Bcom 2nd Year The Indian Factories Act 1948

भारतीय कारखाना अधिनियम 1948 

(The Indian Factoryes Act 1948) 

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत में राज्यों के कल्याण तथा श्रमिकों की दशा में सुधारने व लघु औद्योगिक संस्थाओं को आवश्यक कानूनी संरक्षण देने के लिये नवम्बर सन् 1547 में कारखाना (संशोधन) अधिनियम बिल विधान सभा में प्रस्तुत किया गया, जो 28 अगस्त 1948 का पारित हुआ तथा 23 दिसम्बर को गर्वनर जनरल की स्वीकृति प्राप्त होने पर इसे 1 अप्रैल 1948 से लागू कर दिया गय. । 

इस अधिनियम में 11 अध्याय तथा 119 धारायें हैं। यह जम्मू कश्मीर सहित सम्पूर्ण भारत में लागू होता है। 

Bcom 2nd Year The Indian Factories Act 1948

इसके प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं –

(1) क्षेत्र का व्यापक होना (Micro scope)-

प्रस्तुत अधिनियम का क्षेत्र अब अपेक्षाकृत अधिक व्यापक कर दिया गया है । इस समय यह अधिनियम उन सभी कारखानों पर लागू होता है जहाँ पर शक्ति के उपयोग की. दशा में 10 या अधिक श्रमिक कार्य करते हों तथा शक्ति का उपयोग न होने की दशा में 20 या इससे अधिक श्रमिक कार्य करते हों। इसके अतिरिक्त वर्तमान में यह अधिनियम जम्मू व काश्मीर सहित सम्पूर्ण भारत में लागू होता है। 

(2) कारखानों की स्वीकृति, अनुज्ञापन तथा पंजीयन (Approval liceneing and registration of a factory)-

इससे पूर्व के कारखाना अधिनियम में इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं था। प्रस्तुत अधिनियम के अन्तर्गत कारखानों की स्वीकृति,अनुज्ञापन तथा पंजीयन कराने की व्यवस्था की गई है। इस प्रकार इस व्यवस्था के माध्यम से सरकार का कारखानों पर अधिक प्रभावी नियन्त्रण स्थापित हो गया है। नये कारखानों की स्थापना से पूर्व उनके प्लान (Plan) एवं ले-आउट प्रस्तुत किया जाना अनिवार्य है। 

(3) कार्य के घण्टो में कमी (Decrease in working house)-

प्रौढ़ श्रमिकों के अधिकतम दैनिक कार्य के घण्टे 9 तथा साप्ताहिक घण्टे 48 कर दिये गये हैं। किन्तु लगातार 5 घण्टे कार्य करने पर – घण्टे का विश्राम देना आवश्यक है । बालक श्रमिकों के अधिकतम दैनिक कार्य के घण्टे घटाकर 41 कर दिये गये हैं। प्रत्येक सप्ताह में एक दिन का साप्ताहिक अवकाश दिया जाना चाहिए। 

(4) मौसमी एवं बारहमासी भेद की समाप्ति (End of seasonal and none-seasonal type factory)-

मौसमी तथा बारहमासी कारखानों के भेद को समाप्त कर दिया गया है। 

(5) महिला श्रमिकों के रात्रि में कार्य करने पर प्रतिबन्ध (Prohibition of employment of women on night shifts)-

महिला श्रमिकों को रात्रि के 7 बजे से औद्योगिक अधिनियम /2 प्रातः 6 बजे तक कारखानों में न तो काम करने दिया जायेगाऔर न कार्य करने की अना जायेगी। उन्हें भारी सामान उठाने जैसे कार्यों पर भी नहीं लगाया जा सकता है। 

(6) अतिरिका समय (Over-time)

अतिरिका समय के लिए पारिश्रमिक में वृद्धि (Incree wages for overtime)-अतिरिक्त समय के लिए सामान्य पारिश्रमिक का दुगुना पारिधी देने की व्यवस्था की गई है। 

(7) बालकों की नियुक्ति सम्बन्धी प्रावधानों में संशोधन (Amended of child appointment provision)-

प्रस्तुत अधिनियम के अन्तर्गत बालकों की न्यूनतम आय 1 वर्ष से बढ़ाकर 14 वर्ष कर दी गई है। इसके अतिरिक्त अब प्रमाणित करने वाले सर्जन ना आयु तथा योग्यता सम्बन्धी प्रमाण-पत्र प्राप्त करने पर ही बालक को कारखाने में नियक्त कित जा सकेगा। बालकों को रात्रि के समय कार्य पर नहीं लगाया जा सकेगा। यहीं नहीं, अब किसी भी बालक से प्रतिदिन 41 घण्टे से अधिक कार्य नहीं लिया जा सकेगा। 

(8) वेतन सहित वार्षिक अवकाश (Annual leave with wages)-

प्रस्तुत कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत वेतन सहित वार्षिक अवकाश सम्बन्धी प्रावधान अपेक्षाकृत अधिक सुविधाजनक बना दिये गये हैं। 

उदाहरण के लिए, जिस श्रमिक ने एक कलैण्डर वर्ष में 240 दिन या इससे अधिक कार्य किया हो,वह कार्य के प्रत्येक 20 दिनों के लिए अगले वर्ष में एक दिन का वेतन सहित अवकाश पाने का अधिकारी है। बालकों की दशा में 15 दिन के लिए एक दिन का अवकाश देने का प्रावधान है।

