Bcom 2nd Year Winding up of Company in hindi
कम्पनी का समापन (Winding up of Company)
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कम्पनी में अन्याय एवं कुप्रबन्ध से आशय (Meaning of Oppression and Mismanagement in a Company)
अन्याय-अन्याय से आशय ऐसे सभी कार्यों से है जो प्रमुख रूप से सदस्यों के हितों के साथ कुठाराघात करने वाले हों, कष्ट पहुँचाने वाले हों व अन्यायपूर्ण हों।
कम्पनी के अर्थ में अन्याय से आशय निम्न कार्यों से है-
- किसी को अनुचित रूप से दबाना।
- जनहित के विरुद्ध कार्य करना।
- अनुचित रूप से अधिकारों में बाधा डालना।
- (iv) अल्पमत अंशधारियों के साथ अन्याय करने वाले दायित्व व जोखिम में वृद्धि करने वाले कार्य।
- ऐसे कार्य जिन्हें केन्द्रीय सरकार व कम्पनी विधान मण्डल अन्याय माने।
कुप्रबन्ध-कुप्रबन्ध से आशय प्रबन्धकों एवं संचालकों द्वारा कम्पनी के मामलों में की जाने वाली उपेक्षा, उदासीनता तथा लापरवाही से है जिसके परिणामस्वरूप कम्पनी को लगातार हानि होने लगती है। यह लोकनीति के विरुद्ध है। कम्पनी के अर्थ में कुप्रबन्ध से आशय निम्न कार्यों से है-
1.जब कम्पनी का संचालन स्वयं कम्पनी के हित में नहीं है।
2. प्रबन्ध व नियन्त्रण में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो जाने के कारण कुप्रबन्ध की आशंका
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अन्याय एवं कुप्रबन्ध के बचाव के लिये भारतीय कम्पनी – अधिनिमय के प्रावधान ।
(Provisions of the Indian Companies Act for the Prevention of oppression and Mismanagement)
कम्पनी को अन्याय एवं कुप्रबन्ध से बचाने के लिए इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
विशेष अंकेक्षण की व्यवस्था (Provision of Special Audit)-इस व्यवस्था की गई है कि यदि कम्पनी का प्रबन्ध ठीक नहीं है तो कम्पनी के खातों का रूप से अंकेक्षण कराया जा सकता है ।
प्रबन्य अभिको पद की समाप्ति (Elimination of the Post of Managing
प्रबन्ध अभिकर्ताओं का पद समाप्त कर दिया गया है।
कम्पनी का राजस्ट्रा (Registration of the Company)-
इसम यह व्यवस्था की गई है कि किसा कम्पना क नाम की रजिस्टी ठस कम्पनी के उचित नाम पर ही की जा सकती है। ऐसा करने से जनता को धोखे से बचा
निराक्षक का नियुक्ति (Appointment of Inspector)-
यदि कम्पनी का व्यापार व्यक्तियों को धोखा देने के लिए किया जा रहा है तो ऐसी स्थिति में केन्द्रीय सरकार निरीक्षक की नियुक्ति कर सकती है।
कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान करना (Protection of Employees)-
यदि कम्पनी के कुप्रबन्ध के कारण किसी अधिकारी के द्वारा किसी कर्मचारी के विरुद्ध कोई कार्यवाही की जाती है तो कम्पनी ऐसे कर्मचारी को तब तक नहीं निकाल सकती जब तक कि ठस कर्मचारी विरुद्ध कोई दोष सिद्ध न हो जाए।
(6) लेनदारों के हितों की रक्षा (Protection of Creditors’s Interest)-
कम्पनी अधिनियम के अनुसार, यदि कम्पनी समापन की दशा में है तथा कम्पनी का व्यापार केवल धोखा देने के लिए किया जाता है तो व्यापार चलाने वाले व्यक्ति को अपराधी समझा जाएगा।
(7) अंशों के हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध (Restriction on the Transfer of Shares)-
अंशों का हस्तान्तरण ऐसी स्थिति में जबकि संचालक मण्डल में परिवर्तन की सम्भावना है; तीन वर्षों तक व्यर्थ होगा।
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न्यायालय द्वारा समापन या अनिवार्य समापन
(Winding Up by Court or Compulsory Winding up)
