bcom 3rd year Redemption of Debentures pdf notes

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bcom 3rd year Redemption of Debentures pdf notes

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bcom 3rd year Issue and Redemption of Debentures notes

ऋणपत्रों का निर्गमन एवं शोधन 

ऋणपत्र का अर्थ (Meaning of Dehenture)-कम्पनी जब प्राण लेती है और इस ऋण की स्वीकृति के लिए एक प्रमाण-पत्र देती है तो इसे ऋणपत्र कहा जाता है। चूंकि कम्पनी एक कृत्रिम व्यक्ति है अत: वह अपनी स्वीकृति इस पर अपनी सार्वमुद्रा लगाकर देती है। इनके आधार पर ऋण दीर्घकाल के लिए लिये जाते हैं। इन ऋणपत्रों पर एक निश्चित दर से ब्याज दिया जाता है और यह ब्याज की दर ऋणपत्र के नाम से जुड़ी रहती है; जैसे, 8% ऋणपत्र का आशय है कि इन ऋणपत्रों पर 8% प्रति वर्ष की दर से ब्याज दिया जायेगा। 

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(30) के अनुसार, “ऋण पत्र में ऋण को प्रकट करने वालो ऋणपत्र स्टॉक, बॉण्ड और कम्पनी की अन्य प्रतिभूतियाँ सम्मिलित है चाहे वे कम्पनी को सम्पत्तियों पर प्रभार रखती हों या नहीं‘ 

ऋणपत्र की विशेषताएँ

1. ऋणपत्र कम्पनी के द्वारा निर्गमित, लिखित और सार्वमुद्रा में स्वीकृत प्रलेख है।

2. यह कम्पनी के द्वारा ऋण लेने का प्रमाणपत्र है।

3. इस पर व्याज की दर, अवधि, शोधन विधि, आदि पूर्व निश्चित होतो है। .

4. इसके ब्याज का भुगतान सामयिक (: महीना) होता है।

5. साधारणतया ऋणपत्र सुरक्षित होते है।

6. ऋणपत्र को सममूल्य, अधिमूल्य या छूट पर जारी किया जा सकता है।

7. ऋणपत्र का हरण नहीं होता है।

8. ऋणपत्र का शोधन नकद भुगतान के द्वारा या अंशों में परिवर्तित करके किया जाता 

9.ऋणपत्र कम्पनी को ऋणदाता प्रतिभूति होने के कारण इसे कम्पनी के आर्थिक चिट्ठे मेंसमता और दायि.शीर्षक के अन्तर्गतगैरचालू दायित्वोंमें दिखाया जाता है। 

10. कम्पनी अपने ऋणपत्र को निवेश के रूप में खरीद सकती है। .. 11. ऋणपत्र पर ब्याज देय होता है, चाहे कम्पनी को लाभ हो या हानि।  

12.ऋणपत्र के धारक को मत देने और कम्पनी के प्रबन्ध में भाग लेने का अधिकार . नहीं होता है। 

ऋणपत्रों के प्रकार (Kinds of Debentures) 

1.रजिस्टर्ड ऋणपत्र (Registered Debenturesजो ऋणपत्र कम्पनी के रजिस्टर लिखे जाते हैं और जिनके मूल तथा ब्याज का भुगतान रजिस्टर्ड धारकों को ही देय होता है, जिस्टर्ड ऋणपत्र कहे जाते हैं। 

2. वाहक ऋणपत्र (Bearer Debentures)-जिन ऋणपत्रों का हस्तान्तरण सुपर्दगी से होता है, वाहक त्राणपत्र कहे जाते हैं। इनका ब्याज एवं इनकी मूल राशि का इनके वाहकों को किया जाता है। इनके हस्तान्तरण पर तो कोई वैधानिक विधि अपना जाती है और स्टाम्प शुल्क ही देना पड़ता है। इन ऋणपत्रों का वाहक एक साधारण ही देकर अपना नाम जब चाहे तब कम्पनी के रजिस्टर में लिखा सकता है। 

3. रक्षित या बन्धक ऋणपत्र (Secured or Mortgaged Debentures) जिन ऋणपत्रों के लिए कम्पनी की सम्पत्तियों पर भार या बन्धक किया जाता है, रक्षित या बन्धक ऋणपत्र कहे जाते हैं। भारत में निर्गमित सभी ऋणपत्रों का रक्षित होना अनिवार्य है। 