(9) दण्ड की व्यवस्थाएँ (Arrangement for penalty)-

अधिनियम को पूर्णतः कार्यन्वित करने एवं अपराधियों को दण्डित करने की भी व्यवस्था की गयी है। सन् 1987 में किये गये संशोधनों के परिणामस्वरूप दण्ड सम्बन्धी प्रावधानों को अधिक सख्त एवं व्यापक बनाया गया है। इनमें आर्थिक दण्ड तथा कारावास दण्ड दोनों का समावेश है। 

(10) श्रमिकों की सुरक्षा (Safety for workers)-

दुर्घटनाएँ न्यूनतम हों, इस दृष्टि से एवं दुर्घटना की दशा में जन-हानि एवं क्षति (Injury) को टालने के लिए विभिन्न सुरक्षा सम्बनधी प्रावधानों का समावेश किया गया है । खतरनाक यन्त्रों पर बालकों, किशोरों तथा प्रौढों की नियुक्ति पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है । जिन कारखानों में 1,000 या इससे अधिक श्रमिक कार्यरत हैं, उनमें सुरक्षा अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान है। 

(11) श्रम-कल्याण (Workers welfare)

कल्याणकारी राज्य को स्थापना एवं उससे सम्बन्धित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए श्रमिकों के नहाने-धोने, आराम करने,शिशुगृह, कैण्टीन. आदि के लिए भी इसमें प्रावधान रखे गये हैं। इसके अतिरिक्त यदि कारखाने में कार्यरत श्रमिकों की संख्या 500. अथवा इससे अधिक हो तो एक पूर्णकालीन श्रम-कल्याण अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान है। 

(12) स्वास्थ्य सुविधाएँ (Health failities)-

श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए विस्तत प्रावधान किये गये है । कार्य के कमरों में पर्याप्त प्रकाश, स्वच्छ वायु, रोशनदान, कृत्रिम नमी स्वच्छ पीने का पानी, कमरों की सफेदी, शौचालय तथा मूत्राशय, पीकदान, गन्दे पदार्थों की निकासी, पर्यावरण, कूड़ा-करकट एकत्रित न होने, आदि के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान है। 

प्रावधानों का उद्देश्य कारखानों में स्वस्थ कार्य की दशाओं को उपलब्ध कराना एवं उन्हें बनाये रखना है। .

(13) निरीक्षण अधिकारी (Supervision officer)-

प्रस्तुत अधिनियम में निरीक्षण अधिकारी एवं उसके अधिकारों, आदि के सम्बन्ध में भी प्रावधान हैं । इसके अतिरिक्त प्रमाणित करने वाले की नियुक्ति, अधिकारों एवं कर्तव्यों के सम्बन्ध में भी प्रावधान हैं । इन प्रावधानों के कारण सरकार को कारखानों पर नियन्त्रण रखने में पर्याप्त सुविधा हुई है। 

(14) कछ विशिष्ट बीमारियों की सूचना (Information given to some sepeified diseases)-

अधिनियम के अन्त में एक अनुसची (Schedule) दी गयी है, जिसमें 17 रोगों (Notifiable Diseases) का उल्लेख किया गया है। यदि कोई श्रमिक इनमें से किसी भा राग से पीड़ित हो जाये तो कारखाने के प्रबन्धक को इसकी सचना उपयक्त अधिकारी को देनी पड़ती है।

(15) खतरनाक कार्य तथा दुर्घटना, आदि की दशा में विशेष प्रावधान (Special provision for in case dangerious work and aceident)-

प्रस्तुत अधिनियम में आधक खतरनाक कायो पर स्त्री, बालक, किशोर श्रमिकों की नियक्ति पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है । दुर्घटना होने की दशा में कारखाने का परिभोगी इसकी सचना निर्धारित अधिकारी को देगा। कारखाना (संशोधन) अधिनियम, 1987 के अन्तर्गत खतरनाक प्रक्रियाओं तथा पर्यावरण को दूषित करने वाले कारखानों के अधिष्ठाताओं के विभिन्न कर्तव्य निर्धारित किये गये हैं तथा उन पर प्रभावी नियन्त्रण स्थापित किया गया है। 

(अब तक के किये गये संशोधनों सहित) पिछले सभी कारखाना अधिनियमों की तुलना में अधिक व्यापक एवं श्रेष्ठ है। किन्तु हमारे सामने प्रश्न यह है कि क्या अब यह कारखाना अधिनियम पर्याप्त है अथवा इसमें अभी और अधिक संशोधन की आवश्यकता है । इस प्रश्न पर गहराई से मनन करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रस्तुत कारखाना अधिनियम में अभी भी कमियाँ विद्यमान हैं, जिनका सुधार करने के लिए निकट भविष्य में आवश्यक कदम उठाने होंगे :

यह अधिनियम अपर्याप्त है अतः इसे और अधिक क्रियाशील एवं प्रभावी बनाने के लिए यथा-स्थान आवश्यक सुधार किये जाने चाहिए। जो लोग इसके प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं, उनके विरुद्ध अधिक कठोर कदम उठाये जाने की व्यवस्था भी होनी चाहिए । इस सम्बन्ध में सन 1987 में किये गये संशोधनों के अन्तर्गत इस दिशा में निश्चयात्मक रूप में कदम उठाये गये. हैं । किन्तु वर्तमान दशाओं में वे सर्वथा अपर्याप्त हैं । हमारे अधिकारीगण कानून बनाने मात्र से ही अपने कार्य की इतिश्री कर लेते हैं। उन्हें अपनी इस मिथ्या मानसिकता को बदलना होगा। उनहें यह स्पष्ट रूप में समझना होगा कि कानून बनाने के साथ-साथ उनके कार्यन्वित करने एवं कराने की भी उनकी उतनी ही जिम्मेदारी है। वे अपनी इस जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते । 