जब कम्पनी के सदस्य एक विशेष प्रस्ताव पारित करके न्यायालय के आदेश से कम्पनी का समापन करवाने की प्रार्थना करें अथवा न्यायालय कम्पनी की विभिन्न परिस्थितियों को देखते हुए उसका समापन करना उचित समझे तो न्यायालय कम्पनी के समापन का आदेश दे सकता है। न्यायालय द्वारा अनिवार्य समापन अनेक परिस्थितियों में किया जा सकता है, जो . निम्नानुसार है-
ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ रहने पर (lability to pay its debts)
याद कोई कम्पनी ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ है, तो न्यायालय उस कम्पनी के समापन का आदेश दे सकता है।
निम्नलिखित दशाओं में किसी कम्पनी को अपने ऋणों का
भुगतान करने में असमर्थ मानता है
(1) याद 1.00.000 रुपये या इससे अधिक राशि के किसी ऋणदाता ने कम्पना स पर ऋण का भुगतान करने की मांग की हो तथा कम्पनी ने इस मांग के तीन सप्ताह के भीतर भुगतान न किया हो और न उस ऋणदाता को अन्य प्रकार से निपटारा करके या जमा सन्तुष्ट किया हो, तो कम्पनी को भगतान करने में असमर्थ माना जाता है।
(ii) यदि किसी ऋणदाता ने किसी न्यायालय से कम्पनी के विरुद्ध कोई डिक्री ( प्राप्त की है और कम्पनी उसके आंशिक या पूर्ण ऋण के भुगतान में असमर्थ रहती कम्पनी को ऋण भगतान में असमर्थ माना जाता है।
(iii) यदि न्यायालय इस बात से सन्तुष्ट हो जाये कि कम्पनी अपने ऋणों का भार करने में असमर्थ है । ऐसा निर्णय करने से पूर्व न्यायालय कम्पनी के भावी तथा सामान दायित्वों को भी ध्यान में रखेगा।
कम्पनी के भुगतान करने की असमर्थता को न्यायालय व्यापारिक दृष्टिकोण से दे है। यदि कम्पनी अपनी चाल या तरल सम्पत्तियों (Current Assets) से चालू दायित्वों का भुगतान करने में असमर्थ रहती है, तो न्यायलय अनिवार्य समापन का आदेश दे सकता है।
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न्यूनतम सदस्य संख्या में कमी होने पर (Membership before minimum number)–
यदि किसी सार्वजनिक कम्पनी की सदस्य संख्या घटकर सात से कम हो जाती है तथा किसी निजी कम्पनी की सदस्य संख्या घटकर दो से कम हो जाती है, तो न्यायालय ऐसी कम्पनी के समापन का आदेश दे सकता है।
व्यवसाय प्रारम्भ न करने पर (Failure to Commence Business)-
यदि कोई कम्पनी अपने समामेलन के एक वर्ष के भीतर अपना व्यवसाय प्रारम्भ नहीं करती है अथवा अपने व्यावसाय को एक पूरे वर्ष तक बन्द या निलम्बित (Suspends) रखती है, तो न्यायालय कम्पनी के समापन का आदेश दे सकता है । निम्न दशाओं में यह आदेश नहीं किया जा सकता है-
(i) यदि न्यायालय इस बात से सन्तुष्ट है कि कम्पनी का व्यवसाय कुछ कठिनाई के कारण प्रारम्भ नहीं किया जा सकता है ।
(ii) यदि न्यायालय को कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिलता है कि कम्पनी का व्यवसाय चाल करने का इरादा नहीं है।
वैधानिक सभा बुलाने में त्रुटि करने पर (Default in calling Statutory Meeting)-
यदि कोई कम्पनी वैधानिक सभा बुलाने में त्रुटि करती है, तो भी न्यायालय कम्पनी के अनिवार्य समापन का आदेश दे सकता है।
वैधानिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने में त्रुटि करने पर (Default in filling statutory Report)-
यदि कोई कम्पनी अपनी वैधानिक रिपोर्ट रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत करने में त्रुटि करती है, तो भी न्यायालय कम्पनी के अनिवार्य समापन का आदेश दे सकता है।
विशेष प्रस्ताव पारित होने पर (By Special Resolution)-
कोई भी कम्पनी अपनी सभा में विशेष प्रस्ताव पारित करके न्यायालय से कम्पनी के अनिवार्य समापन का प्रार्थना कर सकती है। न्यायालय कम्पनी की प्रार्थना पर विचार करता है तथा समापन की