कम्पनी अधिनियम, 2013 के नियम 4.16 के अनुसार सुरक्षित ऋणपत्रों के निर्गमन की दशा में इनके शोधन की अवधि निर्गमन की तिथि से 10 वर्ष से अधिक नहीं होगी, परन्त अवसंरचना में संलग्न कम्पनियों की दशा में यह अवधि 10 वर्ष से अधिक हो सकती है लेकिन 30 वर्ष से अधिक नहीं। 

4. साधारण या नग्न या अरक्षित ऋणपत्र (Simple, Naked or Unsecured Debentures)—इन ऋणपत्रधारियों को कम्पनी कोई भी प्रतिभूति (Security) ऋण ब्याज के भुगतान के लिए नहीं देती है। कम्पनी समापन के समय ये साधारण लेनदार की तरह माने जाते हैं। ये ऋणपत्र केवल इस बात का प्रमाण हैं कि कम्पनी इनमें अंकित ऋण की देनदार है। 

5. शोध्य ऋणपत्र (Redeemable Debentures)—ऐसे ऋणपत्र, जिनका भुगतान एक निश्चित अवधि के बाद कम्पनी द्वारा किया जाता है, शोध्य ऋणपत्र कहे जाते हैं। 

6. अशोध्य ऋणपत्र (Irredeemable Debentures)—जिन ऋणपत्रों की राशि कम्पनी के समापन पर भुगतान की जाती है। कम्पनी के जीवन में भुगतान नहीं की जाती है, उन्हें अशोध्य ऋणपत्र कहा जाता है। यद्यपि इनका भुगतान कम्पनी के समापन पर कर दिया जाता है, परन्तु इन पर ब्याज बराबर दिया जाता है, यदि ब्याज के देने में त्रुटि हो जाती है, तो इनका भुगतान कम्पनी के जीवन में भी कराया जा सकता है। 

7. परिवर्तनीय ऋणपत्र (Convertible Debentures)-ये वे ऋणपत्र होते हैं जिनके धारकों को एक निश्चित अवधि में अथवा निश्चित अवधि के बाद पूर्व निर्धारित शर्तो के अधीन अपने सम्पूर्ण ऋणपत्रों अथवा उनके किसी भाग को अंशों अथवा दसरे प्रकार के ऋणपत्रों में बदलने का अधिकार होता है। इस प्रकार ये ऋणपत्र पूर्ण परिवर्तनशील ऋणपत्र (Fullv Convertible Debentures) अथवा आंशिक परिवर्तनशील ऋणपत्र (Partly Convertible Debentures) हो सकते हैं। 

8. अपरिवर्तनीय ऋणपत्र (Non-Convertible Debentures)-ऐसे ऋणपत्रों के धारकों को अपने ऋणपत्रों को अंशों अथवा अन्य दूसरे प्रकार के ऋणपत्रों में बदलने का अधिकार नहीं होता है। 

9. प्रथम ऋणपत्र (First Debentures)-ऐसे ऋणपत्रधारियों का कम्पनी की सम्पत्तियों पर प्रथम अधिकार होता है। ऐसे ऋणपत्रों के मूलधन तथा ब्याज का भगता अन्य ऋणपत्रों से पहले किया जाता है। 

10. द्वितीय ऋणपत्र (Second Debentures)-ऐसे ऋणपत्रधारियों की ब्याज तथा मलधन की राशि का भुगतान प्रथम ऋणपत्रों का भुगतान करने के बाद किया जाता है। 

ऋणपत्र सहायक प्रतिभूति के रूप में 

(Debentures as Collateral Security) जब कम्पनी किसी ऋण को लेने के लिए अपने ऋणपत्रों को प्रतिभूतिया का तरह तो इसका यह आशय होता है कि यदि निश्चित समय पर ऋणदाता को कम्पना द्वारा उसका राशि नहीं लौटायी जायेगी तो इन ऋणपत्रों की राशि लेने का अधिकार ऋणदाता का हा इसके विपरीत, यदि निश्चित समय पर उनके द्वारा दिये हए ऋण का भुगतान म्पना द्वारा कर दिया जाता है. तो ऋणपत्र कम्पनी को वापस मिल जायेंगे। इस प्रकार के ऋण पत्रों का खातम दो प्रकार से दिखाया जा सकता है। 

(1) ऐसे ऋणपत्रों के लिए खातों में कोई प्रविष्टि नहीं की जाती है तथा चिठ्ठ में दायित्व पक्ष की ओर ली हुई ऋण की राशि को दिखाने के बाद इन ऋणपत्रों को आन्तरिक खाते में टिप्पणी की तरह दिखाया जाता है। 

(2) यदि इनका लेखा बहियों में करना हो, तो इस प्रकार करना चाहिए 

Debentures Suspense A/c … … …Dr. 