कारखाना अधिनियम का प्रभाव 

(Effect of Factory Act)

उपर्युक्त कारखाना अधिनियम का सबसे प्रमुख प्रभाव यह पड़ा है कि श्रमिक अब यह औद्योगिक अधिनियम /4 समझने लगे हैं कि उनके पास भी अधिकार हैं जिनका उपयोग वे अपनी दशा सुधारने एवं अपनी बात मनवाने के लिए कर सकते हैं । उधर नियोक्ता के मन में भी यह भय उत्पन्न हुआ है कि यह उसने अत्याधिक मनमानी की तो श्रमिकों एवं सरकार दोनों के द्वारा उसके विरूद्ध कार्यवाही की जा सकती है। प्रस्तुत अधिनियम के लाग होने के बाद देश श्रमिकों की दशा तथा कारखाने के वातावरण में निरन्तर सधार हआ है। नियोक्ता द्वारा किये जाने वाले मनमाने शोषण पर प्रभावपूर्ण रोक लगी है तथा सरकार श्रमिकों के प्रति अपने दायित्वों को निभाने की दशा में जागरुक हुई है। निःसन्देह अधिनियम द्वारा श्रमिकों की कार्य की दशाओं को सुधारने तथा कारखानों में उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में सराहनीय भूमिका निभाई है। 

कारखाना अधिनियम 1948 की धारा 6 व 7 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति नया कारखाना लगाना चाहता है या स्थापित कारखाने का विस्तार करना चाहता है तो ऐसे कारखाने की स्वीकृति अनुज्ञापन व पंजीयन कराना अनिवार्य है । इसका उद्देश्य श्रमिकों के हितों की सुरक्षा करना तथा कार्य करने का उपयुक्त वातावरण उत्पन्न करना है। .. 

प्रावधान के उद्देश्य-इस प्रावधान का उद्देश्य श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा कार्य करने की उपयुक्त दशाओं का निर्माण करना है क्योंकि कारखाना के वातावरण का श्रमिकों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। यदि कारखाने में कूड़ा-कचरा व अन्य प्रकार की गन्दगी की सफाई की व्यवस्था नहीं होगी तो श्रमिकों का स्वास्थ्य खराब होगा जिससे उनकी कार्यक्षमता पर बुरा असर पड़ेगा । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये धारा 6 व 7 का निर्माण किया गया है। 

कारखाने की स्वीकृति, अनुज्ञापन एवं पंजीयन

(Approval, Licencing and Registration of a Factory)

कारखानों की स्वीकृति, अनुज्ञापन एंव पंजीयन के लिये प्रार्थना-पत्र देने का उत्तरदायित्व कारखाने के स्वामी का न होकर अधिष्ठाता का होता है । हाँ, यदि स्वामी ही अधिष्ठाता भी है, तो उसे ही प्रार्थना-पत्र देना होगा। अधिनियम की धारा 6 के अन्तर्गत राज्य सरकार को अधिकार दिये गये हैं कि वह निम्नलिखित विषयों में नियम बना सकती है –

(i) मुख्य निरीक्षक से लिखित में उस स्थान के बारे में स्वीकृति प्राप्त करना जा कारखाना स्थापित किया जायेगा। यदि कारखाने का विस्तार करना है, तो भी राज्य सरका मुख्य निरीक्षक की स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक है। 

(ii) स्वीकृति प्राप्त करने के लिये दिये जाने वाले प्रार्थना-पत्रों के साथ काम निर्माण या विस्तार की योजना, नक्शा, विशिष्ट विवरण आदि भेजना। 

(iii) उपरोक्त योजनाओं और विशिष्ट विवरणों का स्वरूप निर्धारित करना निश्चित करना कि वे किनके द्वारा प्रमाणित किये जायेंगे। 

(vi) यह निश्चित करना कि किन कारखानों का अनुज्ञापन व पंजीयन अनिवार्य होगा। ऐसे पंजीयन, अनुज्ञापन व अनुज्ञापन के नवीनीकरण के लिये शुल्क निश्चित करना। 

(v) जब तक अधिनियम की धारा 7 में लिखित बातों की पूर्ति नहीं की जाती तब अनुज्ञापन नहीं देना या उसका नवीनीकरण नहीं करना। 

आवेदन-पत्र की स्वीकृति 

(Approval of Application)

अधिनियम की धारा 6(2) के अनुसार यदि किसी स्थान पर नया कारखाना लगाने अथवा वहाँ कारखाना निर्माण के सम्बन्ध में अधिष्ठाता द्वारा राज्य सरकार या प्रमुख निरीक्षक विधिवत् आवेदन दिया गया है और आवेदन-पत्र प्रस्तुत करने की तिथि से 3 महीने के भीतर आवेदक को कोई आदेश प्रस्तुत न हो तो यह मान लिया जायेगा कि स्वीकृति प्राप्त हो गयी है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आवेदन-पत्र को राज्य सरकार या मुख्य निरीक्षक के पास रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजा जाना चाहिये। 

अनुमति न मिलने की अपील 

(Appeal in Case of Disapproval)