औचित्यता का पता लगाता है। यदि न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि कम्पनी का समापन करना लोकहित एवं कम्पनी के हितों के विरुद्ध होगा, तो वह कम्पनी के समापन की आदेश देने से इन्कार कर देता है।
उचित एवं न्यायसंगत होने पर (Winding up Just & Equitable)
याद न्यायालय किन्ही परिस्थितियों के अन्तर्गत कम्पनी का समापन करना उचित एवं न्यायसंगत समझता है, तो समापन का आदेश जारी कर सकता है।
विशेष परिस्थितियाँ-
(i) यदि कम्पनी के प्रबन्ध के प्रति सदस्यों में अविश्वास उत्पन्न हो गया हो तो भी न्यायालय कम्पनी के अनिवार्य समापन का आदेश दे सकता है।
(ii)यदि कम्पनी की सम्पूर्ण जी नष्ट हो गई हो तथा उसे पुनः प्राप्त करने का कोई सम्भावना नहीं हो तो भी न्यायालय कम्पनी के समापन के आदेश जारी कर सकता ।
(iii) यदि कम्पनी केवल दिखावा मात्र है अथवा कम्पनी केवल कागजों में ही विद्यमान है अधवा पानी के एक बलबले के समान ही है तो न्यायालय कम्पनी के समापन का जारी करता है।
(iv) यदि अन्तर्नियमों में उल्लिखित कोई निर्दिष्ट घटना घटित हो गई हो, तो भी न्यायालय समापन का आदेश दे सकता है।
(v) याद कम्पनी में कुप्रबन्ध तथा धन का दुरुपयोग हो रहा है, तो भी न्यायालय समापन का आदेश दे सकता है।
(vi) यदि कम्पनी के अल्पमत वाले अंशधारियों के साथ अन्याय (Oppression) है। रहा है, तो भी न्यायालय कम्पनी के अनिवार्य समापन का आदेश दे सकता है।
(vii) यदि प्रबन्ध में गतिरोध (Deadlock of Management) उत्पन्न हो जाता है, तो कम्पनी का भली प्रकार संचालन करना भी कठिन हो जाता है । ऐसी दशा में न्यायालय कम्पनी के अनिवार्य समापन का आदेश दे सकता है ।
(viii) यदि कम्पनी का उद्देश्य कपटपूर्ण अथवा अवैधानिक हो, तो भी कम्पनी के समापन का आदेश दिया जा सकता है।
(ix) यदि कम्पनी का व्यापार निरन्तर हानि पर चल रहा हो तथा भविष्य में भी लाभ पर चलने की कोई सम्भावना न हो, तो न्यायालय कम्पनी के समापन का आदेश दे सकता है।
(x) यदि कम्पनी की विषय-वस्तु समाप्त हो जाती है। उदाहरण के लिए, एक कम्पनी का निर्माण किसी दूसरे व्यक्ति के जहाजों को खरीदने के लिए किया जाता है । वह व्यक्ति बाद में हवाई जहाज बेचने का अनुबन्ध पूरा नहीं करता है। न्यायालय इस कम्पनी का समापनकर सकता है।
(xi) यदि कम्पनी के समामेलन का उद्देश्य पूरा करना असम्भव हो जाता है। तो न्यायालय कम्पनी के समापन के आदेश दे सकता है।
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कम्पनी का न्यायालय द्वारा अनिवार्य समापन के लिए न्यायालय को निम्नलिखित में से कोई भी व्यक्ति आवेदन-पत्र दे सकता है
(1)अंशदाताओं द्वारा (By Contributories)-
अंशादाताओं से तात्पर्य प्रत्येक उन व्यक्तियों से है, जो कम्पनी के समापन की दशा में कम्पनी को धन देने के लिए उत्तरदायी होते हैं। इसमें पूर्णदत्त अंशों के धारक भी सम्मिलित किये जाते हैं।
सभी अंशदााताओं को कम्पनी के अनिवार्य समापन के लिए न्यायालय को प्रार्थना करने का अधिकार होता है।
(2) ऋणदाताओं द्वारा (By the creditors)-
कम्पनी का कोई एक या अधिक ऋणदाता भी कम्पनी के अनिवार्य समापन के लिए न्यायालय से प्रार्थना कर सकते हैं । ऋणदाता में वर्तमान, भावी तथा संयोगिक ऋणदाता भी सम्मिलित हैं।
(3) स्वयं कम्पनी द्वारा (By the company itself)-
कोई भी कम्पनी अपनी सभा म विशेष प्रस्ताव पारित करके न्यायालय से कम्पनी के अनिवार्य समापन का भावना कर सकता एक अंशदाता निम्नलिखित दशाओं में ही कम्पनी के समापन के लिए न्यायालय आवेदन दे सकता है
(i) यदि कम्पनी ने वैधानिक सभा नहीं बुलाई हो।
(ii) यदि उसे ये अंश किसी भूतपूर्व अंशधारी की मृत्यु होने पर उत्तराधिकार के अन्तर प्राप्त हुए हैं। .
