Bcom 1st Year Meaning to Scale notes

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Bcom 1st Year Meaning to Scale notes

पैमाने से अभिप्राय 

(Meaning to Scale)

पैमाने को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है … “जितना गुना सभी अनुपातों को दोहराया जाता है, अर्थात् जितना गुना स्थिर और परिवर्तनशील साधनों को बढ़ाया जाता है तो वह फर्म के पैमाने को स्थापित करता है।” .. – सरल शब्दों में, पैमाने में वृद्धि का अर्थ है सभी साधनों को एक ही अनुपात में बढ़ाना, अर्थात् साधन अनुपातों को स्थिर रखते हुए सभी साधनों को बढ़ाया जाता है। पैमाने का यह . विचार दीर्घकाल से सम्बन्ध रखता है क्योंकि इसमें स्थिर साधनों को परिवर्तित करके फर्म के आकार को बढ़ाया जाता है। 

Bcom 1st Year Meaning to Scale notes

पैमाने के प्रतिफल का विचार 

(Meaning of Returns to Scale)

पैमाने के प्रतिफल का विचार इस बात का अध्ययन करता है कि यदि सब उपादानों में आनुपातिक परिवर्तन कर दिया जाए, ताकि साधनों के मिलने के अनुपातों में कोई परिवर्तन न हो तो उत्पादन में किस प्रकार से परिवर्तन होगा। 

पैमाने के प्रतिफल के विश्लेषण के अन्तर्गत साधनों या उपादानों के आपसी अनुपात को नहीं बदला जाता बल्कि सभी साधनों को एक ही अनुपात में बढ़ाया जाता है। जब साधनों की मात्रा को एक ही अनुपात में बढ़ाया जाता है तो प्राप्त होने वाले उत्पादन की मात्रा या प्रतिफल की निम्नलिखित अवस्थाएँ होती हैं-

1. पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था, 

2. पैमाने के स्थिर प्रतिफल की अवस्था, 

3. पैमाने के घटते प्रतिफल की अवस्था।

1. पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था

(Stage of Increasing Returns to Scale)

“जब सभी साधनों को एक ही अनुपात में बढ़ाया जाता है और इस प्रकार उत्पादन के पैमाने में वृद्धि हो जाती है तथा इसके परिणामस्वरूप यदि उत्पादन में अधिक अनुपात में वृद्धि होती है तो यह कहा जाता है कि उत्पादन प्रक्रिया में पैमाने के बढ़ते प्रतिफल लाग हैं।” उदाहरणार्थ-यदि सभी साधनों को 10% से बढ़ाया जाता है और उत्पादन 14% बढ़ जाता है तो ऐसी अवस्था पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था कही जाएगी। संक्षेप में, इस अवस्था में साधनों की वृद्धि की तुलना में उत्पादन में अधिक अनुपात में वृद्धि होती है। प्रो० चैम्बरलिन ने पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था के दो कारण बताए हैं –

(i) पैमाने के बढ़ जाने पर श्रमिकों में अधिक विशिष्टीकरण या श्रम विभाजन किया जा सकता है जिससे श्रम की उत्पादकता बढ़ जाती है। 

(ii) उत्पादन के बढ़े पैमाने के अन्तर्गत उन्नत तकनीक एवं उन्नत मशीनों का प्रयोग या जा सकता है जिससे उत्पादन बहुत तेजी से बढ़ता है। रेखाचित्र-11 में पैमाने के बढ़ते प्रतिफल को दिखाया गया है। रेखाचित्र में IP2, IPO, समात्पाद वक्र हैं जो क्रमश: 50, 100, 150, 200 इकाइयों के बराबर उत्पादन P3 तथा IP समोत्पाद वक्र को बताते हैं। ये समोत्पाद रेखाएँ उत्पादन में एकसमान वृद्धि (50 इकाइयों के बराबर वृद्धि) को बताती हैं। ये रेखाएँ पैमाना रेखा OE को टुकड़ों (जैसे-AB, BC, CD) में बाँट देती है। पैमाना रेखा OE का प्रत्येक टुकड़ा दोनों साधनों X तथा Y की एक निश्चित मात्रा को बताता है। रेखाचित्र में प्रत्येक टुकड़े की लम्बाई कम होती जाती है, अर्थात् CD <BC KARI इसका अर्थ है कि दो साधनों X तथा Y की क्रमशः कम मात्राओं के प्रयोग से उत्पादन में एकसमान वृद्धि प्राप्त होती है। ऐसी स्थिति को पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था कहते हैं। 

2. पैमाने के स्थिर प्रतिफल की अवस्था

(Stage of Constant Returns to Scale)