अधिनियम की धारा 6(3) के अनुसार यदि राज्य सरकार या मुख्य निरीक्षक ने कारखाने के स्थल के सम्बन्ध में या इसके निर्माण या विस्तार के सम्बन्ध में या कारखाने के अनज्ञापन व पंजीयन के सम्बन्ध में दिये गये आवेदन-पत्र को अस्वीकृत कर दिया हो तो आवेदक ऐसी अस्वीकृति करने की तिथि से 30 दिन के अन्दर अपील कर सकता है। यह अपील मुख्य निरीक्षक द्वारा अस्वीकार करने पर राज्य सरकार को तथा राज्य सरकार द्वारा अस्वीकार करने पर केन्द्र सरकार को की जानी चाहिये। 

स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं 

(No Need of Approval)

निम्नलिखित दशाओं में कारखाने का विस्तार नहीं माना जायेगा

(i) किसी प्लाण्ट या यन्त्र का प्रतिस्थापन करना।

(ii) निर्धारित सीमाओं के अन्तर्गत कोई अतिरिक्त प्लाण्ट या यन्त्र लगाना।

सन 1976 में किये गये एक संशोधन के अनुसार. यदि प्रतिस्थापन या वृद्धि के द्वारा कारखाने का विस्तार किया गया है जिसका कि कारखाने के स्थान अथवा पर्यावरण परिस्थिा पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है, तो इस विस्तार के लिये मुख्य निरीक्षक अथवा सरकार की स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं है।

अधिष्ठाता द्वारा सूचना 

(Information by Occupier)

कारखाना अधिनियम की धारा 7 के अनुसार कारखाने के अधिष्ठाता का यह कर्तव्य है,

कारखाने को अपने अधिकार में लेने या ठपयोग में लाने के कम से कम 15 दिन पर्व निरीक्षक को निम्नलिखित बातों के सम्बन्ध में एक लिखित सूचना भेजे : 

(1) कारखाने का नाम एवं उसकी स्थिति । 

(2)कारखाने के अधिष्ठाता का नाम व पता ।

(3) भवन (संलग्न क्षेत्र सहित) के स्वामी का नाम व पता।

(4) वह पता जिस पर कारखाने से सम्बन्धित समस्त सुचनायें भेजी जा सकें। 

(5) निर्माण प्रक्रिया की प्रकृति जो इस अधिनियम के प्रारम्भ होने के दिन से 12 माह पूर्व मागवाने में चालू रही हो और नये कारखानों की अवस्था में आगामी 12 माह के दौरान कारखाने में चलाई जाने वाली हों। 

(6) उपयोग में लायी जाने वाली शक्ति की प्रकृति व उसकी मात्रा।

(7) कारखाने के प्रबन्धक का नाम ।

(8) कारखाने में नियुक्त किये जाने वाले कर्मचारियों की सम्भावित संख्या। 

(9) विद्यमान कारखाने की दशा में पिछले 12 माह की अवधि में नियुक्त श्रमिकों की . औसत दैनिक संख्या। 

(10) कारखाने में स्थापित अथवा स्थापित की जाने वाली कुल शक्ति का योग । (11) अन्य विवरण जो निर्दिष्ट किये जायें। 

सूचना देने की विधि 

(Procedure of Information)

अधिनियम की धारा 7(2) के अनुसार, उन सभी कारखानों व प्रतिष्ठानों के सम्बन्ध में जोकि प्रथम बार इस अधिनियम के अन्तर्गत आते हैं, अधिष्ठाता का यह उत्तरदायित्व है कि वह उपरोक्त विवरण इस अधिनियम के प्रभावशाली होने की तिथि से 30 दिन के अन्दर लिखित रूप से मुख्य निरीक्षक को भेज दे। धारा 7(3) के अनुसार, यदि कोई कारखाना वर्ष में साधारणत: 180 दिन से कम समय के लिये उत्पादन क्रिया में लगा रहता है तो उसे उपरोक्त समस्त जानकारी उत्पादन क्रिया के आरम्भ होनेसे कम से कम 30 दिन पहले ही मुख्य निरीक्षक के पास भेजना होगी। 

नये प्रबन्ध की सूचना

(Information regarding New Management)

अधिनियम की धारा 7 (4) के अनुसार, जब कभी नये कारखाने में नये प्रबन्धक की नियुक्ति की जाती है तो कार्यभार सम्भालने के 7 दिन के अन्दर अधिष्ठाता को उसकी लिखित सूचना कारखाना निरीक्षक के पास भेजनी होगी तथा उसकी एक प्रतिलिपि मुख्य निरीक्षक के पास भेजनी होगी। 

अधिनियम की धारा 7 (5) के अनुसार, यदि किसी अवधि के लिये कोई व्यक्ति कारखाने का प्रबन्धक मनोनीत नहीं किया गया है अथवा जिस व्यक्ति को मनोनीत किया गया या में जो भी व्यक्ति प्रबन्ध का कार्य है, वह कारखाने के प्रबन्ध का कार्य नहीं करता तो ऐसी दशा में जो भ जायेगा। यदि ऐसा कोई व्यक्ति नहीं करता हुआ पाया जायेगा. उसी को प्रबन्धक मान लिया जायेगा। याद सा पाया जाता है, तो इस अधिनियम की दष्टि से अधिष्ठाता ही कारखाने का प्रबन्धक मान जायेगा। 

निरीक्षक या मुख्य निरीक्षक की नियुक्ति 

(Appointment of the Inspector or Chief Inspector)

भारतीय कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 8 के अन्तर्गत निरीक्षकों की नियनिक सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान हैं 

(1) निरीक्षक की नियुक्ति (Appointment of Inspectors)-

भारतीय कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 8(1) के अन्तर्गत राज्य सरकार राजकीय राजपत्र में घोषित करने निर्धारित योग्यता वाले व्यक्तियों को निरीक्षक नियुक्त कर सकती है तथा उन स्थानीय सीमा को भी निर्धारित कर सकती है जिनके अन्तर्गत इन निरीक्षकों को कार्य करना है। उपरोक्त से निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं– .