(iii)यदि वह समापन के आवेदन की तिथि से पूर्व के 18 महीनों में से कम से कम है महीनों तक अंशों का धारक रहा हो; अथवा
(iv) यदि वह कम्पनी के अंशों का मूल आवण्टी (Original alottee) हो अथवा
(v) यदि कम्पनी में सदस्यों की संख्या न्यूनतम संख्या (7 तथा 2) से कम हो।
(4) रजिस्ट्रार द्वारा (By the Registrar)-
रजिस्ट्रार केन्द्रीय सरकार की पूर्वानुमति निम्नलिखित दशाओं में कम्पनी के अनिवार्य समापन के लिए न्यायालय को प्रार्थना-पत्र दे सकता है
(i) यदि कम्पनी अपने ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ हो।
(ii) यदि कम्पनी के सदस्यों की संख्या घटाकर न्यूनतम आवश्यक सदस्य संख्या (सार्वजनिक कम्पनी की दशा में 7 तथा निजी कम्पनी दशा में 2) से कम हो गई हो।
(iii)यदि कम्पनी ने अपने समामेलन के एक वर्ष के भीतर अपना व्यवसाय प्रारम्भ नहीं किया हो।
(iv) यदि कम्पनी ने अपनी वैधानिक सभा यथासमय नहीं बुलाई हो।
(v) यदि कम्पनी ने उसको (रजिस्ट्रार को) वैधानिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने में त्रुटि की हो।
(vi) अन्य किसी आधार पर जो कि न्यायालय की दृष्टि में उचित एवं न्यायसंगत हो।
(vii) यदि केन्द्रीय सरकार अपने अधिकारों के अन्तर्गत (रजिस्ट्रार को) आवेदन देने के लिए अधिकृत करती है।
(5) केन्द्रीय सरकार द्वारा (By the Central Government)
केन्द्रीय सरकार कम्पनी के अनिवार्य समापन के लिए न्यायालय को आवेदन दे सकती है।
(6) निस्तारक द्वारा (By Liquidator)-
यदि कम्पनी का स्वैच्छिक या न्यायालय के निरीक्षण में समापन हो रहा है।
न्यायालय द्वारा अनिवार्य समापन की विधि कम्पनी के अनिवार्य समापन के लिए निम्नलिखित विधि अपनाई जाती है-
(1) समापन आदेश रोकने के लिए प्रार्थना-पत्र देना-यदि कोई कम्पनी अथवा उसका ऋणदाता अथवा अंशदाता कम्पनी से समापन का आदेश जारी होने से रुकवाना चाहता है, तो वह ऐसा कर सकता है।
(2) याचिका की सुनवाई का विज्ञापन-जिस दिन याचिका की सुनवाई की जाती है, उससे कम से कम 14 दिन पूर्व एक विज्ञापन द्वारा याचिका की सुनवाई की तिथि की घोषणा करनी पड़ती है।
(3) राजपत्र में सुनवाई का विज्ञापन-तत्पश्चात् न्यायालय इस आवेदन-पत्र याचिका (Petition) को राज-पत्र (Official Gazette) में प्रकाशित करवाता है। इसमें याचिका की सुनवाई की तिथि भी दी जाती है।
(4) न्यायालय द्वारा आवेदन-पत्र का अध्ययन करना-जब न्यायालय किसी कम्पनी के समापन हेत प्रार्थना-प्रार्थना पत्र प्राप्त करता है; तो वह इसका अध्ययन करता है।
(5) आवेदन करना सर्वप्रथम सम्बन्धित पक्षकारों को न्यायालय के समक्ष कम्पनी के समामापन के लिए आवेदन-पत्र प्रस्तुत करना पड़ता है।
(6) न्यायालय का आदेश न्यायालय जब याचिका से सम्बन्धित सभी प मनवाई कर लता ह, ता न्यायालय निम्नलिखित में किसी प्रकार का आदेश दे सकता है-
(i) वह याचिका को बिना खर्च तथा खर्च सहित अस्वीकार कर सकता है ।
(ii) वह सुनवाई को सशर्त या बिना किसी शर्त के स्थगित कर सकता है।
(iii) वह उचित समझे, तो अन्तरिम आदेश दे सकता है।
(iv) वह उचित समझे, तो खर्च सहित अथवा खर्चरहित अनिवार्य समापन का आदश सकता है।
(7) विघटन का सूचना रजिस्ट्रार को भेजना कम्पनी के निस्तारक को कम्पनी से विघटन के आदेश की प्रतिलिपि 30 दिनों के भीतर रजिस्टार के समक्ष प्रस्तुत कर देनी चाहिए । याद वह इसमें त्रुटि करता है, तो उस पर पाँच सौ रु प्रतिदिन तक का जर्माना तब तक किया जा सकता है, जब तक कि ऐसी त्रुटि जारी रहती है।