    To Debentures Alc  

Debenture Suspense Account की बाकी चिट्ठे में सम्पत्ति पक्ष की ओर दिखायी जाती है। जब ऋण का भुगतान कर दिया जाता है तो ऋणपत्र खाता डेबिट और ऋणपत्र संदिग्ध खाता क्रेडिट किया जाता है। 

ऋणपत्रों पर ब्याज और इस पर आयकर (Interest on Debentures and Income tax Thereon) अंश की तुलना में ऋणपत्र का सबसे बड़ा लाभ यह है कि कम्पनी को लाभ हो या हो, इन पर ब्याज अवश्य मिलता है। प्रत्येक कम्पनी के लिए आयकर अधिनियम के अनुसार यह आवश्यक है कि वह ऋणपत्रधारियों को ऋणपत्रों पर ब्याज देने के पहले इसमें से आय कर की राशि काट ले और इसे सरकारी खजाने में जमा कर दे। सरकारी खजाने में जमा की गयी आय कर की राशि का प्रमाणपत्र ऋणपत्रधारियों के पास भेजा जाता है। इसके लिए कम्पनी की पुस्तकों में निम्नांकित लेखे किये जाते हैं।

(1) ऋणपत्रों पर ब्याज खाता कुल ब्याज की राशि से डेबिट किया जाता है तथा ऋणपत्रधारियों का खाता उस ब्याज की राशि से क्रेडिट किया जाता है जो उन्हें वास्तव में देय होता है और आय कर खाता इस ब्याज पर आय कर के लिए काटी हुई राशि से क्रेडिट किया जाता है। 

(2) जब इस ब्याज का भुगतान किया जाता है तो निम्नलिखित लेखा किया जाता है।

(3) वर्ष के अन्त में ऋणपत्रों का ब्याज खाता बन्द करने के लिए इस खाते की बाकी को लाभहानि खाते/विवरण में हस्तान्तरित कर दिया जाता है। 

ऋणपत्रों के भुगतान की विधियाँ 

(Methods of Redemption of Debentures) ऋणपत्रों के भुगतान की विधियों का वर्णन इन्हें निर्गमित करने वाली शर्तों में किया जाता है। निम्नांकित विधियाँ साधारणतया इनके भुगतान के लिए प्रयोग की जाती हैं 

ऋणपत्र भुगतान की विधियां 

परिवर्तन (Conversion)

(i) कुछ कम्पनियाँ अपने ऋणपत्रधारियों को यह सुविधा देती हैं कि वे जब चाहें अपने को अंशधारियों में बदल सकते हैं। ऐसा उसी कम्पनी में सम्भव हो सकता है जो कि परिवर्तनशील ऋणपत्रों का निर्गमन करती है। इसके लिए निम्नांकित लेखा किया जाता है

कम्पनी द्वारा नये अंश सममूल्य पर, प्रीमियम पर अथवा कटौती पर निर्गमित किये जा सकते हैं। यदि नये अंश प्रीमियम पर दिये जा रहे हों तो Security Premium A/c को क्रेडिट किया जाता है। इसके विपरीत यदि नये अंश छूट पर दिये जा रहे हों तो Share Discount A/c को डेबिट किया जाता है। 

परिवर्तन की प्रक्रिया में कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 79 का विशेष ध्यान रखना होगा। धारा 79 के अनुसार परिवर्तनशील ऋणपत्रों के बदले निर्गमित किये जाने वाले अंशों की संख्या ज्ञात करने हेतु उक्त ऋणपत्रों के अंकित मूल्य के स्थान पर इनके निर्गमन पर प्राप्त वास्तविक राशि पर ही ध्यान देंगे अर्थात्, अंशों का निर्गमन मूल्य उक्त ऋणपत्रों के निर्गमन पर प्राप्त वास्तविक राशि के बराबर होना चाहिए। यदि अंशों का निर्गमन ऋणपत्रों के अंकित मूल्य के आधार पर कर देते हैं तो यह धारा 79 का उल्लंघन माना जाता है। ऐसेऋणपत्रों के सम्बन्ध में परिवर्तन की प्रविष्टि करते समय उक्त ऋणपत्रों पर दी गयी कटौती की राशि सेDiscount on Issue of Debenture A/c’ को क्रेडिट कर देंगे। 

