ई० तक तैमूर वंश का इतिहास वर्णित है। औरंगजेब के काल के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। खफी खाँ ने 1680 ई० से 1733 ई० की घटनाओं का विवरण व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर निष्पक्ष रूप से लिखा है। 

(17) अन्य ग्रन्थ-

मुगलकालीन इतिहास के लिए अन्य बहुत-से ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण हैं, जिनमें मुहम्मद अब्दुल बाकी कृत ‘मआसीर-ए-रहीमी’, मुहम्मद अमीन कृत ‘अनफा-उल-अखबार’, मुहम्मद अमीन कृत ‘पादशाहनामा’, तबा तबाई कृत ‘पादशाहनामा’, मुहम्मद वारिस कृत ‘बादशाहनामा’, इनायत खाँ कृत ‘शाहजहाँनामा’, मुहम्मद सालेह कृत ‘अमल-ए-सालेह’, मुहम्मद शरीफ हनफी कृत ‘मजलिस-उल-सलातीन’, मिर्जा मुहम्मद काजिम कृत ‘आलमगीरनामा’, मुहम्मद साकी कृत ‘मआसीर-ए-आलमगिरी’, भीमसेन कत ‘नुस्खा-ए-दिलकुशा’, मुहम्मद कासिम कृत ‘तारीख-ए-बहादुरशाही’, रुस्तम अली कत ‘तारीख-ए-हिन्द’, मुहम्मद हादी कामवार खाँ ‘हपत-गुलशन-ए-मुहम्मदशाही’ तथा महम्मद अली कृत ‘बुरहान-उल-फुतुह’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। 

(18) समसामयिक साहित्य

मुगलकालीन इतिहास के स्रोत के रूप में गैर-फारसी साहित्य का भी विशेष महत्त्व है। इसके अन्तर्गत ख्यात (इतिहास), विगत, बही, हस्तलिखित पत्र व पाण्डुलिपियाँ आते हैं। ख्यातों से राजपूतों के इतिहास का पता चलता है। इनमें मुहणोत नैणसी की ख्याति विशेष रूप से उल्लेखनीय है। नैणसी की दूसरी महत्त्वपूर्ण रचना ‘मारवाड़ रा परगना री विगत’ है। इसमें भी भारत का इतिहास समाहित है। जोधपुर का इतिहास बहियों में लिपिबद्ध है। इसी प्रकार हस्तलिखित पत्र भी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सूचनाएँ देते हैं। बहुत-सी पाण्डुलिपियाँ भी मध्यकालीन इतिहास की विरासत हैं। इनके अतिरिक्त केशवदास कृत ‘रत्न बावनी’, ‘वीरसिंह देव चरित’, जहाँगीर जसचन्द्रिका, जटमल कृत ‘गोरा-बादल की कथा’, रामकवि कृत ‘जयसिंह चरित’, भूषण कृत ‘शिवराज भूषण’, ‘शिवा बावनी’, ‘छत्रसाल दशक’ आदि ग्रन्थ भी सांस्कृतिक इतिहास के ज्ञान के लिए महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।

(19) विदेशी यात्रियों के विवरण

मुगल काल में भारत आने वाले विदेशी यात्रियों के विवरण भी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत हैं। इनमें प्रमुख हैं—फादर एन्थोनी मान्सरेट (1578 ई०), राल्फ रिच (1588-1591), विलियम हाकिन्स (1608-1613), विलियम फिच (1608), जॉन जुरदा (1608-1617), थामस कोर्यत (1612-1617), सर टामस रो (1615-1619), एडवर्ड टैरी (1616-1619), पेट्रा डी वेला (1622), फ्रांसिस्को पेलसर्ट (1624), ट्रेवेनियर (1641-1687 के बीच छह बार भारत यात्रा), फ्रांसिस बर्नियर (1658) आदि के विवरण बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। 


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