Bcom 2nd year process costing notes pdf
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प्रक्रिया लागत का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Process accounts)
किसी भी वस्तु का उत्पादन एक प्रक्रिया द्वारा पूरा करना सम्भव नहीं है । उन्हें अपनी अन्तिम स्थिति तक पहुँचने के लिए बहुत सी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है । एक प्रक्रिया द्वारा बनाया गया माल दूसरी प्रक्रिया के लिये कच्चे माल की भाँति कार्य करता है तथा दूसरी प्रक्रिया का तैयार माल तीसरी प्रक्रिया के लिये कच्चा माल होता है । इस प्रकार अनेक प्रक्रियाओं से गुजरते हए किसी वस्तु का उत्पादन कार्य पूरा होता है । इस प्रणाली का उपयोग कपड़ा,साबुन, चीनी, कागज, शराब,वनस्पति घी,रबड़ व टायर, रसायन, तेल,लोहा व इस्पात आदि उद्योगों में किया जाता है। प्रक्रिया लागत विधि में प्रत्येक प्रक्रिया का अलग-अलग खाता खोला जाता है । प्रत्येक खाते में उससे सम्बन्धित व्यय लिखे जाते हैं । इस प्रकार प्रत्येक प्रक्रिया की लागत अलग-अलग ज्ञात कर ली जाती है।
शार्ल्स के अनुसार, “विधि लागत लेखे ऐसे उद्योगों में प्रयोग किये जाते हैं जिनकी वस्तुओं का निर्माण विभिन्न प्रक्रियाओं में होता है तथा प्रत्येक प्रक्रिया की लागत ज्ञात किया जाना आवश्यक होता है।”
प्रक्रिया लागत लेखांकन का अभिप्राय ऐसी विधि से है जिसके अन्तर्गत निर्माण के प्रत्येक स्तर अथवा प्रत्येक प्रक्रिया पर उत्पाद (वस्तु) की उत्पादन लागत ज्ञात की जाती है ।
प्रक्रिया लागत विधि की मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
बी० के० भार के अनुसार, प्रक्रिया परिव्यायांकन एक या अधिक प्रक्रियाओं की लागत ज्ञात करने की एक विधि है जो कि कच्ची सामग्री को निर्मित उत्पाद में रूपान्तरित किये जाने से सम्बद्ध
हेल्डन के अनुसार, “प्रक्रिया परिव्यायांकन लागत ज्ञात करने की वह विधि है जिसका उपयोग प्रत्येक प्रक्रिया, प्रत्येक परिचालन अथवा उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर उत्पाद की लागत ज्ञात करने के लिए किया जाता है।”
प्रक्रिया (विधि) लागता प्रक्रिया लागत लेखा विधि के उददेश्य
(Objectives of process costing)
प्रक्रिया लागत लेखांकन के मख्य उद्देश्य अथवा इसकी आवश्यकता के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं
(1) विभिन्न प्रक्रियाओं की लागत ज्ञात करना-ऐसी वस्तएँ जिनका उत्पादन विभिन्न चरणों परा होता है के निर्माण के प्रत्येक स्तर पर अथवा प्रत्येक प्रक्रिया की अलग-अलग लागत ज्ञात करना आवश्यक होता है । इससे लागतों पर नियन्त्रण स्थापित करने में काफी सुविधा रहता है। प्रक्रिया लागत लेखांकन की सहायता से विभिन्न प्रक्रियाओं की लागत ज्ञात हो जाती है ।
(2) विभागीय कुशलता एवं मितव्ययिता की जानकारी होना–प्रत्येक विभाग की कुशलता का उत्पादन प्रक्रिया को मितव्ययी बनाने के लिए प्रत्येक प्रक्रिया की अलग-अलग लागत ज्ञात मा आवश्यक होता है जो प्रक्रिया लागत लेखांकन की सहायता से ही प्राप्त हो सकती है।
(3) विभिन्न प्रक्रियाओं में होने वाले क्षय का ज्ञान जब कच्ची सामग्री विभिन्न प्रक्रियाओं होकर गजरती हैं तो रासायनिक प्रतिक्रियाओं तथा वाष्पीकरण,आदि अन्य कारणों से सामग्री काय होना स्वाभाविक है । परन्तु प्रत्येक प्रक्रिया में सामग्री का का क्षय (Wastage) भिन्न-भिन्न मात्रा में होता है। अतः प्रत्येक प्रक्रिया की सही लागत ज्ञात करने के लिए इस क्षय की मात्रा का भादोना भी आवश्यक है जो प्रक्रिया लागत लेखांकन की सहायता से ही प्राप्त हो सकती है।
उपोत्पाद का मूल्य ज्ञात करना—कुछ उद्योगों में ‘मुख्य उत्पाद’ (Main product) का उत्पादन करते समय सहउत्पाद एवं उपोत्पाद भी निकलते हैं । जैसे, तेल निर्माण में खली,रुई में – बिनौला आदि । ऐसे उद्योगों में दोनों प्रकार के उत्पादों की सही लागत ज्ञात करने के लिए प्रक्रिया लेखों की आवश्यकता होती है।
प्रक्रिया लागत लेखांकन के सामान्य सिद्धान्त