(8) कम्पनी के विघटन की घोषणा-जब निस्तारक सभी सम्पत्तियों का दायित्व के . भगतान में उपयोग कर लेता है और जब न्यायालय यह उचित समझता है कि निस्तारकत्तियों अथवा कोषों के अभाव में समापन की कार्यवाही आगे जारी नहीं रख सकता है, ता वह न्यायालय) एक आदेश जारी करके कम्पनी के विघटन (Dissolution) की घोषणा कर देता है।
(9) निस्तारक द्वारा प्रारम्भिक रिपोर्ट-समापन के आदेश के छ: माह के भीतर निस्तारक की नियुक्ति हो जाती है, तो कम्पनी के संचालक तथा सचिव आदि कम्पनी का स्थिति विवरण तैयार करते हैं। यह स्थिति विवरण निस्तारक को दे दिया जाता है।
(11) समापन की प्रतिलिपि रजिस्ट्रार को प्रस्तुत करना कम्पनी के समापन की तिथि के 30 दिनों के भीतर कम्पनी को तथा समापन के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति (Petitioner) को समापन के आदेश की प्रतिलिपि रजिस्ट्रार के सम्मुख प्रस्तुत कर देनी चाहिए।
(12) समापन की दशा में निस्तारक की नियुक्ति करना-यदि न्यायालय कम्पनी के समापन का आदेश दे देता है, तो वह कम्पनी के लिए निस्तारक नियुक्त कर देता है।
(13) वैधानिक सभा बुलाने के लिए आदेश देना–यदि कम्पनी के समापन की याचिका इस आधार पर दी गई है कि कम्पनी ने यथासमय अपनी वैधानिक सभा नहीं बुलवायी है अथवा वैधानिक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है, तो न्यायालय कम्पनी की वैधानिक सभा बुलाने तथा रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है।
(14) समापन का आदेश नहीं देना-जब न्यायालय को कम्पनी के समापन की याचना उचित एवं न्यायसंगत कारण के आधार पर नहीं की जाती है, तो भी न्यायालय उस कारण के आधार पर समापन का आदेश देने से इन्कार कर सकता है।
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सदस्यों द्वारा स्वैच्छिक समापन
(Member’s Voluntary Winding Up)
जब कम्पनी के सदस्य स्वेच्छा से कम्पनी का समापन करना चाहते हैं, तो उसे सदस्यों द्वारा कम्पनी का स्वैच्छिक समापन कहते हैं । सदस्यों द्वारा स्वैच्छिक समापन के साबन्ध निम्नलिखित प्रमुख वैधानिक व्यवस्थाएँ हैं
(1) विघटन का आदेश देना–सरकारी निस्तारक की रिपोर्ट पर न्यायालय कम्पनी के विघटन (Dissolution) का आदेश दे सकता है । न्यायलय इसी आदेश में विघटन की तिथि का उल्लेख भी कर देता है।
(2) सरकारी निस्तारक द्वारा जाँच-पड़ताल करना-ऊपर लिखा जा चुका है कि कम्पनी का निस्तारक सरकारी निस्तारक को भी समापन की कार्यवाही का विवरण तथा अन्तिम सभा की रिपोर्ट भेजता है । इस विवरण तथा रिपोर्ट के प्राप्त होने के बाद सरकारी निस्तारक कम्पनी की जाँच पडताल करता है कि कहीं कम्पनी के व्यवसाय का संचालन कम्पनी के सदस्यों के हितों अथवा जन-हित के विरुद्ध तो नहीं किया गया था। इस हेतु न्यायालय सरकारी निस्तारक को सभी आवश्यक अधिकार प्रदान कर देता है।
(3) रजिस्ट्रार द्वारा रजिस्ट्री करना जब रजिस्ट्रार को समापन कार्यवाही की रिपोर्ट तथा अन्तिम सभा की रिपोर्ट प्राप्त हो जाती है, तो वह उनकी रजिस्ट्री कर लेता है।
(4) रजिस्ट्रार तथा सरकारी निस्तारक को समापन का विवरण प्रस्तुत करना अन्तिम सामान्य सभा के होने के एक सप्ताह के भीतर कम्पनी का निस्तारक रजिस्ट्रार तथा सरकारी निस्तारक (Official Liquidator) को कम्पनी के समापन की कार्यवाही का विवरण तथा अन्तिम सभा की रिपोर्ट भेजता है।