(a) निरीक्षक की नियुक्ति का अधिकार केवल राज्य सरकार को है।

(b) केवल निर्धारित योग्यता वाले व्यक्तियों को ही निरीक्षकों के रूप में नियक्ति की जा सकती है। 

(c) राज्य सरकार निरीक्षकों की नियुक्ति की घोषणा राजकीय राजपत्र के माध्यम से करती है। 

(d) नियुक्त निरीक्षक राज्य सरकार द्वारा निर्धारित क्षेत्र में कार्य करते हैं। 

(2) मुख्य निरीक्षक की नियुक्ति (Appointment of Chief Inspector)

भारतीय कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 8(2) के अनुसार, राज्य सरकार का राजकीय राजपत्र में सूचना देकर मुख्य निरीक्षकों की नियुक्ति करने का भी अधिकार है। मुख्य निरीक्षक इस अधिनियम के द्वारा दिये गये अधिकारों के अतिरिक्त समस्त राज्य में निरीक्षकों के अधिकारों का भी प्रयोग करता है। 

(3) अतिरिक्त, संयुक्त तथा उप-मुख्य निरीक्षकों की नियुक्ति (Appointment of Additional, Joint and Dy-Chief Inspectors)

इस अधिनियम की धारा 8(2-अ) के अनुसार, राज्य सरकार राजकीय गजट में अधिसूचना जारी करके किसी भी संख्या में अतिरिक्त मुख्य निरीक्षकों, संयुक्त मुख्य निरीक्षकों, उप-मुख्य निरीक्षकों तथा अन्य कई अधिकारियों को मुख्य निरीक्षक की सहायता के लिये नियुक्त कर सकती है तथा अधिसूचना मनिर्दिष्ट करके मुख्य निरीक्षक के अधिकार प्रदान कर सकती है।

(4) नियुक्ति के लिये योग्यातायें (Qualifications for Appointment)

अधिनियम की धारा 8(3) के अनुसार कोई भी ऐसा व्यक्ति निरीक्षक या मुख्य निरीक्षक पर नियुक्त नहीं किया जा सकता जिसका प्रत्यक्ष या परोख रूप से कारखाने में, कारखा। व्यापार में अथवा उससे सम्बन्धित किसी यन्त्र या उत्पादन क्रिया में हित हो । याद का पहले से किसी उच्च पद पर कार्यरत् है, और बाद में उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हित उत्पन्न हो जाता है तो उसे उस पद पर कार्य करने का अधिकार नहीं रहेगा। 

(5) जिलाधीश का निरीक्षक होना (District Magistratc as an Inspector)-

इस अधिनियम की धारा 8(4) के अनुसार, प्रत्येक जिलाधीश अपने जिले में कारखाना निरीक्षक माना जायेगा। दूसरे शब्दों में,उसे वे सब अधिकार प्राप्त होंगे जो अधिनियम । के अन्तर्गत कारखाने के निरीक्षक को प्राप्त होते हैं । निरीक्षक के रूप में उसका कार्य प्रशासनिक होता है, न्यायिक नहीं। 

(6) Appointment of an Additional Inspector-

इस अधिनियम की धारा 8(5) के अनुसार,राज्य सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह किसी भी सार्वजनिक अधिकारी को, जिसे वह उचित समझती है, अतिरिक्त निरीक्षक नियुक्त कर दे। अतिरिक्त निरीक्षकों के कार्य-क्षेत्र का निर्धारण भी राज्य सरकार के द्वारा ही पूरा किया जायेगा। 

(7) एक से अधिक निरीक्षक होने पर अधिकारों का विभाजन (Division of Rights in case of more than one Inspectors)–

इस अधिनियम की धारा 8(6) के अनुसार, यदि किसी क्षेत्र में एक से अधिक निरीक्षक नियुक्त किये गये हैं तो राज्य सरकार सरकारी गजट में प्रत्येक निरीक्षक के अधिकारों के बारे में घोषणा करेगी। साथ ही यह भी प्रकाशित किया जायेगा कि सूचना किस निरीक्षक को भेजी जानी चाहिये। 

(8) जन-सेवक होना (To be Public Servant)-

अधिनियम की धारा 8 (7) के अनुसार, प्रत्येक मुख्य निरीक्षक और निरीक्षक भारतीय दण्ड विधान (I.P.C.) के अन्तर्गत सार्वजनिक सेवक होगा तथा यह उस अधिकारी के आधीन होगा जिसे राज्य सरकार नियुक्त करेगी। 

निरीक्षकों के अधिकार 

(Powers of Inspectors)

कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 9 के अनुसार, निरीक्षकों के निम्नलिखित अधिकार हैं 

(1) कारखाने में प्रवेश का अधिकार (Right to Enterance in the Factory)

प्रत्येक निरीक्षक को यह अधिकार प्राप्त है कि जिस क्षेत्र में उसे नियुक्त किया गया है, वह उस क्षेत्र में अपने सहयोगियों के साथ ऐसे स्थान में प्रवेश कर सकता है,जो कारखाने के रूप में प्रयोग किया जाता है। 

(2) निरीक्षण करने का अधिकार (Right to Inspection)-

इस सम्बन्ध में निरीक्षकों को निम्नलिखित अधिकार प्रदान किये गये हैं 

(i) वह भवन,प्लान्ट आदि का निरीक्षण करे। .. 