यदि परिवर्तनशील ऋणपत्रों का निर्गमन प्रीमियम पर किया गया हो तो ऐसी दशा में परिवर्तन किये जाने वाले ऋणपत्रों के बदले में निर्गमित किये जाने वाले अंशों की संख्या उक्त ऋणपत्रों के अंकित मूल्य पर ही ज्ञात की जायेगी। 

(1) ऋणपत्रों का भुगतान पराने प्रणपत्रों के बदले में गये ऋणपत्र देकर भी किया जा इस दशा में पराने पाणपत्रों का खाता डेबिट और नये ऋणपत्रों का खाता क्रांडट किया जाता है 

एक निर्धारित अवधि के बाद भुगतान (Payment after a Fixed Period)-जिन ऋणपत्रों का भुगतान एक निर्धारित अवधि के बाद करना होता है, उनका भुगतान या तो सिकिंग फण्ड द्वारा या सिंकिंग फण्ड बीमा पॉलिसी या ऋणपत्र भुगतान कोष द्वारा किया जाता 

() ऋणपत्र शोधन संचय (Debenture Redemption Reserve)/मिकिग फण्ड (Sinking Fund)—ऋणपत्रों का भुगतान करने के लिए साधारणतया एक कोष खोला जाता है, जिसे ऋणपत्र शोधन संचय या सिंकिंग फण्ड (Sinking Fund) कहा जाता है। यह कोष प्रति वर्ष कम्पनी को होने वाले लाभ में से बनाया जाता है और इसे या तो विनियोग किया जाता है या इसके द्वारा एक बीमा पॉलिसी ले ली जाती है। ऋणपत्रों के भुगतान की तिथि पर इस कोष के विनियोगों से प्राप्त राशि द्वारा ऋणपत्रों का भुगतान कर दिया जाता ऋणपत्र शोधन संचय/सिंकिंग फण्ड में ले जायी जाने वाली राशि ऐसी होनी चाहिए ताकि इसे निर्धारित चक्रवृद्धि ब्याज की दर से विनियोग किये जाने पर यह राशि ऋण को अवधि समाप्त होने पर उस राशि के बराबर हो जाये जो ऋणपत्रों के लिए भुगतान की जानी है। ऋण की राशि, भुगतान की अवधि और ब्याज की दर ज्ञात होने पर यह राशि वार्षिकी सारणी (Annuity Table) द्वारा ज्ञात की जा सकती है। अन्त में इस खाते की बाकी को सामान्य संचय (General Reserve) खाते में हस्तान्तरित किया जाता है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 71(4) के अनुसार जब भी कोई कम्पनी इस धारा के अन्तर्गत ऋणपत्र निर्गमित करती है तो उसे लाभांश के भुगतान के लिए उपलब्ध लाभों में से ऋणपत्र शोधन संचय का सृजन करना होगा और इस संचय में जमा राशि का प्रयोग ऋणपत्रों के शोधन के अतिरिक्त अन्य किसी कार्य में नहीं होगा। परन्तु निम्नलिखित दशाओं में कम्पनी को ऋणपत्र शोधन संचय बनाने की आवश्यकता नहीं है 

1.जिन ऋणपत्रों की परिपक्वता अवधि (Maturity period) 18 माह या इससे कम है या ऋणपत्र परिवर्तनीय है उनके लिए ऋणपत्र शोधन संचय बनाना आवश्यक नहीं है। 

2. मलभूत सुविधाओं के विकास, रखरखाव तथा संचालन में संलग्न कम्पनियों (Infrastructure companies) को ऋणपत्र शोधन संचय बनाना आवश्यक नहीं है। 

3. भारतीय वित्तीय संस्थाओं, रिजर्व बैंक एवं अन्य बैंकों द्वारा निर्गमित ऋणपत्रों के लिए ऋणपत्र शोधन संचय (DRR) बनाना आवश्यक नहीं है। 

ऋणपत्र शोधन संचय पद्धति द्वारा ऋणपत्रों के शोधन/भुगतान के सम्बन्ध में किये जाने वाले लेखे 

(2) जब ऋणपत्र शोधन संचय की राशि को विनियोगकिया जाता है (3) जब इन विनियोगों पर ब्याज प्राप्त होता है तो इस राशि को ऋणपत्र शोधन संचय खाता (Debenture Redemption Reserve A/c) में क्रेडिट किया जाता है। इसके लिए निम्नांकित लेखा किया जाता है 