(5) अन्तिम सभा बुलाना कम्पनी के समापन की कार्यवाही पूरी हो जाने पर निस्तारक को समापन की कार्यवाही का पूर्ण विवरण तैयार करना चाहिए । इस विवरण में यह स्पष्ट रूप से दर्शाया जाना चाहिए कि समापन की कार्यवाही किस प्रकार की गई है तथा कम्पनी की सम्पत्ति का किस प्रकार उपयोग या विवरण किया गया है।
(6) प्रत्येक वर्ष के अन्त में साधारण सभा बुलाना–यदि कम्पनी के समापन की कार्यवाही एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए चलती है, तो निस्तारक को समापन कार्यवाही प्रारम्भ होने की तिथि के एक वर्ष समाप्त होने पर तथा उसके बाद प्रत्येक वर्ष के समाप्त होने पर कम्पनी की साधारण सभा बुलानी चाहिए।
(7) दिवाले की दशा में ऋणदाताओं की सभा बुलाना यदि शोधन क्षमता की घोषणा में निर्धारित अवधि के भीतर कम्पनी के ऋणों का भुगतान नहीं किया जाता है अथवा निस्तारक यह अनुभव करता है कि कम्पनी अपने समस्त ऋणों के भुगतान करने में असमर्थ है.तो उसके (निस्तारक को) तत्काल ऋणदाताओं की एक सभा बुलानी चाहिए।
(8) प्रतिफल में अंश स्वीकार करना निस्तारक कम्पनी के समापन के दौरान सम्पत्तियों के बेचने के प्रतिफल के रूप में अंश भी स्वीकार करने का अधिकार रखता है।
(9) निस्तारक की नियुक्ति की रजिस्ट्रार को सूचना देना कम्पनी को निस्तारक की नियुक्ति करने अथवा रिक्त पद भरने की सूचना कम्पनी के रजिस्ट्रार को भेजनी चाहिए।
(10) निस्तारक के रिक्त पद को भरना यदि कम्पनी द्वारा नियुक्त निस्तारक की मृत्यु हो जाती है, अथवा वह पद त्याग देता है अथवा अन्य किसी कारण से उसका स्थान रिक्त हो जाता है, तो वह रिक्त पद को कम्पनी की साधारण सभा में पुनः भरा जा सकता है।
(11) संचालक मण्डल के अधिकारों की समाप्ति कम्पनी द्वारा साधारण सभा में निस्तारक की नियुक्ति कर देने के बाद संचालक मण्डल, पूर्णकालिक संचालक,प्रबन्धक संचालक अथवा प्रबन्धक का पद समाप्त हो जाता है।
(12) निस्तारक की नियुक्ति-सदस्यों द्वारा स्वैच्छिक समापन की दशा में कम्पनी अपनी सामान्य सभा में निस्तारक या निस्तारकों की नियक्ति कर सकती है।
(13) प्रस्ताव का प्रकाशन कम्पनी के समापन का प्रस्ताव पारित होने के बाद इसका सचना देने के लिए इसका राजकीय गजट में प्रकाशन भी करवाना पड़ता है ।
(14) स्वैच्छिक समापन प्रस्ताव पारित करना–कोई भी कम्पनी निम्नलिखित दशाआम अपनी साधारण सभा में एक साधारण प्रस्ताव (Ordinary resolution) पारित करक अपना स्वैच्छिक समापन कर सकती है
(अ) जब कम्पनी के अन्तर्नियमों में निर्दिष्ट अवधि समाप्त हो गई हो, तथा
(ब) कम्पनी के अन्तर्नियमों में निर्दिष्ट घटना घटित हो गई हो ।
कोई भी कम्पनी एक विशेष प्रस्ताव पारित करके किसी भी समय अपना स्वच्छिक समापन कर सकती है।
(15) घोषणा रजिस्ट्रार को प्रस्तुत करना-जब संचालक कम्पनी की शोधन क्षमता की घोषणा करते है, तो उन्हें इस घोषणा को रजिस्टार के समक्ष प्रस्तुत करना पड़ता है । यह घोषणा कम्पनी के समापन का प्रस्ताव पारित करने से पूर्व के पाँच सप्ताहों के भीतर ही रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिए।
(16) शाधन क्षमता की घोषणा करना-यदि कम्पनी के सदस्य कम्पनी का स्वैच्छिक समापन करना चाहता है, तो कम्पनी के दो संचालकों अथवा संचालकों के बहमत को. एक घोषणा करनी पड़ती है, जिसे शोधन क्षमता की घोषणा (Declaration of Solvency) + नाम से पुकारा जाता है। शोधन क्षमता की घोषणा तभी प्रभावशाली होती है. जबकि यह निम्नलिखित शर्तों को ध्यान में रखकर की जाती है