(ii) वह कारखाने से सम्बन्धित किसी भी नियत रजिस्ट्रर या दस्तावेज को प्रस्तुत कराये। 

(3) शंका समाधान का अधिकार (Right to Clear a Doubt)-

यदि निरीक्षक को यह सन्देह है कि किसी स्थान का प्रयोग कारखाने के रूप में किया जा रहा है तो वहाँ जाकर अपनी शंका का समाधान कर सकता है। 

(4) बयान लेने का अधिकार (Right to take Statement)-

अधिनिया ७६श्य का पूर्ति के लिये यदि आवश्यक हो तो निरीक्षक किसी भी व्यक्ति का बयान घर पर या अन्यत्र ले सकता है। 

(5) अन्य अधिकार (Other Rigts)-

निरीक्षक ऐसे अधिकारों का भी प्रयोग सकता है जो इस अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किये। परन्तु वह किसी भी व्यक्ति को ऐसे प्रश्नों का उत्तर देने के लिये बाध्य नहीं कर सकता और “, काई ऐसी गवाही देने के लिये बाध्य कर सकता है जिससे वह व्यक्ति स्वयं अपराधी ठरण जाये। 

निरीक्षकों के कर्त्तव्य 

(Duties of Inspectors)

एक निरीक्षक के निम्नलिखित कर्तव्य होते हैं-

(1) अधिनियम के अन्तर्गतसौपें गये दायित्वों का निर्वाह करना। (2) जनसेवक के रूप में कार्य करना। 

(3) सभी के साथ निष्पक्ष व न्यायपूर्ण व्यवहार करना।

(4) समय-समय पर कारखाने, भवन व अन्य रजिस्टरों का निरीक्षण करना। 

(5) श्रमिकों के कल्याण हेतु अधिनियम द्वारा प्रदत्त सुविधाओं तथा सुरक्षा व्यवस्थाओं आदि की पर्याप्तता की जाँच करना।

(6) ऐसे कर्त्तव्यों का पालन करना जो अधिनियम के उद्देश्यों को लागू करने में सहायक हों। 

(7) अधिष्ठाताओं को तकनीकी सलाह देना व उनका मार्ग दर्शन करना। 

कारखाने में यन्त्रों पर काम करते समय श्रमिकों के साथ दुर्घटनायें हो जाना सामान्य सी बात है, इन दुर्घटनाओं से श्रमिकों की रक्षा करना कारखाने के मालिक का दायित्व है। कारखाना अधिनियम, 1948 मे श्रमिकों की सुरक्षा के लिये अनेक प्रावधान बनाये गये हैं। इस अधिनियम में ये प्रावधान धारा 21 से लेकर धारा 41 तक दिये गये है।

जो कि निम्न प्रकार –

(i) मशीनों की केसिंग केसिंग से आशय मशीन के चारों ओर करघरा बनाना है जिससे दुर्घटना की सम्भावना कम हो । धारा 21 के अनुसार शक्ति चालक. जल चक्र, गतिचालक चक्र, खराद सम्बन्धी भाग, विद्युत उत्पादक यन्त्र, शक्ति प्रेषक यन्त्र आदि के चारों ओर उचित फेसिंग होनी चाहिये जिसे मशीनों के चलने से दुर्घटना की सम्भावना कम रहे। 

(ii) चालू मशीन पर या उसके निकट कार्य (Work on or near Machinery in Motion)-धारा 22 के अनुसार यदि किसी मशीन आदि की मरम्मत करने के लिये चाल मशीन या उसके निकट कार्य किया जाता है तो वहाँ ऐसे उपायों का आश्रय लेना चाहिये जिससे किसी भी श्रमिक को दुर्घटनापूर्ण क्षेत्र में जाने की सम्भावना न रहे । किसी भी बालक या स्त्री श्रमिक को चालू मशीन को साफ करने की आज्ञा नहीं दी जायेगी। राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह इस आशय का एक आदेश निर्गमित कर दे कि अमक मशीन को बाल स्थिति में साफ नहीं किया जा सकेगा या उसमें तेल नहीं डाला जायेगा। 

(iii) बालको एवं स्त्री श्रमिकों के कार्य करने पर रोक (Prohibition of employment of women and young persons on dangerous machines) – धारा 3 के अनुसार किसी नवयुवक को ऐसी मशीन पार कार्य करने की अनुमति नहीं दी जायेगी जिसकी कार्यविधि खतरनाक हो और वह व्यक्ति उससे होने वाली दर्घटनाओं से अनभिज्ञ हो जब कि उस व्यक्ति को ऐसी मशीनों के संचालन की ट्रेनिंग न दी गई हो; किसी ऐसे व्यक्ति के संरक्षण में कार्य कर रहा हो जो मशीन के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी रखता हो । राज्य सरकार किसी भी प्रकार की मशीन के विषय में इस प्रकार का निर्णय ले सकती है । धारा 27 के अनुसार किसी भी स्त्री या बाल श्रमिक को दो कार्यरत मशीनों के मध्य में होकर गुजरने का काम नहीं देना 

चाहिये। 

(4) विद्युत शक्ति को बन्द करने की विधि (Devices for cutting off Powers)-धारा 24 के अनुसार यह प्रावधान कार्यशाला के उसी स्थान पर लागू होगा जहाँ बिजली का प्रयोग शक्ति के रूप में होता हो। यदि मशीनें बिजली से चलाई जाती हों अर्थात उनका रोका जाना मानव शक्ति (Man-Power) के परे की बात हो तो बिजली को बन्द करने का उचित एवं शीघ्र साधन होना चाहिये जिससे दुर्घटनाओं की सम्भावना न्यूनतम हो सके। 