जब सभी साधनों को एक ही अनुपात में बढ़ाया जाता है और इस प्रकार उत्पादन के पैमाने में वृद्धि हो जाती है तथा इसके परिणामस्वरूप यदि उत्पादन में भी उसी अनुपात में वद्धि होती है तो यह कहा जाता है कि उत्पादन प्रक्रिया में पैमाने के स्थिर प्रतिफल लागू होते हैं। दसरे शब्दों में, पैमाने के स्थिर प्रतिफल के अन्तर्गत उत्पादन में एकसमान वृद्धि प्राप्त करने के लिए साधनों की मात्राओं में क्रमश: एकसमान वृद्धि की ही आवश्यकता पड़ती है। रेखाचित्र-12 में पैमाने के स्थिर प्रतिफल को दिखाया गया है। रेखाचित्र में समोत्पाद रेखाएँ पैमाना रेखा OE को AB, BC तथा CD टुकड़ों में बाँट देती हैं। प्रत्येक टुकड़ा X और Y की एक निश्चित मात्रा को बताता है। रेखाचित्र में प्रत्येक टुकड़े की लम्बाई बराबर है

इसका अर्थ है कि दो साधनों x तथा Y की क्रमश: बराबर मात्राओं के प्रयोग से उत्पादन में एकसमान वृद्धि होती है। ऐसी स्थिति को पैमाने के स्थिर प्रतिफल की अवस्था कहते हैं। 

3. पैमाने के घटते हुए प्रतिफल की अवस्था

(Stage of Decreasing Return to Scale)

जब सभी साधनों को एक ही अनुपात में बढ़ाया जाता है और इस प्रकार उत्ता के पैमाने में वृद्धि हो जाती है तथा इसके परिणामस्वरूप यदि उत्पादन में कम अनुपात में तो यह कहा जाता है कि उत्पादन प्रक्रिया माने के घटते प्रतिफल लागू होते है। रणार्थ-यदि सभी साधनों को 10% से | जाता है और उत्पादन 10% से कम बढ़ता | ॥p तो ऐसी स्थिति पैमाने के घटते प्रतिफल की वस्था कही जाएगी। दूसरे शब्दों में, पैमाने के घटते प्रतिफल के अन्तर्गत उत्पादन में एकसमान 200 नदि प्राप्त करने के लिए साधनों की मात्राओं में क्रमशः अधिकाधिक वृद्धि की आवश्यकता पड़ती है। रेखाचित्र-13 में समोत्पाद रेखाएँ IP, IP), XXXX X IP तथा IP पैमाना रेखा OE को AB, BC साधन X तथा CD टुकड़ों में विभाजित करती हैं। पैमाना रेखाचित्र-13 OE का प्रत्येक टुकड़ा दोनों साधनों X और Y की एक निश्चित मात्रा को बताता है। इसमें प्रत्येक टुकड़े की लम्बाई बढ़ती जाती है, अर्थात् CD > BC >AB – इसका अर्थ है कि दो साधनों x तथा Y की क्रमशः अधिक मात्राओं के प्रयोग से उत्पादन में एकसमान वृद्धि की जाती है। 

पैमाने के बदलते प्रतिफल (Varying Returns to Scale)- उपर्युक्त विवेचन से यह नहीं समझ लेना चाहिए कि हमेशा अलग-अलग उत्पादन फलन विभिन्न प्रकार के पैमाने को व्यक्त करते हैं। प्रायः एक ही उत्पादन फलन में । पैमाने की तीनों अवस्थाएँ–बढ़ते, स्थिर या घटते प्रतिफल होती हैं। उत्पादक यह जानता है कि जब 500 उत्पादन का पैमाना बढ़ाया जाता है तो श्रम में । अधिक विशिष्टीकरण तथा अधिक उन्नत एवं 50 विशिष्ट प्रकार की मशीनों एवं तकनीक के प्रयोग से | उत्पादन बढ़ाया जाता है, परन्तु स्थिति सदैव यही नहीं रहती। एक समय के बाद स्थिर प्रतिफल प्राप्त होने लगता है। इस स्थिति में उत्पादन उसी अनुपात / साधन X→ में बढ़ता है जिस अनुपात में साधनों की मात्राओं को बढ़ाया जाता है। यदि उसके पश्चात् भी उत्पादन का पमाना बढ़ाया जाता है, तो उससे घटते प्रतिफल प्राप्त होंगे। इसका कारण प्रबन्ध, समन्वय तथा नियन्त्रण सम्बन्धी कठिनाइयों का बढ़ जाना है। धीरे-धीरे ये कठिनाइयाँ इतनी अधिक बढ़ जाता है कि श्रम विभाजन व विशिष्टीकरण के सभी लाभ समाप्त हो जाते हैं। रेखाचित्र-14 में इन तीनों अवस्थाओं को दिखाया गया है। 

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