(अ) ऐसी घोषणा कम्पनी के समापन का प्रस्ताव पारित होने के तत्काल पहले के पाँच सप्ताहों में हुई होनी चाहिए।
(ब) अन्तिम तिथि तक के लाभ-हानि खाते तथा उस अन्तिम तिथि के चिट्ठे के सम्बन्ध में अंकेक्षकों की रिपोर्ट संलग्न करनी चाहिए।
(स) शोधन क्षमता की घोषणा के साथ ही कम्पनी की सम्पत्तियों तथा दायित्वों का एक नवीनतम विवरण (Latest Statement) भी संलग्न होना चाहिए।
यदि कोई संचालक बिना किसी उचित आधार के शोधन क्षमता की घोषणा कर देता है, तो उसे 6 माह तक का कारावास अथवा पचास हजार रु. तक का अर्थदण्ड अथवा दोनों ही दण्ड दिये जा सकते हैं।
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कम्पनी का समापन
(Winding up of Company)
सामान्य शब्दों में कम्पनी के समापन से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है, जिसके द्वारा कम्पनी के वैधानिक अस्तित्व को क्रमश: समाप्त किया जाता है। इस प्रक्रिया में कम्पनी की सम्पत्तियो का मल्य प्राप्त करके ऋणदाताओं को उनके ऋणों का भगतान किया जाता है तथा शेष बचे जिसके द्वारा किसी हाताओं तथा सदस्य तारक (liquidator) अन्त में यदि कोई धन तथा सम्पत्तियों को अंशधारियों में बाँट दिया जाता है।
गोवर (Gower) के अनुसार, “कम्पनी का समापन वह प्रक्रिया है जिसे कम्पनी का जीवन समाप्त किया जाता है तथा उसकी सम्पत्ति उसके ऋणदाताओं के लाभ के लिए प्रयुक्त की जाती है। इसमें एक प्रशासक, जिसे निस्तारको कहा जाता है की नियुक्ति की जाती है, जो कम्पनी को अपने नियन्त्रण में ले कम्पनी की सम्पत्तियों को एकत्रित करता है, ऋणों का भुगतान करता है और अन्त ” का यह आधिक्य (Surplus) बचता है, तो उसे सदस्यों में उनके अधिकारों के अनसार का देता है।”
कम्पनी का विघटन
(Dissolution of Company)
न्यायालय कम्पनी के विघटन का आदेश निम्नलिखित दशाओं में ही देता है।
(1) यदि कम्पनी के समापन की कार्यवाही पूरी हो गई है, अथवा
(2) यदि न्यायालय की राय में सम्पत्तियों एवं कार्यों
(Assets and Funds में समापन की कार्यवाही जारी नहीं रखी जा सकती हों, अथवा
(3) किसी भी अन्य कारण से।
(4)इसके अतिरिक्त, न्यायालय किसी भी कम्पनी के विघटन का आदेश तभी दे सकता। जबकि विद्यमान परिस्थितियों में ऐसा करना उचित एवं न्यायसंगत हो।
कम्पनी का विघटन उसी तिथि से हुआ माना जाता है, जिस तिथि को विघटन का आदेश जारी किया जाता है।
निस्तारक को कम्पनी को विघटन के आदेश की एक प्रतिलिपि 30 दिनों के भीतर रजिस्या के पास प्रस्तुत कर देनी चाहिए। Bcom 2nd Year Winding up of Company in hindi
न्यायालय के निरीक्षण में समापन
(Winding Up under the Supervision of Court):
यह समापन की अन्तिम विधि है । जब कम्पनी के स्वैच्छिक समापन (चाहे वह ऋणदाताओं द्वारा स्वैच्छिक समापन हो या सदस्यों द्वारा स्वैच्छिक समापन) की कार्यवाही चल रही हो,ता न्यायालय को प्रार्थना करने पर न्यायालय एक आदेश जारी करके यह घोषणा कर सकता है कि कम्पनी का न्यायालय के निरीक्षण में समापन होगा। न्यायालय के इस आदेश स्वाच्छा समापन की कार्यवाही पर कोई प्रभाव नहीं होता है। इसके प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार है-