(5) स्वचालित एवं घूमने वाली मशीनों का कार्यरत होना (Movement of Automatic and Revolving Machines)-धारा 25 के अनुसार स्वचालित मशीन को कार्य करने के स्थान से 18 इंच दूर रखा जायेगा। धारा 30 के अनुसार घूमने वाली मशीन को ऐसे स्थान पर लगाया जायेगा जहाँ पर श्रमिक की अधिकतम सुरक्षा सम्भव हो सके। 

(6) नई मशीनों का लगाना (Casing of new Machinery)-धारा 26 के अनुसार यदि अप्रैल 1949 के बाद कोई नई मशीन लगाई जाती है तो यह देखना होगा कि उसका प्रत्येक बोल्ट भली भाँति लगाया गया है, जिससे दुर्घटना की सम्भावना कम से कम हो । इसी प्रकार ऐसी मशीन के दांते इत्यादि जिनको एक निश्चित दिशा (Fixed Position) में रखा जाता है उनकी उचित फेंसिग कर दी जाये। 

(7) हायस्ट, लिफ्ट एवं क्रेन (Hoists, Liftsand Cranes)– धारा 28 के अनुसार प्रत्येक हायस्ट (Hoist) और लिफ्ट (Lift) उचित प्रकार से बना होना चाहिये। अर्थात् यह मशीन बनाने की दृष्टि से ठीक हो, उसमें अच्छे सामान का प्रयोग किया गया हो। धारा 29 के अनुसार क्रेन (Cranes) और लिफ्टिंग यन्त्रों के सभी भाग भली भाँति निर्मित किये जाने चाहिये, वर्ष में कम एक बार यंत्र विशेषज्ञ द्वारा उनकी जाँच की जानी चाहिये और उस पर निर्धारित निश्चित वजन के अतिरिक्त नहीं लादा जाना चाहिये। 

(8) दबाव डालने वाले यन्त्रों का प्रयोग (Use of Pressure Plants)-धारा 31 के अनुसार जिन निर्माणियों में दबाव डालने वाले यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है वहाँ इस बात की सावधानी रखनी चाहिये कि दबाव सुरक्षित सीमा से अधिक न हो। राज्य सरकार तत्सम्बन्धी नियम बना सकती है और सुरक्षा के उपाय निश्चित कर सकती है। 

(9) उचित मार्ग एवं सीढियाँ (Floor, stairs and means of access)-धारा 32 के अनुसार सभी फर्श, सीढ़ियां और आने जाने का मार्ग उचित ढंग से बना होगा। मार्ग में हाथ से पकड़ने वाले (I land drails) बनाये जायेंगे। जहाँ तक सम्भव होगा कार्य करने के स्थान तक जाने का उचित मार्ग होगा। धारा 33 के अनुसार यदि फर्श के बीच कहीं ऐसे गहने गये हों जिनमें सामान इत्यादि रखा जाता हो तो वह इस प्रकार होने चाहिये कि मार्ग में सिद्ध न हों। 

(10) अधिक बोझा (Excessive Weight)-धारा 34 के अनुसार कोई व्यकि इतना अधिक बोझा नहीं उठाएगा जिससे उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़े । राज्य सरकार अपने प्रावधानों के द्वारा व्यस्क व्यक्तियों, श्रमिकों तथा बाल श्रमिकों द्वारा अधिकतम बोझा ढोने की सीमा निर्धारित कर सकती है तथा उसके ढोने की विधि भी निर्धारित कर सकती है। 

(11) आँखों की सुरक्षा (Protection of Eyes)-धारा 35 के अनुसार यदि निर्माण कार्य में श्रमिकों की आँखों को क्षति पहुँचने की सम्भावना हो या अधिक चकाचौंध के कारण आँखे कमजोर होने की सम्भावना हो तो आँखों की सुरक्षा के लिये प्रभावशाली पर्दे और रंगीन चश्में आदि का प्रबन्ध होना चाहिये। 

(12) खतरनाक धुआँ आदि से सुरक्षा (Precautions against dangerous fumes)-धारा 36 के अनुसार निर्माणी में श्रमिकों आदि की प्रविष्टि उस स्थान से वर्जित की जाये जहाँ चारों ओर से बन्द कमरे हों, गड्डे हों अथवा चिमनी हो जिससे श्रमिकों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव न पड़े और उनके फेफड़े खराब न हों। ऐसे स्थानों पर 24 वोल्ट से अधिक बिजली का प्रकाश नहीं ले जाना चाहिये और यदि आग लगने की सम्भावना हो तो लैम्प आदि ले जाने की अनुमति नहीं होनी चाहिये। धारा 37 के अनुसार जहाँ भड़कने वाली आग लगने वाली गैस का प्रयोग होता हो वहाँ प्रत्येक ऐसी विधि का प्रयोग किया जायेगा जिससे गैस भड़कने या आग प्रज्वलित होने की सम्भावना न रहे।

(13) आग न लगने के लिये सावधानियाँ (Precautions against fire) निर्माणियों में अग्निकाण्ड की सम्भावना बनी रहती है जिससे जान और माल का खतरा बना रहता है । इस प्रकार की दुर्घटनाओं से बचने के लिये—