इस ब्याज को राशि को तुरन्त उन्हीं प्रतिभूतियों में विनियोग कर दिया जाता है जिनमें कि मुल राशि लगी हुई है। इस ब्याज के विनियोग के लिए निम्नांकित लेखा किया जाता है 

(4) यही लेखे प्रति वर्ष किये जाते हैं जब तक कि ऋणपत्रों के भुगतान की अवधि पूरी हो जाये। अवधि पूरी होने के बाद विनियोगों की राशि प्राप्त हो जाती है और यदि इस बिक्री से लाभ या हानि होती है तो लाभ या हानि को ऋणपत्र शोधन संचय खाते (Debenture Redemption Reserve A/c) में हस्तान्तरित कर दिया जाता है।

(5) ऋणपत्र शोधन संचय खाते (Debenture Redemption Reserve A/C) की बाकी सामान्य संचय में हस्तान्तरित कर दी जाती है 

(6) जब विनियोगों पर इनकी अवधि के बाद या इसके पूर्व इनकी बिक्री से आय प्राप्त होती है तब बैंक खाता डेबिट तथा ऋणपत्र शोधन संचय विनियोग खाता/सिंकिंग फण्ड, विनियोग खाता क्रेडिट किया जाता है। इस वर्ष इस खाते के लाभ या हानि को सिंकिंग फण्ड (Sinking Fund) खाते में हस्तान्तरित किया जाता है। 

(7) जब ऋणपत्रों का भुगतान किया जाता है, तब निम्नांकित लेखा किया जाता है

नोटजिस वर्ष ऋणपत्रों का शोधन (भुगतान) करना होता है, उस वर्ष ऋणपत्र शोधन कोष/सिकिंग फण्ड में हस्तान्तरित (Transfer) की गई रकम को विनियोजित नहीं किया जाता है। 

() सिंकिंग फण्ड बीमा पॉलिसी (Sinking Fund Insurance Policy)

ऋणपत्रों के भुगतान के लिए एक बीमा पॉलिसी भी ली जा सकती है। यह पॉलिसी उस राशि के लिए ली जाती है जो ऋणपत्रों के भुगतान पर कम्पनी को देनी पड़ेगी। इस पॉलिसी का प्रीमियम सिंकिंग फण्ड से भुगतान किया जाता है। 

ऋणपत्रों का भुगतान वार्षिक किस्तों द्वारा किया जाना 

(Payment of Debentures by Annual Drawings)

जब कम्पनी को प्रति वर्ष ऋणपत्रों का एक निश्चित भाग भुगतान करना होता है तो वह ऋणपत्रों की लॉटरी निकालती है और इनके धारकों को सूचना देकर भुगतान करती है। यह भुगतान लाभ में से या पूँजी में से किया जाता है। जब ऋणपत्रों का भुगतान वार्षिक आहरण द्वारा किया जाता है तो ऋणपत्र खाता डेबिट और बैंक खाता क्रेडिट किया जाता है। 

इस दशा में ऋणपत्रों का भुगतान प्रीमियम पर या कटौती पर या सममूल्य पर किया जा सकता है। इसका विवरण ऋणपत्र निर्गमन की शर्तों पर निर्भर है। यदि इनके भुगतान पर कोई लाभ होता है तो लाभ की राशि से ऋणपत्र खाता डेबिट और ऋणपत्रों के भुगतान पर लाभ खाता क्रेडिट किया जाता है

ऋणपत्रों को खुले बाजार में क्रय करना। 

(Purchase of Debentures in the Open Market)

कम्पनी को अपने ऋणपत्रों के क्रय करने पर कम्पनी अधिनियम में कोई प्रतिबन्ध नहीं है, परन्तु यदि ऋणपत्रों के निर्गमन की शर्तों में एक शर्त यह है कि कम्पनी अपने ऋणपत्रों को क्रय नहीं करेगी तब कम्पनी ऐसा नहीं कर सकती है। जब ऋणपत्रों के निर्गमन में यह शर्त रहती है कि कम्पनी खुले बाजार में इनका क्रय कर सकती है तो जब कम्पनी यह देखती है कि स्कन्ध विनिमय (Stock Exchange) बाजार में इन ऋणपत्रों का मूल्य इनके अंकित मूल्य से कम है तो बाजार में इन्हें क्रय कर लेती है और इस प्रकार उनका भुगतान हो जाता है 

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