(General Principles of Process Costing Method)
(1) सम्पूर्ण कारखाने को विभिन्न प्रक्रिया केन्द्रों या विभागों में बाँट दिया जाता है तत्पश्चात् प्रत्येक प्रक्रिया के लिए पृथक् खाता खोला जाता है अर्थात् जितनी प्रक्रियाओं द्वारा उत्पादन पूरा होता है,उतने ही प्रक्रिया खाते खोले जाते हैं।
(2) प्रत्येक प्रक्रिया में सामग्री,श्रम,प्रत्यक्ष व्यय,अप्रत्यक्ष व्यय,आदि के रूप में जो भी व्यय होता है, उन सबको उस प्रक्रिया खाते के डेबिट साइड में लिखा जाता है। अप्रत्यक्ष व्ययों को किसी उचित आधार पर बाँटकर प्रक्रिया खाते की डेबिट में लिखा जाता है । अप्रत्यक्ष व्ययों के बँटवारे के सम्बन्ध में कोई आधार न दिये होने पर उनका बँटवारा प्रत्यक्ष श्रम (मजदूरी) के आधार पर किया जाता है।
(3) प्रक्रिया में होने वाले क्षय का उचित लेखा रखा जाता है। यदि क्षय अथवा भार में कमी सामान्य हो तो उससे प्रक्रिया खाता क्रेडिट किया जाता है। यदि क्षय अथवा उसके अवशिष्ट • (Scrap) की बिक्री से कुछ धनराशि प्राप्त हो तो उसे भी सम्बन्धित प्रक्रिया खाते में क्रेडिट किया जाता है। इसके विपरीत यदि सामान्य से अधिक क्षय हो तो अतिरिक्त क्षय को असामान्य क्ष (Abnormal wastage) कहते हैं जिसे उत्पादन की लागत पर प्रक्रिया खाते में क्रेडिट करते है।
(4) यदि किसी प्रक्रिया में कोई उपोत्पाद (By product) उत्पन्न होता है तो उसकी लागत से प्रक्रिया खाता क्रैडिट किया जाता है।
(5) किसी भी प्रक्रिया में लगाई गई सामग्री की मात्रा उस प्रक्रिया खाते के डेबिट में लिखी जाती है जबकि जितना उत्पादन होता है उसकी मात्रा,तथा जितना क्षय होता है उसकी मात्रा प्रक्रिया खाते के क्रेडिट में लिखी जाती है।
(6) प्रत्येक प्रक्रिया का उत्पादन पूर्ण होने पर उस प्रक्रिया की कुल लागत में उत्पादित इकाइयों की संख्या का भाग देकर प्रति इकाई औसत लागत ज्ञात हो जाती है।
6. औसत लागत की गणना करते समय उत्पादन में सामान्य हानि तथा अवधि के प्रारम्भ व अन्त में अपूर्ण इकाइयों को भी ध्यान में रखा जाता है।
(7) कभी-कभी प्रत्येक प्रक्रिया के उत्पादन का एक भाग बिक्री के लिये गोदाम (Warehouse) में भेज देते हैं तथा शेष भाग पर आगे की प्रक्रिया सम्पन्न होती है। इन दोनों भागों की मात्रा एवं लागत को सम्बन्धित प्रक्रिया खाते में क्रेडिट किया जाता है।
(8) कभी-कभी एक प्रक्रिया के उत्पादन को अगली प्रक्रिया में कुछ लाभ जोड़कर भेजा जाता है । लाभ की इस राशि को प्रक्रिया खाते में डेबिट करते हैं तथा उत्पादित वस्तु के मूल्य में जोड़ कर बढ़े हुये मूल्य से प्रक्रिया खाता क्रेडिट किया जाता है । इसी बढ़े हुये मूल्य से अगली प्रक्रिया को डेबिट किया जाता है । यदि इस प्रकार लाभ जोड़ने की प्रणाली अपनाई जाती हो तो वर्ष के अन्त में शेष स्टॉक के लिए लाभ-हानि खाते में बिना वसूल हुये लाभों के लिये आयोजन (Provision for Unrealised Profit) अवश्य करना चाहिये।
(9) जब एक उत्पादन-प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है तो उसमें निर्मित माल तथा उसी कुल लागत अगली प्रक्रिया में हस्तान्तरित कर दी जाती है और अन्तिम प्रक्रिया तक यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। परन्तु कभी-कभी ऐसी भी होता है कि केसी प्रक्रिया में निर्मित सम्पूर्ण माल अंगली प्रक्रिया में हस्तान्तरित न करके उसका कुछ भाग अगली प्रक्रिया में हस्तान्तरित कर दिया जाता है एवं कुछ भाग विक्रय हेतु गोदाम में हस्तान्तरितकर दिया जाता है या सीधा विक्रय कर दिया जाता है परन्तु दोनों का लेखा उस प्रक्रिया खाते की क्रेडिट में ही होता है।
Bcom 2nd year process costing notes
Bcom 2nd year
- Meaning and Kinds of company
- Incorporation of Company and Promotion
- Managing Director and Whole time Director (memorandum of association)
- Company’s Meeting and Resolution
- Winding up Of Company
- The Indian Factories Act 1948
- Industrial Disputes Act 1947