(i) प्रत्येक निर्माणी में उन सभी आदेशों का क्रियात्मक रूप में पालन होना चाहिये जिससे अग्निकाण्ड की स्थिति में श्रमिकों का बचाव सम्भव हो सके।

(ii) निर्माणी में संकटकालीन स्थिति में जो बाहर जाने के लिये मार्ग उपयुक्त हों। उनमें स्पष्ट रूप से लाल रंग से “Exit’ लिखा जाना चाहिये और इनमें ताले आदि का प्रयोग नहीं होना चाहिये या दरवाजे इतने अधिक कस कर नहीं लगाये जाने चाहिये कि वे आपत्ति के समय खुल न सकें, जहाँ तक सम्भव हो ये दरवाजे बाहर की ओर खुलने वाले होने चाहिये।

(iii) खिड़की, दरवाजे और बाहर जाने वाले मार्ग के अतिरिक्त अन्य मार्ग जो बचने के लिये लाभप्रद हों उन्हें किसी ऐसे चिन्ह आदि द्वारा स्पष्ट किया जायेगा जिससे अधिकांश श्रमिक बचाव कर सकें ।

(iv) आग लगने की स्थिति में श्रमिकों को चेतावनी देने की दृष्टि से आसानी से सुनी जाने वाली ध्वनि का प्रयोग होना चाहिये ।

(v) प्रत्येक श्रमिक को कार्य करने के स्थान से भागने के लिये खुला मार्ग होना चाहिये।

(vi) विशेषकर ऐसी निर्माणी में जहाँ 20 से अधिक व्यक्ति पहली मंजिल पर काम करते हों अथवा जहाँ विस्फोटक पदार्थ रखे जाते हों तो वहाँ अग्निकाण्ड की स्थिति में भागने की उचित व्यवस्था की जानी चाहिये। प्रत्येक स्थान पर आग बुझाने वाले यन्त्रों की व्यवस्था होनी चाहिये। राज्य सरकार निर्माणी को इस प्रकार के विशिष्ट यन्त्रों के लिये आदेश प्रदान कर सकती है। 

(14) भवन तथा मशीन आदि से होने वाली हानि से सुरक्षा (Safety from Building and Machinery)–धारा 40 के अनुसार यदि मुख्य निरीक्षक को इस बात का विश्वास हो जाता है कि भवन या भवन का कोई भाग, मशीन या मशीन का कोई भाग ऐसी स्थिति में है जो नष्यों की सुरक्षा और जिन्दगी के लिये खतरनाक हो सकता है तो वह मैनेजर को इस आशय का एक नोटिस दे सकता है कि जब तक यह स्थिति रहे कार्य न किया जाये या उसकी मरम्मत आदि निर्धारित समय के अन्तर्गत कर दी जाये। 

(15) अतिरिक्त नियम का प्रावधान (Power to make Rule)—धारा 41 के अनुसार राज्य सरकार को इस अधिनियम के अन्तर्गत यह अधिकार है कि निर्माणी के बारे में स्वतन्त्र रूप से आवश्यक अतिरिक्त नियमों का निर्माण कर सके । 

(16) कपास डालने के यन्त्रों के पास बच्चों की नियुक्ति पर प्रतिबन्ध—धारा 27 के अनुसार कारखाने के किसी भी ऐसे भाग में जहाँ कपास डालने का यन्त्र चल रहा हो किसी भी स्त्री अथवा बालंक को रूई दबाने (Cotten Pressing) के कार्य के लिये नियुक्त नहीं किया जा सकता। 

(17) वजन उठाने वाले यन्त्र (Lifting Machines)-धारा 29 के अनुसार कारखाने में क्रेन तथा अन्य उत्पादक मशीनें अच्छी तरह बनी हुई, ‘पर्याप्त शक्तिशाली’ तथा पूर्ण रुपेण दोष रहित होनी चाहियें तथा वर्ष में एक बार योग्य व्यक्ति द्वारा उनकी जांच करा लेनी चाहिये। 

(18) घूमता हुआ यन्त्र (Revolving Machinery)-धारा 30 के अनुसार ऐसे किसी कारखाने के प्रत्येक कमरे में जिसमें पीसने का कार्य किया जाता है उसके बार में यह सूचना होनी चाहिये कि अधिकतम गति सीमा क्या होगी? 

(19) गड्ढे, हौज फर्श, सुराख आदि (Pits, Sumps, Opening in Floors etc.)-धारा 33 के अनुसार प्रत्येक कारखाने में प्रत्येक स्थायी बर्तन (Vessei), हौज (Sumps), तालाब (Tank),गड्ढा (Pits) अथवा फर्श का सुराख (Opening of floors) जो गहराई,बनावट तथा स्थिति के कारण खतरे का कारण बना हुआ है,सुरक्षित रूप से ढका होना चाहिये या उसकी पूर्ण घेराबन्दी होनी चाहिये। राज्य सरकार इस सम्बन्ध में कोई भी नियम बना सकती है। 

(20) आग लगने की स्थिति में बचाव (Precaution in case of firc)-धारा 38 के अनुसार प्रत्येक कारखाने में आग लगने पर बचाव की कुशल व्यवस्था होनी चाहिये। 

(21) दोषपूर्ण भागों की जाँच का अधिकार (Power to examine specifications of defective parts or tests of stability)-धारा 39 के अनुसार यदि निरीक्षक को ऐसा अनुमान है कि कोई भवन या उसका कोई भाग या मार्ग मानव जीवन या सुरक्षा के लिये उचित नहीं है तो वह आदेश दे सकता है कि असुरक्षा हटायी जाये। 

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