(1) न्यायालय के निरीक्षण में समापन को अनिवार्य समापन में बदलना-यदि न्यायालय उचित समझता है. तो न्यायालय अपने निरीक्षण में समापन को अनिवार्य समापन म सकता है।
(2) आदेश का प्रभाव न्यायालय द्वारा अपने निरीक्षण में समापन का आदेश देन निम्नलिखित प्रभाव उत्पन्न होते हैं
(i) कम्पनी के विरुद्ध अन्य न्यायालय में चलाये जा रहे सभी विवादों एवं वैधा कार्यवाहियों पर रोक लग जाती है।
(ii) सामान्यः स्वेच्छिक समापन के समय नियक्त निस्तारक कार्य करता रहता है, किन्तु जिस्टार द्वारा प्रार्थना करने पर न्यायालय उसे हटा भी सकता है।
(iii) ऐसे निस्तारक के साथ अतिरिक्त निस्तारक (Additional liquidator) । निस्तारकों की नियुक्ति भी कर सकता है।
(iv) निस्तारक उन सभी रिक्त होने पर न्यायालय स्वयं निस्तारक नियुक्त कर सकता है।
(v)निस्तारक उन सभी अधिकारों का उपयोग कर सकते हैं. जो कि स्वैच्छिक समापन की दशा में निस्तारकों को प्राप्त होते हैं।
(vi) न्यायालय निस्तारकों के अधिकारों का उपयोग कर सकता है, जो वह न्यायालय द्वारा अनिवार्य समापन की दशा में करता है।
(3) आदेश में शते न्यायालय अपने निरीक्षण में समापन का आदेश देते समय उसमें समापन की शर्ते भी निर्धारित कर सकता है ।
(4) न्यायालय द्वारा आदेश-न्यायालय जब यह अनुभव करता है कि कम्पनी का स्वयं के निरीक्षण में समापन करवाना आवश्यक है तथा ऋणदाताओं तथा अंशधारिया क हित मह तब न्यायालय अपने स्वयं के निरीक्षण में कम्पनी के समापन का आदेश देता है।
(5) आवेदन का आधार कम्पनी के अंशदाता ऋणदाता अथवा निस्तारक निम्नलिखित में से किसी भी आधार पर न्यायालय से अपने निरीक्षण में समापन करने का आवेदन (याचिक) कर सकते हैं
(i) यदि निस्तारक पक्षपातपूर्ण कार्यवाही कर रहा हो; अथवा
(ii) यदि निस्तारक सम्पत्तियों के निपटारे में लापरवाही बरत रहा हो; अथवा
(iii) यदि कम्पनी के समापन का प्रस्ताव कपटपूर्ण तरीके से पारित करवाया गया हों;
(iv) यदि बहुमत वाले अंशधारियों द्वारा अल्पमत वाले अंशधारियों के साथ कपट किया जा रहा हो।
(6) न्यायालय को आवेदन-न्यायालय के निरीक्षण में समापन के लिए न्यायालय को आवेदन, अंशदाता, ऋणदाता अथवा निस्तारक द्वारा किया जा सकता है।
(7) स्वैच्छिक समापन की कार्यवाही का जारी रहना-जब कम्पनी ने अपने स्वैच्छिक समापन का प्रस्ताव पारित कर लिया हो, तो उसके बाद न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि कम्पनी स्वैच्छिक समापन न्यायालय के निरीक्षण के अधीन चलता रहेगा।
न्यायालय के निरीक्षण में समापन के लाभ (Advantages of Winding Up under the Supervision of Court)
(1) न्यायालय द्वारा अनिवार्य समापन सम्बन्धी अधिकारों का उपयोग-न्यायालय उचित, समझे, तो कम्पनी के समापन में अनिवार्य समापन के सम्बन्ध में प्राप्त अपने अधिकारों का उपयोग भी कर सकता है।
(2) ऋणदाताओं तथा अंशदाताओं के हितों की सुरक्षा-न्यायालय के निरीक्षण में समापन की दशा में स्वैच्छिक समापन की तुलना में अंशदाताओं तथा ऋणदाताओं के हितों की सुरक्षा अधिक रहती है।
(3) निस्तारकों को स्वैच्छिक समापन के लिए नियुक्त निस्तारकों के अधिकार-निस्तारकों को उन सभी अधिकारों का उपयोग करने का अधिकार मिल जाता है, जो वे स्वैच्छिक समापन के समय कर सकते हैं। हाँ, इतना आवश्यक है कि कुछ अधिकारों पर न्यायालय प्रतिबन्ध अवश्य लगा सकता है।
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